लोक व्यय क्या है? जो केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों के द्वारा या तो नागरिकों की सामूहिक Needओं की सन्तुष्टि के लिए Reseller जाता है
लोक व्यय उस व्यय को कहते हैं, जो लोक सनाओं-Meansात् केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों के द्वारा या तो नागरिकों की सामूहिक Needओं की सन्तुष्टि के लिए Reseller जाता है अथवा उन के आर्थिक And सामाजिक कल्याण में वृद्धि करने के लिए। आजकल सरकारी व्यय की मात्रा, संसार के प्राय: All देशों में निरन्तर बढ़ रही है। इसका कारण यही है कि विभिन्न क्षेत्रों तथा मोर्चों पर सरकार तथा अन्य लोक निकायों (Public bodies) के कार्यों का निरन्तर विस्तार हो रहा है। 19वीं शताब्दी में तो सरकारी व्यय के सिद्धांत को अधिक आवश्यक नहीं माना जाता था क्योंकि उन दिनों सरकार के कार्यों का क्षेत्र बड़ा सीमित था, किन्तु 20वीं शताब्दी में, शिक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे सामाजिक मामलों में तथा वाणिज्यिक व औद्योगिक मामलों में जैसे-रेलवे, सिंचाई, बिजली तथा ऐसी ही अन्य प्रयोजनाओं के क्षेत्र में राज्य के कार्यों का अत्यधिक विस्तार हुआ है, अत: उन के कारण सरकारी व्यय में भारी वृद्धि हुई है। सरकारी व्यय की प्रकृति तथा मात्रा के कारण और इस कारण कि यह अनेक प्रकार से देश के आर्थिक जीवन को प्रभावित कर सकता है, इसका महत्त्व काफी बढ़ गया है। उदाहरण के लिए, सरकारी व्यय उत्पादन तथा वितरण के स्तर को और आर्थिक क्रियाओं के सामान्य स्तर को प्रभावित कर सकता है।
प्राचीन विचारधारा
प्राचीन Meansशास्त्रियों ने सार्वजनिक व्यय पर बहुत कम ध्यान दिया था। तत्कालीन राज्य का कार्यक्षेत्र सीमित होने के कारण उन्होंने सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत को आवश्यक नहीं समझा। शास्त्रीय या प्राचीन Meansशास्त्री व्यक्तिगत आर्थिक स्वतन्त्रता पर जोर देते थे। वे नहीं चाहते थे कि राज्य Meansव्यवस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप करे। यही वह कारण है, जिससे शास्त्रीय Meansशास्त्री राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमित रखना चाहते थे।
जे. बी. से (J. B. Say) के विचारानुसार-वित्त की सारी योजनाओं में सर्वोत्तम वह है, जिसमें कम खर्च Reseller जाये। एडम स्मिथ का मत था कि राज्य के कार्य न्याय, प्रतिरक्षा और कुछ सार्वजनिक सेवाओं के प्रबन्ध तक ही सीमित रहने चाहिए। Single अमेरिकन आलोचक के मतानुसार पुराने अंग्रेज लेखकों को व्यय के सिद्धांत की Need नहीं थी, क्योंकि सरकार के सम्बन्ध में उनका जो सिद्धांत था, उसका तात्पर्य था सरकारी कार्यों की Single निश्चित सीमा।
सर पारनेल के Wordों में-समाजिक व्यवस्था को बनाये रखने तथा विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए अति आवश्यक व्यय से अधिक व्यय का प्रत्येक भाग अपव्यय है तथा जनता पर अन्यायपूर्ण तथा अत्याचारपूर्ण भार है। इस प्रकार प्राचीन Meansशास्त्री राज्य के कार्यों को सीमित रखना चाहते थे, क्योंकि वे सरकारी कार्यों को प्राय: अनुत्पालक तथा समाज को कोई विशेष लाभ न देने वाले मानते थे।
आधुनिक विचारधारा
आजकल प्राचीन Meansशास्त्रियों की उपर्युक्त विचारधारा को सही नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वर्तमान युग के राज्य प्राचीन युग के राज्यों की भाँति पुलिस राज्य न होकर, कल्याणकारी राज्य हैं। कल्याणकारी राज्य को जनता का अधिक कल्याण-कार्य करना पड़ता है, जिसमें सरकार को सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास के लिए अनेक उद्देश्यों को पूरा करने हेतु भारी मात्रा में व्यय करना पड़ता है। यही कारण है कि वर्तमान राज्यों के कार्यों में पर्याप्त वृद्धि हो गई है। आजकल सार्वजनिक व्यय प्राय: निम्नलिखित कार्यों के लिए Reseller जाता है-
- Safty के लिए,
- समाज के दलित वर्गों की रक्षा के लिए,
- समाज के विकास के लिए,
- सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना के लिए,
- व्यापार-चक्रों के प्रभावों को कम करने के लिए,
- प्राकृतिक प्रकोपों को दूर करने के लिए,
- जनोपयोगी सेवाओं के लिए,
- प्रशासनिक सेवाओं के लिए।
लोक व्यय में वृद्धि के कारण
राज्य की क्रियाओं में वृद्धि
सरकारें उपभोक्ताओं को नि:शुल्क अथवा लागत से कम मूल्य पर जो सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं, उनका क्षेत्र अब काफी बढ़ गया है। शिक्षा, जनता का स्वास्थ्य तथा जनता के लिए मनोरंजन की व्यवस्था इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। मकानों तथा चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था वे नये क्षेत्र हैं जिनमें सरकारें प्रविष्ट हो चुकी हैं। इन सेवाओं की व्यवस्था सरकार इस सिद्धांत को दृष्टिगत रखकर करती है कि लाभ प्राप्तकर्ता अपने धन से इन सेवाओं का जितना उपयोग कर सकते हैं, उन के मुकाबले यदि सरकार इन सेवाओं का अधिक उपभोग करा सके तो वह जनहित में ही होगा। सरकारों ने रेलों तथा सड़कों जैसे सार्वजनिक निर्माण के कार्यों पर किये जाने वाले खर्चों में इसलिए काफी वृद्धि की है, ताकि लोगों की कठिनाइयाँ कम की जा सके और बेकार पड़े श्रम तथा साधनों का उपयोग Reseller जा सके। इस प्रकार का व्यय देश को मन्दी की स्थिति से उबारने की दृष्टि से भी वांछनीय माना जाता है। इस संदर्भ में, यह माना जा सकता है कि वर्तमान समय में राज्य की क्रियाओं में वृद्धि से सम्बन्धित वैगनर का नियम (Wagner’s law) सार्वलौकिक Reseller से सही है। वैगनर का कहना था कि राज्य के कार्यों में व्यापक And गहन वृद्धि (extensive and intensive increase) की Single स्थायी प्रवृत्ति पाई जाती है। राज्य नये-नये कार्यों को निरन्तर अपने हाथ में लेते जा रहे हैं और पुराने कार्यों को और अधिक बड़े पैमाने पर अधिक कुशलता के साथ सम्पन्न कर रहे हैं। अत: इस बढ़ते हुए कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अधिकाधिक सरकारी व्यय को आश्रय लिया जा रहा है।
औद्योगिक विकास
औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) से संसार के अधिकांश देशों के केवल औद्योगिक ढाँचे में ही आमूल परिवर्तन नहीं हुआ अपितु उनका राजनैतिक व सामाजिक Reseller भी काफी बदल गया है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद आविष्कारों की लम्बी शृंखला के कारण जहाँ उत्पादन की विधियों में भारी परिवर्तन हुए, वहाँ इन परिवर्तनों में राजनैतिक व सामाजिक कारणों ने भी अपना योगदान दिया। औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि के साथ ही साथ लोगों की आय तथा उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठा, जनसंख्या के Single बड़े भाग को सहारा मिला और उनमें अपनी नई-नई Needओं को सन्तुष्ट करने की क्षमता आई। इन सब परिवर्तनों के साथ ही, समस्याओं का जन्म हुआ, जिसके फलस्वReseller श्रम-सम्बन्धों (labour relations), उद्योग-धन्धों के नियमन, उपभोक्ताओं के संरक्षण, धन तथा आय के वितरण और आर्थिक अSafty से सम्बन्धित सरकार के कार्यों व खर्च में वृद्धि हुई।
सामाजिक Safty में वृद्धि
वर्तमान काल में राज्यों ने सामान्यतया कल्याणकारी राज्यों का Reseller धारण कर लिया है और समस्त देश में अपने श्रमिकों को किसी न किसी Reseller में सामाजिक Safty प्रदान करते हैं। सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे देखें कि उद्यमी श्रमिकों को वास्तविक मजदूरी दे रहे हैं या नहीं तथा उन के लिए पर्याप्त Reseller से सामाजिक Safty प्रदान की गई है या नहीं। इस प्रकार वर्तमान सरकारें अपने नागरिकों की सामाजिक Safty जैसे, औद्योगिक श्रमिकों के लिए वृद्धावस्था में पेन्शन, आश्रित लाभ, नि:शुल्क शिक्षा, बीमारी में सहायता, दुर्घटना लाभ, चिकित्सा सुविधा आदि पर बड़ी मात्रा में व्यय करती हैं। इसके अलावा कई सरकारों ने गृह-निर्माण में सहायता तथा बेरोजगारी लाभ की योजनाएँ शुरू की हैं। आजकल सरकार अपने नागरिकों के लिए स्वास्थ्य And चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने के लिए काफी मात्रा में व्यय करती है। भारतवर्ष में भी सन् 1948 में राज्य अधिनियम के अन्तर्गत कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।
उद्योग-धन्धों तथा व्यापार का राष्ट्रीयकरण
व्यापार तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण सरकार की ओर से Reseller जाने वाला Single ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सरकार जनता के लिए न्यूनाधिक Reseller से वाणिज्यिक आधार पर वस्तुएँ सेवाएँ प्रदान करने की व्यवस्था करती है। सरकार ऐसे उत्तरदायित्व को अपने ऊपर कई कारणों से ले सकती है, जैसे Singleाधिकारों (monopolies) अथवा अद्धर्-Singleाधिकारों के नियमन की कठिन समस्या के समाधान के लिए, उपभोक्ताओं को घटी कीमतों पर वस्तुएँ तथा सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए अथवा गैर-सरकारी आर्थिक गतिविधियों की सीमा निर्धारित करने के लिए। इससे धन तथा आय के वितरण और श्रम की दशाओं में भी सुधार की सम्भावना रहती है। परन्तु राष्ट्रीयकरण किये गये उद्योगों की क्षति पूर्ति के भुगतान तथा उन उद्योगों की स्थापना व संचालन के लिए सरकार को भारी मात्रा में व्यय करने पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार निजी व्यवसाय तथा व्यापार को भी इसलिए अपने अधिकार में ले सकती है जिससे वह समस्याओं को हल कर सके तथा राजकोष (treasury) के लिए अधिक लाभ कमा सके।
कृषि विकास
किसी देश विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश की Meansव्यवस्था का कृषि विकास उसकी Meansव्यवस्था के विकास की धुरी होता है। आर्थिक विकास के लिए कृषि तथा गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों के विकास करने के लिए सुविधाएँ प्रदान करनी आवश्यक होती हैं क्योंकि दोनों क्षेत्र परस्पर निर्भर करते हैं। उदाहरणार्थ, कृषि आय में वृद्धि होने से औद्योगिक वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वReseller औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार कृषि तथा उद्योगों में परस्पर निर्भरता होती है। इस निर्भरता को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-छषि क्षेत्र का कच्चा माल उद्योगों में आगतों (inputs) के Reseller में काम में लाया जाता है। इसी प्रकार उद्योगों का निर्गत (output) कृषि क्षेत्र में आगतों के Reseller में प्रयोग होता है। इस प्रकार भारत जैसे देश में आर्थिक And सामाजिक विकास को द्रुतगति प्रदान करने के लिए कृषि ढाँचे को मजबूत करना जरूरी है। इसलिए विकासशील देश अपने कृषि विकास के लिए बड़ी मात्रा में व्यय कर रहे हैं। सरकार किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना, निर्यातों को अनुदान, कृषिगत वस्तुओं का निर्धारित मूल्य पर क्रय, तटकर सुविधा प्रदान करना इत्यादि सुविधाओं पर व्यय करती है। इसके अतिरिक्त सरकार कृषि अनुसन्धान And कृषिगत साधनों के निर्माण पर काफी मात्रा में व्यय करती है।
कीमतों के बढ़ने की प्रवृत्ति
संसार के प्रत्येक देश में कीमतों में वृद्धि की जो प्रवृत्ति पाई जाती है, उसके कारण भी सरकारी व्यय बढ़ता नजर आता है। मूल्य-स्तर में वृद्धि होने के साथ ही सरकारें इस बात के लिए बाध्य हो जाती हैं कि वे उन वस्तुओं व सेवाओं के लिए अधिक धन का भुगतान करें जिन्हें कि वे चाहती हैं और सरकारी कर्मचारियों के वेतन तथा महँगाई भत्ते में वृद्धि करें। यह स्थिति सरकारी व्यय का और विस्तार करती है, यद्यपि इस विस्तार से यह आवश्यक नहीं है कि सरकारी क्रियाओं में भी वृद्धि हो। इस प्रकार सरकारी व्यय में जो वृद्धि होती है, वह जितनी वास्तविक होती है, उससे कुछ अधिक ही दिखाई देती है।
प्रतिरक्षा की समस्या
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश की प्रतिरक्षा की समस्या सरकारी खर्च की वृद्धि का Single प्रमुख कारण बन गई है। कोई देश अपनी प्रतिरक्षा के लिए सेनाओं को शक्तिशाली बनाना चाहता है तो Second केवल आत्मरक्षा के लिए ही ऐसा पग उठाने को विवश हो जाते हैं। Fight सम्बन्धी हथियारों के निर्माण तथा सेना के रख-रखाव पर भारी धनराशि व्यय करनी होती है। पिफर, Fight लड़ने की विधियों में दिन-रात जो परिवर्तन होते रहते हैं उन के कारण भी सेना को नये-नये हथियारों की Need होती है। इससे पुन: राज्य पर खर्च का भार बढ़ता है। प्रतिरक्षा व्यय में केवल सैनिकों तथा सैनिक सामग्री का व्यय ही सम्मिलित नहीं होता है बल्कि सैनिकों की पेन्शन तथा Fight हेतु लिए गये ऋण पर ब्याज भी शामिल होता है। Fight के विज्ञान और कला में इतनी अधिक प्रगति हुई है कि आज के शस्त्र कल पुराने तथा अप्रचलित हो जाते हैं जिससे Fight व्यवस्था बड़ी खर्चीली हो गयी है। काफी देश Safty पर अपनी राष्ट्रीय आय का बड़ी मात्रा में व्यय कर रहे हैं। उदाहरणार्थ, पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय आय का लगभग 15 प्रतिशत तथा भारत लगभग 5 प्रतिशत व्यय करते हैं। भारत में यह व्यय 1950-51 में केवल 164.13 करोड़ रु. था जो 1986-87 के बजट में 9728 करोड़ रुपया आँका गया है।
नगरीकरण या शहरीकरण
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जनसंख्या का बढ़ता हुआ शहरीकरण भी सरकारी खर्च की वृद्धि का Single महत्त्वपूर्ण कारण है। नगरों पर बढ़ती हुई लागत का नियम पूर्णतया लागू होता है। नगर का आकार बढ़ने के साथ ही साथ जल-पूर्ति, यातायात सेवा व उसका नियन्त्रण, पुलिस संरक्षण, स्वास्थ्य तथा सपफाई आदि सेवाओं पर किये जाने वाले खर्च की प्रति व्यक्ति लागत भी बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त अस्पतालों, सड़कों, गलियों, रोशनी, खेल के मैदान तथा सामुदायिक हॉल आदि के निर्माण व रख-रखाव के कारण तथा जीवनपयोगी अनिवार्य पदार्थों के वितरण व नियन्त्रण के कारण भी सरकारों पर खर्च का अतिरिक्त भार पड़ता है।
सरकार के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन
सरकारी खर्च में कुछ वृद्धि इस कारण भी हुई है क्योंकि पिछले वर्षों में सरकार के प्रति सामान्य दृष्टिकोण में काफी परिवर्तन हुआ है। Single शताब्दी पूर्व तो लोग सरकार के नाम से भी डरते थे और उसे निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शक्ति का प्रतीक समझते थे। किन्तु आज इस सम्बन्ध में सर्वसामान्य दृष्टिकोण यह है कि सामान्य व्यक्ति के लिए अच्छी वस्तु तथा All व्यक्तियों के लिए अधिक सुविधापूर्ण जीवन तब तक उपलब्ध नहीं कराया जा सकता, जब तक कि काफी मात्रा में सरकार पर निर्भर न रहा जाये। सरकार के प्रति दृष्टिकोण में इस परिवर्तन के अनेक कारण हैं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कारणों का History नीचे Reseller जा रहा है-
- तकनीकी परिवर्तन-तकनीकी परिवर्तनों के कारण भी परस्पर निर्भरता की भावना में वृद्धि हुई है तथा इस कारण भी अनेक लोग ऐसी शक्तियों के बीच कार्य करने में असमर्थ रहते हैं जो कि उन के नियंत्रण से पूरी तरह बाहर होती हैं।
- जब व्यवसाय तथा उत्पादन की छोटी-छोटी इकाइयाँ हुआ करती थीं-आर्थिक पद्धति Single स्वयं चलित मशीनरी के Reseller में अच्छी प्रकार कार्य करती दिखाई देती थी, वही आर्थिक पद्धति जब Singleाधिकारी नियन्त्रण के अधीन दलदल में फँसी हुई तथा अनेक प्रकार से शोषण सी करती हुई दिखाई देती है। इसी के फलस्वReseller सरकार से यह माँग की जाने लगी कि वह व्यावसायिक मन्दी का प्रतिरोध करे तथा अद्धर्-व्यवसाय को सन्तुलित रखे। कुछ लोग यहाँ तक जोर डालते हैं कि सरकार को आर्थिक स्थिरता बनाये रखने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी चाहिए, परन्तु ऐसा होना तभी सम्भव है जबकि सरकारी खर्च में वृद्धि की जाये।
- Human कल्याण-वर्तमान समय में Humanता की भावना के अधिकाधिक विकास के कारण किसी भी देश में विद्यमान व्यापक गरीबी को बहुत बुरा समझा जाता है और उसको मिटाने के लिए सामूहिक पग उठाने का सुझाव दिया जाता है। इस स्थिति में सरकार का सहयोग अनिवार्य हो जाता है। और सार्वजनिक कल्याण तथा सार्वजनिक निर्माण के कार्यों के लिए उसे भारी व्यय का आशय लेना होता है।
- आर्थिक व राजनीतिक जटिलताएँ-यह भी अनुभव Reseller जाता है कि आजकल राजनीतिक व आाख्रथक समस्याओं की जटिलताएँ बहुत बढ़ गई हैं। अन्य कारणों में भी Single कारण है जो शिक्षा तथा अन्य अनेक ऐसी कल्याणकारी क्रियाओं के लिए बड़ी मात्रा में खर्च की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है जैसे कि चिकित्सा, मकान, पुलिस तथा गृह प्रशासन आदि।
आर्थिक विकास
अल्पविकसित देशों में भी सरकारी व्यय तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे देशों में अधिकतर देश अपने यहाँ तीव्र आर्थिक विकास के कार्यक्रमों को लागू करते हैं। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत परिवहन, संचार तथा विद्युत जैसी मूलभूत आर्थिक सेवाओं की व्यवस्था की जाती है। राज्य के लिए यह आवश्यक होता है कि वह उच्च कोटि के आर्थिक व सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था करे ताकि उद्योग-धन्धे तेजी से विकसित हो सके। इसके अतिरिक्त अधिकांश आधुनिक सरकारों की यह Single नीति बन गई है कि उत्पादन के प्रयासों में निजी व्यक्तियों की मदद की जाये। कृषकों तथा उद्योगपतियों को उपादान (bounties), कर्ज (loans) तथा सहायक अनुदान (grant-in-aid) देकर वे ऐसा करती हैं। यही नहीं, विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कर के भी सरकार द्वारा उनकी सहायता की जाती है जैसे कि तकनीकी मार्ग-दर्शन तथा कच्चे माल आदि की सहायता।
आर्थिक नियोजन
All देशों ने रूस की आर्थिक नियोजन की सफलता से प्रभावित होकर अपने आर्थिक विकास नियोजित Reseller में करने आरम्भ कर दिये हैं। आर्थिक नियोजन में इस प्रकार के प्रयास किये जाते हैं कि उपलब्ध साधनों का इस प्रकार से शोषण Reseller जाये ताकि चहुँमुखी आर्थिक विकास के साथ लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठे तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो। आर्थिक नियोजन के लिए सरकार को बड़ी-बड़ी परियोजनाएँ बनानी पड़ती हैं जिनको पूरा करने के लिए काफी मात्रा में धन की Need होती है। देश व विदेशों से ऋण लेने के बाद भी यदि व्यय की पूर्ति नहीं होती है तो घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रबन्ध करना पड़ता है। उदाहरण के लिये, भारत में अब तक छ: पंचवष्र्ाीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं और उन पर क्रमश: अधिक व्यय हुआ है। Sevenवीं योजना में पिछली योजनाओं से कहीं अधिक व्यय की व्यवस्था की गई थी। Sevenवीं योजना (1985-90) के लिए रखी गई राशि 1984-85 की कीमतों के आधार पर थी। छठी योजना में वास्तविक कुल व्यय 11, 000 करोड़ रुपया हुआ है। Sevenवीं योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 1, 80, 000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। आठवीं योजना 1992-1997 के लिये है।
जनसंख्या में वृद्धि
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का Single अन्य महत्त्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि दर भी है। बढ़ी हुई जनसंख्या के सुख और सुविधाओं के लिए सरकार को काफी मात्रा में व्यय करना पड़ता है। विगत वर्षों में जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के According विगत 45 वर्षों में विश्व की जनसंख्या 155 करोड़ से बढ़कर 415 करोड़ हो गई है। भारत की जनसंख्या 1981 की जनगणना के According 68.38 करोड़ हो गई है। भारत की आबादी में लगभग 2.5 प्रतिशत की वाख्रषक वृद्धि हो रही है। जनसंख्या वृद्धि से न केवल राज्य के प्रशासन के व्यय में वृद्धि होती है बल्कि उन के सुख-सुविधाओं की वृद्धि करने पर राज्य के व्यय में वृद्धि हो जाती है। सरकार को बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, आवास आदि पर काफी मात्रा में व्यय करना पड़ता है।
अन्य कारण
- मूल्यों में वृद्धि-द्वितीय महाFight के बाद प्रत्येक देश में कीमतों में बहुत वृद्धि हुई है। मूल्य स्तर में वृद्धि के फलस्वReseller सरकार को First की अपेक्षा अधिक व्यय करना पड़ रहा है। Single तो सरकार को स्वयं कई वस्तुएँ And सेवाएँ खरीदनी पड़ती हैं तथा द्वितीयत: सरकार उत्पादन के लिए जो भी व्यय का अनुमान लगाती है, कीमतों में वृद्धि होने के कारण सरकार को उस उत्पादन पर First की अपेक्षा अधिक खर्च करना पड़ता है।
- राष्ट्रीय आय And जीवन-स्तर में वृद्धि-पिछले वर्षों में आर्थिक विकास के फलस्वReseller राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई जिसके फलस्वReseller लोगों के जीवन-स्तर में वृद्धि हुई है। सरकार को इस जीवन-स्तर के बढ़ने के साथ-साथ अधिक व्यय करना पड़ रहा है।
- प्रजातन्त्र का भार-विश्व में अनेक देशों में प्रजातन्त्रीय सरकार है। इसके लिये सरकार को मुख्य चुनाव And मध्यावधि चुनाव कराने पड़ते हैं जिनको सम्पन्न कराने के लिए सरकार को काफी व्यय करना पड़ता है। इसके अलावा मन्त्री And अन्य चुने हुए प्रतिनिधियों पर सरकार को काफी व्यय करना पड़ता है। सरकारों को अन्य देशों से भी कूटनीतिक सम्बन्ध बनाये रखने पड़ते हैं। Second देशों में राजदूतावास खोलने पड़ते हैं जिन पर भी सरकार को काफी व्यय करना पड़ता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-वर्तमान युग में प्रत्येक देश को Second देशों से आर्थिक सहयोग करना पड़ता है। प्रत्येक सरकार किसी न किसी देश की ऋण, अनुदान And अन्य आर्थिक सहायता देती है। इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण And विकास बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ, एशियन बैंक इत्यादि संस्थाओं को भी समय-समय पर सरकार को सदस्यता शुल्क देना होता है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बनाये रखने के लिए सरकारों को काफी व्यय करना पड़ रहा है।