गुप्त साम्राज्य
History जानकारी के स्त्रोत-
आइए, गुप्त वंश के History की जानकारी के लिए First हम साहित्यिक और पुरातत्विक स्त्रोतों का अध्ययन कर लें । ऐसे अनेक अभिलेख खोज निकाले गए है जिनसे इस काल की विस्तृत जानकारी मिती है । इन अभिलेखों में प्रमुख है : चन्द्रगुप्त का इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख, उदयगिरि गुफा अभिलेख, सांची शिलालेख तथा महरौली के लौह स्तम्भ अभिलेख । भूमि संबंधी दस्तावेज और सिक्के उस समय की आर्थिक दशा की जानकारी देते है । साहित्यिक स्त्रोत में शामिल है – चीन के यात्री फाह्यान की पुस्तक और कालीदास द्वारा लिखित ऋतु संहार, मेघदूत, अभिज्ञान, शाकुन्तलम् इन सब की सहायता से ही गुप्त साम्राज्य काल के History की कड़ियों को जोड़ना सम्भव हुआ है ।’
गुप्त वंश की जानकारी के मुख्य स्त्रोत है : इलाहाबाद और सांची के अभिलेख, भूमि अनुदान संबंधी दस्तावेज, सिक्के और फाह्यान व कालीदास की साहित्यिक कृतियां । गुप्त कौन थे ? इस प्रश्न पर Historyकारों में मतभेद है । डॉं. के.पी. जायसवाल उन्हें जाट और पंजाब के मूल निवासी स्वीकार करते है । वहीं डॉं. एच.सी. राय चौधरी की मान्यता है कि गुप्त ब्राम्हण थे । जी.एस.ओझा उन्हें क्षत्रिय त्रिपाठी वैश्य जाति का मानते है । वंशावली के According गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था । उसके नाम के साथ महाराज की पदवी लगार्इ जाती थी । इससे पता चलता है कि वह मगध के Single छोटे से राज्य का स्वामी था । उसका उत्तराधिकारी उसका बेटा घटोत्कच हुआ । वह भी महाराज कहलाया ।
श्री गुप्त-
गुप्त साम्राज्य का संस्थापक श्री गुप्त था । श्री गुप्त के महाराज कहा जाता था । श्री गुप्त का उत्तराधिकारी उसका पुत्र घटोत्कच हुआ । उसे भी महाराज कहा जाता था । इस वंश में चन्द्रगुप्त First को महाKingधिराज की उपाधि प्राप्त हुर्इ । उसके राज्यकाल में गुप्त साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ ।
चन्द्रगुप्त First (320-335 र्इ.)
गुप्त वंश का पहला महान् King था चन्द्रगुप्त First । उसने अपने छोटे से राज्य को Single महत्वपूर्ण राज्य बनाया । उसे ही First King माना जाता है । क्योकि उसने महाKingधिराज की पदवी धारण की । उसने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह Reseller । इसके प्रमाण है सोने के सिक्के और अभिलेख । इन सिक्कों पर चन्द्रगुप्त First के नाम व चित्र के साथ कुमारदेवी का नाम चित्र भी अंकित Reseller गया है । लिच्छबी वंश नेपाल का प्राचीन राजवंश था जिससे वैवाहिक संबंध स्थापित करने के कारण गुप्त Kingओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुर्इ । इससे शायद उन्हें भौतिक लाभ भी हुआ । लगता है कि चन्द्रगुप्त First Single अत्यन्त महत्वपूर्ण King था क्योंकि उसने 319-320 र्इ. में राज्यारोहाण की तिथि से गुप्त सम्वत् आरम्भ Reseller । बाद में अनेक अभिलेखों की तिथियां गुप्त सम्वत् में दी गर्इ । गुप्त वंश का First महान शासन चन्द्रगुप्त First (320-335 र्इ.) था । उसने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी शक्ति बढ़ार्इ । उसने 319-320 र्इ. में अपने राज्योरोहण की तिथि से गुप्त सम्वत् आरम्भ Reseller ।
समुद्रगुप्त- (335-380 र्इ.)
समुद्रगुप्त चन्द्रगुप्त First का उत्तराधिकारी था । समुद्रगुप्त Single योग्य, दूरदश्र्ाी वीर व सहिष्णु King था । जिसने गुप्त साम्राज्य के प्रशासन को सुदृढ़ कर अद्भुत पराक्रम से साम्राज्य की सीमा में वृद्धि की । समुद्रगुप्त के अभियानों का जीवन्त चित्रण उसके दरबारी कवि ‘हरिषेण’ ने Reseller है । समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था उसके सिक्कों में उसे वीणा बजाते हुये दिखाया गया है।
समुद्रगुप्त का विजय अभियान
समुद्रगुप्त Single वीर सेनानायक और योद्धा था । Indian Customer History में वह अपनी विजय के लिये विख्यात है । वह Single महत्वकांक्षी और साम्राज्यवादी King था । उसका सन्धि विग्रहिक हरिषेण प्रमाण प्रशस्ति में उसकी दिग्विजयों History करता है । उसने परम्परागत नीति को अपनाया । समुद्रगुप्त के विजय निम्न है –
(1) उत्तरी भारत विजय:- समुद्रगुप्त ने उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार की नीति का पालन करते हुये जीते हुये समस्त प्रदेशों को अपने साम्राज्य में विलीन कर लिया । उत्तरी भारत में इस समय नागवंश के कर्इ राज्य कर्इ श्रेणी में बंटे हुये थे । समुद्रगुप्त ने First इसी वंश के नागसेन, नागदत्त व नन्दि King को पराजित Reseller । इसके अतिरिक्त उसने गणपति नाग, भतिस, अच्युत रूद्रदेव, चन्द्रवर्मन तथा बालवर्मा को Defeat Reseller । समुद्रगुप्त ने आटविक राज्य Meansात जंगल के राज्यों को जो मथुरा से नर्मदा तक पर आक्रमण Reseller और विजय हासिल Reseller । समुद्रगुप्त गुप्त वंश का सर्वश्रेष्ठ King था उसके Fight अभियान के कारण उसके अभियान को दिग्विजय अभियान कहा जाता है ।
(2) दक्षिण भारत की विजय:- प्रयाग प्रशस्ति की 19वीं और 20वीं पंक्तियों में दक्षिणापथ के 12 राज्यों का History मिलता है जिनकें Kingों को पराजित करके उसने उनके राज्यों को वापस लौटा दिया । दक्षिणापथ के निम्नलिखित बारह Kingों पर उसने विजय प्राप्त की –
- कोसल का महेन्द्र
- महाकान्तर का व्याध्रराज
- कोसल का मृणराज
- पिष्यपुर का महेन्द्रगिरि
- कोहूरकत स्वामीछत्र
- एरण्डपलि का दमन
- कांत्र्ची का विष्णु भोगप
- अवमुक्त का नीलराज
- वेंगी का हस्तिवर्मन
- पालक का उग्रसेन
- देवराष्ट्र का कुबेर
(3) सीमान्त प्रदेशों पर विजय:- उत्तर-दक्षिण के सफल Fight अभियान के बाद समुद्रगुप्त उत्तरपूर्वी राज्य की ओर बढ़ा । इस समय उसने पांच राज्यों के Kingो को Fight में पराजित Reseller। (4) विदेशी राज्य:- प्रयाग प्रशस्ति के According दैवपुत्र शाही शाहानुशाही शक मुरूण्ड सिंहलद्वीप के King तथा समस्त दीपों के निवासियों ने समुद्रगुप्त के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित Reseller उन्होंने आत्म निवेदन, तथा गरूड चिंह वाली गुप्त-मुद्राओं के प्रयोग की Kingज्ञा प्राप्त करके उसकी सेवा की सिंहल लकां नरेश मेघवर्ण ने समुद्रगप्ुत के दरबार में Single राजदूत भेजा और सिंहली यात्रियों की सुविधा के लिए विहार बनवाया । इस प्रकार समुद्रगुप्त के शासन काल में भारत की राजनैतिक Singleता का Single नया दौर आरम्भ हुआ ।
समुद्रगुप्त ने अपनी सैनिक गतिविधियों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यो में भी रूचि ली । हरिषेण के According समुद्रगुप्त अपनी काव्य रूचि के कारण कविराज कहलाता था । गुप्त काल के अनेक सिक्कों पर उसे वीणा बजाते दिखाया गया है ।
समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ की प्रथा को फिर से चलाया । अनेक सिक्कों पर घोड़े का चित्र अंकित है । यद्यपि गुप्त King विष्णु के उपासक थे फिर भी उन्होंने अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णुता दिखार्इ । Single चीनी स्रोत से ज्ञात होता है कि सिंहल द्वीप (श्रीलंका) के King मेघवर्मन ने अपने दूर द्वारा समुद्रगुप्त को उपहार भेजे और उसने बौध-गया में Single विहार बनाने की अनुमति मांगी। समुद्रगुप्त ने सहर्ष आज्ञा दी जिसके फलस्वReseller वहां महाबोधी बिहार विकसित हो गया । समुद्रगुप्त Single महान योद्धा व सेना नायक होने के साथ कला और साहित्य का पोषक था। इलाहाबाद स्तम्भ में उसकी सैनिक सफलताओं की जानकारी मिलती है । उसके सिक्के उसके काव्य प्रेम के साक्षी है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-412 र्इ.)
गुप्त वंश का अन्य महान King था चन्द्रगुप्त द्वितीय । इसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य भी कहा जाता है । उसका शासन काल चौमुखी विकास और समृद्धि का काल कहा जाता है । चन्द्रगुप्त द्वितीय को समुद्रगुप्त से उत्तराधिकारी Reseller में Single विशाल साम्राज्य मिला था । उसने वैवाहिक संबंधों और विजयों द्वारा साम्राज्य को और बढ़ाया । उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह मध्य भारत के वाकाटक King रूद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया । रूद्रसेन की मृत्यु के बाद उसका बेटा गद्दी पर बैठा और प्रभावती उसके संरक्षक के Reseller में कार्य करने लगी । वह अपने पिता के परामर्श से राज्य कार्य चलाने लगी । इस प्रकार वाकाटक राज्य पर चन्द्रगुप्त द्वितीय का अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया । चन्द्रगुप्त की शकों पर विजय अन्य महत्वपूर्ण सफलता थी। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने बाकाटक राज्य की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाया । इस क्षेत्र होकर उसने पश्चिमी मालवा और गुजरात के शक Kingों को पराजित Reseller । इस विजय का विशेष महत्व है । Single तो पश्चिमी समुद्र तट की ओर साम्राज्य Windows Hosting हो गया Second पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित बन्दरगाहों पर अधिकार मिल गया जो व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे ।
चन्द्रगुप्त द्वितय कला और साहित्य का पोषक था । कहा जाता है कि नवरत्न उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे । ये भी अपने-अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वान थे । इन्हीं में से थे- कालीदास और अमरसिंह । इस काल में उज्जैन Single राजनैतिक, धार्मिक और व्यापारिक केन्द्र के Reseller में विकसित हुआ । इस नगर को साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया गया, पहली राजधानी पाटलीपुत्र थी ।
विद्वान अभी तक उस चन्द्र King के विषय में सही Reseller से नही कह पाए है जिसकी सैनिक सफलताओं का History मैहरोली में कुतुब मीनार के पास स्थित लौह-स्तम्भ पर Reseller गया है । यदि चन्द्रगुप्त द्वितीय ही है तो यह स्तम्भ अभिलेख प्रमाणित करता है कि गुप्त Kingों का आद्विापत्य बंगाल और उत्तर पश्चिमी भारत पर था । अन्य भ्रान्ति क्षेत्र है कि क्या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ही उज्जैन का वह King है जिसने शकों को पराजित कर 58 र्इसा पूर्व सम्वत् आरम्भ Reseller था । चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल को महत्वपूर्ण घटना चीनी विद्वान फाह्यान (399-414 र्इ.) का भारत भ्रमण था । उसके description से चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय के जन-जीवन व राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का अच्छा प्रकाश पड़ता है ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर साम्राज्य की सीमा पश्चिमी समुद्र तट तक पहुंचा दी । उसने कला और साहित्य को प्रोत्साहन दिया । कालीदास और अमरसिंह दरबार के नवरत्नों में से थे । उज्जैन Single सांस्कृतिक केन्द्र के Reseller में विकसित हुआ । इस काल में ही फाह्यान भारत भ्रमण के लिए गया था ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के उत्तराधिकारी
चन्द्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र कुमारगुप्त First 415 र्इ. में सिंहासन पर बैठा । वह उत्तराधिकार में प्राप्त विशाल साम्राज्य को अक्षुण्ण रखने में सफल रहा । उसका दिर्घ शासनकाल सुख, शान्ति और समृद्धि का प्रतीक था । 455 र्इ. में उसकी मृत्यु के बाद स्कन्दगुप्त सिंहासन पर बैठा । स्कन्दगुप्त ने हूण आक्रमणकारियों को अपने साम्राज्य से बाहर खदेड़कर साम्राज्य की सीमाओं की रक्षा की । वह सदैव जनकल्याण में संलग्न रहता था । सन् 467र्इ. मे ंउसकी मृत्यु के उपरान्त पुरूगुप्त, बुद्धगुप्त, परसिंहगुप्त, बालादित्य, कुमारगुप्त द्वितीय, विष्णुगुप्त आदि Kingों ने शासन Reseller ।
हूणो का आक्रमण
चन्द्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमार गुप्त (414-455 र्इ.) था और उसके पुत्र स्कन्दगुप्त (455-467 र्इ.) के काल की महत्वपूर्ण घटना थी हूणों का आक्रमण । हूण तुर्क मगोल जाति के लागे थ े । वह जंगली आरै बबर्र थे ये लोग उत्तर पश्चिमी चीन स े आए और नए क्षेत्रों की खाजे में पश्चिम की ओर बढ़ने लगे । इन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण शुरू कर दिया । स्कन्दगुप्त ने हूणों को बुरी तरह पराजित Reseller । इसके बाद कुछ वर्षो तक हूण गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सके ।
स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद हूणों ने फिर गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण शुरू कर दिया । अब गुप्त वंश के उत्तराधिकारी में कोर्इ ऐसा न था जो हूणों का सामना कर सकता । तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने पूर्व मालवा और मध्य भारत के कुछ भाग पर अपना अधिकार कर लिया । तोरभाण के बेटे मिहिरकुल के नेतृत्व में भी हूणों के आक्रमण होते रहे । व्हेनसांग के description और 12वीं शताब्दी की कश्मीर की साहित्यिक Creation कल्हन की राजतंरगिणी से पता चता है कि मिहिरकुल Single अत्याचारी King था । हूणों की सत्ता अधिक समय तक नहीं बनी रही । मालवा के King यशोवर्मन ने मिहिरकुल को पराजित Reseller । हूणों का राज्य कश्मीर, गंधार और सिंधु नदी के समीप के क्षेत्र तक सीमित हो गया । कालान्तर में हूणों का प्रभुत्व समाप्त हो गया और वे स्थानीय जनता में घुलमिल गए ।
हूण तुर्क-मंगोल के लोग थे । उन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण Reseller परन्तु स्कन्दगुप्त ने उन्हें पराजित Reseller । तोरमाण और मिहिरकुल के नेतृत्व में हुण शक्ति अपनी सर्वोत्तम सीमा पर पहुंची । समय के साथ, हूण लोग स्थानीय जनता में मिल गए।
गुप्त साम्राज्य का पतन
स्कन्द गुप्त के उत्तराधिकारी विशालगुप्त साम्राज्य को अक्षुण नहीं रख सके । शक्तिशाली हूणों के आक्रमण और विघटनकारी शक्तियों के आगे वे निर्बल सिद्ध हुयें इस प्रकार गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया ।
- अयोग्य उत्तराधिकारी- स्कन्द गुप्त के उपरान्त कोर्इ ऐसा प्रतापी King नहीं हुआ जो साम्राज्य को सुसंगठित रख सके । समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा स्थापित तथा स्कन्दगुप्त द्वारा रक्षित विशाल गुप्त साम्राज्य को राजनीतिक Singleता के सूत्र में आबद्ध रखने में परवर्ती गुप्त King असमर्थ रहें ।
- वंशानुगत राजतंत्र- गुप्त राज्य व्यवस्था वंशानुगत राजतंत्र की व्यवस्था थी इसके कारण भी पतन हुआ ।
- सामंतों के द्वारा- गुप्त राज्य का दुर्भाग्य था कि इसका सामन्त वर्ग स्वाथ्र्ाी And महत्वकांक्षी था । इस वर्ग ने संकट के काल में राज्य को बचाने का प्रयास करने के बजाय उसकी कठिनार्इयों का लाभ उठाकर अपना स्वतंत्र राज्य बनाना ज्यादा बेहतर समझा । उनके इस कार्य ने भी साम्राज्य के पतन में योग दिया ।
- विदेशी आक्रमण- बाहर आक्रमणों के कारण गुप्त साम्राज्य खोखला हो गया था । शक और हूणों के आक्रमण से साम्राज्य का रक्षा करने में केवल स्कन्दगुप्त ही सफल रहा स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात हूणों का पुन: आक्रमण प्रारम्भ हो गया । फलस्वReseller गुप्त साम्राज्य Destroy हो गया ।