आधुनिकीकरण की अवधारणा
इसमें युक्तिपूर्णता (rationality) निहित है। एलाटास (Alatas) के According आधुनिकीकरण Single ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सम्बद्ध समाज द्वारा स्वीकृत विस्तृत Meansों में अधिक अच्छे व सन्तोषजनक जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान को समाज में पहुँचाया जाता है। इस परिभाषा में ‘आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान’ में निम्न बातें सम्मिलित हैं: (i) प्रस्तावित व्याख्याओं (suggested explanations) की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए प्रयोगों की सहायता लेना (ii) उन नियमों की कल्पना करना जिनको तार्किक व प्रयोगात्मक (experimental) आधार पर समझाया जा सकता है। जो (व्याख्या) कि धार्मिक मत व दार्शनिक व्याख्या से भिन्न हो, (iii) तथ्यों की विश्वसनीयता को निश्चित करने के लिए निश्चित विधियों का प्रयोग, (iv) अवधारणाओं And चिन्हों का प्रयोग और (v) सत्य के लिए तथ्य की खोज करना।
र्इजेन्टाड (Eisenstadt) के According आधुनिकीकरण सामाजिक संगठन के संCreationत्मक पक्ष और समाजों के सामाजिक जनसंख्यात्मक, दोनों पक्षों की व्याख्या करता है। कार्ल ड्यूश (Karl Deutsh) ने आधुनिकीकरण के अधिकतर सामाजिक जनसंख्यात्मक पक्षों को स्पष्ट करने के लिए, ‘सामाजिक गतिमानता’ (social mobilization) Word का प्रयोग Reseller है। उन्होंने सामाजिक गतिशीलता की परिभाषा इस प्रकार की है: ‘‘ऐसी प्रक्रिया जिसमें पुरानी सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिबद्धताओं के समूह मिटा दिये जाते हैं व तोड़ दिए जाते हैं और लोग नवीन प्रकार के सामाजीकरण और व्यवहार प्रतिमानों के लिए तैयार रहते हैं।’’ रस्टोव और वार्ड (Rustow And Ward) की मान्यता है कि आधुनिकीकरण में मूल प्रक्रिया Humanीय मामलों में आधुनिक विज्ञान का प्रयोग है। पार्इ (Pye) के According आधुनिकीकरण व्यक्ति व समाज के अनुसन्धानात्मक व आविष्कारशील दृष्टिकोण का विकास है जो तकनीकी तथा मशीनों के प्रयोग में निहित होता है तथा जो नये प्रकार के सामाजिक संबंधों को प्रेरित करता है। टायनबी (Toynbee) जैसे विद्वानों का मानना है कि आधुनिकीकरण तथा पश्चिमीकरण में कोर्इ अन्तर नहीं है। वे लिखते हैं कि मान्य ‘आधुनिक’ Word कम-मान्य Word ‘पश्चिमी’ का प्रतिस्थापन्न है। विज्ञान और जनतंत्र के परिचय के लिए ‘पश्चिमी’ के स्थान पर ‘आधुनिक’ Word के प्रयोग का उद्देश्य बाह्य स्वReseller को बचाना मात्र है, क्योंकि यह तथ्य व्यक्तियों के लिए स्वीकार करने योग्य नहीं है कि उनकी अपनी पैतृक जीवन शैली उस वर्तमान स्थिति के अनुकूल नहीं है जिसमें वे अपने को पाते हैं लेकिन ऐसे विचारों को पूर्ण Resellerेण अनुचित And पक्षपातपूर्ण बताया गया है।
‘आधुनिकीकरण’ को ‘औद्योगीकरण’ से भी संभ्रमित (confused) नहीं मानना है। औद्योगीकरण का सन्दर्भ उन परिवर्तनों से है जो कि उत्पादन की विधियों, शक्ति चालित (power driven) मशीनों के प्रवेश के फलस्वReseller आर्थिक व सामाजिक संगठनों, तथा परिणामस्वReseller फैक्ट्री व्यवस्था के उदय से है। थियोडरसन (Theodorson) के According औद्योगीकरण के निम्न लक्षण हैं: (i) कारीगर या शिल्पी के घर या दुकान में हस्त उत्पादन के स्थान पर फैक्ट्री केन्द्रित मशीनी उत्पादों की प्रतिस्थापना, (ii) प्रमाणिकीकृत वस्तुओं (standardized goods) का बदले जाने वाले भागों (interchangeable parts) से उत्पादन (iii) फैक्ट्री मजदूरों के Single वर्ग का उदय जो मजदूरी के लिए कार्य करते हैं और जो न तो उत्पादन किए गए माल और न ही उत्पादन के साधनों के मालिक होते हैं (iv) गैर-कृषि धन्धों में लगे लोगों के अनुपात में वृद्धि और (v) असंख्य बड़े नगरों का विकास। औद्योगीकरण लोगों को वे भौतिक वस्तुएं उपलब्ध कराता है जो First कभी उपलब्ध नहीं थीं। आधुनिकीकरण, दूसरी ओर, Single लम्बी प्रक्रिया है जिससे मस्तिष्क का वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा होता होता है।
जेम्स ओ कोनेल (James O’ Connell) ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के विश्लेषण में इसको तीन पहलुओं में विभाजित Reseller है: (i) आविष्कारात्मक (inventive) दृष्टिकोण, Meansात् वैज्ञानिक भावना जिससे निरन्तर व्यवस्थित तथा आविष्कारात्मक ज्ञान प्राप्त होता हो, जो कि घटना के कारण और परिणाम से संबंधित हो, (ii) नए तरीकों और उपकरणों का आविष्कार, Meansात् उन विभिन्न विधियों की खोज जो अनुसन्धान को आसान बनाये, और उन नर्इ मशीनों का आविष्कार जो जीवन के नये प्रतिमान को आवश्यक बनाते हों। आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रस्तुत व्याख्या धार्मिक संस्कारों को अनावश्यक बनाती है, और (iii) सामाजिक संCreationओं का लचीलापन और पहचान की निरन्तरता Meansात्, व्यक्तिगत और सामाजिक संCreationत्मक दोनों स्तरों पर निरन्तर परिवर्तन को स्वीकारने की इच्छा और साथ ही व्यक्तिगत तथा सामाजिक पहचान Windows Hosting रखने की योग्यता। उदाहरणार्थ, बहुपत्नी परम्परागत समाज में वैवाहिक रीति-रिवाज बुजुर्गों के चारों ओर केन्द्रित थे, किन्तु मजदूरी प्रथा के प्रचलन और श्रमिकों की गतिशीलता से युवा पीढ़ी की आर्थिक उपलब्धियों ने पत्नियों के लिए प्रतिस्पर्द्धा को बाध्य कर दिया। जेम्स ओ कोनेल के According परम्परागत समाज से आधुनिक समाज में जो परिवर्तन होते हैं, वे इस प्रकार हैं:
- आर्थिक विकास में वृद्धि होती है और वह आत्मनिर्भर हो जाता है।
- धन्धे अधिक विशिष्ट और कुशल (skilled) हो जाते हैं।
- प्रारम्भिक धन्धों में लगे लोगों की संख्या कम होती जाती है, जबकि द्वैतीयक तथा तृतीयक धन्धों में लगे लोगों की संख्या बढ़ती जाती है।
- पुराने कृषि यन्त्रों तथा विधियों के स्थान पर ट्रेक्टरों और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ता है।
- वस्तु विनिमय (barter system) की स्थान मुद्रा व्यवस्था ले लेती है।
- उन समुदायों के बीच जो First Single Second से अलग होते थे और स्वतंत्र होते थे, अन्त:निर्भरता (inter-dependence) आ जाती है।
- नगरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
- प्रदत्त प्रस्थिति अर्जित प्रस्थिति को स्थान देती है।
- समानता धीरे-धीरे संस्तरण का स्थान लेती है।
- स्वास्थ्य सुधार तथा अच्छी मेडिकल देखभाल के कारण जीवन की अवधि लम्बी होती जाती है।
- यातायात तथा संचार की नवीन विधियों द्वारा भौगोलिक दूरियाँ कम होती जाती हैं।
- वंशानुगत नेतृत्व का स्थान चुनाव द्वारा नेतृत्व ले लेता है।
इस संबंध में ‘परम्परा’, ‘परम्परावाद’ तथा ‘परम्परागत समाज’ Wordों को समझना आवश्यक है। ‘परम्परा’ Word का Means अतीत में चले आ रहे विश्वासों And प्रथाओं से है। ‘परम्परावाद’ मानसिक दृष्टिकोण (psychic attitude) है जो प्राचीन विश्वासों और प्रथाओं को अपरिवर्तनीय मानकर उसको शोभायुक्त व गौरवान्वित करता है। यह परिवर्तन और विकास के विपरीत है।
परम्परागत समाज गतिहीन होता है। उच्च गतिशीलता वाले समाज में जिसे मुक्त समाज भी कहा जाता है, व्यक्ति मार्ग में आने वाले अवसरों तथा अपनी योग्यता व संभावनाओं का लाभ उठाते हुए अपनी प्रस्थिति में परिवर्तन कर सकता है। दूसरी ओर, बन्द या गतिहीन समाज में व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक Single ही प्रस्थिति में रहता है। आधुनिकता से हमारा तात्पर्य मुक्त समाज की Creation से या नर्इ संस्थाओं की Creation की सीमा से, और उस परिवर्तन को स्वीकारने से है जो संस्थाओं, विचारों तथा समाज की सामाजिक संCreation से सम्बद्ध है। शिल्स (Shils) की मान्यता है कि परम्परागत समाज किसी भी Means में पूर्णत: परम्परागत नहीं होता और आधुनिक समाज किसी भी प्रकार परम्पराओं से मुक्त नहीं होता।
आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण
कार्ल ड्यूश ने आधुनिकता के Single पक्ष (Meansात् सामाजिक जनसंख्यात्मक या जिसे वह सामाजिक गतिशीलता भी कहते हैं) का संदर्भ देते हुए इंगित Reseller है कि इसके कुछ सूचक (indices) इस प्रकार हैं: यंत्रों के माध्यम से आधुनिक जीवन के प्रति अनावृत्ति (exposure), शहरीकरण, कृषि धन्धों में परिवर्तन, साक्षरता तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि। इजेन्टाड के According सामाजिक संगठन (या आधुनिकीकरण) के संCreationत्मक पक्षों के मुख्य सूचक (indices) हैं: विशिष्ट भूमिकाएं (specialized roles) उन्मुक्त विचरण वाली (free floating) होती हैं (Meansात् उनमें प्रवेश व्यक्ति के प्रदत्त लक्षणों से निर्धारित नहीं होता है), तथा धन व शक्ति जन्म के आधार पर निश्चित नहीं होते (जैसा कि परम्परागत समाजों में होता है)। यह मार्केट जैसी संस्थाओं से, (आर्थिक जीवन में), मतदान से, और राजनीतिक जीवन में पार्टी कार्यों से सम्बद्ध होते हैं।
मूर (Moore) ने बताया है कि आधुनिक समाज के विशेष आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक लक्षण होते हैं। आर्थिक क्षेत्र में आधुनिक समाज के लक्षण निम्न हैं: (i) अत्यन्त उच्च स्तरीय तकनीकी का विकास जो ज्ञान के व्यवस्थित खोज से होता है, जिसका अनुसरण प्राथमिक व्यवसाय (कृषि में) कम और द्वैतीयक (उद्योग, व्यापार) और तृतीयक (नौकरी) व्यवसायों में अधिक होता है; (ii) आर्थिक विशिष्टताओं की भूमिकाओं का विकास, (iii) प्रमुख बाजारों, जैसे वस्तुओं का बाजार, श्रम बाजार, तथा मुद्रा बाजार के क्षेत्र व जटिलता का विकास। राजनैतिक क्षेत्र में आधुनिक समाज कुछ Meansों में प्रजातांत्रिक या कम से कम जनवादी (populistic) है। इसके लक्षण हैं: (i) Kingों के अपने समाज से बाहर शक्ति के सन्दर्भ में पारम्परिक वैधता में गिरावट, (ii) Kingों की उन शासितों के प्रति Single प्रकार के वैचारिक उत्तरदायित्व (ideological accountability) की स्थापना जो राजनैतिक सत्ता के वास्तविक धारणहारी होते हैं, (iii) समाज की राजनैतिक, प्रशासनिक, वैधानिक And केन्द्रीय शक्ति की सीमाओं का विकासशील विस्तार, (iv) समाज में अधिक से अधिक समूहों में संभावित शक्ति का निरन्तर फैलाव और अन्तत: All प्रौढ़ नागरिकों में तथा नैतिक व्यवस्था में फैलाव और (v) किसी भी King व्यक्ति या King समूह के प्रति प्रदत्त राजनैतिक प्रतिबद्धता में कमी होना।
सांस्कृतिक क्षेत्र में आधुनिक समाज के लक्षण हैं: (i) प्रमुख सांस्कृतिक और मूल्य व्यवस्थाओं के प्रमुख तत्वों जैसे, धर्म दर्शन और विज्ञान में बढ़ता हुआ अन्तर, (ii) धर्म निरपेक्ष शिक्षा और साक्षरता का विस्तार, (iii) बौद्धिक विषयों पर आधारित विशिष्ट भूमिकाओं के विकास के लिए जटिल संस्थात्मक व्यवस्था, (iv) संचार साधनों का विकास, (v) नवीन सांस्कृतिक दृष्टिकोण का विकास जिसमें प्रगति व सुधार पर बल, योग्यताओं की अभिव्यक्ति और प्रसन्नता पर बल, व्यक्तिवाद का नैतिक मूल्यों के Reseller में मानने पर बल तथा व्यक्ति की कुशलता और सम्मान पर बल दिया जाता है। विस्तृत Reseller में आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
- वैज्ञानिक भावोन्माद (temper)
- कारण (reason) और तर्कवाद
- धर्मनिरपेक्षता
- उच्च आकांक्षाएं तथा उपलब्धि परकता (achievement orientation)
- मूल्यों, मानदण्डों और अभिरूचियों में सम्पूर्ण परिवर्तन
- नवीन प्रकार्यात्मक संस्थाओं की Creation
- Human संसाधनों में निवेश (investment)
- विकास परक Means व्यवस्था
- नातेदारी, जाति, धर्म या भाषा परक हितों की अपेक्षा राष्ट्रीय हित
- मुक्त (open) समाज
- गतिशील व्यक्तित्व
आधुनिकीकरण के परिमाप
आधुनिकीकरण के परिमापों के विषय में व्याख्या करते हुए रस्टोव और वार्ड ;Rustov and Ward) ने इनमें परिवर्तन के इन विशेष पक्षों को सम्मिलित Reseller है: (i) Meansव्यवस्था का औद्योगीकरण तथा उद्योग, कृषि, दुग्ध उद्योग (dairy farming), आदि में वैज्ञानिक तकनीकी धारण करके उन्हें अधिकाधिक उत्पादक बनाना; (ii) विचारों का धर्म निरपेक्षीकरण; ;पपपद्ध भौगोलिक And सामाजिक गतिशीलता में Historyनीय वृद्धि; (iv) तकनीकी तथा वैज्ञानिक शिक्षा का प्रसार; (v) प्रदत्त प्रस्थिति से अर्जित प्रस्थिति में परिवर्तन; (vi) भौतिक जीवन स्तर में वृद्धि; (vii) Means व्यवस्था में निर्जीव शक्ति (inanimate energy) का जैविक (animate) शक्ति से अधिक उपयोग; (viii) प्राथमिक उत्पादन क्षेत्र की अपेक्षा द्वैतीयक तथा तृतीय उत्पादन क्षेत्रों में अधिक श्रमिकों का कार्य करना (Meansात, कृषि व मत्स्य कार्यों की अपेक्षा निर्माण और नौकरी आदि व्यवसायों में अधिक श्रमिक); (ix) तीव्र शहरीकरण; (x) उच्च स्तरीय साक्षरता; (xi) प्रति व्यक्ति उच्च राष्ट्रीय उत्पादन; (xii) जनसंचार का नि:शुल्क विस्तार; (viii) जन्म के समय उच्च जीवन अपेक्षा (expectancy)।
आधुनिकीकरण की कुछ पूर्व Needएं
परम्परावाद से आधुनिकीकरण में परिवर्तन होने से पूर्व समाज में आधुनिकीकरण की कुछ पूर्व Needएं मौजूद होनी चाहिए। ये हैं: (i) उद्देश्य की जानकारी तथा भविष्य पर दृष्टि, (ii) अपनी दुनिया से परे भी अन्य समाजों के प्रति जागरूकता (iii) अति Need का भाव, (iv) विविध भूमिकाओं And अवसरों की उपलब्धता, (v) स्वयं लादे गए कार्यों And बलिदानों के लिए भावनात्मक तत्परता, (vi) प्रतिबद्ध, गतिशील And निष्ठावान नेतृत्व का उदय।
आधुनिकीकरण बड़ा जटिल है क्योंकि इसमें न केवल अपेक्षाकृत नए स्थार्इ ढाँचे की Need होती है, बल्कि ऐसे ढाँचे की भी जो स्वयं को निरन्तर बदलती दशाओं And समस्याओं के अनुकूल बना ले। इसकी सफलता समाज की आन्तरिक परिवर्तन की सामथ्र्य पर निर्भर करती है।
इजेन्टाड की मान्यता है कि आधुनिकीकरण के लिए Single समाज के तीन संCreationत्मक लक्षण होने चाहिए: (i) (उच्च स्तरीय) संCreationत्मक अन्तर, (ii) (उच्च कोटि की) सामाजिक गतिशीलता, और (iii) अपेक्षाकृत केन्द्रीय तथा स्वायत्तता धारी संस्थात्मक संCreation।
आधुनिकीकरण के प्रति प्रतिक्रिया
All समाज आधुनिकीकरण की Single सी प्रक्रिया स्वीकार नहीं करते हैं। हर्बर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) के विचार को मानते हुए पांच तरीके बताये जा सकते हैं जिनमें Single परम्परागत समाज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है। ये हैं:
- अस्वीकार्य अनुक्रिया (Rejective Response): Single परम्परागत समाज आधुनिकीकरण को अस्वीकार कर सकता है। यह अनेक प्रकार के विविध स्तरों पर हो सकता है। शक्तिशाली समूह, भूसामन्तशाही, सरकारी स्वल्पतन्त्र (oligarchy), मजदूर संघ तथा धर्मान्ध लोग अपने हितों की रक्षा के लिए आधुनिकीकरण को हतोत्साहित कर सकते हैं। सामाजिक पूर्वाग्रह (prejudices), परम्परागत जीवन के कुछ स्वResellerों, विश्वासों व प्रथाओं में दृढ़ आस्था तथा विशेष रूचि कुछ लोगों को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अस्वीकार करने और परम्परात्मक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बाध्य कर सकते हैं।
- विकल्पयुक्त अनुक्रिया (Disjunctive Response): प्राचीन और नवीन के बीच सन्धि (conjunction) अनुक्रिया अथवा आधुनिकीकरण तथा परम्परात्मकता के बीच सह-अस्तित्व (co-existence) तब होता है जब आधुनिकीकरण की प्रक्रिया परम्परागत जीवन को प्रभावित किये बिना ही निस्पृह (detached) विकास के Reseller में चलती रहती है। इस प्रकार आधुनिकीकरण तथा परम्परात्मक व्यवस्था में कोर्इ संघर्ष नहीं होता क्योंकि प्राचीन व्यवस्था को कोर्इ खतरा नहीं होता। आधुनिकीकरण के लक्षण परम्परात्मक जीवन के साथ-साथ रहते है।
- आत्मSevenी अनुक्रिया (Assimilative Response): इस अनुक्रिया में परम्परागत व्यवस्था द्वारा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का आत्मSevenीकरण निहित है जो कि जीवन के स्वReseller और संगठनात्मक पक्ष पर कोर्इ प्रभाव नहीं डालता। इसका उदाहरण बैंकिग व्यवस्था में बैंक कर्मचारियों द्वारा कम्प्यूटर विचारधारा को स्वीकार करना है, अथवा गाँवों में किसानों द्वारा कृत्रिम उर्वरकों और टे्रक्टरों का प्रयोग करना है। दोनों ही उदाहरणों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया परम्परात्मक व्यवस्था या उसके मूलभूत ढाँचे को प्रभावित किए बिना आती है।
- समर्थ अनुक्रिया (Supportive Response) इसके अन्तर्गत नवीन व आधुनिक बातें स्वीकार की जाती हैं क्योंकि उनसे परम्परात्मक व्यवस्था को बल मिलता है। उदाहरणार्थ, पुलिस या सेना में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पुलिस की कार्य क्षमता तथा सेना की शक्ति में वृद्धि करती है। विविध परम्परात्मक समूह और संस्थाएं परम्परागत हितों को जारी रखने के लिए आधुनिकीकरण द्वारा प्रदत्त अवसरों का प्रयोग करते हैं तथा परम्परागत स्थिति को दृढ़ता से बनाए रखते हैं। आधुनिकीकरण परम्परात्मक हितों को आगे बढ़ाए रखने के लिए संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध करा सकता है
- विघटनकारी अनुक्रिया (Disruptive Response): इस अनुक्रिया में परम्परागत व्यवस्था को कर्इ बिन्दुओं पर समायोजन द्वारा खोखला बनाया जाता है जो कि आधुनिकीकरण द्वारा उत्पन्न स्थितियों के कारण Reseller जाता है।
साधारणतया ये पांचों अनुक्रियाएँ विविध संयोजनों (combinations) द्वारा परम्परागत व्यवस्था के विविध बिन्दुओं पर होती रहती है। अनुक्रियाएं वरीयताओं (preferences), रुचियों (interests), तथा मूल्यों (values) से प्रभावित होती रहती हैं।
आधुनिकीकरण के प्रमुख साधन
माइरन वीनर (Myron Weiner) के According आधुनिकीकरण को सम्भव बनाने वाले प्रमुख साधन (instruments) इस प्रकार हैं:
- शिक्षा (Education): शिक्षा राष्ट्रीयता का भाव जागृत करती है तथा तकनीकी नवीनताओं के लिए आवश्यक दक्षता और अभिरुचियाँ पैदा करती हैं। एडवर्ड शिल्स ने भी आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में शिक्षा की भूमिका पर बल दिया है। परन्तु आर्नोल्ड एण्डरसन (Arnold Anderson) की मान्यता है कि औपचारिक (formal) शिक्षा ही केवल अध्यापन कुशलता के लिए पर्याप्त नहीं है। कभी कभी विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा व्यर्थ हो सकती है, क्योंकि यह डिग्रीधारियों की संख्या में तो वृद्धि कर देती है, किन्तु आधुनिक दक्षता तथा अभिरुचियों से पूर्ण लोगों की संख्या में वृद्धि नहीं करती।
- संचार (Communication): जनसंचार के साधनों का विकास (टेलीफोन, टी0वी0, रेडियों तथा फिल्म आदि) आधुनिक विचारों को प्रसारित करने का Single महत्वपूर्ण साधन है। केवल खतरा यह है कि यदि इन पर सरकारी नियंत्रण हो तो यह Single ही प्रकार की विचारधारा को प्रसारित करेंगे। प्रजातंत्र में प्रेस अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र होता है।
- राष्ट्रवाद पर आधारित विचारधारा (Ideology Based on Nationalism): बहुल (plural) समाजों में राष्ट्रवादी विचारधाराएं सामाजिक दरारों (social cleavages) के Singleीकरण के लिए अच्छा साधन होती हैं। वे लोगों के व्यवहार परिवर्तन हेतु राजनैतिक अभिजन की भी सहायता करती हैं। परन्तु बाइन्डर (Binder) की मान्यता है कि अभिजनों की विचारधारा आधुनिक हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि इससे विकास को भी सुविधा प्राप्त हो।
- करिश्मार्इ (चमत्कारी) नेता (Charismatic Leadership): Single करिश्मार्इ (चमत्कारी) नेता लोगों को आधुनिक विचार, विश्वास, रीति-रिवाज तथा व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करने में अच्छी स्थिति में होता है क्योंकि लोग उसे श्रद्धा व निष्ठा से देखते हैं। भय यही रहता है कि ऐसा नेता कहीं राष्ट्रीय विकास के स्थान पर व्यक्तिगत यश के लिए आधुनिक मूल्यों And अभिरूचियों का प्रयोग न करने लगे।
- अवपीड़क सरकारी सत्ता (Coercive Government Authority): यदि सरकारी सत्ता कमजोर है तो यह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनी नीतियों के क्रियान्वयन (implementation) में सफलता प्राप्त नहीं कर पाती है, किन्तु यदि सरकार मजबूत है तो यह लोगों को विकास के उद्देश्य से व्यवहार And अभिरूचियों को अपनाने के लिए बाध्य कर सकती है और इसके लिए अवपीड़न (coercion) का सहारा भी ले सकती है। परन्तु माइरन वीनर का मत है कि Single तानाशाही शासन की ढाल के नीचे राष्ट्रीयता देश को विकास की ओर ले जाने के स्थान पर देश के बाहर आत्महत्या का विस्तार स्वReseller (suicidal expansion) सिद्ध हो सकती है। इस सन्दर्भ में बुश प्रशासन (अमेरिका में) के राजनैतिक अभिजनों की नीतियों का उद्धरण देना गलत नहीं होगा जो कि उन्होंने र्इराक आदि के लिए बनार्इ थीं। रूस की श्रेष्ठता समाप्त हो जाने के बाद अमेरिका की सरकारी सत्ता ने अविकसित And विकासशील देशों को आधुनिकीकरण के नाम पर पीड़ित करने की नीति अपनानी प्रारम्भ कर दी। माइरन वीनर ने समाज के आधुनिकीकरण के लिए मूल्यों, अवसरों And अभिरूचियों में परिवर्तन की बात भी कही है। अनेक Meansशास्त्रियों ने भी इस विचार का समर्थन Reseller है। उन्होंने उत्पादन की प्रक्रिया में उन संस्थात्मक रूकावटों की ओर संकेत Reseller है जो विनियोजन (investment) की दर में कमी करती हैं। इस प्रकार की संस्थात्मक रूकावटों के उदाहरण हैं: भूस्वामित्व (landtenure) व्यवस्था जो कि किसानों को बढ़ते हुए उत्पादन के लाभ से वंचित करती है, ऐसे कर जो देश के Single भाग से Second भाग में वस्तुओं की आने जाने की गति कम करते हैं तथा नौकरशाही नियम।
भारत में पश्चिम का और आधुनिकीकरण का प्रभाव
अलाटास के According भारत पर पश्चिमी प्रभाव का पाँच चरणों में विवेचन Reseller जा सकता है। First चरण सिकन्दर की विजय के साथ प्रतिरोधी सम्पर्क है जो कि बाद की शताब्दियों से वाणिज्य व व्यापार से शक्तिपूर्ण आदान प्रदान के Reseller में सदियों तक चलता रहा। दूसरा चरण पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से प्रारम्भ हुआ जब वास्कोडिगामा कालीकट में अपने जहाजों के साथ 1498 र्इ0पू0 में आया। कुछ ही वर्षों में पुर्तगालियों ने गोआ पर अधिकार कर लिया। लेकिन इन पश्चिमी लोगों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहा। तृतीय चरण प्रारम्भ हुआ जब र्इस्ट इण्डिया कम्पनी ने अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अपना शासन प्रारम्भ Reseller और बाद में अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य भारत में स्थापित हो गया। भारत में पश्चिमी संस्कृति के विस्तार का यह First कदम था। चतुर्थ चरण प्रारम्भ हुआ उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तथा औद्योगिक क्रान्ति के आगमन से। अंग्रेजों द्वारा कच्चे माल के Reseller में आर्थिक शोषण से प्रारम्भ हुआ और तभी से सांस्कृतिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में भी पश्चिमी संस्कृति का वर्चस्व प्रारम्भ हुआ। पांचवाँ और अंतिम चरण प्रारम्भ हुआ 1947 में भारत की राजनैतिक स्वतंत्रता के साथ। हमारी सामाजिक व्यवस्था तथा हमारी संस्कृति पर प्रभाव के Means में पश्चिमी संस्कृति की क्या छाप पड़ी है? इसको संक्षेप में इस प्रकार बताया जा सकता है:
- बैंक व्यवस्था, लोक प्रशासन, सैन्य संगठन, आधुनिक औषधियाँ, कानून आदि जैसी पश्चिमी संस्थाओं को देश में प्रारम्भ Reseller गया।
- पश्चिमी शिक्षा ने उन लोगों के दृष्टिकोण को विस्तृत Reseller जिन्होंने आजादी व अधिकारों की बात शुरू की। नवीन मूल्यों, धर्म निरपेक्ष व न्याय संगत भावना तथा व्यक्तिवाद, समानता व न्याय के विचारों के समावेश ने बड़े महत्व का स्थान ले लिया।
- वैज्ञानिक नवीनताओं की स्वीकृति ने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की आकांक्षाओं को ऊंचा उठाया और लोगों के लिए भौतिक कल्याण उपलब्ध कराया।
- कर्इ सुधार आन्दोलन हुए। अनेक परम्परागत विश्वास तथा व्यर्थ की प्रथाएं त्याग दी गर्इ, तथा अनेक नए व्यवहार स्वReseller अपनाए गए।
- हमारी तकनीकी, कृषि, व्यवसाय और उद्योग आधुनिक किए गए जिससे देश का आर्थिक विकास And कल्याण हुआ।
- राजनैतिक मूल्यों के संस्तरण की पुनर्Creation की गर्इ। प्रजातंत्र स्वीकार करने के बाद All रियासतें Indian Customer राज्य में सम्मिलित कर ली गर्इ तथा सामन्तों और जमींदारों के अधिकार और शक्ति समाप्त हो गर्इ।
- विवाह, परिवार और जाति जैसी संस्थाओं में संCreationत्मक परिवर्तन आए और सामाजिक तथा धार्मिक जीवन में नए संबंध बनने लगे।
- रेलवे, बस यात्रा, डाक सेवा, हवार्इ And समुद्री यात्रा, प्रेस, रेडियों और दूरदर्शन आदि संचार माध्यमों के आने से Human जीवन के अनेक क्षेत्रों में प्रभाव पड़ा है।
- राष्ट्रीय भावना में वृद्धि हुर्इ है।
- मध्यम वर्ग के उदय ने समाज के प्रमुख मूल्यों में परिवर्तन कर दिया है।
अलाटास (Alatas) ने पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को हमारी संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था में चार प्रकार के परिवर्तनों के आधार पर समझाया है: निरस्नात्मक (eliminative) परिवर्तन, योगात्मक (addictive) परिवर्तन, समर्थन (supportive) परिवर्तन, तथा संश्लेषात्मक (synthetic) परिवर्तन। निरस्नात्मक परिवर्तन वे हैं जिनसे सांस्कृतिक विशेषताएँ, व्यवहार के स्वReseller, मूल्य, विश्वास और संस्थाएं लुप्त हो जाती हैं। उदाहरणार्थ, Fight में प्रयोग आने वाले शस्त्रों में पूर्ण परिवर्तन, सती प्रथा का उन्मूलन आदि। योगात्मक परिवर्तनों में जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित नयी सांस्कृतिक विशेषताओं, संस्थाओं, व्यवहार स्वResellerों तथा विश्वासों को अपनाना सम्मिलित है। हिन्दू समाज में विवाह-विच्छेद की व्यवस्था, पिता की सम्पत्ति में पुत्री को भाग देना, पंचायतों में चुनाव प्रथा आदि इस प्रकार के परिवर्तन के कुछ उदाहरण हैं। समर्थक परिवर्तन वे हैं जो पश्चिमी सम्पर्क में आने से पूर्व समाज में विद्यमान विश्वास, मूल्यों या व्यवहार स्वResellerों को अधिक मजबूत करते हैं। इसका Only उदाहरण है कर्ज व्यवहार में हुण्डी का प्रयोग। संश्लेषात्मक परिवर्तन वे हैं जो वर्तमान में विद्यमान तत्वों से नए स्वResellerों की Creation करते हैं और साथ ही नए स्वResellerों को भी अपनाते हैं। इसका उदाहरण उस परिवार की Creation है जो आवास की दृष्टि से तो Singleाकी है परन्तु कार्य (function) की दृष्टि से अब भी सुयंक्त हैं। जो माता-पिता तथा सहोदरों के प्रति सामाजिक दायित्वों को पूरा करता है। दहेज प्रथा की निरन्तरता बनाए रखना, किन्तु दहेज की धन राशि लेने देने पर प्रतिबन्ध लगाया जाना। बच्चों का माता-पिता के साथ जीवन साथी के चयन में सहयोग आदि।
पश्चिमी प्रभाव के कारण परिवर्तन का उपरोक्त विभाजन केवल विश्लेषण के उद्देश्य से है, लेकिन Single Second से उनको अलग करना सम्भव नहीं है। Single ही प्रकार के परिवर्तन के भीतर हम Second प्रकार के परिवर्तनों के तत्व भी देख सकते हैं। उदाहरणार्थ, वस्त्र उद्योग के प्रारम्भ करने में समर्थक तत्व देखे जा सकते हैं क्योंकि यह कपड़े के उत्पादन को सुविधा प्रदान करता है। परन्तु साथ ही क्योंकि इससे हाथकरघा (handloom) उद्योग को आघात लगा है, तो यह कहा जा सकता है कि इसमें हटाने योग्य अथवा निरस्नात्मक परिवर्तन के तत्व भी काम करते हैं। खुले कारागृहों (wall-less prisons) का आरम्भ भी Single और उदाहरण है जिसमें तीन विविध प्रकार के परिवर्तन कार्य करते हैं। इसी प्रकार, शिक्षा व्यवस्था, बैकिंग-व्यवस्था, विवाह व्यवस्था आदि में परिवर्तन मिलते हैं।
अब प्रमुख प्रश्न है कि: पश्चिम के सम्पर्क के बाद भारत कहाँ पहुंच गया है? क्या भारत ने प्रगति की है? क्या इसने लोक कल्याण में योगदान Reseller है? कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत को द्वितीय महाFight के बाद अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा, जैसे आर्थिक पिछड़ापन, बड़ी संख्या में लोगों का गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करना, बेरोजगारी, जीवन के All क्षेत्रों में धर्म का प्रभुत्व, ग्रामीण ऋण, जातीय संघर्ष, साम्प्रदायिक दुर्भावना, पूँजी की कमी, तकनीकी दक्षता वाले दक्ष कार्मिकों की कमी, आदि। इन समस्याओं का समाधान भी पश्चिमी प्रभाव ने दिया है। लेकिन अन्य विद्वानों की मान्यता है कि पश्चिमी प्रभाव ने भारत को इन समस्याओं के समाधान में कोर्इ सहायता नहीं की। यदि कुछ समस्याओं का समाधान हुआ है तो कर्इ दूसरी समस्याएं खड़ी हुर्इ हैं और भारत उन्हें पश्चिम के नमूने पर सुलझाने का प्रयत्न नहीं कर रहा है। भारत स्वदेशी ढंग से उन्हें सुलझाने का प्रयास कर रहा है। देश की स्वतंत्रता के बाद ही औद्योगिक विकास में वृद्धि, शिक्षा का विस्तार, ग्रामीण विकास, जनसंख्या पर नियंत्रण आदि पाया गया है। इस प्रकार पश्चिमी शासन की मुक्ति से और न कि पश्चिमी सम्पर्क से भारत में आधुनिकीकरण सम्भव हुआ है।
वास्तविकता यह है कि जीवन के कुछ क्षेत्रों में पश्चिमी प्रभाव को स्वीकार करके हम सही हो सकते हैं। आधुनिक मेडिकल साइंस, आधुनिक तकनीकी, प्राकृतिक प्रकोपों का सामना करने के आधुनिक उपाय, देश को बाहरी खतरों से Safty प्रदान करने के आधुनिक तरीके, आदि भारत के History में पश्चिम के अद्वितीय योगदान के Reseller में गिने जायेंगे। लेकिन, भारत इनके साथ-साथ लोगों के उत्थान के लिए अपनी परम्परागत संस्थाओं, प्रथाओं और विश्वासों का भी प्रयोग कर रहा है। इस प्रकार पश्चिमी प्रभाव के बाद भी तथा विविध व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण के बाद भी भारत, भारत ही रहेगा। Indian Customer संस्कृति आने वाले कर्इ दशकों तक Windows Hosting रहेगी।
भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
पूर्व पृष्ठाों में Reseller गया विश्लेषण दर्शाता है कि परम्परा और आधुनिकता में Single अटूट क्रम पाया जाता है जिसमें Single ओर परम्परा और दूसरी ओर आधुनिकीकरण है। निरन्तरता की इस रेखा पर किसी भी समाज को किसी भी बिन्दु पर रखा जा सकता है। अधिकतर समाज किसी न किसी प्रकार की संक्रमण की स्थिति में रहते हैं। स्वतंत्रता के समय Indian Customer समाज में भी गहरी परम्पराएं थीं, किन्तु यह आधुनिक भी होना चाहता था। ऐसे लोग व ऐसे नेता थे जो कि परम्परागत जीवन शैली ही पसन्द करते थे, लेकिन दूसरी ओर ऐसे लोग भी थे जो भारत का आधुनिक उदय देखना चाहते थे जिसमें अतीत का लगाव न हो। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो परम्परा And आधुनिकता के बीच सामंजस्य के पक्षधर थे। उनका कहना था कि परम्परागत व्यवस्था Single सीमा तक आधुनिकीकरण को स्वीकार कर सकती है व अपना सकती है। इसी प्रकार Single आधुनिकीकृत व्यवस्था Single निश्चित सीमा तक ही परम्परात्मक विचारों को सहन कर सकती है। इस प्रकार वे सह-अस्तित्व चाहते थे। लेकिन First दो विचारधाराओं के प्रतिपादकों ने माना कि सह अस्तित्व बहुत लम्बी अवधि तक नहीं चल सकता। Single ऐसा बिन्दु अवश्य आता है जबकि परम्परा असह्य हो जाती है।
हमने अपने समाज को विविध स्तरों पर आधुनिक बनाने का निश्चय Reseller। सामाजिक स्तर पर हम सामाजिक संबंधों को समानता तथा Humanीय गौरव के आधार पर बनाना चाहते थे। ऐसे सामाजिक मूल्य चाहते थे जो सामाजिक गतिशीलता को सुनिश्चित करें, जाति निर्योग्यताओं को दूर करें स्त्रियों की दशा में सुधार करें, आदि आर्थिक स्तर पर हम तकनीकी विकास तथा न्याय वितरण (distributive justice) चाहते थे। सांस्कृतिक स्तर पर हम धर्म निरपेक्षता, तर्कवाद और उदारवाद चाहते थे। राजनैतिक स्तर पर हम प्रतिनिधि सरकार, जनतांत्रिक संस्थाएं, उपलब्धि-परक शक्ति संCreation (achievement-oriented power structure), तथा देश की सरकार में Indian Customer जन की अधिक आवाज व भागीदारी चाहते थे। समाज को आधुनिक बनाए जाने के लिए जो माध्यम चुने गए (तर्कवाद और वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित) वे थे: नियोजन, शिक्षा, (जो अज्ञानता के अंधकार को दूर कर सके), विधान, विदेशों से सहायता, उदारवाद की नीति अपनाना आदि। जहाँ तक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का संबंध है, विस्तृत Reseller में कहा जा सकता है कि गुणात्मक दृष्टिकोण से भारत में आधुनिकीकरण इन प्रक्रियाओं से गुजर रहा है: आर्थिक सरंचनात्मक स्तर पर पुरानी पारिवारिक And सामुदायिक उपकरणीय Meansव्यवस्था (tool economy) के स्थान पर यांत्रिक औद्योगिक Means व्यवस्था को अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह जजमानी प्रथा जैसी परम्परागत व्यवस्था को तोड़ने के लिए भी उत्तरदायी है।
राजनैतिक संCreationत्मक स्तर पर, शक्ति संCreation में परिवर्तन लाया जा रहा है। अर्द्ध सामन्ती समूह-परक (group-oriented) शक्ति संCreation का उन्मूलन कर के और उसके स्थान पर जनतांत्रिक शक्ति संCreation की स्थापना कर के जो कि आवश्यक Reseller से व्यक्ति-परक (individual-oriented) होती है। सांस्कृतिक स्तर पर मूल्यों के क्षेत्र में परिवर्तन पवित्र मूल्य व्यवस्था से धर्म निरपेक्ष मूल्य व्यवस्था में परिवर्तन के द्वारा लाया जा रहा है। सामाजिक संCreationत्मक स्तर पर अर्जित प्रस्थिति भूमिका की अपेक्षा परम्परागत प्रदत्त भूमिका व प्रस्थिति में कमी आर्इ है।
भारत में आधुनिकीकरण की Single अनोखी विशेषता यह है कि परम्परागत संCreation में परिवर्तन अपना कर परिवर्तन लाया जा रहा है, न कि सरंचना में विखण्डन के द्वारा। यह सत्य है कि परम्परागत समाज की अधिकतर विशेषताएं आधुनिक समाज में उपयुक्त नहीं बैठती, फिर भी आधुनिकता जनता पर थोपी नहीं जा सकती। आधुनिकीकरण पेशे के According निर्देशित (professionally directed) होना चाहिए। परम्परागत संस्थाओं की विशेषताओं को विकास की प्रक्रिया में उपयुक्त समायोजन के साथ रोके रखा जा सकता है। कोर्इ भी समाज तनाव मुक्त तभी रह सकता है जबकि यह बन्द हो तथा गतिशील समाज न हो। विकासशील समाज तनाव और प्रतिरोधो के भीतर होने के आधार पर कार्य करता है। तनाव आधुनिकता व परम्परा के बीच निहित संघर्षों के कारण बना रहता है। तनाव अतीत की धरोहर होते हैं जो कि आर्थिक विकास के दबाव के कारण बने रहते हैं। बहुधा विकास की प्रक्रिया में कुछ तनाव सुलझ जाते हैं। स्थायित्व और संरक्षण की शक्तियों तथा परिवर्तन और आधुनिकीकरण की शक्तियों के बीच दोहरा संबंध होता है। विकासशील समाज इन समस्याओं का सामना चतुरता से करता है। अत: परिवर्तन और आधुनिकीकरण की चुनौतियों का जैसे, क्षेत्रवाद, प्रान्तीयता, अशिक्षा, प्रव्रजन (migration), मुद्रा स्फीति, पूँजी की कमी, रक्षा खर्च में कमी के उद्देश्य से पड़ौसी राष्ट्रों से सामंजस्य, राजनैतिक भ्रष्टाचार, नौकरशाही की अकुशलता, और अप्रतिबद्धता आदि का सामना धैर्य पूर्वक And विधिपूर्वक तरीके से तर्कशील अभिस्वीकरण (adoptive) प्रक्रियाओं द्वारा करता है। परम्परागत समाज के टूटने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि, सत्ता का समतलीकरण, व निर्णय लेने में जन समूहों का योगदान अधिक होने लगता है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास का नियोजन ही लोगों को आधुनिक विचारों And मानदण्डों में भागीदारी के लिए प्रेरित करता और महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों-बुद्धिजीवियों, राजनैतिक अभिजनों, नौकरशाही And तकनीकी विशेषज्ञों को नियोजित परिवर्तनों को स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है।
आधुनिकीकरण की समस्याएं
- आधुनिकीकरण का First विरोधाभास यह है कि Single आधुनिक समाज को तुरन्त हर प्रकार से बदल जाना चाहिए, लेकिन ऐसे नियमित And विकास का समन्वित स्वReseller का अनुमानित नियोजन नहीं हो सकता। अत: Single प्रकार की सामाजिक हलचल हो ही जाती है। उदाहरणार्थ, जन शिक्षा व्यवस्था की मांग है कि दक्ष (trained) व्यक्तियों को उनकी ट्रेनिंग तथा उनके ज्ञान के अनुकूल व्यवसायिक भूमिका में लगा देना चाहिए। लेकिन All शिक्षित लोगों को काम दिलाना सदैव सम्भव नहीं होता है। इससे शिक्षित लोगों में निराशा And असंतोष पैदा होता है।
- दूसरी समस्या यह है कि आधुनिकीकरण की अवधि में संCreationत्मक परिवर्तन असमान होता है। उदाहरणार्थ, उद्योग आधुनिक बनाए जा सकते हैं लेकिन परिवार व्यवस्था, धर्म व्यवस्था आदि रूढ़िवादी ही बने रहते है। इस प्रकार की निवृत्तियाँ व अविच्छिन्नताएँ और परिवर्तन के स्वReseller, स्थापित सामाजिक और अन्य संCreationओं को प्रभावित करते हैं और अन्तराल (lags) गत्यवरोध (bottlenecks) पैदा करते हैं। इसका दूसरा उदाहरण है भारत में मताधिकार की आयु 21 से कम करके 18 वर्ष कर देना। यह आधुनिकता में प्रवेश का Single कदम हो सकता है, किन्तु इसने Single संकट पैदा कर दिया है क्योंकि निर्वाचक समूह इस अनुमान पर निर्भर करता है कि उनमें नागरिकता की परिपक्व भावना होगी तथा नीतियों में भागीदारी की योग्यता होगी।
- तीसरी समस्या है कि सामाजिक व आर्थिक संस्थाओं का आधुनिकीकरण परम्परागत जीवन शैली के साथ संघर्ष पैदा करता है। उदाहरणार्थ, प्रशिक्षित डॉक्टर परम्परागत वैद्यों के लिए खतरा हो जाते है। इसी प्रकार मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुएं घरेलू श्रमिकों को रोजी रोटी से वंचित कर देती है। इसी तरह बहुत से परम्परावादी लोग उन लोगों के विरोधी हो जाते हैं जो आधुनिकता स्वीकार करते हैं। फलत: परम्परावादी और आधुनिक तरीकों में संघर्ष असंतोष का कारण हो जाता है।
- चौथी समस्या यह है कि अक्सर लोग जो भूमिकाएं धारण करते हैं, वे आधुनिक तो होती हैं, किन्तु मूल्य परम्परात्मक Reseller में जारी रहते हैं। उदाहरणार्थ, मेडिसिन और सर्जरी में ट्रेनिंग लेने के बाद भी Single डॉक्टर अपने मरीज से यही कहता है, ‘‘मैं इलाज करता हूँ, र्इश्वर ठीक करता है।’’ यह दर्शाता है कि उसे अपने पर विश्वास नहीं है कि वह बीमारी का सही निदान कर सके बल्कि स्वयं पर आरोप लगाने की बजाय वह उन तरीकों की निन्दा करता है जिनमें उसका जीवन-मूल्यों को विकसित करने के लिए समाजीकरण Reseller गया है।
- पाँचवीं समस्या यह है कि उन साधनों के बीच जो आधुनिक बनाती हैं और उन संस्थाओं व व्यवस्थाओं में जिनको आधुनिक होना है सहयोग की कमी है। कर्इ बार इससे सांस्कृतिक विलम्बना (cultural lag) की स्थिति पैदा होती है तथा संस्थात्मक संघर्ष होते हैं।
- अंतिम समस्या यह है कि आधुनिकीकरण लोगों की आकांक्षाओं को बढ़ाता है, लेकिन सामाजिक व्यवस्थाएं उन्हें आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अवसर प्रदान करने में असफल रहती हैं। ये कुण्ठाएँ वंचनाएं और सामाजिक असंतोष पैदा करती हैं।