संस्कृति का Means, परिभाषा And प्रकार
मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है?
मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं-
- जैविक व्यवहार (Biological behaviour) जैसे- भूख, नींद, चलना, दौड़ना।
- मनोवैज्ञानिक व्यवहार (Psychological behaviour) जैसे- सोचना, डरना, हँसना आदि।
- सामाजिक व्यवहार (Social behaviour) जैसे- नमस्कार करना, पढ़ना-लिखना, बातें करना आदि।
क्या आप जानते हैं कि Human संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?
लेस्ली ए व्हाईट (Leslie A White) ने Human में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का History Reseller हैं, जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरुप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :-
- पहली विशेषता है- Human के खड़े रहने की क्षमता, इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है।
- दूसरा-मनुष्य के हाथों की बनावट है, जिसके फलस्वरुप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह-तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है।
- तीसरा-Human की तीक्ष्ण दृष्टि, जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण And अवलोकन कर पाता है और तरह-तरह की खोज And अविष्कार करता है।
- चौथा-विकसित मस्तिष्क, जिसकी सहायता से मनुष्य अन्य प्राणियों से अधिक अच्छी तरह सोच सकता है। इस मस्तिष्क के कारण ही वह तर्क प्रस्तुत करता है तथा कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित कर पाता है।
- पाँचवाँ-प्रतीकों के निर्माण की क्षमता। इन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति अपने ज्ञान व अनुभवों को Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित कर पाता है। प्रतीकों के द्वारा ही भाषा का विकास सम्भव हुआ और लोग अपने ज्ञान तथा विचारों के आदान-प्रदान में समर्थ हो पाये हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रतीकों का संस्कृति के निर्माण, विकास, परिवर्तन तथा विस्तार में बहुत बड़ा योगदान है।
संस्कृति का Means And परिभाषा
प्रसिद्ध Humanशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर (1832-1917) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में First History Reseller गया है। टायलर मुख्य Reseller से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं, इनके According, “संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला आचार, कानून, प्रथा और अन्य All क्षमताओं तथा आदतो का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है।” टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक Means में Reseller है। इनके According सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित Reseller गया है।
राबर्ट बीरस्टीड (The Social Order) द्वारा संस्कृति की दी गयी परिभाषा है कि “संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है, जिसमें वे All वस्तुएँ सम्मिलित हैं, जिन पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं।”
इस परिभाषा में संस्कृति दोनों पक्षों भौतिक And अभौतिक को सम्मिलित Reseller गया है। हर्शकोविट्स(Man and His Work) के Wordों में “संस्कृति पर्यावरण का Human निर्मित भाग है”
इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के दो भाग होते हैं- पहला-प्राकृतिक और दूसरा-सामाजिक। सामाजिक पर्यावरण में सारी भौतिक और अभौतिक चीजें आती हैं, जिनका निर्माण Human के द्वारा हुआ है। उदाहरण के जिए कुर्सी, टेबल, कलम, रजिस्टर, धर्म, शिक्षा, ज्ञान, नैतिकता आदि। हर्शकोविट्स ने इसी सामाजिक पर्यावरण, जो Human द्वारा निर्मित है, को संस्कृति कहा है।
बोगार्डस के According, “किसी समूह के कार्य करने और विचार करने के All तरीकों का नाम संस्कृति है।”
इस पर आप ध्यान दें कि, बोगार्डस ने भी बीयरस्टीड की तरह ही अपनी भौतिक And अभौतिक दोनों पक्षों पर बल दिया है।
मैलिनोस्की-”संस्कृति मनुष्य की कृति है तथा Single साधन है, जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है।” आपका कहना है कि “संस्कृति जीवन व्यतीत करने की Single संपूर्ण विधि है जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक And अन्य Needओं की पूर्ति करती है।”
संस्कृति के प्रकार
ऑगर्बन And निमकॉफ ने संस्कृति के दो प्रकारों की Discussion की है- भौतिक संस्कृति And अभौतिक संस्कृति।
भौतिक संस्कृति –
भौतिक संस्कृति के अन्र्तगत उन All भौतिक And मूर्त वस्तुओं का समावेश होता है जिनका निर्माण मनुष्य के लिए Reseller है, तथा जिन्हें हम देख And छू सकते हैं। भौतिक संस्कृति की संख्या आदिम समाज की तुलना में आधुनिक समाज में अधिक होती है, प्रो.बीयरस्टीड ने भौतिक संस्कृति के समस्त तत्वों को मुख्य 13 वर्गों में विभाजित करके इसे और स्पष्ट करने का प्रयास Reseller है- i.मशीनें ii.उपकरण iii.बर्तन iv.इमारतें v.सड़कें vi. पुल vii.शिल्प वस्तुऐं viii.कलात्मक वस्तुऐं ix.वस्त्र x.वाहन xi.फर्नीचर xii.खाद्य पदार्थ xiii.औशधियां आदि।
भौतिक संस्कृति की विशेषताएँ
- भौतिक संस्कृति मूर्त होती है।
- इसमें निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
- भौतिक संस्कृति मापी जा सकती है।
- भौतिक संस्कृति में परिवर्तन शीघ्र होता है।
- इसकी उपयोगिता And लाभ का मूल्यांकन Reseller जा सकता है।
- भौतिक संस्कृति में बिना परिवर्तन किये इसे ग्रहण नहीं Reseller जा सकता है।
Meansात् Single स्थान से Second स्थान पर ले जाने तथा उसे अपनाने में उसके स्वReseller में कोई फर्क नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए मोटर गाड़ी, पोशाक तथा कपड़ा इत्यादि।
अभौतिक संस्कृति –
अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत उन All अभौतिक And अमूर्त वस्तुओं का समावेश होता है, जिनके कोई माप-तौल, आकार And रंग आदि नहीं होते। अभौतिक संस्कृति समाजीकरण And सीखने की प्रक्रिया द्वारा Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अभौतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उस पक्ष में होता है, जिसका कोई मूर्त Reseller नहीं होता, बल्कि विचारों And विश्वासों कि माध्यम से Human व्यवहार को नियन्त्रित, नियमित And प्रभावी करता है। प्रोñ बीयरस्टीड ने अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत विचारों और आदर्श नियमों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया और कहा कि विचार अभौतिक संस्कृति के प्रमुख अंग है। विचारों की कोई निश्चित संख्या हो सकती है, फिर भी प्रोñ बीयरस्टीड ने विचारों के कुछ समूह प्रस्तुत किये हैं-
i.वैज्ञानिक सत्य ii-धार्मिक विश्वास iii.पौराणिक कथाएँ iv.उपाख्यान v.साहित्य vi.अन्ध-विश्वास vii.सूत्र viii.लोकोक्तियाँ आदि।
ये All विचार अभौतिक संस्कृति के अंग होते हैं। आदर्श नियमों का सम्बन्ध विचार करने से नहीं, बल्कि व्यवहार करने के तौर-तरीकों से होता है। Meansात् व्यवहार के उन नियमों या तरीकों को जिन्हें संस्कृति अपना आदर्श मानती है, आदर्श नियम कहा जाता है। प्रो. बीयरस्टीड ने All आदर्श नियमों को 14 भागों में बाँटा है-
1.कानून 2.अधिनियम 3.नियम 4.नियमन 5.प्रथाएँ 6.जनरीतियाँ 7. लोकाचार 8.निशेध 9.फैशन 10. संस्कार 11.कर्म-काण्ड 12.अनुश्ठान 13.परिपाटी 14.सदाचार।
अभौतिक संस्कृति की विशेषताएँ
- अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है।
- इसकी माप करना कठिन है।
- अभौतिक संस्कृति जटिल होती है।
- इसकी उपयोगिता And लाभ का मूल्यांकन करना कठिन कार्य है।
- अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन बहुत ही धीमी गति से होता है।
- अभौतिक संस्कृति को जब Single स्थान से Second स्थान में ग्रहण Reseller जाता है, तब उसके Reseller में थोड़ा-न-थोड़ा परिवर्तन अवश्य होता है।
- अभौतिक संस्कृति मनुष्य के आध्यात्मिक And आन्तरिक जीवन से सम्बन्धित होती है।
संस्कृति की प्रकृति या विशेषताएँ
संस्कृति के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचारों को जानने के बाद उसकी कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती है, जो उसकी प्रकृति को जानने और समझने में भी सहायक होती है। यहाँ कुछ प्रमुख विशेषताओं का विवेचन Reseller जा रहा है-
- संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है – संस्कृति Single सीखा हुआ व्यवहार है। इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता, बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है। यह सीखना जीवन पर्यन्त Meansात् जन्म से मृत्यु तक अनवरत चलता रहता है। आपको जानना आवश्यक है कि संस्कृति सीख हुआ व्यवहार है, किन्तु All सीखे हुए व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है। पशुओं द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पशु जो कुछ भी सीखते हैं उसे किसी अन्य पशु को नहीं सीखा सकते। संस्कृति के अंतर्गत वे आदतें और व्यवहार के तरीके आते है, जिन्हें सामान्य Reseller से समाज के All सदस्यों द्वारा सीखा जाता है। इस सन्दर्भ में लुन्डबर्ग (Lundbarg) ने कहा है कि,”संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा प्राणीशास्त्रीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती, वरन् यह सामाजिक सीख And अनुभवों पर आधरित रहती है।”
- संस्कृति सामाजिक होती है – संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है। संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज And सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी Single या दो-चार व्यक्तियों द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता। कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहलाया जा सकता। संस्कृति Single समाज की संपूर्ण जीवन विधि (Way of Life) का प्रतिनिधित्व करती है। यही कारण है कि समाज का प्रत्येक सदस्य संस्कृति को अपनाता है। संस्कृति सामाजिक इस Means में भी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष या दो या चार व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं है। यह समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए होता है। अत: इसका विस्तार व्यापक और सामाजिक होता है।
- संस्कृति हस्तान्तरित होती है – संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है तो उसमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अनुभव And सूझ जुड़ते जाते हैं। इससे संस्कृति में थोड़ा-बहुत परिवर्तन And परिमार्जन होता रहता है। संस्कृति के इसी गुण के कारण Human अपने पिछले ज्ञान And अनुभव के आधार पर आगे नई-नई चीजों का अविष्कार करता है। आपको यह समझना होगा कि- पशुओं में भी कुछ-कुछ सीखने की क्षमता होती है। लेकिन वे अपने सीखे हुए को अपने बच्चों और Second पशुओं को नहीं सिखा पाते। यही कारण है कि बहुत-कुछ सीखने की क्षमता रहने के बाद भी उनमें संस्कृति का विकास नहीं हुआ है। Human भाषा And प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही आसानी से अपनी संस्कृति का विकास And विस्तार करता है तथा Single पीढ़ी से Second पीढ़ी में हस्तान्तरित भी करता है। इससे संस्कृति की निरन्तरता भी बनी रहती है।
- संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है – संस्कृति का तात्पर्य उन All तत्वों से होता है, जिनका निर्माण स्वंय मनुष्य ने Reseller है। उदाहरण के तौर पर हमारा धर्म, विश्वास, ज्ञान, आचार, व्यवहार के तरीके And तरह-तरह के Needओं के साधन Meansात् कुर्सी, टेबल आदि का निर्माण मनुष्य द्वारा Reseller गया है। इस तरह यह All संस्कृति हर्शकाविट्स का कहना है कि “संस्कृति पर्यावरण का Human-निर्मित भाग है।”
- संस्कृति Human Needओं की पूर्ति करती है – संस्कृति में Human Need-पूर्ति करने का गुण होता है। संस्कृति की छोटी-से-छोटी इकाई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से मनुष्य की Need पूर्ति करती है या पूर्ति करने में मदद करती है। कभी-कभी संस्कृति की कोई इकाई बाहरी तौर पर निरर्थक या अप्रकार्य प्रतीत होती है, लेकिन सम्पूर्ण ढाँचे से उसका महत्वपूर्ण स्थान होता है। मैलिनोस्की के विचार – प्रसिद्ध Humanशास्त्री मैलिनोस्की का कथन है कि संस्कृति के छोटे-से-छोटे तत्व का अस्तित्व उसके Need पूर्ति करने के गुण पर निर्भर करता है। जब संस्कृति के किसी भी तत्व में Needपूर्ति करने का गुण नहीं रह जाता तो उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। उदाहरण के तौर पर प्राचीनकाल में जो संस्कृति के तत्व थे वे समाप्त हो गए क्योंकि वे Need पूति में असमर्थं रहे, इसमें सतीप्रथा को उदाहरण के Reseller में देखा जा सकता है। इसी प्रकार, व्यवस्था में कोई इकाई कभी-कभी बहुत छोटी प्रतीत होती है मगर व्यवस्था के लिए वह इकाई भी काफी महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार, संस्कृति का कोई भी तत्व अप्रकार्यात्मक नहीं होता है बल्कि किसी भी Reseller में Human की Need की पूर्ति करती है।
- प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है – प्रत्येक समाज की Single विशिष्ट संस्कृति होती है। हम जानते हैं कि कोई भी समाज Single विशिष्ट भौगोलिक And प्राकृतिक वातावरण लिये होता है। इसी के अनुReseller सामाजिक वातावरण And संस्कृति का निर्माण होता है। उदाहरण के तौर पर पहाड़ों पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का भौगोलिक पर्यावरण, मैदानी लोगों के भौगोलिक पर्यावरण से अलग होता है। इसी प्रकार, इन दोनों स्थानों में रहने वाले लोगों की Needएं अलग-अलग होती है। जैसे-खाना, रहने-सहने का तरीका, नृत्य, गायन, धर्म आदि। अत: दोनों की संस्कृति भौगोलिक पर्यावरण के सापेक्ष में Need के अनुReseller विकसित होती है।
- संस्कृति में अनुकूलन का गुण होता है – संस्कृति की Single महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि यह समय के साथ-साथ Needओं के अनुReseller् अनुकूलित हो जाती है। संस्कृति समाज के वातावरण And परिस्थिति के According होती है। जब वातावरण And परिस्थिति में परिवर्तन होता है तो संस्कृति भी उसके According अपने का ढ़ालती है। यदि यह विशेषता And गुण न रहे तो संस्कृति का अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा। संस्कृति में समय And परिस्थिति के According परिवर्तन होने से उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं हो पाती।
- संस्कृति अधि-सावयवी है – Human ने अपनी मानसिक And शारीरिक क्षमताओं के प्रयोग द्वारा संस्कृति का निर्माण Reseller, जो सावयव से ऊपर है। संस्कृति में रहकर व्यक्ति का विकास होता है और फिर Human संस्कृति का निर्माण करता है जो Human से ऊपर हो जाता है। Human की समस्त क्षमताओं का आधार सावयवी होता है, किन्तु इस संस्कृति को अधि-सावयवी से ऊपर हो जाती है। इसी Means में संस्कृति को अधि-सावयवी कहा गया है।
- संस्कृति अधि-वैयक्तिक है – संस्कृति की Creation और निरन्तरता दोनों ही किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं है। इसलिए यह अधि-वैयक्तिक(Super-individual) है। संस्कृति का निर्माण किसी व्यक्ति-विशेष द्वारा नहीं Reseller गया है बल्कि संस्कृति का निर्माण सम्पूर्ण समूह द्वारा होता है। प्रत्येक सांस्कृतिक इकाई का अपना Single History होता है, जो किसी Single व्यक्ति से परे होता है। संस्कृति सामाजिक अविष्कार का फल है, किन्तु यह अविष्कार किसी Single व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है।
- संस्कृति में संतुलन तथा संगठन होता है – संस्कृति के अन्तर्गत अनेक तत्व And खण्ड होते हैं किन्तु ये आपस में पृथक नहीं होते, बल्कि इनमें अन्त: सम्बन्ध तथा अन्त: निर्भरता पायी जाती है। संस्कृति की प्रत्येक इकाई Single-Second से अनग हटकर कार्य नहीं करती, बल्कि सब सम्मिलित Reseller से कार्य करती है। इस प्रकार के संतुलन And संगठन से सांस्कृतिक ढ़ाँचे का निर्माण होता है।
- संस्कृति समूह का आदर्श होती है – प्रत्येक समूह की संस्कृति उस समूह के लिए आदर्श होती है। इस तरह की धारण All समाज में पायी जाती है। All लोग अपनी ही संस्कृति को आदर्श समझते हैं तथा अन्य संस्कृति की तुलना में अपनी संस्कृति को उच्च मानते हैं। संस्कृति इसलिए भी आदर्श होती है कि इसका व्यवहार-प्रतिमान किसी व्यक्ति-विशेष का न होकर सारे समूह का व्यवहार होता है।
संस्कृति के प्रकार्य
- व्यक्ति के लिए
- समूह के लिए
व्यक्ति के लिए-
- संस्कृति मनुष्य को Human बनाती है।
- जटिल स्थितियों का समाधान।
- Human Needओं की पूर्ति
- व्यक्तित्व निर्माण
- Human को मूल्य And आदर्श प्रदान करती है।
- Human की आदतों का निर्धारण करती है।
- नैतिकता का निर्धारण करती है।
- व्यवहारों में SingleResellerता लाती है।
- अनुभव And कार्यकुशलता बढ़ाती है।
- व्यक्ति की Safty प्रदान करती है।
- समस्याओं का समाधान करती है।
- समाजीकरण में योग देती है।
- प्रस्थिति And भूमिका का निर्धारण करती है।
- सामाजिक नियन्त्रण में सहायक।
समूह के लिए-
- सामाजिक सम्बन्धों को स्थिर रखती है।
- व्यक्ति के दृश्टिकोण को विस्तृत करती है।
- नई Needओं को उत्पन्न करती है।
सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
सभ्यता और संस्कृति Word का प्रयोग Single ही Means में प्राय: लोग करते हैं, किन्तु सभ्यता और संस्कृति में अन्तर है। सभ्यता साधन है जबकि संस्कृति साध्य। सभ्यता और संस्कृति में कुछ सामान्य बातें भी पाई जाती हैं। सभ्यता और संस्कृति में सम्बन्ध पाया जाता है। मैकाइवर And पेज ने सभ्यता और संस्कृति में अन्तर Reseller है। इनके द्वारा दिये गये अन्तर इस प्रकार हैं-
- सभ्यता की माप सम्भव है, लेकिन संस्कृति की नहीं- सभ्यता को मापा जा सकता है। चूँकि इसका सम्बन्ध भौतिक वस्तुओं की उपयोगिता से होता है। इसलिए उपयोगिता के आधार पर इसे अच्छा-बुरा, ऊँचा-नीचा, उपयोगी-अनुपयोगी बताया जा सकता है। संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति की माप सम्भव नहीं है। इसे तुलनात्मक Reseller से अच्छा-बुरा, ऊँचा-नीचा, उपयोगी-अनुपयोगी नहीं बताया जा सकता है। हर समूह के लोग अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ बताते हैं। हर संस्कृति समाज के काल And परिस्थितियों की उपज होती है। इसलिए इसके मूल्यांकन का प्रश्न नहीं उठता। उदाहरण स्वReseller हम नई प्रविधियों को देखें। आज जो वर्तमान है और वह पुरानी चीजों से उत्तम है तथा आने वाले समय में उससे भी उन्नत प्रविधि हमारे सामने मौजूद होगी। इस प्रकार की तुलना हम संस्कृति के साथ नहीं कर सकते। दो स्थानों और दो युगों की संस्कृति को Single-Second से श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता।
- सभ्यता सदैव आगे बढ़ती है, लेकिन संस्कृति नहीं- सभ्यता में निरन्तर प्रगति होती रहती है। यह कभी भी पीछे की ओर नहीं जाती। मैकाइवर ने बताया कि सभ्यता सिर्फ आगे की ओर नहीं बढ़ती बल्कि इसकी प्रगति Single ही दिशा में होती है। आज हर समय नयी-नयी खोज And आविष्कार होते रहते हैं जिसके कारण हमें पुरानी चीजों की तुलना में उन्नत चीजें उपलब्ध होती रहती हैं। फलस्वReseller सभ्यता में प्रगति होती रहती है।
- सभ्यता बिना प्रयास के आगे बढ़ती है, संस्कृति नहीं- सभ्यता के विकास And प्रगति के लिए विशेष प्रयत्न की Need नहीं होती, यह बहुत ही सरलता And सजगता से आगे बढ़ती जाती है। जब किसी भी नई वस्तु का आविष्कार होता है तब उस वस्तु का प्रयोग All लोग करते हैं। यह जरूरी नहीं है कि हम उसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी रखें या उसके आविष्कार में पूरा योगदान दें। Meansात् इसके बिना भी इनका उपभोग Reseller जा सकता है। भौतिक वस्तुओं का उपयोग बिना मनोवृत्ति, रूचियों और विचारों में परिवर्तन के Reseller जाता है, किन्तु संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति के प्रसार के लिए मानसिकता में भी परिवर्तन की Need होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसके लिए उसे मानसिक Reseller से तैयार होना पड़ता है, लेकिन किसी वस्तु के उपयोग के लिए विशेष सोचने की Need नहीं होती।
- सभ्यता बिना किसी परिवर्तन या हानि के ग्रहण की जा सकती है, किन्तु संस्कृति को नहीं-सभ्यता के तत्वों या वस्तुओं को ज्यों-का-त्यों अपनाया जा सकता है। उसमें किसी तरह की परिवर्तन की Need नहीं पड़ती। इस Single वस्तु का जब आविष्कार होता है, तो उसे विभिन्न स्थानों के लोग ग्रहण करते हैं। भौतिक वस्तु में बिना किसी परिवर्तन लाये ही Single स्थान से Second स्थान में ले जाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, तब ट्रैक्टर का आविष्कार हुआ तो हर गाँव में उसे ले जाया गया। इसके लिए उसमें किसी तरह के परिवर्तन की Need नहीं पड़ी। किन्तु संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति के तत्वों को जब Single स्थान से Second स्थान में ग्रहण Reseller जाता है तो उसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन हो जाता है। उसके कुछ गुण गौण हो जाते हैं, तो कुछ गुण जुड़ जाते हैं। यही कारण है कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी लोग उपने पुराने विश्वासों, विचारों And मनोवृत्तियों में बिल्कुल परिवर्तन नहीं ला पाते। First वाले धर्म का कुछ-न-कुछ प्रभाव रह जाता है।
- सभ्यता बाध्य है, जबकि संस्कृति आन्तरिक- सभ्यता के अन्तर्गत भौतिक वस्तुऐं आती हैं। भौतिक वस्तुओं का सम्बन्ध बाºय जीवन से, बाहरी सुख-सुविधाओं से होता है। उदाहरण के लिए, बिजली-पंखा, टेलीविजन, मोटरगाड़ी, इत्यादि। इन सारी चीजों से लोगों को बाहरी सुख-सुविधा प्राप्त होती है। किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति के आन्तरिक जीवन से होता है। जैसे -ज्ञान, विश्वास, धर्म, कला इत्यादि। इन सारी चीजों से व्यकित को मानसिक Reseller से सन्तुष्टि प्राप्त होती है, इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सभ्यता बाºय है, लेकिन संस्कृति आन्तरिक जीवन से सम्बन्धित होती है।
- सभ्यता मूर्त होती है, जबकि संस्कृति अमूर्त- सभ्यता का सम्बन्ध भौतिक चीजों से होता है। भौतिक वस्तुऐं मूर्त होती हैं। इन्हें देखा व स्पर्श Reseller जा सकता है। इससे प्राय: All व्यक्ति समान Reseller से लाभ उठा सकते हैं, किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध भौतिक वस्तुओं से न होकर अभौतिक चीजों से होता है। इन्हें अनुभव Reseller जा सकता है, किन्तु इन्हें देखा And स्पर्श नहीं Reseller जा सकता। इस Means में संस्कृति अमूर्त होती है।
- सभ्यता साधन है जबकि संस्कृति साध्य-सभ्यता Single साधन है जिसके द्वारा हम अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों तक पहुँचते हैं। संस्कृति अपने आप में Single साध्य है। धर्म, कला, साहित्य, नैतिकता इत्यादि संस्कृति के तत्व हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए भौतिक वस्तुऐं जैसे-धार्मिक पुस्तकें, चित्रकला, संगीत, नृत्य-बाद्य इत्यादि की Need पड़ती है। इस प्रकार सभ्यता साधन है और संस्कृति साध्य।