लोकमत और लोक सम्पर्क

वेबस्टर (Webster) New International Dictionary में लोकसम्पर्क की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है- ‘‘कोर्इ उद्योग, यूनियन कार्पोरेशन, व्यवसाय, संस्कार या अन्य संस्था जब अपने ग्राहकों, कर्मचारियों, हिस्सेदारों या जनसाधारण के साथ स्वस्थ और उत्पादक सम्बन्ध स्थापित करने या उन्हें स्थायी बनाने के लिए प्रयत्न करें, जिनसे वह अपने आपको समाज के अनुकूल बना सके, अथवा अपना उद्देश्य समाज पर व्यक्त कर सकें, उसके उन प्रयत्नों को जनसम्पर्क कहते हैं।’’

लोकसम्पर्क का उद्देश्य जनमत को पूर्व निश्चित लक्ष्य की पूर्ति के लिए संगठित करना माना गया है। जनमत किसे कहते हैं, इसके बारे में कोर्इ स्थिर परिभाषा नहीं दी जा सकती। फिर भी जनमत या लोकमत किसी राष्ट्र की समस्त संस्कृति अथवा जीवन के प्रति दृष्टिकोण को कहते है किसी भी निश्चित समस्या पर राष्ट्र का Single प्रबल बहुमत किस प्रकार विचार करता है, इसे जनमत या लोकमत कहते हैं। किसी भी समस्या पर व्यक्तिगत सम्मतियों के संकलन से जनमत का निर्माण होता है।

एडवर्ड एल0 बर्नेज को जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकसम्पर्क का जनक कहा जाता है, उनके मतानुसार –
लोकसम्पर्क का उद्देश्य है व्यक्ति, समुदाय और समाज में परस्पर Singleीकरण। व्यक्ति और समाज में समायोजन करने का और जन भावनाओं को मुखरित करने का लोक सम्पर्क Single मुख्य साधन है। हमारी जीवन प्रणाली प्रतिस्पर्द्धा प्रधान है। इसमें अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए हमें Single Second की भावनाओं को समझना और सब की सहायता लेना अनिवार्य है। हम सब के लिए जरूरी है कि हम Second लोगों के साथ मिल कर अपना काम करें।

इसका परिभाषा का अभिप्राय है कि जन भावनाओं या लोकमत की समझने और इसके According काम करने की प्रक्रिया स्वतंत्र और निर्बाध Reseller से चलनी चाहिए। निहित स्वाथोर्ं या महत्वाकांक्षी तत्वों को यह छूट भी नहीं दी जा सकती कि वे लोकमत की किसी प्रकार अवहेलना करें या अपनी मनमानी इस पर थोपें। इस दृष्टि से लोकसम्पर्क का महत्व और भी बढ़ जाता है। क्योंकि जो व्यवस्था लोकमत से निरंतर जुड़ी रहती है उसका विकास ठीक दिशा की ओर लगातार चलता रहता है और किसी प्रकार के झटके, अवरोध, अराजकता, तोड़-फोड़ या विद्रोह, उसकी प्रगति को रूकने नहीं देते।

ऊपर दी गर्इ व्याख्या में लोकमत के महत्व को स्वीकार Reseller गया है। आज की दुनियां में कोर्इ भी संस्था लोकमत की शक्ति या प्रभाव की अवहेलना या उपेक्षा करके अपना काम नहीं चला सकती। वह जमाना गया जब सत्ताधारी लोग कह सकते थे- ‘‘जनता जाए भाड़ में,’’ या कोर्इ स्वेच्छाचारी King बोल उठता था, ‘‘मेरी आज्ञा ही सवोर्ंपरि होगी। मै राजसी मामलों में जनता की सत्ता को मूलत: स्वीकार नहीं करता।’’ आज तो स्थिति यह है कि प्रत्येक नीति या कार्यक्रम को अन्तिम Reseller देने से पूर्व तथा उसे कार्यReseller में परिणत करते समय पग-पग पर जनता के सक्षम और सक्रिय सहयोग को नितान्त आवश्यक माना जाता है।

स्वस्थ और Creationत्मक लोकमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि जनता के सम्मुख यथासम्भव समस्त तथ्य, आंकड़े और सम्पूर्ण वस्तुस्थिति रख दी जाए। सामूहिक Reseller में जनता हर मामले पर सूझ-बूझ और तर्क-विवेक से काम लेती है, क्योंकि साधारणतया कोर्इ भी अपना नुकसान नहीं चाहता। जनता के सामने अगर सारी स्थिति रख दी जाए और प्रत्येक विचाराधीन मामले की ऊंच-नीच तथा गुण-दोश उसे समझा दिये जाएं, तो जनसाधारण का व्यवहार दायित्व और सहयोग पूर्ण होगा।

लोकसम्पर्क के काम में सफलता के लिए आवश्यक है कि जनमत की विभिन्न प्रवृित्तयों का विधिपूर्वक अध्ययन Reseller जाए और उन्हीं के अनुReseller प्रचार को अपेक्षित दिशा, मोड़ या Reseller दिया जाए। लोकसम्पर्क विशेषज्ञों को अब यह खोज करनी है कि आज के युग की संचार सम्बन्धी सुविधाओं को दृष्टि में रखते हुए लोकमत निर्माण के कौन-कौन से नए साधन अपनाए जाएं, जो समाचारों के साथ-साथ जनता का मार्ग प्रदर्षित करें। लोकमत के सृजन के साथ-साथ लोकमत के मूल्यांकन की नर्इ और सुलभ विधियों के निर्माण की भी Need होती है।

सक्षम जनसम्पर्क के बिना लोकतंत्र मिथ्या और निराधार बन कर रह जाता है क्योंकि जनता का समर्थन जनसम्पर्क द्वारा ही प्राप्त होता है। जनसम्पर्क की Need केवल प्रषासन या राजसत्ता को ही नहीं होती। कोर्इ भी समुदाय या सामाजिक संगठन भी अपने घटकों के सहयोग और विष्वास के बल पर ही स्थिर रहता है और इस सहयोग को जनसम्पर्क की सहायता से जनसंचार के साधनों द्वारा अर्जित और संग्रहित Reseller जा सकता है।

जनमत या लोकमत का आधार सत्य नहीं, बल्कि आस्था है, हमारी आस्था यदि किसी असत्य में है, तो हमारे लिए वही सत्य हो जाता है। हमारी आस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसको हम तक लाने वाले माघ्यमों पर हमारी कितनी आस्था है। शायद इसी आधार पर हिटलर के सहयोगी गोएब्लज ने कहा था: यदि Single झूठ सौ बार दोहराया जाए तो वह सत्य हो जाता है।

लोकमत को अपेक्षित दिशाओं में प्रभावित करने के व्यवस्थित प्रयत्नों को लोक सम्पर्क कहते हैं। इसकी सफलता के लिए पक्ष-विशेष और जनता के मध्य सम्पर्क और फिर अपने पक्ष की पुष्टि के लिए ठोस तर्क और प्रमाणों की Need होती है। लोकमत को वांछित दिशाओं में प्रभावित करने के प्रयत्नों को लोक सम्पर्क कहते है इसकी सफलता के लिए पक्ष-विशेष और जनता के मध्य सम्पर्क और पक्ष की पुष्टि के लिए ठोस प्रमाणों की Need है।

अत: हम कह सकते हैं कि लोकमत क्या है इसकी प्रेरक शक्तियों की पहचान कैसे होती है, इसे किस तरह किसी प्रोग्राम के अनुकूल बनाया जा सकता है, लोकमत यदि सहायक न हो या स्पष्टत: प्रतिकूल हो तो इसका सामना कैसा Reseller जाना चाहिए। इन सब प्रश्नों का उत्तर Single ही है और वह है जनसम्पर्क।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *