गुट निरपेक्ष आंदोलन क्या है ?
गुटनिरपेक्षता या असंलग्नता का उदय
1945 में द्वितीय विश्व Fight समाप्त होने के बाद विश्व दो गुटों में बंट गया था। Single गुट अमेरिका तथा दूसरा गुट सोवियत रूस का था। इस स्थिति में भारत या तो किसी Single गुट में शामिल हो सकता था, या दोनों गुटों से अलग रह सकता था। भारत के पास इस समय दो ही रास्ते थे। यहाँ इसका मतलब यह नही कि भारत तीसरा गुट बनाने की तैयारी में था। हुआ यही कि भारत ने दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी Single नीति अपनार्इ, और यह तीसरा ही गुट बन गया जो निर्गुट या गुटनिरपेक्ष कहलाया। इस समय तक एशिया तथा अफ्रीका के देश स्वतंत्र अस्तित्व के Reseller में उभरने लगे थे। उनका गुटबंदी में विश्वास नही था और वे अपने आपको किसी देश के साथ संबंध नहीं चाहते थे। यह अफ्रो-एशियार्इ देश तीसरी शक्ति के Reseller में उभरे। एशिया और अफ्रीका देशों के नव जागरण के काल में यह गुटनिरपेक्षता की नीति प्रमुख विशेषता थी। उनका विश्वास था कि अन्र्तराष्ट्रीय सहयोग में यह तृतीय शक्ति Single सहायक सिद्ध होगी।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की बैठक में गुटनिरपेक्ष Word का प्रयोग Reseller गया। 1953-54 में जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत की तटस्थता की हंसी उडार्इ जा रही थी तब श्री कृष्ण मेनन के मुख से अचानक यह Word निकल पड़ा। इस प्रकार भारत की स्वंतंत्रता के उपरांत इस Word को बार-बार दुहराया गया तथा इस नीति का पालन शुरू हो गया। भारत में जवाहर लाल नेहरू, मिश्र के राष्ट्रपति नासिर, तथा युगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने इस नीति की धारणा को काफी मजबूत Reseller। अंतत: यह नीति पूर्ण Reseller से सितम्बर 1961 र्इ. में यूगोस्लाविया की राजधानी वेलग्रेड की ‘नान अलाइंड कांफ्रेस’ मे मान्य हो गर्इ।
गुटनिरपेक्षता का Means And परिभाषा
डॉ. कृष्णा कुदेशिया ने अपनी पुस्तक ‘ विश्व राजनीति में भारत ‘ में गुटनिरपेक्षता का History करते हुए लिखा है कि ‘‘गुटनिरपेक्षता का Means तटस्थता नही है क्योंकि भारत ने अपने आपको संकुचित सीमाओं में बांधकर नही रखा है और न न्यायपूर्ण परिस्थिति में किसी गुट विशेष का समर्थन करने से बचता है। उसकी यह गुटनिरपेक्षता की नीति उपदेशात्मक नकारात्मक तटस्थता And अप्रगतिशील नीति नही है इसका Means यह है कि जो सकारात्मक है Meansात सही और न्यायसंगत है उसकी सहायता और समर्थन करना तथा जो अनीतिपूर्ण है उसकी आलोचना और निंदा करना है।’’
जॉर्ज श्वार्जनवर्गर के मतानुसार गुटनिरपेक्षता को छ: धारणाओं से भिन्न रखा जा सकता है-
- अलगाववाद: ऐसी नीतियों का समर्थन करना जिनसे राष्ट्र विश्व राजनीति में कम से कम भाग ले तथा बिल्कुल अलग रहे।
- अप्रतिबद्धता: किन्हीं दो अन्य शक्तियों से समान संबंध रखते हुए उनमें से किसी Single के साथ पूरी तरह से प्रतिबद्ध न होना।
- तटस्थता: यह वह कानूनी एंव राजनीतिक स्थिति है जो Fight के दौरान दोनों राष्ट्रों में से किसी के भी साथ Fight में संलग्न होने की अनुमति नही देती।
- Single पक्षवाद इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक देश नि:शस्त्रीकरण आदि नीतियों को अपनाना चाहिए। साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए। कि अन्य देश भी ऐसा करते है या नहीं।
- असंलग्नता: विभिन्न परस्पर विरोधी विचारधाराओं के बीच हो रहे संघर्षो से उत्पन्न खतरों से बचने के लिए तथा अलग रहने के लिए यह नीति अपनार्इ जाती है।
- तटस्थीकरण देश हमेशा के लिए तटस्थ है अपनी तटस्थीकृत स्थिति को कभी नही छोड सकता। गुटनिरपेक्षता इन All छ: धारणाओं से भिन्न है वस्तुत: यह मैत्री संधियों अथवा गुटों से बाहर रहने की नीति है।
‘‘यदि स्वतंत्रता का हनन होगा तथा न्याय की हत्या होगी, आक्रमण होगा वहांँ हम न तो तटस्थ है और न रहेंगें।’’ – जवाहर लाल नेहरू
‘‘यह स्वतंत्र विदेश नीति And तटस्थता Single ही बात नही है। अगर कभी कही भी Fight होता है तो इस नीति की Need होगी कि वह स्वतंत्रता And शांति के लिए सहयोग दे। स्वतंत्र विदेश नीति का मतलब यह है कि भारत First से अपने आपको किसी भी गुट के साथ समझौते द्वारा संबंद्ध नही करना चाहता और न ही किसी भी दशा में अपनी स्वतंत्रता खोना चाहता है।’’ – अप्पादोरार्इ इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि गुटनिरपेक्षता शांति तथा स्वतंत्रता की नीति है। इसके द्वारा Fight रोके जा सकते है। Fight की स्थिति में भारत इस नीति का उपयोग शांति स्थापना के लिए करता है।
गुटनिरपेक्षता को Second Wordों में परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि गुटनिरपेक्ष वे देश माने जा सकते है जो सैनिक गुटों के सदस्य न हो, Fight का समर्थन न करने वाले, स्वाधीनता के समर्थक, स्वतंत्र विदेश नीति आदि का पालन करते हों।
गुटनिरपेक्ष नीति अपनाने के कारण
(1) गुटनिरपेक्षता राष्ट्र हितों के अनुReseller-
भारत यह नही चाहता था कि वह किसी गुट में शामिल होकर Second गुट को अपना शत्रु बना ले। समस्त देश उससे मैत्री की कामना करते है तो वह All देशों से मैत्री का कामना करता है। साथ ही इस समय किसी गुट में शामिल होना भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं था।
(2) विश्व शान्ति की इच्छा –
भारत की स्वतंत्रता के समय दुनिया दो गुटों में बट चुकी थी। Second विश्व Fight को समाप्त हुए कुछ ही समय (2वर्ष) हुए थे अमेरिका तथा सोवियत रूस में तनाव की स्थिति बनी हुर्इ थी। शीत-Fight प्रारंभ हो गया था। भारत इस तनाव में नही पडना चाहता था । वह समान Reseller से दोनों गुटों से मित्रता का वातावरण बनाना चाहता था।
‘‘शांति के बिना हमारे All स्वप्न मिट्टी में मिल जाते है।’’ -जवाहर लाल नेहरू
(3) विदेशी सहायता की Need-
स्वतंत्रता के समय भारत पिछड़ा हुआ देश था। अंग्रेजी राज्य के शोषण के कारण भारत को आर्थिक पुर्ननिर्माण की भारी Need थी। भारत की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पंचवष्रीय योजनाएं बनानी पड़ी। इन योजनाओं को चलाने के लिए भारत को अधिक धन की Need थी, विदेशी सहायता के बिना इनको चलाना असंभव था। हालाकि भारत की स्थिति सुधरती चली गर्इ और आंतरिक साधन जुटा लिए गये।
(4) भारत की भौगोलिक स्थिति
गुटनिरपेक्षता को अपनाने के लिए वाध्य करती है। भारत पश्चिमी गुट के साथ सैनिक गुटबंदी नही कर सकता क्योंकि पश्चिम विरोधी दो प्रमुख शक्ति शाली साम्यवादी देशों की सीमायें भारत की सीमाओं के पास है Single तरफ चीन तथा दूसरी और सोवियत रूस, अगर भारत ने पश्चिमी खेमे में शामिल होकर रूस की सहानुभूति खो दी तो यह निश्चित Reseller से अहितकर होगा।
(5) घटनाओं का निष्पक्ष तथा स्वतंत्र मूल्ल्यांकन-
भारत किसी भी गुट का पिछलग्गू बनकर नही रहना चाहता था। और न ही स्वतंत्र निर्णय की शक्ति को खोना चाहता था। हमारी प्राचीन परम्परानुसार हम बड़ी साम्राज्य वाली शक्तियों का विरोध करते है। और शोषित देशों का साथ देना तथा उनकी स्वतंत्रता की मांगो का समर्थन करना तथा निष्पक्ष Reseller से अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निर्णय लेना हमारे आदर्श है।
(6) अन्र्तराष्ट्रीय क्षेत्र में स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास हो मान-
सम्मान बड़े यह भारत की इच्छा रही है। अन्र्तराष्ट्रीय क्षेत्र में गतिरोधों को दूर करने, गुटों के मतभेदों को बढ़ाने की बजाय उनकों दूर करने का भरसक प्रयत्न करना तथा विश्व-शान्ति की वृद्धि में योगदान आदि कार्य भारत ने प्रमुख Reseller से किये।
गुट निरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक
1.स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन –
आज अधिकतर राष्ट्र गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के लिए बाध्य है। क्योंकि राष्ट्र अपने आपको स्वतंत्र शक्ति के Reseller में देखना चाहते है। आज कोर्इ भी राष्ट्र किसी बड़ी शक्ति के उपग्रह के समान स्थिति में नही है। और न ही किसी राष्ट्र की अंगुलियों पर नाचने को बाध्य है। आज हर राष्ट्र में स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करने की ललक बनी हुर्इ है।
2.सैनिक गुटों से पृथक रहना-
द्वितीय विश्व Fight समाप्त होने के बाद विश्व दो गुटों में बंट चुका था। दोनों गुटों ने अपने-अपने सैनिक गुटों को माध्यम बनाया। अमेरिका तथा रूस दोनों से अलग अस्तित्व बनाये रखने के लिए गुटनिरपेक्ष Single तृतीय शक्ति के Reseller में उभरा। 1945-50 की अवधि में अत्याधिक अफ्रो-एशियार्इ देश स्वतंत्र हुए थे ये देश आर्थिक स्थिति से कमजोर थे जो संभलने के लिए समय चाहते थे। और वे इस चक्रव्यूह में नहीं फंसना चाहते थे। वे गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलकर विश्व-राजनीति में अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाना चाहते थे।
3.शीत Fight –
1945 के बाद दुनिया के दोनों गुटों में (अमेरिका और सोवियत रूस) में मतभेद की स्थिति बन गयी। यह स्थिति तीव्र तनाव, वैमनस्य, और मनमुटाव के कारण इतनी गम्भीर हो गर्इ कि वे Single-Second पर कटु बाग्वाणों की वर्षा करने लगे। यह लड़ार्इ कोर्इ अस्त्र-शस्त्र तथा बारूद, गोलों से लड़ी जाने वाली लड़ार्इ नही थी, बल्कि यह अखबारों (कागज) से लड़ी जाने वाली लड़ार्इ थी, अखबारों में Single Second देश की आलोचना, वैमनस्यता से पूर्ण बातें अखबारों में दिन-प्रतिदिन पढ़ने को मिलती थी, इससे Single Second देश के प्रति कटुता की भावना बढ़ती जाती थी। जो शीत-Fight कहलाया। इस समय स्वतंत्र हुए राष्ट्रों ने किसी का समर्थन न करते हुए पृथक रहने का निर्णय Reseller। शीत Fight से अलग राष्ट्रों की जो नीति थी वह असंलग्नता की नीति थी Meansात गुटनिरपेक्षता की नीति।
4.आर्थिक कारक-
अधिकांश देश इस समय जो गुटनिरपेक्षता की नीति पालन कर रहे थे वे ज्यादातर गरीब देश थे। उनके पास पूंजी तथा तकनीकी कौशल की कमी थी। इससे इन देशों के मध्य पूंजी प्राप्त करने के लिए कोर्इ रास्ता नहीं था। अगर Single गुट में जाकर मिल जाए तथा पूंजी प्राप्त हो जाए तो दूसरी तरफ स्वतंत्रता छिन जाने का डर था। चूंकि अधिकांश राष्ट्र अपना अलग स्वतंत्र अस्तित्व चाहते थे। इसलिए उन्होनें गुटनिरपेक्षता की राह चुनी।
5.मनोवैज्ञानिक विवशता-
नवोदित राष्ट्रों के गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के पीछे उनका कारण भावात्मक And मनोवैज्ञानिक विवशता थी। उन्होनें महसूस Reseller था कि विशिष्ट प्रश्न या स्थिति के संदर्भ में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करना पड़े या कार्यवाही करनी पड़ जाए तो अच्छी तरह से प्रमाणित कर सकते है।
गुटनिरपेक्षता की उपलब्धियाँ
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का First शिखर सम्मेलन वेलग्रेड में 1961 र्इ. में हुआ था। जिसमें 25 राष्ट्रों ने भाग लिया। 1998 में डरबन में आयोजित 12 वें शिखर सम्मेलन में 115 देशों ने भाग लिया था। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सदस्यों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अब यह आन्दोलन अन्र्तराष्ट्रीय आन्दोलन बन चुका है And कार्य क्षेत्र में भी बढ़ोत्री हुर्इ है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उपलब्धियाँ इस प्रकार है।
1. नि:शस्त्रीकरण –
अस्त्र-शस्त्र को नियंत्रित करने की नीति तथा नि:शस्त्रीकरण हथियारों के प्रयोग पर रोक लगाने की नीति अधिकांश देशों ने अपनार्इ परंतु उन्हें Singleदम सफलता तो हाथ नहीं लगी परन्तु उन देशों को यह नहीं भूलने दिया कि विश्व-शान्ति को बढ़ावा देने के लिए अस्त्र-शस्त्र बढ़ाने की वे लगाम दौड़ कितनी खतरनाक है। गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने वाले भारत को इस बात पर संतोष हुआ कि उसने अप्रैल 1954 में जिन न्युक्लीय शस्त्रों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने का जो प्रस्ताव रखा था 1963 में वह आंशिक Reseller से संधि के माध्यम से फलीभूत हुए। ‘‘आन्दोलन से शान्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ ही है साथ ही Human प्रतिष्ठा और समानता का निर्माण भी हुआ है।’’
2. गुटनिरपेक्षता को दोनों गुटों द्वारा मान्यता-
गुटनिरपेक्षता को प्रारंभ में कठिनार्इ से जूझना पड़ा, कि देशों को कैसे समझाया जाए कि गुटनिरपेक्षता क्या है अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर इसे कैसे मान्यता दिलार्इ जाए दोनों गुट पश्चिमी And पूर्वी गुट यह समझते थे कि गुटनिरपेक्षता कुछ हद तक ठीक है। दोनों गुटों का गुटनिरपेक्षता पर विश्वास भी कम था परन्तु यह बात भी सच है कि कुछ गुटनिरपेक्ष राष्ट्र कहीं न कहीं तथा किसी न किसी प्रकार से अप्रत्यक्ष Reseller से किसी गुट में सम्मिलित है। उनका मानना था कि गुटनिरपेक्षता Single दिखावा है और दो गुटों के अलावा तीसरा रास्ता नही है।
धीरे-धीरे दोनों गुटों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया और गुटनिरपेक्षता को मान्यता मिलना शुरू हो गर्इ। 1956 र्इ. में सोवियत संघ में कम्यूनिष्ट पार्टी की 20 वीं कांग्रेस ने पहली बार यह स्वीकार Reseller कि गुटनिरपेक्ष देश सचमुच स्वतंत्र है और यह भी अनुभव Reseller कि विश्व की समस्याओं के बारे में सोवियत संघ तथा गुटनिरपेक्ष देशों के समान विचार है। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी गुट ने भी गुटनिरपेक्ष नीति को मान्यता दी और गुटनिरपेक्ष देशों में गुटबद्ध देशों के मन का भ्रम अलग करने के लिए इस नीति के प्रति सद्भावना और सम्मान का वातावरण पैदा करने में जो प्रयास किये और सफलता प्राप्त की वह वास्तव में सराहनीय कार्य है।
3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के स्वReseller को Resellerांतरित करना-
गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता की नीति द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ को कुछ दृष्टियों से हमेशा-हमेशा के लिए Resellerांतरित करने में सहायता दी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने Single तो संख्या के आधार पर तथा Second शीत Fight में अपनी तटस्थ दृष्टि के कारण छोटे राष्ट्रों के मध्य शांति स्थापित करने के लिए ऐसे संगठन बनाने में सहायता दी जिसमें छोटे राष्ट्र बड़े राष्ट्रों पर नियंत्रण रख सके। उन्होनें संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के महत्व को बड़ा दिया, जिसमें All सदस्यों का बराबर प्रतिनिधित्व होता है तथा Safty परिषद का महत्व कम कर दिया। उसकी मूल संकल्पना विश्व संगठन के सबसे महत्वपूर्ण अंग के Reseller में की गर्इ।
4. उन्मुक्त वातावरण का निर्मार्ण –
नव स्वतंत्र राष्ट्रों को महान शक्तिशाली राष्ट्र शक्तियों के चंगुल से बचाने के लिए तथा स्वतंत्र वातावरण का अस्तित्व बनाए रखने के लिए गुटनिरपेक्षता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। गुटबंदी की विश्व राजनीति ने दमघोटु राष्ट्र समाज में गुटनिरपेक्षता की नीति Single शुद्ध हवा का झोंका लेकर आयी। यह ताजी हवा थी खुले समाज के गुणों की, मुक्त And खुली Discussion के वरदान की, तीव्र मतभेद और रोष के समय खुले रास्ते रखने के महत्व की शीतFight के कारण जो अनुदारताएॅ और विकृतियाँ पैदा हो गर्इ थी गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने उन्हें दूर करने का अथक प्रयास Reseller। और विश्व समाज Single खुला समाज बन गया।
5. शीत Fight को शस्त्र Fight के Reseller में बदलने से रोकना-
गुटनिरपेक्ष देशों ने दोनों गुटों (अमेरिका तथा सोवियत रूस) के मध्य तालमेल बिठाने के लिए तथा दोनों के मतभेदों को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। द्वितीय विश्व Fight के बाद शीत Fight की स्थिति बनी हुर्इ थी। स्थिति कुछ ऐसी ही बनती जा रही थी कि तृतीय विश्व Fight भी हो सकता था। परन्तु गुटनिरपेक्ष देशों ने दोनों गुटों में सद्भावना का भाव पैदा कर शीत-Fight को अस्त्र-शस्त्र के Fight से बचा लिया।
6. विकासशील राष्ट्रो के बीच आर्थिक सहयोग की बुनियाद –
विकासशील राष्ट्रों के मध्य आर्थिक सहयोग की बुनियाद रखने में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को सफलता मिली। 20 अगस्त 1976 के कोलम्बो शिखर सम्मेलन में आर्थिक घोषणा पत्र स्वीकार Reseller गया जिसका मुख्य आधार यह था कि गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के बीच अधिकाधिक आर्थिक सहयोग हो इस सम्मेलन में तकनीकी, व्यापार, मुद्रा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन आदि पर महत्व दिया गया।
7. राष्ट्रीय प्रकृति के अनुReseller विकास के प्रतिमान-
दोनों गुटों द्वारा गुटनिरपेक्ष देशों पर थोपे जाने वाले आदर्शो का विरोध Reseller साथ ही अपनी राष्ट्रीय प्रकृति के According विकास के अपने राष्ट्रीय सांचो और पद्धतियों का अविष्कार Reseller। इस तरह भारत ने अपने समाज के समाजवादी ढांचे का अविष्कार Reseller।
8. विश्व राजनीति में संघर्षोर् े को टालना-
गुटनिरपेक्षता के कारण कुछ विकट संघर्ष टल गए। तृतीय विश्व Fight की आशंका समाप्त हो गर्इ, साथ ही अन्य संकटों का समाधान भी हो गया। न्युक्लीय अस्त्रों का दशक भी इस खतरनाक संकट से बच गया इस प्रकार गुटनिरपेक्षता ने अन्र्तराष्ट्रीय शान्ति और Safty बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दोनों गुटों की जो योजनाएं थी उनको धीरे-धीरे Destroy कर विश्व के अन्य देशों को भी दो गुटों में शामिल करने से रोक दिया। विकासशील देशों ने विकसित देशों को शांति, सहयोग, सद्भावना पूर्ण जीवन बिताने का सबक सिखाया। गतिरोध घोर अंधविश्वास और दोनों गुटों का सम्पर्क टूट जाने की स्थितियों में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने न केवल संयम से काम लेने की सलाह दी बल्कि Fight विराम के अवसरों पर अपने सद्प्रयत्न मध्यस्थता और शान्ति सेनाए भी जैसे कोरिया, स्वेज, सेनाएं प्रस्तुत कर दी।
इस प्रकार गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व-शान्ति, आर्थिक सहयोग, शीतFight के समय शान्ति बनाए रखने, नि:शस्त्रीकरण, आदि में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की और सफलता भी मिली।
गुटनिरपेक्षता की सदस्यता शर्ते
जून 1961 में काहिरा में 21 राष्ट्रों की बैठक में गुटनिपेक्षता की सदस्यता के संबंध में पाँच मानदण्ड निर्धारित किये गये। आपसी परस्पर विरोधी मत व्यक्त किये जाने के बाद मानदण्डों में काफी समझौता करना पड़ा। 1961 र्इ. के वेलग्रेड सम्मेलन का निमंत्रण भेजने के लिए उन देशों की Single समीति बनार्इ जिन्होंने काहिरा की बैठक में भाग लिया था और इसका काम उन्हीं पर सौंप दिया। ये मानदण्ड (शर्ते) निम्न लिखित थी –
- किसी भी गुटनिरपेक्ष देश के लिए स्वाधीन नीति का अनुसरण करना आवश्यक नहीं है इस नीति के पक्ष में जितना कर सके उतना ही ठीक हैं।
- निरन्तर राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए आन्दोलनों का समर्थन प्रदान करना चाहिए। किस हद तक और किस Reseller में यह निश्चित नहीं है।
- यह मानदण्ड सैनिक गुटबन्धनों की सदस्यता से सम्बन्धित है। Meansात् गुटनिरपेक्ष बनने के लिए उस देश को सैनिक गुटों का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- यदि किसी द्विपक्षीय संधि समझौता है तो यह बात ध्यान में रखनी होगी कि वह जानबूझकर बड़ी शक्ति के संदर्भ में नहीं होनी चाहिए यह चौथा And पांचवा मानदण्ड था।
इन सब मानदण्डों से निष्कर्ष निकलता है कि गुटनिरपेक्षता की सदस्यता वही देश ग्रहण कर सकते है जो अमेरिकी तथा सोवियत रूस गुट का सदस्य नही हो। डॉ. वेदप्रताप लिखते है ‘‘इस आन्दोलन के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके पास अपने नाम की कोर्इ व्यवस्थित परिभाषा नहीं है। आज गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को लगभग 45-50 साल हो चुके है, परन्तु आज तक कोर्इ सर्वमान्य परिभाषा नही है। जब परिभाषा की बात आती है, तो Historyकार नेहरू, नासिर, मार्शल टीटो के भाषणों को ही उद्धत करते रहते है। कोर्इ भी राष्ट्र इसकी परिभाषा नही दे पा रहा है।
कुछ राष्ट्र तो इसकी परिभाषा को पर्दे के पीछे रखना चाहते है क्योंकि उन्हें इसकी सदस्यता ग्रहण करने के लिए कोर्इ समस्या उत्पन्न न हो इसमें वे राष्ट्र भी शामिल हो जाए जिन्होंने अपनी जमीन पर सैनिक अड्डे बनाने के लिए जगह दी, इसमें वे राष्ट्र भी शामिल हो जाए जिन्होने दोनों गुटों में से किसी के साथ समझौता कर रखा हो, इसमें वे राष्ट्र भी आ जाए जो अस्त्र-शस्त्र की दौड़ में लगे है, इसमें वे राष्ट्र भी आ जाए जिन्होंने अपनी आर्थिक, राजनैतिक स्वाधीनता को शक्ति राष्ट्रों को गिरवी रख दिया है। यही कारण है कि आज तक परिभाषा को स्पष्ट स्वReseller नहीं दिया गया। अतंत: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन परिभाषा विहीन बनकर चरित्रहीन की व्यूहCreation में फंस कर रह गया है।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन शिखर सम्मेलन
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन प्रत्येक 3 वर्ष बाद किये जाते है इसकी लोकप्रियता को बढ़ाना इसका प्रमुख उद्देश्य है। इन सम्मेलनों में राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष तथा शासनाध्यक्ष भाग लेते है। इसका निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता हैं इसमें चार प्रकार के सदस्य शामिल होते है, पूर्ण सदस्य, पर्यवेक्षक सदस्य, पर्यवेक्षक गैर-राज्य सदस्य और अतिथि इन सम्मेलनों से प्रमुख लाभ है – गुटनिरपेक्षता की लोकप्रियता में वृद्धि होती है। अन्र्तराष्ट्रीय मामलों पर गुटनिरपेक्ष देशों की प्रतिक्रिया स्पष्ट Reseller से अभिव्यत हो जाती है। गुटनिरपेक्ष देशों में आपस में राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सहयोग की भावना का विकास होता है। अन्र्तराष्ट्रीय मंच पर गुटनिरपेक्ष देशों की Single आवाज को बल मिलता है। अन्र्तराष्ट्रीय समस्याओं पर गंभीर Reseller से विचार विमर्श करने हेतु तथा उनके समाधान के लिए महत्वपूर्ण सुझाव गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों द्वारा विभिन्न शिखर सम्मेलनों में दिये गए जिसमें इन सुझावों का अन्र्तराष्ट्रीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा । सम्मेलनों का प्रारंभ बेलग्रेड सम्मेलन 1961 र्इ. से हुआ।
1. First शिखर सम्मेलन (1961 र्इ.)
1961 र्इ. में चेकोस्लाविया की राजधानी वेलग्रेड में First शिखर सम्मेलन राष्ट्रपति मार्शल टीटो के सुझावों से आमंत्रित Reseller गया। इस सम्मेलन में किन देशों को आमंत्रित Reseller जाए तथा किन देशों को नहीं यह Single बड़ी विडम्बना थी। देशों को आमंत्रित करने के लिए पांच सूत्रीय शर्ते थी – (i) जो देश शांतिपूर्ण-सह अस्तित्व के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता हो। (ii) स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चल रहे आन्दोलनों का सर्मथन करने वाले देश (iii) ऐसे देश जो सैनिक गुटों के सदस्य न हो (iv) ऐसे देश जिन्होंने किसी महाशक्ति के साथ संधि न की हो (v) ऐसे देश जिनकी भूमि पर सैनिक अड्डे न हो।
इस आधार पर बेलग्रेड सम्मेलन में 28 देशों को आमंत्रित Reseller गया जिनमें से 3 देशों ने अपने पर्यवेक्षक तथा 25 देशों ने अपने प्रतिनिधि भेजकर सम्मेलन में भाग लिया। 3 पर्यवेक्षक भेजने वाले देशों में इक्वेडोर, बोलीविया तथा ब्राजील थे। जिन देशों को बेलग्रेड सम्मेलन के लिए आमंत्रित Reseller गया था वे इस पांच सूत्रीय फार्मूले पर खरे उतरे थे। यह सम्मेलन 1 से 6 सितम्बर तक चला। सम्मेलन में प्रमुख Reseller से निम्नलिखित विषयों पर विचार Reseller गया :-
- इस सम्मेलन में दुनिया का ध्यान ऐसी समस्याओं की ओर खींचा गया जिनसे विश्वFight संभव था वे जिनमें बर्लिन की समस्या, संयुक्त राष्ट्र में साम्यवादी चीन की सदस्यता का प्रश्न तथा कांगों की समस्या।
- प्रत्येक देश को अपनी इच्छानुसार शासन का स्वReseller निर्धारण करने और संचार करने की स्वतंत्रता हो।
- विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए साम्राज्यवाद को हानिकारक सिद्ध Reseller जाए।
- बिना किसी भेदभाव के किसी भी देश की प्रभुसत्ता का सम्मान Reseller जाना चाहिए साथ ही किसी भी देश के आंतरिक मामलों के संबंध में हस्तक्षेप की नीति का समर्थन करना चाहिए।
- सम्मेलन में यह भी कहा गया कि शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए विकासशील देश आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पिछड़ेपन से मुक्ति दिलाकर उनकी सामाजिक व्यवस्था को उन्नत बनाया जाना चाहिए।
- इस सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति की आलोचना की गर्इ।
- शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धान्त में आस्था व्यक्त की गर्इ। इस सम्मेलन से शीत-Fight को कम Reseller जा सका और अन्र्तराष्ट्रीय राजनीति पर इसका बड़ा ही हितकारी प्रभाव पड़ा। इसके कारण 1963 में अणु परीक्षण निषेध संधि सफलता पूर्वक की गर्इ।
2. द्वितीय शिखर सम्मेलन 1964
द्वितीय शिखर सम्मेलन 5 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक 1964 र्इ. में काहिरा में Reseller गया। जिसमें 48 देशों के प्रतिनिधि शामिल थे तथा 11 पर्यवेक्षक देश थे। इस सम्मेलन का उद्देश्य गुटनिरपेक्षता के क्षेत्र को विस्तृत करना था। तथा उसके माध्यम से तनाव को कम करना था। काहिरा सम्मेलन में प्रतिनिधि राष्ट्रों के बीच मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो गर्इ और ऐसा लगने लगा कि सम्मेलन विफल हो जायेगा। इस सम्मेलन में आर्थिक सहयोग की बात कही गर्इ। इस सम्मेलन में निम्नलिखित बिन्दुओं पर Discussion की गर्इ।
- शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से अन्र्तराष्ट्रीय विवादों का निपटारा Reseller जाए।
- परमाणु परीक्षण पर रोक लगार्इ जाए साथ ही नि:शस्त्रीकरण की नीति अपनार्इ जाए।
- दक्षिण रोडेशिया की अल्पमत गोरी सरकार को मान्यता नही दी जानी चाहिए।
- उपनिवेशवाद का अंत Reseller जाय। कम्बोडिया तथा वियतनाम में विदेशी हस्तक्षेप का अंत हो
- चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाया जाए।
- All राष्ट्रों से आºवान Reseller गया कि दक्षिण अफ्रीका से कूटनीतिक सम्बन्ध विच्छेद कर ले। साथ ही दक्षिण अफ्रीका की रंग भेद की नीति की कड़ी आलोचना की गर्इ। काहिरा सम्मेलन को शान्तिपूर्ण वार्ता द्वारा विवादों का निपटारा, उपनिवेशवाद का अंत, रंगभेद की नीति के विरोध आदि के लिए महत्वूपर्ण है।
3. तृतीय शिखर सम्मेलन, (1970 र्इ.)
सिम्बर 1970 में जाम्बिया की राजधानी लुसाका में तृतीय सम्मेलन का आयोजन Reseller गया। इस सम्मेलन में 65 राज्यों ने भाग लिया जिनमें 53 पूर्ण सदस्य तथा 12 प्रेक्षक देश थे। इस सम्मेलन में पश्चिमी एशिया के बारे में Single निश्चित मत प्रकट Reseller गया। पश्चिमी एशिया के बारे में रखे गये प्रस्ताव में केवल अरबों के पक्ष का सर्मथन ही नही अपितु हमलावर इजराइल की Need पड़ने पर बायकाट करने तथा नाकेबंदी तक करने की बात कही गर्इं अमरीकी फौजों तथा अन्य फौजों को वियतनाम से हटाने की सिफारिस की गर्इ। दक्षिण अफ्रीका से उपनिवेश के सन्दर्भ में बात की गर्इ और दक्षिण अफ्रीका से अनुरोध Reseller गया कि वह अपने ऊपर से हवार्इ जहाज जाने दे। सन् 1970 के दशक के लिए गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के बीच Single योजना स्वीकार की गर्इ इस सम्मेलन में यह सुझाव आया था कि गुटनिरपेक्ष देशों का Single स्थायी संगठन बनाया जाए जिसका Single सचिवालय भी हो। इस सुझाव को नामंजूर कर दिया गया। क्योंकि गुट निरपेक्ष देश गुटबंदी के खिलाफ थे और इस प्रकार संगठित होने का Means होता है – तृतीय विश्व गुट का गठन।
4. चतुर्थ शिखर सम्मेलन 1973
गुटनिरपेक्ष देशों का चतुर्थ सम्मेलन 1973 में अल्जीरिया की राजधानी अल्जीयर्स में 9-10 सितम्बर में हुआ इस सम्मेलन में 75 देशों के पूर्ण सदस्य और 9 देशों ने पर्यवेक्षक के Reseller में भाग लिया। निर्गुट देशों में व्याप्त मत भेदों का खुला प्रदर्शन हुआ साथ ही अभूतपूर्व आत्मविश्वास और Singleता का दर्शन भी हुआ। इस सम्मेलन में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार Reseller गया।
- महाशक्तियेां के बीच तनाव-शैथिल्य का स्वागत Reseller गया।
- गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को अपनी असंलग्नता की परिभाषा बदल कर अन्र्तराष्ट्रीय स्थिति के संदर्भ में करने पर जोर दिया गया।
- निर्गुट देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक और तकनीकी तालमेल होना चाहिए।
- जातीय विद्वेश, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद के उन्मूलन पर जोर दिया जाए।
- आर्थिक दृष्टि से यह निश्चित Reseller गया कि गुटनिरपेक्ष देशों को अपने आर्थिक साधनों का पूर्ण उपयोग करने का अधिकार है।
- इस सम्मेलन के अपने घोषणा पत्र में यह कहा गया कि राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के गठन में विकासशील देशों की आवाज सुनी जाए तथा निर्गुट राष्ट्र सम्मलित Reseller से विकसित देशों पर दबाव डालें।
5. पंचम शिखर सम्मेलन (1976 र्इ.)
गुटनिरपेक्ष देशों का पांचवा शिखर सम्मेलन 16 से 20 अगस्त 1976 र्इ. में कोलम्बों में हुआ। इस सम्मेलन में कुल 116 देशों ने भाग लिया जिनमें 86 देश पूर्ण सदस्य, 13 पर्यवेक्षक गैर-राज्य तथा 7 ने अतिथि सदस्य के Reseller में भाग लिया। पुर्तगाल, रूमानिया, पाकिस्तान, टर्की और र्इरान, फिलिपीन्स आदि प्रमुख थे जो सदस्यता ग्रहण करने के इच्छुक थे। इस सम्मेलन में नयी अन्र्तराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था विकसित करने का आग्रह Reseller गया, तथा Single आर्थिक घोषणा-पत्र प्रस्तुत Reseller गया जिसमें निम्नलिखित बातों पर Discussion की गर्इ।
(अ) अन्र्तराष्ट्रीय व्यापार को इस तरह पुर्नगठित Reseller जाए कि विकासशील देशों को बेहतर शर्तो पर व्यापार का मौका मिले और उनको अपने निर्यात का उचित मूल्य प्राप्त हो।
- अन्र्तराष्ट्रीय विभाजन के आधार पर उत्पादन को नये सिरे से पुर्नगठित Reseller जाए।
- मुद्रा संबंधी सुधारों में विकासशील देशों की राय को वही आदर मिलना चाहिए जो विकसित राष्ट्रों को मिलता है साथ ही मुद्रा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए।
- अनाज उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रबल साधन तथा तकनीकी का प्रयोग Reseller जाए।
- विकासशील देशों को यथेष्ट मात्रा में नियमित Reseller से आर्थिक साधन हस्तान्तरित किये जाए और उनकी स्वाधीनता का सम्मान Reseller जाए।
इस सम्मेलन की राजनीतिक घोषणा में निम्न लिखित बातें कही गयी थी :-
- समता के आधार पर नयी राजनीतिक व्यवस्था बनायी जाए और ‘प्रभाव क्षेत्र‘ जैसे सिद्धान्तों को शांति विरोधी बताया गया।
- सम्मेलन में मुक्त आन्दोलनों का समर्थन Reseller गया साथ ही पश्चिमी एशिया, साइप्रस, फिलीस्तीन समस्या, दोनों कोरियाओं (उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया) का Singleीकरण आदि की समस्याओं पर विचार Reseller गया।
- सम्मेलन में हिन्द महासागर में विदेशी अड्डों के प्रश्न को भी उठाया गया और इसे तनाव मुक्त क्षेत्र बनाने की Need पर बल दिया गया।
6. षष्टम् शिखर सम्मेलन – 1979
छठा शिखर सम्मेलन हवाना (क्यूवा) में 3 सितम्बर 1979 में क्यूबा के राष्ट्रपति डॉ. फिदेल कास्त्रों ने अमरीकी विरोधी भाषण के साथ प्रारंभ Reseller। लगभग इसमें 95 देशों ने भाग लिया। यह First सम्मेलन था जिसमें Indian Customer प्रधानमंत्री का स्थान रिक्त रहा।
इस सम्मेलन में विचित्र भाषण डॉ फिदेल द्वारा दिया गया जो अन्र्तविरोधी से भरा हुआ था। उन्होंने कहा हमारा देश मार्क्सवादी सिद्धान्तों में विश्वास करता है पर कभी भी अपने विचार और नीतियां गुटनिरपेक्ष देशों पर थोपने का प्रयत्न नही करेगा। उन्होंने फूट डालने और शासन करने वाली नीतियों से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने इस बात पर प्रसन्ता व्यक्त की कि पाकिस्तान भी गुटनिरपेक्ष देशों की लाइन में आ गया।
हवाना सम्मेलन के घोषणा-पत्र में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार Reseller गया। ‘ निर्गुट राष्ट्रों से अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति And Singleता के लिए Singleजुट रहने को कहा। ‘ तेल निर्यातक देशों से अपील की गर्इ की वे दक्षिण अफ्रीका को तेल निर्यात न करें। ‘ All गुटनिरपेक्ष देशों से अपील की गर्इ की वे दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत छापामार Fight का समर्थन करें ‘ मिश्र को निलंबित करने के लिए कर्इ घंटो बहस चली साथ ही मिश्र और इजराइल के बीच हुए कैम्प डेविड समझौते की निंदा की गर्इ। ‘ नस्लवाद, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, विदेशी प्रभुत्व, विदेशी कब्जे और हस्तक्षेप And चौधराहट के विरूद्ध संघर्ष से स्वाभाविक सम्बन्ध है। इस सम्मेलन में विकासशील देशों की Meansव्यवस्था को लेकर भी विचार विमर्श हुआ। विशेषकर तेल निर्यात करने वाले विकासशील देशों की ऊर्जा सम्बन्धी समस्याओं पर बहुत गंम्भीरता पूर्वक विचार हुआ।
7. Sevenवां शिखर सम्मेलन – (1983 र्इ.)
क्यूवा के राष्ट्रपति डॉ. फिदेल कास्त्रों द्वारा 31 अगस्त 1982 को Sevenवें शिखर सम्मेलन की अनुमति प्राप्त हो गयी । राष्टाध्यक्षों को सूचित Reseller गया कि र्इरान तथा र्इराक Fight के कारण र्इराक में सम्मेलन स्थिगित करना पड़ा। गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलनों का Sevenवां शिखर सम्मेलन भारत की राजधानी नर्इ दिल्ली में 6 से 12 मार्च 1983 में Reseller गया। इस सम्मेलन ने अन्य छ: सम्मेलनों से अलग अपने नये कीर्तिमान स्थापित किये। इस समय विश्व राजनीति का जो माहौल बना हुआ था वह 1959-60 के माहौल से कम खतरनाक नहीं था। गम्भीर चुनौतियाँ, तनाव, अविश्वास, और संघर्ष का जहर घोलने वाली इन All समस्याओं का सूत्रपात हवाना, अल्जीयर्म कोलम्बो, आदि सम्मेलन के समय से दिखना प्रारंभ हो गया था।
हवाना सम्मेलन 1979 में सम्पन्न हुआ तीन माह बाद सोवियत फौजें अफगानिस्तान में घुस आर्इ इससे पाकिस्तान, र्इरान, अफगानिस्तान आदि के सम्बन्ध बिगड़ गए और विश्व राजनीति में फिर Single बार विश्वFight जैसी स्थिति बन गर्इ। दोनों महाशक्तियों के बीच चल रही शस्त्राअस्त्र परीसीमन की वार्ता असफल हो गर्इ, पश्चिमी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर अनेक आर्थिक और राजनैतिक प्रतिबंध लगाने की कोशिश की और खाड़ी देशों, हिन्दमहासागर तथा पाकिस्तान आदि में अपनी सैनिक उपस्थिति बढ़ाना शुरू कर दिया।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में फूट का प्रमुख कारण था अफगानिस्तान का मामला, जहाँ Single ओर वियतनाम, सीरिया, यमन, इथोपिया आदि देशों ने रूसी कार्यवाही का दमन Reseller वहीं दूसरी ओर सिंगापुर, जायरे, मोरक्को, पाक आदि देशों ने इसका विरोध Reseller। तथा भारत जैसे राष्ट्र ने सोवियत संघ की भत्र्सना करने के वजाय यह माना कि अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी तथा बाहरी हस्तक्षेप की समाप्ति Single साथ होनी चाहिए। इस प्रकार सप्तम सम्मेलन बहुत ही नाजुक परिस्थितियों में हुआ था।
सम्मेलन का प्रारभिक स्वReseller
गुटनिरपेक्ष देशों का यह Sevenवां शिखर सम्मेलन राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों की उपस्थ्ति में श्रीमती इन्दिरागांधी की अपील के साथ प्रारंभ हुआ। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा कि विश्व की महाशक्तियां आणविक हथियारों के इस्तेमाल की धमकी न दे वे अपने स्वार्थ की चिंता छोड़कर Humanता की भलार्इ के कार्य करें। सम्मेलन में 101 सदस्य देशों में से 93 देशों ने इसमें भाग लिया जिनमें 68 राष्ट्राध्यक्ष 26 प्रधानमंत्री तथा उपराष्ट्रपति शामिल थे। डॉ फिदेल कास्त्रो ने श्रीमती इन्दिरा गांधी के हाथों में अध्यक्ष पद की कमान सौपी, तथा महासचिव नटवरसिंह को चुना गया। यह सम्मेलन पांच दिन तक चलना था परन्तु र्इरान-र्इराक Fight के कारण यह दो दिन तक चला। राष्ट्राध्यक्षों ने अपने-अपने भाषण दिये परन्तु पाक राष्ट्रपति का भाषण Historyनीय रहा उसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी को मुबारकबाद दी गर्इ और पांच सूत्रीय कार्यक्रम भी पेश Reseller। Sevenवें शिखर सम्मेलन के प्रमुख बिन्दुओं पर Discussion की गर्इ –
- विश्वशक्तियों से परमाणु हथियार प्रयोग न करने की अपील की गर्इ।
- अन्र्तराष्ट्रीय मुद्रा And वित्तीय प्रणाली के व्यापक पुनर्गठन की Need पर भी बल दिया गया।
- दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत लोगों के शोषण उनके प्रति असमानता के व्यवहार व उनके अधिकारों के हनन की भत्र्सना करते हुए उनके संघर्ष में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन द्वारा पूरा सहयोग दिये जाने की बात कही गर्इ।
- यूरोप में बढ़ती हथियारों की होड तनाव व विभिन्न गुटों के बीच टकराव की नीति पर चिंता व्यक्त की गर्इ।
- आर्थिक घोषणा-पत्र में विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों पर लगाये गये व्यापारिक प्रतिबंध को समाप्त करने के लिए तथा संरक्षणावादी रवैया अपनाने को कहा गया।
- सम्मेलन में खाद्य, ऊर्जा And परमाणु शक्ति के बारे में भी विचार Reseller गया और इनका हल ढ़ूढ़ना नितांत आवश्यक था।
अन्य विवादस्पद मुद्द्दे
- सम्मेलन में कम्पूचिया के भाग न लेने का विवाद प्रमुख था इस प्रश्न पर सदस्य देश Singleमत नहीं है। कुछ देश राजकुमार सिंहनुक को आमंत्रित करने के पक्ष में थे तो कुछ हेंग सैमरिन की सरकार को आमंत्रित करने के, तो कुछ उसका स्थान खाली छोड़ने के पछ में थे। हवाना सम्मेलन की तरह भारत जैसी स्थिति बनी हुर्इ थी अतत: उसका स्थान खाली छोड़ दिया गया।
- र्इरान-र्इराक के Fight के बारे में सम्मेलन की अवधि बढ़ाये जाने का कोर्इ ठोस हल नहीं निकाला जा सका।
- आठवें शिखर सम्मेलन कहां बुलाया जाए र्इराक चाहता था कि बगदाद में बुलाया जाए र्इरान, चाहता था कि, लीबिया में यह सम्मेलन बुलाया जाए इस आदि विरोध के कारण इसका कोर्इ हल नहीं निकाला जा सका।
Sevenवे शिखर सम्मेलन की समीक्षा
सही मायनों में देखा जाए तो यह गुटनिरपेक्ष आन्दोलन केवल Single मंच हैं और उसके होने वाले सम्मेलन Single क्लब की तरह है। इसके द्वारा निकाले गये ज्यादातर घोषण पत्र बिल्कुल Meansहीन है। ‘‘यहां जैसा चाहे वैसा व्यवहार करों ‘‘ की कहावत सिद्ध हो जाती है। Sevenवे गुटनिरपेक्ष सम्मेलन की आर्थिक घोषणा में गरीब देशों की खाद्ध की कमी को दूर करने पर बल दिया गया, कृषि में सहायता आदि की बात कही गयी, पर सवाल इस बात का है कि क्या मात्र घोषणा करने या विकसित राष्ट्रों से अपील करने से ये समस्यायें हल हो जाती है विकसित राष्ट्र तो अपने स्वार्थ के लिए विकासशील देशों का इस्तेमाल करते आए है और करते रहेगें।
साथ ही इस सम्मेलन में कर्इ सवालों पर Discussion की गर्इ, जैसे हैंग सैमरिन सरकार को प्रजातांत्रिक Reseller से परिवर्तित करना, दक्षिण अफ्रीका द्वारा नामीविया का शोषण कम करने आदि महत्वपूर्ण, सवालों पर सम्मेलन में जो कुछ भी हुआ वह नया नहीं था। ऐसे मुद्दों पर बहस आदि के सिवाय कुछ भी नहीं Reseller जा सकता।
Sevenवे शिखर सम्मेलन की उपलब्धियां
यह बात तो मानना ही पड़ेगी कि इस शिखर सम्मेलन ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को Single नर्इ शक्ति और दिशा दी है। कुछ लोगों का मानना है कि यह सम्मेलन Single तरह के शिविर के Reseller में सामने आया। जो Single तरह से नये सघर्ष की शुरूआत का मार्ग दिखाता है। इस सम्मेलन में नये शिरे से सदस्य राष्ट्रों की Singleता का बोध कराया गया। सशस्त्र संघर्ष की निरर्थकता का अहसास और मतभेदों को शान्तिपूर्ण तरीके से हल करने की उपयुक्तता अधिक Meansपूर्ण लगी। अन्र्तराष्ट्रीय व्यवस्था पर औद्योगिक देशों से बातचीत चलाने के प्रस्ताव का Single परिणाम यह हुआ कि सदस्य देशों ने विकास कार्यक्रमों में सहयोग की Need का महत्व समझा। उन्हें यह भी लगा कि वे अपने संसाधनों और क्षमताओं का विकास कार्यक्रमों में उपयोग अपने प्रयत्न से कर सकते है। इस सम्मेलन का दृष्टिकोण ज्यादातर समस्याओं को हल न करके उन्हें टाल देने का था।
8. आठवां गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन – 1986 र्इ.
1 से 7 सितम्बर 1986 र्इ. में जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में आठवां शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। जिम्बाब्बे के प्रधानमंत्री रार्बट मुगावे को अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में 101 देशों ने भाग लिया। यूनान, आस्ट्रेलिया, मंगोलिया आदि देशों को पर्यवेक्षक का विशेष दर्जा दिया गया। हरारे सम्मेलन में निम्नलिखित बिन्दुओं पर Discussion की गर्इ –
- दक्षिण अफ्रीका की रंग भेद की नीति के विरूद्ध कुछ उपाय अपनाये जाए जिससे वह यह नीति समाप्त करने के लिए बाध्य हो। जिनमें अफ्रीका को प्रोद्योगिकी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध, निर्यात की समाप्ति, तेल की बिक्री पर रोक, तथा हवार्इ संपर्क आदि भी शामिल हो।
- सम्मेलन में तय Reseller गया कि Single कोष स्थापित Reseller जाए।
- इस कोष से दक्षिण अफ्रीका पर आर्थिक निर्भरता को कम करने के लिए सहायता की जाए।
- इस सम्मेलन में नामीबिया की आजादी सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा का Single विशेष अधिवेशन बुलाये जाने की मांग की ।
- साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद की कड़ी आलोचना की गर्इ। निर्गुट राष्ट्र तथा विकासशील देश Single Second का आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए तत्पर हो गये यह इस सम्मेलन की Single महान उपलब्धि थी। साथ ही Single आयोग गठित करने का निर्णय लिया गया, यह आयोग दोनों गुटनिरपेक्ष तथा विकासशील देशों में ही सहयोग बढ़ाने का कार्य करेगा, साथ ही निरक्षरता का उन्मूलन, निर्धनता, भुखमरी तथा अन्य आर्थिक समस्याओं के निराकरण के उपाय तथा सुझाव देगा।
गुटनिरपेक्षता के समक्ष चुनौतियाँ
गुटनिरपेक्षता की प्रभावशीलता दिन-प्रतिदिन बड़ती जा रही हैं प्रारंभ में बेलग्रेड सम्मेलन में 25 सदस्य राष्ट्र थे परन्तु आठवें शिखर सम्मेलन तक इनकी सदस्य संख्या बढ़कर 101 हो गर्इ। आज गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य राष्ट्रसंघ के दो तिहार्इ सदस्य है और यह 4 महाद्वीपों के देशों का प्रतिनिधित्व करता है। एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लेटिन अमेरिका आदि को आज भी अनेक चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है। वे चुनौतियां है –
- आर्थिक पिछड़ा़पन :- गुटनिरपेक्ष राष्ट्र आर्थिक दृंिष्ट से पिछड़े हुए है आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए इन राष्ट्रों को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए बड़े-बड़े राष्ट्रों पर निर्भर रहना पड़ता है। और ये महाशक्तियां छोटे राष्ट्रों को लालच देकर इनका शोषण करती है और अपने गुटों में सम्मलित करने का लालच देती है।
- सैनिक दबाव :- विश्व-शक्तियां गुटनिरपेक्ष देशों पर दबाव डालती है। वे अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को सैनिक गुटों के माध्यम से घेरने का कार्य करती है और उन्हें अपने गुटों में मिला लेती है।
- गुटनिरपेक्ष देशों में अस्थिरता :- महाशक्तियां गुप्तचरों के माध्यम से इन राष्ट्रों में अस्थिरता लाने का प्रयास करती है। अमेरिका सरकार ने क्यूबा राष्ट्र में सी.आर्इ.ए. के माध्यम से फिदेल सरकार को गिराने की बार-बार कोशिश की चिली के राष्ट्रपति एलेण्डे की हत्या का मामला भी सी.आर्इ.ए. के हाथ था।
- गुटनिरपेक्ष विरोधी राष्टा्रों की संख्या में वृद्धि :- गुट निरपेक्षता के समक्ष यह भी Single समस्या उत्पन्न हो रही है कि Single तरफ कुछ देश गुट निरपेक्ष है वही दूसरी ओर अपने सैनिक गुट बनाने में तथा दोनों गुटों में से किसी न किसी गुट का समर्थन करने में लगे हुए है। इससे स्पष्ट होता है कि गुटनिरपेक्ष विरोधी तत्व मौजूद है।
- नैतिकता – यह आन्दोलन Single नैतिक आन्दोलन है न कि शस्त्रों द्वारा शांति स्थापित करने का आन्दोलन। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन Single अपील जैसा लगता है यह आक्रमण प्रतिरोध नहीं कर सकता। गुटनिरपेक्ष देशो में केवल 57 देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 14 जनवरी 1980 के उस प्रस्ताव में मतदान Reseller जिसमें अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं की वापसी की मांग की गयी थी 9 गुटनिरपेक्ष देशों ने प्रस्ताव का विरोध Reseller और 24 ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
- पारस्परिक वैमनस्य – गुटनिरपेक्ष देशों में आपसी वैमनस्य की भावना बड़ती जा रही है। इसका प्रमुख कारण है कि संगठित न होना। उदाहरण के लिए भारत और बाग्लादेश Single और तो गुटनिरपेक्ष देश है परन्तु कोलंबो में गंगा जल के बटवारे को लेकर दोनों ने यह साबित कर दिया कि उनमें आपसी वैमनस्य की भावना तथा तनाव उत्पन्न हो रहे है। इस प्रकार हम कह सकते है कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के समक्ष अनेक चुनौतियां है ।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आलोचना
- अवसरवादिता की नीति – पश्चिमी आलोचकों ने इसे अवसरवादी तथा काम निकालने वाली नीति कहा है। गुटनिरपेक्ष देश दोहरी कसौटी का प्रयोग करते है वे साम्यवादी और गैर साम्यवादी गुटों से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का और जिसका पलड़ा भारी हो उसकी ओर मिल जाने का रास्ता बना लेते है।
- अव्यवहारिकता – आलोचक इस नीति को सिद्धान्त में जितना उपयुक्त मानते है। व्यवहार में उतनी ही भिन्न है। इसमें सैद्धान्तिक गुण कितने भी क्यों न हो व्यवहारिक न होने से यह असफल हो जाती है। अत: कहा जाता है कि जहां सिद्धान्त के धरातल पर इस नीति ने स्वाधीनता प्राप्त की है वही व्यवहार के धरातल पर नीति ने उसको निभाया नहीं है।
- बाह्य्य निर्भरता – गुटनिरपेक्ष देशों की Single विफलता यह बतायी जाती है कि वे बाहरी आर्थिक और रक्षा सहायता पर बेहद निर्भर है। ये राष्ट्र दोनों गुटों से सहायता प्राप्त करने की स्थिति में थे । इसलिए उन्होंने इतनी भारी आर्थिक और रक्षा सहायता लेने का रास्ता निकाल लिया कि वे आज सहज सामान्य कार्य-निर्वाह के लिए भी इस सहायता पर आश्रित हो गये है।
- संकुचित नीति – गुटनिरपेक्ष नीति का दायरा बहुत ही सीमित है। यह नीति गुटों के आसपास घूमती है। गुटों से बाहर क्रियाशील होने की कल्पना इस अवधारणा में है ही नहीं। महाशक्ति गुटों की राजनीति पर प्रतिक्रिया करते रहना ही इस नीति का मुख्य लक्ष्य बन जाता है या तो गुटों के आपसी झगड़ों में पंच बनने की कोशिश करना या दोनों से अलग रहते हुए Single के केवल इतने समीप जाने का प्रयत्न करना कि दूसरा बुरा न माने यदि Second के बुरा मानने का डर हो तो First से नापतौल कर दूर हटना या बारी-बारी से पास जाना यही गुटनिरपेक्षता की शैली रही है।
- दिशा हीन आन्दोलन – आलोचकों का कहना है कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सद्भावना पूर्ण वातावरण पैदा कर पाना तो दूर की बात है यह अपने आप में विखरता जा रहा है। 1979 के हवाना आन्दोलन से स्पष्ट हो गया था कि यह आंदोलन तीन खेमों में बंट गया था। Single में क्यूबा, अफगानिस्तान, वियतनाम, इथोपिया, यमन जैसे रूस परस्त देश हैं तो Second खेमें में सोमालिया, सिंगापुर, जायरे, फिलीपीन्स, मोरक्को, मिश्र आदि अमरीकी परस्त देश हैं। Third खेमें में भारत, यूगोस्लाविया और श्रीलंका जैसे देश हैं। इस बात से साबित होता है कि आन्दोलन की अपनी कोर्इ दिशा नहीं रह गर्इ है।
- बुनियादी Singleता का अभाव : आलोचकों का मत है कि गुट निरपेक्ष राष्ट्रों में बुनियादी Singleता नहीं पायी जाती और वे Single-Second की सहायता करने की भी कोर्इ ठोस योजना नहीं बना सके हैं। गुट निरपेक्ष देश Single Second का शोषण करने में बाज नहीं आते। अपनी जीवन पद्धतियों की रक्षा के लिये गुटनिरपेक्ष देश कोर्इ संयुक्त रणनीति नहीं बना पाये हैं।
- राजनीतिक नीति : आलोचक इसे ऊध्र्वमूल नीति कहते हैं। ऐसी नीति जिसकी जड़े ऊपर हैं नीचे नहीं। राष्ट्रहित उसके केन्द्र में नहीं है उसमें राष्ट्रहित हो जाए यह अलग बात है। उसमें नेतागिरी की भावना है। इसकी नेतागिरी दुनिया के मंचों पर चमकनी चाहिये।
- अWindows Hosting नीति : आलोचकों का मानना है कि हम गुटनिरपेक्षता को Windows Hosting नीति मानते हैं। यदि वे विशाल रक्षा व्यवस्था की बात करते हैं तो उनकी गुटनिरपेक्षता Windows Hosting नहीं रह जायेगी, और यदि वे बाहर किसी देश या गुट से सहायता मांगते हैं तो उनकी यह Safty व्यवस्था शुद्ध नहीं होगी। 1962 के चीन आक्रमण ने भारत के लोगों को यह आभास करा दिया है कि वर्तमान राष्ट्र समाज में जो सर्वथा आदर्श नहीं है।कोर्इ भी चीज किसी देश की Safty को प्रमाण नहीं हो सकती।
- मूल्य रहित नीति : गुटनिरपेक्षता कोर्इ विचारधारा तथा सिद्धांत नहीं है। आलोचकों का ऐसा मानना है गुटनिरपेक्ष देशों में Single ओर जहां लोकतंत्रात्मक देश है वहीं दूसरी ओर राजतंत्रात्मक देश भी है। कम्यूनिष्ट तथा सैनिक गुटों वाले देश भी इसमें रहे हैं आज कर्इ राष्ट्रों में आपसी तनाव ने Fight का स्वReseller धारण कर लिया है। नेहरू के नेतृत्व में गुटनिरपेक्षता पर जो नैतिक मूल्य आरोपित करने की कोशिश भारत ने की थी वह Single मृदमरीचिका के अलावा कुछ नहीं थी। इस तथाकथित मूल्यों पंचशील, निरस्त्रीकरण, आदि का गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने समय-समय पर उल्लंघन करके यह सिद्ध Reseller कि गुटनिरपेक्षता Single साधारण नीति मात्र है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना के प्रति विश्व के राष्ट्रों का दृष्टिकोण
1. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन पर अमेरिका का दृष्टिकोण
‘‘मैं निर्गुट आन्दोलन का प्रशंसक नहीं हूं क्योंकि यह सही मायने में निर्गुट आन्दोलन नहीं है।’’ अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर उसे जितनी परेशानियां सोवियत संघ या चीन से नहीं हुर्इ उतनी उसे अपने ही निर्गुट राष्ट्रों से हुर्इ है। इसमें अधिकांश देश समाजवादी तथा विकासशील देश हैं जो अमेरिका के खिलाफ Singleजुट हैं। अधिकांश निर्गुट राष्ट्र 80 प्रतिशत मसलों पर अमेरिका के खिलाफ मतदान करते हैं।इस आन्दोलन को व्यवस्थित तथा सही मायने में निर्गुट बनाने में अभी बहुत समय लग जायेगा।
2. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन And सोवियत संघ
रूस सदा तृतीय विश्व के देशों का समर्थक रहा है। कास्त्रों जो 1979 में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के अध्यक्ष थे उन्होंने Single अवधारणा में तो यह तक कह दिया कि ‘‘सोवियत रूस की गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से स्वाभाविक सम्बद्धता है’’ अत: इस आन्दोलन को साम्राज्यवादी पश्चिमी गुट तथा साम्राज्य विरोधी सोवियत गुट के समान दूरी के बनावटीपन से मुक्त होकर सोवियत रूस की आन्दोलन के साथ स्वाभाविक सम्बद्धता को स्वीकार करना चाहिये।