वित्त के स्रोत
दीर्घकालीन वित्त
दीर्घकालीन वित्त से आशय ऐसी वित्तीय Needओं से है जो Seven वर्ष से लेकर दस वर्ष या अधिक अवधि के लिए वित्त का प्रबन्ध करना पड़ता है। दीर्घकालीन वित्त का विनियोग स्थायी सम्पत्तियों में Reseller जाता है Meansात तरलता नहीं के बराबर होती है। अत: दीर्घकालीन वित्त को अंश पूंजी, ऋण पूंजी तथा कम्पनी के प्रतिधारित लाभों से प्रबन्ध Reseller जाता है। नयी कम्पनियाँ लाभों को प्रतिधारित करने की स्थिति में नहीं होती है वे केवल अंश And ऋण पूंजी के स्रोत से वित्त व्यवस्था करती है।
1. दीर्घकालीन वित्त के स्त्रोत –
1. अंश पूंजी
अंश से आशय पूंजी के Single भाग से हैं जो अनके हिस्सों में विभाजित होते हैं Meansात पूंजी का अनुपातिक भाग जिसका प्रत्येक सदस्य अस्थिाकारी होता है अंश कहलाता है।
विशेषताएँ –
– अंश चल सम्पत्ति माने जाते हैं जो अंशधारियों के इच्छानुसार बेचे जाते हैं।
– अंशधारियों का दायित्व अंश में अंकित मूल्य तक सीमित होता है।
– अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते हैं और उन्हें प्रबन्ध का अधिकार होता है।
– अंश पूंजी जोखिम पूंजी होती है जो अंशधारियों को वापस होने की गारंटी नहीं देती।
– अंशधारियों को अंश पर लाभांश प्राप्त करने का अधिकार होता है।
– अंश दीर्घकालीन स्थायी पूंजी के स्रोत होते हैं।
i. समताश अंश पूंजी –समताश अंश धारी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं जो कम्पनी के जोखिम को सहन करते हैं और लाभांश प्राप्त करने का अधिकार पूर्वाधिकार अंशों पर भुगतान के बाद होता है। इन अंशों पर लाभांश की दर निश्चित नहीं होती। इनका लाभांश कम्पनी की आय के अनुपात में घटता बढ़ता रहता है। समतांश धारियों के द्वारा संचालकों की Appointment होती है And इन्हीं के द्वारा संचालकों का चयन Reseller जाता है।
ii. पूर्वाधिकार अंश पूंजी- कम्पनी के समस्त व्ययों का भुगतान करने के बाद शेष बचे लाभ पर पूर्वाधिकार अंशधारियों को First लाभांश प्राप्त करने का अधिकार होता है। इन अंशों पर भुगतान के बाद समता अंशधारियों को लाभांश का भुगतान Reseller जाता है। कम्पनी के विघटन की दशा में समस्त देनदारियों भुगतान करने के पश्चात शेष बची सम्पत्तियों से पूर्वाधिकार अंशधारियों की पूंजी वापस की जाती है लेकिन पूर्वाधिकार अंशधारियों को प्रबन्ध पर नियंत्रण का अधिकार नहीं होता। पूर्वाधिकार अंशधारियों के प्रकार है –
- संचयी पूर्वाधिकार अंश,
- असंचयी पूर्वाधिकार अंश,
- भागीदार पूर्वाधिकार अंश,
- गैरभागीदार पूर्वाधिकार अंश,
- शोध्य पूर्वाधिकार अंश,
- अशोध्य पूर्वाधिकार अंश,
- परिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश,
- अपरिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश,
- संरक्षित पूर्वाधिकार अंश,
- प्रत्याभूतित पूर्वाधिकार अंश।
2. ऋण पूंजी –
व्यवसाय उपक्रमों की वित्तीय Needओं की पूर्ति के लिए अंश पूंजी के अलावा जिस पूंजी का उपयोग Reseller जाता है उसे ऋण पूंजी कहते हैं। यह पूंजी ऋणदाताओं द्वारा प्रदान की जाती है और यह ऋण निगमों द्वारा ऋण पत्रों, बन्ध पत्रों एवम् सावधि ऋणों के माध्यम से प्राप्त की जाती है। ऋण पूंजी से आशय कम्पनी द्वारा लिये गये ऋण की लिखित स्वीकृति Single पत्र के द्वारा दी जाती है जिस पर कम्पनी की मुहर लगी होती है और उस पर ऋण की राशि And ब्याज दर व अन्य शर्तों का History रहता है Meansात ऋण पत्र कम्पनी के सामान्य मुहर के अधीन निर्गमित Single ऐसा प्रपत्र है जो ऋण की स्वीकृति प्रदान करता है और उन शर्तों को भी स्पष्ट करता है जिनके अधीन वे निर्ममित किए गये हैं और उनका शोधन होता है।
i. ऋणपत्र – ऋणपत्र में ऋणपत्र स्तंभ और कम्पनी की अन्य प्रतिभूतियों को सम्मिलित Reseller जाता है। चाहे वे कम्पनी की सम्पत्तियों पर प्रभार उत्पन्न करे या नहीं। ऋणपत्रों को समझने के लिए निम्न बिन्दु समझना आवश्यक है-
- ऋणपत्रधारी कम्पनी के ऋणदाता होते हैं स्वामी नहीं। इन्हें मत देने का अधिकार नहीं है।
- ऋणपत्रों का स्कन्ध बाजार में क्रय-विक्रय Reseller जा सकता है।
- कम्पनी प्रdescription जारी करके ऋणपत्रों के माध्यम से सार्वजनिक जनता से ऋण प्राप्त करती है।
- ऋण पत्रों की अवधि बहुधा दीर्घकालीन होती है जिनका शोध्य दस वर्षों से पूर्व नहीं होता।
- कम्पनी विघटन की स्थिति में ऋणपत्रों की रकम वापसी अंश पूंजी से First होती है।
ऋणपत्रों के प्रकार हैं –
- शोध्य And अशोध्य ऋणपत्र,
- पंजीकृत And वाहक ऋणपत्र,
- परिवर्तनीय And अपरिवर्तनीय ऋणपत्र,
- Windows Hosting And अWindows Hosting ऋणपत्र।
1. सावर्जनिक ऋण –यह पूंजी का मुख्य स्रोत है। यह ऋण बहुधा बैंकों And वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त किये जाते हैं जिनका भुगतान तीन वर्ष की अवधि से लेकर दस वर्ष तक की अवधि तक होता है। ये संस्थाएँ निम्न हैं । जैसे – IDBI, IFCI, ICICI, FCI and Commercial Bank etc.
- ब्याज के आधार पर – वाहक And पंजीकृत बंधपत्र।
- Safty के आधार पर – बन्धक बन्धपत्र, गारटीं युक्त, सम्पारिवर्क And उपकरण न्यास बन्धपत्र।
- प्रावधान के आधार पर – सगंठित, विकास And विस्तार, निधिकरण And पुनर्निधिकरण, समायोजन And पुनर्गठन, विकास And विस्तार And क्रय धनराशि बन्धपत्र।
- आय के आधार पर – आय, निश्चित ब्याज, भागीदार And लाभभागिता, स्थिरीकरण And कर रहित बन्धपत्र।
2. मध्यकालीन And अल्प कालीन वित्त के स्रोत
व्यावसायिक वित्त का विभाजन काल क्रमानुसार अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन वित्त के Reseller में Reseller जाता है। मध्यकालीन वित्त में Single वर्ष से लेकर Seven वर्ष तक के लिये होते हैं। वे ऋण कभी स्थायी पूंजी के प्रबन्ध के काम में आते हैं तो कभी कार्यशील पूंजी की Needओं की पूर्ति करते है। दीर्घकालीन वित्त मध्यकालीन वित्त की तुलना में अधिक अवधि के लिए होते हैं जिन्हें स्थायी सम्पत्तियों में समायोजित Reseller जाता है। वर्तमान व्यावसायिक जगत में मध्यकालीन वित्त के साधन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका कम्पनी की स्थायी पूंजी में निभाते हैं जिसके आधार पर कम्पनियॉं या संगठन अपने Needओं की पूर्ति करने के लिए विभिन्न स्रोतों से वित्त प्रबन्ध करते हैं। मध्यकालीन वित्त की Need Single वर्ष से लेकर तीन, पांच या Seven वर्षों तक के लिए होती है। सामान्यतया इस वित्त का प्रयोग व्यवसाय के विकास And विस्तार, अतिरिक्त संयत्रों व उपकरणों का क्रय, मशीनों का प्रतिस्थापन, पुराने ऋणपत्रों व बॉण्डों की अदायगी, बाजार सर्वेक्षण, विज्ञापन अभियान आदि के लिए होता है। भारत में मध् यकालीन वित्त को प्रमुखतया निम्न साधनों से जुटाया जाता है।
(1) बैंकं ऋण –
वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में बैंकों द्वारा मध्यकालीन ऋण प्रदान करना, विकास करना And वित्तीय Needओं की पूर्ति करने के लिए त्वरित प्रबन्ध करने में वाणिज्य बैकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। मध्यकालीन वित्त प्रदान करने के निम्न तरीके हैं – (1) रोकड़ साख, (2) अधिविकर्ष, (3) प्रतिभूति ऋण (4) अंशों व ऋणपत्रों को क्रय करना व (5) अंशों व ऋणपत्रों का अभिगोपन करना। वाणिज्यिक बैंक प्राय: कम ब्याज दर पर मध्यमकालीन ऋण प्रदान करते हैं। वे बैक औद्योगिक उपक्रमों, निगमों ने कम्पनियों को इस प्रकार का ऋण दे करके देश के त्वरित आर्थिक विकास को सुनिश्चित कर रहे हैं।
(2) शोध्य पूर्णाधकार अंशों का निर्गमन –
वर्तमान व्यवसाय जगत में शोध्य पूर्वाधिकार अंश मध्यमकालीन वित्त के सबसे सस्ते And लोकप्रिय साधन हैं भारत में इन अंशों पर Single निश्चित दर से लाभांश दिया जाता है। यह अंश पॉंच से Seven वर्षों में जनता को लौटा दिये जाते हैं।
(3) शोध्य ऋण पत्रों का निर्गमन –
कुछ विशेष क्षेत्रों Meansात् उद्योगों में शोध्य ऋण पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह क्षेत्र निम्न है – कम्प्यूटर उद्योग, जूट उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, जहाजरानी, विद्युत And कागज उद्योग। इन उद्योगों में विशेष Reseller से शोध्य ऋण पत्रों का निर्गमन Reseller जाता है। भारत में इन ऋण पत्रों के निर्गमन में पूर्व निर्धारित ब्याज का भुगतान करना होता है और निश्चित समय पूरा होने पर इनकी मूल रकम भी वापस कर दी जाती है। यदि इनके शोधन के पूर्व ही कम्पनी का समापन हो जाता है तो ऋण पत्रों की राशि और उन पर देय ब्याज की राशि का भुगतान अWindows Hosting लेनदारों और अंशधारियों की राशि के भुगतान से First Reseller जाता है। इसी कारण से शोध्य ऋण पत्रों के धारक अधिक Windows Hosting रहते हैं और वे आसानी से शोध्य ऋण पत्रों को क्रय कर लेते हैं।
(4) जन निक्षेप –
वर्तमान जगत में मध्यकालीन वित्त की Need की पूर्ति के लिए कम्पनियां सार्वजनिक लोगों से Single निश्चित ब्याज दर पर निक्षेप स्वीकार करती हैं। भारत में जनता से निक्षेप प्राप्त करने की परम्परा अति प्राचीन है। भारत में जनता से जमा स्वीकार करवाना Single पुरानी परम्परा है जो विशेषकर अहमदाबाद, सूरत तथा मुम्बर्इ में इस वित्तीय स्रोत का प्रचलन था। Indian Customer रक्षित कोष के अध्ययन के According जन निक्षेप की लोकप्रियता महाराष्ट्र में सर्वाधिक है लेकिन पश्चिमी बंगाल, तमिलनाड,ु दिल्ली तथा गुजरात में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। जन निक्षेप से मिलने वाले लाभ हैं सरल, कम खर्चीली, लोचपूर्ण, व जमाकर्ताओं के हितों की Safty। फिर भी, जन निक्षेप आज अच्छे समय के साथी के समान होते हैं। जब अच्छी परिस्थितियां होती है तब तो जन निक्षेप आसानी से मिल जाते हैं परन्तु बुरे व संकट के समय में जनता भयभीत होकर उनको वापस मांग लेती है। 1929 के महान विश्वव्यापी मंदी के समय ऐसी स्थिति पार्इ गर्इ थी। वर्तमान व्यवसायिक मन्दी में जनता से जमा स्वीकार करवाना कठिन कार्य हो गया है। जिसका परिणाम व्यावसायिक जगत में परिलक्षित हो रहा है क्योंकि, उद्योगों को आसानी से वित्त उपलब्ध होना कठिन हो गया है। जनता जनार्दन अपना पैसा ऐसी स्थिति में वापस चाहती है।
(5) विशिष्ट वित्तीय सस्थाओं से –
भारत में मध्यकालीन वित्त प्राप्त करने की प्रक्रिया 1948 से प्रारम्भ हुर्इ जिसकी शुरूआत Indian Customer औद्योगिक वित्त निगम के द्वारा की गयी। केन्द्र सरकार And राज्य सरकारों ने विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना औद्योगिक विकास में गति लाने के लिए की है। जिसका परिणाम वर्तमान मन्दी के दौर में भी ये विशिष्ट वित्तीय संस्थाएं अपनी भूमिका सार्वजनिक विकास And औद्योगिक विकास में निभ्र्ाीकता पूर्वक निर्वहन कर रही है। और भारत जैसे देश में मन्दी से उभरने के लिए संस्थाएँ रामबाण की तरह कार्य कर रही है और मध्यकालीन वित्त उपलब्ध करा रही है। प्रमुख विभिन्न संस्थाएँ निम्नलिखित हैं।
- Indian Customer औद्योगिक वित्त निगम (Industrial Finance Corporation of India or IFCI)
- Indian Customer औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India or IDBI)
- Indian Customer जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India LIC)
- Indian Customer सामान्य बीमा निगम (General Insurance Corporation of India or GIC)
- राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (National Industrial Development Corporation of India or NIDC) 6. राज्य वित्तीय निगमें (State Financial Corporation or SFCs)
- राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation or NCDC) 8. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (Nationalsmallscale Industries Corporation or NSIC)
(6) अन्य स्रोत –
उपरोक्त साधनों व सस्ंथाओं के अलावा निम्न साधन भी मध्यकालीन वित्त प्रदान करते हैं –
- केन्द्रीय व राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता (Financial Assistance by the Central andstate Government)
- कर्मचारियों की भविष्य व पेंशन निधि (Provident and Pension Fund of Employees)
- किराया क्रय व किस्त भुगतान पद्धति (Hire Purchase and Instalment System)
- विदेशी विनियोग (Foreign Investments)
- प्रतिधारित आय (Retained Earning)
- अन्र्तकम्पनी ऋण (Inter-Corporate Loans)
- विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investor)
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक (Foreign Direct Investor)
3. अल्पकालीन वित्त के स्रोत
अल्पकालीन वित्त के स्रोत कार्यशील पूंजी की Need पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यह स्रोत Single वर्ष से कम अवधि की वित्तीय Needओं की पूर्ति करते हैं। इनका उपयोग चल सम्पत्तियों अथवा दैनिक कार्यों (कच्चामाल मजदूरी वेतन, किराया, निर्माणी, व्यय, कर आदि) के लिए Reseller जाता है। अल्पकालीन वित्त के मुख्य स्रोत हैं –
(1) बैकं स्रोत –
अल्पकालीन वित्त की पूर्ति के लिए व्यवसायिक संस्थान वाणिज्यिक बैंकों से वित्तीय सहायता प्राप्त कर अपनी अल्पकालीन Needओं की पूर्ति करते हैं। भारत में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अल्पकालीन वित्त की व्यवस्था का प्रचलन प्राचीन काल से आज तक प्रचलित है। वे वाणिज्यिक बैंक निम्न Reseller में अल्पकालीन कोष प्रदान करते हैं।
- Windows Hosting ऋण – अल्पकालीन सरु क्षित ऋण के समय संस्था अपनी प्राप्तियों व रहतिया जैसी चल सम्पत्तियों को प्रतिभूति के Reseller में बैंक को उपलब्ध कराती है। बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गये इस प्रकार के ऋण कम्पनी की चल सम्पत्तियों पर प्रभार उत्पन्न करते हैं।
- बिलों की कटौती – इसमें बैंक अपने ग्राहक के प्राप्य बिलों की कटौती कर देता है इस प्रकार ग्राहक को वर्तमान में ही अल्पकालीन वित्त प्राप्त हो जाती है और परिपक्वता तिथि आने पर तृतीय पक्षकार द्वारा बिल का पूर्ण अंकित मूल्य बैंक को दिया जाता है। इस प्रकार कटौती को हानि पर ग्राहक को वित्त प्राप्त हो जाता हैं
- अधिविकर्ष – बकैं द्वारा गा्र हक के चके ा ें का भगु तान उसके खाते में अवशेष बैलेन्स शून्य होने पर भी Reseller जाता है। ग्राहक Single निश्चित सीमा तक ही अधिविकर्ष की सुविधा ले सकता है और ब्याज वास्तव में हासिल की राशि पर ही देनी होती है।
- नकद साख – बकैं गा्र हक के लिए Single अधिकतम ऋण सीमा तय कर देता है। ग्राहक अपनी मौसमी Needओं की पूर्ति के लिए इस सीमा के भीतर जब जैसी जरूरत हो, ऋण की सुविधा हासिल कर सकता है। बैंक द्वारा केवल उसी ऋण राशि पर ब्याज वसूल Reseller जाता है जो ग्राहक द्वारा बैंक से निकाली हाती हैं ।
(2) गैर-बैकं साधन –
अल्पकालीन वित्त के ये साधन बैकों के अतिरिक्त अन्य पक्षों से प्राप्त होते हैं।
- लीजिंग व वित्त कम्पनियाँ –वर्तमान दशक में कम्पनियों की अल्पकालीन वित्त प्रदान करने में लीजिंग And वित्त कम्पनियों ने अग्रणी भूमिका निभार्इ है। इनके द्वारा दिये गये ऋण प्राय: चल सम्पत्तियों पर प्रभार के Reseller में होते हैं। इनकी ऋण प्रदान करने की औपचारिकताएं सरल होने और ब्याज दर कम होने के कारण लोकप्रियता मिल रही थी। परन्तु हाल के वर्ष में फर्जी वित्त कम्पनियों के प्रवेश और भ्रष्टाचार के कारण इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
- देशी बैकंर – Singleांकी व्यवसाय व साझेदारी फर्मों हेतु अल्पकालीन वित्तीयन में देशी बैंकरों की सक्रिय भूमिका रही है। वे देशी बैकर अहमदाबाद व मुम्बर्इ की सूती मिलों,, असम व बंगाल के चाय बागानों, तेल, चावल, चमड़े आदि के कारखानों में अल्पकालीन साख सुविधाएॅं प्रदान करते रहे हैं । इन बैंकों से ऋण सरलता और सुविधा से बिना किसी औपचारिकता के मिल जाता है। फिर भी ब्याज दर का अधिक होना व अनावश्यक Reseller से शोषण करना इनके दोष हैं।
- व्यापारिक साख –इस प्रकार की अल्पकालीन साख का उपयोग, फुटकर व्यापारी व थोक व्यापारी Reseller करते हैं जिन्हें निर्माता द्वारा उधार माल का विक्रय 15 दिन से 3-4 मास के लिए Reseller जाता है। इस अवधि के लिए कोर्इ ब्याज नहीं लिया जाता है और क्रेता द्वारा खरीदे गये माल को बेचकर थोड़े समय बाद भुगतान Reseller जाता है। इस प्रकार की व्यापारिक साख द्वारा छोटी संस्थाएं भी कम पूंजी से ही अपनी व्यावसायिक गतिविधियॉं जारी रख सकती हैं।
- सार्वजनिक औैर अन्र्तकम्पनी निक्षेप –कम्पनियां अल्पकालीन बिल की प्राप्ति हेतु जनता और अन्य कम्पनियों के निक्षेप को भी स्वीकार कर रही हैं। ये विशेष –
- मांग निक्षेप – जो Single दिन की सूचना पर वापस प्राप्त किए जा सकें।
- त्रैमासिक निक्षेप तथा
- अर्द्धवार्षिक निक्षेप के Reseller में हो सकते हैं। ये निक्षेप उन कम्पनियों को आसानी से मिल जाते हैं जिनकी बाजार में प्रतिष्ठा अच्छी हो।
- अन्य स्रोत – अल्प वित्त पूर्ति के कछु अन्य स्रोत भी हैं, जैसे –
- किस्त सम्बन्धी साख (Instalment Credit)
- अदत्त व्यय (Outstanding Expenses)
- करों के लिए प्रावधान (Provision for Taxes)
- उपार्जित व्यय (Accrued Expenses)
- सरकार की वित्तीय सहायता (Government Credit)
- लाभों का पुनर्विनियोग (Ploughing-back of profits)
- संचालकों के ऋण (Loan from Directors)
- ह्रास कोष (Depreciation Fund)
- कर्मचारियों की प्रतिभूतियॉं (Securities of Employees)