मूत्र चिकित्सा का Means And इसके लाभ
मूत्र चिकित्सा के लाभ
मूत्र चिकित्सा वह लाभकारी And गुणकारी स्वास्थ्य की कँुजी है जिससे ना केवल रोगी व्यक्तियों को स्वास्थ्य लाभ होता है अपितु स्वस्थ व्यक्ति भी इसके अनुप्रयोग से अपने स्वास्थ्य को उन्नत बनाते हैं Meansात यह रोगी And स्वस्थ्य दोनों प्रकार के मनुष्यो के लिए समान रुप से लाभकारी होती है। इस प्रकार मूत्र चिकित्सा के लाभों को दो वर्गो में बाटकर अध्ययन Reseller जा सकता है – 1-स्वस्थ व्यक्तियों को मूत्र चिकित्सा का लाभ- 2-रोगी व्यक्तियों को मूत्र चिकित्सा का लाभ ।
1. स्वस्थ व्यक्तियों पर मूत्र चिकित्सा का प्रभाव –
- मूत्र चिकित्सा Single Windows Hosting And दुष्प्रभाव रहित चिकित्सा पद्धति है, जिसके प्रयोग से स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पडता है।
- मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से स्वस्थ व्यक्ति की जीवनी शक्ति And रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रबल बनी रहती है।
- मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से आन्तरिक विकार धुलकर शरीर Singleदम स्वच्छ बनता है जिसके परिणामस्वरुप शरीर संक्रमण से मुक्त बना रहता है।
- मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से रक्त शुद्ध बनता है तथा रक्त विकार And त्वचा रोग (फोडें फुन्सीं) आदि उत्पन्न नही होते है।
- मूत्र चिकित्सा का Human हृदय पर अच्छा प्रभाव पडता है And हृदय गति व रक्त चाप सामान्य बना रहता है।
- मूत्र चिकित्सा का शरीर की अस्थियों पर अच्छा प्रभाव पडता है इससे अस्थियां मजबूत And जोड लचीले बनते है।
- मूत्र चिकित्सा का दीर्घ कालीन प्रयोग करने से सिर के बाल काले बने रहते हैं और आँखों की रोशनी तेज बनी रहती है।
- मूत्र चिकित्सा का तंत्रिका तंत्र पर अच्छा प्रभाव पडता है And मस्तिष्क व तंत्रिकाओं से सम्बन्धित विकार उत्पन्न नही होते हैं।
- मूत्र चिकित्सा का उदर प्रदेश पर अच्छा प्रभाव पडता है जिससे व्यक्ति की पाचन क्रिया स्वस्थ And सक्रिय बनी रहती है।
- मूत्र चिकित्सा का अन्त:स्त्रावी तंत्र पर भी बहुत अच्छा प्रभाव पडता है तथा हामोर्ंस संतुलित मात्रा में स्त्रावित होते है।
- मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से मनुष्य की चयापचय दर संतुलित रहती है जिससे शरीर में आलस्य, अतिनिन्द्रा अथवा अनिन्द्रा की स्थिति उत्पन्न नही होती है।
- मूत्र चिकित्सा का श्वसन अगों पर अच्छा प्रभाव पडता है जिससे व्यक्ति श्वसन रोगों जैसे खांसी, जुकाम And बुखार आदि से मुक्त रहता है।
इस प्रकार मूत्र चिकित्सा का स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पडता है। मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से शरीर के All तंत्र स्वस्थ And सक्रिय बने रहते हैं जिससे शरीर रोग मुक्त बना रहता है। मूत्र चिकित्सा का शरीर की चयापचय दर पर भी अच्छा प्रभाव पडता है। इससे व्यक्ति ऊर्जावान And सक्रिय बना रहता है। स्वस्थ व्यक्ति के अतिरिक्त रोगी व्यक्ति पर भी मूत्र चिकित्सा का प्रयोग प्रभावकारी सिद्ध होता है। रोगी व्यक्ति पर मूत्र चिकित्सा के प्रभाव इस प्रकार हैं –
2. रोगी व्यक्तियों पर मूत्र चिकित्सा का प्रभाव-
- त्वचा रोगियों द्वारा मूत्र प्रयोग करने से त्वचा रोगों में तुरन्त लाभ मिलने लगता है।
- नेत्र से सम्बन्धित रोगों में मूत्र प्रयोग करने से रोग में लाभ मिलता है And नेत्र ज्योति बढने लगती है।
- वृक्क से सम्बन्धित रोगियों द्वारा मूत्र प्रयोग करने से रोगों में लाभ मिलता है।
- श्वास रोगियों द्वारा मूत्र प्रयोग करने से रोगों में लाभ मिलता है।
- पाचन तंत्र के रोगियों द्वारा मूत्र प्रयोग करने रोगों में लाभ मिलता है। रोगी को भूख अच्छी प्रकार लगने लगती है And उसके रोग दूर होने लगते हैं।
- बालों का झडने, सफेद होने And बालों में रुसी होने पर मूत्र प्रयोग करने से रोग में लाभ मिलता है।
- कैंसर, कुष्ठ, कोढ, ब्लड प्रेशर, गठिया And दमा आदि गंभीर And असाध्य रोगों से ग्रस्त रोगियों द्वारा मूत्र प्रयोग करने से रोग में तुरन्त आराम मिलना प्रारम्भ हो जाता है।
मूत्र चिकित्सा का प्रयोग करने से Single ओर जहाँ सर्दी, जुकाम, खांसी, पेट दर्द, गैस, अपच आदि सामान्य And त्रीव रोगों में आराम मिलता है तो वही मूत्र चिकित्सा के प्रयोग करने से गठिया, आर्थाराइटिस, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, मधुमेह And कैन्सर आदि गंभीर And असाध्य रोगों के उपचार में भी मद्द मिलती है। विविध जीर्ण रोगों में जब रोगी असहनीय पीडा And कष्ट के दौर से गुजर रहा होता है, ऐसी अवस्था में मूत्र चिकित्सा रोगी के लिए अमृत अथवा संजीवनी का कार्य करती है। मूत्र चिकित्सा के प्रयोग से रोगी के शरीर की सुप्त जीवनी शक्ति पुन: जाग्रत होने लगती है और रोगी को शीघ्र आराम पडने लगता है। इस प्रकार मूत्र चिकित्सा स्वस्थ And रोगी दोनों प्रकार के मनुष्यों के लिए समान रुप से लाभकारी And गुणकारी चिकित्सा है। मूत्र चिकित्सा के उपरोक्त लाभों को जानने के उपरान्त आपके मन में यह जिज्ञासा अवश्य ही उत्पन्न हुर्इ होगी कि मूत्र चिकित्सा के अन्तर्गत किस मूत्र का प्रयोग का प्रयोग Reseller जाता है? अत: यह तथ्य भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस चिकित्सा के अन्र्तगत प्रमुख रुप से स्वमूत्र का प्रयोग Reseller गया है किन्तु स्वमूत्र के साथ साथ गौमूत्र के प्रयोग का वर्णन विभिन्न शास्त्रों में Reseller गया है। स्वमूत्र And गौमूत्र के अतिरिक्त आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ चरक संहिता में आचार्य चरक आठ प्रकार के मूत्रों का वर्णन करते हैं –
1 गाय का मूत्र 5 गधे का मूत्र
2 भैंस का मूत्र 6 घोडे का मूत्र
3 भेड का मूत्र 7 ऊंट का मूत्र
4 बकरी का मूत्र 8 हाथी का मूत्र
आयुर्वेद शास्त्र में उपरोक्त आठ प्रकार के मूत्रों शरीर पर अलग अलग प्रभावों का वर्णन भी Reseller गया है। उपरोक्त तथ्यों को जानने के उपरान्त आपको मूत्र चिकित्सा के लाभों And महत्व का ज्ञान अवश्य ही हुआ होगा किन्तु अब आपके मन में यह प्रश्न भी अवश्य ही उत्पन्न हुआ होगा कि मूत्र चिकित्सा में क्या क्या सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए जिससे किसी प्रकार की हानि की संभावना नही रहे और रोगी को अधिकतम And शीघ्र लाभ प्राप्त हो सके, अत: अब मूत्र चिकित्सा की प्रमुख सावधानियों पर विचार करते है।
मूत्र चिकित्सा की सावधानियां
- स्वमूत्र चिकित्सा के अन्र्तगत मूत्रपान करने वाले मनुष्य को केवल पथ्य आहार का सेवन ही करना चाहिए। पथ्य आहार में कच्ची मौसमी सब्जीयां, फल, अंकुरित अन्न, दलिया, खिचडी, गाय का दूध, दही And घी आदि पौष्टिक आहार का वर्णन आता है।
- मूत्रपान अथवा मूत्र चिकित्सा का करने वाले मनुष्य को All प्रकार के व्यसन, धूम्रपान, मांस मदिरा आदि पूर्ण रुप से त्याग देने चाहिए।
- मूत्र चिकित्सा का प्रयोग करने वाले रोगी को नमक And चीनी आदि रासायनिक पदार्थों का प्रयोग पूर्ण रुप से बंद कर देना चाहिए।
- मूत्र चिकित्सा के अन्र्तगत मूत्र की मालिश करते समय किसी प्रकार के अन्य रासायनिक पदार्थ जैसे साबून, शैम्पू अथवा तेल आदि का प्रयोग शरीर पर नही करना चाहिए।
- मूत्र चिकित्सा का प्रयोग करने वाले मनुष्य को Single सुव्यवस्थित दिनचर्या, निन्द्रा And ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- मूत्र चिकित्सा के अन्र्तगत रोगी को किसी भी प्रकार की अंग्रेजी एलोपैथिक दवार्इयों का सेवन नही करना चाहिए। मूत्र चिकित्सा के अन्र्तगत रोगी के पथ्य And अपथ आहार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पथ्य And अपथ्य आहार पर ध्यान रखते हुए मूत्र प्रयोग करने से कैन्सर, मधुमेह And And एड्स जैसे गंभीर And असाध्य रोगों पर भी नियंत्रण Reseller जा सकता है।
इसके अन्तर्गत रोगी को पथ्य- अपथ्य आहार पर ध्यान रखना चाहिए –
- पथ्य आहार – सेब, सन्तरा, अंगूर, पपीता, नारियल, तरबूज, खरबूजा, लौकी, कद्दू, गाजर, ककडी, खीरा, चना, मैथी आदि हरी पत्तेदार सब्जियां, अदरक, हरी धनिया, चौकरयुक्त आटा, मौसमी फल, सलाद And पोषक तत्वों से युक्त पौष्टिक आहार पथ्य है।
- अपथ्य आहार – नमक, चीनी, चाय, कॉफी, सोफ्ट व कोल्ड डिंक्स जैसे पैप्सी व कोक, एल्कोहल, बाजार की मिठार्इयां, चाकलेट, तला भुना चायनीज फूड, फास्ट फूड, जंक फूड, चावल, फूलगोभी, पत्तागोभी, खट्टी दही, वातवर्धक बासी, रुखा And पोषक तत्व विहीन भोजन अपथ्य है। रोगी को धूम्रपान, एल्कोहल And माँस के सेवन का पूर्ण रुप से त्याग कर देना चाहिए।