ग्रामदान की अवधारणा
- निर्धरता उन्मूलन।
- भू-स्वामी के हृदय के प्रेम And श्रद्वा की उत्पत्ति तथा उसका नैतिक उत्थान ।
- मित्रता की भावना And पारस्परिक सहयोग की वृद्वि, वर्ग संद्यर्ष में कमीं, द्यृणा की भावना की समाप्ति।
- धार्मिक उत्थान तथा सत्य And धर्म में विश्वास।
- नवीन सामाजिक व्यवस्था का अभ्युदाय।
- Creationत्मक कार्यों में वृद्वि तथा समाज का उत्थान।
- विश्व शान्ति में सहयोग।
लोक शक्ति
विनोबा जी ने लोक शक्ति के निर्माण का संकल्प Reseller ताकि जनमानस में आत्मविश्वास And अहिंसा की भावना को सुदृढ बनाया जा सके। लोक शक्ति और सैनिक शक्ति के विपरीत है। सरकारी कानून लोक शक्ति का निर्माण नहीं कर सकते। लोक शक्ति समाप्त हो जाने पर राज्य And समाज का स्वत: विनाश हो जायेगा। लोक शक्ति का प्रादुर्भाव तभी हो सकता है जब लोग आत्म कश्ट And सत्याग्रह के लिये तैयार हों। लोकशक्ति मे वृद्वि के साथ- साथ उसी अनुपात में राज्यशक्ति का हास होता है, तथा राज्य शक्ति कम होने पर लोगों में सुख And समृद्वि की वृद्वि होती है। समाज में शन्ति की स्थापना तब तक नहीं हो सकती जब तक कि लोक शक्ति में वृद्वि न हों। यदि शक्तिषाली King कम से कम अपने- अपने देशों में स्वर्ग की स्थापना अवश्य कर देते किन्तु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि लोकशक्ति का अभाव था। लोक शक्ति को विकसित करना ही Single ऐसा मार्ग है जिस पर आगे चलकर Single वर्ग विहीन, राज्य विहीन तथा शेाषण मुक्त समाज Meansात् सर्वोदय समाज की स्थापना की जा सकती है।
वैश्वीकरण व Human विकास
विश्व की विभिन्न Meansव्यवस्थाओं को वस्तुओं तथा सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी तथा यहां तक कि श्रम अथवा Human पूंजी के बेरोकटोक प्रवाह के साथ Singleीकृत करने की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। इस प्रकार, वैश्वीकरण के चार प्रतिमान है:-
- राष्ट्र राज्यों के मध्य वस्तुओं व सेवाओं के सुगम प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए व्यापार अवरोधकों में कमी।
- ऐसे वातवारण का निर्माण करना जिसमें राष्ट्र राज्यों के मध्य पूंजी के निवेश हेतु निरन्तर प्रवाह हो सके।
- प्रौद्योगिकी के प्रवाह को अनुमति देने वाले वातावरण का निर्माण करना।
- विकासशील देशों के दृष्टिकोण के According, ऐसे वातावरण का निर्माण करना, जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के मध्य Human शक्ति व श्रम का आदान-प्रदान सुगमतापूर्वक हो सके।
वैश्वीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया में बड़ा उथल-पुथल हो रहा है। एन्थोनी गिडेनस ने अपनी पुस्तक दि कान्सीक्वेन्सेज ऑफ मॉडर्निटी (The Consequences of Moderity, 1990) में वैश्वीकरण की व्याख्या विस्तार पूर्वक की है। उनका कहना है विभिन्न लोगों और दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बीच बढ़ती हुर्इ अन्योन्याश्रिता या पारस्परिकता ही वैश्वीकरण है। यह पारस्परिकता सामाजिक और आर्थिक संबंधों में होती है। इसमें समय और स्थान सिमट जाते हैं। इसी संदर्भ में गांधी जी के इस वक्तव्य को भी देखना होगा। वे लिखते हैं ‘‘मैं नहीं चाहता कि मेरा मकान चारों ओर दीवारों से घिरा हो और मेरी खिड़Resellerं बन्द हों। मैं तो चाहता हूँ कि All देशों की सांस्कृतियों की हवाएं मेरे घर में जितनी भी आजादी से बह सके बहे। लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि उनमें से कोर्इ भी हवा मुझे मेरी जड़ों से ही उखाड़ दे।’’
हम Second देशों में जाते रहे हैं आरै Second देशों के लोग हमारे यहाँ आते रहे है व्यापारिक लेन-देन आरै सांस्कृतिक अदान-पद्र ान भी हम हमेशा करते रहे है इन प्रक्रिया में भी शेष देश से कभी कटे नहीं बल्कि First से भी ज्यादा जडु ़ते रहे है अत: यह हमारे लिए कोर्इ नर्इ बात नहीं है। किन्तु भारत में वैश्वीकरण समता, न्याय और विश्व-बन्धुत्व के आधार पर होना चाहिए। वैश्वीकरण के संबंध में यह आम धारणा है कि समाजवाद समाप्त हो गया है और पूँजीवाद विश्व-विजेता बन गया है। अत: भारत को भी अब समाजवाद का स्वप्न देखना बंद कर देना चाहिए और पूँजीवाद को ही अपनी नियति मान लेना चाहिए। इस धारणा का प्रचार यह कहते हुए Reseller जा रहा है कि पूँजीवाद की गति के नियमों के According सम्पूर्ण विश्व की Meansव्यवस्था Single हो गर्इ है। अत: Indian Customer Meansव्यवस्था को वैश्विक, पूँजीवाद से जोड़ना तथा घरेलू आर्थिक नीतियों को पूँजीवादी का सिद्धान्त बनाकर चलना अनिवार्य हो गया है।
प्रसिद्ध Meansशास्त्री दिलीप एस0 स्वामी ने अपनी पुस्तक ‘विश्व बंकै और Indian Customer अथर्व् यवस्था का वैश्वीकरण’ में विश्व बंकै , अन्तरार्ष् ट्रीय मुदा्र कोष और नियमों से भारत की नर्इ आर्थिक नीति का संबंध स्पष्ट करने वाले बहुत से अन्य और आँकड़े देकर यह सिद्ध Reseller गया है कि भारत में वैश्वीकरण की जो प्रक्रिया 1991 में शुरू हुर्इ है वह स्वाधीनता के समय से चली आ रही है। इसका उद्देश्य न तो गरीबी और न बेरोजगारी को कम करना है और न लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करता है। इसका मुख्य जोर आर्थिक गतिविधियों में राज्य के हस्तक्षेप को न्यूनतम करना और बाजार की अदृश्य शक्तियों को तथा कीमतों की प्रक्रिया को छूट देता है कि वे राष्ट्रीय संसाधनों को जहाँ चाहे वहाँ लगायें। भारत ने उन वैश्विक बाजार, शक्तियों के आगे घुटने टेक दिये हैं जिन पर बहुराष्ट्रीय निगमों का अधिपत्य हैं।
Human विकास रिपोर्ट: 2000: संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम (UNDP) के अन्तर्गत प्रकाशित Human विकास रिपोर्ट में कहा गया है कि आधुनिक युग वस्तुत: वैश्वीकरण का युग है। यह रिपोर्ट कहती है कि वैश्वीकरण दुनिया के लिये नया नहीं है। इसका प्रारंभ 16वीं शताब्दी से हैं। लेकिन आज का वैश्वीकरण अतीत के वैश्वीकरण से भिन्न है। इस रिपोर्ट ने वैश्वीकरण को चार विशेषताओं द्वारा परिभाषित Reseller है:-
- नये बाजार (New Market) :- विदेशी विनिमय और पूँजी बाजार वैश्वीय स्तर पर जुड़े हुए हैं आरै ये बाजार चाबै ीसों घंटे काम करते है इनके लिए भौतिक दूरियां कोर्इ Means नहीं रखतीं।
- नये उपकरण (New Tools) :- आज के विश्व में लोगों के लिए कर्इ नये उपकरण आ गये हैं। इनमें इंटरनेट लिंक्स, सेल्यूलर फोन्स और मीडिया तंत्र सम्मिलित हैं।
- नये Single्टर या कर्ता :- वैश्वीकरण की प्रक्रिया ऐसी हैं जिसमें कार्यों का संपादन करने के लिए कर्इ कर्ता हैं। इन कर्ताओं में विश्व व्यापार संगठन, गैर सरकारी संगठन, रेडक्रास आदि सम्मिलित हैं।
- नये नियम :- अब सारे काम संविदा के माध्यम से होते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों दुनिया भर के राष्ट्र राज्यों के साथ सीधा व्यपार समझौता करती है ये कतिपय नये नियम हैं जो वैश्वीकरण के आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को लागू करने में सहायता देते हैं।
यह रिपोर्ट बताती है कि अपने नये अवतार में वैश्वीकरण अधिक शक्तिशाली बन गया है। इसे अधिक स्पष्ट करते हुए रिपोर्ट कहती है :- ‘‘वैश्वीय बाजार, वैश्वीय तकनीकी तंत्र, वैश्वीय विचार और वैश्वीय सुदृढ़ता, यह आशा की जा सकती है, संसार भर के लोगों को समृद्धि देगें। लोगों के बीच पारस्परिकता और आत्मनिर्भरता में आशा की जाती है कि लोग साझा मूल्यों में विश्वास स्थापित करेंगे और दुनिया भर के लोगों का विकास होगा।
Human विकास पर वैश्वीकरण का सकारात्मक प्रभाव :-
- संयुक्त राष्ट्र, IMF विश्व बंकै , OECD तथा विश्व व्यापार संगठन जैसे कर्इ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने वैश्वीकरण के विचार को अपनाते हुए माना है कि विभिन्न राष्ट्रों के बीच व्यापार में वृद्धि होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति की आमदनी में बढ़ोत्तरी हुर्इ हैं।
- राष्ट्रों के मध्य अधिक मात्रा में आयात-निर्यात होने के कारण विश्व की समृद्धि बढ़ी है और यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि संपूर्ण विश्व में All व्यक्तियों के लिए समान नियम बनाये गये हैं जिनका पालन करना उनके लिए आवश्यक हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के मतानुसार वैश्वीकरण के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य व्यापारिक समुदायों के मध्य श्रम, Human अधिकार, पर्यावरण इत्यादि से संबंधित मानकों से जुड़े हुए मूल्यों को स्थापित Reseller गया है तथा इसकी उन्नति के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं।
- वैश्वीकरण के समर्थक यह कहते हैं कि इस बात के बहुत से साक्ष्य मिल जायेंगे कि विभिन्न गरीब देशों में से जिन देशों में Second देशों के साथ व्यापार स्थापित Reseller है उनमें से अधिकांश की आय में वृद्धि तथा जिसने अन्य देशों के साथ व्यापार स्थापित नहीं Reseller उनकी गरीबी में वृद्धि देखी गयी हैं।
- ऐसे कुछ देश जिन्होंने सीमा संबंधी करों And नियमों में भारी कमी की है, उनहोंने रोजगार व राष्ट्रीय आय में वृद्धि कुछ हद तक कर प्राप्त कर ली है, क्योंकि वैश्वीकरण के माध्यम से श्रम व पूँजी का मात्र आयात ही नहीं Reseller जा रहा है बल्कि Single बृहद् स्तर पर इसका निर्यात होने पर बहुत अधिक लाभ मिल रहा है।
- यह कहा जाता है कि कोर्इ देश जितना अधिक अन्य देशों से व्यापार करता है, वहां के नागरिकों का जीवन स्तर उतना ही सुधरता है।
- बहुत से विकासशील देशों, मैक्सिको, तुर्की, थाइलैण्ड आदि ने अपनी Meansव्यवस्था में उन्नति का अनुभव करते हुए वैश्वीकरण के पक्ष में आवाज उठायी है।
- आस्ट्रेलिया के भूतपूर्व विदेश मंत्री ने कहा था कि वैश्वीकरण ने आस्ट्रेलिया में सकल घरेलू उत्पाद, रोजगार, पारिवारिक आय व जीवन स्तर को बढ़ाने में बहुत अहम भूमिका निभार्इ है।
- वैश्वीकरण का Single महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इसके कारण श्रम- संबंधी कार्यों व आर्थिक संCreation में महिलाओं की भागेदारी आश्चर्यजनक Reseller से बढ़ी है।
- वैश्वीकरण के कारण बाजार की संCreation में वृद्धि हुर्इ है। जिसके कारण स्थानीय समुदाय से लोगों का सम्पर्क छूटता जा रहा है इसका सकारात्मक पहलू यह है कि बाजार से संबंधित संबंधों में प्राथमिक लगाव की भावना कम हो गयी है जिससे व्यक्ति भावनात्मक सहारा प्राप्त करने हेतु अपने परिवार पर अधिक निर्भर हो गया है।
Human विकास पर वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव :-
विकास रिपोर्ट (UNDP 2001) ने वैश्वीकरण के दुष्परिणामों को निम्न बिन्दुओं में रखा हैं :- ;
- वैश्वीकरण ने Human Safty को Single अजीब तरह की धमकी दी है। Single ओर तो धनी और समृद्ध देश हैंं जिनमें पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता है, स्थायित्व है और दूसरी तरफ गरीब देश है। जिनमें विपन्नता है। आरै नागरिक नाम मात्र को भी नहीं है। अमेरिका जैसे धनाढ्य देश में आधी रात को आदमी सिर ऊँचा उठा के चहलकदमी कर सकता है उसकी पूरी Safty है। दूसरी ओर स्वतंत्रता से अपने दैनिक काम-काज चला पाना नागरिकों के लिए दूभर हो जाता है। कब, किस समय गाज गिर पड़े, इसकी कोर्इ Safty नहीं।
- यह सही है कि नर्इ सूचना और संचार तकनीकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा लोगों को Single सूत्र में बांध दिया है पर इसका Single यह भी परिणाम निकलता है कि दुनिया के कुछ लोग अपने आप को पृथक समझते हैं। इस विभाजन के कारण भी वैश्वीकरण का विरोध होने लगा है।
- वैश्वीकरण के दौरान यह स्थिति है कि धनाढ्य देश ज्ञान पर अपना नियंत्रण रखने लगे हैं। इसके परिणामस्वReseller गरीब देश हाशिये पर आ गये हैं। वे अपने आपको अWindows Hosting समझने लगे हैं। उदाहरण के लिए थाइलैण्ड जैसे देश में अफ्रीका की तुलना में अधिक सेल्यूलर फोन हैं। दक्षिण एशिया जहां दुनिया के 23 प्रतिशत लोग रहते हैं, Single प्रतिशत से कम लोगों के पास टेलीफोन हैं।
- लगभग 80 प्रतिशत वेबसाइट में अंग्रेजी भाषा चलती है, जबकि बोलने वालों में दस व्यक्तियों में Single व्यक्ति हैं।
- वैश्वीकरण ने तकनीकी तंत्र को जो सुविधाएं पद्र ान की है। उनके प्रयोगों ने दुनिया को दो भागों में बांट दिया है। रिपोर्ट कहती है:- वैश्वीकरण ने दो समान्तर दुनियाएं खड़ी कर दी हैं। Single दुनिया वह है जिसके पास आय है, शिक्षा और शैक्षिक संपर्क है, उसके लिए सूचना प्राप्त करना सरल और सुविधाजनक है और दूसरी ओर दूसरी दुनिया वह है जो अनिश्चित है, धीमी है और जिसके लिए सूचना तक पहंचु ना महंगा है। जब ये दोनों दुनियाएं साथ-साथ रहती हैं और प्रतियोगताएं करती हैं तो निश्चित Reseller से गरीबों की दुनिया पिछड़ जाती हैं।
- Human विकास रिपोर्ट ने अपने उपसंहार में Single पते की टिप्पणी की है। यह कहानी है कि वैश्वीकरण में समय सिकुड़ गया है, स्थान सिकुड़ गया है। राष्ट्रीय सीमाएं ओझल हो रही हैं, लेकिन यब सब किसके लिए? इसका उत्तर बहुत स्पष्ट हैं वैश्वीकरण के लाभ और बहतु अधिक लाभ धनवान देशों And धनवान लोगों की झोली में गये हैं। आम देश और आम आदमी तो ठगे-ठगे और बिखरे-बिखरे दिखार्इ देते हैं।