विभागीय भंडार क्या है?
विभागीय भंडार का जन्म सन् 1852 में फ्रांस में हुआ है, ऐसी धारणा है. इनका विकास पश्चात देशों में अधिक हुआ है. भारत में ऐसे भण्डारों की कमी है विभागीय भंडार से आशय ऐसी बड़ी दुकान से है, जिसमें उपभोक्ताओं को उनकी Needओं की समस्त वस्तुएं Single ही स्थान पर मिल सकें. इसमें सुर्इ से लेकर हवार्इ जहाज तक की All आवश्यक वस्तुएँ बेची जाती हैं. यह दुकान Single ही प्रबंध के अंतर्गत कर्इ विभागों मे विभक्त रहती हैं, जिसमें अलग-अलग प्रकार की वस्तुएँ बेची जाती हैं विभागीय भंडार की परिभाषाएँ हैं –
- जेम्स स्टीफेन्सन- ‘‘ यह Single ही छत है अंतर्गत बड़ा भंडार है, जो कि अनेक प्रकार की वस्तुओं का फुटकर व्यापार करता हैं. ‘‘
- क्लार्क- ‘‘विभागीय भंडार से आशय Single बड़ी फुटकर संस्था से है, जो कि Single छत के अंतर्गत अनेक प्रकार की वस्तुओं का व्यापार करती है. वस्तुएं विभिन्न विभागों में विभक्त होती हैं. उनका केन्द्रीय प्रबंध होता है
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि विभागीय भंडार Single ही स्थान पर Single प्रबंध के अंतर्गत विभिन्न विभागों में बँटा हुआ दुकानों का Single समूह है। जिसमें उपभोक्ताओं को उसकी समस्त Needओं की वस्तुएँ Single ही स्थान पर प्राप्त हो जाती है, ये दुकानें नगर के बीच प्रमुख बाजारों में खोली जाती है, ताकि ग्राहक आसानी से पहंचु सकें. इनमें ग्राहकों की सुविधा के लिए, जलपान गृह, डाकधर, विश्राम गृह आदि की भी व्यवस्था रहती है
संगठन And प्रबंध
इन भंडारों के खोलने में अधिक पूँजी लगती हैं. अत: ये सयं ुक्त स्कन्ध प्रमंडलों द्वारा खोले जाते हैं. इनका प्रबंध संचालक मंडल द्वारा Reseller जाता है. प्रत्येक विभाग की देखरेख के लिए Single प्रबंध एंव Needनुसार माल विक्रेता रखे जाते हैं.
विभागीय भंडार की विशेषताएँ
- विभागीय भण्डार में अनेक विभाग होते है.
- All दुकानें Single ही भवन में खोली जाती है.
- ये All दुकाने Single ही स्वामित्व की होती है.
- ये All दुकाने Single ही प्रबंध के अंतर्गत रहती हैं.
- ये दुकानें अलग-अलग वस्तुएँ बेचती है.
- ये अनेक स्थानों से माल खरीदकर Single स्थान पर बेचती है.
विभागीय भंडार के लाभ
- Single ही स्थान पर विभिन्न वस्तुओं की प्राप्ति :- ग्राहकों को Single ही स्थान पर Need की All वस्तुएं मिल जाती हैं.
- वस्तु के चुनाव में सुविधा – इन भंडारों में अनेक किस्म की वस्तुएँ मिलने से ग्राहकों को अपनी मनपसंद की वस्तु का चनु ाव करने में सुविधा रहती है.
- सस्ता व अच्छा माल- बड़ी मात्रा में वस्तुएँ खरीदने के कारण इन भंडारों को सस्ता व अच्छा माल मिल जाता है
- विज्ञापन व्यय में कमी- Single भंडार Second भंडार की जानकारी देकर उसका विज्ञापन करता रहता है And सामूहिक विज्ञापन होने से विज्ञापन व्यय कम हो जाता हैं.
- घर पहूंच सेवा- ये भंडार ग्राहकों के टेलीफोर से आदेश प्राप्त होने पर माल को घर भेजने की व्यवस्था कर देते हैं.
- आधुनिक वस्तुओं का संग्रह- ये भण्डार नर्इ-नर्इ फैशन की आधुनिक वस्तुओं का संग्रह करके ग्राहकों की सेवा करते हैं.
- विक्रय वृद्धि- इन भंडारों में वस्तुओं को सुंदर ढंग से प्रदर्शित Reseller जाता है जब ग्राहक Single वस्तु खरीदता है, तो उसको दूसरी वस्तु क्रय करने की भी इच्छा हो जाती है. इससे बिक्री बढ़ती है.
- स्थायी ग्राहक- कुशल कर्मचारिशें की सेवाओं से प्रभावित होकर क्रेता इनके स्थायी ग्राहक बन जाते है।
विभागीय भंडार के दोष –
- दूर से ग्राहकों को असुविधा- ये भंडार शहर के मध्य स्थिर रहते हैं, अत: कॉलोनियों में रहने वाले दूर के ग्राहकों को इन भण्डारों तक पहुँचने में असुविधा होती है.
- ऊँचा मूल्य होना- इन भण्डारों को महगे कर्मचारी रखने, सजावट And विज्ञापन आदि में अधिक व्यय करना पडत़ ा है, जो वस्तु का मूल्य बढ़ाकर ग्राहकों से वसुल किए जाते हैं.
- विशाल भवन तथा पूँजी की Need- ये भंडार विशाल भवनों में खोले जाते हैं तथा इसकी All दुकानों के लिए माल क्रय करके रखना पड़ता है इस कारण अस्थिाक पूंजी की Need होती है. साधारण व्यक्ति इसे खोलने में असमर्थ रहता है.
- साख का अभाव- ये नकद माल बेचते है. अत: उधार खरीदने वाले ग्राहक इनके लाभ प्राप्त नहीं कर पाते.
- हानि में चलने वाले विभागों का भार- कर्इ विभाग जिनसे लाभ नहीं होता, उन्हें भी चलाना पड़ता है.
- अन्य दुकानों से प्रतिस्पर्द्धा- इन्हें ाहर में कार्यरत अन्य दुकानों से प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है. इस कारण प्रतियोगिता में असफल होने पर इनका विकास रूक जाता है
- गरीब ग्राहकों के लिए अनुपयुक्त- इन भंडारों के व्यय अधिक होने के कारण वस्तुएँ महँगे मिलती है, जिससे गरीब क्रेता इनका लाभ नहीं उठ पाता और वे इन बड़े स्टोरों में जाने से संकोच करने लगते हैं