लॉर्ड मैकॉले का description-पत्र (1835)
उस समय के गवर्नर जनरल विलियम बैन्टिक ने उसकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उसे लोक शिक्षा समिति (Committee of Public Education Institution) का सभापति (Chairman) नियुक्त कर दिया और इसी समय उसे 1813 के आज्ञा-पत्र के प्राच्य-पाश्चात्य विवाद तथा स्वीकृत Single लाख Resellerये की धनराशि को व्यय करने हेतु ‘कानूनी सलाह’ देने का महत्त्वपूर्ण कार्य दिया। इसी समस्या के कानूनी सलाह के लिए 2 फरवरी, 1835 को मैकॉले ने अपना विस्तृत description-पत्र (Minute) प्रस्तृत Reseller। जिसने भारत में अधुनिक ब्रिटिश शिक्षा की अजस्त्र धारा प्रवाहित की तथा Indian Customer शिक्षा में ब्रिटिश शिक्षा को स्थापित Reseller। ऐसे नाजुक निर्णय के क्षणों को इस महत्त्वपूर्ण देन के लिए उसको ब्रिटिश काल की Indian Customer शिक्षा में सदैव याद Reseller जाता रहेगा।
मैकॉले का description-पत्र (Mecaulay’s Minute)
मैकॉले का description-पत्र 1813 के आज्ञा-पत्र के सन्दर्भ में 43वीं धारा की विवेचना And व्याख्या इस Reseller में प्रस्तुत करता है-
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी शिक्षा के लिए केवल Single लाख Resellerया सालाना व्यय करने के लिए तो बाध्य है, किन्तु इस धनराशि को वह किस आधार पर व्यय करेगी यह उसकी स्वेच्छा पर निर्भर है।
- 1813 के आज्ञा-पत्र (Charter) में जो कथन साहित्य के पुनर्जीवन तथा परिमार्जन (Improvement and revival of literature) के लिए प्रयुक्त Reseller गया है, उस ‘साहित्य’ का तात्पर्य केवल अरबी अथवा संस्कृत से नहीं है, उसमें ‘अंग्रेजी’ साहित्य को भी सम्मिलित Reseller जाना चाहिए।
- तीसरा महत्त्वपूर्ण पद जो इस आज्ञा-पत्र में दिया गया है वह है-
- Indian Customer विद्वानों को प्रोत्साहन (The encouragement of learned Natives of India)यहॉं ‘Indian Customer विद्वान’ Word का Means ऐसे विद्वान व्यक्ति से है, जिसे लॉक And मिल्टन की कविताओं का उच्च ज्ञान हो, न्यूटन की भौतिकी में निपुण हो न कि उस व्यक्ति से जिसे हिन्दू शास्त्र कण्ठस्थ हो तथा समस्त दैवीय रहस्यों का अनुपालन करने वाला हो। आगे मैकॉले ने कहा है फिर भी यदि हम प्राच्यवादियों से Agree हो जायें तो भावी परिवर्तनों के विरूद्ध निर्णायक कदम होगा।
- प्राच्यवादियों (Orientalists) ने अंगेज विद्वानों का जोरदार खण्डन करते हुए उसने पाश्चात्यीकरण (Westernization) की पुष्टि करते हुए निम्नलिखित अकाट्य, अतिरंजित, अंग्रेजी अहम् And संस्कृति से परिपूर्ण तर्क प्रस्तुत किये थे-
‘‘Indian Customerों में प्रचलित क्षेत्रीय भाषाए साहित्यिक And वैज्ञानिक दुर्बलता का शिकार हैं। वे पूर्ण अपरिपक्व तथा असभ्य हैं। उन्हें किसी भी बाह्य Word भण्डार द्वारा इस स्थिति में सम्विर्द्धत नहीं Reseller जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में उस भाषा द्वारा किसी अन्य भाषा के साहित्य And विज्ञान के अनुवाद की कल्पना कर पाना असम्भव है।’’
इसी description-पत्र में अन्य स्थान पर Indian Customer भाषाओं And साहित्य का घोर अपमान करते हुए लिखा है-
यद्यपि में संस्कृत And अरबी भाषा के ज्ञान से अनविभज्ञ हू। ……………….. किन्तु क्षेष्ठ युरोपीय पुस्तकालय की मात्र Single अलमारी, Indian Customer And अरबी भाषा के सम्पूर्ण साहित्य से अधिक मूल्यवान है। इस तथ्य को प्राच्यवादी भी सह”र स्वीकार करेंगे।’’
“I have no Knowledge of either Sanskrit of Arabia …………… I haves never found one who could deny that a single shelf of a good European library was worth the shole native literature of India and Arabia. The intrinsic superiority of western literature is, in deed, fully admitted by those member of the Committee who support the oriental plan of education.”
अंग्रेजी भाषा की महत्ता को व्यक्त करते हुए आगे मैकॉले ने लिखा है- ‘‘यह भाषा पाश्चात्य भाषाओं में भी सर्वोपरि है। जो इस भाषा को जानता है, वह सुगमता से उस विशाल भण्डार को प्राप्त कर लेता है, जिसकी Creation विश्व के श्रेष्ठतम व्यक्तियों ने की है।’’
संक्षेप में मैकॉले के पाश्चात्यवादी दृष्टिकोण में अंग्रेजी के महत्त्व को अग्रलिखित बिन्दुओं से समझाया जा सकता है, जो कि उसके description-पत्र (Minute) में सर्वत्र बिखरे पड़े हैं-
- अंग्रेजी समस्त विश्व में Kingों की भाषा है तथा सर्वश्रेष्ठ साहित्य से सम्विर्द्धत है।
- अंग्रेजी पढ़ने हेतु भारत के अधिकांश लोग आतुर हैं।
- ‘अंग्रेजी’ And अंग्रेजी संस्कृति ने विश्व के अनेक राष्ट्रो को जंगलियों की दशा से उठाकर सभ्य बनाया है।
- अंग्रेजी भाषा भारत में नवीन संस्कृति का पुनरूत्थान कर सकेगी।
- प्राच्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए बालकों को छात्रवृत्ति आदि देकर प्रोत्साहित Reseller जाता है, किन्तु अंग्रेजी पढ़ने के लिए छात्र स्वयं खर्च वहन करने को तैयार हैं।
- केवल मुस्लिम And हिन्दुओं को न्याय दिलवाने हेतु उनके अरबी, हिन्दू शास्त्रों को अंग्रेजी में अनुवाद कराने से ही काम चल सकता है न कि उनकी फौज तैयार करके।
‘‘अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने का हमारा अभिप्राय इस देश में Single ऐसे वर्ग का निर्माण करना है जो रक्त And रंग में तो Indian Customer हों, पर वह रूचियों, विचारों, नैतिकता And विद्वता में अंग्रेज जैसा हो।’’
” We must do our best to form a class who may be interpreters between us and the million whom we govern, a class of persons, Indians in blood and colour, but English in taste, opinions, in morals, and in intellect. To that class we may leave it to refine the vernacular dialects to the country, to enrich those dialects with terms is of science borrowed from the Western nomenclature.”
लार्ड विलियम बैण्टिक द्वारा मैकॉले के description-पत्र को स्वीकृति : लार्ड विलियम बैण्टिक ने मार्च, 1835 को मैकॉले description पत्रिका को Wordश: स्वीकृति प्रदान करके पाश्चात्यवादी स्वReseller And शिक्षा प्रयासों पर मोहर लगा दी। इस प्रकार यह ब्रिटिन सरकार की First शिक्षा नीति के Reseller में Single ऐतिहासिक मील का पत्थर बन गया।
लॉर्ड विलियम द्वारा प्रस्तावित Indian Customer शिक्षा के स्वReseller ने पत्रिका को Wordश: स्वीकृति प्रदान करके पाश्चात्यवादी स्वReseller ने निम्नलिखित आकार ग्रहण Reseller- (1) ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य Indian Customerों में यूरोपीय साहित्य And विज्ञान का प्रचार करना है। अत: शिक्षा की निर्धारित धनराशि केवल इसी उद्देश्य के लिए व्यय की जानी चाहिए। (2) परन्तु प्राच्य विद्यालयों को न तो समाप्त Reseller जायेगा और न ही उनको बहि”कृत Reseller जायेगा। उनमें उपलब्ध सुविधाओं हेतु आवश्यक धन की व्यवस्थाएँ जारी रहेंगी। (3) आगे से प्राच्य विद्या सम्बन्धी साहित्य का मुद्रण And प्रकाशन समाप्त कर दिया जायेगा, क्योंकि इसके लिए अतिरिक्त धनराशि की व्यवस्था नहीं की जा सकती है। (4) उपर्युक्त स्थितियों के बाद भी जो शेष धनराशि बचेगी उसका प्रयोग Indian Customerो में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से अंग्रजी साहित्य तथा विज्ञान के प्रसार करने में व्यय Reseller जायेगा।
इस प्रकार विलियम बैन्टिक की इस शिक्षा नीति के माध्यम से भारत में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा अंग्रेजी शिक्षा की व्यवस्था की गयी।
समकालीन शिक्षा प्रगति की समीक्षा (1813-1853): भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक हितों को First आघात सन् 1813 ई. में ही पहॅुंचा, जबकि उन्हें Single लाख Resellerये सालाना की रकम को Indian Customerों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु व्यय करने को बाध्य Reseller गया। तबसे ब्रिटिश कम्पनी के मालिकों ने अन्यमनस्कता से ही सही Indian Customer शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को स्वीकार Reseller और वक्त अनेक करवटें बदलने लगा। इस सन्दर्भ में मैकॉले जैसे प्रतिष्ठित ब्रिटिश नागरिक And गवर्नर जनरल बैण्टिक ने तत्कालीन सलाहकार के Reseller में Indian Customerों का चरम अपमान भी Reseller, परन्तु शिक्षा को Single सुनिश्चित मार्ग पर चलाने का सुव्यस्थित प्रयास भी Reseller। धीरे-धीरे प्राच्य-पाश्चात्यवाद का भी अन्त हो गया और All ने समवेत स्वरों में अंग्रेजीकरण की पद्धति को लुभावने Reseller में अंगीकार कर लिया। प्राच्य विद्याए स्वयं की जर्जरित थीं, अब मृतप्राय: हो चुकी थीं। विद्या का कार्य भी स्वेच्छा तथा वर्ग विशेष का पैतृक कर्म न रहकर अंग्रेजी की चमाचौंध ने नौकरी के दर्जे में लाकर खड़ा कर दिया। अत: मन्दिर, धार्मिक स्थल, चौपालों आदि के घरेलू स्कूलों की संस्कृति विलुप्त हो गयी। अंग्रेज कम्पनी के लिए यह सुनहरी मौका था। उसने प्रभावी जमीदारों, क्षेत्रीय सम्पत्र लोगों के बालकों को अंग्रेजी पढ़ाना प्रारम्भ Reseller तथा ‘निस्यन्दन सिद्धान्त’ को लागू कर दिया। वे जन-मानस के साथ शिक्षा के कार्य में अपनी शक्ति And धन का हनन करने के कदापि इच्छुक नहीं थे। इसीलिए ऐडम, प्रिन्सेप, वार्डन आदि महानुभावों के उदारवादी दृष्टिकोणों को ठुकरा दिया गया।
अन्त में सन् 1833 में भारत में मिशननियों के प्रवेश को खुली छूट मिल गयी और अनेक देशों के मिश्नरियों ने अपने धर्म के साथ-साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी व्यापक योगदान दिया। अब मिशन स्कूलों, कालेजों की All बड़े नगरों में स्थापना हो चुकी थी तथा वे आधुनिक शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता के गढ़ बन चुके थे। सन् 1853 तक अंग्रेजी शिक्षा की पताका अपने पूर्ण वर्चरव के साथ भारत में लहरा रही थी। डॉ.एस.एन. मुखोपाध्याय इस शिक्षा की संक्षिप्त प्रगति प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं-
‘‘शिक्षा का ‘छनायी सिद्धान्त’ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुच चुका था। जन शिक्षा के कार्य को असम्भव बनाया गया तथा स्वदेशी शिक्षा पद्धति का सर्वनाश कर दिया। पाश्चात्य शिक्षा का सम्मान बढ़ता गया। प्राच्य विद्या व्यर्थ की वस्तु बन गयी। शिक्षा ने अंग्रेजी वस्त्र धारण किये तथा क्षेत्रीय And लोक भाषाए तथा संस्कृति को दुत्कारा गया।’’