आहार के कार्य
- शरीर क्रियात्मक कार्य
- मनोवैज्ञानिक कार्य
- सामाजिक कार्य
- आध्यात्मिक उन्नति में सहायक
(1) शरीर क्रियात्मक कार्य-
आपके मन में जिज्ञासा उठ रही होगी कि आहार के शरीर क्रियात्मक कार्यों से हमारा क्या आशय है? आहार के वे समस्त कार्य जो शारीरिक स्वास्थ्य संवर्धन से सम्बन्ध रखते है, शरीर क्रियात्मक कार्यों में आते है। आहार के शरीर क्रियात्मक कार्य निम्न है-
- उर्जा प्रदान करना- आहार का सर्वप्रमुख कार्य शरीर को उर्ज्ाा प्रदान करना। भोजन के Reseller में हम जिन पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं, वे All तत्व हमें शारीरिक, मानसिक Reseller से तथा प्रत्येक प्रकार के कार्य करने के लिये आवश्यक उर्ज्ाा प्रदान करते हैं। जिस प्रकार किसी गाड़ी को चलाने के लिये डीजन या पेट्रोल की जरूरत होती है, उसी प्रकार हमें भी किसी भी प्रकार का काम करने के लिये उर्ज्ाा की आवश्यक्ता होती है, जिसकी पूर्ति आहार से होती है।जब हमारे शरीर में उर्जा की कमी हो जाती है तो हमें थकान का अनुभव होने लगता है। इसके परिणामस्वReseller हमें भूख लगती है और हम भोजन ग्रहण करते है। इसके परिणामस्वReseller उर्जा प्राप्त होने से First की तरह पुन: क्रियाशील हो जाते है।
- शरीर संवर्धन- उम्र के According शरीर का समुचित विकास होना भी आवश्यक है। शरीर की यह बृद्धि And विकास आहार के कारण ही होता है।
- शारीरिक क्रियाओं का सुचारू संचालन-जैसा कि आप समझ ही चुके है, शरीर का उर्जा स्रोत आहार है। अत: शरीर के उर्ज्ाा के कारण ही अपने-अपने कार्यों का ठीक ढंग से समावित कर पाते है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शारीरिक क्रियाओं का सुचारू संचालन भी आहार का Single प्रमुख कार्य है।
- सप्तधातुओं का पोषण- जिज्ञासु विद्यार्थियों, आयुर्वेद के According हमारे शरीर में Seven धातुयें पायी जाती है, जो निम्न है- (1) रस (2) रक्त (3) माँस (4) मेद (5) अस्थि (6) मज्जा (7) शुक्र इन Seven धातुओं का समुचित पोषण तभी होता है, जब हम संतुलित और आदर्श आहार लेते हैं। अत: धातुओं को पुष्ट करना आहार का Single महत्त्वपूर्ण कार्य है।
- रोगों से Safty- शरीर के स्वस्थ रहने के लिये यह आवश्यक है कि वह रोग ग्रस्त न हो और रोगों से बचने And लड़ने के लिये शरीर में पर्याप्त रोग प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिये। यदि हम ठीक समय पर, उचित मात्रा में पर्याप्त पोषक तत्वों से युक्त भोजन लेते हैं तो हमारा शरीर रोगों को जन्म देने वाले कारकों से Windows Hosting रहता है। कहने का आशय यह है कि जिस व्यक्ति के शरीर में जितनी अधिक मात्रा में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है, वह उतनी ही अधिक मात्रा में निरोगी रहता है और हमारी यह रोगों से लड़ने की क्षमता हमारे आहार पर भी निर्भर करती हैं
(2) मनोवैज्ञानिक कार्य-
हम सबकी कुछ अनुभव अत: स्पष्ट है कि आहार शारीरिक पोषण के साथ-साथ मानसिक And भावनात्मक पोषण भी करता है। कहा भी गया है-“ जैसा खाये अन्न। वैसा बने मन।” Meansात्- जैसा हम भोजन ग्रहण करते हैं हमारा मन भी उसी प्रकार का हो जाता है। अत: हमारा आहार ऐसा होना चाहिये जो शरीर के साथ-साथ मन का भी विकास करे मन को भी पोषण प्रदान करे। अत: शारीरिक दृष्टि से आहार में All पोषक तत्व समुचित मात्रा में उपलब्ध होने चाहिये तथा मानसिक दृष्टि से आहार शुद्ध And Seven्विक होना चाहिये। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाना भी आहार का ही कार्य है।
(3) सामाजिक कार्य-
(4) आध्यात्मिक उन्नति में सहायक-
आहार शरीर And मन के साथ-साथ हमारी आत्म को भी प्रभावित करता है।अत: स्पष्ट है कि आध्यात्मिक उन्नति में सहायता प्रदान करने का कार्य भी अप्रत्यक्ष Reseller से आहार के द्वारा होता है। अत: स्पष्ट है कि आहार द्वारा हमारा शरीर इन्द्रिय, मन And आत्म All को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष Reseller से प्रभावित होते है।