विदेशी व्यापार क्या है?
मनुष्य की Needए अनन्त हैं। कुछ Need की वस्तुए तो देश में ही प्राप्त हो जाती है तथा कुछ वस्तुओं को विदेशों से मॅंगवाना पड़ता है। भोगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रत्येक देश All प्रकार की वस्तुए स्वयं पैदा नहीं कर सकता है। किसी देश में Single वस्तु की कमी है तो Second देश में किसी दूसरी वस्तु की। इस कमी को दूर करने के लिए विदेशी व्यापार का जन्म हुआ है।
दो देशों के मध्य होने वाले वस्तुओं के परस्पर विनिमय या आदान’-प्रदान को विदेशी व्यापार कहते हैं। जो देश माल भजेता है उसे निर्यातक And जो देश माल मॅंगाता है उसे आयातक कहते हैं And उन दोनों के बीच होने वाल े आयात-निर्यात को विदेशी व्यापार कहते हैं।
विदेशी व्यापार के प्रकार
- आयात व्यापार – जब विदेशों से माल मॅंगाया जाता है तो उसे आयात व्यपार कहते हैं।
- निर्यात व्यापार – जब माल विदेशों को भेजा या विक्रय Reseller जाता है तो उसे निर्यात व्यापार कहते है।
- पुन: निर्यात व्यापार – जब किसी Single देश से माल आयात करके पुन: किसी Second देश को निर्यात Reseller जाता है, तो उसे पुन: किसी Second देश को निर्यात Reseller जाता है तो उसे पुन: निर्यात व्यापार कहते हैं।
विदेशी व्यापार का महत्व
प्रत्येक देश के लिये विदेशी व्यापार बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि-
- विदेशी मुद्रा अर्जित करने का यह महत्वपूर्ण साधन है।
- किसी भी देश की उन्नति का यह मूल आधार है।
- यह पारस्परिक सहयोग में वृद्धि करता है।
- संकटकालीन स्थिति में Single देश Second देश को सहायता प्रदान करता है।
- अतिरिक्त उत्पादित वस्तुओं को अन्य देशों के बाजारा में बेचा जा सकता है।
- निर्यातकर्ता देश, अधिक प्रगतिशील माना जाता है।
विदेशी व्यापार के लाभ
- विभिन्न वस्तुओं की उपलब्धि- ऐसी वस्तुए जिनका विदेशों में उत्पादन हो रहा है किन्तु जिन्हें हमारे देश में उत्पन्न नहीं Reseller जा सका है, उनका उपभोग भी विदेशी व्यापार के कारण Reseller जा सकता है।
- अतिरिक्त उत्पत्ति से विदेशों मुद्रा की प्राप्ति- देश में Need से अधिक उत्पादन को विदेशों में बेचकर विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है।
- प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपभोग- विदेशी व्यापार के कारण बाजारों का विस्तार हो जाता है, जिससे अतिरिक्त उत्पादनों को विदेशी मंडियों में आसानी से बेचा जा सकता है। न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करके प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपभोग Reseller जाता है।
- क्षेत्रीय श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण- अधिकतर राष्ट्र अपने देश की जलवायु तथा प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि के अनुReseller ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जिनके उत्पादन में उन्हें पूर्ण कुशलता प्राप्त हो। परिणामस्वReseller ऐसे उत्पादन की मात्रा बढ़ाकर क्षेत्रीय श्रम विभाजन And विशिष्टीकरण के लाभ उठाने लगते हैं।
- जीवन-स्तर तथा आय में वृद्धि- विदेशी व्यापार के कारण All उपभोक्ताओं को सस्ती, सुन्दर, टिकाऊ वस्तुए मिलने से उनका जीवन-स्तर ऊॅंचा उठाने लगता है तथा उनकी वास्तविक आय में वृद्धि होती है।
- उत्पादन विधि में सुधार- विदेशी व्यापार में प्रतिस्पर्धा होने के कारण कम लागत पर अच्छा माल उत्पन्न करने के लिए उत्पादन विधियों में समय-समय पर सुधार किये जाते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अच्छा माल मिलने लगता है।
- संकट में सहायक- बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि प्राकृतिक संकटों के आने पर विदेशों से खाद्य सामग्री आयात कर इन संकटों का सामना Reseller जा सकता है। भारत ने विगत वर्षों में खाद्य संकट आने पर विदेशों से भारी मात्रा में खाद्य सामग्री का आयात Reseller था।
- अन्तर्राष्ट्रीय श्शान्ति And सद्भावना- विदेशी व्यापार के कारण वस्तुओं के साथ-साथ विचारों के आदान-प्रदान के भी अवसर प्राप्त होते रहते हें, जिससे ज्ञान And संस्कृति का भी आदान’-प्रदान होता रहता है तथा सद्भावना का जन्म होता है।
- औद्योगिकरण को प्रोत्साहन- विदेशी व्यापार से बाजार का विस्तार हो जाने के कारण नये-नये उद्योगों का जन्म होता है And पुराने उद्योगों का विकास हाने े लगता है।
- यातायात के साधनों में वृद्धि- विदेशी व्यापार के कारण वायु, जल And थल यातायात के साधनों में पर्याप्त वृद्धि होने लगती है। नये-नये परिवहन And संचार साधनों का विकास होता है।
- मूल्य में स्थायित्व- वस्तुओं की पूर्ति में कमी होने के कारण बाजार में वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जायेगी, परिणामत: विदेशों से वस्तुओं का आयात प्रारंभ हो जाएगा। वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि के कारण भाव पुन: कम हो जायेंगे। इस प्रकार विदेशी व्यापार से वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता बनी रहती है।
उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त विदेशी कार्यकुशलता And रोजगार में वृद्धि, Singleाधिकार की समाप्ति, श्शैक्षणिक And सांस्कृतिक विकास में विदेशी व्यापार सहायक होता है।
विदेशी व्यापार के दोष
- विदेशों पर निर्भरता- विशिष्टीकरण के कारण सम्पूर्ण वस्तुओं का उत्पादन न करने से कुछ वस्तुओं के लिए Second देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस कारण आत्मनिर्भरता कम हो जाती है।
- विदेशियों का हस्तक्षेप – कुछ विकासशील देश विदेशी व्यापार के साथ-साथ अन्य देशों की राजनैितक गतिविधियों में भी रूचि लेने लगते हैं तथा अपना वर्चस्व बढा़ ने का प्रयत्न करते हैं। जैसे- भारत में अंग्रेजों ने अपना वर्चस्व बढ़ाया था।
- देशी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा – विदेशों में निर्मित माल स्वदेश में निर्मित माल से हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अच्छा माल मिलने लगता है।
- संकट में सहायक- बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि प्राकृतिक संकटों के आने पर विदेशों से खाद्य सामग्री आयात कर इन संकटों का सामना Reseller जा सकता है। भारत ने विगत वर्षों में खाद्य संकट आने पर विदेशों से भारी मात्रा में खाद्य सामग्री का आयात Reseller था।
- अन्तर्राष्ट्रीय श्शान्ति And सद्भावना- विदेशी व्यापार के कारण वस्तुओं के साथ-साथ विचारों के आदान-प्रदान के भी अवसर प्राप्त होते रहते हें, जिससे ज्ञान And संस्कृति का भी आदान’-प्रदान होता रहता है तथा सद्भावना का जन्म होता है।
- औद्योगिकरण को प्रोत्साहन- विदेशी व्यापार से बाजार का विस्तार हो जाने के कारण नये-नये उद्योगों का जन्म होता है And पुराने उद्योगों का विकास हाने े लगता है।
- यातायात के साधनों में वृद्धि- विदेशी व्यापार के कारण वायु, जल And थल यातायात के साधनों में पर्याप्त वृद्धि होने लगती है। नये-नये परिवहन And संचार साधनों का विकास होता है।
- मूल्य में स्थायित्व- वस्तुओं की पूर्ति में कमी होने के कारण बाजार में वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जायेगी, परिणामत: विदेशों से वस्तुओं का आयात प्रारंभ हो जाएगा। वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि के कारण भाव पुन: कम हो जायेंगे। इस प्रकार विदेशी व्यापार से वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता बनी रहती है।
- अन्य लाभ- उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त विदेशी कार्यकुशलता And रोजगार में वृद्धि, Singleाधिकार की समाप्ति, शैक्षणिक And सांस्कृतिक विकास में विदेशी व्यापार सहायक होता है।
विदेशी व्यापार की कठिनाइयॉं
विदेशी व्यापार में अनेक लाभ होने के बाद भी इसके विकास में कठिनाइयॉं And बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो है-
- सम्पर्क स्थापित करने की कठिनार्इ – दूर-दूर के देशों में सम्पर्क स्थापित करने में कठिनार्इ आती हैं। जल, थल And वायु यातायात के पर्याप्त विकास होने के बाद भी ये साध् ान जनसाधारण को सस्ते मूल्य पर उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण किस देश में कौन से माल की खपत या उपलब्धियॉं हैं, इसकी जानकारी प्राप्त करने में कठिनार्इ आती है।
- अत्यधिक जोखिम – विदेशी व्यापार में अधिकतर माल सामुद्रिक मार्ग से आता-जाता है इस कारण जहाज के डूबने, लुटने, उलटने या तूफान से Destroy होने का भय हमेशा बना रहता है। इस कारण इसमें अत्यधिक जोखिम होने के कारण देशी व्यापार की तरह इसका श्शीघ्र विकास नहीं हो सका है।
- अयात-निर्यात लायसेंस की प्राप्ति – विदेशी व्यापार पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता है वे अपने-अपने देश के आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर ही आयात-निर्यात लायसेंस देते हैं, साथ ही सेंस प्राप्त करने की विधि से भी अपरिचित होने के कारण विदेशी व्यापार वृद्धि में कठिनार्इ आती है।
- वस्तुओं का आकार-प्रकार – विदेशी वस्तुओं के आकार-प्रकार का स्पष्ट अनुमान न होने के कारण, नमूना, ट्रेडमार्क, भावसूची, आदि मॉंगने, उनसे पत्र व्यवहार करने में काफी देरी लगती है।
- नापतौल की भिन्नता – अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रकार की नापतौल की लियॉ प्रचलित होने से वस्तु की मात्रा And मूल्य निश्चित करने में कठिनार्इ आती है।
- विदेशी मुद्रा की उपलब्धि – विदेशों में माल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा उपलब्ध है या नहीं, के भुगतान हेतु प्राप्त हो सकेगी अथवा नहीं इस बात की भी श्शंका नहीं रहती है। इस कारण व्यापारी निश्चिततपूर्वक व्यापार करने में कठिनार्इ आती हैं।
- माल भेजने की कठिनार्इ – विदेशों से माल मॅंगवाने And भेजने के लिए यातायात के साध् ान शीघ्रगामी And समय पर उनका उपलब्ध होना जरूरी है। ये साधन श्शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध नहीं हो इस कारण भी विदेशी व्यापार में कठिनाइर् आती है।
- भाषाओं की भिन्नता – अलग-अलग देशों में अलग-अलग भाषाए प्रचलित होने के कारण व्यवहार द्वारा जानकारी प्राप्त करने, सम्पर्क स्थापित करने में कठिनार्इ आती है।
- भुगतान – जिस देश से माल खरीदा जाता है उस देश की मुद्रा में भुगतान करना आवश्यक है। की उपलब्धता सुलभ होना चाहिए And मुद्राओं के भाव भी न बढ,े़ विनिमय दर में स्थिरता होना आवश्यक है। इसके अभाव में भुगतान में कठिनार्इ आती है।