अनुसूचित जातियों का Means, परिभाषाएँ And उत्पत्ति के कारक
होता है कि इस काल में अस्पृश्यता जैसी कोई चीज नहीं थी। वैदिक कालीन ग्रंथों
में अस्पृश्य Word का प्रयोग Reseller गया है, किन्तु इस Word का प्रयोग किसी विशेष
समुदाय के लिए न होकर विशेष प्रकार के निम्न व्यक्तियों के लिए Reseller जाता था।
उत्तर वैदिक काल में धर्म काल के आरंभ के समय जाति व्यवस्था में अनेक परिवर्तन
हुए। इस काल में व्यक्ति के वर्ण का आधार कर्म के स्थान पर जन्म हो गया। इस
समय तक ब्राह्मण अत्यंत शक्तिशाली हो गए थे।
उन्होंने स्वर्णों के लिए विशेषाधिकारों की व्यवस्था की तथा शूद्रों को सामान्य अधिकारों से भी वंचित कर
दिया। मध्यकाल में शूद्रों को समाज से अलग कर दिया गया तथा उन्हें अस्पृश्य
समझा गया।
ब्रिटिश काल में शूद्र जातियों का सर्वाधिक पतन हुआ। अंग्रेजी सरकार ने
1871 में अपराधी जाति अधिनियम बनाकर अधिकांश घुमन्तु तथा अर्ध घुमन्तु जातियों
को जिनमें अधिकांश शूद्र जातियाँ थी, जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। इस
अधिनियम में 1911 व 1924 में संशोधन करके इसे अधिक कठोर बनाया गया।
आजादी के बाद भारत में प्रजातंत्र की स्थापना हुई। भारत सरकार ने All
शूद्र, अस्पृश्य जातियों And जनजातियों की दो सूचियाँ बनाई। पहली में अनुसूचित
जातियाँ और दूसरी में अनुसूचित जनजातियाँ।
इनके सामाजिक, आर्थिक And राजनीतिक उत्थान के लिए संविधान में अनेक व्यवस्थाएँ की गई।
अनुसूचित जातियों का Means And परिभाषाएँ
सन् 1935 में साइमन कमीशन ने First इनके लिए ‘अनुसूचित जातियाँ’
Word का प्रयोग Reseller। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भी इसी नाम को अपनाया।
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने अस्पृश्य या हरिजन कही जाने वाली 429 जातियों की
Single सूची बनाई तथा इन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा। Indian Customer संविधान में
यह जातियाँ अनुसूचित जाति के नाम से जानी जाती है।
डॉ. डी.एन. मजूमदार के According ‘‘अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जो बहुत सी निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं, जिनमें से
अधिकतर निर्योग्यताओं को परम्परा द्वारा निर्धारित करके सामाजिक Reseller से उच्च
जातियों द्वारा लागू Reseller गया है।
डॉ. जी.एस. घुरिये के According ‘‘अनुसूचित
जातियों को मैं उन समूहों के Reseller में परिभाषित कर सकता हूँ, जिनका नाम इस
समय लागू अनुसूचित जातियों के आदेश में है।’’
अनुसूचित जातियों के उत्पत्ति के कारक :
अस्पृश्य जातियों की उत्पत्ति के तीन कारक सामने आते हैं जो इस प्रकार हैं-
प्रजातीय कारक
डी.एन. मजूमदार, जी.एस. घुरिये तथा हबर्ट रिजले ने अस्पृश्य
जातियों की उत्पत्ति को प्रजातीय आधार पर स्पष्ट Reseller है। ‘‘इण्डो आर्यन लोग
विजेता के Reseller् में इस देश में आए। उन्होंने यहाँ के विजित मूल निवासियों को अपने
से हीन समझा, उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा, उन्हें दस्यू, दास आदि निंदनीय नामों
से संबोधित Reseller, उन्हें समाज में निम्न सामाजिक स्थिति प्रदान की, उनके साथ
किसी भी प्रकार का सम्पर्क तथा अपनी धार्मिक पूजा, संस्कार आदि से पूर्णत: अलग
रखा। इन विभिन्नताओं के कारण पृथकता की धारणा धीरे-धीरे इतनी तीव्र होती
गई कि इण्डो आर्यन लोगों ने यहाँ के मूल निवासियों को स्पर्श करना भी अनुचित
समझा तथा उन्हें अछूत कहा जाने लगा।
धार्मिक कारक
संबंध पवित्रता-अपवित्रता से है। बहुत सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें अत्यन्त
अपवित्र माना गया है। उच्च जातियों के लोग उनसे दूर रहते हैं, क्योंकि इनका
स्पर्श मात्र उन्हें अपवित्र बना देता है।
इसी आधार पर अनेक व्यवसायों को जो अपवित्र वस्तुओं से सम्बद्ध थे, उच्च जातियों के लिए उन्हें निषिद्ध घोषित कर दिया
गया तथा इन कार्यों को व्यवसाय के Reseller में करने वाली जातियों को अस्पृश्य
समझा जाने लगा।
सामाजिक कारक
कारक सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था भी है। समाज में जब Single कार्य प्रणाली कुछ
समय तक बनी रहती है, तो वह स्थायी Reseller धारण कर लेती है And प्रथाओं और
परम्पराओं में परिवर्तित हो जाती है। यही प्रथाएँ आगे चलकर रूढ़ियों में परिवर्तित
हो जाती हैं। जिनमें परिवर्तन संभव नहीं होता।
इसी आधार पर Indian Customer समाज में अनेक व्यवसाय तथा इनमें संलग्न जातियाँ अस्पृश्य मानी जाने लगी। आरंभ में उच्च
जातियों के लोग ही इन्हें अस्पृश्य समझते थे किन्तु कुछ समय पश्चात स्वयं ये
जातियाँ अपने आप को अस्पृश्य समझने लगेी, जिससे Indian Customer समाज में अस्पृश्य
जातियों का Single स्थायी स्थान बन गया।