भूमि सुधार क्या है?
स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय देश के अधिकांश कृषि क्षेत्र में वास्तविक काश्तकार तथा भूमि के स्वामी के बीच मध्यस्थों की Single बड़ी सेना विद्यमान थी। इनके कारण जहाँ Single ओर काश्तकार को भूमि की उपज का बड़ा भाग मध्यस्थों को देना पड़ता था, वही दूसरी ओर वह इन पर पूरी तरह आश्रित था। भू-धारण की उसे कोई गांरटी नही दी जाती थी और लगान की दरों में भी निश्चितता नहीं थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘‘जोतने वाले को भूमि’’ के नारे को वास्तविकता में बदलने के लिए भूमि-सुधार किए गयें। सबसे First उत्तर प्रदेश लिए कानून बनाया गया।
भूमि सुधार के उद्देश्य
भूमि व्यवस्था सम्बन्धी सुधार हेतु स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद सरकार द्वारा निर्णय लिया गया जिससे मूलत: निम्न उद्वेश्यों की पूर्ति की आशा थी।
- कृषि क्षेत्र में विद्यमान संस्थागत विसंगतियों को दूर करना तथा इसे तर्क संगत और आधुनिक बनाना। जैसे- जोत का आकार, भूमि स्वामित्व, भूमि उत्तराधिकार ,काश्तकार की Safty, आधुनिक संस्थागत सहायता और आधुनिकीकरण आदि पर ध्यान दिया जाना था।
- आर्थिक असमानता को समाप्त करना था, जिससे सामाजिक समानता को प्राप्त कर लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो सके।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि कर आत्म निर्भरता प्राप्त करना।
- गरीबी उन्मूलन एंव लोगो में सामान्य मान्यताएँ प्रदान करना।
भूमि सुधार की Need
भारत में भूमि सुधारों की Need इन कारणों से महसूस की गई थी।
- स्वतंत्रता के समय देश में कृषि पदार्थो की भारी कमी थी। अत: कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम आवश्यक है।
- सामाजिक न्याय और समानता के विकास हेतु सुधार कार्यक्रम द्वारा Singleत्रित भूमि को भूमिहीनों में वितरित करना।
- औद्योगिक क्षेत्र में अनेक उद्योग के लिए कच्चा माल भूमि से ही प्राप्त होता है। भूमि सुधारों की Need पर बल देते हुए डॉ0 राधाकमल मुखर्जी ने अपनी पुस्तक इकनॉमिक प्रॉबलम्स ऑफ इड़िया में लिखा था कि ‘‘वैज्ञानिक कृषि अथवा सहकारिता को हम कितना ही अपना ले, पूर्ण सफलता हमें तब तक नहीं मिलेगी जब तक कि हम भूमि व्यवस्था में वांछित सुधार नहीं कर देते।’’प्रो0 सैग्युलसन के According- ‘‘सफल भूमि सुधार के कार्यक्रमों ने अनेक देशों में मिटृी को सोने में बदल दिया है।’’
भूमि सुधारों का स्वReseller
हम सुविधा के According भूमि सुधारों को इन शीर्षकों के अंतर्गत समीक्षा कर सकते है-
- मध्यस्थों वर्गों का उन्मूलन
- जोतो की उच्चतम सीमा का निर्धारण
- काश्तकारी सुधार
- लगान का नियमन
- भू-धारण की Safty
- काश्तकारों का पुनग्रहण
- भूमिहीन कामकारों को भूमि प्रदान करना
- कृषि का पुनर्गठन
- चकबंदी
- भूमि के प्रबंधन में सुधार
- सहकारी कृषि
जंमीदारी तथा मध्यस्थों का उन्मूलन
भूमि सुधार व्यवस्था का सर्वप्रमुख कार्य जंमीदारी या मध्यस्थों का उन्मूलन था। उत्तर प्रदेश जंमीदारी उन्मूलन कानून का पालन करने में अग्रणी राज्य था जहाँ Single विधेयक 7 जूलाई 1949को प्रस्तुत Reseller गया जो 16 जनवरी 1951 को पास हो गया। क्रमश बम्बई व हैदराबाद में 1949-50, म0प्र0 व असम में 1951,पंजाब, राजस्थान व उडीसा में 1952 तथा हिमाचल कर्नाटक व पश्चिमी बंगाल में 1954-55 में अधिनियम पारित किए गए। देश के लगभग All राज्यों में जंमीदार ,जागीरदार एँव नामणदार जैसे मध्यस्थों के भूमि अधिकारों को समाप्त Reseller गया। इन मध्यस्थों के पास देश की लगभग 40 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि पर अधिकार था। इनकी समाप्ति से देश के लगभग दो करोड़ से अधिक किसानों को लाभ पहुँचा है और उन्हें भूमि में स्थाई तथा पैतृक अधिकार प्रदान Reseller गया।
जोतो की उच्चतम सीमा का निर्धारण
भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रमुख ध्येय में जोतो की उच्चतम सीमा का निर्धारण था। इस कार्य को करने की आवश्यक का कारण First Reseller में भविष्य में जोतों के आकार में वृद्धि को रोकना था एंव दूसरा बड़ी जोतों के अतिरिक्त भू-भाग को लेकर उनको भूमिहीनों में वितरित कर समाजिक न्याय करना था।
उच्चतम जोत सीमा निर्धारण के लाभ
उच्चतम जोत सीमा निर्धारण के लाभ इंगित है-
- उच्चतम जोत की सीमा निर्धारण से भूमि के असमान वितरण को Singleत्रित कर वंचित लोगों में बांटा गया।
- भूमि अधिकार की प्राप्ति से राजनीतिक जागृति And समाजवादी Meansव्यवस्था के निर्माण में सबलता प्राप्त हुई।
- मध्य And छोटी जोतो की स्थापना से लोगों में समानता का वातावरण बनता है जो सहकारी कृषि का आधार बनता है।
- मध्य And छोटे जोते श्रम प्रधान होते है जो मशीनीकरण पर अंकुश लगाकर रोजगार में वृद्वि की द्योतक है।
- उच्चतम जोत की सीमा व्यक्ति के पास भूमि की उपलब्धता को कम करता है। जिस कारण गहन कृषि को प्रोत्साहन मिलता है।
- उच्चतम जोत की सीमा केन्द्रीयकरण की प्रवृति को हतोत्साहित करती है।
- उच्चतम जोत सीमा का सबसे बड़ा लाभ कृषि भूमि के अपव्यय को रोकना है बड़ी जोत में कुछ न कुछ भूमि कृषि कार्य से विरत रह जाती है, जबकि छोटी जोत की सम्पूर्ण भूमि का उपयोग हो जाता है।
उच्चतम जोत सीमा निर्धारण से हानि
उच्चतम जोत सीमा निर्धारण के विपक्ष में जो तर्क दिए जाते है, वे ही इसके अवगुण या हानि है, जो है:-
- कृषि का वृहद Reseller में उपयोग न हो पाना, जिस कारण मशीनीकरण और उच्च तकनीकी ज्ञान का लाभ नहीं मिल पाता है।
- शहरी क्षेत्र में भूमि की उच्चतम सीमा नहीं होना और कृषि में भूमि की उच्चतम सीमा विषमता को पैदा करता है।
- भूमि की उर्वरता And सिंचाई की भिन्नता के साथ उसकी कोटि भी कई प्रकार की है, इस कारण All क्षेत्रों में कृषि भूमि की Single सी उच्चतम सीमा निर्धारण व्यावहरिक Reseller में सही नहीं है। 4. ऐसी आशा थी कि भूमिहीन लोगो के Singleत्रित भूमि का वितरण कर सामाजिक न्याय की स्थापना की जाएगी, जबकि Singleत्रित भूमि की मात्र कम And अपेक्षित लोगो की अधिक संख्या के कारण उनकी समस्या का उचित समाधान नहीं Reseller जा सका है।
काश्तकारी व्यवस्था में सुधार –
काश्तकारी व्यवस्था में भूमि का स्वामी स्वंय कृषि न कर अन्य किसानों को पटृे पर देता था। प्रतिफल में किराया या लगान लेता था। पटृेदार किसान भी कहीं-कहीं आगे इसे अन्य किसानों को पटृे पर दे देते थे। काश्तकारो का निम्न स्वReseller उस समय में दिखाई पड़ता था।
- स्थायी काश्तकार- स्थायी काश्तकार वह थे जिन्हें भूमि से बेदखल नहीें Reseller जा सकता था। परन्तु जंमीदार लागन में वृद्वि कर सकता था।
- ऐच्छिक काश्तकार- ये काश्तकार थे जिन्हें जंमीदार कभी भी भूमि से बेदखल कर सकता था।
- उपकाश्तकार- काश्तकार किसान जिन किसानों को पटृे पर भूमि देते थे उन्हे उपकाश्तकार कहते थे। इनकी स्थित अत्यन्त दयनीय थी इन्हे तो कभी-कभी लगान उपज का दो तिहाई तक देना होता था।
काश्तकारी व्यवस्था में सुधार का मुख्य उद्देश्यों काश्तकारों को भूमि पर कानूनी Reseller में स्थायी अधिकार प्रदान करना था, साथ ही बीमार, अपंग, विधवा असर्मथ और सैनिक आदि जो स्वंय खेती नहीं कर सकते है पटृे पर प्रदान करने की छूट देना था। शोषणात्मक कार्यो पर रोक हेतु जंमीदारी अधिनियम में काश्तकारी व्यवस्था में निम्न सुधार किए गए-
लगान का नियमन-
लगान नियमन कानून लागू होने से पूर्व पटृेदार कुल उपज का आधे से अधिक भाग भूमि स्वामी को लगान के Reseller में देते थे। First योजना में ही इस सन्दर्भ में नियमन बनाया गया जो सामान्य तथा 20 से 25 प्रतिशत से अधिक न हो जैसाकि तलिका में विभिन्न राज्यों के सन्दर्भ में सिंचित और असिंचित And शुष्क भूमि के लिया इंगित है।
भू-धारण की Safty-
काश्तकारी व्यवस्था में महत्वपूर्ण कार्य पटृेदारों को पटृे की Safty प्रदान करने के सन्दर्भ में उठाया गया। बडे़ पैमाने पर पटृेदारों की बेदखली पर रोक लगाई गयी। भूमि की Single न्यूनतम सीमा पटृेदारों के पास अवश्य रहने दी गई। कुछ राज्यों में पटृेदारों को अन्यत्र भूमि दिलाने का उत्तरदायित्व दिया गया।
काश्तकारों को भूमि का स्वामित्व तीन प्रकार से दिया गया
- जो काश्तकार दूसरों की भूमि जोत रहे थे वे स्वंय को भूमि का स्वामी घोषित कर दिए गए। इनमें जमीन के मालिक को मुआवने देने को कहा गया। न देने पर सरकार ने वसूली का दायित्व लिया। यह व्यवस्था- गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में की गई।
- सरकार ने स्वंय भूमि का मुआवजा मालिकों को प्रदान Reseller तथा काश्तकारों से बाद में किस्तों में लिया गया। यह व्यवस्था दिल्ली में की गई।
- सरकार ने काश्तकारों से सीधा सम्पर्क बनाया गया और उन्हें दो विकल्प दिए गये First वह भूमि का पूरा मूल्य देकर स्वामित्व के अधिकार को प्राप्त करे द्वितीय सरकार को लगान देते रहें। इस प्रकार की व्यवस्था केरल And उ0प्र0 में की गई।
काश्तकारों का पुनग्रहण-
All राज्यों में काश्तकारों को भू-धारण अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाए गए। इसके अन्तर्गत जो काश्तकार 8-से 10 वर्ष से खेती कर रहे थे उन्हें जमीन पर स्वामित्व का अधिकार दिया गया। लगभग 1करोड़ 14 लाख काश्तकारों को 1.5 करोड़ Singleड़ भूमि पर स्वामित्व प्रदान Reseller गया।
भूमिहीन कामगारो को भूमि प्रदान करना-
उच्चतम सीमा के कारण प्राप्त भूमि And ग्राम-दान आंदोलन के द्वारा बड़े भू-स्वामियों से प्राप्त भूमि को भूमिहीन श्रमिकों में वितरित Reseller गया ताकि भूमि संबन्धी असमानता को दूर Reseller जा सके।
कृषि का पुर्नगठन
भूमि सुधार कार्यक्रमों के अन्र्तगत कृषि का पुर्नगठन Reseller गया, इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए गये।
चकबन्दी
चकबन्दी वह प्रक्रिया है जिसमें किसान के इधर-उधर बिखरे हुए छोटी भूमि के बदले उसी किस्म भूमि के लिए Single स्थान पर प्रदान कर जारी करना है। चकबन्दी दो प्रकार की है-
- ऐच्छिक चकबन्दी- यह लोगो की इच्छा पर है, बड़ौदा रियासत द्वारा 1921में आरम्भ की गई।
- अनिवार्य चकबन्दी- यह चकबन्दी कानूनी Reseller में अनिवार्य Reseller से लागू की जाती है, इसकी शुरूआत 1928 में आंशिक चकबन्दी के Reseller में म0 प्र0 में हुई थी। नौ राज्य आन्ध्र प्रदेश, अरूणाचल, मिजोरम, मणिपुर, मेद्यालय, त्रिपुरा, नागालैण्ड़, तमिलनाडु, व केरल में चकबन्दी कानून नही है, बाकि All राज्यों में चकबन्दी कानूनों के अन्र्तगत चकबन्दी की जा रही है। पंजाब व हरियाणा में चकबन्दी कार्य पूर्ण है, उ0 प्र0 में भी 90 प्रतिशत कार्य पूरा Reseller जा चुका है।
भूमि के प्रंबधन में सुधार-
भूमि सुधार कार्यक्रम की सफलता भूमि रिकार्ड व दस्तावेजों के अद्यतन बनाने से ही है। इस सन्दर्भ में व्यवस्था हो रही है। समस्त भूमि सुधार कानूनों को नौंवी अनुसूची में शामिल Reseller जा चुका है। केन्द्रीय आयोजना के अन्र्तगत भूमि रिकार्डो का 12 वीं योजना के अन्त तक All जिलों में पूर्णतया कम्प्यूटरीकरण के लिए कार्य Reseller जा रहा है। बंजर भूमि का उपयोग, उन्नत पैदावार वाले बीजों का प्रयोग, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग आदि के द्वारा भूमि का कुशल प्रबन्ध Reseller जा रहा है।
सहकारी कृषि-
सहकारी कृषि का आशय किसानों के द्वारा सहकारिता के सिद्धान्तों के आधार पर संयुक्त Reseller से कृषि करना, जो हमारे ग्राम स्वराज्य का अवलम्बन था। देश में भूमि सुधारों का अन्तिम लक्ष्य सहकारी ग्रामीण Meansव्यवस्था की स्थापना करना है। इसमें छोटे-छोटे किसान आपस में मिलकर बड़ी जोत के All लाभों को प्राप्त करते हुए नवीन तकनीकी ज्ञान के आधार पर गहन कृषि करते है। लाभ का वितरण भूमि की हिस्सेदारी And परिश्रम को मिलाकर Reseller जाता है। पंचवर्षीया योजना में भूमि के छोटे-छोटे टुकडो को देखते हुए सहकारी खेती पर काफी जोर दिया जा रहा है। सहकारी खेती के चार Reseller हो सकते है-
- काश्तकार सहकारी खेती
- सामूहिक सहकारी खेती
- उन्नत सहकारी खेती
- संयुक्त सहकारी खेती
भूमि सुधार कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन
आजादी मिलने के बाद से भूमि सुधार कार्यक्रम जिनके अन्र्तगत जंमीदारी उन्मूलन, जोतों की उच्चतम सीमा का निर्धारण, काश्तकारी उन्मूलन, लगान का नियमन, सहकारी कृषि, चकबन्दी एंव पटृे की Safty जैसे कार्य किए गये, जिनके आधार पर भूमि सुधार कार्यक्रमों की प्रशंसा भी की जाती है। जैसाकि संयुक्त राष्ट्र संद्य की भूमि सम्बन्धी रिपोर्ट में History है कि,’’ भारत में भूमि सुधार के हाल के अधिनियम संख्यात्मक दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इतने अधिनियम कहीं भी नहीं बनाए गए हैं। अधिनियम लाखों, करोड़ों कृषको पर प्रभाव डालते हैं और भूमि के विशाल क्षेत्रों को अपने दायरे में सम्मिलित करते हैं। लेकिन ऐसा होने पर भी भूमि सुधार कार्यक्रमों की प्रगति धीमी रही है।’’प्रो0 दान्तवाला का मत है कि,’’ अब तक भारत में जो भूमि सुधार हुए है या निकट भविष्य में होने वाले हैं वे All सही दिशा में है, लेकिन क्रियान्वयन के अभाव में इसके परिणाम सन्तोषजनक नहीं रहे हैं। ‘‘भूमि सुधार कार्यक्रमों की कुछ सफलता रही तो इसी धीमी गति के Reseller में कुछ कमियां भी इंगिंत होती है।
भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रभाव-
भूमि सुधार कार्यक्रमों का सकारात्मक पक्ष जिसे हम इन कार्यक्रमों का प्रभाव भी कह सकते है निम्नवत रहे। अब खेती करने वाले किसान और सरकार में सीधा सम्बन्ध स्थापित हो गया। भूमि की मालगुजारी सीधे सरकार के पास जमा करता है। किसानों को भूमि पर स्थाई अधिकार प्राप्त हो गये परिणाम यह हुआ कि उपज वृद्विहेतु किसानों द्वारा भूमि पर स्थायी सुधार कार्यक्रम भी शुरू किए जाने लगे। जंमीदारी प्रथा के अन्त होने से बेगारा व नौकरी जैसी शोषण गतिविधियों से किसानों को मुक्ति मिल गई। किसानों को भूमि का स्वामित्व मिला जिस कारण वह उसमें स्थाई सुधार लागू कर अधिक परिश्रम करने लगें फलस्वReseller कृषि उपज में वृद्वि हुई। काश्तकार And जंमीदार Single ही स्तर पर आ गये इसे समाज में समता की भावना का विकास हुआ। लोग आपस में मिलकर सहकारिता के सिद्धान्तों के अनुResellerसहकारी कृषि को बढावा मिला। चकबन्दी के परिणाम स्वReseller बिखरे खेतों को Singleत्रित Reseller गया जहां वह कृषि कार्यो हेतु Single साथ नवीन तकनीक से गहन कृषि कर सकते है। जोतो की उच्चतम सीमा निर्धारण के कारण भूमि का उचित And न्यायपूर्ण वितरण हो सका। ग्रामीण व्यवस्था में Single नवीन परिवर्तन आया समाज के उस वर्ग को भी जमीन उपलब्ध हुई जिसके पास केवल मजदूरी का ही कार्य था। लोगों को आवास हेतु जमीन प्रदान की गई। लगान के Reseller में सरकारी राजस्व में भी वृद्धि हुई। बेकार पड़ी हुई भूमि का समाज के वंचित वर्ग में वितरण हुआ। समान्तवादी व्यवस्था का अन्त हुआ। किसानों के सामाजिक And आर्थिक स्तर में नूतम परिवर्तन आया।
भूमि सुधार कार्यक्रमों की कमियाँ-
भूमि सुधार कार्यक्रम बड़ी ही तत्परता से लागू हुए परन्तु अवलोककन करने पर इनमें निम्नं कमियाँ इंगित होती है- भूमि सुधार कार्यक्रमोंं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो सका। प्रो0 गुन्नार मिर्डल ने अपनी पुस्तक एशियन ड्रामॉ में लिखा है कि ‘‘भूमि सुधार कानून जिस ढंग से क्रियान्वित किए गए है उनसे सामान्यत उन कानूनों की भावनाओं और अभिप्राय को हताश होना पड़ा है।’’लोगो (जमीदारों) द्वारा काश्तकारों को बेदखल कर खुदकाश्त के लिए भूमि का पुर्नग्रहण Reseller गया। उच्चतम जोत की सीमा से बचाव हेतु जोतो का अनियमित And अवैधानिक हस्तान्तरण हुआ जंमीदार, राजनेता And प्रशासनिक अधिकारी का गठजोड़ बना जो पूर्व में ही तथाकधित Reseller में Single ही थे, इन्होनें कानून की अवहेलना के साथ ही साथ भूमि सम्बन्धी रिकार्डो में भी परिवर्तन Reseller। भूमि सम्बन्धी प्रलेख अपूर्ण थे जिससे स्वामित्व निर्धारण करने में कठिनाई आई। भूमि सुधार सम्बन्धी कानून का जंमीदारों द्वारा कानून की खामियों का लाभ उठाया गया। भूमि सुधार कार्यक्रमों में SingleResellerता का अभाव था। कई कार्यक्रम जैसे चंकबन्दी, उच्चतम जोत सीमा कानून, सहकारी कृषि आदि को Single साथ लागू नहीं Reseller गया। भूमिहीन किसानों या छोटे काश्ताकारों को भूमि के स्वामित्व प्रदान करने के साथ ही साख या वित्त की उपलब्धता नहीं उपलब्ध कराई गई।
भूमि सुधार कार्यक्रमों की सफलता के लिए सुझाव-
भूमि सुधार कार्यक्रमों के प्रभावी सफलता हेतु निम्न कार्य आवश्यक है- भूमि सम्बन्धी रिकार्डो का पूर्णतया नवीन करण Reseller जायें साथ ही सरल सुलभता हेतु पूर्णतया कम्प्यूटीकरण Reseller जाए। Single अच्छी प्रशासनिक तत्रं का निर्माण Reseller जाए। भूमि सुधार कार्यक्रमों से सन्द्रर्भित स्पेशल अदालत स्थापित की जाए जहॉ गरीबी लोगों को नि:शुल्क न्याय प्रदान Reseller जाए साथ ही वह त्वरित निर्णय लिए जाए। किसानों को भूमि में स्थाई विकास हेतु साख And वित्त की सरलता से उपलब्धता सुनिश्चित Reseller जाना चाहिए। खेतिहर मजदूर व बटाई वालों की भी भूमि सुधार कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में शामिल Reseller जाना चाहिए। भूमि सुधार कार्यक्रमों का समयाबद्ध Reseller में क्रियान्वयन Reseller जाना चाहिए। भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार के साथ इसकी प्रक्रिया को भी सरल बनाया जाना चाहिए।