हरित क्रांति क्या है?
Indian Customer कृषि के संदर्भ में हरित क्रान्ति से आशय Sixth दशक के मध्य कृषि उत्पादन में हुई उस भारी वृद्धि से है जो थोड़े से समय में उन्नतशील बीजो, रसायनिक खादों And नवीन तकनीकों के फलस्वरुप हुई। अन्य Wordों में, हरित क्रान्ति Indian Customer कृषि में लागू की गई उस विकास विधि का परिणाम है जो 1960 के दशक में पारम्परिक कृषि को आधुनिक तकनीकी द्वारा प्रतिस्थापित किये जाने के रुप में सामने आई। कृषि में तकनीकी ज्ञान का आविष्कार, उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग, सिंचाई सुविधाओं का विकास, कृषि क्षेत्र में उन्नत औजारों And मशीनों का अधिकाधिक उपयोग, कृषि में विद्युतीकरण, कृषि क्षेत्र में ऋण का विस्तार, कृषि शिक्षा में विस्तार कार्यक्रमों के सम्मिलित प्रयासों के फलस्रुपय वर्ष 1966-67 के उपरान्त कृषि उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। उत्पादन वृद्धि की इस असाधरण गति दर को कृषि वैज्ञानिकों, ने हरित क्रान्ति का नाम दे दिया। हरित क्रान्ति का जन्मदाता नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो0 नोरमन बॉरलोग है। भारत में हरित क्रान्ति को बढ़ावा देने का श्रेय मुख्यत: एस. स्वामीनायन को दिया जाता है। हरित क्रान्ति की संबा इसलिए भी दी गई कि क्योंकि इसके फलस्वरुप Indian Customer कृषि निर्वाह स्तर से ऊपर उठकर आधिक्य स्तर पर आ चुकी है। इस प्रकार हरित क्रान्ति में मुख्य रुप से दो बाते आती हैं:-
- Single तो उत्पादन तकनीकि में सुधार
- Second कृषि उत्पादन में वृद्धि
हरित क्रान्ति को नवीन कृषि रणनीति के नाम से भी जाना जाता है। नई कृषि युक्ति (New Agricultural Strategy) को 1966 ई0 में Single पैकेज के रुप में शुरु Reseller गया और इसे अधिक उपज देने वाले किस्मों का कार्यक्रम (High Yielding Variety Programme) की संबा दी गई।
हरित क्रान्ति की उपलब्धियॉ
तृतीय योजना के प्रारम्भ से लेकर अब तक के वर्ष Indian Customer कृषि के History में बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं। हरित क्रान्ति सरकार द्वारा अपनाए गए कई उपयों का परिणाम थी। विभिन्न उपायों को सम्मिलित या पैकेज के रुप में अपनाने से ही कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई। हरित क्रान्ति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकी परिवर्तन से संस्थागत And उत्पादन में हुए सुधार के रुप में देखा जा सकता है।
- उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग में वृद्धि – सबसे पहली किस्म ‘नोरिन 10’ थी जिसे डा0 एस0सी0 सैलमन 1948 में जापान से अमरीका लाए। नार्मन ई. बार लॉग, डा0 एम0 एस0 स्वामी नरथन और श्री सी0 सुब्रमण्यम (तत्कालीन कृषि मंत्री भारत सरकार) के प्रयासों के फलस्वरुप गेहॅू की लर्मारोंही (लर्मारोजों), सोनरा 63 व सोनरा 64 जैसी मैक्सीकन प्रजातियॉ शुरु में भारत में सीधे प्रयोग में लाई गर्इं। बाद में मैक्सिको की प्रजातियों को Indian Customer किस्मों के साथ मिलकर संकलन पर पर्याप्त ध्यान दिया गया। मैक्सिन प्रजातियसों में कुछ खास तरह की कमियॉ थीं जिनमें गेहॅू के दानों का रंग लाल होना प्रमुख थी। इन कमियों को दूर करने के लिए ‘शरबती सोनोरा:, ‘पूसा लमी:, कल्याज सोना’ और ‘सोनालिका’ जैसी नई किस्में विकसित की गई। लेकिन जिन गेहॅू की किस्मों ने हरित क्रान्ति में योगदान दिया वे हैं- संगम (CPAN 3004) मोती (HD 1949), जनक (HD 1982), अर्जुन (HD 2009), कल्यान सोना, सोनालिका And HD 2329। अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीजों का उपयोग बढ़ा है और नई नई किस्मों की खोज की गई है। चावल में छोटा बासमती, नयी जय, दमा, रत्ना आदि का प्रयाग Reseller गया। अभी तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम धान बाजरा, मक्का व ज्वार में ही लागू Reseller गया है। लेकिन गेहॅू में सबसे अधिक सफलता मिली है। 1966-67 वर्ष में 19 लाख हेक्टेयर भूमि में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग Reseller गया था। नई विकास विधि के अन्तर्गत वर्ष 2009-2010 में 257 लाख कुन्तल प्रमाणित बीज वितरित किये गए। भारत में 88 प्रतिशत गेहॅू की फसल में उन्नत बीजो ( HYV Seeds) का प्रयोग Reseller जाता है।
- रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में तेजी से वृद्धि – भारत में हरित क्रान्ति के परिणामस्वरुप रासायनिक उर्वरकों के उपभोग की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है। 1960-61 में रासायनिक खाद का उपभोग केवल 39 हजार टन था। वह 2009-10 मे बढ़ कर 264.86 लाख टन हो गया। रासायनिक खादों का उपभोग बढ़ाने के लिए सरकार ने कई उपय किए हैं, जैसे छोटे व सीमान्त किसानों को रासायनिक खाद खरीदने के लिए साख उपलब्ध कराना, किसानों को इसके उचित उपयोगो के सम्बन्ध में मुफ्त सलाह व प्रशिक्षण दिया जाता है। सरकार ने 2009-2010 में रासायनिक खाद पर 57,056 करोड़ रुपयों की आर्थिक सहायता दी है।
- सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि – हरित क्रान्ति को सुदृ़ढ़ बानो में सिंचाई की सुविधाओं का योगदान भी कुछ कम नहीं है। ऊॅची उत्पादक्ता वाले बीजों को रासायनिक खादों की Need तो होती है, परन्तु इसके साथ ही रासायनिक खादों के प्रयोग में पानी की Need भी बढ़ जाती है और सिंचाई मानसून की अनिश्चितताओं से बचाकर खाद्य Safty उपलब्ध कराती है। भारत में सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि निरन्तर होती गई है। भारत में 1965-1’966 के पश्चात सिंचाई की लघु परियोजनाओं (Minor Irrigation Projects ) ने हरित क्रान्ति को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कूपों तथा नलकूपों द्वारा उपलब्ध करवाई गई सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि इतनी अधिक थी कि Meansशास्त्रियों ने हरित क्रान्ति को Child of the pump set technology का नाम दे दिया। मार्च 2010 तक भारत की सिंचाई क्षमता 1082 लाख हेक्टेयर हो गई जो कि 1951 में 223 लाख हेक्टेयर थी।
- पौध संरक्षण – भारत में लगभग 10 प्रतिशत फसल कीटाणुओं और रोगों द्वारा Destroy हो जाती है। इनसे फसलों के बचाव करने की क्रिया को पौध संरक्षण कहते हैं। इसके अन्तर्गत खरपतवार And कीटों को नाश करने के लिए दवा छिड़कने का कार्य Reseller जाता है। वर्तमान में Singleीकृत कीटनाशक नियंत्रण रणनीति को अपनाया गया है।
- बहुफसली कार्यक्रम – बहुफसली कार्यक्रम का उद्देश्य Single ही भूमि पर वर्ष में Single से अधिक फसल उगाकर उत्पादन बढ़ाना है। यह कार्यक्रम 1967-68 में लागू Reseller गया है। इस कार्यक्रम से भूमिका अनुकूलतम प्रयोग हो सकता है। वर्तमान में भारत में यह कार्यक्रम कुल सिंचित भूमि के 65: भाग पर लागू है।
- आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग – वर्तमान कृषि में हरित क्रान्ति में आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे ट्रैक्टर, थ्रेशर, हारवेस्टर, डीजल व बिजली के पम्पसेटों आदि ने काफी योगदान दिया है। 1966 में भारत में 21 हजार ट्रैक्टर थे लेकिन आज इनकी संख्या 6 लाख से अधिक है।
- कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना – कृषकों में व्यवसायिक साहस की क्षमता को विकसित करने के उद्देश्य से देश में कृषि सेवा केन्द्र स्थापित करने की योजना लागू की गई है। अब तक देश में कुल 146 कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं।
- कृषि उद्योग निगम – सरकारी नीति के अन्तर्गत 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगमों की स्थापना की गई है। इन निगमों का कार्य कृषि उपकरण व मशीनरी की पूर्ति तथा उपज के प्रसंस्करण And भण्डारण को प्रोत्साहन देना है।
- मृदा परीक्षण – मृदा परीक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी का परीक्षण प्रयोगशालाओं में Reseller जाता है। इसका उद्देश्य भूमि की उर्वराशक्ति का पता लगाकर कृषकों को उसी According रासायनिक खादों व उत्तम बीजों के प्रयोग की सलाह किसानों को दी जा सके। वर्तमान समय में 7 लाख नमूनों का परीक्षण इन सरकारी प्रयोगशालाओं में Reseller जाता है। चलती फिरती प्रयोगाशलाएं भी स्थापित की गई हैं, जो गांव – गांव जाकर मौके पर मिट्टी का परीक्षण कर किसानों को सलाह देती हैं।
- कृषि विकास के लिए विभिन्न निगमों की स्थापना – हरित क्रान्ति की प्रगति मुख्यता: अधिक उपज देने वाली किस्मों व उत्तम सुधरे हुए बीजों पर निर्भर करती है। इसके लिए देश में 400 कृषि फार्म स्थापित किये गए हें। 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई थी। 1963 में ही राष्ट्रीय सहकारिता विपणन संघ (नेफेड) बनाया गया जो प्रबन्ध, वितरण And कृषि से सम्बन्धित चुनिंदा वस्तुओं के आयात निर्यात का कार्य करता है। कृषि के लिए ही खाद्य निगम, उवर्रक साख गारण्टी निगम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम आदि भी स्थापित किये गए हैं।
- कृषकों को उचित मूल्य की गारण्टी – कृषि विकास नीति के अन्तर्गत सरकार द्वारा कृषकों को उनकी फसल का उचित मूल्य देने की गारण्टी दी जाती है। इस कार्य के लिए कृषि लागत And मूल्य आयोग हैं जिसका कार्य फसल की बुवाई के समय उन मूल्यों को सिफारिश करना है जिस पर फसल के आने पर सरकार क्रय करने लिए वचनबद्ध है। 1965 में कृषि मूल्य आयोग की स्थापना कर दी।
- कमजोर किसान के लिए विशिष्ट कार्यक्रम – कमजोर, छोटे व सीमान्त कृषकों And खेतिहर कृषकों की सहायता के लिए तीन योजनाएं लागू कीं:- (क) लघु कृषि विकास एजेन्सी (ख) सीमान्त कृषक And कृषि श्रमिक विकास एजेन्सी (ग) Singleीकृत शुष्क भूमि कृषि विकास और अब समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम लागू Reseller है।
हरित क्रांति के लाभ
- खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि – हरित क्रान्ति या नई कृषि राजनीति का पहला लाभ हुआ है कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है, विशेष रुप से गेहॅू, बाजरा, चावल, मक्का, व ज्वार दालों के उत्पादन में आशतीत वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरुप भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर सा हो गया है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन में आशतीत वृद्धि हुई है। देश में All खाद्यान्नों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1950-51 में 522 कि0ग्राम प्रति हेक्टेयर था जो बढ़कर 2011-2012 में 1996 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गया।
- परम्परागत स्वरुप में परिवर्तन – हरित क्रान्ति द्वारा किसानों को परम्परागत खेती की सीमाएँ पता चल गई हैं। आज किसान आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार है। आज खेती का व्यवसायिकरण हो चुका है। लैजिस्की के According, ‘‘जहॉ कहीं भी नई तकनीकें उपलब्ध हैं कोई किसान उनके महत्व को अस्वीकार नहीं करता। बेहतर कृषि विधियों तथा बेहतर जीवन स्तर की इच्छा न केवल नई उत्पादन तकनीकों का प्रयोग करने वाले Single छोटे से धनी वर्ग तक सीमित है बल्कि उन लाखों किसानों में भी फैल गई जिन्होंनें अभी तक इन्हें अपनाया है और जिनके लिए बेहतर जीवन स्तर अभी तक सपना है।’’ किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। उत्पादकता में बढ़ोत्तरी से कृषि के स्तर में बदलाव आया और अब वह जीवकोपार्जन करने के निम्न स्तर से ऊपर उठकर आय बढ़ाने का साधन बन गई।
- कृषि बचतों में वृद्धि – खाद्यान्न में उत्पादन में वृद्धि का Single परिणाम यह हुआ कि मण्डी में बिकने वाले खाद्यान्न की मात्रा में वृद्धि हो गइ। जिससे कृषक के पास बचतों की मात्रा में Historyनीय प्रगति हुई है जिसको देश के विकास के लिए काम में लाया जा रहा है। यह वृद्धि, विशेषकर औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए लाभकारी रही।
- विश्वास – हरित क्रान्ति का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि कृषक, सरकार व जनता All में यह विश्वास जाग्रत हो गया है कि भारत में कृषि पदार्थों के क्षेत्र में केवल आत्मनिर्भर ही नहीं हो सकता है बल्कि Need पड़ने पर निर्यात भी कर सकता है।
- खाद्यानों के आयात में कमी – प्रो0 एस0 एल0 दान्तवाला के मत में ‘हरित क्रान्ति ने सॉंस लेने योग्य राहत का समय दिया है। इसके खाद्यान्नों की कमी की चिन्ता से छुटकारा मिलेगा और Meansशास्त्रियों व नियोजकों का ध्यान पुन: Indian Customer योजनाओं की ओर लगेगा। वास्तव में हरित क्रान्ति होने से खाद्यानों का आयात 1978 से 1980 तक पूर्णत: बन्द कर दिया गया था। 2009-10 में 85, 211 करोड़ रुपयो का कृषि पदार्थों का निर्यात Reseller गया। कृषि पदार्थों का निर्यात कुल निर्यात का 9.9 प्रतिशत था। इस प्रकार विदेशी मुद्रा के खर्च में बहुत बचत हो गई है।
- कृषि And औद्योगिक क्षेत्र के सम्बन्धों में मजबूती – नवीन कृषि तकनीकी तथा कृषि के आधुनिकीकरण ने कृषि तथा उद्योग के परस्पर सम्बन्ध को और भी अधिक सुदृढ़ बना दिया है। पारम्परिक रुप में यद्यपि कृषि और उद्योग का अग्रगामी सम्बन्ध First से ही मजबूत था क्योंकि कृषि क्षेत्र द्वारा उद्योगों के लिए आयात उपलब्ध कराये जाते हैं। जैसे चीनी मिल के लिए गन्ना, कपड़ा मिल के लिए कपास। कृषि के आधुनिकीकरण के फलस्वरुप अब कृषि में उद्योग निर्मित आयातों जैसे कृषि यंत्र व रासायनिक उवर्रक की मांग में भारी वृद्धि हुई है।
- कृषि And गैर कृषि क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर – कृषि की नई तकनीकि अथवा हरित क्रान्ति के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरुप फसलों की कटाई के लिए श्रम की मांग बढ़ गई। Single वर्ष में, Single की बजाए दो फसलों के उगाने के कारण भी श्रम की मांग में काफी वृद्धि हुई है। उदाहरणतया, पंजाब व हरियाणा में अक्टूबर तथा नवम्बर धान को काटने तथा इसके बाद गेहॅू के बोने के कारण श्रम की मांग बढ़ गई है। कृषि में उत्पादन में वृद्धि के कारण, कृषि पर आधारित उद्योग का विकास हुआ है। इन उद्योगों में भी श्रम का प्रयोग बढ़ गया है। सेवा क्षेत्र में भी हरित क्रान्ति के कारण रोजगार बढ़ा है। अधिक उत्पादों तथा अधिक कृषि साधनों के परिवहन तथा मण्डी सम्बन्धी सेवाओं के परिवाहन तथा मण्डी सम्बन्धी सेवाओं की Need नें भी रोजगार में वृद्धि की है।
- ग्रामीण विकास – हरित क्रान्ति के फलस्वरुप सार्वजनिक And निजी निर्माण कार्यों को प्रोत्साहन मिला है। ग्रामीण क्षेत्र में बैंकों की गतिविधियॅा बढ़ गई हैं।
हरित क्रांति की कमियॉ अथवा समस्यायें
हमें ज्ञात हो चुका है कि हरित क्रान्ति के परिणामस्वरुप कुछ फसलोंं के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है। देश को आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से लाभ हुआ है। नीचे हम इनमें से कुछ समस्याओं का वर्णन कर रहे हैं:-
- कृषि विकास में असन्तुलन – हरित क्रान्ति का क्षेत्र कुछ ही राज्यों तक सीमित है। विशेष रुप से उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र व तमिलनाडु में कृषि के विकास में Single आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। दूसरी ओर राजस्थान, हिमांचल प्रदेश, बिहार तथा असम जैसे राज्य कृषि में कोई विशेष प्रगति न ला सके। यहॉ हम यह भी बताना चाहते हैं कि हरित क्रान्ति ने न केवल देश के भिन्न-भिन्न भागों में, कृषि के विकास की दर में असमानता पैदा की, अपितु देश के Single ही क्षेत्र में कृषि के विकास में असामनता पैदा कर दी। जेसे कि पंजाब के रुपनगर तथा होशियारपुर के जिलों में, या हरियाणा के नारनौल जिले में, सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं के उपलब्ध न होने के कारण, कृषि में प्रगति न हुई जबकि इन राज्यों के बाकी हिस्सों में कृषि के विकास की गति बहुत बढ़ गई।
- कुछ ही फसलों तक सीमित – अनाज के सम्बन्ध में हरित क्रान्ति गेहॅू की फसल के साथ ही प्रमुख रुप से जुड़ी रही है। नए बीज सफल नहीं हुए। यह मानना पड़ेगा कि दालों, व्यापारिक फसलों जैसे कपास, तिलहन, पटसन आदि के सम्बन्ध में अधिक उपज वाले बीज तैयार करने के प्रयास बहुत सफल नही हो सके हैं। हम यह कहना चाहेंगे कि भारत में वे उपखण्ड जहॉ सिंचाई की सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थीं, उन क्षेत्रों के हरित क्रान्ति गेहॅू और चावल का उत्पादन बढ़ाने में सहायक हुई।
- आय के वितरण में भारी असामनता – हरित क्रान्ति के परिणामस्वरुप धनी कृषक वर्ग First की अपेक्षा अधिक अमीर हो गए और गरीब किसानों की आय के स्तर में विशेष वृद्धि नहीं हो पाई और Second किसानों की तुलना में गरीब होते गए। डा0 वी0 के0 आर0 वी0 राव के According, ‘‘यह बात सर्वविदित है कि तथा कथित हरित क्रान्ति जिसने देश में खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने में सहायता दी है, के साथ ग्रामीण आय में असमानता बढ़ी है, बहुत से छोटे किसानों को अपनी काश्तकारी अधिकार छोड़ने पड़े हैं और ग्रामीण क्षेंत्रों में सामाजिक और आर्थिंक तनाव बढे़ हैं।’’ कृषि की नई टैक्नोलोजी के अपनाए जाने के कारण, ग्रामीण समाज दो भागों में बंट गया। प्रत्येक गांव में, इन दोनों वर्गों की आर्थिंक स्थिति में अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है।
- पूंजीवादी खेती को प्रोत्साहन – हरित क्रान्ति, बड़ी मशीनों, उर्वरक तथा सिंचाई सुविधाओं में Single भारी निवेश पर आधारित है। बड़े किसानों ने ही कृषि की नई तकनीकी का लाभ उठाया। इन सुविधाओं का लाभ छोटे किसानों कम पूंजी होने के कारण नहीं उठा पाये। All India Rural Credit Review Committee (1969) के According, 705 Singleड़ तथा इससे अधिक भूमि वाले किसानों की संख्या कुल किसानों की संख्या की 38 प्रतिशत थी, जबकि इसके पास खेती अधीन भूमि का 70 प्रतिशत भाग था, इन्हीं किसानों ने बड़ी मशीनों के प्रयोग, कुछ श्रमिकों को काम से निकाल दिया तथा बचे हुए श्रमिकों को उचित वेतन न दिये।
- बड़े खेतों पर रोजगार के अवसरों में कमी – जैसा हम जानते हैं कि कृषि की नई तकनीकि का प्रयोग करने के कारण मशीनों का अधिक प्रयोग पड़ा, जिससे कृषि उत्पादकता तो बढ़ी। हरित क्रान्ति में कृषि मशीनों के प्रयोग को बढ़ावा दिय जैसे फसलों को बोने तथा कटाई के लिए ट्रैक्टर तथा थे्रशर का प्रयोग बढ़ा, जिससे खेतों पर काम कर रहे श्रमिक बेरोजगार हो गये।
- भूमि व Human स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव – यह हम जानते हैं कि हरित क्रान्ति के कारण रसायनिक उवर्रकों तथा फसलों को कीट पतंगों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग अधिक बढ़ गया था। रासायनिक उवर्रकों के अधिक प्रयोग के कारण, भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है, कीटनाशक दवाई का लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। गेहॅू और चावल की खेती के लिए भूमिगत जल, का प्रयोग (ट्यूबवैल द्वारा) अत्याधिक बढ़ गया है, जिसके कारण जलस्तर घट गया है और पर्यावरण को क्षति पहुॅचने लगी है।
- हरित क्रान्ति ने भूमि सुधार कार्यक्रमों की आवश्कयता की अवहेलना की – देश में भूमि सुधार कार्यक्रम सफल नहीं रहे हैं और लाखों कृषकों को आज भी भू-धारण की निश्चितता नहीं प्रदान की जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कहा था कि हरित क्रान्ति Singleा औषधि कोष होने के बजाय बीमारियों का Single स्त्रोत बन सकती है। उन्होनें यह भी कहा था कि यदि विकासशील देश शीघ्र ही भूमि सुधारों को लागू नहीं करते तो हरित क्रान्ति के लाभ, मुख्य रुप से उन किसानों को होंगे जो कि वाणिज्यक स्तर पर खेती करते हैं, न कि छोटे किसानों को और वाणिज्यक स्तर पर खेती करने वाले किसानों में, बड़े किसान, दूसरों की तुलना में अधिक लाभ उठायेंगें।
- हरित क्रान्ति के लिए आवश्यक सुविधाओं की कमी – सिंचाई के साधन, कृषि साख, आर्थिक जोत तथा सस्ते कृषि आगतों का अभी भी देश में अभाव है। छोटे किसान इन All साधनों के अभाव में हरित क्रान्ति के लाभों से वंचित रह गये हैं। जिससे कृषि विकास में वांछित सफलता नहीं प्राप्त हो पा रही है।
- उत्पादन लागत में वृद्धि – नया तकनीकि ज्ञान Meansात् उन्नत बीज, उवर्रक, कीटनाशक दवाईयों, सिंचाई के लिए विद्युत, डीजल, तेल का उपयोग, उन्नत कृषि यंत्रों के क्रय करने आदि के अपनाने में फसलों की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर लागत अधिक आती है। इसके लिए किसानों को First की अपेक्षा अधिक पूंजी की Need होती है।
हरित क्रांति की सफलता के लिए सुझाव
- भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रोत्साहन – हरित क्रान्ति को सफल व व्यापक बनाने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी और विस्तृत रुप से लागू Reseller जाना चाहिए। सीमा निर्धारण से प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमिहीन किसानों को वितरित Reseller जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त चकबन्दी को प्रभावी बनाकर जोतों के विभाजन पर रोक लगाए जाने की Need है। जिससे कृषि की नई तकनीकी प्रभावी रुप से लागू हो पाए।
- कृषि वित्त की सुविधाओं का विस्तार – हरित क्रान्ति का लाभ छोटे किसान भी उठा पाएं इसके लिए Need है कि वित्तीय संस्थाएं प्रशासनिक व अन्य तरीकों से इन किसानों को ऋण आसान किश्तों में उपलब्ध करायें। कृषि की नई तकनीकी को अपनाने के लिए वित्तीय संस्थाओं को किसानों को प्रोत्साहन देना होगा।
- सिंचाई सुविधाओं का विस्तार – कृषि के विकास के लिए विशेष तौर पर शुष्क व उपशुष्क उपखण्डों में कृषि की नई तकनीकी का लाभ उठाने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार Reseller जाना आवश्यक है। इसके लिए लधु सिंचाई परियोजनाओं के विस्तार वर्षा के जल को इकट्ठा करके (Rain Water harvesting) खेतों की सिंचाई छिड़काव प्रणाली, (Sprinter System) द्वारा की जाए, तो इससे पानी, बिजली, श्रम सब में बचत होगी।
- हरित क्रान्ति का अन्य फसलों पर फैलाव – हरित क्रान्ति के प्रभाव क्षेत्र में गेहॅू और चावल के अतिरिक्त दालों, कपास, पटसन, तिलहन, गन्ना आदि के नए बीजों का विकास करने की Need है। यदि इन फसलों के लिए ऊॅची उत्पादकता वाले बीजों का विकास Reseller जाए तो कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण क्रान्ति आ जाएगी और कृषि में असन्तुलन भी कम हो जाएगा।
- सीमान्त व छोटे खेतों व छोटे किसानों को लाभ पहुॅचाना – जैसा कि हम जानते हैं कि हरित क्रान्ति क अधिकतम लाभ बड़े किसान ही उठा पाये हैं इसलिए यह आवश्यक है कि:- (क) छोटे-छोटे किसानों को सहकारी खेती को अपनाने के लिए प्रेरित Reseller जाए। (ख) भूमि सुधार कार्यक्रमों को जल्दी व प्रभावी ढंग से लागू Reseller जाए। (ग) छोटे किसानों को उन्नतबीज, उर्वरक खरीदने व सिंचाई सुविधाओं के लिए सरलता से साख सुविधाएँ बैंकों द्वारा उपलब्ध करायी जाएं।
- मूल्य नीति को प्रोत्साहनदायक बनाना – हमें ज्ञात है कि सरकार की कृषि मूल्य नीति कुछ ही फसलों तक सीमित रही है इसलिए अन्य फसलों के उत्पादन में असन्तुलन देखने को मिलता है। सरकार की मूल्य नीति इस प्रकार की होनी चाहिए कि All फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिल पाए।
- अन्य फसलों के लिए भी उन्नत किस्म के बीजों का विकास – हम Single बात बताना चाहेंगे कि हरति क्रान्ति के बाद मुख्यत: चावल और गेहॅू की उत्पादक्ता में बहुत वृद्धि हुई। परन्तु अन्य फसलों जैसे दाल, तिजहन, कपास और पटसन की उत्पादकता में वृद्धि नहीं हो पाई। इसका कारण यह है कि इनके लिए उन्नत किस्म के बीजों का विकास न हो पाना तथा इनकी उपज को बढ़ाने के लिए अन्य उपाय करना इसलिए Need इस बात की हे कि विशेष तौर पर छोटे व सीमान्त किसानों को ऐसे बीज उपलब्ध कराये जाएं। इससे न केवल किसान अपनी भूमि पर कुछ ही फसलें (गेहॅू व चावल) उत्पादित करेंंगे वरन् फसलों में भी विविधता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- शुष्क खेती को प्रोत्साहन की Need – हमने First यह बताया है कि हरित क्रान्ति का लाभ मुख्यत: सिंचाई की सुविधा से युक्त भूमि को ही मिला है। परन्तु भारत के शुष्क उपखण्डों में फसलों की प्रति Singleड़ उत्पादकता न केवल कम हैं बल्कि उसमें उतार – चढ़ाव भी है। ऐसे उपखण्डों में ऐसी फसलों को उगाए जाने की Need है जो न केवल कम समय में तैयार हो जाए बल्कि सूखे से भी प्रभावित न हो।
- फसलों की बीमा योजना – फसल बीमा योजना का लाभ लघु And सीमान्त कृषकों तक पहुॅचाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा प्रयास किये जाने चाहिए। सरकार द्वारा व्यापक-फसल बीमा योजना अपै्रल 1985 में कृषकों को उनकी फसलों के सूखा, अति वृष्टि आदि कारणों से Destroy होने की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु प्रारम्भ की गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को अनिश्चितता के समय विश्वास दिलाना है।