एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत

मनोविज्ञान के क्षेत्र में अहं मनोवैज्ञानिक के Reseller में प्रसिद्ध है। इनके द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धान्त क्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त से भी काफी प्रभावित है तथापि इन्होंने अपने सिद्धान्त में कुछ ऐसे कारकों को भी महत्व दिया है, जिनकी Discussion क्रायड ने नहीं की है। जैसे कि एरिक्सन ने Humanीय व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक And ऐतिहासिक कारकों की भूमिका को भी स्वीकार Reseller है। इसलिये इनके सिद्धान्त को व्यक्तित्व के मनोसामाजिक सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है।

Human प्रकृति के संबंध में पूर्वकल्पनायें- 

प्राय: प्रत्येक मनोवैज्ञानिक ने Human स्वभाव के संबंध में अपनी कुछ धारणाओं, मान्यताओं का प्रतिपादन Reseller है। अत: Human प्रकृति के संबंध में एरिक्सन की भी कतिपय (कुछ) पूर्वकल्पनाये Meansात् मान्यतायें है। जिनसे हमें उनके व्यक्तित्व सिद्धान्त को समझने में काफी हद तक सहायता मिलती है। तो आइये, जाने कि एरिक्सन की Human स्वभाव के संबंध में क्या-क्या धारणायें है? इनका विवेचन है-

  1. एरिक्सन ने Humanीय प्रकृति में तीन तत्वों को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना हैं, जो है-  
    1. पूर्णतावाद 
    2. पर्यावरणीयता 
    3. परिवर्तनशीलता 
  2. एरिक्सन ने Human प्रवृति के कुछ अन्य पक्षों जैसे कि वस्तुनिष्ठता अग्रलक्षता  निर्धार्यता ज्ञेयता विषम स्थिति को अपने सिद्धान्त में अन्य पहलुओं की अपेक्षा कम महत्व प्रदान Reseller है। ने अपना ध्यान मूल Reseller् से इस बात पर केन्द्रित Reseller है कि अहं का विकास किस प्रकार से होता है तथा इसके कार्य क्या-क्या है? अहं के विकास And कार्यों से उपाहं (id) तथा पराहं (Super igo) के विकास कार्यों के संबंध न के बराबर है। वस्तुत: के सिद्धान्त की मूल मान्यता यह है कि Human Humanीय व्यक्तित्व कर्इ अवस्थाओं से गुजरकर विकसित होता है और ये अवस्थायें शाश्वत And First से निश्चित होती है। इतना ही नहीं विकास की ये अवस्थायें विशिष्ट नियम द्वारा संचालित And नियंत्रित होती है जिसे पश्चजात नियम (Epigenetic puincipte) कहते है। 

मनोसामाजिक अहं विकास की अवस्थाओं की विशेषतायें- 

एरिक्सन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘childhood and society, 1963’ में मनोसामाजिक अहं विकास की 8 अवस्थायें बतायी है। एरिक्सन के According विकास की प्रत्येक अवस्था होने का Single आदर्श समय है। प्रत्येक अवस्था क्रमश: Single के बाद Single आती है और व्यक्तित्व क्रमश: विकसित होता जाता है। के According व्यक्तित्व का यह विकास जैविक परिपक्वता तथा समाजिक And ऐतिहासिक बलों में अन्त: क्रिया के परिणामस्वReseller होता है। इन मनोसामाजिक विकास की अवस्थाओं की कतिपय महत्त्वपूर्ण विशेषतायें है, जिनका विवेचन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत Reseller जा सकता है- 

  1. मनोसामाजिक विकास की अवस्था की First महत्त्वपूर्ण विशेषता “संक्रान्ति” है। संक्रान्ति का Means है- प्राणी के जीवन का Single ऐसा टर्निंग पाइन्ट (Turning paint) जो उस स्थिति में व्यक्ति की जैविक परिपक्वता And सामाजिक माँग दोनों के बीच अन्त: क्रिया होने के कारण उत्पन्न होता है। 
  2. प्रत्येक मनोसामाजिक संक्रान्ति में सकारात्मक (धनात्म) तथा नकारात्मक (ऋणात्मक) तत्व दोनों ही विद्यमान होते है। प्रत्येक अवस्था में जैविक परिपक्वता And नयी-नयी सामाजिक माँगों के कारण द्वन्द्व होना स्वाभाविक ही है यदि व्यक्ति इस द्वन्द्व से बाहर निकल आता है तो उसका व्यक्तित्व स्वस्थ Reseller से विकसित होता जाता है और इसके विपरीत यदि वह इस समस्या का समाधान नही कर पाता है तो व्यक्तित्व का विकास अवरूद्ध हो जाता है तथा व्यक्तित्व संबंधी कर्इ विकार उत्पन्न हो जाते है। 
  3. व्यक्ति को प्रत्येक मनोसामाजिक विकास की अवस्था की संक्रान्ति का समाधान करना चाहिये क्योंकि ऐसा न होने पर अगली अवस्था में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सुनियोजित And उत्त्म तरीके से विकास नहीं हो पाता है। जब व्यक्ति संक्रान्ति का समाधान कर लेता है तो उसमें Single विशिष्ट मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है। इस शक्ति को ने सदाचार कहा है। 
  4. मनोसामाजिक विकास की प्रत्येक अवस्था में तीन आर होते है है जिन्हें तीन आर (Eripson three R’s) की संज्ञा दी गर्इ है। ये तीन आर (R) हैं- अ. कर्मकांडता (Ritualization) ब. कर्मकांड (Ritual) स. कर्मकांडवाद (Ritualism) 
    1. कर्मकांडता (Ritualization)- एरिक्सन के According कर्मकांडता का Means है- “ समाज के व्यक्तियों के साथ सांस्कृतिक Reseller से स्वीकार किये गये तरीके से व्यवहार या अन्त: क्रिया करना।” 
    2. कर्मकांड (Ritual) – कर्मकांड का Means है-” वयस्क लोगों के समूह द्वारा आवृत्ति स्वReseller की मुख्य घटनाओं को दिखाने के लिये किये गये कार्य।” 
    3. कर्मकांडवाद (Ritualism) – कर्मकांडता में जो विकार उत्पन्न होता है उसे एरिक्सन ने कर्मकांडवाद का नाम दिया है। इसमें प्राणी स्वयं अपने ऊपर ध्यान केन्द्रित करता है। 
  5. प्रत्येक मनोसामाजिक अवस्था का निर्माण उससे पूर्व की स्थिति में हुये विकासों से संबंध रखता है। इस प्रकार, आपने जाना कि मनोसामाजिक विकास की अवस्थाओं की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषतायें है, जिनको समझने के बाद हम एरिक्सन ने व्यक्तितव के विकास की जो अवस्थायें बतायी है, उनको आसानी से समझ सकते हैं।  

मनोसामाजिक विकास की अवस्थायें- 

जैसा कि आप जानते हैं कि प्रत्येक मनोवैज्ञानिक ने अपने-अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की विकास की कुछ अवस्थायें बतायी है, जो क्रमश: Single के बाद Single आती है और उनसे होकर Humanीय व्यक्तित्व क्रमश: विकसित होता जाता है। इसी क्रम में एरिक्सन ने भी मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थाये बतायी है, जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार से Humanीय व्यक्तित्व विकसित होता है। इन अवस्थाओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत Reseller गया है-

  1. शौशवावस्था: विश्वास बनाम अविश्वास (infancy: trust versus mistrust) 
  2. प्रारंभिक बाल्यावस्था: स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता (Early childhood: Autonomy versus shame) 
  3. खेल अवस्था: पहल शक्ति बनाम दोषिता (play age: initiative versus gailt) 
  4. स्कूल अवस्था: परिश्रम बनाम हीनता (school age: indurtriy versus injerioritg) 
  5. किशोरवस्था: अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्रान्ति (Adolescence: Ego identity versus role canfusion)  
  6. तरूण वयस्कावस्था: घनिष्ठ बनाम विलगन (Early adulthood: intimacy versus isolation)
  7. मध्यवयस्कावस्था: जननात्मक्ता बनाम स्थिरता (middle adulthood: Genetatility versus stagnation) 
  8. परिपक्वतारू अहं सम्पूर्णता बनाम निराशा (maturity: Ego integlity versus despair) 

1. शौशवावस्था: विश्वास बनाम अविश्वास- 

एरिक्सन के According मनोसामाजिक विकास की यह First अवस्था है, जो क्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्यक्तित्व विकास की First अवस्था मुख्यावस्था से बहुत समानता रखती है। एरिक्सन की मान्यता है कि शौशवावस्था की आयु जन्म से लेकर लगभग 1 साल तक ही होती है। इस उम्र में माँ के द्वारा जब बच्चे का पर्याप्त देखभाल की जाती है, उसे भरपूर प्यार दिया जाता है तो एरिक्सन के According बच्चे में First धनात्मक गुण विकसित होता है। यह गुण है- बच्चे का स्वयं तथा दूसरों में विश्वास तथा आस्था की भावना का विकसित होना। यह गुण आगे चलकर उस बच्चे के स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास में योगदान देता है, किन्तु इसके विपरीत यदि माँ द्वारा बच्चे का समुचित ढंग से पालन-पोषण नहीं होता है, माँ बच्चे की तुलना में Second कार्यों तथा व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है तो इससे उस बच्चे में अविश्वास, हीनता, डर , आशंका, र्इष्र्या इत्यादि ऋणात्मक अहं गुण विकसति हो जाते हैं, जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करते है। एरिक्सन का मत है कि जब शैशवास्था में बच्चा विश्वास बनाम अविश्वास के द्वन्द्व का समाधान ठीक-ठीक ढंग से कर लेता है तो इससे उसमें “आशा” नामक Single विशेष मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है। 

आशा का Means है-” Single ऐसी समझ या शक्ति जिसके कारण शिशु में अपने अस्तित्व And स्वयं के सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित होती है। 

2.प्रारंभि बाल्यावस्था: स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता-

यह मनोसामाजिक विकास की दूसरी अवस्था है, जो लगभग 2 साल से 3 साल की उम्र तक की होती है। यह क्रायड के मनोलैंगिक विकास की “गुदाअवस्था” से समानता रखती है। 

एरिक्सन का मत है कि जब शैशवावस्था में बच्चे में विश्वास की भावना विकसित हो जाती है तो इस दूसरी अवस्था में इसके परिणामस्वReseller् स्वतंत्रता And आत्मनियंत्रण जैसे शीलगुण विकसित होते है। स्वतंत्रता का Means यहाँ पर यह है कि माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुये स्वतंत्र Reseller से बच्चों को अपनी इच्छानुसार कार्य करने दें। जब बच्चे को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाता है तो उसमें लज्जाशीलता, व्यर्थता अपने ऊपर शक, आत्महीनता इत्यादि भाव उत्पन्न होने लगते हैं, जो स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है। 

एरिक्सन के According जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता के द्वन्द्व को सफलतापूर्वक दूर कर देता है तो उसमें Single विशिष्ट मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे उसने “इच्छाशक्ति (will power) नाम दिया है। 

एरिक्सन के According इच्छा शक्ति से आशय Single ऐसी शक्ति से है, जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के According स्वतंत्र होकर कार्य करता है तथा साथ ही उसमें आत्मनियंत्रण And आत्मसंयम का गुण भी विकसित होता जाता है। 

3. खेल अवस्था: पहलशक्ति बनाम दोषिता- 

मनोसामाजिक विकास की यह तीसरी अवस्था क्रायड के मनोलैंगिक विकास की लिंगप्रधानवस्था से मिलती है। यह स्थिति 4 से 6 साल तक की आयु की होती है। इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना, चलना, दोड़ना इत्यादि सीख जाते है। इसलिये उन्हें खेलने-कूदने नये कार्य करने, घर से बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नयी-नयी जिम्मेदारियों को निभाने में उनकी रूचि होती है। इस प्रकार के कार्य उन्हें खुशी प्रदान करते है। और उन्हें इस स्थिति में पहली बार इस बात का अहसास होता हघ्ै कि उनकी जिन्दगी का भी कोर्इ खास मकसद या लक्ष्य है, जिसे उन्हें प्राप्त करना ही चाहिये किन्तु इसके विपरीत जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्यों में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य की इच्छा व्यक्त किये जाने पर उसे दंडित Reseller जाता है तो इससे उसमें अपराध बोध की भावना का जन्म होने लगती है।  

इस प्रकार के बच्चों में लैंगिक नपुंसकता And निष्क्रियता की प्रवृति भी जन्म लेने लगती है। 

एरिक्सन के According जब बच्चा पहलशक्ति बनाम दोषिता के संघर्ष का सफलतापूर्वक हल खोज लेता है तो उसमें उद्देश्य नामक Single नयी मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है। इस शक्ति के बलबूते बच्चे में अपने जीवन का Single लक्ष्य निर्धारित करने की क्षमता तथा साथ ही उसे बिना की सी डर के प्राप्त करने की सामथ्र्य का भी विकास होता है। 

4. स्कूल अवस्था: परिश्रम बनाम हीनता- 

मनोसामाजिक विकास की यह चौथी अवस्था 6 साल की उम्र से आरंभ होकर लगभग 12 साल की आयु तक की होती है। यह क्रायड के मनोलैंगिक विकास की अव्यक्तावस्था से समानता रखती है। इस अवस्था में बच्चा पहली बार स्कूल के माध्यम से औपचारिक शिक्षा ग्रहण करता है। अपने आस-पास के लोगों, साथियों से किस प्रकार का व्यवहार करना, कैसे बातचीत करनी है इत्यादि व्यावहारिक कौशलों को वह सीखता है, जिससे उसमें परिश्रम की भावना विकसित होती है। यह परिश्रम की भावना स्कूल में शिक्षकों तथा पड़ौंसियों से प्रोत्साहित होती है, किन्तु यदि किसी कारणवश बच्चा स्वयं की क्षमता पर सन्देह करने लगता है तो इससे उसमें आत्महीनता कीभावना आ जाती है, जो उसके स्वस्थ व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है। किन्तु यदि बच्चा परिश्रम बनाम हीनता के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो उसमें सामथ्र्यता नामक मनोसामाजिक शिक्त् विकसित होती है। सामथ्र्यता का Means है- किसी कार्य का पूरा करने में शारीरिक And मानसिक क्षमताओं का समुचित उपयोग। 

5. किषोरावस्था: अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्रान्ति- 

एरिक्सन के According किशोरावस्था 12 वर्ष से लगभग 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में किशोरों में दो प्रकार के मनोसामाजिक पहलू विकसित होते है। First है- अहं पहचान नामक धनात्मक पहलू तथा द्वितीय है- भूमिका संभ्रन्ति या पहचान संक्रान्ति नामक ऋणात्मक पहलू। 

एरिक्सन का मत है कि जब किशोर अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्रान्ति से उत्पन्न होने वाली समस्या का समाधान कर लेता है तो उसमें कर्तव्यनिष्ठता नामक विशिष्ट मनोसामाजिक शक्ति (pyychosocial strength) का विकास होता है। यहाँ कर्तव्यनिष्ठता का आशय है- किशोरों में समाज में प्रचलित विचारधाराओं, मानकों And शिष्टाचारों के अनुReseller् व्यवहार करने की क्षमता। एरिक्सन के According किशोरों में कर्त्तव्यनिष्ठता की भावना का उदय होना उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करता है। 

6. तरूण वयास्कावस्था: घनिष्ठ बनाम विकृति- 

मनोसामाजिक विकास की इस छठी अवस्था में व्यक्ति विवाह का आरंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है। यह अवस्था 20 से 30 वर्ष तक की होती है। इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र Reseller से जीविकोपार्जन प्रारंभ कर देता है तथा समाज के सदस्यों, अपने माता-पिता, भार्इ-बहनों तथा अन्य संबंधियों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है। इसके साथ ही वह स्वयं के साथ भी Single घनिष्ठ संबंध स्थापित करता हैं, किन्तु इस अवस्था का Single दूसरा पक्ष यह भी है कि जब व्यक्ति अपने आप में ही खोये रहने के कारण अथवा अन्य किन्हीं कारणों से दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता है तो इसे बिलगन कहा जाता है। विलगन (isolation) की मात्रा अधिक हो जाने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकारी या गैर सामाजिक हो जाता है। 

घनिष्ठता बनाम बिलगन से उत्पन्न समस्या का सफलतापूर्वक समाधान होने पर व्यक्ति में स्नेह नामक विशेष मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है। एरिक्सन के मतानुसार स्नेह का आशय है- किसी संबंध को कायम रखने के लिये पारस्परिक समर्पित होने की भावना या क्षमता का होना। जब व्यक्ति दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व, उत्तम देखभाल या आदरभाव अभिव्यक्त करता है ते इस स्नेह की अभिव्यक्ति होती है। 

7. मध्य वयास्कावस्था जननात्मका बनाम स्थिरता- 

मनोसामाजिक विकास की यह Sevenवीं अवस्था है, जो 30 से 65 वर्ष की मानी गर्इ है। एरिक्सन का मत है कि इस स्थिति में प्राणी में जननात्मकता की भावना विकसित होती है, जिसका तात्पर्य है व्यक्ति द्वारा अपनी भावी पीढ़ी के कल्याण के बारे में सोचना और उस समाज को उन्नत बनाने का प्रयास करना जिसमें वे लोग (भावी पीढ़ी के लोग) रहेंगे। व्यक्ति में जननात्मक्ता का भाव उत्पन्न न होने पर स्थिरता उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है, जिसमें व्यिक्त् अपनी स्वयं की सुख-सुविधाओं And Needओं को ही सर्वाधिक प्राथमिका देता है। जब व्यक्ति जननात्मकता And स्थिरता से उत्पन्न संघर्ष का सफलतापूर्वक समाधान कर लेता है तो इससे व्यक्ति में देखभाल नामक Single विशेष मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है। देखभाल का गुणविकसित होने पर व्यक्ति दूसरों की सुख-सुविधाओं And कल्याण के बारे में सोचता है। 

8. परिपक्वता: अहं सम्पूर्णता बनाम निराशा- 

मनोसामाजिक विकास की यह अंतिम अवस्था है। यह अवस्था 65 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र तक की अवधि Meansात् मृत्यु तक की अवधि को अपने में शामिल करती है। सामान्यत: इस अवस्था को वृद्धावस्था माना जाता है, जिसमें व्यिक्त् को अपने स्वास्थ्य, समाज And परिवार के साथ समयोजन, अपनी उम्र के लोगों के साथ संबंध स्थापित करना इत्यादि अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था में व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान न देकर अपने अतीत की सफलताओं And असफलताओं का स्मरण And मूल्यांकन करता है। 

एरिक्सन के According इस स्थिति में किसी नयी मनोसामाजिक संक्रान्ति की उत्पत्ति नहीं होती है। एरिक्सन के मतानुसार परिपक्वता ही इस अवस्था की प्रमुख मनोसामाजिक शक्ति है। इस अवस्था में व्यक्ति वास्तविक Meansों में परिपक्व होता है, किन्तु कुछ व्यक्ति जो अपनी जिन्दगी में असफल रहते है। वे इस अवस्था में चिन्तित रहने के कारण निराशाग्रस्त रहते हैं तथा अपने जीवन को भारस्वReseller समझने लगते हैं। यदि यह निराशा और दुश्चिन्ता लगातार बनी रहती है तो वे मानसिक विषाद से ग्रस्त हो जाते है। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि एरिक्सन के According मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थायें हैख् जिनसे होते हुये क्रमश: Human का व्यक्तित्व विकसित होता है। 

एरिक्सन के सिद्धान्त का मूल्यांकन- 

जैसा कि आप जानते है कि प्रत्येक सिद्धान्त की अपनी महत्ता तथा कुछ सीमायें होती है। कोर्इ भी सिद्धान्त अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता है और इसी कारण आगे इन कमियों को दूर करने के लिये नये-नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता जाता है। अत: इरिक एरिक्सन के व्यक्तित्व के मनोसामाजिक सिद्धांत की कुछ कमियाँ And विशेषतायें है, जिनकी Discussion हम अब करेंगे। तो आइये सबसे First हम जानें की इस सिद्धान्त के प्रमुख गुण या विशेषतायें क्या-क्या है? 

गुण- 

  1. समाज And व्यक्ति की भूमिका पर बल- एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धान्त की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इन्होंने व्यक्तित्व के विकास And संगठन को स्वस्थ करने में सामाजिक कारकों And स्वयं व्यक्ति की भूमिका को समान Reseller से स्वीकार Reseller है। 
  2. किशोरवस्था को महत्त्वपूर्ण स्थान- एरिक्सन ने मनोसामाजिक विकास की जो आठ अवस्थायें बतायी है उनमें किशोरावस्था को अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। एरिक्सन के According किशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास की अत्यन्त संवंदनशीलत अवस्था होती है। इस दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण शारीरिक, मानसिक And भावनात्मक परिवर्तन होते हैं जबकि क्रायड ने अपने मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त में इस अवस्था को अपेक्षाकृत कम महत्व दिया था। 
  3. आशावादी दृष्टिकोण- एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धान्त की Single अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इनके सिद्धान्त में आशावादी दृष्टिकोण की झलक मिलती है। एरिक्सन का मानना है कि प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति की कुछ कमियाँ And सामथ्र्य होती है। अत: व्यक्ति यदि Single अवस्था में असफल हो गया तो इसका आशय यह नहीं है कि वह दूसरी अवस्था में भी असफल ही होगा, क्योंकि खामियों के साथ-साथ सामथ्र्य भी विद्यमान है, जो प्राणी को निरन्तर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है। 
  4. जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसामाजिक घटनाओं को शामिल करना- एरिक्सन ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व के विकास And समन्वय की व्याख्या करने में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसामाजिक घटनाओं को शामिल Reseller है, जो इसे अन्य सिद्धान्तों से अत्यधिक विशिष्ट बना देता है। 

दोष- 

आलोचकों ने एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धान्त की कुछ बिन्दुओं के आधार पर आलोचना की है, जिन्हें हम निम्न प्रकार से समझ सकते है- 

  1. आवश्यक्ता से अधिक आशावादी दृष्टिकोण- कुछ आलोचकों का कहना है कि एरिक्सन ने अपने सिद्धान्त में जरूरत से ज्यादा आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। 
  2. क्रायड के सिद्धान्त को मात्र सरल करना- कुछ आलोचक यह भी मानते है कि एरिक्सन कोर्इ नया सिद्धान्त नहीं दिया वरन् उन्होंने क्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त को मात्र सरल कर दिया है।
  3. प्रयोगात्मक समर्थन का अभाव- कुछ आलोचकों का यह भी मानना है कि एरिक्सन ने अपने व्यक्तित्व सिद्धान्त में जिन तथ्यों And सप्रत्ययों का प्रतिपादन Reseller है, उनका आधार प्रयोग नहीं है, मात्र उनके व्यक्तिगत निरीक्षण ही हैं। अत: उनमें व्यक्तिगत पक्षपात होने की अधिक संभावना है। इन तथ्यों में वैज्ञानिका And वस्तुनिष्ठता का अभाव है। 
  4. सामाजिक परिवेश से प्रभाविक हुये बिना भी व्यक्तित्व विकास संभव- कुछ आलोचकों का मानना है कि एरिक्सन की यह धारणा गलत है कि बदलते हुये सामाजिक परिवेश के साथ जब व्यक्ति समायोजन करता है, तब ही Single स्वस्थ व्यक्तित्व का विकास संभव है। आलोचकों के According कुछ ऐसे उदाहरण भी उपलब्ध है, जब व्यक्ति स्वयं सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित नहीं हुये और उन्होंने अपने विचारों से समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिये और उन्होंने अपने व्यिक्त्त्व का उत्तम And अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ तरीके से विकास Reseller। 
  5. अंतिम मनोसामजिक अवस्था की व्याख्या अधूरी And असन्तोष प्रद- शुल्ज का मानना है कि एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धान्त की अंतिम आठवीं अवस्था परिपक्वता :अहं सम्पूर्णता बनाम निराशा अधूरी And असन्तोषप्रद है। इस अवस्था में व्यक्तित्व में उतना संतोषजनक विकास नहीं होता है, जितना एरिक्सन ने बताया है।

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