शारीरिक विकास : शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था
विकास की अवस्था | आयु description | |
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1. | गर्भावस्था (prenatal stage) | गर्भाधान से लेकर जन्म तक |
2. | शैशवावस्था (infancy stage) | जन्म से तीन वर्ष की आयु तक |
3. | बाल्यावस्था(childhood stage) | Fourth वर्ष से 12 वर्ष की आयु तक |
4. | किशोरावस्था (adolescence stage) | 13 वर्ष से 17 वर्ष तक |
5. | वयस्कावस्था (adulthood stage) | 18 वर्ष से लेकर मृत्यु तक |
Human विकास के मूल मुद्दे-
- किस सीमा तक आनुवांशिकता And वातावरण Human विकास को प्रभावित करते हैं? यह Human विकास का First मुद्दा है। वास्तव में पिछली कर्इ शताब्दियों तक विचारक इस बात पर बहस करते रहे हैं कि Human विकास पर आनुवांशिकता And वातावरण का क्या प्रभाव पडता है? इस बहस को प्रकृति-पोषण विरोधाभास केReseller में जाना जाता है। परन्तु वर्तमान में यह बहस प्रकृति And पोषण के मध्य न होकर इस पर है कि ये किस सीमा तक Human विकास के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं।
- क्या विकास निरंतर होता है अथवा यह कर्इ स्तरों से गुजरता है? यह द्वितीय मुद्दा है। जब हम निरंतरता पर विचार करते हैं तब हम अवस्थाओं की Discussion नहीं करते क्योंकि अवस्थायें दो स्तरों में गुणात्मक भिन्नता को दर्शाती हैं। दो स्तरों या अवस्थाओं में Single अवस्था में होने वाला विकास दूसरी अवस्था में नहीं होता है।
- किस मात्रा तक व्यक्तिगत शीलगुण समय के साथ स्थिर रहते हैं? यहॉं व्यक्तिगत शीलगुणों से तात्पर्य व्यक्तित्व शीलगुणों से है। जैसे बुद्धि, क्रोध, चित्तप्रकृति आदि।
विकाSeven्मक परिवर्तनों के अध्ययन की विधियॉं- विकाSeven्मक मनोवैज्ञानिक आयु से संबंधित विकाSeven्मक बदलावों के अध्ययन हेतु दो प्रकार की अध्ययन विधियों का मुख्य Reseller से उपयोग करते हैं।
- दीर्घकालिक अध्ययन विधि And
- क्रॉससेक्सनल विधि।
दीर्घकालिक अध्ययन (Longitudinal study )विधि – इस विधि में प्रतिभागियों के Single ही समूह का अलग-अलग आयु में अनुवर्तन (फॉलोअप) कर अध्ययन Reseller जाता है, And इस कार्य में कर्इ वर्षों का समय लगता है। इसीलिए इसे दीर्घकालिक अध्ययन विधि कहा जाता है। अत्यधिक समय साध्य And खर्चीलापन इस विधि की प्रमुख कमियॉं है इसके अलावा इसमें प्रतिभागियों के अध्ययन को बीच में ही छोड़ देने की संभावना भी अधिक होती है।
क्राससेक्शनल अध्ययन (Cross-sectional study) विधि – यह विधि कम खर्चीली And कम समय-साध्य होती है जिसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता अलग-अलग आयु के प्रतिभागियों के कर्इ समूह विनिर्मित कर उनके बीच आयु आधारित परिवर्तनों And भिन्नताओं का तुलनात्मक अध्ययन कर लेता है। Human विकास बहुत ही रोमांचपूर्ण प्रक्रिया है जो कि जन्म से पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती है जिसके बारे में हम आगे की पंक्तियों में जानेंगे।
आनुवांशिकता And जन्मपूर्व (पूर्वप्रसूतिकाल के दौरान) विकास
आनुवांशिक प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण घटकों में जीन्स And क्रोमोसोम्स आते हैं। जीन जैविक ब्लूप्रिंट होते हैं कि जो कि All आनुवांशिक शीलगुणों And विशेषताओं का सीधे Reseller में निर्धारित And स्थानांतरित करते हैं। जीन DNA का घटक होते हैं And क्रोमोसोम्स की संCreation में स्थित होते हैं। ये क्रोमोसोम्स शारीरिक कोशिकाओं के केन्द्रकों में पाये जाते हैं। प्रत्येक सामान्य कोशिका में कुल 23 जोड़े क्रोमोसोम्स पाये जाते हैं जो कि कुल मिलाकर 46 होते हैं। इसके अलावा दो विशेष कोशिकायें भी पायी जाती हैं जिनमें कुल 23 ही क्रोमोसोम्स होते हैं जैसे कि पुरूषों में शुक्राणु कोशिका And महिलाओं में अंडाणु कोशिका। गर्भधारण के समय पुरूष के शुक्राणु कोशिका के 23 And महिला के अंडाणु कोशिका के 23 क्रोमोसोम्स आपस में मिल जाते हैं And Single Singleल कोशिका का निर्माण करते हैं जिसे जाइगोट (Zygote) कहा जाता है जिसमें पूरे 23 जोड़े क्रोमोसोम्स होते हैं। इस जाइगोट कोशिका में लगभग 100,000 जीन्स होते हैं जिनमें हर प्रकार वह सूचना कूटसंकेतिक होती है जिसकी की Human उत्पत्ति में जरूरत होती है। इन 23 जोड़े क्रोमोसोम्स का आखिरी जोड़ा सेक्स क्रोमोसोम्स कहलाता है। क्योंकि यह लिंग निर्धारण करता है। महिलाओं के सेक्स क्रोमोसोम्स में जोड़े के दोनों क्रोमोसोम्स XX होते हैं। वहीं पुरूषों के सेक्स क्रोमोसोम्स में XYहोते हैं। अंडाणु कोशिका के सेक्स क्रोमोसोम्स में हमेशा X क्रोमोसोम्स ही होते हैं। लड़की का जन्म महिला And पुरूष के दो X क्रोमोसोम्स के मिलने से And लड़के का जन्म महिला के X And पुरूष के Y क्रोमोसोम्स के मिलने से होता है।
इस प्रकार अब तक आप ने जाना कि आनुवांशिकता का Human विकास में क्या भूमिका है। आइये अब पूर्वप्रसूतिकाल में विकास की अवस्थाओं के बारे में जानें।
पूर्वप्रसूतिकाल के दौरान विकास की अवस्थायें –
शुक्राणु And अंडाणु कोशिका के मिलते ही जाइगोट का निर्माण शुरू हो जाता है And जन्म से पूर्व तक इसका अलग-अलग आकारों में विभिन्न अवस्थाओं में विकास होता रहता है इन्हें निम्नांकित सारणी के माध्यम से भली प्रकार जाना जा सकता है।
पूर्वप्रसूतिकाल की अवस्थायें
अवस्था | गर्भधारणोपरान्त समय | अवस्था की प्रमुख गतिविधियॉं |
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जाइगोट (zygote) का काल | Single से दो सप्ताह | जाइगोट यूटेरस से जुड़ जाता है। And दो हफ्तों में यह इस वाक्य के अंतिम बिन्दु के बराबर हो जाता है। |
एम्ब्रियो (embryo) का काल | 3 से 8 सप्ताह | शरीर की संCreation And अंगो का के निर्माण का संकेत मिलने लगता है। पहली अस्थि को शिकादिखलार्इ पड़ने के साथ ही इस काल का अन्त हो जाता है। आठ हफ्तों के उपरान्त एम्ब्रियो Single इंच के बराबर लम्बा हो जाता है, And वनज 4 ग्राम। |
भ्रूण(fetus)काल | 9 सप्ताह से लेकर जन्म तक (38 सप्ताह) |
इस दौरान अंगों का विकास जैसे हाथ, पैर, सिर And धड़ आदि का विकास तीव्रता से होता है, वजन And लम्बार्इ बढ़ती जाती है। |
शैशवावस्था में शारीरिक विकास And सीखना
शैशवावस्था में शारीरिक विकास बहुत ही तीव्रता से होता है। अपने जीवन के First साल में अच्छा पोषण प्राप्त होने पर शिशु अपने जन्म के वजन में तकरीबन तीन गुना ( 20 पौण्ड या 09 किलोग्राम) तथा शारीरिक लम्बार्इ में Single तिहार्इ (28 से 29 इंच, 71 से 74 सेंटीमीटर) की वृद्धि कर लेते हैं। यद्यपि शिशु जन्म के तुरंत बाद भोजन करने में सक्षम होते हैं बावजूद इसके Single समय में वे कितना पचा सकते हैं इसकी क्षमता उनमें सीमित होती है। उनका पेट Single समय में ज्यादा भोजन नहीं पचा सकता है। इसकी क्षतिपूर्ति वे दिन में कर्इ बाद थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करने के Reseller में करते हैं। प्राय: शिशु प्रत्येक तीन से चार घण्टे में थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करते हैं। जन्म के समय अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की शिशु में बहुत ही कम क्षमता होती है। यथार्थ तो यह है कि आठ से नौ महीने की आयु का होने तक वे अपने शरीर के सामान्य तापक्रम को मेंनटेन करने में भी असमर्थ होते हैं। इसलिए ऐसी अवस्था में उन्हें गर्म रखने के लिए माता-पिता को खास खयाल रखने की जरूरत होती है।
नवजात (The Neonate)- तुरंत जन्मे शिशु को नवजात कहा जाता है। इन शिशु गर्भावस्था से ही कुछ ऐसी अनुक्रियायें सीखे हुए होते हैं जो कि नवीन वातावरण में उनके अनुकूलन के लिए आवश्यक होती हैं। इन्हें रिफ्लेक्स कहा जाता है। इन अनुक्रियाओं में चूसना, निगलना, छींकना-खांसना और ऑंखें झपकाने की क्रिया शामिल होती है। नवजात किसी पीड़ादायक उद्दीपक से दूर होने के लिए अपने हाथ-पैर And अंग आदि हिला सकते हैं And जब उनके चेहरे पर कोर्इ चादर अथवा कम्बल आ जाता है तब वे उसे हटा देते हैं। आप किसी शिशु के गालों को थपथपाइये व तुरंत ही दूध हेतु मॉं के स्तन ढूॅंढ़ना शुरू कर देगा।नवजात द्वारा प्रदर्शित किये जाने वाले रिफ्लेक्सेस का वर्णन सारणी में Reseller गया है।
रिफ्लेक्स (Reflex) | description (Description) |
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ब्लिंकिंग (Bliniking) | शिशु प्रकाश के प्रति ऑंख झपकाकर अनुक्रिया करता है। |
रूटिंग (Rootin) | जब शिशु के गालों को स्पर्श अथवा थपथपाया जाता है तब वह स्पर्श की ओर घूम जाता है। तथा अपने होंठ And जीभ को चूषण हेतु हिलाता है। |
सकिंग (Sucking) | जब निप्पल अथवा अन्य दूसरी वस्तु शिशु के मुख में रखी जाती है तो वह उसे चूसने (निगलने) लगता है। |
टोनिक नेक (Tonic neck) | जब शिशु को पीठ के बल इस प्रकार लेटाया जाता है कि उसका सिर Single दिशा में घूमा हुआ हो तो शिशु अपनी बाहों And पैरों को उसी दिशा में फैला लेता है जिसमें उसका सिर होता है। |
मोरो (Moro) | तीव्र आवाज होने पर अथवा सिर के अचानक लटक जाने पर शिशु तेजी से हाथ पैर पटकने लगता है। |
बाबिन्सकी (Babinski) | जब शिशु के पैर को ऐड़ी से अॅंगूठे तक थपथपाया जाता है तो उसके पैर की उॅंगलियॉं And अॅंगूठा फैल जाता है। |
ग्रैस्पिंग (Grasping) | जब हाथ की हथेलियों को थपथपाया जाता है तक शिशु अपनी हथेलियों से थपथपाने हेतु इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु को पकड़ लेता है। |
स्टेप्पिंग (Stepping) | जब शिशु को उठाकर सीधा खड़ा Reseller जाता है तो वह Single पैर को जमीन पर रखकर Second को उठाकर आगे बढ़ने की कोशिश करता है। |
शैशवावस्था में प्रत्यक्षणात्मक विकास-
जन्म के समय से ही शिशु की All ज्ञानेंन्द्रियॉं कार्य करना प्रारंभ कर देती हैं और उनमें कुछ खास तरह की गंध, स्वाद, ध्वनि And दृश्य वस्तुओं को महत्व देने की प्रवृत्ति पायी जाती है। बसनेल के According बच्चों की सुनने की क्षमता देखने की क्षमता से कहीं अधिक विकसित होती है क्योंकि शिशु जन्म से पूर्व ही सुनना प्रारम्भ कर देता है। Single नवजात अपने सिर को आवाज की दिशा में घुमाने में सक्षम होता है And खास तौर पर वह महिलाओं की आवाज को ज्यादा महत्व देता है। पोरटर के According नवजात दर्द के प्रति संवेदनशील होते हैं And विशेष Reseller से स्पर्श के प्रति अनुक्रियाशील होते हैं। थपथपाये And सहलाये जाने पर वे प्रतिक्रिया अवश्य करते हैं। जन्म के समय Single नवजात की दृष्टि 20/600 होती है And शायद ही कभी दो वर्ष का होने से पूर्व 20/20 हो पाती है। फील्ड के According नवजात लगभग 9 इंच दूर तक की वस्तुओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं And वे धीरे-धीरे चलायमान वस्तु का पीछे भी जा सकते हैं। 22 से 93 घंटे तक की आयु के शिशु अपरिचित महिलाओं की तुलना में अपनी मॉं के चेहरे केा अधिक महत्व देते हैं। ब्राउन के According यद्यपि नवजात शिशु धूसर रंग की वस्तुओं की तुलना में रंगीन वस्तुओं के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं परन्तु वे दो माह के आयु का होने से पूर्व All रंगों के बीच भेद नहीं कर पाते हैं। गिब्सन And वॉक के अध्ययन के According जब बच्चे रेंगने की क्रिया में समर्थ हो जाते हैं उनमें गहरार्इ की प्रत्यक्षण क्षमता विकसित हो जाती है।
शैशवावस्था में सीखना
शिशु कब से सीखना शुरू कर देते हैं यदि आप कहेंगे कि जन्म से, तो आप उन्हें कमतर ऑंक रहे हैं। वे जन्म से पूर्व ही सीखना आरंभ कर देते हैं। मेल्टजॉफ And मूरे ने 1977 में किये गये अपने अध्ययन में पाया है कि 42 मिनट आयु के शिशु दूसरों द्वारा किये जा रहे जीभ को मुख से बाहर निकालने, And मुॅंह को खोलने And बन्द करने के व्यवहार का अनुकरण कर सकते हैं। इसके अलावा 42 घंटे की आयु के शिशु सिर के हिलने की गतिविधि का भी अनुकरण भली भॉंति कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त 14 महीने के शिशु में प्रेक्षणीय अधिगम के प्रमाण भी प्राप्त होते हैं। मेल्टजॉफ ने 1988 के अपने Single प्रयोग में यह दिखलाया कि – जब शिशुओं को Single टेलीविजन कार्यक्रम में Single व्यक्ति द्वारा खिलौने को विशेष प्रकार से खेलते दिखलाया गया, तो 24 घंटे बाद वही खिलौना जब शिशुओं को दिया गया तो उन्होंने ने भी खिलौने को टेलीविजन पर दिखाये गये व्यक्ति की तरह खेला।
शैशवावस्था में पेशीय विकास-
जीवन के First कुछ वर्षों में शिशुओं का विकास बहुत तीव्रता से होता है। कुछ बदलाव परिपक्वता (maturation) की वजह से होते हैं And कुछ अधिगम (learning) के कारण। परिपक्वता शिशु के जैविक समय-सारणी के हिसाब से निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए पेशीय विकास के बहुत से महत्वपूर्ण पड़ाव जैसे कि बैठना, खड़ा होना, चलना प्रमुख Reseller से परिपक्वता का परिणाम होते हैं। लेकिन यह विकास धीमा हो जाता है जब िशुशु को कुपोषण And मॉं से अलगाव आदि जैसे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। क्रास-सांस्कृतिक शोधों में यह दर्शाया गया है कि कुछ अफ्रीकी देशों जैसे कि यूगांडा और केन्या जहॉं कि बच्चों के पालन-पोषण के तरीके अफ्रीकी संस्कृति से ओतप्रोत हैं, वहॉं कि मातायें बच्चों के पेशीय विकास पर अमेरिकी माताओं की अपेक्षा अधिक ध्यान देती हैं And अपने शिशुओं के पेशीय विकास हेतु विशेष तकनीकी प्रशिक्षण का उपयोग करती हैं जिससे उनके बच्चों का विकास अमेरिकी शिशुओं की तुलना में काफी तीव्र गति से होता है (किलब्राइड And किलब्राइड, 1975, सुपर, 1981)। आइये अब शैशवावस्था में शिशुओं के क्रमबद्ध विकास के बारे में जानें।
शिशु की आयु | शिशु का पेशीय विकास |
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2 माह | इस आयु में शिशु अपना सिर ऊपर उठाना शुरू कर देते हैं। |
3 माह | करवट बदलना And तकिये की सहायता प्रदान करने पर बैठना शुरू कर देते हैं। |
6 माह | छ: माह की आयु में शिशु बिना तकिये की अवलम्बन के हर बैठने लगते हैं। |
7 माह | Seven माह की आयु में शिशु सहारा लेकर खड़े होना सीख लेते हैं। |
9 माह | 9 माह आते आते ये शिशु सहारे के साथ चलना शुरू कर देते हैं। |
10 माह | दस माह की आयु में शिशु कभी-कभी बिना सहारे खड़े होने लगते हैं। |
11 माह | ग्यारह माह की आयु में शिशु बिना सहारे के खडे़ होने में समर्थ हो जाते हैं। |
12 माह | बारह महीने की अवस्था में शिशु बिना अवलम्बन के अकेले चलने में समर्थ हो जाते हैं। |
14 माह | 14 महीने की आयु में ये इतने कुशल हो जाते हैं कि बिना पीछे देखे ही उल्टा चलने में भी समर्थ हो जाते हैं। |
17 माह | इस आयु में शिशु सीढ़ियों पर चढ़ने लगते हैं। |
18 माह | इस आयु में शिशु गेंद को अपने सामने की दिशा में किक करने में समर्थ हो जाते हैं। |
शैशवावस्था And बाल्यावस्था में सांवेगिक विकास
संजना खुशमिजाज, सरल And स्वयं को परिस्थितियों में आसानी से ढाल लेती है। रोनित हमेशा लगा रहता है And किसी समस्या के सामने हल करने तक डटा रहता है, लेकिन बहुत ही आसानी से विचलित हो जाता है। उनके माता पिता कहते हैं कि दोनों शिशु हमेशा से ही ऐसे हैं। क्या दोनों बच्चे अलग-अलग व्यवहार शैली के साथ पैदा हुये हैं अथवा वातावरण के प्रति Single विशेष प्रकार के तरीके के साथ-जिसे की चित्तप्रकृति (temperament) कहा जाता है। थामस And उनके साथियों का यह विश्वास है कि व्यक्तित्व, चित्तप्रकृति And वातावरण के बीच लगातार होने वाली अंत:क्रिया के द्वारा खास Reseller में ढल जाता है। यद्यपि वातावरण चित्तप्रकृति की जन्मजात विशेषता को तीव्र करने, मंद करने And परिमार्जित करने में सक्षम होता है बावजूद इसके चित्तप्रकृति लम्बे समय, वर्षों बीतने के बाद भी बच्चों में अपने मौलिक स्वReseller में विद्यमान रहती है। बच्चों की समायोजन क्षमता उनकी चित्त्प्रकृति And वातावरण के साथ उनकी व्यवहारात्मक शैली पर निर्भर करती है। हार्ट, कैस्पी And सिल्वा आदि अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किये गये अध्ययन के According जो बच्चे शैशवावस्था में अनियंत्रित अथवा आवेगशील होते हैं उन बच्चों में आगे चलकर किशोरावस्था में तीव्र संवेग के साथ आक्रामक होने, खतरा उठाने, And उद्विग्नता की प्रवृत्ति पायी जाती है। जिन बच्चों को बचपन में अत्यधिक नियंत्रित करने का प्रयास Reseller जाता है वे बच्चे किशोरावस्था में समाज से दूरी बनाने की प्रवृत्ति अपना लेते हैं। उनमें सामाजिकता की क्षमता नहीं पायी जाती उनमे दब्बूपन And नेतृत्व भूमिकाओं से बचने की प्रवृत्ति होती है And उनमें दूसरों को प्रभावित करने की इच्छा नहीं होती है।
भाषा विकास
जन्म के समय, शिशुओं के संचार का साधन उनका रोना होता है, लेकिन 17 वर्ष की आयु में Single औसत हार्इस्कूल के छात्र के Wordकोश में लगभग 80,000 Word होते हैं (मिलर And गिल्डिया, 1987)। 18 महीने की आयु से लेकर 5 वर्ष की अवस्था तक बच्चा प्रतिदिन 9 Word सीखने के औसत से 14,000 Wordों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है (राइस, 1989)। लेकिन बच्चे अपने Wordकोश में केवल नये Word ही नहीं जोड़ते बल्कि वे इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ करते हैं। जीवन के First 5 वर्षों में बच्चे Wordों के Means की समझ के विकास के साथ ही Wordों से वाक्य Creation करना And उनका समाज में उपयोग करना भी सीखते हैं। बच्चे आश्चर्यजनक Reseller से अपनी भाषा का ज्यादातर हिस्सा बिना किसी औपचारिक शिक्षा अथवा प्रशिक्षण के ही सीख लेते हैं।
भाषा विकास की अवस्थायें-
शिशुओं में भाषा विकास की दृष्टि से ध्वनि का उच्चारण Second अथवा Third माह से ही प्रारम्भ हो पाता है। इससे पूर्व की माह में तो शिशु केवल रो कर ही अपने तनाव And खुशी को अभिव्यक्त कर पाते हैं। भाषा विकास की क्रमिक अवस्थाओं का वर्णन निम्नांकित है।
कूजन And बबलाना (Cooing and Babbling stage) – दो से तीन माह की आयु में बच्चे कूजन ध्वनि करना प्रारंभ कर देते हैं। जिसमें में वे प्राय: ‘अह’ And ‘वू’ के स्वर का उच्चारण बार-बार करते हैं। लगभग छ: माह का होने पर ये ही शिशु बबलाने की आवाज निकालना लगते हैं। कूजन And बबलाना मुख्य Reseller से स्वर And व्यंज ही होते हैं जो कि किसी भी भाषा की मूल आवाज होते हैं, तथा मिलकर Wordों का निर्माण करते हैं। स्वर And व्यंजन की संयुक्त Reseller से बारम्बार उच्चारण Single श्रृंखला में होता है जैसे कि ‘‘मा-मा-मा’’ और ‘‘बा-बा-बा’’। तीन से लेकर आठ माह की आयु तक शिशु विश्व की भाषाओं मे पायी जाने वाली All मूल ध्वनियों का उच्चारण करते हैं। परन्तु आठ माह का होने पर उनका ध्यान केवल अपनी मातृभाषा पर ही केन्द्रित हो जाता है तथा वे अपना उच्चारण माता पिता के उच्चारण के समान ही करने का प्रयास करते हैं।
Single Word अवस्था (The One-Word Stage) – लगभग Single साल का होने पर शिशु अपने First वास्तविक Word का उच्चारण करता है। यह पहला Word गतिमान व्यक्तियों जैसे कि माता-पिता अथवा गतिमान वस्तुओं, जीवों जैसे कि बॉल या कुत्ता के लिये ही होता है। इन Wordों में प्राय:’मम्मा’, पापा, डैडी, कुत्ता, बाल आदि होते हैं (नेल्सन, 1973)। 13 से 18 महीने की आयु में बच्चों की Word सामथ्र्य का काफी विकास हो जाता है And दो वर्ष की उम्र तक उनके Wordकोश का आकार 270 Wordों का हो जाता है (ब्राउन, 1973)। Word के उच्चारण के बावजूद बच्चे उनके Means को वयस्कों की भॉंति समझ नहीं पाते हैं And उनके दो प्रकार की कमियॉं दृष्टिगोचर होती हैं। 1 अतिविस्तारीकरण (overextention) And 2. सीमितीकरण (underextention)। अतिविस्तारीकरण के अंतर्गत बच्चे द्वारा प्रत्येक चार पैरों वाले प्राणी को कुत्ता कहने के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है, यहॉं बच्चा केवल चार पैर देखकर, गधा, गाय, बिल्ली All को कुत्ता ही कहता है। वहीं सीमितीकरण के अन्तर्गत बच्चा अपने घर के कुत्ते को तो कुत्ता ही कहता है परन्तु पड़ोसी का कुत्ता भी कुत्ता ही है यह वह नहीं समझ पाता है।
द्वि-Word अवस्था और टेलीग्राफिक स्पीच (The Two-Word Stage and Telegraphic Speech) – लगभग 18 से 20 माह की आयु में जबकि बच्चे की Word-सामथ्र्य केवल 50 Wordों की होती है बच्चे संज्ञा, क्रिया And विशेषण का प्रयोग दो Wordों के वाक्य के Reseller में करना शुरू कर देते हैं, जैसे कि ‘मम्मा खाऊॅंगा’, पापा-टाफी। हालॉंकि इस अवस्था में वाक्य में छिपे Means को बताने के लिए उन्हें अपने शारीरिक संकेतों, हाव-भाव पर निर्भर रहना पड़ता है (स्लोबिन, 1972)। लगभग ढार्इ वर्ष की आयु होने पर बच्चे छोटे वाक्यों का उपयोग करना प्रारंभ कर देते हैं जिनमें तीन या तीन से ज्यादा Word हो सकते हैं। इसे ही रोजर ब्राउन द्वारा टेलीग्राफिक स्पीच कहा गया है। इस अवस्था में बच्चों में वाक्य Creation के नियमों की समझ का आरंभ हो जाता है। व्याकरण के नियम उपयोग की अवस्था (Stage of Applying Grammatical rule) – टेलीग्राफिक स्पीच का कुछ समय तक अभ्यास करने से बच्चों में व्याकरण की समझ का विकास होने लगता है And वे शुद्ध वाक्य Creation करने लगते हैं वे वाक्यों में प्रत्यय, उपसर्ग, And, तथा, क्रिया, क्रियाविशेषण आदि का प्रयोग करना सीख जाते हैं। तथा वर्तमान काल, भूतकाल And भविष्यकाल की अभिव्यक्ति वाक्यों द्वारा करने लगते हैं।
बालक का सामाजिक विकास
समाज में उन्नत Reseller से व्यवहार करने And सहज Reseller से विकसित होने के लिए बच्चों के लिए उचित अनुचित व्यवहार की समझ होना अति आवश्यक है। इसके लिए सामाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक होता है। समाज द्वारा सहज स्वीकारणीय व्यवहारों, मनोवृत्तियों And मूल्यों को सीखने की प्रक्रिया ही सामाजीकरण कहलाती है। सामाजीकरण की इस प्रक्रिया में माता-पिता के अलावा संगी-साथियों, स्कूल, मीडिया And धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
सामाजीकरण में माता-पिता की भूमिका
बच्चों के सामाजीकरण में माता-पिता की भूमिका उदाहरण प्रस्तुतकर्ता के Reseller में होती है। मैकोबी And मार्टिन के According बच्चों को सामाजिकता का कौशल सिखाने में वे माता पिता अधिक सफल होते पाये गये हैं जो कि अपने बच्चों के प्रति सहृदय, प्रेमपूर्ण, देखभालने वाले And समर्थन करने वाले होते हैं। फै्रन्ज के According सत्य तो यह है कि Single दीर्घकालिक अनुसंधान जिसमें कि 5 वर्ष से लेकर 41 वर्ष की आयु तक व्यक्तियों का अध्ययन Reseller गया, में पाया गया कि जिन बच्चों के माता-पिता उनके प्रति उत्साही And प्रेमपूर्ण थे वे बच्चे अपनी वयस्कावस्था में Meansात् 41 साल की आयु में भी मानसिक Reseller से अधिक स्वस्थ, चुनौतियों का बखूबी सामना करने वाले, And अपने कार्यों में, सम्बंधों में And उदारता में काफी बढ़े-चढ़े थे (फ्रैन्ज And उनके सहयोगी, 1991)। इसके विपरीत प्रकार के माता-पिता के बच्चों में कुसमायोजन के दोष पाये गये (मैकोबी, 1992)। सार Reseller में माता-पिता की भूमिका से प्रभावित सामाजीकरण की वही प्रक्रिया प्रभावशाली मानी जाती है जिसका परिणाम बच्चों द्वारा आत्मानुशासन And स्वयं के व्यवहार के स्वनियमन के Reseller में सामने आए। सामाजीकरण की प्रक्रिया में संगी-साथियों की भूमिका (Peer relationships) -बहुत छोटी सी आयु में ही शिशु Single Second में अपनी रूचि दिखलाना शुरू कर देते हैं। केवल छ: माह की आयु में वे Second शिशुओं में अपनी रूचि, उनकी ओर देखकर, पहुॅंचने के प्रयास के Reseller में, छूने, मुस्कराने And देखकर बोलने के Reseller में अभिव्यक्त करते हैं (वान्डेल And म्यूलर, 1980)। तीन से चार वर्ष की आयु में मित्रता की शुरूआत होती है And संगी-साथियों के साथ संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। मध्य बाल्यावस्था में Single बच्चे की खुशी उसके संगी-साथियों के समूह की सदस्यता के कारण होती है। ये समूह प्राय: समान जाति, लिंग And सामाजिक स्थिति वाले होते हैं। अपने हमउम्र साथियों के समूह में बच्चे अन्य साथियों के साथ भली प्रकार घुलना-मिलना सीखते हैं, सहयोग करना, भावों की अभिव्यक्ति करना, क्रोध पर नियंत्रण करना And सामाजिक व्यवहार कुशलता सीखते हैं।
किशोरावस्था – शारीरिक And मानसिक विकास
किशोरावस्था प्यूबर्टी की अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है। प्यूबर्टी ऐसी अवस्था होती है जिसमें बड़ी ही तीव्रता से शारीरिक बदलाव होते हैं And ये बदलाव लैंगिक परिपक्वता में बदल जाते हैं। लड़कियों के लिए औसतन प्यूबर्टी की शुरूआत 10 वर्ष की आयु में And लड़कों के लिए 12 वर्ष की आयु में होती है। प्रत्येक बच्चे के किशोरावस्था में पहुॅंचने का समय प्रमुख Reseller से आनुवांशिक गुणों And वातावरणीय प्रभावों पर निर्भर करता है। प्यूबर्टी की शुरूआत हार्मोन्स के उत्पादन के साथ होती है And यह बहुत सारे शारीरिक बदलावों को जन्म देती है। लड़के And लड़कियों दोनों में ही प्रजनन अंगों का विकास होने लगता है And साथ ही अन्य गौण विशेषतायें भी परिलक्षित होने लगती हैं जो कि पुरूष And महिला के Reseller में किशोरों की बाह्य पहचान कराती हैं, जैसे कि लड़कियों में स्तनों And कटि प्रदेश के नीचे नितंबों का विकास होने लगता है, लड़कों की आवाज में भारीपन तथा चेहरे पर दाढ़ी-मूॅंछ और छाती पर बाल आने लगते हैं And दोनो ही लिंगों में बगल And प्रजनन अंगों में बालों का वर्धन शुरू हो जाता है।
प्यूबर्टी के समय का किशोरों के मानसिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन बच्चों में अपने साथियों की अपेक्षा प्यूबर्टी की अवस्था जल्दी आ जाती है वे बच्चे अपने साथ के बच्चों की अपेक्षा ज्यादा लम्बे And ताकतवर हो जाते हैं जिसका असर उनकी शारीरिक गतिविधियों जैसे कि खेल आदि पर पड़ता है वे इन गतिविधियों में अन्य बच्चों से आगे निकल जाते हैं। परिणामस्वReseller ये बच्चे आत्मविश्वास से भरपूर होते हैं And प्राय: अपनी शिक्षा में उत्तम प्रदर्शन करते हैं।
वहीं जिन बच्चों में किशोरावस्था देर से आती है वे बच्चे अपने साथी बच्चों की दृष्टि में पिछड़े And कमजोर पड़ जाते हैं जिसके कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी And पढ़ार्इ में पिछड़ापन दिखलार्इ देने लगता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के According किशोरावस्था, औपचारिक संक्रिया की अवस्था होती है। इस अवस्था में किशोर तार्किक सोच के नियमों को समझने लगता है वह जटिल समस्याओं का समाधान, परिकल्पित Reseller से करने में सक्षम होने लगता है।