अनुवाद की महत्ता And Need
बीसवीं शताब्दी के अवसान और इक्कीसवीं सदी के स्वागत के बीच आज जीवन का कोर्इ भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ पर हम चिन्तन और व्यवहार के स्तर पर अनुवाद के आग्रही न हों। भारत में अनुवाद की परम्परा पुरानी है किन्तु अनुवाद को जो महत्त्व 21वीं सदी के उत्तरार्द्ध में प्राप्त हुआ वह First नहीं हुआ था। सन् 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद देश की आर्थिक And राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन आया। विश्व के अन्य देशों के साथ भारत के आर्थिक And राजनीतिक समीकरण बदले। राजनैतिक और आर्थिक कारणों के साथ विज्ञान And प्रोद्यौगिकी का विकास भी इस युग की प्रमुख घटना है जिसके फलस्वReseller विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों में सम्पर्क की स्थिति उभर कर सामने आयी। आज विश्व के अधिकांश बड़े देशों में Single प्रमुख भाषा के साथ-साथ अन्य कर्इ भाषाएँ भी गौण भाषा के Reseller में समान्तर चल रही हैं। अतएव Single ही भौगोलिक सीमा की राजनैतिक, प्रशासनिक इकार्इ के अन्तर्गत भाषायी बहुसंख्यक भी रहते हैं और भाषायी अल्पसंख्यक भी। अत: विभिन्न भाषाभाषियों के बीच उन्हीं की अपनी भाषा में सम्पर्क स्थापित कर लोकतंत्र में सबकी हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सकती है। वस्तुत: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा विज्ञान And प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बढ़ती हुर्इ आदान-प्रदान की अनिवार्यता ने अनुवाद And अनुवाद कार्य के महत्त्व को बढ़ा दिया है।
हमारे देश में अनुवाद का महत्त्व प्राचीन काल से ही स्वीकृत है। प्रो. जी. गोपीनाथन ने ठीक ही लक्ष्य Reseller था कि अनुवाद आज व्यक्ति की सामाजिक Need बन गया है। आज के सिमटते हुए संसार में सम्प्रेषण माध्यम के Reseller में अनुवाद भी अपना निश्चित योगदान दे रहा है। भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद की उपादेयता स्वयं सिद्ध है। भारत के विभिन्न प्रदेशों के साहित्य में निहित मूलभूत Singleता के स्वReseller को निखारने के लिए अनुवाद ही Single मात्र अचूक साधन है। इस तरह अनुवाद द्वारा Human की Singleता को रोकनेवाली भौगोलिक और भाषायी दीवारों को ढहाकर विश्वमैत्री को और सुदृढ़ बना सकते हैं।
21वीं सदी में अनुवाद की महत्ता
21वीं शताब्दी के मौजूदा दौर में अनुवाद Single अनिवार्य Need बन गया है। भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश के जन-समुदायों के बीच अंत:संप्रेषण के संवाहक के Reseller में अनुवाद का बहुआयामी प्रयोजन सर्वविदित है। यदि आज के इस युग को ‘अनुवाद का युग’ कहा जाए तो कोर्इ अतिशयोक्ति न होगी, क्योंकि आज जीवन के हर क्षेत्र में अनुवाद की उपादेयता को सहज ही सिद्ध Reseller जा सकता है। धर्म-दर्शन, साहित्य-शिक्षा, विज्ञान-तकनीकी, वाणिज्य व्यवसाय, राजनीति-कूटनीति, आदि All क्षेत्रों से अनुवाद का अभिन्न संबंध रहा है। अत: चिंतन और व्यवहार के प्रत्येक स्तर पर आज मनुष्य अनुवाद पर आश्रित है। इतना ही नहीं विश्व-संस्कृति के विकास में भी अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व के विभिन्न प्रदेशों की जनता के बीच अंत:संप्रेषण की प्रक्रिया के Reseller में, उनके बीच भावात्मक Singleता को कायम रखने में, देश-विदेश के नवीन ज्ञान-विज्ञान, शोध-चिंतन को दुनिया के हर कोने तक ही नहीं, आम जनता तक भी पहुँचाने में तथा दो भिन्न संस्कृतियों को नजदीक लाकर Single सूत्र में पिरोने में अनुवाद की महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। प्रो. जीगोपीनाथन के Wordों में, ‘अनुवाद Human की मूलभूत Singleता की व्यक्ति-चेतना And विश्व-चेतना के अद्वैत का प्रत्यक्ष प्रमाण है’। अत: मौजूदा शताब्दी में अनुवाद ने अपनी संकुचित साहित्यिक परिधि को लाँघकर प्रशासन, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनीकी, चिकित्सा, कला, संस्कृति, अनुसंधान, पत्रकारिता, जनसंचार, दूरस्थ शिक्षा, प्रतिरक्षा, विधि, व्यवसाय आदि हर क्षेत्र में प्रवेश कर यह साबित कर दिया है कि अनुवाद समकालीन जीवन की अनिवार्यता है।
हिन्दी अब बाजार-तंत्र की, व्यवसाय-व्यापार की, संचार-तंत्र की तथा Kingीय व्यवस्था की भाषा बन रही है। हिन्दी भाषा में और हिन्दी भाषा से अनुवाद की परम्परा अब सुदीर्घ होने के साथ-साथ पुख्ता और Historyनीय भी होती जा रही है। लोठार लुत्से की बात पर गोर करें तो हमें हिन्दी, मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू या कन्नड़ लेखकों को उनकी भाषा के नहीं, Indian Customer लेखक के Reseller में देखना चाहिए। तभी Indian Customer भाषाएँ भारत में और फिर विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगी। ओड़िआ का लेखक सारे ओड़िशा में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले तो यह कोर्इ छोटी बात नहीं होगी, लेकिन ओड़िआ का लेखक पूरे भारत में प्रतिष्ठा हासिल करे तो यह उससे भी बड़ी बात होगी और उसके लिए चुनौती भी। और जो लेखक इस चुनौती को स्वीकार कर उसमें खरे उतरते हैं, वे सचमुच बड़े, बहुत बड़े लेखक सिद्ध होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि Indian Customer भाषाओं में अनुवाद की प्रक्रिया को तेज Reseller जाए। अनुवाद के बिना हमारा कोर्इ भी लेखक यूरोप-अमेरिका तो दूर अपने ही देश में Indian Customer लेखक के Reseller में प्रतिष्ठित नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए फकीर मोहन सेनापति, प्रतिभा राय, सीताकान्त महापात्र आदि अगर हिन्दी में अनूदित न होते तो क्या Indian Customer लेखक के Reseller में इतने बड़े पैमाने पर देश और दुनिया में स्वीकार्य हो सकते थे ? निश्चय ही नहीं। अनुवाद की ताकत पाकर ही कोर्इ बड़ा लेखक और भी बड़ा सिद्ध होता और अपनी सामथ्र्य को दिग-दिगंत तक फैला पाता है। अनुवाद के बगैर वह, वह सिद्ध नहीं हो सकता, जो दरअसल वह होता है और यह काम अनुवादक ही कर सकता है। ऐसे में अनुवाद की महत्ता को जन-जन तक पहुँचाना और अनुवादकों को सम्मानजनक स्थान दिलाना जरूरी हो गया है ताकि Indian Customer साहित्य और मनीषा को दूसरों तक पहुँचा कर राष्ट्रीय सेतु का निर्माण Reseller जा सके।
अनुवाद आज के व्यावसायिक युग की अपेक्षा ही नहीं अनिवार्यता भी बन गया है। यह Single सेतु है। सांस्कृतिक सेतु। सांस्कृतिक Singleता, परस्पर आदान-प्रदान तथा ‘विश्वकुटुम्बकम्’ के स्वप्न को साकार करने की दृष्टि से अनुवाद की भूमिका Historyनीय रही है। इस प्रकार वर्तमान युग में अनुवाद की महत्ता और उपयोगिता केवाल भाषा और साहित्य तक ही सीमित नहीं है, वह हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय संहति और ऐक्य का माध्यम है जो भाषायी सीमाओं को पार करके Indian Customer चिन्तन और साहित्य की सर्जनात्मक चेतना की समResellerता के साथ-साथ, वर्तमान तकनीकी और वैज्ञानिक युग की अपेक्षाओं की पूर्तिकर हमारे ज्ञान-विज्ञान के आयामों को देश-विदेश में संपृक्त करती है। Second Wordों में, अनुवाद विश्व-संस्कृति, विश्व-बंधुत्व, Singleता और समरसता स्थापित करने का Single ऐसा सेतु है जिसके माध्यम से विश्व ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में क्षेत्रीयतावाद के संकुचित And सीमित दायरे से बाहर निकल कर Humanीय And भावात्मक Singleता के केन्द्र बिन्दु तक पहुँच सकता है और यही अनुवाद की Need और उपयोगिता का सशस्त And प्रत्यक्ष प्रमाण है।
आज जब सारा विश्व सामाजिक पुनव्र्यवस्था पर Single नये सिरे से विचार कर रहा है और व्यक्ति तथा समाज को Single नव्य स्वतंत्र दृष्टि मिली है वहीं हम भी व्यक्ति और देश को विश्व के परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में अनुवाद का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। किसी समाज और देश की अभिव्यक्ति भाषा की सीमा के कारण Single क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रह जाए और दूसरों तक न पहँुच पाए तो विश्व स्तर पर Single नव्य सामाजिक पुनव्र्यवस्था की बात सार्थक कैसे हो सकती है!
अनुवाद की Need
बीसवीं शताब्दी में देशों के बीच की दूरियाँ कम होने के परिणामस्वReseller विभिन्न वैचारिक धरातलों और आर्थिक, औद्योगिक स्तरों पर पारस्परिक भाषिक विनिमय बढ़ा है और इस विनिमय के साथ-साथ अनुवाद का प्रयोग और अधिक Reseller जाने लगा है। आज के वैज्ञानिक युग में अनुवाद बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। यदि हमें Second देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो हमें उनके यहाँ विज्ञान के क्षेत्र में, सामाजिक And सांस्कृतिक क्षेत्र में हुर्इ प्रगति की जानकारी होनी चाहिए और यह जानकारी हमें अनुवाद के माध्यम से मिलती है। विश्व की कुछ श्रेष्ठ कृतियों को अनुवाद के कारण ही सम्मान मिला। रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ को नोबेल पुरस्कार उनके द्वारा किए गए अनुवाद कार्य पर ही मिला। शेक्सपियर, बर्नाड शा, अरस्तू, माक्र्स, गोर्की आदि जैसे विश्व के महान् साहित्यकारों And दर्शनशास्त्रियों को हम अनुवाद के माध्यम से ही जानते हैं। बहुत First हमारे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘अनुवाद की Need’ पर बल देते हुए स्पष्ट कर दिया था-
‘‘सज्जनो, भगीरथ प्रयत्न फलें आपके
ले जा सकते हैं यहाँ गंगा से प्रवाह को।
आप अनुवाद की ही योजनाएँ कर दें
तो कह सकें हम सगर्व विश्व-भर के
वाड़्मय में जो है वह चुन लिया हमने
और जो हमारा अपना है, अतिरिक्त है।’’
आधुनिक युग में जैसे-जैसे स्थान और समय की दूरियाँ कम होती गर्इं वैसे-वैसे द्विभाषिकता की स्थितियों और मात्रा में वृद्धि हुर्इ और इसके साथ-साथ अनुवाद में भी। अन्य भाषा-शिक्षण में अनुवाद विधि का प्रयोग न केवल पश्चिमी देशों में वरन् पूर्वी देशों में भी निरन्तर Reseller जाता रहा है। हम यहाँ जीवन और समाज के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में अनुवाद की Need की Discussion करेंगे।
1. राष्ट्रीय Singleता में अनुवाद की Need
भारत जैसे विशाल राष्ट्र की Singleता के प्रसंग मे अनुवाद की Need असंदिग्ध है। भारत की भौगोलिक सीमाएँ न केवल कश्मीर से कन्याकुमारी तक बिखरी हुर्इ हैं बल्कि इस विशाल भूखण्ड में विभिन्न विश्वासों And सम्प्रदायों के लोग रहते हैं जिनकी भाषाएँ एंव बोलियाँ Single Second से भिन्न हैं। भारत की अनेकता में Singleता इन्हीें Meansों में है कि विभिन्न भाषाओं, विभिन्न जातियों, विभिन्न सम्प्रदायों And विभिन्न विश्वासों के देश में भावात्मक And राष्ट्रीय Singleता कहीं भी बाधित नहीं होती। Single समय में महाराष्ट्र का जो व्यक्ति सोचता है वही हिमाचल का निवासी भी चिन्तन करता है। भारत के हजारों वर्षों के अद्यतन History चिन्तन ने इस धारणा को पुष्ट Reseller है कि मध्ययुगीन भक्ति आन्दोलन से लेकर आज के प्रगतिशील आन्दोलन तक Indian Customer साहित्य की दिशा Single रही है। यह बात अनुवाद के द्वारा ही सम्भव हो सकी कि जिस समय गोस्वामी तुलसीदास राम के चरित्र पर महाकाव्य लिख रहे थे, हिन्दी के समानान्तर ओड़िआ में बलराम, बांग्ला में कृत्तिवास, तेलुगु में पोतना, तमिल में कम्बन तथा हरियाणवी में अहमदबख्श अपने-अपने साहित्य में राम के चरित्र को नया Reseller दे रहे थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में जिस साम्राज्यवाद और सामन्तवाद के विरोध की चिंगारी सुलगी थी उसका उत्कर्ष छायावादी दौर की विभिन्न Indian Customer भाषाओं की कविता में मिलता है।
2. संस्कृति के विकास में अनुवाद की Need
दुनिया के जिन देशों में विभिन्न जातियों And संस्कृतियों का मिलन हुआ है वहाँ सामासिक संस्कृति के निर्माण में अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अनुवाद की परम्परा के अध्ययन से पता चलता है कि र्इसा के तीन सौ वर्ष पूर्व रोमन लोगों का ग्रीक के लोगों से सम्पर्क हुआ जिसके फलस्वReseller ग्रीक से लैटिन में अनुवाद हुए। इसी प्रकार ग्यारहवीं, बारहवीं शताब्दी में स्पेन के लोग इस्लाम के सम्पर्क में आए और बड़े पैमाने पर योरपीय भाषाओं में अरबी का अनुवाद हुआ। भारत में भी विभिन्न जातियों And विश्वासों के लोग आए। आज की Indian Customer संस्कृति जिसे हम सामासिक संस्कृति कहते हैं उसके निर्माण में हजारों वर्षों के विभिन्न धर्मों, मतों And विश्वासों की साधना छिपी हुर्इ है। इन All मतों And विश्वासों को आत्मSeven कर जिस Indian Customer संस्कृति का निर्माण हुआ है उसके पीछे अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका असंदिग्ध है।
3. साहित्य के अध्ययन में अनुवाद की Need
साहित्य के अध्ययन में अनुवाद का महत्त्व आज व्यापक हो गया है। साहित्य यदि जीवन और समाज के यथार्थ को प्रस्तुत करता है तो विभिन्न भाषाओं के साहित्य के सामूहिक अध्ययन से किसी भी समाज, देश या विश्व की चिन्तन-धारा And संस्कृति की जानकारी मिलती है। अनुवाद का महत्त्व निम्नलिखित साहित्यों के अध्ययन में सहायक है-
- Indian Customer साहित्य का अध्ययन।
- अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य का अध्ययन।
- तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन।
Indian Customer साहित्य के अध्ययन से यह पता चलता है कि विभिन्न साहित्यक, सांस्कृतिक And राजनैतिक आन्दोलनों में हिन्दी And हिन्दीतर भाषा के साहित्यकारों का स्वर प्राय: Single जैसा रहा है। मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन, स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा नक्सलबाड़ी आन्दोलनों को प्राय: All Indian Customer भाषाओं के साहित्य में अभिव्यक्ति मिली है।
अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य के अनुवाद से ही यह तथ्य प्रकाश में आया कि दुनिया के विभिन्न भाषाओं में लिखे गए साहित्य में ज्ञान का विपुल भण्डार छिपा हुआ है। भारत में अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य का अनुवाद तो भारत में सूफियों के दार्शनिक सिद्धान्तों के प्रचलन के साथ ही शुरू हो गया था; किन्तु इसे व्यवस्थित स्वReseller आधुनिक युग में ही प्राप्त हुआ। शेक्सपियर, डी.एच. लॉरेंस, मोपासाँ तथा सार्त्र जैसे चिन्तकों की Creationओं के अनुवाद से Indian Customer जनमानस का साक्षात्कार हुआ And कालिदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर And प्रेमचन्द की Creationओं से विश्व प्रभावित हुआ।
दुनिया के विभिन्न भाषाओं के अनुवाद द्वारा ही तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन में सहायता मिलती है। तुलनात्मक साहित्य द्वारा इस बात का पता लगाया जाता है कि देश, काल और समय की भिन्नता के बावजूद विभिन्न भाषाओं के Creationकारों के साहित्य में साम्य और वैषम्य क्यों है ? अनुवाद के द्वारा ही जो तुलनीय है वह तुलनात्मक अध्ययन का विषय बनता है। प्रेमचन्द और गोर्की, निराला और इलियट तथा राजकमल चौधरी And मोपासाँ के साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन अनुवाद के फलस्वReseller ही सम्भव हो सका।
4. व्यवसाय के Reseller में अनुवाद की Need
वर्तमान युग में अनुवाद ज्ञान की ऐसी शाखा के Reseller में विकसित हुआ है जहाँ इज्जत, शोहरत And पैसा तीनों हैं। आज अनुवादक Second दर्जे का साहित्यकार नहीं बल्कि उसकी अपनी मौलिक पहचान है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से हुए विकास के साथ Indian Customer परिदृश्य में कृषि, उद्योग, चिकित्सा, अभियान्त्रिकी और व्यापार के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। इन क्षेत्रों में प्रयुक्त तकनीकी Wordावली का Indian Customerकरण कर इन्हें लोकोन्मुख करने में अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद को महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन करता है। संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने के बाद केन्द्र सरकार के कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, संस्थानों और प्रतिष्ठानों में राजभाषा प्रभाग की स्थापना हुर्इ जहाँ अनुवाद कार्य में प्रशिक्षित हिन्दी अनुवादक And हिन्दी अधिकारी कार्य करते हैं। आज रोजगार के क्षेत्र में अनुवाद सबसे आगे है। प्रति सप्ताह अनुवाद से सम्बन्धित जितने पद यहाँ विज्ञापित होते हैं अन्य किसी भी क्षेत्र में नहीं।
5. नव्यतम ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में अनुवाद की Need
औद्योगीकरण And जनसंचार के माध्यमों में हुए अत्याधुनिक विकास ने विश्व की दिशा ही बदल दी है। औद्योगिक उत्पादन, वितरण तथा आर्थिक नियन्त्रण की विभिन्न प्रणालियों पर पूरे विश्व में अनुसंधान हो रहा है। नर्इ खोज और नर्इ तकनीक का विकास कर पूरे विश्व में औद्योगिक क्रान्ति मची हुर्इ है। इस क्षेत्र में होने वाले अद्यतन विकास को विभिन्न भाषा-भाषी राष्ट्रों तक पहुँचाने में भाषा And अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
वैज्ञानिक अनुसंधानों को तीव्र गति से पूरे विश्व में पहुँचा देने का श्रेय नव्यतम विकसित जनसंचार के माध्यमों को है। आज विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, कृषि तथा व्यवसाय आदि All क्षेत्रों में जो कुछ भी नया होता है वह कुछ ही पलों में टेलीफोन, टेलेक्स तथा फैक्स जैसी तकनीकों के माध्यम से पूरे विश्व में प्रचारित And प्रसारित हो जाता है। आज जनसंचार के माध्यमों में होने वाले विकास ने हिन्दी भाषा के प्रयुक्ति-क्षेत्रों को विस्तृत कर दिया है। विज्ञान, व्यवसाय, खेलकूद And विज्ञापनों की अपनी अलग Wordावली हैं। संचार माध्यमों में गतिशीलता बढ़ाने का कार्य अनुवाद द्वारा ही सम्भव हो सका है तथा गाँव से लेकर महानगरों तक जो भी अद्यतन सूचनाएँ हैं वे अनुवाद के माध्यम से Single साथ सबों तक पहुँच रही हैं। कहने की Need नहीं कि अनुवाद ने आज पूरे विश्व को Single सूत्र में पिरो दिया है।