द्वितीय विश्व Fight
द्वितीय विश्व-Fight के कारण
लगभग बीस वर्षों की ‘शांति’ के बाद 1 सितम्बर, 1939 के दिन Fight की अग्नि ने फिर सारे यूरोप को अपनी लपटों में समेट लिया और कुछ ही दिनों में यह संघर्ष विश्वव्यापी हो गया। विगत दो शताब्दियों के History के अध्ययन के बाद यह प्रश्न स्वाभाविक है कि शांति स्थापित रखने के अथक प्रयासों के बाद भी द्वितीय-विश्व Fight क्यों छिड़ गया? क्या संसार के लागे और विविध देशों के King यह चाहते थे? नहीं; यह गलत है। समूचे संसार में शायद कोर्इ भी समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं था जो Fight की कामना करता हो। ‘बच्चे-बूढ़े स्त्री-पुरूष तथा All वगर् की जनता शांति चाहती थी। इसी तरह यूरोप की कोर्इ सरकार Fight नहीं चाहती थी। यहाँ तक कि जर्मन सरकार भी Fight से बचना चाहती थी। स्वयं हिटलर भी Fight नहीं चाहता था। अन्तिम समय तक हिटलर का यही विचार था कि संकट पैदा करके, धाँस देकर, डरा-धमकाकर पोलैंड से डान्जिंग छीन लिया जाय। वह जानता था कि Fight से उसका सर्वनाश हो जायगा। बिना Fight किये ही विजय हासिल कर लेना उसकी चाल थी। वास्तव में ‘Fight के बिना विजय’ के सिद्धांत पर ही उसकी सारी मान-मर्यादा निर्भर थी। पर ऐसा न हो सका। किसी की इच्छा नहीं होने पर भी Fight छिड़ गया। ऐसा क्यों हुआ और इसके लिए कानै जिम्मेदार था?
वर्साय-संधि
1919 र्इ. के पेरिस-शांति सम्मेलन में शांति का महल नहीं खड़ा Reseller जा सकता था। उस समय यह आम विश्वास था कि वर्साय-संधि के द्वारा Single ऐसे विष वृक्ष के बीज का आरोपण Reseller गया है जो कुछ ही समय में Single विशाल संहारक वृक्ष के Reseller में खड़ा हो जायगा और उसका कटु फल सभों को बुरी तरह चखना पड़गे ा। कहा जाता था कि विलसन के आदर्शवादी सिद्धांत के आधार पर वर्साय-व्यवस्था की स्थापना हुर्इ थी लेकिन यह वार्ता सर्वथा गलत है। विलसन के आदर्शों को किसी भी स्थान पर नहीं अपनाया गया था। पराजित राज्यों के सम्मुख ‘आरोपित संधियों’ को स्वीकार करने के सिवा कोर्इ चारा नहीं था। उनके लिए यही बुद्धिमानी थी कि वे आँख मीचकर कठोर संधि के कड़वे घूँट को चुपचाप कण्ठ से नीचे उतार ले। लेकिन, यह स्थिति अधिक दिनों तक टिकने वाली नहीं थी। यह निश्चित था कि कभी-न-कभी वह समय अवश्य आयगा जब जर्मनी Single शक्तिशाली राज्य बनेगा और वर्साय के घोर अपमान का बदला अपने शत्रुओं से लेगा। विजय के मद में चूर मित्रराष्ट्रों ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि जर्मनी के साथ इस प्रकार का दुव्र्यवहार करके भविष्य के लिए कितने खतरनाक कांटे बो रहे हैं।
वर्साय-व्यवस्था की Single दूसरी कमजोरी भी थी। उसके द्वारा यूरोप में अनेक ‘खतरा केन्द्रों’ का निर्माण हुआ था। कहा जाता है कि इस व्यवस्था के कारण यूरोप का ‘बाल्कनीकरण’ हो गया। झूठी राष्ट्रीयता के नाम पर यूरोप के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये और पुराने साम्राज्यों के स्थान पर असंख्य छोटे-छोटे राज्य पैदा हो गये। प्राय: ये सब राज्य भविष्य के खतरे के तूफानी केन्द्र थे। इनके अतिरिक्त वर्साय-व्यवस्था के द्वारा सुडेटनलैंड, डान्जिग, पोलिश गालियारे जैसे असंख्य एल्सस-लोरेन पैदा हो गये थे। यह निश्चित था कि उपयुक्त समय आने पर इन खतरनाक केन्द्रों में संकट उपस्थित होंगे और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर उनका बहुत बुरा असर पड़ेगा लेकिन 1919 के अदूरदश्र्ाी राजनेता शायद इसकी कल्पना नहीं कर सके। हिटलर के उत्कर्ष में इस बात से बड़ी मदद मिली थी। अतएव यदि वर्साय-व्यवस्था को Fight का Single कारण माना जाय तो कुछ गलत न होगा।
ब्रिटेन की नीति
इसमें कोर्इ शक नहीं कि जर्मनी से शक्ति-संतुलन का सिद्धांत ब्रिटिश विदेश-नीति का Single महत्वपूर्ण तत्व रहता आया है। पर Fightोत्तर-काल की ब्रिटिश नीति में इस तत्व पर अधिक जोर देना History के साथ अन्याय करना होगा। वास्तव में इस काल की ब्रिटिश विदेश-नीति में शक्ति संतुलन का सिद्धांत उतना प्रबल नहीं था जितना रूसी साम्यवाद के प्रसार को रोकने का प्रश्न था। जिस ब्रिटिश-नीति को तुष्टिकरण की नीति कहा जाता है, वह वास्तव में ‘प्रोत्साहित करो की नीति’ थी। साम्राज्यवादी ब्रिटेन की सबसे बड़ी समस्या जर्मनी नहीं, वरन साम्यवादी प्रसार को रोकना था। इस काल में ब्रिटेन में नीति-निर्धारिकों का यह अनुमान था कि एशिया में जापान और सोवियत-संघ तथा यूरोप में जर्मनी और सोवियत-संघ भविष्य के वास्तविक प्रतिद्वन्द्वी हैं। अगर इन शक्तियों को आपस में लड़ाता रहा जाय और इस तरह Single Second पर रूकावट डालते रहे तो ब्रिटेन निर्विरोध अपने विश्वव्यापी साम्राज्य को कायम रखे रह सकता है। ब्रिटेन की नीति यह थी कि फ्रांस के साथ असहयोग करके, उस पर दबाव डालकर हिटलर, मुसोलिनी और हिरोहितों को साम्यवादी रूस के खिलाफ उभाड़ा जाय और उसकी सहायता करके साम्यवादी रूस का विनाश करवा दिया जाय। इनमें शक्ति-संतुलन का कोर्इ सिद्धांत काम नहीं कर रहा था; क्योंकि सोवियत-संध अभी बहुत कमजोर था।
ब्रिटिश Kingों की यह नीति गलत तर्क पर आधारित थी। उसका कारण यह था कि उस समय ब्रिटेन की नीति का निधार्र ण कुछ अनुभवहीन तथा कट्टर साम्यवाद विरोधी व्यक्तियों के हाथ में था। कर्नलब्लिम्प, चैम्बरलेन, बैंक ऑफ इंगलैंड के गवर्नर मांग्टेग्यू नारमन, लार्ड वेभरबु्रक, जेकोव अस्टर (लन्दन टाइम्स) तथा गारविन (ऑवजर्बर) जैसे पत्रकार, डीन इक जैसे लेखक, कैन्टरबरी के आर्चविशप तथा अनेक पूंजीपति, सामन्त, जमींदार और प्रतिक्रियावादी इस गुट के प्रमुख सदस्य थे और इन्हीं लोगो के हाथों में ब्रिटेन के भाग्य-निर्धारण का काम था। जिसे देश के नीति-निर्धारण में ऐसे लोगों का हाथ हो वहां की नीति साम्यवादी विरोध नहीं तो और क्या हो सकती थी? चैम्बरलेन इस दल का नेता था, इन लोगों के हाथ की कठपतु ली। मर्इ, 1937 में चेम्बरलने ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना। तथाकथित तुष्टिकरण की नीति की वह प्रतिमूर्ति ही था। चेकोस्लोवाReseller का विनाश उसने इसी उद्देश्य से कराया कि इससे हिटलर प्रोत्साहित होकर सोवियत-संध पर चढ़ार्इ कर बैठेगा। इसी भवना से प्रेरित होकर वह पोलैंड के विनाश में भी अपना सहयोग देने को तैयार था। किन्तु हिटलर के जिद्द के कारण वह अपने इस कुकार्य में सफल नहीं हो सका। उसकी गलत नीति का परिणाम सारे संसार को भुगतना पड़ा।
राष्ट्रसंघ के भारत का उल्लंघन
राष्ट्रसंघ के विधान पर हस्ताक्षर करके All सदस्य-राज्यों के वादा Reseller था कि वे सामूहिक Reseller से सब की प्रादेशिक अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा करेगेंं लेकिन जब मौका आया तब सब-के सब पीछे हट गय।े जापान, चीन को और इटली अबीसीनिया को रौंदता रहा। दोनों आक्रान्त देश राष्ट्रसंघ के सदस्य थे, पर किसी ने कुछ नहीं Reseller। इसके बाद चेकोस्लोवाReseller की बारी आयी। फ्रांस चेकोस्लोवाReseller की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध था। लेकिन जब समय आया तो वह अपने मित्र को बचाने तो नहीं ही गया, उल्टे उसके विनाश में सहायक हो गया। म्यूि नख समझातै े के बाद ब्रिटेन और फ्रांस परिवर्तित चेक-सीमा की गारण्टी दिये हुए थे। पर जब हिटलर बचे हुए चेक-राज्य को भी हड़पने लगा तो किसी ने उसका विरोध नहीं Reseller। इससे बढ़कर विश्वासघात और क्या हो सकता से आक्रामक प्रवृत्तियों को काफी प्रोत्साहन मिला। जापान ने चीन पर आक्रमण Reseller और उसे कोर्इ दण्ड नहीं मिला। मुसोलिनी को इससे प्रोत्साहन मिला और उसने अबीसीनिया पर चढ़ार्इ कर दी। अबीसीनिया पर आक्रमण करने वाले को कोर्इ दण्ड नहीं मिला। इसलिए हिटलर ने आस्ट्रिया और चेकोस्लोवाReseller को हड़प लिया। आस्ट्रिया और चेकोस्लोवाReseller पर आक्रमण का भी विरोध नहीं Reseller गया। फिर इस कमजोरी से लाभ उठाकर हिटलर ने पोलैंड पर चढ़ार्इ कर दी। अगर All राष्ट्र अपने दिये गये वचनों का पालन करते रहते और आक्रामक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन नहीं मिलता और दूसरा विश्व-Fight नहीं होता।
यूरोपीय गुटबन्दियां
आधुनिक युग में दुनिया के अधिकतर लोगों के मन में यह Single अंधविश्वास जम गया है कि सैन्य-संधि तथा गुटबंदी के द्वारा विश्व-शांति कायम रखी जा सकती है। शांति बनाये रखने के नाम पर यूरोपीय राज्यों के बीच विविध संधियां हुर्इ जिसके फलस्वReseller यूरोप फिर से दो विरोधी गुटों में बट गया। Single गुट का नेता जर्मनी था और Second का फ्रांस। यहां पर यह स्पष्ट कर देना अनुचित नहीं कि इन गुटों के मलू में दो बातें थी : Single सैद्धांति समानता और दूसरी हितों की Singleता। इटली, जापान और जर्मनी Single सिद्धांत (तानाशाही) में विश्वास करते थे। वर्साय-संधि से उनकी समान Reseller से शिकायत थी और उसका उल्लंघन करके अपनी शक्ति को बढ़ाने में उनका Single समान हित था इसके विपरीत फ्रांस, चेकोस्लोवाReseller, पोलैंड इत्यादि देशों का Single हित था। वर्साय-व्यवस्था से उन्हें काफी लाभ पहुँचा था और इसलिए यथास्थिति बनाये रखने में ही उनका हित था। बहुत दिनों तक ब्रिटेन इस गुट में शामिल नहीं हुआ; पर अधिक दिनों तक ब्रिटेन गुट से अलग नहीं रह सका। परिस्थिति से बाध्य होकर उसे भी इस गटु में सम्मिलित होना पड़ा। उधर रूस की स्थिति कुछ दूसरी ही थी। साम्यवादी होने के कारण पूंजीवादी और फासिस्टवादी दोनों गुट उससे घृणा करते थे और कोर्इ उसको अपने गुट में सम्मिलित करना नहीं चाहता था। पर, जब यूरोप की स्थिति बिगड़ने लगी तो दोनों गुट उसे अपने-अपने गुट में शामिल करने के लिए प्रयास करने लग।े अंत में जर्मनी को इस प्रयास में सफलता मिली और सोवियत-संघ उसके गुट में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वReseller यूरोप का वातावरण दूषित होने लगा तथा राष्ट्रों के बीच मनमुटाव पैदा होने लगा। राष्ट्रों के परस्पर संबंध बिगड़ने में इन गुटबंदियों का बहुत हाथ था। इस दृष्टि से गुटबंदियां द्वितीय विश्व-Fight का बहुत बड़ा कारण थी।
भार्तनिर्मान की प्रतिस्पर्धा
जब राष्ट्रों के बीच मनमुटाव पैदा होने लगता है, Single देश, Second देश से सशंकित होने लगता है तो वे अपनी Safty के प्रबंध में जुट जाते हैं। इस अवस्था में Safty का Only उपाय हथियारबन्दी समझा जाता है। जो राष्ट्र जितना अधिक शक्तिशाली होगा, जिसके पास जितनी अधिक सेना रहेगी, वह अपने को उतना ही अधिक बलवान समझता है। इस सिद्धातं में यूरोप के All राज्य विश्वास करते थे। Fight के बाद जर्मनी यद्यपि बिल्कुल पस्त पड़ा हुआ था, फिर फ्रांस को जर्मनी से काफी डर था। इसलिए वह हथियारबंदी में हमेशा लगा रहता था। Fight के बाद भी वह सैनिक शक्ति में First स्थान रखता था। हर वर्ष उसका सैनिक बजट बढ़ता ही जाता था। First महाFight में फ्रांस की सीमा को जर्मनी बड़ी आसानी से पार कर गया था। अत: भावी जर्मन आक्रमण से बचने के लिए फ्रांस ने 1937 में स्विटजरलैंड की सीमा से किलों की Single श्रृंखला तैयार की जिसको मैगिनो लाइन कहते है।
1933 में जब संसार की स्थिति काफी बिगड़ गयी तो ब्रिटेन में भी हथियारबंदी शुरू हो गयी। फ्रांस के साथी देशों में यह क्रम First से ही जारी था। ब्रिटेन का अनुकरण करते हुए वे देश भी हथियारबंदी करने लग,े जो अभी तक चुप बठै े थे। इस समय तक जर्मनी में नात्सी-क्रांति हो चुकी थी। हिटलर ने वर्साय की संधि की उस शर्त को जिसके द्वारा जर्मनी पर सैनिक पाबंदियां लगा दी गयी थीं, सबसे First मानने से इनकार कर दिया और जारे -जोर से हथियारबंदी करने लगा। कुछ ही दिनों में जर्मनी की सैन्य-शक्ति भी काफी बढ़ गयी। उसकी थल-सेना और वायु-सेना संसार की सबसे शक्तिशाली सैन्य शक्ति थी। फ्रांस की मैगिनो लाइन के जवाब में उसने भी Single समानन्तर सीगफ्रीड लाइन बनायी, जो किसी भी स्थिति में फ्रांस की किलेबंदी से कम नहीं थी। इस प्रकार देखते-देखते सारा यूरोप Single शस्त्रागार हो गया। All देशों में सैनिक-सेवा अनिवार्य कर दी गर्इ। राष्ट्रीय बजट का अधिकांश बजट सेना पर खर्च होता था। वर्षों तक राष्ट्रसंघ के तत्वाधान में इस बात का प्रयास होता रहा कि हथियारबंदी की होड़ रूक जाय। लेकिन, राष्ट्रसंघ को सफलता नहीं मिली और यूरोप में शस्त्रीकरण की दौड़ होती रही। इस सैनिक तैयारी यही निष्कर्ष निकलत है कि शस्त्रनिर्माण की प्रतिस्पर्धा द्वितीय विश्वFight का Single प्रमुख कारण था।
राष्ट्रसंघ की कमजोरियां
First विश्व-Fight के बाद राष्ट्रसंघ की स्थापना इसी उद्देश्य से की गयी थी कि वह संसार में शक्ति कामय रखेगा। लेकिन, जब समय बीतने लगा और परीक्षा का अवसर आया तो राष्ट्रसंघ Single बिल्कुलन शक्तिहीन संस्था साबित हइुर् । जहां तक छोटे-छोटे राष्ट्रों के पारस्परिक झगड़ों का प्रश्न था राष्ट्रसंघ को उनमें कुछ सफलता मिली, लेकिन जब बड़े राष्ट्रों का मामला आया तो राष्ट्रसंघ कुछ भी नहीं कर सका। जापान ने चीन पर चढ़ार्इ कर दी और इटली ने असीसीनिया पर हमला Reseller, पर राष्ट्रसंघ उनको रोकने में बिल्कुल असमर्थ रहा। अधिनायकी को पता चला कि राष्ट्रसंघ बिल्कुल शक्तिहीन संस्था है और वे जो चहे कर सकते हैं। पर, राष्ट्रसंघ की असफलता के लिए उस संस्था को दोष देना ठीक नहीं है। राष्ट्रसंघ राष्ट्रों की Single संस्था थी और यह उनका कर्तव्य था कि वे उस संस्था को सफल बनायें। राष्ट्रसंघ ने अबीसीनिया पर आक्रमण करने के अपराध में हटली को दण्ड दिया। इसके विरूद्ध आर्थिक पाबन्दियां लगायी गयीं लेकिन ब्रिटेन और फ्रांस ने इसमें राष्ट्रसंघ के साथ सहयागे नहीं Reseller। राष्ट्रसंघ की निष्क्रियता के जो भी कारण हो, लेकिन उस पर से लोगों का विश्वास जाता रहा और जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना हुर्इ थी उसकी पूर्ति करने में वह सर्वथा असफल रहा। इसीलिए राष्ट्रसंघ की कमजोरियों को भी द्वितीय विश्वFight के लिए उत्तरदायी माना जाता है।
द्वितीय विश्व-Fight की घटनायें
1. पोलैण्ड का Fight
1 सितम्बर 1937 र्इ. को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण Reseller, क्योंकि उसने उसकी अनुचित माँगां े को स्वीकार नहीं Reseller था। जर्मनी ने पोलैण्ड पर जल, थल और वायु सेना से आक्रमण Reseller। पोलैण्ड की सेना जर्मनी को सेना का सामान करने में असमर्थ रही। पंद्रह दिन में जर्मन सेना का पोलैण्ड की राजधानी बारसा पर अधिकार हो गया। Single समझौते द्वारा दोनों ने पोलैण्ड का विभाजन स्वीकार Reseller।
2. रूस का फिनलैण्ड पर आक्रमण
रूस फिनलैण्ड पर अधिकार करना चाहता था। उसने फिनलैण्ड की सरकार से बंदरगाह और द्वीप माँगे और जब उसने उनको देने से इंकार Reseller तो रूस ने 30 नवम्बर 1936 र्इ. को फिनलैण्ड पर आक्रमण कर उसको अपने अधिकार में Reseller।
3. नार्वे और डेनमार्क पर आक्रमण
9 अपै्रल 1940 र्इ. को जर्मनी ने नार्वे पर आक्रमण कर उसके कर्इ बंदरगाहों पर आक्रमण Reseller और वहाँ Single नर्इ सरकार का संगठन Reseller। इसी दिन जर्मनी ने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन पर भी अधिकार कर लिया। इन विजयों का परिणाम यह हुआ कि इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री चेम्बरलेन को त्याग-पत्र देना पड़ा और उसके स्थान पर चर्चिल इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बना।
4. हॉलैण्ड और बेल्जियम का पतन
10 मर्इ 1940 र्इ. को जर्मनी ने हॉलैण्ड पर आक्रमण Reseller। 19 मर्इ को डच सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। हॉलैण्ड पर जर्मनी का अधिकार हो गया। हॉलैण्ड के साथ-साथ जर्मनी ने बेल्जियम पर भी आक्रमण Reseller बेल्जियम की रक्षार्थ ब्रिटिश सेनायें बेल्यिजम में प्रवेश करने गयी थीं इसी समय उसने फ्रांस पर भी आक्रमण कर दिया था। जर्मनी ने बेि ल्जयम के कर्इ नगरों पर आक्रमण Reseller। 27 मर्इ को बेल्जियम की सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
5. फ्रांस की पराजय
3 जून 1940 र्इ. को जर्मनी ने तीन ओर से फ्रांस पर आक्रमण Reseller। 3 जून को उसने फ्रांस की रक्षा पंक्ति को तोड़ डाल और चारों ओर से पेरिस नगर पर आक्रमण Reseller। 10 जून को इटली ने फ्रांस के विरूद्ध Fight की घोषणा की और फ्रांस पर आक्रमण Reseller। 19 जून को जर्मनी की सेना का पेरिस नगर पर अधिकार हुआ। 22 जून को फ्रांस ने आत्मसमर्पण Reseller और Fight विराम संधि हुर्इ।
6. यूगोस्लाविया और यूनान की पराजय
28 अक्टूबर को हिटलर का ध्यान र्इरान और मिश्र की ओर आकर्षित हुआ। उसने 28 अक्टूबर 1940 र्इ. को ग्रीस को यह संदेश भेजा कि वह अपने कुछ प्रदेश जर्मनी को प्रदान करे। ग्रीस अभी तक भी समझ नहीं कर पाया था कि उस पर आक्रमण कर दिया गया है। इटली की सेना ने उस पर आक्रमण Reseller। ग्रीस ने बड़ी वीरता से उसका सामना Reseller। बाद में उसकी सहायता के लिए जर्मन सेना आर्इ। इसी बीच में जर्मनी ने हंगरी, रूमानिया और बल्गारिया से संधि की। यूगोस्लाविया ने संधि करने से इंकार कर दिया। 6 अप्रैल, 1941 को जर्मनी ने यूगोस्लाविया के विरूद्ध Fight की घोषणा की और 11 दिन के Fight के बाद जर्मनी विजयी हुआ। इससे निश्चित होकर हिटलर ने ग्रीस पर भीषण आक्रमण Reseller गया। ब्रिटेन ने यूनान की सहायता की, किंतु जर्मनी विजयी हुआ। उसने 21 अप्रैल को हथियार डाल दिये। जर्मनी का अधिकार एथेसं पर 26 अप्रैल को हुआ। 20 मर्इ को जर्मनी ने कीट द्वीप पर अधिकार Reseller। इस प्रकार पूर्वी भूमध्यसागर पर जर्मनी और इटली का अधिकार पूर्णतया स्थापित हो गया।
7. जापान और अमेरिका का Fight में प्रवेश
जापान समस्त एशिया को अपने अधिकार में करना चाहता था। दिसम्बर 1940 को उसने हवार्इ सेना द्वारा पर्ल हार्बर पर आक्रमण Reseller। इस आक्रमण से अमेरिका को बहुत क्षति हुर्इ। जापान ने शीघ्र ही शंघार्इ, हांगकांग मलाया और सिंगापुर पर भी हवार्इ आक्रमण किये और अंग्रेजों के दो विशाल जंगी जहाजों को डुबा दिया। जापान ने फिर फिलीपाइन द्वीप समूह पर आक्रमण Reseller और उस पर अपना अधिकार स्थापित Reseller। इसके बाद हांगकागं पर जापान का अधिकार हो गया। इसे बाद जापानियों ने मलाया होकर सिंगापुर पर अधिकार Reseller। कुछ ही समय में जापानियों ने सुमात्रा, जाघा, बोर्निया तथा बाली, आदि द्वीपों पर अधिकार Reseller। उन्होनें े 8 मार्च 1942 र्इ. को रंगून पर अधिकार Reseller। उन्होंने न्यूगाइना द्वीप पर भी अपना अधिकार Reseller। बर्मा पर अधिकार करने के उपरातं उन्होनें भारत पर उत्तर-पूर्व की ओर आक्रमण Reseller, किंतु उनकी सफलता प्राप्त नहीं हुर्इं बाद में बर्मा पर ब्रिटेन और अमेि रकन सेनाओं ने अधिकार Reseller। फिलिपाइन्स पर भी अमेरिका ने अधिकार Reseller और जापान की पराजय होनी आंरभ हो गर्इ।
8. यूरोप में Fight
1942 र्इ के ग्रीष्म काल के आगमन पर जर्मनी ने रूस पर बड़ा भीषण आक्रमण Reseller। जर्मनी की सेनायें स्आलिनग्राड तक पहुँचने में सफल हुर्इ। उधर अफ्रीका में जर्मनी सेनापति रोमल विजयी हो रहा था, किंतु शीघ्र ही मित्र-राष्ट्रों ने रोमल को Defeat करना आरंभ Reseller। उन्होंने सिसली पर अधिकार Reseller। इसी समय इटली में मुसोलिनी के विरूद्ध आंदोलन आंरभ हुआ। मुसोलिनी बंदी बना लिया गया। इटली की नर्इ सरकार ने मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं का सामना Reseller। इसी समय जर्मन सेनायें इटली पहुँची और मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं का डटकर सामना Reseller, किंतु अंत में जर्मनी को इटली छोड़ना पड़ा और वह मित्र-राष्ट्रों के अधिकार में आ गया।
Fight का अंत
ब्रिटिश और अमेरिकन सेनाओं ने फ्रांस की उत्तरी-पश्चिमी सीमा में प्रवेश और जर्मनी पर आक्रमण करने आरंभ किए। फ्रांस मुक्त हो गया। फिर उन्होंने बेि ल्जयम से जमर्न सेना को भगाया और हॉलैण्ड को मुक्त Reseller। नवम्बर 1944 र्इ. में मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी पर स्थल सेना द्वारा आक्रमण Reseller। जर्मनी ने इसका बड़े साहस तथा वीरता से सामना Reseller। दूसरी और रूसी सेनायें विजय प्राप्त करती हुर्इ जर्मनी की सीमा में प्रवेश करने लगीं। रूस की सेना ने चेकोस्लोवाReseller, रूमानिया, आस्ट्रिया आदि को जर्मनी से मुक्ति दिलवार्इ और जर्मनी की राजधानी बर्लिन पर आक्रमण Reseller। मर्इ 1945 र्इ. को बर्लिन पर रूसी सेनाओं पर अधिकार हो गया।
इस प्रकार मित्र-राष्ट्र यूरोप में विजयी हुए। अब उन्होनें जापान को Defeat करने की ओर विशेष ध्यान दिया। जुलार्इ 1945 र्इ. में जापान पर हवार्इ आक्रमण Reseller गया। रूस ने जापान के विरूद्ध Fight की घोषणा की। 5 अगस्त 1945 के दिन हिरोशिमा और नाकासाकी पर एटम बम गिराया गया जिससे जापान को बहुत हानि हुर्इ। 15 अगस्त 1945 र्इ. के दिन जापान ने आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार तानाशाही राज्यों का अंत हुआ और लोकतंत्रवादी राज्यों को सफलता प्राप्त हुर्इ।
द्वितीय विश्वFight के प्रभाव
जन-धन का अत्याधिक विनाश
द्वितीय विश्वFight पूर्ववर्ती Fightों की तुलना में सर्वाधिक विनाशकारी Fight माना जाता है। इस Fight में संपत्ति और Human-जीवन का विशाल पैमाने पर विनाश हुआ, उसका सही आँकलन विश्व के गणितज्ञ भी नहीं कर सके। इस Fight का क्षेत्र विश्वव्यापी था तथा इसे विनाशकारी परिणामों का क्षेत्र भी अत्यंत व्यापक था।
इस Fight में अनुमानत: Single करोड़ पचास लाख सैनिकों तथा Single करोड़ नागरिकों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा तथा लगभग Single करोड़ सैनिक बुरी तरह घायल हुए। Human जीवन की क्षति के साथ-साथ यह Fight अपार आर्थिक क्षति, बरबादी तथा विनाश की दृष्टि से भी अविस्मरणीय है। ऐसा अनुमान है कि इस Fight में भाग लेने वाले देशों का लगभग Single लाख कराडे Resellerये व्यय हुआ था। अकेले इंग्लैण्ड ने लगभग दो हजार करोड़ Resellerये व्यय Reseller था। जबकि जर्मनी, फ्रांस, पोलैण्ड आदि देशों के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाना कठिन है। इस प्रकार इस Fight में विश्व के विभिé देश्ज्ञों की राष्ट्रीय संपत्ति का व्यापक पैमाने पर विनाश हुआ था।
औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत
द्वितीय विश्वFight के परिणामस्वReseller एशिया महाद्वीप में स्थित यूरोपीय शक्तियों के औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत हो गया। जिस प्रकार First विश्वFight के बाद बहुत से राज्यों को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी थी, ठीक उसी प्रकार भारत, लंका, बर्मा, मलाया, मिस्र तथा कुछ अन्य देशों को द्वितीय विश्वFight के बाद ब्रिटिश दासता से मुक्त कर दिया गया। इसी प्रकार हॉलैण्ड, फ्रांस तथा पुर्तगाल के एशियार्इ साम्राज्य कमजोर हो गये तथा इन देशों के अधीनस्थ एशियार्इ राज्यों को स्वतंत्र कर दिया गया। इस प्रकार द्वितीय विश्वFight के परिणामस्वReseller एशिया महाद्वीप का राजनीतिक मानचित्र पूरी तरह परिवर्तित हो गया, तथा वहाँ पर यूरोपीय साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया।
शक्ति-संतुलन का हस्तांतरण
विश्व के महान राष्ट्रों की तुलनात्मक स्थिति को द्वितीय विश्वFight ने अत्यधिक प्रभावित Reseller था। इस Fight से पूर्व विश्व का नेतृत्व इंग्लैण्ड के हाथों में था, किंतु इसके बाद नेतृत्व की बागडोर इंग्लैण्ड के हाथों से निकलकर अमेरिका व रूस के अधिकार में पहुँच गयी। विश्वFight में जर्मनी, जापान तथा इटली के पतन के फलस्वReseller रूस, पूर्वी यूरोप का सर्वाधिक प्रभावशाली व शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। एस्टोनिया, लेटेविया, लिथूएनिया तथा पोलैण्ड व फिनलैण्ड पर रूस का पुन: अधिकार हो गया। पूर्वी यूरोप में केवल टर्की व यूनान दो राज्य ऐसे थे जो साेि वयत संघ की सीमा से बाहर थे। दूसरी और , पश्चिमी यूरोप के देशों का ध्यान अमेरिका की तरफ आकर्षित हुआ। फ्रांस , इटली तथा स्पेन ने अमेरिका के साथ अपने राजनीतिक संबंध स्थापित कर लिये। इस प्रकार संपूर्ण यूरोप महाद्वीप दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं में विभाजित हो गया। Single विचारधारा का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था, जबकि दूसरी विचारधारा की बागडोर रूस के हाथों में थी। पूर्वी यूरोप के देशों पर रूस का प्रभाव स्थापित हो गया, पाकिस्तान, मिस्र, अरब, अफ्रीका आदि रूस की नीतियों से प्रभावित न हुए। इस प्रकार शक्ति का संतुलन रूस And अमेरिका के नियंत्रण में स्थित हो गया।
अंतर्राष्ट्रीय की भावना का विकास
द्वितीय विश्वFight के विनाशकारी परिणामों ने विभिन्न देशों की आँखें खोल दी थी। वे इस बात का अनुभव करने लगे कि परस्पर सहयोग, विश्वास तथा मित्रता के बिना शांति व व्यवस्था की स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी अनुभव Reseller कि समस्याओं का समाधान Fight के माध्यम से नहीं हो सकता। इसी प्रकार की भावनाओं का उदय First विश्वFight के बाद भी हुआ था तथा पारस्परिक सहयागे की भावना को कार्यReseller में परिणित करने के लिए राष्ट्र-संघ की स्थापना की गयी थी। किंतु विभिन्न देशों के स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण यह संस्था असफल हो गयी और द्वितीय विश्वFight प्रारभ्ं ा हो गया। किंतु इस Fight के समाप्त होने के बाद देशों ने पारस्परिक सहयोग की Need And महत्व का पुन: अनुभव Reseller, तथा उन्होनें अपनी समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करने का निश्चय Reseller ताकि Fight का खतरा सदैव के लिए समाप्त हो सके तथा विश्व-स्तर पर शांति की स्थापना की जा सके। संयुक्त राष्ट्र-संघ, जिसकी स्थापना 1945 र्इ. में की गयी थी, पूर्णत: इसी भावना पर आधारित था। इस संस्था का आधारभूत लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति And Safty की भावना कायम करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग And मैत्री-भावना का विकास करना था।