बिस्मार्क की नीति
बिस्मार्क की गृह नीति
1. नवीन संविधान का निर्माण
जर्मनी के Singleीकरण के पश्चात जर्मन साम्राज्य के लिए Single संविधान का निर्माण Reseller गया। इस संविधान को संघात्मक संविधान की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। यह 25 छोटे-बड़े राज्यों तथा इम्पीरियल प्रदेश आल्सास व लॉरेन का सम्मिलित संघ राज्य था।
इस नवीन संविधान के According –
- साम्राज्य-साम्राज्य का प्रमुख सदैव के लिए प्रशा का सम्राट होगा। वह इस संघ का अध्यक्ष रहेगा। शासन की समस्त सत्ता राज्यों की समष्टि में निहित थी जो उसका पय्र ागे विधान-सभा के द्वितीय सदन (साम्राज्य-परिषद्) में अपने प्रतिनिधियों द्वारा करते थे। उसके अधिकार निम्न श्रेणियों में विभक्त किये जाते हैं- (1) साम्राज्य का प्रतिनिधि-वह विदेशी राज्यों तथा संघ में सम्मिलित राज्यों के साम्राज्य का प्रतिनिधि था। (2) साम्राज्य परिषद-King को Single समिति की सलाह से कार्य करना था जिसे साम्राज्य-परिषद् कहते हैं। इस समिति की सहायता से विदेशी संबंधों की स्थापना करना, राजदूतों का स्वागत करने, उसकी नियुक्त करने, Fight तथा संधि करने के अधिकार प्राप्त थे। परन्तु उसको आक्रमणात्मक Fightों के लिये साम्राज्य-परिषद् की अनुमति अवश्य प्राप्त करनी होती है। (3) व्यवस्थापिका-संबंधी अधिकार-उसको विधान-सभा के अधिवेशन आमंत्रित करने, उसको स्थापित करने तथा साम्राज्य-परिषद् की अनुमति से First भवन को भंग करने का अधिकार प्राप्त था। (4) कार्यपालिका संबंधी अधिकार-उसको विधान के According कार्य न करने वाले राज्य को दण्ड देने तथा साम्राज्य की विधियों की घोषणा करने तथा उसको कार्यान्वित करने का अधिकार था।
- चांसलर – इस संविधान में जर्मन साम्राज्य के लिये Single चांसलर की व्यवस्था थी। वह केवल सम्राट के प्रति उत्तरदायी था, न कि जर्मन साम्राज्य की व्यवस्थापिका सभा के। इस प्रकार उसकी Appointment का अधिकार तथा पदच्युत करने का अधिकार जर्मन साम्राज्य के सम्राट में ही निहित था। उसकी सहायता के लिए सचिव थे। वह साम्राज्य-परिषद् का सभापति होता था। जर्मन साम्राज्य के चांसलर पद को बिस्मार्क ने लगभग 20 वर्षों तक सुशोभित Reseller।
- व्यवस्थापिका सभा – व्यवस्थापिका के दो सदन थे जिनमें से First सदन रीचस्टेग और द्वितीय सदन बन्डरेस्ट कहलाते थे- (1) रीचस्टेग – First सदन के सदस्यों का निर्वाचन जनता करती थी। इसकी संख्या 397 थी। जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक राज्य की जनता निश्चित सदस्यों का निर्वाचन करती थी। इनका निर्वाचन पांच वर्ष के लिये 25 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले पुरूष करते थे। इसका मुख्य कार्य कार्यकारिणी को सलाह देना तथा उसके कार्यो की समालोचना करना था। सम्राट को इस सभा के भंग करने का अधिकार था। उसको थलसेना, नौसेना, व्यापार, आयात-निर्यात, कर, रेलवे, डाक-तार, दीवानी तथा फौजदारी विधियां, आदि बनाने का अधिकार था, किन्तु उसके पास अंतिम अधिकार नहीं था। उसके द्वारा निर्मित विधियां उस समय तक मान्य नहीं की जाती थीं जिस समय तक दूसरी सभा बन्डरेस्ट उसको स्वीकार नहीं करती थी। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि उसके हाथ में विशेष सत्ता नहीं थी और वह केवल Single परामर्श देने वाली संस्था का कार्य करती थी। (2) बन्डरेस्ट – द्वितीय सदन बन्डरेस्ट के सदस्यों की Appointment संघ शासन में सम्मिलित राज्यों के King करते थे। प्रशा को 17, बवेरिया को 5, सेक्सनी तथा बर्टेमबुर्ग को चार-चार और है।स को तीन और शेष राज्यों को Single-Single प्रतिनिधि की Appointment करने का अधिकार प्राप्त था। इनको अपना स्वतंत्र मत प्रदान करने का अधिकार नहीं था, वरन् उन्हें अपने राज्य के Kingओं के आदेशानुसार मत देना होता था। उसको कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। वह विधियों की स्त्रोत थी। अधिकांश Reseller में समस्त विधियों का First प्रस्ताव इसी सभा में प्रस्तावित Reseller जाता था। वह सम्राट के साथ मिलकर किसी देश के विरूद्ध Fight की घोषणा कर सकती थी।
- केन्द्रीय शक्ति को प्रधान बनाना – बिस्मार्क ने निम्न उपायों द्वारा केन्द्रीय शासन की शक्ति को प्रधानता स्थापित की- (1) इम्पीरियल संस्थाओं की स्थापना – बिस्मार्क ने जमर्न -साम्राज्य में सम्मिलित समस्त राज्यों की पृथक संस्थाओं का अंत करके उनके स्थान पर इम्पीरियल संस्थाओं का निर्माण करना आरंभ Reseller। (2) समान विधियों को कार्यान्वित करना – जर्मनी के विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार की विधियां कार्यान्वित थीं। बिस्मार्क ने समस्त जर्मन साम्राज्य के लियेSingle फौजदारी विधि का निर्माण Reseller। (3) राष्ट्रीय न्यायालयों की स्थापना – बिस्मार्क ने सम्पूर्ण जमर्न साम्राज्य के लिये राष्ट्रीय न्यायालयों की स्थापना की। (4) समान मुद्रा-पद्धति की स्थापना – बिस्मार्क ने 1873 र्इ. में Single विधि द्वारा समस्त जमर्न साम्राज्य में Single समान मुद्रा पद्धति को लागू Reseller। उसने मार्क का प्रचलन Reseller। नए मार्क के सिक्के पर जर्मन सम्राट विलियम First की तस्वीर अंकित की गर्इ। (5) इम्पीरियल बैंक की स्थापना – 1876 र्इ. में उसने Single इम्पीरियल बैंक की स्थापना की और साम्राज्य के अंतर्गत बैंकों का उसने संबंध स्थापित Reseller। (6) रेल, तार और टेलीफोन पर केन्द्रीय सरकार का नियंत्रण – रेल, तार और टेलीफोन केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत कर दिए।
- चर्च के प्रति बिस्मार्क की नीति (कुल्चुरकैम्फ) – जर्मनी में रोमन कैथोलिक धर्म बड़ा प्रबल था और राज्य की ओर से उसको पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। प्रशा की जनता अधिकतर प्राटे ेस्टेंट थी और अन्य राज्यों की अधिकांश जनता रामे न कैथाेि लक धर्म की अनुयायी थी। वे बिस्मार्क की जर्मनी Singleीकरण की नीति के विरोधी थे, क्योंकि उनको यह भय था कि यदि जर्मनी का Singleीकरण सफल हो गया तो वे प्रोटेस्टेटांे के नियंत्रण में आ जायेगें और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का अंत हो जायगे ा। इसके विपरीत बिस्मार्क भी इनका दमन करना चाहता था, क्योंकि वे जर्मन साम्राज्य के प्रति भक्ति न रखकर पोप के प्रति भक्ति तथा श्रद्धा रखते थे। 1870 र्इ. में रोम के पोप ने चर्च के मामलों में सरकार के हस्तक्षेप का विरोध Reseller था। उसने पादरियों को यह आदेश दिया कि समस्त विद्यालयों में धर्म की शिक्षा दी जाए। इसके आदेशानुसार रोमन कैथाेि लक पादरियों ने सरकार से यह मांग की। बिस्मार्क इस बात को सहन नहीं कर सका, क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा देने का Means होगा जर्मन राष्ट्रीयता तथा Singleता का विनाश जिसकी प्राप्ति बिस्मार्क ने अकथनीय प्रयत्न द्वारा की थी और जो उसकी नीति का Single भाग था तथा उसको विशेष प्रिय था। यह संघर्ष कर्इ वर्षों तक चलता रहा। इस संघर्ष को कुल्चुरकैम्फ Meansात् ‘संस्कृति का Fight’ भी कहते हैं।
पापे के 1870 र्इ. के आदेश का विरोध केवल प्रोटेस्टेटांे ने ही नहीं Reseller वरन् कुछ याग्े य तथा समझदार रोमन कैथोलिक ने भी Reseller। 1871 र्इ. के निर्वाचन में 63 रोमन कैथोलिकों का निर्वाचन जर्मन-साम्राज्य की व्यवस्थापिका सभा के First सदन रीचस्टेग के लिये हुआ, जिन्होंने बिस्मार्क की नीति की कटु आलोचना की। उन्होंने स्पष्ट Reseller से घोषणा की कि पोप का आधिपत्य पुन: स्थापित Reseller जाना चाहिये जिस प्रकार वह मध्य युग में था। इस परिस्थिति के उत्पन्न होने पर बिस्मार्क बड़ा चिंतित हुआ। वह इस समस्या को धार्मिक समस्या न समझकर राजनीतिक समस्या समझता था। अत: उसने रोमन कैथोलिकों का दमन करने का निश्चय Reseller।
Single ओर तो सरकार की ओर से कठोर दमनकारी विधियां पास की गर्इ और दूसरी ओर कैथोलिकों का आंदोलन तीव्र होता चला गया। पोप ने समस्त अधिनियमों को अवैध घोषित Reseller और पादरियों को उनका उल्लंघन करने का आदेश दिया। जितना दमन Reseller गया उतना ही आन्दोलन ने उग्र Reseller धारण Reseller। 1877 के निर्वाचन में 92 कैथोलिक लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। इनका दल सबसे अधिक संख्या में था। अत: कुछ गैर-कैथोलिकों ने भी सरकार की दमन नीति की आलोचना करना आरंभ Reseller।
बिस्मार्क Single उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ था। परिस्थितियों से वह समझ गया कि कैथोलिकों का दमन करना सरल कार्य नहीं है। इसके साथ-साथ साम्यवादी विचारधारा का प्रवाह तेजी से हो रहा था जिसका सामना बिस्मार्क को करना था और वह दोनों का Single साथ सामना करने में अवश्य असफल हो जाता। वास्तव में वह साम्यवाद के दमन करने में कैथोलिकों की सहायता प्राप्त करना चाहता था जिसके कारण उसने कैथोलिकों के संघर्ष का अंत करने का निश्चय Reseller और 1878 र्इ. में वह पापे से संधि करने में सफल हुआ। किन्तु बिस्मार्क को कैनोसा जाना पड़ा और समझौता करना पड़ा। History कारों ने इसे बिस्मार्क की पराजय कहा है।
बिस्मार्क की आर्थिक नीति
बिस्मार्क ने जर्मनी की आर्थिक दशा को उन्नत करने का विशेष प्रयत्न Reseller जिसके कारण राज्य की आय में वृद्धि हुर्इ और सरकार दृढ़ तथा सुसंगठित सेना रखने में सफल हुर्इ। उसने मुक्त व्यापार की नीति के स्थान पर संरक्षण की नीति को अपनाया। मुक्त व्यापार की नीति इंगलैंड में पर्याप्त सफलता प्राप्त कर चुकी थी। बिस्मार्क स्वयं भी First इसी नीति का अनुयायी था। किन्तु कुछ विशेष कारण्ज्ञों के उत्पन्न होने पर उसने संरक्षण नीति को जर्मन के लिये अधिक श्रेयस्कर तथा हितकर समझा। उसके प्रमुख कारण थे-
- कृषि की शोचनीय अवस्था
- आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना
1. बिस्मार्क और समाजवाद
1878 र्इ. के उपरांत बिस्मार्क का ध्यान समाजवादियों की ओर आकर्षित हुआ जो व्यावसायिक क्रान्ति के परिणामस्वReseller मजदूरों को अपनी और आकर्षित कर अपना दृढ़ संगठन कर रहे थ।े जर्मनी में समाजवाद का जन्मदाता कार्ल माक्र्स था, किन्तु जर्मनी में आधुनिक समाजवाद तथा धार्मिक आन्दोलन का नेता फर्डिनेन्ड लासाल था। कार्ल माक्र्स और लासाल में सिद्धांत के प्रति पर्याप्त विभिन्नतायें विद्यमान थीं जिसके कारण आरंभ में जर्मनी में समाजवाद को विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुर्इ, किन्तु 1875 र्इ. में दोनों में पारस्परिक समझातै ा होने के फलस्वReseller समाजवाद को बड़ा पा्र त्े साहन प्राप्त हुआ। उन्होंने सामाजिक प्रजातान्त्रिक दल की स्थापना की। 1878 र्इ. से पूर्व ही बिस्मार्क उनके सिद्धांत तथा नीति का कट्टर विरोधी था? क्योंकि वे उन सिद्धांतो का प्रतिपादन करते थे जो उसके अपने सिद्धांत से पूर्णतया विरूद्ध थे। वे प्रजातंत्र के समर्थक और सैनिकवाद के विरोधी थे, परन्तु बिस्मार्क प्रजातंत्र का शत्रु और सैनिकवाद का पुजारी था, अत: दोनों में संघर्ष होना अनिवार्य था।
बिस्मार्क के समाजवाद के अन्त करने के उपाय –
बिस्मार्क ने समाजवाद का जर्मनी से अंत करने के लिये दो उपाय किये (क) समाजवादियों का कठारे तापूर्वक दमन तथा (ख) श्रमिकों की दशा को उन्नत करना। किन्तु समाजवादियों का दमन कोर्इ आसान कार्य नहीं था इसीलिए इस दिशा में बिस्मार्क को आंशिक सफलता ही प्राप्त हो सकी।
बिस्मार्क की विदेश नीति
बिस्मार्क की गणना उस महान् राजनीतिज्ञों तथा कूटनीतिज्ञों में की जाती है जिन्होंने अपने युग को अपने विचारों तथा कार्यों द्वारा प्रभावित Reseller, उसका राजनीतिक प्रभाव उसकी विदेश नीति से स्पष्ट होता है। 1871 से पूर्व उसकी राजनीति का मुख्य उद्देश्य यूरोप में ंजर्मन राज्य का Singleीकरण प्रशा के नेतृत्व में करना था और इस उद्देश्य की पूर्ति उसने दो महान Fightों द्वारा प्राप्त की। किन्तु 1871 र्इ. के उपरांत उसका उद्देश्य जर्मन शक्ति को स्थायित्व Reseller देना तथा यूरोप में शान्ति की स्थापना करना था। 1871 र्इ. से 1890 र्इ. तक, वह जर्मन साम्राज्य के चान्सलर के पद पर आसीन था, तब उसने यूरोपीय राजनीति को बड़ा प्रभावित Reseller।
1. विदेश नीति के उद्देश्य
- यूरोप में शांति की स्थापना – बिस्मार्क की हार्दिक इच्छा यह थी कि यूरोप में किसी प्रकार से शांति भंग न हो। यह सत्य है कि जर्मन साम्राज्य का निर्माण बिस्मार्क ने सैनिकवाद के आधार पर Reseller तथा उसने अपने रक्त और लोहे की नीति के According Reseller था, किन्तु उसने सैनिकवाद को अपने उद्देश्य की पूर्ति का केवल साधन बनाया न कि साध्य : उसका लक्ष्य फ्रांस और ऑस्ट्रिया को Defeat कर पूर्ण हो चुका था और अब वह जर्मनी की स्थिति से पूर्णतया संतुष्ट था। अब वह जर्मनी का दृढ़ संगठन करना चाहता था जिसके लिये शांति की स्थापना अनिवार्य थी।
- फ्रांस को अकेला रखना – बिस्मार्क जानता था कि फ्रांस अपनी पराजय का बदला जर्मनी से अवश्य लेने का प्रयास करेगा, क्योंकि फ्रांस को आल्सेस और लोरेन के प्रदेश विशेष प्रिय थे, जिन पर जर्मनी ने अधिकार कर लिया था। फ्रांस उनको लेने के लिए अवश्य प्रयत्न करेगा, किन्तु वह अकेला जर्मनी से Fight नहीं कर सकेगा और Fight उसी समय संभव होगा जब वह यूरोप के अन्य देशों में से किसी को अपना मित्र बनाये। अत: बिस्मार्क की नीति यह रही कि फ्रांस का कोर्इ भी यूरोपीय देश मित्र नहीं बन सके।
- यथा-स्थिति की स्थापना – बिस्मार्क का उद्देश्य था कि यूरोप में यथा-स्थिति की स्थापना की जाये। इसका अभिप्राय है कि समस्त राज्यों की जो सीमायें 1871 र्इ. में थी वे ही निश्चित रहै।। उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं Reseller जाये। अन्यथा की स्थिति में Fight की संभावना हो सकती थी।
2. विदेश नीति का क्रियान्वयन
उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बिस्मार्क ने 20 वर्ष तक अकथनीय प्रयत्न Reseller, यद्यपि इनकी प्राप्ति के लिये उसको विशेष आपत्तियों तथा कठिनार्इयों का सामना करना पड़ा, किन्तु अपनी सैनिक शक्ति और कूटनीति के आधार पर बिना Fight किये वह उनकी प्राप्ति में सफल हुआ। बिस्मार्क भली-भांति समझता था कि यूरोप की शांति अल्सास और लोरेन तथा बालकन के प्रश्न पर भंग हो सकती है। इसी कारण उसने अपने शासन-काल में ऐसा प्रयत्न Reseller कि इन दोनों प्रश्नों पर शांति भंग न हो अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उसने कार्य किये –
- तीन सम्राटों का संघ – अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये First बिस्मार्क ने ‘‘तीन सम्राटों के संघ’’ का निर्माण करने का निश्चय Reseller। बिस्मार्क ने राजतंत्र की दुहार्इ देकर आस्ट्रिया और रूस के सम्राटों को अपने पक्ष में Reseller, क्योंकि उसको यह भय था कि जर्मनी द्वारा पराजित दोनों राज्य आस्ट्रिया और फ्रांस सम्मिलित होकर जर्मनी के विरूद्ध Fight की घोषणा न कर दे। 1870 र्इ. में बर्लिन में आस्ट्रिया के सम्राट, रूस के जार और जमर्न सम्राट के मध्य तीन सम्राटों के संघ का निर्माण हुआ। यह Single निश्चित संधि नहीं थी, क्योंकि इसके द्वारा किसी प्रकार का उत्तरदायित्व नहीं था। यह केवल Single समझौता मात्र था। इसमें निम्न समस्याओं पर विचार विमर्श हुआ –
- प्रादेशिक व्यवस्था को स्थार्इ रखना
- बालकन समस्या
- क्रांतिकारी समाजवाद का दमन इनके संबंध में निश्चित Reseller गया कि इनमें से जो विवाद समय-समय पर उत्पन्न होंगे, उनका समाधान तीनों के पारस्परिक सहयोग द्वारा निकाला जावेगा।
- तीन सम्राटों के संघ का अन्त – 1876 र्इ. तक तीन सम्राटों का संघ स्थायी रहा, किन्तु इसके उपरांत ऐसी परिस्थिति का उदय हुआ जिसके कारण यह समाप्त हो गया। वह इस प्रकार है –
- बर्लिन सम्मेलन – इंगलैंड जर्मनी, रूस और आस्ट्रिया के प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। जर्मनी ने आस्ट्रिया का पक्ष लिया और रूस के हितों की अवहेलना की। जर्मनी के इस व्यवहार से रूस को बड़ी ठेस पहंचु ी और रूस का जार जर्मनी से असंतुष्ट हो गया। अत: जर्मनी से रूस की मित्रता समाप्ति हो गर्इ। अप्रैल 1879 र्इ. में रूस के जार ने जर्मन सम्राट विलियम First को स्पष्ट चते ावनी दी कि परु ाने मित्र की अवहेलना करने का परिणाम Fight भी हो सकता है। इस प्रकार रूस और जर्मनी के संबंध खराब हो गये। तीन सम्राटों के संघ का अंत हो गया।
- द्विगुट का निर्माण – उक्त परिस्थिति उत्पन्न होने पर जर्मनी की स्थिति बड़ी संकटमय हो गर्इ, क्योंकि अब उसके यूरोप में दो शत्रु हो गये और उस पर दो ओर के आक्रमण होने की संभावना हो गर्इ। उसको किसी Single शक्ति से गुटबंधन करना अनिवार्य हो गया। वह इंगलैंड और इटली को इस कार्य के लिये उपयुक्त नहीं समझता था, क्योंकि उसको यह विश्वास नहीं था कि उनके साथ मैत्री स्थायी Reseller धारण कर सकेगी। अत: उसका ध्यान आस्ट्रिया की ओर आकर्षित हुआ। इस समय आस्ट्रिया का विदेश मंत्री ऐन्ड्रीस था जो बड़ा ही योग्य और समझदार था। जब आस्ट्रिया से जर्मनी ने संधि की वार्ता चलायी तो एन्े ड्रीस ने परिस्थिति का लाभ उठाकर तुरन्त Agreeि प्रदान कर दी। अत: दोनों देशों में 7 अक्टूबर 1879 र्इ. में Single रक्षात्मक संधि सम्पन्न हुर्इ जिसके According निश्चय हुआ कि (1) यदि जर्मनी या आस्ट्रिया में से किसी पर रूस आक्रमण करे तो दोनों Single Second को अपनी सम्पूर्ण सैनिक सहायता प्रदान करेगें और दोनों सम्मिलित Reseller से रूस से संधि करेगें। (2) यदि जर्मनी या आस्ट्रिया में से किसी पर कोर्इ अन्य शक्ति उदाहरणार्थ फ्रांस आक्रमण करता है तो दूसरा मित्र तटस्थता की नीति अपनाएगा, परन्तु यदि इस शत्रु को रूस की सहायता प्राप्त हुर्इ तो दोनों मित्र अपनी पूरी शक्ति से साथ मिलकर Fight करेगें और सम्मिलित Reseller से ही संधि होगी।
- तीन सम्राटों के संघ की पुन: स्थापना – यद्यपि बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के साथ संधि कर ली थी, किन्तु वह रूस से भी संधि करना चाहता था। वह उसको अप्रसन्न नहीं करना चाहता था। रूस भी फ्रांस की ओर आकर्षित नहीं हुआ। अब बिस्मार्क ने 1881 र्इ. में रूस से तीन सम्राटों के संघ की पुन: स्थापना करने का प्रस्ताव Reseller जिसका रूस ने स्वागत Reseller। अत: 1881 र्इ. तीन सम्राटों के मध्य तीन वर्ष के लिये Single समझातै ा हुआ कि यदि तीनों में से किसी को Single चतुर्थ शक्ति से Fight करना होगा तो शेष मित्र तथस्थ रहै।गे और Fight को सीमित करने का प्रयास करेगेंं इस प्रकार जर्मनी ने आस्ट्रिया और रूस दोनों को अपनी ओर मिला लिया और अपनी अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति पूर्ववत् दृढ़ स्थापित की।
- त्रिदलीय गुट की स्थापना – 1881 र्इ. में फ्रांस और इटली के संबधं कटु हो गये थे। अत: अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने तथा अपनी गणना यूरोप के बड़े राष्ट्रों में करवाने के उद्देश्य से इटली जर्मनी की और आकर्षित हुआ। 20 मर्इ 1882 र्इ. को इटली ने जर्मनी और आस्ट्रिया से संधि की जिसके फलस्वReseller द्विगुट ने त्रिगुट का Reseller धारण Reseller। इटली ने यह स्वीकार कर लिया कि वह आस्ट्रिया के विरूद्ध किसी प्रकार का प्रचार नहीं करेगा। इस संधि में यह निश्चय हुआ – (1) यदि फ्रांस इटली पर आक्रमण करेगा तो जर्मनी और आस्ट्रिया इटली की सहायता करेगेंं (2) इटली ने भी इसी प्रकार का आश्वासन दिया। (3) यदि दोनों देशों पर कोर्इ भी दो देश आक्रमण करेगें तो तीनों मिलकर उसका सामना करेगेंं संधि की शर्ते पूर्णतया गुप्त रखी गर्इं और य सन्धि 5 वर्षों के लिए की गर्इ।
- आस्ट्रिया और रूमानिया की संधि – 1883 र्इ. में आस्ट्रिया और रूमानिया के मध्य Single संधि हुर्इ जिसमें यह निश्चय हुआ कि रूस के विरूद्ध दोनों देश Single Second की सहायता करेगेंं बिस्मार्क ने इस गुप्त संधि को मान्यता प्रदान की और बाद में इटली ने भी इस संधि को स्वीकार Reseller।
- संधियों का महत्व – इस प्रकार इन संधियों के द्वारा- (1) जर्मन प्रतिष्ठा की स्थापना हुर्इ और बिस्मार्क का मान बहुत बढ़ गया। वह मध्य यूरोप का भाग्य-निर्णायक बन गया और यूरोप की शक्ति उसके हाथ में रही। (2) फ्रांस यूरोपीय राजनीति में पूर्णतया अकेला बना रहा। (3) शक्ति संतुलन की समाप्ति – इसके द्वारा यूरोप का शक्ति संतुलन समाप्त हो गया। (4) रूस और फ्रांस का गठबंधन – इन्हीं सन्धियों के फलस्वReseller बाद में रूस और फ्रांस का गठबंधन हुआ जिसने त्रिगुट का विरोध करना आरंभ Reseller। (5) First विश्वFight Fight – इनके ही कारण First विश्व Fight आरंभ हुआ। ये समस्त संधियाँ बिस्मार्क की कूटनीति का परिणाम थीं।
- रूस के साथ पुनराश्वासन संधि – 1887 र्इ. में बिस्मार्क का ध्यान पनु : रूस की और आकर्षित हुआ, जो जर्मनी की बालकन संबधीं नीति तथा आस्ट्रिया के प्रति जर्मन नीति के कारण बिस्मार्क से असंतुष्ट था। 1881 र्इ. में बिस्मार्क के प्रयत्न से पुन: तीन सम्राटों की संधि हुर्इ थी। 1884 र्इ. में इस संधि को पुन: मान्यता प्रदान की गर्इ, किन्तु 1884 तथा 1885 र्इ. में बालकन समस्या के कारण आस्ट्रिया और रूस के पारस्परिक संबंध खराब होने आरंभ हो गये और जर्मनी में भय उत्पन्न हो गया कि कहीं रूस फ्रांस से मैत्री स्थापित नहीं कर ले। अत: 18 जुलार्इ 1887 र्इ. में दोनों देशों के मध्य पुनराश्वासन संधि हुर्इ। यह संधि पूर्णतया गुप्त रखी गर्इ। इस संधि के द्वारा निम्न बातें निश्चित हुर्इ- (1) Single पर अन्य यूरोपीय राष्ट्र द्वारा आक्रमण होने की दशा में Second ने तटस्थ नीति का पालन करने का आश्वासन दिया। (2) जर्मनी ने दोनों बलगारियों में रूस के प्रभाव को स्वीकार Reseller और यह वचन दिया कि वह राजकुमार अलेकजेन्डर को राज्यसिंहासन पर आसीन नहीं होने देने के लिये प्रयत्न करेगा। (3) 1881 र्इ. की संधि के According कुस्तुन्तुनिया के जल-संयोजक का सामाजिक कार्यवाहियों के लिये राके ने की नीति का भविष्य में भी पालन Reseller जाये।
- संधि की समीक्षा – यह संधि बिस्मार्क की कूटनीति का उज्जवल उदाहरण है। इस संधि द्वारा बिस्मार्क ने रूस को यह आश्वासन दिया कि वह आस्ट्रिया के आक्रमण के विरूद्ध तटस्थता की नीति का पालन करेगा जबकि आस्ट्रिया और जर्मनी के संबंध में दोनों देशों की संधि में यह निश्चय हुआ था कि वह रूस के आक्रमण के विरूद्ध आस्ट्रिया की सहायता करेगा। इस संधि के संबंध में बिस्मार्क ने व्यक्त Reseller कि उसने इस संधि द्वारा आस्ट्रिया की सहायता की, क्योंकि इससे रूस की महत्वकांक्षाओं पर नियंत्रण की स्थापना हुर्इ। जर्मनी से निराश होकर रूस को स्वाभाविक रूस से फ्रांस की ओर आकर्षित होना चाहिये था, किन्तु जर्मनी ने उसको ऐसा नहीं करने दिया। उसने अपनी कूटनीतिज्ञता के बल पर 1890 र्इ. में रूस और जर्मनी में पुनराश्वासन संधि की पुनरावृत्ति की।