ज्ञान की अवधारणा, प्रकार And स्त्रोत
ज्ञान क्या है?
मनुष्य जब सबसे First अवतरित हुआ इस धरती पर तब उसमें रहने तथा खाने पीने का तरीका And आधार गलत था इसके बाद वह धीरे-धीरे अपने कार्य संग में आगे बढ़ता गया और अपना कार्य करने लगा And निरन्तर विकास की प्रक्रिया चलती रही उसी के आधार पर उसने अपने जीवन को नए तथा आधुनिक तरीके से विकसित करना उचित समझा उसी के आधार पर वह प्रारम्भिक अवस्था को छोड़कर निरन्तर नए परिणामों को प्राप्त करता हुआ आगे बढ़ने लगा And अपना कार्य करने लगा। जिससे उसका विकास हुआ उसके सोचने समझने And बोलने तथा व्यवहार करने की स्थितियों में परिवर्तन आया और वह सदैव अच्छे कार्यों के बारे में सोचते हुए आगे बढ़ने लगा तथा उसके मस्तिष्क में आई नवीन चेतना तथा विचारों का विकास स्वयं तथा देखकर होने लगा इस प्रकार से वह अपने वैचारिक क्षमता Meansात् ज्ञान के आधार पर अपने नवीन कार्यों को करने लगा And सीखने लगा कि किस प्रकार से कोई भी काम को आसान तरीके से Reseller जाय और उसे किस प्रकार से असम्भव बनाया जाय। इसी सोच विचारों की क्षमता या शक्ति को हम ज्ञान कहते है, जिसके आधार पर हम All प्रकार के कार्यों को करते है And निरन्तर आगे बढ़ते है Meansात उन्नति करते है, यह उन्नति तरक्की और आगे बढ़ने की शक्ति ही व्यक्ति को और आगे बढ़ाने और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है जिससे वह सदैव सत्कर्म And निरन्तर उचित कार्य करता है और आगे बढ़ता रहता है इस प्रकार से सरल And सुव्यवस्थित जीवन को चलाने की प्रक्रिया ही हमें ज्ञान से अवगत कराती है। किसी की निश्चित समय में किसी भी व्यक्ति या सम्पर्क में आने वाली कोई भी वस्तु जो कि जीवन को चलाने के लिए उपयोग में आती है उसके प्रति जागरूकता तथा साझेदारी ही ज्ञान कहलाती है। Meansात् कैसे हम अपने जीवन को पूर्ण Reseller से चला सके प्राप्त कर सके And ज्ञान का बोधकर प्राप्त कर सके ज्ञान कहलाती है ज्ञान हमें अनुभव के द्वारा तथा सीख कर And देखकर तथा अवलोकन के माध्यम से प्राप्त होता है कैसे प्रत्येक व्यक्ति अपना कार्य आसानी से करते है वे अपने अनुभवों के आधार पर क्रियाशील होकर ज्ञान प्राप्त करते है और अपने तरह से प्रत्येक कार्य को पूर्ण करते है।
यह हमें सीख कर खोजकर तथा शिक्षा लेकर हमें ज्ञान प्राप्त करना होता है, परन्तु जो हम व्यवहार में करके देखते है अथवा सीखते है वह हमेशा हमें याद रहता है और हम उसे वह व्यक्ति अथवा बालक सदैव याद रखता है तथा उसे वह सदैव ग्रहण करता है अपने जीवन में उतारता है तथा सदैव सचेत रहता है आगे से ऐसा कोई कार्य न करें जिससे कि उसे परेशानी हो इस प्रकार से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके सीखने की क्षमता का प्रभाव पड़ता है और वह सदैव ज्ञान को स्थायी बनाए रखता है। सैद्धान्तिक ज्ञान जिसे हम पुस्तकों से प्राप्त करते है और उसे उतना ही ग्रहण कर पाते है तथा समय बीत जाने पर हम उसे याद नहीं कर पाते है अत: प्रत्येक व्यक्ति अपनी वैचारिक क्षमता के According प्रत्येक विषय वस्तु को याद रखता है तथा उसका उपयोग समयानुसार करता है। ज्ञान Word अवबोध करना, अनुभव करना, प्रोत्साहित करना, वास्तविकता धारण करना, तुलनात्मक Reseller से देखना, आत्मSeven करना जोकि हमारे मस्तिष्क में First से धारित है या उसको हम देखकर या करके सीख रहे है वह अनुभव के आधार पर सीखना And समझना ज्ञान की श्रेणी में आता है। जैसे कि आकृति और सामग्री के आधार पर हम देखते है सीखते है और समझते है जानते है And किसी भी कार्य को करते है ज्ञान Meansात क्या हम जानते है समझते है और उसको हम आत्मSeven करते है इस प्रकार से ज्ञान हमारे Single कार्य करने की सुनियोजित योजना है जिसके माध्यम से प्रत्येक सफल व्यक्ति कार्य करता है और जीवन पथ पर आगे बढ़ता जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने मन मस्तिष्क से अपनी शैक्षिक योग्यता से तथा सामान्य बुद्धि से आगे बढ़ता जाता है और उसी प्रकार उस कार्य को करता जाता है जिससे उसके अनैतिक क्रिया-कलाप पूर्ण होते है और वह निरन्तर आगे बढ़ता है तथा अपने से छोटे व आने वाली पीढ़ियों को उसी ज्ञान के आधार पर अपनी क्रियाओं को आगे बढ़ाता जाता है ज्ञान जो Single अनुभव के द्वारा आता है जिसे हम अपने आत्मज्ञान के द्वारा समझते है जानते है और उन्हीं अनुभवों के द्वारा हम सदैव आगे जीवन से संबंधित कार्यों को करते है और उसी के आधार पर प्रतिदिन अनुभवों के द्वारा अपने जीवन के क्रियाकलापों को करते है तथा अच्छे All के हित में कार्य हो ऐसा सोचते है और करने का निर्णय लेते है
प्रत्यक्ष And परोक्ष आधार पर हम ज्ञान को बांट सकते है। Indian Customer दर्शन में ज्ञान को ब्रम्ह सत्य माना जाता है तथा ज्ञान को भी श्री मांसा शास्त्र से जोड़ा गया है दोनों Single Second के अभिन्न अंग है। ज्ञान है जो कि हमारे ऋषि मुनियों तथा अन्य लोगों ने इसे अपने आधार पर समाज में विस्तार Reseller है और उसी के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी सकारात्मकता And सोच के आधार पर अपने वैधानिक क्षमता के आधार पर ज्ञान प्रदान करता था और उसी का हम अनुसरण करके अपना अनुभव बढ़ाते थे करके सीखते थे और उसी आधार पर हम जीवन के तरीको को जानते थे और समझते थे। प्राचीन समय में जो हमारे पूर्वज थे उन्होंने शिक्षा ली हो ऐसा कोई आवश्यक नही था ज्ञान केवल आधारित था जरूरी नही कि वह शिक्षित भी हो इस तरह से प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान को महत्वपूर्ण मानकर अपना कार्य करता था। शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने का Single प्रयास है और प्रयास से कोई आवश्यक नही कि उसे ज्ञान प्राप्त हों। ज्ञान आंतरिक मन में जो वैचारिक प्राकट्य है वही ज्ञान है। कबीरदास, रैदास, सूरदास मीरा बाई ऐसे कई उदाहरण हमारे समक्ष है जिन्होंने अपने आंतरिक ज्ञान से सबको ज्ञान दिया है Meansात् दिशा निर्देश दिया है जीने का समझने का और जानने का जिससे हम अपना जीवन आसान बना सके और All के द्वारा समाज का हित कर सके, सकारात्मक विचारधारा And अच्छी विचारधारा का प्रादुर्भाव प्रत्येक मनुष्य में हो इस ज्ञान की Need होती है। प्रचीनकाल में Meansात् वैदिक युग में प्रत्येक विद्यार्थी मलू भूत आध्यात्मिक प्रश्नों को स्वयं से पूछे और इनके उत्तर स्वयं खोजने का प्रयास करे जैसे –
- मैं कौन हूँ
- मैं कहाँ से आया हूँ
- मैं कहाँ जाऊँगा, मनुष्य में यह सब ज्ञान से ही प्राप्त होती है।
ज्ञान की अवधारणा
जब हम शिक्षण देते है तो हम ज्ञान प्रदान करते है इसलिए हमें जानना आवश्यक होता है कि हम ज्ञान के किस स्वReseller का उपयोग कर रहे है, कैसे हम विद्यार्थी को यथार्थ ज्ञान से परिचय प्रदान करें। क्या हम जो ज्ञान उसे दे रहे है वह पूर्ण यथार्थ ज्ञान है सत्यता से पूर्ण है यह सब हम जानते है And समझते है क्या इन सिद्धान्तों की जानकारी शिक्षक को होना अति आवश्यक है। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्रदान करना है, तथा जो भी तथ्य हम पढ़ाते है तो वह सत्य पर आधारित है सत्य और ज्ञान दोनो Single Second से जुडे़ है दोनों में कोई अंतर नहीं है। शाश्वत सत्य ही ज्ञान है। समाज के लिए ज्ञान ही शिक्षा है। All प्राचीन ऋषि मुनियों तथा मुस्लिम संतों का े First ज्ञान हुआ तब उन्होंने उसका प्रचार: प्रसार Reseller इस प्रकार से ज्ञान की उपयोगिता शिक्षा ही सिद्ध करती है। ज्ञान की दूसरी अवधारणा है कि ज्ञान सूक्ष्म है या स्थूल है यह बात हम अध्यापक के द्वारा विद्यार्थियों को अध्ययन कराते समय शिक्षक And विद्याथ्र्ाी के मन में ज्ञान सूक्ष्म Reseller से विद्यमान रहता है। दूसरी ओर पुस्तकों में जो भाषा लिखी है वह ज्ञान स्थूल है। Single उदाहरण के द्वारा हम समझ सकते है जैसे पानी में नमक डालने पर जो नमक के छोटे कण है वे घुल जाते है और जो बडे़ डैले होते है वे दिखाई देते रहते है ठीक उसी प्रकार से यह ज्ञान पुस्तकीय ज्ञान होता है ज्ञान के दो पक्ष है – प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान।
प्रत्यक्ष ज्ञान मनुष्य अपनी ज्ञानेन्द्रियों से अनुभव के द्वारा प्राप्त करता है। परोक्ष ज्ञान हमे दूसरों से कथनो या पुस्तकों द्वारा प्राप्त होता है। शिक्षा में दोनों प्रकार के ज्ञान का महत्व है। ज्ञान केवल अनुभूति भाग है यह हम Single गेंद के द्वारा समझ सकते है। यदि हम गेंद को देखते है तो हमें उसका रंग, Reseller, आकार दिखाई देता है और यदि हम इसी गेंद को ब्रहृमाण्ड के Reseller में देखते है तो वह हमें इस Earth का आकार तथा सतह And उसके पूर्ण Reseller को दर्शाती है। इस प्रकार से हम ज्ञान के कई स्तरों को पाते है और विभिन्न प्रकार से मन मैं कई प्रकार से सक्रिय होता है उसे हमें अनुभव तथा तर्क चिन्तन के माध्यम से प्राप्त करते है।
ज्ञान के प्रकार
आगमनात्मक ज्ञान हम अपने जीवन के अनुभवों के माध्यम से तथा निरीक्षण के माध्यम से प्राप्त करते है जो कि हमारे समक्ष घटित होती है घटना के आधार पर प्राप्त करते है। इसमें अलौकिक सत्ता का कोई स्थान नहीं है
- प्रयोगमूलक ज्ञान – प्रयोजनवादी मानते है कि ज्ञान प्रयागे द्वारा प्राप्त होता है। हम विधियों का प्रयोग करके तथा किसी भी तथ्य को प्रयोग द्वारा समझते है व आत्मSeven करते है।
- प्रागनुभव ज्ञान – स्वयं प्रत्यक्ष की भॉति ज्ञान को समझा जाता है जैसे गणित का ज्ञान प्रागनुभव ज्ञान है जो की सत्य है वह अनुभव के आधार पर होते है तथा-स्वयं में स्पष्ट And निश्चित ज्ञान प्रागनुभव ज्ञान होता है।
- ज्ञान के स्त्रोत – सदैव हम ज्ञान को Single Second को देखकर तथा उनकी बातों को सुनकर प्राप्त करते है, कभी भी हम स्वयं अपने ज्ञान से परिपूर्ण नहीं हो पाते है। कोई भी व्यक्ति सदैव अपने बृद्धि बल पर आगे नही बढ़ सकता है जब तक की वह दूसरों के द्वारा किए गए कार्यो का अनुभव न प्राप्त कर ले क्योंकि हम मनुष्य जीवन में सदैव Single Second से देखकर सीखते है- चाहे वह प्रत्यक्ष Reseller या अप्रत्यक्ष Reseller प्रत्यके व्यक्ति अपनी मानसिक And शारीरिक योग्यता-नुसार सीखता है देखता है और अपना व्यवहार करता है Meansात् जो कार्य उसको करने की लालसा तथा महत्वाकांक्षा है उसी के आधार पर वह आगे बढ़ता है और निरन्तर कार्य सीखता जाता है। इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति देखकर बाले कर सुनकर तथा किसी भी कार्य को करके सीखता है जो कि सदैव अनुभव के आधार पर सीखता जाता है तथा उसी आधार पर सदैव भाग ज्ञानार्जन कर अपने जीवन को सरल And सुगम बनाता जाता है जीवन में मनुष्य All से सीखता है उसके आस-पास वातावरण तथा परिवार And अपने अनुभवों के माध्यम से वह जन्म से लेकर मृत्यु तक सीखता रहता है।
ज्ञान के स्त्रोत
मनुष्य सदैव स्त्रोतों के माध्यम से सीखता है ये स्रोत है।
प्रकृति –
प्रकृति ज्ञान का प्रमुख स्त्रोत है And First स्रोत है प्रत्येक मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है जन्म से पूर्व And जन्म के पश्चात जैसे अभिमन्यु ने चक्र व्यहू तोड़कर अन्दर जाना अपनी माता के गर्भ से ही सीखा था और हम आगे किस प्रकार से प्रत्यके व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार प्रकृति से सीखता है जैसे- फलदार वृक्ष सदैव झुका रहता है कभी भी वह पतझड की तरह नहीं रहता हमेशा पंिछयों को छाया देता रहता है। Ultra site ब्रहृमाण्ड का चक्कर लगाता है Earth Ultra site का चक्कर लगाती है चन्द्रमा Earth की परिक्रमा करता है यह क्रिया सब अपने आप होती है और उसी से दिन रात का होना और मौसम का बनना तथा इस प्रकार से प्रकृति अपने नियमों का पालन करती है और उनसे हम सीखते है कि किस प्रकार से अपना जीवन ठीक से चला सकेगें। हमारे आस-पास के All पेड़ पौधे, नदी, तालाब तथा पर्वत पठार मैदान All से हम दिन रात सीखते रहते है वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों Reseller हो सकते है। और इन्ही से हम अपना ज्ञानार्जन करते रहते है इस प्रकार से प्रकृति हमें सीखाती है और हम सीखते है।
पुस्तकें –
किताबे ज्ञान का प्रमुख स्त्रोत है प्राचीन समय मैं जब कागज का निर्माण नही हुआ था तब हमारे पूर्वज ताम्रपत्र, पत्थर तथा भोज पत्रों पर आवश्यक बाते लिखते थे और उन्ही के आधार पर चलते थे Meansात् नियमों का अनुसरण करते थे इस प्रकार से प्रत्येक पीढ़ियाँ समयानुसार उनका उपयोग करती थी और सदैव अनुपालन करती थी।
वर्तमान युग आधुनिकता का युग है आज के समय में All लोग पाठ्य पुस्तकों के द्वारा तथा प्रमुख पुस्तकों के माध्यम से अपना अध्ययन करते है इनके द्वारा हम ज्ञान वृद्धि कर चौगुनी तरक्की कर सकते है। आज के युग में प्रत्येक विषय पर हमें किताबे मिल सकती है यह ज्ञान का भण्डार होती है आज के समय में हम जिस विषय में चाहे उस विषय की पुस्तक खरीद सकते है और अपने ज्ञान का अर्जन कर-सकते है। ऑनलाइन भी ई-लाइब्रेरी के द्वारा अध्ययन कर सकते है।
इंद्रिय अनुभव –
इंद्रिय Meansात् शारीरिक अंग जोकि मनुष्य को उसकी जीवितता का आभास कराते है। वह सदैव उन्ही के द्वारा अनुभव करता जाता है, और संवेदना जागृत करता जाता है, यह संवेदना ही ज्ञान प्रदान करती है अनुभव के आधार पर वह प्रत्येक व्यक्ति अपनी कार्यशैली और प्रत्यक्षी करण कराती है, Meansात् प्रत्येक पदार्थों से जो कि हमारे जीवन को चलाने में संचालित करते है उनके सहारे ही हम आगे बढते है तथा अपने जीवन में निरन्तर आगे बढ़ाते है।
साक्ष्य –
साक्ष्य के द्वारा हम दूसरों के अनुभवों And आधारित ज्ञान को मानते है जो हम अपने अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते है। साक्ष्य में व्यक्ति स्वयं निरीक्षण नही करता है दूसरों के निरीक्षण पर ही तथ्यों का ज्ञान लेता है। इस प्रकार से हम कह सकते है कि हम किसी अन्य के अनुभवों के द्वारा ही हम सीखते है। किसी अन्य के द्वारा किसी भी वस्तु का ज्ञान देना और समझाना तथा बताना और उसी बात को समझना ही साक्ष्य है। हमारा भौतिक वातावरण जो हमें प्रकृति के साथ रखकर कार्य करता है जीवन को सुचारू Reseller से चलाने के लिए उद्यत करता है, या प्रेरणा देता है वही साक्ष्य है।
तर्क बुद्धि
प्रतिदिन जीवन में होने वाले अनुभवों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है तथा यही ज्ञान हमारा तर्क में परिवर्तित हो जाता है, जब हम इसे प्रमाण के साथ स्पष्ट कर स्वीकार करते है Meansात् तर्क द्वारा हम संगठित करके हम ज्ञान का निर्माण करते है। यह Single मानसिक प्रक्रिया है।
अन्त: प्रज्ञा
इसको अंग्रेजी में इन्टुयूशन कहते है। इसका तात्पर्य है किसी तथ्य को पा जाना। इसके लिए किसी भी तर्क की Need नहीं होती है, हमारा उस ज्ञान में पूर्ण विश्वास हो जाता है।
अन्त:दृष्टि द्वारा ज्ञान
यह ज्ञान प्रतिभाशाली लोगों को अकस्मात कुछ बोध होकर प्राप्त होता है, जैसे महात्मा बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे बैठने से ज्ञान प्राप्त हुआ और भी संत तथा महात्मा हुए है जिन्हें विभिन्न स्थानों पर बैठने से ज्ञान प्राप्त हुआ। कई मनाेि वज्ञानिकों द्वारा पशुओं पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ कि समस्या से जुझते हुए जानवर अकस्मात समस्या का हल प्राप्त हो जाता है, ऐसा तब होता है जब वह समस्या की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता है। शिक्षा में बालकों की सृजनात्मक शक्ति के विकास में इससे सहायता प्राप्त होती है।
अनुकरणीय ज्ञान
Human समाज में All मनुष्य विभिन्न मानसिक शक्तियों के है कुछ बहुत ही तीव्र बुद्धि वाले कुछ निम्न बुद्धि वाले होते है। इनमें जो प्रतिभाशाली होते है। वह प्रत्येक कार्य को इस प्रकार करते है कि वह सैद्धान्तिक बन जाता है। अत: उनके द्वारा Reseller गया किसी भी संग में कार्य जिसको हम स्वीकार करते है अनुकरणीय हो जाता है।
अनुकरण के द्वारा ही हम सामाजिक कुरीतियों को दूर कर सकते है इसी के माध्यम से हम समाज को नई दिशा प्रदान कर सकते है।
Human प्रयासों के Reseller में ज्ञान
जिज्ञासा –
जानने की इच्छा, समझने की इच्छा किसी भी विषय या प्रकरण को Meansात शीर्षक को समझने की उत्सुकता ही जिज्ञासा है। जिज्ञासा मनुष्य के अन्र्तमन की Single ऐसी क्रिया है जो सदैव जानने, समझने हेतु प्रोत्साहित करती है, जब तक कि उसको पूर्णत: उत्तर नहीं मिल जाता और वह संतुष्ट न हो जाता है। संतुष्टि उसको तभी प्राप्त होती है, जब वह पूर्ण Reseller से मन की जिज्ञासा को शांत नहीं कर लेता हैं। इस प्रकार से वह ज्ञान Singleत्रित करता है तथा उसका सदैव उपयोग करता है। जिज्ञासा पूर्ण होने पर प्रत्येक व्यक्ति खोज, आविष्कार And अवलोकन तथा सीखने के माध्यम का उपयोग कर उसे दैनिक व्यवहार में लाता है और अपने अनुभवों को सांझा करता है जिससे अन्य लोगों में किसी भी कार्य को करने व आगे बढ़ने की उत्सुकता बढ़ती है।
अभ्यास –
अभ्यास के माध्यम से ज्ञान का प्रादुर्भाव होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अनुभवों के माध्यम से सीखता है, प्रतिदिन वह नए अनुभवों को ग्रहण करता है और उसी को प्रमाण मानकर आगे कार्य Reseller देकर उसे अपने जीवन में उतारता है तथा उसी के आधार पर प्रत्येक कार्य को करता है और आगे आने वाले All लोगों को इसी के According ज्ञान प्रदान करता जाता है। अभ्यास के माध्यम से ही विभिन्न आविस्कार हुए तथा हम आधुनिकता के इस युग में प्रत्येक कार्य को परिणाम तक पहुँचा सके है। यदि हमारा अभ्यास पूर्ण नहीं है तो हम परिणाम नहीं प्राप्त कर सकते है। प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरीय देन है कि, वह अपनी बौद्धिक क्षमता के According प्रत्येक क्षेत्र जिसमें उसको रूचि हो अभ्यास के द्वारा अच्छे कार्य करके उनका प्रदर्शन कर सकता है और समाज को Single नई दिशा प्रदान कर सकता है चाहे वह विज्ञान, समाज तथा शिक्षा या अन्य किसी भी क्षेत्र में हो उसी आधार पर वह अपने व्यक्तित्व अनुभवों को सदैव आविष्कारिक Reseller में आगे बढ़ाता रहता है।
संवाद –
संवाद ज्ञान को प्रसारित तथा बढ़ाने का Single माध्यम है जिसके द्वारा हम ज्ञान प्राप्त करते है And इसको आत्मSeven करते है, जैसे कि लोकोक्तियाँ And मुहावरो के द्वारा तथा अनेकों दार्शनिको: समाज सुधारकों And विद्वजनो द्वारा प्रेरित अनुभवों के आधार पर संवाद के माध्यम से ज्ञान का प्रसारण करते है जो कि प्रत्येक मनुष्य को लाभान्वित करता है। संवाद के उदाहरण – ‘‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत।’’ ‘‘पानी पीयो छानकर, गुरू करो जानकर।’’ पढे़गा इंडिया, बढे़गा इंडिया’’ आदि।
इस प्रकार से कई संवाद प्रत्येक मनुष्य प्राणी के मन पर प्रभाव डालते है, जिससे ज्ञान का अर्विभाव होता है तथा वह प्रत्यके मनुष्य के मन मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव डालता है।
Humanीय ज्ञान And सामाजिक व्यवहार –
मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है उसके अनुभवों तथा संस्कारों से जैसे उसका वातावरण होगा वह वैसा ही व्यवहार करेगा और उसी के आधार पर उसकी वैचारिक क्षमता तथा मानसिक योग्यता निर्भर करती है उसके प्रदर्शन तथा उसके व्यवहार पर यदि वह किसी भी प्राणी को उसके सम्पर्क में आता है, उसकी बात समझता है, उसके साथ उचित व्यवहार करता है और यह मानता है, कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी समस्या है और वह किस प्रकार से अपना कार्य कर रहा है कैसे वह अपनी दैनिक Needओं को पूर्ण कर रहा है तो वह उसके साथ उचित व्यवहार करता है तथा उसकी समस्याओं को समझ कर उनका समाधान करता है। यही Humanीय व्यवहार तथा सामाजिक व्यवहार कहलाता है।
सामाजिक व्यवहार व्यक्ति तभी करता है जब वह स्वयं को समाज का अभिन्न अंग मानकर उसके हित कल्याण की बात सोचता तथा समझता है कल्याण की बात Meansात् All साथियो ं की परेशानियां े को समझना, उनकी समस्याओं को सुलझाना, उन्हें सही राह दिखाना, उनके वयक्तित्व में विकास करना, सहयोग करना उचित मार्गदर्शन देना, समाज के कल्याण की बात करना, नई योजनाओं से परिचित करवाना नई And सर्व कल्याण के हित की नीतियाँ बनाना जैसे :- स्वास्थ्य, शिक्षा, पालन पोषण, अज्ञानता को दूर करने के लिए युवा वर्ग द्वारा साक्षरता का प्रसारण करना प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो And आगे बढे़ समझकर, लिंग भेद को दूर करना सबसे बड़ी समस्या है, वर्तमान समय में कितना भी आधुनिक युग हो, परन्तु अभी भी अधिकतर जनता के विचार आज भी वही संकुचित विचार धारणा है जो कि बेटा और बेटी में अन्तर स्थापित करती है। इस प्रकार की मानसिकता को दूर करना शिक्षा, के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति का अपना महत्व है और उसी प्रकार से उस समाज के All सदस्यों को समझाना तथा उनकी मानसिक विचारधारा को परिवर्तित करना And इस प्रकार की अन्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करना। शिक्षित And सभ्य नागरिक का कर्तव्य है कि वह समाज की बुराइयां े को दूर करे And समाज में Single अच्छा वातावरण तैयार कर स्वस्थ समाज की व्यवस्था करे जिससे जमाखोरी, अंधविश्वास, कुरीतियां े तथा All प्रकार की सामाजिक बुराइयां े का अंत हो सके। समाज Single आदर्श Reseller में स्थापित हा े सके और देश की उन्नति में सहायक हो सके। इस प्रकार से हमारा कर्तव्य है कि यदि हम शिक्षित हांगे े तो समाज शिक्षित होगा समाज शिक्षित होगा तो समुचा देश शिक्षित होगा और All की उन्नति होगी तथा All के विकास के साथ-साथ देश का विकास होगा।
अत: सामाजिक व्यवहार हेतु ज्ञान अति आवश्यक है। यदि मनुष्य को ज्ञान होगा तो कोई भी किसी भी प्रकार से उसे कमजोर नही बना सकेगा Meansात उसका शोषण नहीं कर पायगे ा, इस प्रकार से शिक्षा मनुष्य को मनुष्य बनाती है तथा सामाजिक विकास में सहयोग प्रदान करती है। इस प्रकार से सक्रिय ज्ञान के माध्यम से हम अपने विचारों को जाग्रत रखते है तथा परस्पर उन पर ध्यान तथा विचार विमर्श करते है और उनका पालन करते है। इस प्रकार से ज्ञान के द्वारा हमें सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है जो हमारे जीवन को सरल तथा सफल बनाता है।
ज्ञान जो हमें प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से प्राप्त होता रहता है, इसके लिए आवश्यक नहीं कि हम अपने से उम्र में बड़ों के द्वारा ही सीखे Meansात् यदि कोई उम्र में छोटा भी है तो वह यदि ज्ञान रखता है तो उससे हम ज्ञान प्राप्त कर सकते है उसके विचारा ें तथा क्रियाकलाप के माध्यम से और उसकी गतिविधियों के माध्यम से इस प्रकार से ज्ञान के माध्यम से सामाजिक व्यवहार को हम पूर्ण कर सकते है और समाज को सही मार्गदर्शन दे सकते है। सत्य और ज्ञान में कोई भेद नहीं है जो सत्य है वही ज्ञान है जैसे Ultra site का उदय होना हमें प्रकाशित करता है, चन्द्रमा हमें दिखाई देता है और ठंडक प्रदान करता है ऋतुओं के According मौसम में परिवर्तन होता है और समय के According All प्राणियो And सजीवो में अंतर आता है तथा वे अपने समान दूसरा जीव इस धरती पर लाते है जो कि वास्तविकता है इसी ज्ञान के आधार पर हम प्रत्येक होने वाली दुर्घटनाओ का पूर्वाभास करके सचेत होते है तथा उससे बचने के उपाय प्रारम्भ कर देते है, जो हमारे ज्ञान को दर्शाता है और सदैव सचेत रहने की प्रेरणा प्रदान करता है।
ज्ञान ही Single ऐसा माध्यम है जो मनुष्य को मनुष्यत्व सीखाता है तथा हमारे ग्रंथों में लिखा है कि ज्ञान से बड़कर कोई पवित्र वस्तु नही है। ज्ञान सदैव मार्गदर्शन करता है सम्पर्क करने की प्रेरणा देता है तथा अच्छे कर्म करने को उत्साहित करता है। ज्ञान यदि मनुष्य में है तो वह सदैव अपने अस्तित्व को परमात्मा की देन समझ कर समाज तथा सम्पर्क में आने वाले All से उचित व्यवहार कर प्ररे णा स्त्रोत बनेगा।
ज्ञान न कि उडेलना है वरन् व्यक्ति चयनित Reseller से वातावरण की प्रक्रिया पर ध्यान देकर वह अपने अनुभवों के आधार पर सूचना Singleत्रित करता है और ज्ञान प्राप्त करता है। खोज के द्वारा सीखना महत्वपूर्ण है परन्तु कुशल तथा पूर्ण अनुभव के द्वारा सीखना ही ज्ञान है। यह हमें जीवन में पूर्णता प्रदान करता है जैसे – धन, शक्ति, नाम, शोहरत, सफलता और पद देता है। ज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति समझने विश्लेषण करने और बुद्धिमानी विचारों को विकसित करने की क्षमता देता है। यह हमें अच्छाई की भावना रखना सीखाता है तथा हमारे आसपास के लोगों के जीवन को सुधारने में मदद करता है।
ज्ञान जीवन में अधिक अवसरों को प्राप्त करने का साधन है। ज्ञान के द्वारा मनुष्य ‘‘प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति कर सकता है वह सदैव प्रत्येक विषय पर अपना नियन्त्रण रखता है और प्रत्येक क्षेत्र में अनुभव के आधार पर अपना वर्चस्व रखता है ज्ञान के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपनी किसी भी समस्या का हल आसानी से कर सकता है। वह All प्रकार से पूर्ण व्यक्तित्व प्राप्त कर लेता है। ज्ञान Single ऐसा तत्व है जो सदैव रहता है धन Destroy हो जाता है तन जर्जर हो जाता है हमारे साथी और परिवार के लोग छूट जाते है पर ज्ञान सदैव हमारे साथ रहता है वह कभी भी हमारा साथ नहीं छोड़ता है। ज्ञान यह हमें सीखने की प्रक्रिया से आता है। जितना हम सीखते जाते है ज्ञान हमें प्राप्त होता जाता है। हमारे धर्म ग्रंथो में भी ज्ञान को प्रकृति और पुरूष के स्वReseller को समझकर गुणों के सहित प्रकृति से सदैव जुडे रहना है।
Humanीय ज्ञान जो कि ईश्वर की अनुपम कृति है जिसे ईश्वर ने प्रदत्त की है इसके बिना मनुष्य पुशओ के समान व्यवहार करता है न वह ठीक से व्यवहार करता है न किसी की भावना को समझ पाता है और न ही वह Humanता सीखा पाता है तो वह व्यवहार असामाजिक व्यवहार हो जाता है जो कि मनुष्य को पशुत्व का व्यवहार सीखाता है तथा उसके आधार पर वह असामाजिक कार्य करने लगता है यह असामाजिक कार्य ही आतंक तथा देशद्रोह का कार्य करते है जिनके कुकृत्य करने से All सामाजिक प्राणियों को परेशानियो का सामना करना पड़ता है जिससे समाज की All व्यवस्थाएँ गड़बड़ा जाती है और उपद्रव तथा अशांति का वातावरण बन जाता है, जिससे All सामाजिक, क्रियाकलापों पर प्रभाव पड़ता है तथा उससे All प्रकार की गतिविधियॉ प्रभावित होती है और वह सब प्रगति में सहायक न होकर पिछड़ता चला जाता है।