जीवोम क्या है ?
जीवोम का Means –
‘‘जीवोम’’ Word घर का संक्षिप्त Reseller है।। जहॉं तक जीवोम की परिभाषा And वर्गीकरण का संबंध हैं, वैज्ञानिक इस संदर्भ में Singleमत नहीं हैं। जीवोम को Single वृहत् प्राकृतिक पारितंत्र के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता हैं। जिससे हम पौधो औ र जानवरों के समुदायों के कुल संकलन का अध्ययन करते हैं। ‘जीवोम’ को ‘पर्यावास’ भी कहते हैं। किसी जन्तु के पर्यावास , वह स्थान है जहां वह रहता है।
पर्यावास के कुछ उदाहरण झील, मरूस्थल, जंगल या जल की बूँद भी हो सकती हैं। कर्इ कीट पक्षी And जन्तु वृक्षों पर या झाड़ियों में रहते है।, जो उनकी शिकारियों से रक्षा करती हैं And घर बनाने के लिये स्थान उपलब्ध कराती हैं। पौधे जन्तुओं के लिये वास बनाने में मदद करते हैं। किसी जन्तु के पर्यावास को भौतिक पर्यावरण विशेषताओं के आधार पर पहचाना जा सकता हैं जैसे मिट्टी का प्रकार, जल की उपलब्धता, मौसम की दशा आदि। स्पष्ट हैं कि Single प्रकार की जलवायु And वनस्पति वाले पर्यावास को बायोम कहते हैं। संसार के विभिन्न हिस्सों में Single प्रकार के बायोम में विभिन्न प्रजातियाँ हो सकती हैं। परंतु इनमें से Single प्रकार के जीव प्रमुख होंगे। उदाहरण के लिये वर्षा वनों में वृक्षो की प्रमुखता होती है।। यह वस्तुत: इस पर आधारित नही है। कि ये वन कहाँ स्थित हैं?
जीवोम को प्रभावित करने वाले कारक –
बहुत से कारक हैं जो जीवोम के आकार, स्थिति और उसकी विशेषताओं को प्रभावित करते है।। महत्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार हैं:-
- दिन के प्रकाश और अंधेरे की अवधि। यह मुख्य Reseller से प्रकाश संश्लेषण की अवधि के लिये उत्तरदायी है।।
- औसत तापमान और ताप परिसर- चरम दशाओं को जानने के लिये (दैनिक तथा वार्षिक दोनों)।
- वर्धनकाल की अवधि।
- वर्षण, जिसके अंतर्गत वर्षण की कुल मात्रा And समय और तीव्रता के According इसमें परिवर्तन शामिल हैं।
- पवन प्रवाह गति, दिशा, अवधि और अंतराल सम्मलित हैं।
- मृदा प्रकार।
- ढ़ाल।
- अपवाह।
- अन्य पौधें और पशु जातियाँ।
जीवोम का वर्गीकरण :-
जीवोम के वर्गीकरण के दो प्रमुख आधार हैं। :-
(1) जलवायु के आधार पर-
जिसमें आर्द्रता की उपलब्धता पर विशेष बल दिया जाता है- जहॉं आर्द्रता प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती हैं, वहाँ वन जीवोम की प्रधानता रहती हैं और जहाँ आर्द्रता कम होती हैं वहां मरूस्थलीय जीवोम की। परंतु प्रत्येक जीवोम में तापमान की दशाएॅं भिन्न उच्चावचों (ऊचांइर्यों) और भिन्न अक्षांशों के मध्य भिन्न- भिन्न होती हैं। इसलिये इसके भी कर्इ उपविभाग करने की Need होती है इसके आधार पर निम्नांकित उपविभाग किये जा सकते हैं। :-
- वन जीवोम
- सवाना जीवोम
- घासभूमि जीवोम
- मरूस्थल जीवोम
(2) जलवायु And वनस्पति के आधार पर-
जीवोम का सबसे प्रमुख घटक वनस्पति हैं क्योंकि वनस्पति और जलवायु का घनिष्ठ संबंध है इसलिये विश्व को जलवायु के आधार पर विभिन्न जीवोमों में बाँटा जाता है पुन: इन जलवायु आधारित जीवोमों को वनस्पति के आधार पर विभिन्न उपविभागों में बाँटा गया हैं। जलवायु और वनस्पति के आधार पर जीवोमों का वर्गीकरण विश्व के तीन प्रमुख जीवोम को, मुख्य तीन ताप कटिबंध के आधार पर अध्ययन के लिये चुना गया हैं। वे प्रमुख तीन जीवोम हैं:-
- सदाहरित वर्षा वन जीवोम
- शीतोष्ण कटिबंधीय घासभूमि जीवोम
- आर्कटिक टुण्ड्रा जीवोम।
(1) सदाहरित वर्षा वन जीवोम –
i. भाागोलिक पृष्ठभूमि –यह जीवोम भूमध्य रेखा के दोनो ओर 100 अक्षांश तक फैला हुआ हैं। इसके अंतर्गत दक्षिण अमेरिका की अमेजन बेसिन की निम्न भूमि भूमध्य रेखीय अफ्रीका का कांगों बेसिन और दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपों (सुमात्रा से न्यूगिनी तक) के क्षेत्र सम्मिलित है इस क्षेत्र में वर्ष भर तापमान ऊँचा रहता हैं तथा ताप परिसर 20 सेल्सियस तक होता हैं। यहां दैनिक ताप परिसर वार्षिक ताप परिसर की अपेक्षा अधिक होता है। वर्षा वर्ष भर होती हैं। वर्षा प्राय: प्रतिदिन दोपहर के बाद होती है अधिक तापमान के कारण अधिक मात्रा में जलवाष्प वायुमंडल में पहुँच जाता हैं, इसीलिये यहाँ अधिक वर्षा होती हैं। यह क्षेत्र सम जलवायु वाला क्षेत्र समझा जाता है। क्योकिं तापमान और वर्षा दोनों ही पूरे वर्ष अधिक रहते है
ii. प्राकृतिक वनस्पति And प्राणी जीवन – अधिक गर्मी और आदर््रता के कारण यहाँ अनेक प्रकार के पौधों और पशुओं की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। पौधों की प्रजातियों की भिन्नता इस तथ्य से पता चलती है कि Single वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पौधों की लगभग Single हजार प्रजातियाँ मिलती हैं। अधिकतर वृक्षों के तने चिकने, उथली जड़ें And चौड़ी सदाबहार पत्तियाँ होती हैं। यहॉं वृक्षों की ऊंचार्इ 10 मीटर से 50 मीटर तक होती हैं। प्रमुख वृक्ष एबोनी, महोगनी, रोजवुड, सिनकोना, ताड़ आर्किड तथा अनानास के वृक्ष हैं। घने वृक्षों के कारण Ultra site की रोशनी धरातल तक नहीं पहुँच पाती। इस जीवोम में पशु-पक्षियों की बहुत प्रजातियाँ पायी जाती हैें। प्रमुख पशु-जगुआर, लैमूर, ओरांग, उटान तथा हाथी हैं। मकाऊ तोता, शाखालंबी और टूकन इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण पक्षी है।। अधिकतर पक्षी चटकीलें रगं के है। जलीय प्राणियों में कछुएं,ें घड़ियाल, मछलियाँ, मेंंढ़क, दरियार्इ घोड़ा आदि मुख्य हैं। वर्षा वन जीवोम विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का केवल 13 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है परंतु ये जीवोम विश्व की कुल उत्पादकता का 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता हैं।
(2) शीतोष्ण कटिबंधीय घासभूमि जीवोम:-
i. भौगोलिक पृष्ठभूमि- शीतोष्ण कटिबंधीय घास भूमियाँ दो विशिष्ट स्थानों पर स्थित हैं- उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों के आंंतरिक भागों में और दक्षिणी गोलार्द्ध में महाद्वीपों के सीमांत प्रदेशों में। इसीलिये दक्षिणी गोलार्द्व की शीतोष्ण कटिबंधीय घासभूमियों की जलवायु उत्तरी गोलार्द्ध की घासभूमियों की अपेक्षा संतुलित है, क्योंकि इनके तट के समीप होने के कारण इन पर समुद्री प्रभाव अधिक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध की घासभूमियों की विशेषता उनकी महाद्वीपीय जलवायु हैं। जहां पर गर्मियों में अधिक तापमान और शीत ऋतु में तापमान हिमांक बिंदु से नीचे रहता हैं। हांलाकि दक्षिणी गोलार्द्ध की घासभूमियाँ तट के साथ स्थित हैं, परन्तु ये ऊँचें तटवर्ती पर्वतों के वृष्टि छाया क्षेत्रों में स्थित हैं। इसीलिये यहाँ पर वर्षा बहुत कम होती हैं। ये घासभूमियाँ All महाद्वीपों में पार्इ जाती हैं, जो भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ये घासभूमियाँ काफी विस्तृत है।। यूरेशिया महाद्वीप में इन्है। स्टेपी कहते हैं। ये काला सागर के तट से पूर्व की ओर चीन में मंचूरिया के मैदान तक विस्तृत हैं। उत्तरी अमेरिका में ये घासभूमियाँ काफी बड़े क्षेत्र पर फैली हुर्इ हैं तथा इन्हें प्रेयरी कहते हैं। ये क्षेत्र राकी पर्वत और महान झाीलों के बीच स्थित हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में ये घासभूमियाँ उतनी विस्तृत नहीं हैं। अर्जेंटीना और उरूग्वे (दक्षिणी अमेरिका) में इन घासभूमियों को पम्पास कहते हैं। दक्षिण अफ्रीका में ये घासभूमियाँ ड्रेकन्सबर्ग पर्वत और कालाहारी मरूस्थल के बीच स्थित है। इन्है। यहाँ वेल्ड कहते है। आस्ट्रेलिया में इन घासभूमियों को डाउन्स कहते हैं। ये दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में मरे-डार्लिंग नदियों की द्रोणी में स्थित हैं। ये All घासभूमियाँ शीतोष्ण कटिबंध में स्थित हैं, इसीलिये इन्हें शीतोष्ण कटिबंधीय घासभूमियाँ भी कहते हैं।
ii. प्राकृतिक वनस्पति And प्राणी जीवन- यहाँ पर वर्षा की मात्रा इतनी कम है। कि पेड़ नहीं उग सकते, परतुं वर्षा की मात्रा घास उगने के लिये पर्याप्त हैं।इसीलिये इन प्रदेशों की प्राकृतिक वनस्पति वृक्षरहित घासभूमियाँ हैं। वृक्ष केवल पहाड़ी ढ़लानों पर दिखार्इ देती है जहां पर वर्षा की मात्रा अधिक हैं। वर्षा की मात्रा और मृदा के उपजाऊपन के According घास की ऊँचार्इ स्थान-स्थान पर भिन्न-भिन्न हैं। स्टेपी घासभूमियों की छोटी And पौष्टिक घास विशेष Reseller से Historyनीय हैं। इन प्रदेशों में घास उगने का समय ऋतुओं के According भिन्न-भिन्न होता हैं। बसंत ऋतु प्रारंभ होते ही छोटी घास हरी-भरी, ताजी तथा सुंदर दिखार्इ देने लगती है। ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापमान और अधिक वाष्पीकरण होने के कारण हरी घास बिलकुल मुरझाकर समाप्त हो जाती हैं, लेकिन इस घास की जड़े धरातल में जिंदा रहती हैं और पूरी शीत ऋतु में निष्क्रिय पड़ी रहती हैं। जैसे ही बसंत ऋतु प्रारंभ होती हैं, ये फिर हरी भरी हो जाती है। ये घासभूमियाँ विभिन्न प्रकार के जीवों के प्राकृतिक आवास हैं। इनमें से प्रमुख हैं हिरण, जंगली गधे, घोड़ें, भेड़िया, कंगारू, ऐमू तथा डिंमू अथवा जंगली कुत्ता ।
iii. Humanीय अनुक्रियाएॅं- कोर्इ अन्य जीवोम इतने परिवर्तनों से नहीं गुजरा जितना कि शीतोष्ण कटिबंधीय घासभूमि जीवोम। यह सब कुछ Humanीय अनुक्रियाओं के कारण हुआ हैं। (अ) अधिकतर घासभूमियों को कृषि भूमियों में बदल दिया गया है जो अब विश्व के प्रसिद्ध अनाज भंडार बन गयें हैं। (ब) दूसरा निर्णायक कारक जो इस अछूती भूमि को बदलने के लिये उत्तरदायी है, वह हैं- पशुपालन। (स) बड़े पैमाने पर पशुओं के शिकार करने के कारण कुछ जानवरो की संख्या बहुत कम हो चुकी है और कुछ जीव विलुप्त हो गए है।। जैसे- हिरण, जेबरा मोर, तेंदुआ आदि यूरोपियन अप्रवासियो द्वारा बड़े पैमाने पर शिकार करने के कारण अफ्रीकन वैल्ड से गायब हो गये। हैं।
3. आर्कर्टिक टुण्ड्रा जीवोम:-
i. भौगोलिक पृष्ठभूमि- मूलत: यह Single ठण्डा मरूस्थल हैं जिसमें वायुमंडलीय नमी नगण्य होती हैं और ग्रीष्म ऋतु इतनी छोटी और ठंडी होती हैं कि वृक्ष जीवित नहीं रह सकते। यह जीवोम उत्तरी गोलार्द्ध के उत्तरी भागों में फैला हुआ है। इसके अंतर्गत अलास्का के कुछ भाग कनाडा, के उत्तरी भाग, ग्रीनलैंड के तटवर्ती भाग और रूस के आर्कटिक समुद्रतटीय क्षेत्र सम्मिलित है।
- न्यूनतम Ultra site प्रकाश और Ultra siteातप
- भूमि में पोशक तत्वों जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी अथवा बिल्कुल न होना।
- कम विकसित मृदा।
- मृदा में नमी की कमी।
- धरातल का स्थार्इ Reseller से बर्फ से ढ़के रहना।
- बहुत छोटा वर्धन काल। ग्रीष्म ऋतु में बर्फ के पिघलते ही टुण्ड्रा में जीवन फिर लौट आता है। इस समय फूलों वाले पौधे, मच्छरों और मक्खियों की बहुत बड़ी संख्या को आश्रय देते हैं और बदले में ये बहुत बड़ी संख्या में अप्रवासी मुर्गाबियों कों भोजन पद्रान करते है।
iii. Humanवीय अनुक्रियायें- यहाँ के कठोर वातावरण में बहुत कम लोग रह पाते है। यूरेशियन टुण्ड्रा मे ं सेमाये डस् , लैप्स, फिन्स तथा याकूत जनजातियाँ तथा कनाडा और अलास्का के एस्किमों लोग यहाँ के मूल निवासी हैं और सदियों से जीवन व्यतीत कर रही हैं। ये जातियाँ अब स्थार्इ अथवा अर्द्धचलवासी जीवन व्यतीत कर रहें है। इन्होने नयी तकनीकों को अपना लिया है। उदाहरण के लिये घातक राइफलों ने परम्परागत और पुराने हारपून का स्थान ले लिया है। अतं: नवीनतम तकनीेकों से लैस आधुनिक Single्सिमों आज टुण्ड्रा पारितंत्र को Destroy करने के लिये उसी स्थिति में हेैं जिसमें तकनीकी Reseller से विकसित Human ने अन्य जीवोमों में Reseller है। यूरेशियन टुण्ड्रा के सेमोयड्स तथा अन्य जातियों ने नर्इ जीवन शैलियों को अपना लिया हैं। इनमें से कुछ स्थायी Reseller से Single स्थान पर रह रहे हैं। ये रेंडियर और फरवाले अन्य जानवरों को पालते है। साइबेरियन टुण्ड्रा में खाद्य फसलों में मुख्यत: गेहूँ की खेती करते है। हाल के वर्षो में खनिजों की खोज जैसे अलास्का में सोना और खनिज तेल, लेब्राडोर में लौह अयस्क, साइबेरिया में निकिल ने खनन बस्तियों की स्थापना और यातायात के साधनों के विकास को प्रोत्साहित Reseller है। परन्तु खनन क्रियाओं ने यहां प्रदूषण तथा इस कमजोर पारितंत्र के लिये अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा कर दी हैं।