राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा के Reseller में हिन्दी
राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा
समाज में जिस भाषा का प्रयोग होता है साहित्य की भाषा उसी का परिष्कृत Reseller है। भाषा का आदर्श Reseller यही है जिसमें विशाल समुदाय अपने विचार प्रकट करता है। Meansात् वह उसका शिक्षा, शासन और साहित्य की Creation के लिए प्रयोग करता है। इन्हीं कारणों से जब भाषा का क्षेत्र अधिक व्यापक और विस्तृत होकर समस्त राष्ट्र में व्याप्त हो जाता है तब वह भाषा ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती है।
‘राष्ट्रभाषा’ का सीधा Means है राष्ट्र की वह भाषा, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में विचार विनिमय And सम्पर्क Reseller जा सके। जब किसी देश में कोर्इ भाषा अपने क्षेत्र की सीमा को लाँघकर अन्य भाषा के क्षेत्रों में प्रवेश करके वहाँ के जन मानस के भाव और विचारों का माध्यम बन जाती है तब वह राष्ट्रभाषा के Reseller में स्थान प्राप्त करती है। वही भाषा सच्ची राष्ट्रभाषा हो सकती है जिसकी प्रवृत्ति सारे राष्ट्र की प्रवृत्ति हों जिस पर समस्त राष्ट्र का प्रेम हो। राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने वाली तथा समझी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र को Single सूत्र में बाँधने, राष्ट्रीय भावना को जागृत करने तथा राष्ट्रीय गौरव की भावना को संवहन करने की शक्ति होती है। राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र के जन-जीवन की आशाओं, आकांक्षाओं, भावनाओं And आदर्शों को चित्रित करने की अद्भुत शक्ति होती है। Single देश में कर्इ भाषाएँ बोली जाती हैं परन्तु उनमें से किसी Single भाषा को ही राष्ट्रभाषा का स्थान दिया जाता है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा समझी और बोली जाने वाली भाषा होती है।
‘राजभाषा’ का सामान्य Means है- राजकाज की भाषा। Second Wordों में जिस भाषा के द्वारा राजकीय कार्य सम्पादित किए जाएँ वही ‘राजभाषा’ कहलाती है। भारत जैसी जनतंत्रात्मक प्रणाली में दोहरी शासन पद्धति होती है : 1. केन्द्र की शासन पद्धति और 2. राज्य की शासन पद्धति। इस कारण राजभाषा की स्थिति भी दो प्रकार की होती है। First केन्द्रीय अथवा संघ की राजभाषा तथा द्वितीय राज्यों की राजभाषा। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने ‘राजभाषा’ को परिभाषित करते हुए कहा है : ‘राजभाषा उसे कहते हैं जो केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकारों द्वारा पत्र-व्यवहार, राजकाज और सरकारी लिखा-पढ़ी के काम में लार्इ जाए।’
Historyनीय बात यह है कि संविधान में ‘राष्ट्रभाषा’ Word का कहीं प्रयोग नहीं Reseller गया है। संविधान के भाग-17 का शीर्षक है ‘राजभाषा’। इसका अध्याय-1 ‘संघ की भाषा’ के विषय में है। इसके अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा का History है और अनुच्छेद 344 ‘राजभाषा’ के सम्बन्ध में आयोग और संसद की समिति के बारे में है। अध्याय-2 का शीर्षक है : ‘प्रादेशिक भाषाएँ’, इसके अन्तर्गत अनुच्छेद 345 ‘राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ’ सम्बन्धी है, अनुच्छेद 346 ‘Single राज्य और Second राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा’ विषयक है। इन अनुच्छेदों में कहीं किसी भाषा को ‘राष्ट्रीय भाषा’ भी नहीं कहा गया। परन्तु उसके अनुच्छेद 351 में हिन्दी के ‘राष्ट्रभाषा’ Reseller की ही कल्पना की गर्इ है। राजभाषा आयोग की सिफारिश पर जो वैज्ञानिक तथा तकनीकी Wordवली आयोग बना, उसने Wordावली इस प्रकार तैयार की है कि वह केवल हिन्दी भाषा के लिए ही काम न आए बल्कि उसका प्रयोग सामान्यत: अन्य भाषाओं में भी हो सके। जिन दिनों संविधान सभा में भाषा के सम्बन्ध में विस्तृत Discussion हुर्इ, अनेक सदस्यों ने हिन्दी के लिए राष्ट्रभाषा Word का प्रयोग Reseller। इससे संविधान सभा के सदस्यों की भावना का पता चलता है।
राष्ट्रभाषा के Reseller में हिन्दी
हिन्दी का लगभग Single हजार वर्ष का History इस बात का साक्षी है कि हिन्दी ग्यारहवीं शताब्दी से ही प्राय: अक्षुण्ण Reseller से राष्ट्रभाषा के Reseller में प्रतिष्ठित रही है। चाहे राजकीय प्रशासन के स्तर पर कभी संस्कृत, कभी फरासी और बाद में अंग्रजी को मान्यता प्राप्त रही, किन्तु समूचे राष्ट्र के जन-समुदाय के आपसी सम्पर्क, संवाद-संचार, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक ऐक्य और जीवन-व्यवहार का माध्यम हिन्दी ही रही।
ग्यारहवीं सदी में हिन्दी के आविर्भाव से लेकर आज तक राष्ट्रभाषा के Reseller में हिन्दी की विकास परम्परा को मुख्यत: तीन सोपानों में बाँटा जा सकता है- आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल। आदिकाल के आरम्भ में तेरहवीं सदी तक भारत में जिन लोक-बोलियों का प्रयोग होता था, वे प्राय: संस्कृत की उत्तराधिकारिणी प्राकृत और अपभ्रंश से विकसित हुर्इ थीं। कहीं उन्हें देशी भाषा कहा गया, कहीं अवहट्ट और कहीं डींगल या पिंगल। ये उपभाषाएँ बोलचाल, लोकगीतों, लोक-वार्त्ताओं तथा कहीं-कहीं काव्य Creation का भी माध्यम थीं। बौद्व मत के अनुयायी भिक्षुओं, जैन-साधुओं, नाथपंथियों जोगियों और महात्माओं ने विभिन्न प्रदेशों में धूम-धूम कर वहाँ की स्थानीय बोलियों या उपभाषाओं में अपने विचार और सिद्धान्तों को प्रचारित-प्रसारित Reseller। असम और बंगाल से लेकर पंजाब तक और हिमालय से लेकर महाराष्ट्र तक सर्वत्र इन सिद्व-साधुओं, मुनियों-योगियों ने जनता के मध्य जिन धार्मिक- आध्यात्मिक-सांस्कृतिक चेतना का संचार Reseller उसका माध्यम लोक-बोलियाँ या जन-भाषाएँ ही थीं, जिन्हें पण्डित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वानों ने ‘पुरानी हिन्दी’ का नाम दिया है। इन्हीं के समानान्तर मैथिली-कोकिल विद्यापति ने जिस सुललित मधुर भाषा में राधाकृष्ण-प्रणय सम्बन्धी सरस पदावली की Creation की, उसे उन्होंने ‘देसिल बअना’ (देशी भाषा) या ‘अवहट्ट’ कहा। पंजाब के अट्टहमाण ( अब्दुर्रहमान) ने ‘संदेश रासक’ की Creation परवर्ती अपभ्रंश में की, जिसे पुरानी हिन्दी का ही पूर्ववर्ती Reseller माना जा सकता है। रासो काव्यों की भाषा डींगल मानी गर्इ जो वास्तव में पुरानी हिन्दी का ही Single प्रकार है। सबसे First इसी पुरानी हिन्दी को ‘हिन्दुर्इ’, हिन्दवी’, अथवा ‘हिन्दी’ के नाम से पहचान दी अमीर खुसरो ने।
वस्तुत: आदिकाल में लोक-स्तर से लेकर शासन-स्तर तक और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र से लेकर साहित्यिक क्षेत्र तक हिन्दी राष्ट्रभाषा की कोटि की ओर अग्रसर हो रही थी।
मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन के प्रभाव से हिन्दी भारत के Single छोर से Second छोर तक जनभाषा बन गर्इ। भारत के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों में सांस्कृतिक ऐक्य के सूत्र होने का श्रेय हिन्दी को ही है। दक्षिण के विभिन्न दार्शनिक आचार्यों ने उत्तर भारत में आकर संस्कृत का दार्शनिक चिन्तन हिन्दी के माध्यम से लोक-मानस में संचारित Reseller। Second Wordों में कहें तो हिन्दी व्यावहारिक Reseller से राष्ट्रभाषा बन गर्इ।
आधुनिक काल में हिन्दी भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गर्इ। वर्षों First अंग्रेजों द्वारा फैलाया गया भाषार्इ कूटनीति का जाल हमारी भाषा के लिए रक्षाकवच बन गया। विदेशी अंग्रेजी Kingों को समूचे भारत राष्ट्र में जिस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग, प्रसार और प्रभाव दिखार्इ दिया, वह हिन्दी थी, जिसे वे लोग हिन्दुस्तानी कहते थे। चाहे पत्रकारिता का क्षेत्र हो चाहे स्वाधीनता संग्राम का, हर जगह हिन्दी ही जनता के भाव-विनिमय का माध्यम बनी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गाँधी सरीखे राष्ट्र-पुरुषों ने राष्ट्रभाषा हिन्दी के ही जरिए समूचे राष्ट्र से सम्पर्क Reseller और सफल रहै। तभी तो आजादी के बाद संविधान-सभा ने बहुमत से ‘हिन्दी’ को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया था।
भारत की राष्ट्रभाषा के सम्बन्ध में महात्मा गांधी ने इंदौर में 20 अप्रैल 1935 को हिन्दी साहित्य सम्मेलन के चौबीसवें अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए कहा था : ‘अंग्रेजी राष्ट्रभाषा कभी नहीं बन सकती। आज इसका साम्राज्य-सा जरूर दिखार्इ देता है। इससे बचने के लिए काफी प्रयत्न करते हुए भी हमारे राष्ट्रीय कार्यों में अंग्रेजी ने बहुत स्थान ले रखा है लेकिन इससे हमें इस भ्रम में कभी न पड़ना चाहिए कि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा बन रही है। इसकी परीक्षा प्रत्येक प्रान्तों में हम आसानी से करते हैं। बंगाल अथवा दक्षिण भारत को ही लीजिए, जहाँ अंग्रेजी का प्रभाव सबसे अधिक है। वहाँ यदि जनता की मार्फत हम कुछ भी काम करना चाहते हैं तो वह आज हिन्दी द्वारा भले ही न कर सकें, पर अंग्रेजी द्वारा कर ही नहीं सकते। हिन्दी के दो-चार Wordों से हम अपना भाव कुछ तो प्रकट कर ही देंगे। पर अंग्रेजी से तो इतना भी नहीं कर सकते। हिन्दुस्तान को अगर सचमुच Single राष्ट्र बनाना है तो- चाहे कोर्इ माने या न माने- राष्ट्रभाषा तो हिन्दी ही बन सकती है, क्योंकि जो स्थान हिन्दी को प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता।’
संविधान All द्वारा राजभाषा सम्बन्धी निर्णय होने के कुछ सप्ताह बाद ही Single समारोह के लिए तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभार्इ पटेल ने 23 अक्तूबर, 1949 के अपने संदेश में लिखा था : ‘विधान परिषद् ने राष्ट्रभाषा के विषय में निर्णय कर लिया है। इसमें कोर्इ संदेह नहीं है कि कुछ व्यक्तियों को इस फैसले से दु:ख हुआ। कुछ संस्थानों ने भी इसका विरोध Reseller है। परन्तु जिस प्रकार और बातों में मतभेद हो सकता है, उसी प्रकार इस विषय में यदि मतभेद है और रहे तो उसमें कोर्इ आश्चर्य की बात नहीं है। विधान में कर्इ ऐसी बातें हैं जिनसे सबका संतोष होना असंभव है। परन्तु Single बार यदि विधान में कोर्इ चीज़ शामिल हो जाए तो उसको स्वीकार कर लेना सबका कर्तव्य है, कम-से-कम जब तक कि ऐसी स्थिति पैदा न हो जाए जिसमें सर्वसम्मति से या बहुमत से फिर कोर्इ तब्दीली हो सके। अब जबकि हिन्दी को राष्ट्रभाषा की पदवी मिल गर्इ है (यद्यपि कुछ वर्षों के लिए Single विदेशी भाषा के साथ-साथ उसको यह गौरव प्राप्त हुआ है), हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि राष्ट्रभाषा की उन्नति करे और उसकी सेवा करे जिससे कि सारे भारत में वह बिना किसी संकोच या संदेह के स्वीकृत हो। हिन्दी का पट महासागर की तरह विस्तृत होना चाहिए जिसमें मिलकर और भाषाएँ अपना बहुमूल्य भाग ले सकें। राष्ट्रभाषा न तो किसी प्रान्त की है न किसी जाति की है, वह सारे भारत की भाषा है और उसके लिए यह आवश्यक है कि सारे भारत के लोग उसको समझ सकें और अपनाने का गौरव हासिल कर सकें।’
राजभाषा के Reseller में हिन्दी
कोर्इ भी भाषा जितने विषयों में प्रयुक्त होती जाती है। उसके उतने ही अलग-अलग Reseller भी विकसित होते जाते हैं। हिन्दी के साथ भी यही हुआ है। First वह केवल बोलचाल की भाषा थी। तो उसका Single बोलचाल का ही Reseller था, फिर वह साहित्यिक भाषा बनी तो उसका Single साहित्यिक Reseller भी विकसित हो गया। समाचार-पत्रों में ‘पत्रकारिता हिन्दी’ का Reseller उभर कर आया। वैसे ही ‘खेलकूद की हिन्दी’, ‘बाजार की हिन्दी’ भी सामने आर्इ। स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी भारत की राजभाषा घोषित की गर्इ तथा उसका प्रयोग न्यूनाधिक Reseller में कार्यालयों में होने लगा तो क्रमश: उसका Single राजभाषा Reseller विकसित हो गया।
सामान्यतया ‘Kingभाषा’ भाषा के उस Reseller को कहते हैं जो राजकाज में प्रयुक्त होता है। भारत की आजादी के बाद Single राजभाषा आयोग की स्थापना की गर्इ थी। उसी आयोग ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी को भारत की राजभाषा बनायी जाए। तदनुसार संविधान में इसे राजभाषा घोषित Reseller गया था। प्रादेशिक प्रशासन में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड राजभाषा हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही दिल्ली में भी इसका प्रयोग हो रहा है और केन्द्रीय सरकार भी अपने अनेकानेक कायोर्ं में इनके प्रयोग को बढ़वा दे रही है।
राजभाषा हिन्दी की विशेषताएँ
1) साहित्यिक हिन्दी में जहाँ अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। राजभाषा हिन्दी में केवल अभिधा का ही प्रयोग होता है।
2) साहित्यिक हिन्दी में Singleाधिकार्थता-चाहे Word के स्तर पर हो चाहे वाक्य के स्तर पर, काव्य-सौन्दर्य के अनुकूल मानी जाती है। इसके विपरीत राजभाषा हिन्दी में सदैव Singleार्थता ही काम्य होती है।
3) राजभाषा अपने पारिभाषिक Wordों में भी हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों से पूर्णत: भिन्न है। इसके अधिकांश Word प्राय: कार्यालयी प्रयोगों के लिए ही उसके अपने Means में प्रयुक्त होते है। जैसे :
आयुक्त = Commissioner
निविदा = Tender
विवाचक = Arbitrator
आयोग = Commission
प्रKingी = Administrative
मन्त्रालय= Ministry
उन्मूलन =Abolition
आबंटन = Alloment आदि।
4) हिन्दी में सामान्यत: समस्रोतीय घटकों से ही Wordों की Creation होती है। जैसे संस्कृत Word निर्धन + संस्कृत भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय ‘ता’ = निर्धनता। किन्तु अरबी-फारसी Word गरीब + ता = गरीबता। किन्तु अरबी-फारसी Word गरीब + अरबी-फारसी भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय ‘र्इ’= गरीबी। हिन्दी में न तो निर्धन+र्इ=निर्धनी बनेगा और न ही गरीब+ता=गरीबता। लेकिन राजभाषा में काफी सारे Word विषम स्रोतीय घटकों से बने है। जैसे :
उपकिरायेदार = Sub-letting
जिलाधीश = Collector
उपजिला = Sub-district
अरद्द = uncancelled
अस्टांपित = unstamped
अपंजीकृत = unregistered
मुद्राबन्द = sealed
राशन-अधिकारी = ration-officer … आदि।
अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, रूसी आदि समृद्ध भाषाओं में Single ही शैली मिलती है, पर राजभाषा हिन्दी में Single ही Word के लिए कर्इ Word हैं। जैसे
i) कार्यालय -दफ़्तर – ऑफिस
ii) न्यायालय-अदालत-कोर्ट-कचहरी
iii) शपथ-पत्र-हलफनामा-एफिडेविट
iv) विवाह-शादी-निकाह आदि।
5) राजभाषा हिन्दी का प्रयोग राजतन्त्र का कोर्इ व्यक्ति करता है जो प्रयोग के समय व्यक्ति न हो कर तंत्र का Single अंग होता है। इसलिए वह वैयक्तिक Reseller से कुछ न कहकर निर्वैयक्तिक Reseller से कहता है। यही कारण है कि हिन्दी की अन्य प्रयुक्तियों में जबकी कतर्ृवाच्य की प्रधानता होती है, राजभाषा हिन्दी के कार्यालयी Reseller में कर्मवाच्य की प्रधानता होती है। उसमें कथन व्यक्ति-सापेक्ष न होकर व्यक्ति-निरपेक्ष होता है। जैसे : ‘सर्वसाधारण को सूचित Reseller जाता है’, ‘कार्यवाही की जाए’, ‘स्वीकृति दी जा सकती है’ आदि।
राजभाषा : स्वReseller And क्षेत्र
स्वतंत्रता पूर्व ब्रिटिश शासन काल में समस्त राजकाज अंग्रेजी में होता था। सन् 1947 में स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद महसूस Reseller गया कि स्वतंत्र भारत देश की अपनी राजभाषा होनी चाहिए; Single ऐसी राजभाषा जिससे प्रशासनिक तौर पर पूरा देश Added रह सके। भारतवर्ष के विचारों की अभिव्यक्ति करनेवाली सम्पर्क भाषा ‘हिन्दी’ को ‘राजभाषा’ के Reseller में स्वतंत्र भारत के संविधान में 14 सितम्बर, 1949 में राजभाषा समिति ने मान्यता दी। संविधान सभा में Indian Customer संविधान के अन्तर्गत हिन्दी को राजभाषा घोषित करने का प्रस्ताव दक्षिण Indian Customer नेता गोपालस्वामी अय्यड़्गार ने रखा था। इससे हिन्दी को देश की संस्कृति, सभ्यता, Singleता तथा जनता की समसामयिक Needओं की पूर्ति करने वाली भाषा के Reseller में Indian Customer संविधान ने देखा है। 26 जनवरी, 1950 से संविधान लागू हुआ और हिन्दी को राजभाषा के Reseller में संवैधानिक मान्यता मिली।
हमारे संविधान में हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किए जाने के साथ हिन्दी का परम्परागत Means, स्वReseller तथा व्यवहार क्षेत्र व्यापकतर हो गया। हिन्दी के जिस Reseller को राजभाषा स्वीकार Reseller गया है, वह वस्तुत: खड़ीबोली हिन्दी का परिनिष्ठित Reseller है। जहाँ तक राजभाषा के स्वReseller का प्रश्न है इसके सम्बन्ध में संविधान में कहा गया है कि इसकी Wordावली मूलत: संस्कृत से ली जाएगी और गौणत: All Indian Customer भाषाओं सहित विदेश की भाषाओं के भी प्रचलित Wordों को अंगीकार Reseller जा सकता है। राजभाषा Wordावली (जैसे : अधिसूचना, निदेश, अधिनियम, आकस्मिक अवकाश, अनुदान आदि) को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी Single अलग प्रयुक्ति (register) है। Word निर्माण के सम्बन्ध में राजभाषा के नियम बहुत ही लचीले हैं। यहाँ किसी भी दो या दो से अधिक भाषाओं के Wordों की संधि आराम से की जा सकती है। जैसे ‘उप जिला मजिस्टे्रट’, ‘रेलगाड़ी’ आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि राजभाषा के अन्तर्गत Word निर्माण के नियम बहुत ही लचीले हैं।
राजभाषा का सम्बन्ध प्रशासनिक कार्य प्रणाली के संचालन से होने के कारण उसका सम्पर्क बुद्धिजीवियों, प्रKingों, सरकारी कर्मचारियों तथा प्राय: शिक्षित समाज से होता है। स्पष्ट है कि राजभाषा जनमानस की भावनाओं-सपनों-चिन्तनों से सीधे-सीधे न जुड़कर Single अनौपचारिक माध्यम के Reseller में प्रशासन तथा प्रशासित के बीच सेतु का काम करती है। बावजूद इसके सरकार की नीतियों को जनता तक पहुँचाने का यह Single मात्र माध्यम है। साधारण जनता में प्रशासन के प्रति आस्था उत्पन्न करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रशासन का सारा कामकाज जनता की भाषा में हो जिससे प्रशासन और जनता के बीच की खार्इ को पाटा जा सके। यह राजभाषा हिन्दी सरकारी कार्यालयों में प्रयुक्त होकर ‘कार्यालयी हिन्दी’, ‘सरकारी हिन्दी’, ‘प्रशासनिक हिन्दी’ के नाम से हिन्दी के Single नए स्वReseller को रेखांकित करती है। राजभाषा का प्रयोग सरकारी पत्र व्यवहार, प्रशासन, न्याय-व्यवस्था तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए Reseller जाता है जिसमें पारिभाषिक Wordावली का बहुतायत प्रयोग Reseller जाता है। अधिकतर मामले में अनुवाद का सहारा लिये जाने के कारण यह ‘कार्यालयी हिन्दी’ अपनी प्रकृति में निहायत ही शुष्क, अनौपचारिक तथा सूचना प्रधान होती है। जहाँ तक ‘राजभाषा हिन्दी’ के क्षेत्र का प्रश्न है इसके प्रयोग के तीन क्षेत्र हैं : 1. विधायिका, 2. कार्यपालिका और 3. न्यायपालिका। ये राष्ट्र के तीन प्रमुख अंग हैं।
राजभाषा का प्रयोग इन्हीं तीन प्रशासन के अंगों में होता है। विधायिका क्षेत्र के अन्तर्गत आनेवाले संसद के दोनों सदन और राज्य विधान मंडल के दो सदन आते हैं। कोर्इ भी सांसद/विधायक हिन्दी या अंग्रेजी या प्रादेशिक भाषा में विचार व्यक्त कर सकता है, परन्तु संसद में कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में ही Reseller जाना प्रस्तावित है। कार्यपालिका क्षेत्र के अंतर्गत मंत्रालय, विभाग, समस्त सरकारी कार्यालय, स्वायत्त संस्थाएँ, उपक्रम, कम्पनी आदि आते हैं। संघ के Kingीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग प्रस्तावित हैं जबकि राज्य स्तर पर वहाँ की राजभाषाएँ इस्तेमाल होती हैं। न्यायपालिका में राजभाषा का प्रयोग मुख्यत: दो क्षेत्रों में Reseller जाता है-कानून और उसके अनुReseller की जाने वाली कार्यवाही Meansात् कानून, नियम, अध्यादेश, आदेश, विनियम, उपविधियाँ आदि और उनके आधार पर किसी मामले में की गर्इ कार्रवार्इ और निर्णय आदि। राजभाषा के कार्य क्षेत्रों को अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी : समस्याएँ And समाधान’ में लिखा है : ‘राजभाषा का प्रयोग मुख्यत: चार क्षेत्रों में अभिप्रेत है-शासन, विधान, न्यायपालिका और कार्यपालिका। इन चारों में जिस भाषा का प्रयोग हो उसे राजभाषा कहेंगे। राजभाषा का यही अभिप्राय और उपयोग है।’