कृषि यंत्रीकरण क्या है?
साधारण Meansों में कृषि के मशीनीकरण या यन्त्रीकरण का Means कृषि की परम्परागत तकनीकों के स्थान पर यन्त्रों And कृषि उपकरणों का प्रयोग है। कृषि यन्त्र व उपकरणों से Means उन यंत्रों से है जो कृषि में काम आते हैं। कृषि के यन्त्रीकरण (मशीनीकरण) से Means भूमि पर जहॉ भी सम्भव हो सके यान्त्रिक शक्ति द्वारा उन क्रियाओं के सम्पन्न करने से है जो सामान्यतया बैलों, घोड़ों And पशुओं या Humanीय श्रम द्वारा सम्पन्न की जाती है। जैसे खेत में हल चलाने का कार्य टै्रक्टरों द्वारा होना, बुवाई व उवरर्क डालने का काम ड्रिल (Drill) मशीन द्वारा Reseller जाना। इसी प्रकार फसल काटने का कार्य हार्वेस्टर व थे्रसर से करना, सिंचाई कुॅओं And बैलों से न करके पम्प सेटों से करना आदि ही कृषि का मशीनीकरण है। Second Wordों में इसी पुराने ढंग से कृषि औजारों जैसे हलों, दरान्ती, खुरपी, फावड़ा आदि के स्थान पर आधुनिक मशीनों व उपकरणों का उपयोग करना ही कृषि यन्त्रीकरण है।
अत: कृषि यन्त्रीकरण के अन्तर्गत खेती की All क्रियाओं में हल चलाने से लेकर फसल काटने तथा बेचने तक का कार्य मशीनों द्वारा होता है।
कृषि कार्यों में प्रायोगिक यांत्रिक शक्ति के आधार पर यंत्रीकरण दो प्रकार का होता है-
- गतिशील यन्त्रीकरण (Mobile mechanisation) – गतिशील यन्त्रीकरण से तात्पर्य उस यंत्रीकरण से है जिसमें फार्म पर कृषि कार्य को करने में गतिशील यन्त्रों का उपयोग Reseller जाता है। जैसे- टै्रक्टर And उसके साथ के यन्त्र हैरो, कल्टीवेटर, बीज बोने की मशीन, कटाई की मशीन आदि।
- स्थायी यन्त्रीकरण (Stationary mechanization) – स्थायी यन्त्रीकरण से तात्पर्य उस यन्त्रीकरण से है जिसमें फार्म पर कृषि कार्यों को करने में ऐसे यंत्रों का उपयोग Reseller जाता है जो Single स्थान पर स्थिर रहते हुए शक्ति सम्पन्न करते हैं और उस शक्ति से विभिन्न कृषि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं, जैसे – कुॅओं से पानी निकालने के लिए मोटर And पम्प, कुट्टी काटने की मशीन, गन्ने पेरने का कोल्हू आदि यंत्रों का उपयोग।
भारत में कृषि यन्त्रीकरण से लाभ अथवा पक्ष में तर्क
कृषि यन्त्रीकरण (मशीनीकरण) कृषि तकनीक में परिवर्तन की आधारशिला है। भारत में कृषि यंत्रीकरण के पक्ष में मुख्यत: तर्क दिये जाते हैं।
- कृषि श्रम की कुशलता में वृद्धि – फार्म पर यांत्रिक साधनों से कृषि करने पर श्रमिकों की कार्य कुशलता And क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे प्रति श्रमिक उत्पादन में मात्रा में वृद्धि होती है।
- उत्पादन में वृद्धि – जैसा कि आप जानते हैं कि कृषि में मशीनों के प्रयोग करने से कृषि कार्यों की गति बढ़ जाती है, Humanीय शक्ति का प्रयोग कम हो जाता है और खेतों का आकार बड़ा रखा जाने लगता है। मशीनीकरण के फलस्वरुप गहन व सधन जुलाई करना सम्भव हो पाता है। इसके कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।
- उत्पादन लागत में कमी – राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के नमूना सर्वेक्षण के According टै्रक्टर से खेती करने की प्रति Singleड़ लागत 100 रुपये आती है जबकि वही कार्य यदि बैलों की सहायता से Reseller जाता है तो लागत 160 रुपये आती है। इस प्रकार यान्त्रिक कृषि उत्पादन लागत कम करने में सहायक है।
- समय की बचत – कृषि यंत्रों का प्रयोग करने से किसान अपना कार्य शीघ्रता से कर लेते हैं और समय भी बच जाता है। जो कार्य Single जोड़ी हल व बैल से पूरे दिन भर Reseller जाता है उसे Single टै्रक्टर द्वारा Single घण्टे से भी कम समय में कर लिया जाता है।
- व्यापारिक कृषि को प्रोत्साहन – कृषि यन्त्रों के प्रयोग से व्यापारिक कृषि को प्रोत्साहन मिलता है। उद्योगों को कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में कृषि क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराया जा सकता है। भूमि के बहुत बड़े-बड़े खेत कम समय व कम लागत में जोते जा सकते हैं, जिसके फलस्वरुप बड़ी मात्रा में उत्पादन मण्डी तक पहुॅचाया जा सकता है। खाद्यान्न फसलों, के साथ-साथ व्यापारिक फसलों को भी प्रोत्साहन मिलता है। कृषि उपज की बिक्री न केवल अपने देश के बाजारों में बल्कि विदेशी बाजारों तक भी होती है।
- भारी कार्यों को सुगम बनाना – कृषि यंत्रों की सहायता से भारी कार्य जैसे ऊॅची नीची व पथरीली भूमि, बंजर भूमि तथा टीलों को आसानी से साफ व समतल कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है। इस तरह कृषि योग्य भूमि में वृद्धि कर कृषि उत्पादन कृषि में यंत्रों का प्रयोग कर Reseller जाता है।
- रोजगार के अवसरों में वृद्धि – कृषि यंत्रीकरण के परिणामस्वरुप दीर्घकालीन रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। यंत्रीकरण के कारण कृषि यंत्रो से सम्बन्धित उद्योग धन्धों व सहायक यन्त्रों का विस्तार होने लगता है। कृषि यंत्रीकरण से उद्योग And परिवाहन में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जैसे ट्रैक्टर।
- किसानों की आय में वृद्धि – जैसा कि आप जानते हैं कि कृषि यंत्रो की सहायता से किसान कम समय व कम लागत में अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, इसके फलस्वरुप किसानों की आय में वृद्धि होती हैं।
- उपभोक्ताओं को लाभ – कृषि में यन्त्रीकरण से उत्पादन लागत कम आती है जिसके परिणामस्वरुप उपभोक्ताओं को कृषि उपजों का मूल्य कम देना पड़ता है।
- परती भूमि का उपयोग – गहरी जुताई करने, भू-संरक्षण, भूमि सुधार, गहरे पानी वाले क्षेत्रों से पानी उठाने के कार्य यंत्रों की सहायता से सरलतापूर्वक किये जा सकते है।
- बहु फसली खेती को प्रोत्साहन – कृषि यन्त्रीकरण से बहुफसली खेती को प्रोत्साहन मिलता है और फसल चक्र में वांछित परिवर्तन करना सम्भव होता है। कृषक वर्ष में दो-तीन विभिन्न प्रकार की फसलें उत्पादित कर पाते हैं।
- ऊर्जा, बीज व उवर्रक की बचत – तकनीकि विकास महानिदेशालय द्वारा गठित, तकनीकि विकास सलाहकार समूह ने यह अनुभव Reseller कि बीज सहित उवर्रक ड्रिल (Seed-Cum fertiliser drill) न केवल ऊर्जा की बचत रहती है बल्कि 20 प्रतिशत बीज को भी बचत करती है और 15 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती है। इससे उर्वरक व बीज का प्रयोग अधिक प्रभावशाली ढंग से हो पाता है।
कृषि यन्त्रीकरण के दोष
- बेरोजगारी में वृद्धि – जैसा कि आप को ज्ञात हे कि भारत की जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है और प्रतिवर्ष इसमें वृद्धि होती जा रही है। इसीलिए यन्त्रीकरण के विरोध में तर्क देने वालों का मत है कि भारत में वैसे ही बेरोजगारी की समस्या विद्यमान है, कृषि में आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग करने से कृषि श्रमिकों की मांग घट जाएगी क्योंकि यंत्रो की सहायता से कम समय अधिक काम हो सकता है। इससे कृषि श्रमिकों और अधिक संख्या में काम नहीं मिल पाएगा। चूंकि देश में अभी भी 60 प्रतिशत जनसंख्या रोजगार के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से कृषि पर ही निर्भर करती है। अत: यदि कृषि में बड़े पैमाने पर यन्त्रीकरण करने से बेरोजगारी को बढ़ावा ही मिलेगा। Indian Customer Meansव्यवस्था के लिए कृषि यन्त्रीकरण बहुत अधिक उपयुक्त नहीं है। इसका सीमित मात्रा में ही प्रयोग होना चाहिए।
- कृषि जोतों का छोटा आकार – हमें ज्ञात है कि भारत में लघु व सीमान्त जोतों का आकार बहुत ही छोटा है। यहॉ लगभग 61.58 प्रतिशत जोंतें हैं Single हेक्टेयर से कम तथा 80.31 प्रतिशत जोते दो हेक्टेयर से कम है। भारत में जोत का औसत आकार 1.41 हेक्टेयर है जबकि अमेरिका में 60 हेक्टेयर और कनाडा में 188 हेक्टेयर है। इसके अतिरिक्त यहॉ पर भूमि उपविभाजन के कारण जोते बिखरी हुई हैं। छोटी व बिखरी जोतों पर टै्रक्टर का प्रयोग कृषकों के लिए लाभकारी नहीं हो सकता। भारत में अनार्थिक जोतों यंत्रीकरण के मार्ग में Single बड़ी बाधा है।
- पूंजी की कमी – यांत्रिक साधनों को जुटाने के लिए कृषकों को अधिक पूंजी कीे आवश्यक्ता होती है। जिसे जुटा पाना अधिकांश कृषकों के लिए सम्भव नहीं है क्योंकि भारत में सामान्य कृषक निर्धन हैं। भारत में सम्पन्न किसान ही यंत्रीकरण का लाभ उठा सकते हैं।
- तकनीकी ज्ञान का अभाव – यान्त्रिक साधनों के उपयोग के लिए आवश्यक तकनीकों ज्ञान का कृषकों में अभाव होने के कारण, उन्हें छोटी-छोटी कमियों को दूर कराने के लिए मििस़्त्रयों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे दूसरों पर निर्भरता बढ़ती है और कार्य समय पर पूरा नहीं हो पाता है। कृषि यंत्रों की कार्य प्रणाली अनपढ़ कृषकों को समझाना भी कठिन होता है।
- भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में वृद्धि – यान्त्रिक कृषि अपनाने से बड़े किसान, लघु कृषकों की भूमि क्रय कर लेते हैं जिससे इससे बड़े किसानों की जोतों का आकार बड़ा हो जाता है इसलिए भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही हैं।
- ईधन की समस्या – कृषि यंत्रों जैसे टै्रक्टर, ट्यूबवेल, थे्रशर आदि चलाने के लिए पैट्रोल, डीजल व बिजली की आवश्यक्ता होती है। इसकी आपूर्ति कम होने तथा कीमतें अधिक होने से सामान्य कृषक की क्रय शक्ति के बाहर हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकांश राज्यों में बिजली की आपूर्ति 24 घण्टे नहीं है, किसानों को कृषि यंत्रों के प्रयोग में बाधा आने लगती है और मशीनें बेकार पड़ी रहती है।
- गॉवों में वर्कशॉप का अभाव – ग्रामीण क्षेत्रों में यन्त्रों And उपकरणों की मरम्मत की सुविधा तथा स्पेयर पार्टस की उपलब्धता का अभाव पाया जाता है, ऐसी स्थिति में कृषि यंत्रो का प्रयोग करने में बाधा आने लगती है।
उपर्युक्त कठिनाइयों के कारण देश में यान्त्रिक कृषि के विकास की गति बहुत धीमी रही है।