उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

उत्प्रेक्षा अलंकार वर्णनों में रुचि रखने वाले कवियों का प्रिय अलंकार रहा है। जहाँ कवि अपने वर्णन में अपूर्णता या अपर्याप्तता का अनुभव करता है, वहाँ वह उत्प्रेक्षा का प्रयोग करता है। ‘‘उत्प्रेक्षा Word के तीन खण्ड हैं: उत्+प्र+ईक्षा Meansात उत्कट Reseller से प्रकृष्ट (उपमान) की ईक्षा या सम्भावना। जहाँ उपमेय की उपमान के Reseller में सम्भावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। सम्भावना, सन्देह और भ्रम- ये वस्तुत: ज्ञान के विभिन्न Reseller हैं। सन्देह में दो या अधिक कोटिक ज्ञान रहता है और All कोटियों पर समान बल रहता है। भ्रान्ति में विपरीत कोटि में निश्चयात्मक ज्ञान रहता है। जिसमें Single कोटि प्रबल रहे ओैर दूसरी निर्बल (अज्ञात नहीं), उस संषय ज्ञान को सम्भावना कहते हैं। इसे Wordान्तर से यों कह सकते हैं कि सन्देह में दोनों कोटियाँ समान बलवान होती हैं- ‘सर्प है या रस्सी’, भ्रम या भ्रान्ति में विपरीत कोटि में निश्चय रहता है- ‘रस्सी को सर्प समझना’ और सम्भावना में Single कोटि प्रबल रहती है, दूसरी अज्ञात नहीं रहती। कवि जब इस सम्भावना का चमत्कारक वर्णन करता है तो उसे उत्प्रेक्षा कहते हैं अन्यथा सम्भावना मात्र रहती है।’’ प्राचीन आचार्यों ने इसके भेदोपभेदों का भी वर्णन Reseller है।

‘‘उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं: वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा। जहाँ Single वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाये वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जहाँ अकारण में कारण की सम्भावना की जाये, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार होता है। हेतु का Means है कारण। फल का Means है उद्देश्य। जहाँ उद्देश्य की सम्भावना की जाये, वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है। हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा में अन्तर यह है कि हेतूत्प्रेक्षा में केवल कारण की कल्पना की जाती है जबकि फलोत्पे्रक्षा में प्रयोजन की प्राप्ति को स्पष्ट Reseller जाता है। कारण (हेतु) में पूर्व निर्धारित वस्तु के कारण कार्यभाव को स्पष्ट Reseller जाता है जबकि फलोत्प्रेक्षा में फल की प्राप्ति को स्पष्ट Reseller जाता है।’’ हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा का प्रयोग बहुत कम होता है। वस्तूत्प्रेक्षा का ही प्रयोग अधिक Reseller में देखा जाता है। सुन्दर कविराय ने अपने काव्य में उत्प्रेक्षा अलंकार का अत्यधिक प्रयोग Reseller है। वे जब भी वस्तुवर्णन प्रारम्भ करते हैं, उसका अन्त उत्प्रेक्षा से ही करते हैं। यहाँ उदाहरण प्रस्तुत है-

कुच ऊपर देख्यो नखच्छत ‘सुन्दर’, आठ के आँक सो ऐसो लसै।

मनहू मनमत्थ को हाथी चढ्यो, है महाउत -जोबन आँकुस लै।।

प्रौढ़ा नायिका ने नायक के साथ जमकर रमण Reseller है। इसी समर- संग्राम में उसके स्तन पर नायक का नख लग गया जो देखने में आठ का अंक जैसा लगता है। कवि सम्भावना करता है कि ऐसा लगता है मानों कामदेव का हाथी चढ़ गया हो और यौवन Resellerी महावत उसे रोकने के लिए अंकुष लिए हुए हो। यहाँ स्तनों में हाथी की कल्पना की गयी है। वैसे भी स्तनों का उपमान करिकुम्भ (हाथी की कनपटी) माना गया है। नखक्षत उपमान है अंकुस का। उत्प्रेक्षा अलंकार है। इसी प्रकार-

सोवति ही रति-केलि किये, पति संग प्रिया अति ही सुख पायें।

देखि सुReseller सखी सब ‘सुन्दर’, रीझि रहीं ठगि-सी टग लायें।

कंचुकि स्याम सजै कुच ऊपर, छूटी लटैं, लपटी छवि छायें।

बैठ्यों है ओढ़ि मनो गज-खाल, महेस भुजंगनि अंग लगायें।।

यह प्रौढ़ा नायिका के सुरतान्त का चित्रण है। प्रौढ़ा नायिका ने नायक पति के साथ समागम Reseller और जमकर सुख लूटा। सखियाँ उसके सुन्दर Reseller को देखकर रीझ रही हैं और टकटकी लगाकर देख रही हैं। नायिका ने काले रंग की कंचुकी पहन रखी है जिससे उसके मोटे-मोटे स्तन दिख रहे हैं और उसके केश उस कंचुकी के ऊपर पड़े हुए हैं। यह दृष्य ऐसा लगता है मानों शिव गज की खाल ओढ़े हुए हों और भुजंगों को गले लगाये हुए हों। स्तनों का उपमान शिवलिंग माना जाता है। शिव बाघंबर या गजखाल पहनते हैं इसलिए काली कंचुकी में छिपे हुए स्तनों की गजखाल ओढ़े शिव के Reseller में सम्भावना अत्यन्त उचित है। केशों का उपमान है सर्प, स्तनों पर पड़े केश सर्प से लगें तो अनुचित क्या है? उत्प्रेक्षा बहुत सुन्दर है और कवि ने वर्णसाम्य (रंग की समानता) को सर्वत्र ध्यान में रखा है। शिवलिंग काला होता है और कंचुकी भी काली है। केश और सर्पों की श्यामता तो स्पष्ट है ही। इसी प्रकार-

Single समै वृशभानुसुता उठि, प्रात भये जमुना गई खोरनि।

मंजुल न्हाइ अन्हाइ कै ‘सुन्दर’, बैठी है बाहर बार निचोरनि।

उपमा मनमौज की नीकी लगै, जल के कनिका ढुरैं केस की कोरनि

मानहुँ चंद को चूसत नाग, अमी निकस्यो वहि पूँछ की ओरनि।।

Single दिन प्रात: उठकर राधिका जी स्नान करने के लिए यमुना नदी पर गयीं। वहाँ उन्होंने स्नान Reseller और बाद में बाल निचोड़ने लगीं। उनके बालों के किनारों से जल की बूँदें गिर रही थीं। ऐसा प्रतीत होता है मानों चन्द्रमा को नाग चूँस रहे हों और उनकी पूँछ की ओर से अमृत के कण टपक रहे हों। उत्पे्रक्षा अत्यन्त भव्य है। मुख का उपमान है चन्द्रमा। चन्द्रमा में अमृत का वास माना जाता है, इसलिए उसे ‘सुधांशु’ कहा जाता है। केशों का उपमान है सर्प या नाग। सर्प तो किसी भी रंग का हो सकता है, लेकिन नाग तो काला और भयंकर ही होता है। नाग जब चन्द्रमा से लिपटे हैं तो उनका अमृत चूँसना भी सहज है। सपोर्ं का दूध पीना प्रसिद्ध है तो उनका अमृत पीना भी सहज हो सकता है। केशों के किनारों से टपकता पानी वही अमृत कण हैं जिसे सर्प चन्द्रमा से ग्रहण कर रहे हैं। सारे उपमान परम्परागत है। मुख का उपमान चन्द्रमा है, केशों का नाग है, चन्द्रमा में अमृत का वास भी परम्परागत मान्य है। कवि कल्पना निश्चय ही सुन्दर है और उत्प्रेक्षा रम्य है। इसी प्रकार-

कान्ह गही वृशभानु-सुता की, अचानक ही अँचरा की किनारी।

देखी रोमावली, Reseller की रासि, रहे मन ही मन रीझि मुरारी।

पूरब बैर तें संकर को, कहि ‘सुन्दर’ ऐसी अनँग बिचारी।

ईस के Third नैन में दैन कों, मानहु मैन सलाक सँवारी।।

कवि राधा की रोमावली का वर्णन कर रहा है। वह कहता है कि कृष्ण ने अचानक ही राधा की साड़ी का पल्लू पकड़ लिया तो उन्हें राधा की रोमावली दिख गयी। रोमावली बहुत सुन्दर है, कृष्ण उसे देखकर मन ही मन रीझ गये। कवि सुन्दर सम्भावना करते है मानो पूर्व बैर को स्मरण कर कामदेव ने शंकर के Third नेत्र में देने के लिए लोहे की शलाका (सलाई) बनाई हो। यह पुराणों में प्रसिद्ध है कि पार्वती के तपस्या द्वारा शंकर को प्राप्त करते समय जब कामदेव ने शंकर पर बाण का प्रहार करना चाहा तो शंकर ने अपने Third नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति के रोने-बिलखने पर शिव ने उन्हें भावReseller में रहने तथा युवकों और युवतियों के शरीर में मिलने का आशीर्वाद दे दिया था, लेकिन भस्म हो जाने, अनंग (शरीर रहित) हो जाने से उसके मन में शिव के प्रति द्वेश होना स्वाभाविक है। छिपा हुआ शत्रु सदैव वार करने के अवसर खोजता है और अपनी तैयारी करता रहता है। निश्चय ही कामदेव के मन में भी ऐसी भावना स्वाभाविक है कि वह शिव के उस Third नेत्र को ही फोड़ दे जिसने उसे भस्म Reseller था। ऐसी अवस्था में लोहे की सलाई तैयार करने से उत्तम और क्या अस्त्र हो सकता है? आँख फोड़ने के लिए तो सलाई ही सर्वोत्तम है। नवनिर्मित सलाई का काला होना भी स्वाभाविक ही है। अत: स्पष्ट है कि कवि ने पौराणिक आधार पर उत्प्रेक्षा की है और वर्णसाम्य (रंग की समानता) को ध्यान में रखा है। इसी प्रकार Single अन्य छन्द दर्शनीय है-

Resellerे की भूमि, कि पार्यों पर्यो, सगरो जग चंदन सों लपटानौं।

यों लखि जोन्ह ‘महाकविराइ’, कहै उपमा इक याहू तें आनौं।

चंद की अंसुनि को करि सूत, बुन्यो बिधिना सित अँबर जानौं।

उज्ज्वल कै पुनि ब्योंत बनाइ, दसों दिसि में मढ़ि राख्यो है मानौं।

चारों दिशाओं में उज्ज्वल चाँदनी फैल रही है। कवि कहता है कि यह चाँदी की भूमि है या ऐसा लगता है कि सारी धरती और आकाष पर पारा फैल गया है जिससे चारों ओर सफेद ही सफेद दिख रहा है। अथवा ऐसा लगता है कि सारा संसार चंदन से लीप दिया गया है। इन तीनों उपमानों में सन्देह अलंकार है। आगे कवि उत्प्रेक्षा का प्रयोग करता है। सुन्दर कविराय (महाकविराइ) Single नया उपमान लाते हुए कहते हैं कि यह दृष्य ऐसा लगता है मानों चन्द्रमा की किरणों को सूत बनाकर काता गया है, उससे जो श्वेत कपड़ा बना हो उसे नील आदि लगाकर और उज्ज्वल बना दिया गया हो और फिर किसी कुषल दर्जी से नाप दिलाकर उससे धरती और आकाश को ढकने के लिए कपड़ा बनवाया गया हो और उस कपड़े से दसों दिशाओं को मढ़ दिया गया हो। चाँदनी श्वेत है और उसमें सम्भावना की गयी है उज्ज्वल श्वेत कपड़े की। यह कपड़ा भी चन्द्रमा की किरणों से बनाया गया है। उत्प्रेक्षा अत्यन्त सटीक है, लेकिन चाँदनी के लिए चन्द्रमा की किरणों से बने कपड़े को उपमान बनाया गया है यह कुछ उपयुक्त सा नहीं लगता क्योंकि चाँदनी तो उपमेय ही है।

अदल-बदल गये भूशन-बसन, कहि- ‘सुन्दर’ अधर में न धरत ललाई है।

जगर-मगर जोति, ऐसी अंग-अंग होति, कंचन की छरी मनो आग में तपाई है।।

नायिका ने अपनी दूती को नायक के पास भेजा, लेकिन काम से व्यथित नायक ने उसके साथ सम्भोग कर डाला। दूती को जल्दी ही नायिका को वापस सन्देश देना था, इसलिए उसने जल्दी ही वस्त्राभरण डाले और आ गयी। इस जल्दबाजी में कुछ आभूषण उलट-पलट गये। नायिका उसे देखकर कहती है कि तेरे वस्त्राभूशण अदल-बदल गये है, होठों की लालिमा गायब हो गयी है, तेरे शरीर की कान्ति ऐसी चमक रही है मानो सोने की छड़ी को आग में तपाया हो। सोने की छड़ी को आग में तपाने पर उसका मैल साफ हो जाता है और वह Singleदम चमकने लगती है। अंग की कान्ति के लिए यह प्रसिद्ध उपमान है, लेकिन यहाँ कवि ने सम्भावना की है, इसलिए उत्प्रेक्षा अलंकार है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *