स्मृति का Means, परिभाषा And प्रकार
स्मृति और विस्मृति हमारे दैनिक जीवन में नित्य प्रतिदिन होने वाले अनुभव के विषय हैं। मनोवैज्ञानिकों के According स्मृति Single मानसिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब हम किसी विषय को समझ लेते हैं और सीख लेते हैं तब मस्तिष्क इनकी सूचनाओं का भण्डारण कर लेता है और इन सूचनाओं का पुनरूद्धार सामान्यत: प्रत्याàान (Recall) के Reseller में होता है। Single प्रकार से सूचनाओं का पुनरूद्धार ही स्मृति है।
स्मरण या स्मृति चिंतन, कल्पना, संवेदना आदि की तरह Single मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने किसी अतीतानुभव या शिक्षण को वर्तमान चेतना में लाते हैं और पहचानते हैं। अत: स्मरण प्रक्रिया के लिए पूर्व के अनुभव या पूर्व से सीखना आवश्यक है। कालान्तर में जब हम उन अनुभवों या शिक्षण को अपनी चेतना में लाते हैं या पुनव्र्यक्त करते हैं तो चेतना में लाने और पहचानने की मानसिक प्रक्रिया ही स्मरण कहलाती है। स्मरण Single जटिल मानसिक प्रक्रिया है और इसे कल्पना, चिंतन, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि प्रक्रियाओं से भिé करना सरल नहीं है। स्मरण क्रिया में चार प्रक्रियाएं होती हैं या चार तत्त्व विद्यमान रहते हैं-
- स्थिरीकरण या अधिगम
- धारणा
- प्रत्याàान या पुन: स्मरण
- प्रतिभिज्ञा।
स्थिरीकरण में किसी विषय का अनुभव और शिक्षण आवश्यक है। अत: अनुभव या शिक्षण स्मरण की पहली प्रक्रिया है जो स्थिरीकरण के अन्तर्गत आती है। अनुभव में आए हुए या सीखे हुए विषय को संजोने की प्रक्रिया धारणा में आती है जो कि स्मरण की दूसरी प्रक्रिया है। धारणा में संजोये विषय को चेतना में लाना प्रत्याàान (Recall) कहलाता है जो कि स्मरण की तीसरी प्रक्रिया है। जब हम प्रत्यावाहित अनुभव या शिक्षण को पहचानते हैं तो यह प्रतिभिज्ञा (Recognition) की प्रक्रिया कहलाती है जो कि स्मरण की चौथी प्रक्रिया है।
स्मृति की परिभाषाएं
कर्इ मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति या स्मरण को विभिé प्रकार से परिभाषित Reseller है। इनमें विलियम जेम्स, वुडवर्थ और हिलगार्ड तथा ऐटकिन्सन And लेहमैन, लेहमैन And बटरफिल्ड प्रमुख है। डॉ. एस.एन. शर्मा ने विलियम जेम्स की परिभाषा को इस प्रकार परिभाषित Reseller है ‘‘स्मरण किसी घटना अथवा तथ्य का ज्ञान है जिसके अतिरिक्त किसी अन्य चेतना के बारे में विचार नहीं कर रहे हैं, जैसाकि हम First विचार अथवा अनुभव कर सके हैं।’’
वुडवर्थ के According, ‘‘पूर्व में Single बार सीखी गयी क्रिया का पुन: स्मरण ही स्मृति है।’’
हिलगार्ड और ऐटकिन्सन के According, ‘‘स्मृति का Means है कि वर्तमान में उन अनुक्रियाओं या प्रतिक्रियाओं को प्रदर्शित करना जिनको हमने First सीखा था।’’ लेहमैन, लेहमैन And बटरफिल्ड के According विषेश कालावधि के लिये सूचनाओं को संपोशित रखना ही स्मृति है।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि स्मृति का स्वReseller शारीरिक और मानसिक जटिल स्वReseller है जिसमें तीन प्रकार की मानसिक प्रक्रियाएं होती हैं। मनोविज्ञान में स्मृति के स्वReseller का विवेचन दो प्रकार से Reseller गया हैं- 1. कर्इ मनोवैज्ञानिक स्मृति को Single ही स्थिति वाली ऐसी व्यवस्था मानते हैं जिसमें सूचनाओं की प्रक्रिया भिé-भिé स्तर पर होती है, 2. Second अनेक मनोवैज्ञानिक स्मृति को बहु अवस्था प्रक्रिया की Creation के Reseller में मानते हैं।
स्मृति के प्रकार
ऐटकिन्सन तथा शिफरिंग ने स्मृति के स्वReseller की व्याख्या करने के लिए Single सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller। उन्होंने स्मृति को तीन वर्गों में रखा-
- सांवेदिक स्मृति
- अल्पकालिक स्मृति
- दीर्घकालिक स्मृति
1. सांवेदिक स्मृति
इस प्रकार स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर कुछ क्षणों के लिए भण्डारित रहती है। सांवेदिक स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के According रहती है। जितनी ज्ञानेन्द्रियां हैं उतनी प्रकार की सांवेदिक स्मृतियों की कल्पना की जा सकती है। ज्ञानेन्द्रियां अपने स्तर पर किसी उद्दीपन या उत्तेजना की सूचनाओं को प्राप्त करती है और ये सूचनाएं कुछ क्षणों के लिए ही बनी रहती हैं। जैसे चक्षुओं से देखे गये कुछ दृश्यों के संवेदना की स्मृति, नाक से ली गर्इ गंध के संवेदना की स्मृति, जिàा से प्राप्त रस संवेदना की स्मृति, श्रवणेन्द्रिय से Word संवेदना की स्मृति और त्वचा से स्पर्श संवेदना की स्मृति। यदि ज्ञानेन्द्रियों के समक्ष उद्दीपन तीव्र है तो सम्भवत: उसकी स्मृति अल्पकालिक या दीर्घकालिक भी हो सकती है।
मनोवैज्ञानिक स्पर्लिग (1960) And नाइस्सेर (1967) ने चाक्षुष सांवेदिक स्मृति (Visual sensory memory) और श्रवणात्मक सांवेदिक (Auditory sensory memory) पर प्रयोगात्मक शोध अध्ययन किये हैं। उनके According नेत्रों के सामने से उपस्थित उद्दीपक हट जाने के बाद भी नेत्रों के अक्षपटल पर उद्दीपक का प्रतिचित्र कुछ क्षणों के लिए बना रहता है। अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि उद्दीपक के हटने के बाद भी उद्दीपक का प्रतिचित्र नेत्रपटल में भण्डारित रहता है और स्मृति पटल पर लाया जा सकता है।
जिस प्रकार से चाक्षुष सांवेदिक स्मृति भण्डार होता है उसी प्रकार श्रवणात्मक सांवेदिक स्मृति भण्डार भी होता है और दूसरी अन्य ज्ञानेन्द्रियों से सम्बंधि सांवेदिक स्मृति भण्डार होते हैं।
2. अल्पकालिक स्मृति या स्मरण
इस प्रकार की स्मृति में प्राप्त सूचनाएं बहुत ही सीमित समय तक रहती है। इसमें प्राय: ऐसी सूचनाएं रहती हैं जो वर्तमान समय की होती हैं तथा तात्कालिक Reseller से प्राप्त की गर्इ है। मनोवैज्ञानिकों ने अल्पकालिक स्मृतियों को चार प्रकार की बताया है। ये हैं सक्रिय स्मृति (Active memory), कार्यकारी स्मृति (Working memory), प्राथमिक स्मृति (Primary memory) And तात्कालिक स्मृति (Immediate memory)। अधिगम या सीखने (Learning) प्रक्रिया के समय विशेषकर वाचिक अधिगम के क्षेत्र में इस प्रकार की स्मृति का उपयोग होता है। अल्पकालिक स्मृति के बारे में मनोवैज्ञानिक हेब्ब (1949) का यह मानना है कि इसका आधार मस्तिष्क के कुछ स्नायु कोशिकाओं में क्रिया का Single जाल-सा है जिसमें Single कोशिका में होने वाली क्रिया दूसरी कोशिका को सक्रिय करती है जिससे Single अनुरणन वृत्त (Reverbratory Circuit) बन जाता है। पुन: अभ्यास के अभाव में या समय बीतने के कारण यह क्रियाएं मन्द पड़ जाती हैं और कुछ काल बाद समाप्त हो जाती हैं।
3. दीर्घकालिक स्मृति
हम All का यह अनुभव है कि कर्इ घटनाएं हमें जीवनभर याद रहती हैं और कर्इ घटनाएं हम कुछ ही दिनों में भूल जाते हैं। प्राय: हर व्यक्ति में विशाल And अपेक्षाकृत Reseller से स्थार्इ स्मृति होती है। जब Wordों का Means हम Single बार अच्छी तरह समझ लेते हैं या किसी घटना की क्रिया को Single बार ठीक से समझ लेते हैं तो प्राय: उसे भुलते नहीं। फिर भी कर्इ बार हम कुछ महिनों या वर्षों में भुल भी जाते हैं, उनकी विस्मृति हो जाती है। टुलविंग (1972) ने दो प्रकार की दीर्घकालिक स्मृतियों का वर्णन Reseller है-
- वृतात्मक स्मृति तथा
- Wordार्थ विषयक स्मृति।
First प्रकार की स्मृति Meansात् वृतात्मक स्मृति में घटनाओं और उनके कालिक-स्थानिक (Temperal spatial) सम्बंधों को ग्रहण कर भण्डारित Reseller जाता है। जबकि दूसरी प्रकार की स्मृति Meansात् Wordार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में भाषा का उपयोग होता है। इसमें व्यक्तिवाचिक प्रतीकों (Verbal symbols), Wordों And उनके Meansों तथा उनके पारस्परिक सम्बंधों और सूत्रों का भण्डारण करता है और इसी स्मृति के आधार पर वह प्रतीकों And उनके सम्बंधों का उपयोग करता है। इस प्रकार की स्मृति में व्यक्ति में अनेक प्रतिमाएं (Image), संज्ञानात्मक मानचित्र (Cognative map) तथा स्थानिक विशेषताओं (Spatial specialities) का भण्डारण होता है। उक्त दोनों प्रकार की स्मृतियां Single Second से सम्बंधित है तथा Single Second के लिए पूरक होती है। टुलविंग ने अपने आगे के शोधकार्यों (1983, 1984, 1985) में इन दोनों प्रकार की स्मृतियों में सम्बंध पाया है।
वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) And Wordार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में कुछ निम्न विशेषताएं होती हैं-
- दोनों स्मृतियों के स्वReseller And संCreation में अन्तर है। वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) का सम्बंध किसी अनुभव विशेष के भण्डारण से होता है जबकि Wordार्थ विषयक (Semantic memory) का सम्बंध Wordों और प्रतीकों के संगठित ज्ञान के भण्डारण से होता है।
- विस्मरण के स्वReseller के आधार पर दोनों स्मृतियों में भिéता होती है। वृतात्मक स्मृति का विस्मरण शीघ्रता से होता है जबकि Wordार्थ स्मृति का देरी से।
- वृतात्मक स्मृति And Wordार्थ विषय स्मृतियां Single Second से भिé होते हुए भी परस्पर अन्तर्क्रिया करती हैं। दीर्घकालिक स्मृति (Long Term Memory) में स्मृति का भण्डारण वाचिक कूट संकेतों (Verbal encoding) से ही होता है।
मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि मूर्त्त अथवा अमूर्त्त गुणधर्मों And सम्प्रत्ययों का दीर्घकालिक स्मृति में भण्डारण भाषा के Reseller में ही होता है। व्यक्ति जो कुछ भी स्मरण करता है, जैसे परिचित लोगों के चेहरे, वस्तुओं का रंग-Reseller या कोर्इ घटना, उनके कूट संकेत वाचिक ही होते हैं।