Human विकास की अवधारणा, उद्देश्य And महत्व
प्रसिद्ध Meansशास्त्री महबूब उल हक, जिनके निर्देशन में First Human विकास सूचकांक का निर्माण Reseller गया था, के According, ‘‘Human विकास में All Humanीय विकल्पों का विस्तार आ जाता है। ये विकल्प चाहे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक हों।’’ यह कभी-कभी कहा जाता है कि आय में वृद्धि से अन्य All विकल्पों का विस्तार होता है, किन्तु यह सत्य नहीं है। Human के सामने अनेक विकल्प हैं, जो आर्थिक कल्याण से कहीं आगे जाते हैं। ज्ञान, स्वास्थ्य, स्वच्छ भौतिक पर्यावरण, राजनीतिक स्वतंत्रता और जीवन के सरल आनन्द आय पर निर्भर नहीं है।
अत: संकुचित Meansों में Human विकास का Means है, Human की शिक्षा तथा प्रशिक्षण पर व्यय करना जबकि विस्तृत Means में, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा समस्त सेवाओं पर किये जाने वाले व्यय से लगाया जाता है।
Human विकास उद्देश्य
- सामाजिक नीति, कार्यक्रम व सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए Single Singleीकृत उपागम को अपनाना व क्रियान्वित करना,
- Human विकास व सामाजिक विकास में उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्तर की क्षमताओं का निर्माण करना,
- Human विकास से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के नेटवर्क व साझेदारियों को विकसित करना व सशक्त बनाना,
- सामाजिक व Human विकास से संबंधित कार्यक्रमों व सेवाओं को बेहतर बनाना व उनमें सामन्जस्य स्थापित करना,
- बेहतर Human-विकास के लिए ज्ञान व उपागमों को सुदृढ़ बनाना,
- प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च स्तर पर शिक्षा की उपयुक्त व्यवस्था करना,
- प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देना तथा उसकी समुचित व्यवस्था करना,
- कार्य-प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, तथा
- ऐसी स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करना जो लोगों की जीवन-प्रत्याशा, शक्ति, उत्साह तथा कार्यक्षमता में वृद्धि कर सकें।
Human विकास का महत्व
किसी देश का आर्थिक विकास उस देश में उपलब्ध Human पूँजी के स्टॉक तथा संचय की दर पर निर्भर करता है। विकासशील देशों में नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया में Human के विकास पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता। यही कारण है कि इन देशों में विकास के वांछित लक्ष्य नहीं प्राप्त हो पाते है तथा वहाँ विकास की दर निम्न रहती है। आज अधिकांश विकासवादी Meansशास्त्री इस बात के पक्षधर है कि Human-पूँजी में अधिक से अधिक विनियोग Reseller जाना चाहिए ताकि आर्थिक विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक Human संसाधन का समुचित विकास Reseller जा सके।
किसी भी देश की जनसंख्या का जितना अधिक हिस्सा शिक्षित, कुशल And प्रशिक्षित, होकर रोजगार में लगा हुआ है, वह देश उतना ही तेजी से विकास करेगा। आर्थिक विकास की दृष्टि से भौतिक पूँजी की अपेक्षा Human पूँजी को कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है क्योंकि Humanीय साधनों की कुशलता And दक्षता पर ही आर्थिक विकास का ढांचा खड़ा Reseller जा सकता है। प्रसिद्ध Meansशास्त्री मार्शल का भी विचार था कि ‘‘सबसे मूल्यवान पूँजी वह है जो Human-मात्र में विनियोजित की जाये।’’
पॉल स्ट्रीटन के According-
- Human विकास ऊँची उत्पादकता का साधन है। भली प्रकार से पोषित, स्वस्थ, शिक्षित, कुशल और सतर्क श्रम शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्पादक परिसंपत्ति है। अत: पोषण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा में निवेश उत्पादकता के आधार पर उचित है।
- यह Human पुनरूत्पादन को धीमा करके परिवार के आकार को छोटा करने में सहायता पहुँचाता है। यह All विकसित देशों का अनुभव है कि शिक्षा के स्तर में सुधार, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता और बाल मृत्यु दर में कमी से जन्म दर में गिरावट आती है। शिक्षा में सुधार से लोगों में छोटे परिवार के प्रति चेतना पैदा होती है और स्वास्थ्य में सुधार व बाल मृत्यु दर में कमी से लोग ज्यादा बच्चों की जरूरत महसूस नहीं करते।
- भौतिक पर्यावरण की दृष्टि से भी Human विकास अच्छा है। गरीबी में वनों के विनाश, रेगिस्तान के विस्तार और क्षरण में कमी आती है।
- गरीबी में कमी से Single स्वस्थ समाज के गठन, लोकतंत्र के निर्माण और सामाजिक स्थिरता में सहायता मिलती है।
- Human विकास से सामाजिक उपद्रवों को कम करने में सहायता मिलती है और इससे राजनीतिक स्थिरता बढ़ती हैं।
Human विकास के सूचक
Human विकास Single वृहद् अवधारणा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक तत्व आते हैं। किन्तु UNDP ने Human विकास के मुख्यत: तीन सूचक बतायें हैं –
- जीवन प्रत्याशा Meansात् Single विस्तृत और स्वस्थ जीवन। जिस देश के नागरिकों की औसत आयु जितनी अधिक होगी वह देश उतना ही अधिक विकसित समझा जायेगा।
- ज्ञान Meansात् Single देश में विभिन्न शिक्षण संस्थानों में नामांकन कराने वाले लोगों की संख्या। किसी देश में बालिग साक्षरता दर और समग्र प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च नामांकन के अनुपात के द्वारा इसको मापा जाता है।
- आर्थिक विकास Meansात् प्रति व्यक्ति आय। लोगों का आर्थिक विकास Human विकास का Single अन्य सूचक है जो लोगों का अच्छा जीवन स्तर दर्शाता है। Single देश में लोगों की प्रति व्यक्ति आय जितनी अधिक होगी उस देश में Human-विकास उतना ही अधिक होगा।
Human विकास के सिद्धान्त
1. सिगमण्ड फ्रायड : व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
फ्रायड ने करीब 40 साल के अपने नैदानिक अनुभवों के बाद व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller। इस सिद्धान्त की व्याख्या निम्नांकित तीन मुख्य भागों में बांट कर की जाती है :-
- व्यक्तित्व की संCreation।
- व्यक्तित्व की गतिकी।
- व्यक्तित्व का विकास।
- व्यक्तित्व की संCreation- फ्रायड ने व्यक्तित्व की संCreation का वर्णन करने के लिए निम्नांकित दो प्राResellerों का निर्माण Reseller है-
- आकारात्मक प्राReseller- मन के आकारात्मक पाReseller से तात्पर्य पहलू से होता है जहाँ संघर्षमय परिस्थिति की गत्यात्मकता उत्पन्न होती है। फ्रायड ने इसे तीन स्तरों में बांटा है- चेतन, अर्द्धचेतन, तथा अचेतन।
- गत्यात्मक या संCreationत्मक प्राReseller- इससे तात्पर्य उन साधनों से होता है जिनके द्वारा मूल प्रवृत्तियों से उत्पन्न मानसिक संघषोंर् का समाधान होता है। ऐसे साधन या प्रतिनिधि तीन है :-
- उपाहं- यह व्यक्तित्व का जैविक तत्व है जिनमें प्रवृत्तियों की भरमार होती है जो जन्मजात होती है तथा जो असंगठित, कामकु , आक्रामकतापूर्ण तथा नियम आदि को मानने वाली नहीं होती है। उपाहं की प्रवृत्तियां ‘‘आनन्द सिद्धान्त’’ द्वारा निर्धरित होती हैं।
- अहं- अहं मन का वह हिस्सा है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है तथा जो बचपन में उपाहं की प्रवृत्तियों से ही जन्म लेता है। अहं वास्तविकता सिद्धान्त द्वारा नियंत्रित होता है तथा वातावरण की वास्तविकता के साथ इसका संबंध सीधा होता है।
- पराहं- पराहं को व्यक्तित्व की नैतिक शाखा में माना गया है जो वयक्ति को यह बतलाता है कि कानै कार्य अनैि तक है यह आदर्शवादी सिद्धान्त द्वारा निदेर् िशत And नियंत्रित होता है।
- व्यक्तित्व की गतिकी– फ्रायड के According Human जीव Single जटिल तंत्र है जिसमें शारीरिक ऊर्जा तथा मानसिक ऊर्जा दोनों ही होते हैं। शारीरिक ऊर्जा से व्यक्ति शारीरिक क्रियायें जैसे- दौड़ना, साँस लेना, लिखना आदि क्रियायें करता है तथा मानसिक ऊर्जा से व्यक्ति मानसिक कार्य जैसे-स्मरण, प्रत्यक्ष चिन्तन आदि करता है। फ्रायड के According इन दोनों तरह की ऊर्जाओं का स्पर्श बिन्दू उपाहं होता है। फ्रायड ने इन ऊर्जाओं से सम्बन्धित कुछ ऐसे संप्रत्यय का विकास Reseller है जिनसे व्यक्तित्व के गत्यात्मक पहलुओं जैसे- मूलप्रवृत्ति, चिन्ता तथा मनोCreationओं का वर्णन होता है।
- व्यक्तित्व का विकास- फ्रायड ने व्यक्तित्व के विकास की व्याख्या दो दृष्टिकोण से की है। पहला दृष्टिकोण इस बात पर बल डालता है कि वयस्क व्यक्तित्व बाल्यावस्था के भिन्न-2 तरह की अनुभूतियों द्वारा नियंत्रित होती है तथा Second दृष्टिकोण के According जन्म के समय लैंगिक ऊर्जा बच्चों में मौजूद होती है जो विभिन्न मनोलैंगिक अवस्थाओं से होकर विकसित होती है। फ्रायड के इस Second दृष्टिकोण को मनोलैंगिक विकास का सिद्धान्त कहा जाता है। इस सिद्धान्त की 5 अवस्थाएं क्रम में निम्नांकित हैं:-
- मुखावस्था
- गुदावस्था
- लिंग प्रधानावस्था
- अव्यक्तावस्था
- जननेन्द्रियावस्था
मनोलैंगिक अवस्थाओं से होकर व्यक्ति की लंैि गक ऊर्जा का धीरे-धीरे विकास होता जाता है जिससे व्यक्ति बाल्यावस्था के निष्क्रियता को त्याग कर वयस्कावस्था में सामाजिक Reseller से उपयोगी And सुखमय जीवन जीता है।
2. एडलर का वैयक्तिक मनोविज्ञान का सिद्धान्त
एडलर का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति मुख्य Reseller से Single सामाजिक न कि जैविक प्राणी होता है। व्यक्तित्व का निर्धारण वैयक्तिक सामाजिक वातावरण तथा उनक अन्त: क्रियाओं द्वारा न कि जैविक Needओं द्वारा निर्धारित होता है। यौन को एडलर ने व्यक्तित्व निर्धारिण का उतना महत्वपूर्ण कारक नहीं माना जितना कि फ्रायड ने माना था।
एडलर के सिद्धान्त का का Single महत्वपूर्ण पूर्वकल्पना यह है कि All मनोवैज्ञानिक घटनाएँ व्यक्ति के भीतर आत्म-संगत ढंग से Singleीकृत होती है। इस पूर्वकल्पना के तहत उनके सिद्धान्त में व्यक्तित्व के मौलिक Singleता पर पर्याप्त बल डाला गया है। इसी तरह से विभिन्नताएं And विषमता Single आत्म-संगत संपूर्णता में संगठित हो जाती हैं। एडलर ने अपने सिद्धान्त में यह बतलाया कि मन तथा शरीर, चेतन तथा अचेतन And तर्क तथा संवेग में कोर्इ स्पष्ट अतंर करना संभव नहीं हैं।
एडलर का मत था कि व्यक्ति का व्यवहार व्यक्तिगत अनुभूतियों द्वारा नहीं बल्कि कल्पना या भविष्य प्रत्याशाओं द्वारा पे्ररित होता है।
एडलर के सिद्धान्त में जीवन शैली को Single महत्वपूर्ण भाग माना गया है। जीवन शैली में सिर्फ व्यक्ति का जीवन लक्ष्य ही नहीं बल्कि उसक आत्म-संप्रत्यय, दूसरों के प्रति भाव तथा पर्यावरण के अन्य वस्तुओं के प्रति मनोवृत्ति आदि भी सम्मिलित होता है। व्यक्ति की जीवन शैली, पर्यावरण, आनुवांशिकता, सफलता के लक्ष्य, सामाजिक अभिरूचि तथा सृजनात्मक शक्ति आदि का प्रतिफल होता है। जीवन शैली को Single प्रमुख नियंत्रण बल एडलर ने माना है।
3. सुल्लीवान का व्यक्तित्व सिद्धान्त
सुल्लीवान का मत था कि व्यक्ति जन्म से ही वातावरण के विभिन्न वस्तुओं And व्यक्तियों के साथ अन्त: क्रिया करता है और उस अन्त:क्रिया से उसके व्यवहार का निर्धारण होता है । व्यक्ति का विकास इन्ही अन्तर वैयक्तिक व्यवहार के संदर्भ में होता है।
इनके According Human Single ऐसा ऊर्जा तंत्र है जो Needओं द्वारा उत्पन्न तनावों को हमेशा कम करने की कोशिश करता है। उन्होंने तनाव को दो भागों में बांटा है। Needओं द्वारा उत्पन्न तनाव तथा चिन्ता द्वारा उत्पन्न तनाव जब व्यक्ति अपनी Needओं को संतुष्ट नहीं कर पाता है जो उससे Single विशेष अवस्था उत्पन्न होती है, जिससे भावशून्यता विकसित होती है। सुल्लीवान ने व्यक्तित्व विकास की Seven अवस्थाओं का वर्णन Reseller है।
इनका मत है कि व्यक्तित्व में परिवर्तन विकास के किसी भी अवस्था में हो सकता है, परन्तु ऐसे परिवर्तन Single अवस्था से दूसरी अवस्था के अंतरण में सर्वाधिक होता है। Single बच्चा दूसरों का किस तरह से प्रत्यक्षण करता है और वह दूसरों के प्रति किस तरह की प्रतिक्रिया करता है, पर व्यक्तित्व का विकास निर्भर करता है जो व्यक्तित्व विकास के विभिन्न अवस्थाओं को Single सूत्र में बांधता है। उनके द्वारा बतलाये गए व्यक्तित्व का विकास की Seven अवस्थाएं निम्नांकित है –
- शैशवास्था
- बाल्यावस्था
- तरूणावस्था
- प्राक् किशोरावस्था
- आरम्भिक किशोरावस्था
- उत्तर किशोरावस्था
- परिपक्वता
सुल्लीवान ने व्यक्तित्व विकास में सामाजिक And सांस्कृतिक कारकों पर बल डाल कर यह स्पष्ट कर दिया कि ये कारक व्यक्तित्व के Single प्रमख्ु ा निर्धारक है। सुल्लीवान First ऐसे नव-फ्र्रायडवादी है जिन्होंने व्यक्तित्व के विकास की व्याख्या में जन्म से लेकर परिपक्वता तक की अवधि का Single चरणबद्ध वर्णन Reseller है ।
4. इरिक इरिक्सन :- व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धान्त
इरिक्सन के सिद्धान्त का केन्द्रीय बिन्दु यह है कि Human का विकास कर्इ पूवर् िनश्चित अवस्थाएं जो सर्वजनीन होती है से होकर होता है । जिस प्रक्रिया द्वारा वे अवस्थाएं विकसित होती है। वह विशेष नियम द्वारा नियंत्रित होती है। इस नियम को पश्चजात नियम कहा जाता है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘चाइल्डहुड एण्ड सोसाइटी’ में इरिक्सन ने मनोसामाजिक अहं विकास के आठ अवस्थाएं बतलायी हैं, और पश्चजात् नियम के According विकास की प्रत्येक अवस्था होने का Single आदर्श समय होता है और प्रत्येक अवस्था Single क्रम में Single के बाद Single आती है और उनमें व्यक्तित्व का विकास जैविक परिपक्वता तथा सामाजिक And ऐतिहासिक बलों के अन्त: क्रिया के फलस्वReseller होता है । इनके सिद्धान्त को निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
- प्रत्येक मनोसामाजिक अवस्था में Single संक्रान्ति होता है। संक्रान्ति से तात्पर्य व्यक्ति के जीवनकाल के Single ऐसा परिवर्तन बिंदु से होता है जो उस अवस्था में जैविक परिपक्वता तथा सामाजिक मांग दोनों के अन्त: क्रिया के फलस्वReseller व्यक्ति में उत्पन्न होता है।
- प्रत्येक मनोसामाजिक संक्रान्ति में धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों ही तत्व होते हैं। प्रत्येक अवस्था में उसके जैविक परिपक्वता तथा नये-नये सामाजिक मांग के कारण संघर्ष का होना इरिक्सन अवश्यभावी मानते है। यदि इस संघर्ष को व्यक्ति संतोषजनक ढंग से समाधान कर लेता है तो इससे उसके विकसित अहं मे ऋणात्मक तत्व अवशोषित हो जाते है और व्यक्तित्व विकास अवरूद्ध होने की संभावना कम हो जाती है।
- मनोसामाजिक विकास की प्रत्येक अवस्था में संक्रान्ति का समाधान कर लेने पर व्यक्ति में Single विशेष मनोसामाजिक शक्ति की उत्पत्ति होती है जिसे इरिक्सन ने ‘सदाचार’ की संज्ञा दी है।
- प्रत्येक मनोसामाजिक अवस्था का निर्माण उससे First की अवस्था में हुए विकासों से संबंधित होता है।
- इरिक्सन द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धान्त में मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थाओं के नाम इस प्रकार है :-
- शैशवास्था: विश्वास बनाम अविश्वास
- प्रारंभिक बाल्यावस्था: स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता
- खेल अवस्था: पहल शक्ति बनाम दोशिता
- स्कूल अवस्था: परिश्रम बनाम हीनता
- किशोरावस्था: अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्राति
- तरूण वयस्कावस्था: घनिष्ठ बनाम विलगन
- मध्य वयस्कावस्था: जननात्मकता बनाम स्थिरता
- परिपक्वता: अहं सम्पूर्ण बनाम निराशा
5. कर्ट लेविन: व्यक्तित्व का क्षेत्र सिद्धान्त
इस सिद्धान्त की Single सामान्य पूर्वकल्पना यह है कि प्राणी का व्यवहार उन All कारकों द्वारा प्रभावित होता है जो उसके क्षेत्र या वातावरण में उपस्थित होते हैं। लेविन ने व्यक्ति सिद्धान्त को निम्नांकित तीन प्रमुख भागों में समझा जा सकता है-
- व्यक्तित्व की संCreation
- व्यक्तित्व की गतिकी
- व्यक्तित्व का विकास
(1) व्यक्तित्व की संCreation- लेविन ने व्यक्तित्व की संCreation की व्याख्या करने के लिए गणित के Single विशेष शाखा जिसे संस्थिति विज्ञान जाता है, का सहारा लिया। इस आधार पर उन्होंने व्यक्तित्व की संCreation को निम्नांकित चार भागों में बांटा :-
- व्यक्ति
- मनोवैज्ञानिक वातावरण
- जीवन समष्टि
- वास्तविकता के स्तर
(2) व्यक्तित्व की गतिकी- लेविन ने कुछ गत्यामक संप्रत्ययों का प्रतिपादन Reseller है जिनसे यह स्पष्ट Reseller से पता चलता है कि किसी भी दी गयी परिस्थिति में व्यक्ति किस तरह का व्यवहार करता है। ऐसे गत्यात्मक संप्रत्ययों में निम्नांकित प्रमुख है :-
- ऊर्जा
- तनाव
- Need
- कर्षण शक्ति
- सदिश ।
(3) व्यक्तित्व का विकास- लेविन ने व्यक्तित्व के विकास की व्याख्या करने के लिए निम्नांकित दो तरह के प्रत्ययों को महत्वपूर्ण बतलाया है :-
- व्यवहारात्मक परिवर्तन- लेविन के According जैसे-जैसे व्यक्ति का विकास होते जाता है Meansात् उसकी आयु में वृद्धि हो जाती है, उसमें तरह-तरह के व्यवहारिक परिवर्तन होते जाते हैं। शिशुओं के व्यवहार में पूरे शरीर में Single विसरित क्रिया होती हैं जिसे उन्होंने साधारण अन्तर निर्भरता कहा है।
- विभेदीकरण And Singleीकरण- लेविन ने विभेदीकरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि इससे तात्पर्य संपूर्ण व्यक्ति के स्वतंत्र हिस्सों या भागों में वृद्धि से होता है। परंतु व्यक्तित्व का विकास सिर्फ विभेदीकरण की प्रक्रिया से अपने आप में ही अधूरा ही रह जाता है क्योंकि इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि उम्र बीतने के साथ व्यक्ति का व्यवहार क्यों अधिक संगठित And समन्वित होता चला जाता है। इस पक्ष की व्याख्या करने के लिए उन्होंने Singleीकरण के संप्रत्यय का प्रतिपादन Reseller। इसके माध्यम से लेविन यह व्याख्या कर सकने में समर्थ हो पाये है कि व्यक्ति तथा मनोवैज्ञानिक पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्र Single पदानुक्रम ढंग से संगठित होकर करता है। इस तरह के संगठन का स्पष्ट अभाव हमें शिशुओं के व्यवहार में मिलता है परन्तु व्यस्कों में इस तरह का अभाव Singleीकरण की प्रक्रिया क संपन्न हो जाने से नहीं मिलता है।
6. एब्राहम मैसलो : व्यक्तित्व का Humanतावादी सिद्धान्त
मैसलो ने अपने सिद्धान्त में प्राणी के अनूठापन का उसके मूल्यों के महत्व पर तथा व्यक्तिगत वर्धन तथा आत्म-निर्देश की क्षमता पर सर्वाधिक बल डाला है। इस बल के कारण ही उनका मानना है कि संपूर्ण प्राणी का विकास उसके भीतर से संगठित ढंग से होता है। इन आन्तरिक कारकों की तुलना में वाºय कारणों जैसे आनुवांशिकता तथा गत अनुभूतियों का महत्व नगण्य होता है। अधिक बल दिये जाने के कारण उनके सिद्धान्त को व्यक्तित्व का सम्पूर्ण-गत्यात्मक सिद्धान्त भी कहा गया है। मैसलो के सिद्धान्त को निम्नांकित दो मुख्य भागों में प्रस्तुत Reseller जा सकता है :-
- व्यक्तित्व And अभिप्रेरण का पदानुक्रमिक मॉडल- इनका विश्वास था कि अधिकांश Human व्यवहार की व्याख्या कोर्इ न कोर्इ व्यक्तिगत लक्ष्य पर पहंचु ने की पव्र ृत्ति से निदेर् िशत होता है Human अभिप्रेरक जन्मजात होते है और उन्हें प्राथमिकता या शक्ति के आरोही पदानुक्रम सुव्यवस्थित Reseller जा सकता है। ऐसे अभिपेर्र कों को पा्र थमिकता या शक्ति के आरोही क्रम में इस प्रकार बतलाया गया है।
- शारीरिक या दैहिक Need
- Safty की Need
- संबद्धता And Need
- सम्मान की Need
- आत्म-सिद्धि की Need
- स्वस्थ व्यक्तित्व – आत्मसिद्ध व्यक्ति का विकास मैसलो के सिद्धान्त की Single प्रमुख विशेषता यह है कि यह सिद्धान्त मानसिक Reseller् से स्वस्थ व्यक्तियों के अध्ययन पर आधारित है। मैसलो ने इन व्यक्तियों की पहचान करने के लिए कुछ विशेषताओं का वर्णन भी Reseller है। मैसलो ने अपने व्यक्तित्व सिद्धान्त में यह भी बतलाया है कि व्यक्ति में आत्म-सिद्ध को किस तरह से प्रोत्साहित Reseller जा सकता है। इन्होंने आत्म सिद्ध को बढ़ाने या प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल को सबसे उत्तम स्थान बतलाया है और कहा है कि छात्रों को अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में रूचियुक्त व्यवसाय की खोज करने तथा उत्तम मूल्यों का समझने के लिए किये गए प्रयासों से आत्म-सिद्ध का विकास होता है।
7. बी.एफ. स्कीन्नर व्यक्तित्व का व्यवहारात्मक सीख का सिद्धान्त
स्कीन्नर के लिए Human व्यक्तित्व, उद्दीपकों के प्रति सीखे गए अनुक्रियाओं का Single संग्रहण And स्पष्ट व्यवहारों या आदत तंत्रों का Single समुच्चय है। इसलिए व्यक्तित्व से स्कीन्नर का तात्पर्य सिर्फ उन व्यवहारों से होता है, जिसे वस्तुनिष्ठ Reseller से पेक्ष््र ाण Reseller जाए या जिसमें आसानी से हेर-फेर Reseller जा सके।
स्कीन्नर का सिद्धान्त कुछ सिद्धान्तों जैसे मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त, संज्ञानात्मक सिद्धान्त तथा Humanतावादी सिद्धान्त का विरोधी है। स्कीन्नर ने व्यक्तित्व की व्याख्या करने में आतंरिक प्रक्रियाओं जैसे-प्रणोद, अभिपेर्र कों तथा अचेतन आदि के महत्व को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इनका पेक्ष््र ाण नहीं Reseller जा सकता है।
स्कीन्नर ने Human जीव को Single रिक्त जीव कहा है। रिक्त जीव कहने का उद्देश्य Human व्यवहार की उत्पत्ति में आतंरिक प्रक्रियाओं की भूमिकाओं पर कटाक्ष करना तथा इस बात पर बल डालना था कि Human जीव के भीतर कुछ भी ऐसा नहीं होता है जो वैज्ञानिक ढंग से व्यक्ति के व्यवहारों की व्याख्या कर सके। इनके सिद्धान्त की Single विशेषता यह भी है कि इन्होंने अपना अध्ययन सामान्य, असामान्य या असाधारण व्यक्तियों पर न करके पशुओं पर विशेषकर चूहों And कबूतरों पर Reseller और कहा कि चूंकि उनके सिद्धान्त का संबंध All तरह के व्यवहारों से है अत: इन पशुओं के व्यवहार का अध्ययन करके Human के व्यवहारों को भी आसानी से समझा जा सकता है। स्कीन्नर के व्यक्तित्व सिद्धान्त Human प्रकृति के कुछ खास पहलुओं जैसे-निर्धार्यता, अधिभूतवाद, पर्यावरणीयता, परिवर्तनशीलता वस्तुनिष्ठता प्रतिक्रियाशीलता तथा ज्ञेयता पर अधिक बल डालता है तथा अन्य पहलुओं जैसे विवेकपूर्ण तथा समस्थिति विषमस्थिति को पूर्णResellerेण अस्वीकृत Reseller है क्योंकि स्कीन्नर ने Human व्यवहार के आतंरिक स्रोतों पर बल नहीं दिया है ।
इनके According व्यक्तित्व का अध्ययन व्यक्ति के जननिक प्रष्ठभूमि तथा विशिष्ट शिक्षण History का क्रमबद्ध And परिशुद्ध मूल्यांकन के आधार पर संभव है।
8. अल्बर्ट बाण्डुरा- सामाजिक संज्ञानात्मक का सिद्धान्त
स्टैण्डफोर्ट के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बाण्डुरा अपने सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त जिस औपचारिक Reseller से सामाजिक सीख का सिद्धान्त कहा जाता है, में दावा करते हैं कि Human Single ज्ञानात्मक जीव है जिसकी सक्रिय सूचनात्मक प्रक्रिया उसके सीखने, व्यवहार तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाण्डरु ा कहते है कि मनुष्य के सीखाने की प्रक्रिया चूहे के सीखने की प्रक्रिया से बहुत भिन्न होती है। क्योंकि मनुष्य में चूहें की तुलना में कही अधिक ज्ञानात्मक क्षमताएं होती है। सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त Single सीख संबंधी सिद्धान्त है जो इस धारणा पर आधारित है कि मनुष्य दूसरों को देखकर सीखता है तथा मनुष्य की वैचारिक प्रक्रिया व्यक्तित्व की समझ पर केन्द्रित है। यह सिद्धान्त व्यक्ति की नैतिक क्षमता वे नैतिक प्रदर्शन के मध्य अंतर पर जोर देता है।
‘मनुष्य दूसरों को देखकर सीखता है’ इस बात को अच्छी तरह समझाने के लिए बाण्डुरा ने Single प्रयोग Reseller जिसे ‘बोबो गुड़िया का व्यवहार: आक्रामकता का Single अध्ययन कहा जाता है। इस प्रयोगों में बाण्डुरा ने बच्चों के समूह को Single वीडियों दिखाया जिसमें उग्र व हिंसक क्रियाएं थी इस प्रयोग के माध्यम से बाण्डुरा ने निष्कर्ष निकाला कि जिन बच्चों ने वह हिंसक वीडियों देखा था उन्हें गुडियायें अधिक आक्रामक व हिसंक प्रतीत होती थीं बजाय उन बच्चों के जिन्होंने वह वीडियों नहीं देखा था। यह प्रयोग सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त को स्पष्ट करता है क्योंकि यह बताता है कि किस प्रकार मनुष्य मीडिया में देखी गर्इ घटनाओं के प्रत्युत्तर में व्यवहार करता है। इस प्रयोग के संबंध में बच्चों ने हिंसा के प्रकार के प्रत्युत्तर में व्यवहार Reseller जिसे उन्होंने सीधे वीडियो देखकर सीखा था। बैण्डुरा द्वारा प्रतिपादित सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त निम्नांकित दो मुख्य प्रस्तावनाओं पर आधारित हैं :-
- अधिकतर Human व्यवहार अर्जित होते है, Meansात व्यक्ति उन्हें अपने जीवन-काल में सीखता है।
- Human व्यवहार के सम्पोषण And विकास की व्याख्या करने के लिए सीखने का नियम पर्याप्त हैं।
बैण्डुरा के सिद्धान्त को औपचारिक Reseller से सामाजिक-सीख का सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त में Human स्वभाव के कुछ खास-खास पूर्वकल्पनाओं जैसे-विवेकपूर्णता, पर्यावरणीयता परिवर्तनशीलता तथा ज्ञेयता आदि पर अधिक बल डाला गया हैं बैण्डुरा का मत है कि व्यक्ति दूसरों के व्यवहारों का पेक्ष््र ाण करके तथा उसे दोहराकर वैसा ही व्यवहार करना सीख लेता है। इस संबंध मेंं बैण्डुरा रॉंस तथा राँस ने Single लेाकप्रिय प्रयोग Reseller है। इस प्रयोग में स्कूल के बच्चों को वयस्क द्वारा तीन से चार फीट की Single गुड़िया जिसे बोबो गुड़िया का नाम दिया गया था, को उछालते हुए मारते हुए And उसके प्रति आक्रामकता करते हुए दिखलाया गया। जब इन बच्चों को उसी गुड़िया के साथ अकेला छोड़ दिया गया तो देखा गया कि उनके द्वारा भी वैसा ही आक्रामक व्यवहार उस गुड़िया के प्रति दिखलाया गया। बाद के प्रयोगों में जब बच्चों के टेलीविजन पर ऐसे ही आक्रामक दृश्य दिखलाये गए तो उनका व्यवहार उन बच्चों की तुलना में अधिक आक्रामक हो गए जिन्हें ऐसे दृश्य टेलीविजन पर नहीं दिखलायें गए थे।
बैण्डुरा के सिद्धान्त में अन्योन्यनिर्धार्यता का संप्रत्यय Single काफी महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। इसके माध्यम से बैण्डुरा यह स्पष्ट करना चाहते थे कि Human व्यवहार संज्ञानात्मक, व्यवहारात्मक तथा पर्यावरणी निर्धारकों के बीच सतत अन्योन्य अन्त: क्रिया का Single प्रतिफल होता है। इस तरह क अन्योन्य अन्त: क्रिया की प्रक्रिया को बैण्डुरा ने अन्योन्य निर्धार्यता की संज्ञा दी है।
Human विकास की अवस्थाएं
समाज वैज्ञानिकों Human विकास की अवस्थाओं को गर्भधारण से लेकर पूरे जीवनकाल को निम्नांकित 10 भागों में विभाजित Reseller है।
- पूर्वप्रसूतिकाल – यह अवस्था गर्भधारण से प्रारम्भ होकर जन्म तक की होती है।
- शैशवावस्था –यह अवस्था जन्म से First 10-14 दिनों तक की है।
- बचपनावस्था – यह अवस्था जन्म के दो सप्ताह से प्रारंभ होकर दो साल तक की होती है।
- बाल्यावस्था – यह अवस्था 2 साल से प्रारम्भ होकर 10 या 12 साल तक की होती है। बालिकाओं में 10 वर्ष तक तथा बालकों में यह 12 वर्ष तक होती है। इसे मनोवैज्ञानिकों ने निम्नांकित दो भागों में बांटा है –
- प्रारंभिक बाल्यावस्था : यह अवस्था 2 साल से प्रारंभ होकर साल तक की होती है।
- उत्तर बाल्यावस्था : यह अवस्था 6 वर्ष से प्रारंभ होकर बालिकाओं में 10 वर्ष की उम्र तक तथा बालकों में 6 वर्ष से प्रारंभ होकर 12 वर्ष की उम्र तक होती है। इस अवस्था से बालक-बालिकाओं में यौन परिपक्वता आ जाती है ।
Human विकास : नीतियाँ व कार्यक्रम
Human विकास की अवधारणा Humanीय विकास से संबंधित है जिसका मुख्य उद्देश्य किसी भी राष्ट्र से जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक पक्षों को प्रभावित करना है। चूँकि Humanीय विकास Single बृहद् अवधारणा है अत: इसके अंतर्गत समाज के विभिन्न वर्गों व उनसे संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए नीतियों एवे कार्यक्रमों का निर्माण Reseller जाता है।