राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्य
भारत का राष्ट्रपति राज्य-अध्यक्ष और मुख्य कार्यपालिका होता है। अनुच्छेद 53 के According संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास हैं और उसके द्वारा इन शिक्यों का प्रयोग संविधान के According प्रत्यक्ष Reseller में अपने द्वारा या अपने अधीन अधिकारियों के द्वारा Reseller जाएगा। परन्तु Single संसदीय प्रणाली के राज्य-अध्यक्ष के Reseller में वह नाममात्र शक्तियाँ रखता हुआ केवल Single संवैधानिक मुखिया की तरह ही कार्य करता है। 42वीं संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट Reseller गया है कि राष्ट्रपति के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपनी All शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल, जिसका मुखिया प्रधानमंत्री है, के परामर्श According करेगाा। परन्तु इस पाबंदी के बावजूद राष्ट्रपति भारत का सर्वोच्च पद संभालता है, वह Indian Customer प्रभुसत्ता का व्यक्तिगत Reseller से प्रतिनिधित्व करता है, सर्वोच्च स्थिति का उपभोग करता है और भारत की राजनीतिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। Indian Customer राजनीतिक प्रणाली में राष्ट्रपति की भूमिका के बारे में Discussion उसकी शक्तियों और उत्तरदायित्वों के बारे संक्षिप्त ज्ञान लेने के बाद ही की जा सकती है। उसकी शक्तियों की कुछ शीर्षकों के अधीन Discussion हो सकती है।
राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियाँ
अनुच्छेद 53 के According संघ की All कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास हैं। राष्ट्रपति संघ की Safty सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है।
प्रKingीय शक्तियाँ
राष्ट्रपति कार्यपालिका और प्रशासन का मुखिया होता है। राष्ट्रपति को यह भी कार्यपालिका शक्तियाँ अनुच्छेद 53 के अधीन मिली हुई है। अनुच्छेद 77 के According भारत सरकार की All कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम पर Reseller जाता है। वह प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है और प्रधानमंत्री के परामर्श पर अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है। वह सरकार के कार्य को आसानी से चलाने के लिए नियम बनाता है। वह मन्त्रियों में विभागों का बँटवारा करता है और इस बँटवारे को वह बार-बार परिवर्तित कर सकता है। वह मन्त्रिमण्डल के द्वारा प्रशासन चलाए जाने को विश्वसनीय बनाना है। मन्त्री राष्ट्रपति की इच्छा तक पद पर रहते हैं’ अनुच्छेद 75 (2)A परन्तु राष्ट्रपति अपने All कार्य प्रधानमंत्री के परामर्श के According ही करता है। वह संसद में बहुमत प्राप्त पार्टी के नेता को प्रधानमन्त्री को नियुक्त करता है। यदि किसी भी पार्टी को बहुमत प्राप्त नहीं होता तो वह किसी संसद सदस्य जो उसकी दृष्टि में बहुसंख्या का समर्थन कर सकता है, के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल संगठित किए जाने को विश्वसनीय बनाता है। वह प्रधानमन्त्री को Single निर्धारित समय में सदन में अपना बहुमत सिद्व करने के लिए कह सकता है। जून, 1991 में राष्ट्रपति वेंकटरमन ने 10वीं लोकसभा में Single बड़े समूह के नेता कांग्रेस (आई) नेता श्री नरसिम्हा राव को प्रधानमन्त्री के Reseller में मनोनीत Reseller और उनको Single महीने के अंदर बहुमत सिद्व करने के लिए कहा। श्री राव अपनी Appointment समय संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। पिफर भी श्री नरसिम्हा राव ने 14 जुलाई, 1991 को लोकसभा में अपना बहुमत सिद्व कर दिया। मई, 1997 में राष्ट्रपति एस.डी. शर्मा ने Single सबसे बड़ी पार्टी के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा) को प्रधानमन्त्री के Reseller में मनोनीत Reseller परन्तु 12 दिनों के बाद उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि उन्होंने देखा कि लोकसभा में बहुमत जुटा सकना उनके लिए संभव नहीं था। इसके बाद राष्ट्रपति ने 13 दलों के साझे गठबन्धन के नेता श्री देवेगौड़ा को सरकार बनाने का निमन्त्रण दिया, जिनको कांग्रेस (आई) और सी.पी.एम. ने बाहर से समर्थन दिया था। श्री एच. डी. देवेगौड़ा ने संसद में अपना बहुमत सिद्व कर दिया परन्तु वह केवल 10 महीने ही बहुसंख्या का समर्थन अपने साथ रख सके। 31 मार्च, 1997 को कांग्रेस ने प्रधानमन्त्री श्री देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली साझा गठबन्धन सरकार से समर्थन वापस ले लिया। परिणामस्वReseller में 12 अप्रैल 1997 को श्री गुजराल ने प्रधानमन्त्री पद संभाला और उनकी सरकार 24 घंटे के अंदर लोकसभा में विश्वास का वोट प्राप्त करने में सफल रही। परन्तु श्री आई.के. गुजराल की सरकार भी केवल कुछ महीनों तक पद पर रह सकी और नवम्बर, 1997 तक कांग्रेस के द्वारा समर्थन वापस लेने पर श्री आई.के. गुजराल को त्याग-पत्र देना पड़ा।
मार्च, 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव हुए, परन्तु इन चुनावों में भी किसी Single दल को स्पष्ट बहुमत न मिला। भाजपा के नेतृत्व में बने गठबन्धन ने सबसे अधिक सीटें (252) प्राप्त की और राष्ट्रपति ने भाजपा नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त Reseller और 28 मार्च, 1998 को भाजपा की सरकार ने लोकसभा में बहुमत प्राप्त कर लिया। परन्तु यह सरकार भी अप्रैल, 1999 तक ही सत्ता में रह सकी। 14 अप्रैल, 1999 को ए.आई.ए. डी.एम.के. (AIADMK) ने इस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और 17 अप्रैल, 1999 को यह सरकार लोकसभा में Single वोट के अन्तर से विश्वास मत प्राप्त करने में असफल रही। इसके बाद राष्ट्रपति ने यह अनुभव Reseller कि कोई भी पार्टी या गठबन्धन नई सरकार बनाने की क्षमता नहीं रखता था। इसलिए उन्होंने 12वीं लोकसभा भंग कर दी और वाजपेयी सरकार का नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक सरकार (Caretaker Government) के Reseller में बने रहने का निर्देश दिया। अक्तूबर 1999 में 13वीं लोकसभा में राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन (NDA) ने बहुमत प्राप्त कर लिया और राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने इसके नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त Reseller। यह सरकार अप्रैल 2004 तक सत्ता में रही। 14वीं लोकसभा के चुनावों (मार्च-अप्रैल 2004) में किसी Single दल अथवा गठबन्धन को बहुमत तो प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु कांग्रेस को तथा इसके गठबन्धन को सबसे अधिक सीटें प्राप्त हुर्इं। पिफर CPM, CPI तथा कुछ अन्य दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबन्धन को बाहर से समर्थन देने का निर्णय लिया। राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस गठबन्धन को सरकार बनाने का निमन्त्रण दिया। 22 मई, 2004 को प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यू.पी.ए. सरकार ने सत्ता सम्भाल ली तथा बाद में लोकसभा में अपना बहुमत सिद्व कर दिया।
इस प्रकार राष्ट्रपति उस नेता को प्रधानमंत्री के Reseller में मनोनीत करता है, जिसको लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो। ऐसा नेता चाहे संसद का सदस्य न भी हो या संसद के किसी भी सदन का सदस्य हो। तो भी राष्ट्रपति उसको प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है। परन्तु संसद का सदस्य न होने की स्थिति में उसको 6 महीने के अंदर लोकसभा या राज्यसभा में से किसी Single सदन का सदस्य बनना होता है। असफल रहने पर वह प्रधानमंत्री के पद पर नहीं रह सकता। अनुच्छेद 78 के अधीन प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह प्रशासन से सम्बन्धित All मामलों की जानकारी राष्ट्रपति को दे। राष्ट्रपति कोई भी जानकारी लेने के लिए प्रधानमंत्री को कह सकता है। राष्ट्रपति के द्वारा इस अधिकार के प्रयोग के कारण प्रधानमंत्री से टकराव वाली स्थिति पैदा हो सकती है। जैसा कि 1987 के आरंभ में घटित हुआ था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राष्ट्रपति के जानकारी मांगने के अधिकार पर आपत्ति जताई थी और उसकी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को बोफोर्स तोपों से सम्बन्धित कुछ जानकारी देने से इंकार कर दिया था। राष्ट्रपति ने स्टैंड लिया था कि उसका उत्तरदायित्व था कि वह ली गई शपथ के According संविधान के अनुच्छेद 78 की व्यवस्थाएँ स्थापित रखे और इनकी रक्षा करे। इसके लिए उनके लिए यह आवश्यक हो जाता था कि वह केन्द्रीय प्रशासन से सम्बन्धित All मामलों से जुड़े रहें। परन्तु All ब्यौरे नहीं। परन्तु राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के बीच टकराव में दोनों का अहंकार अधिक था और इस टकराव में संवैधानिक व्यवस्थाओं को लेकर विचारों में गंभीर मतभेदों का योगदान कम था। अन्य राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों ने संसदीय प्रणाली की मांग और राष्ट्रपति के ऊँचे पद के मान-सम्मान को सफलतापूर्वक बनाए रखा। इस समय भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच सक्रिय और अच्छे सम्बन्ध स्थापित हैं।
Appointmentयाँ करने की शक्तियाँ
All प्रमुख Appointmentयाँ राष्ट्रपति के द्वारा की जाती हैं। वह प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है और उसके परामर्श पर केन्द्र सरकार के अन्य मंत्रियों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपालों, लैफ्रटीनैंट गवर्नरों, केन्द्र शासित क्षेत्रों के मुख्य कमिश्नरों, भारत के अटारनी जनरल, कम्पट्रोलर और आडीटर जनरल, यू.पी. एस.सी. के चेयरमैन और सदस्यों, निर्वाचन आयोग, अन्य संवैधानिक कमिशनों और अन्य देशों में Indian Customer राजदूतों, हाई कमिश्नरों, वाणिज्यक दूतों तथा अन्य दूतों की Appointment करता है। All उच्च-स्तरीय Appointmentयाँ राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श पर की जाती हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश की Appointment के समय वह सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों से भी परामर्श करता है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की Appointment समय वह भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की Appointment समय राज्यपाल और सम्बन्धित राज्य के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है।
विदेशी सम्बन्धों में भूमिका
देश का मुखिया होने के नाते राष्ट्रपति भारत के विदेशों में स्थित राजदूतों और दूतों को परिचय पत्र (Credentials) देता है और वह भारत में विदेशी राजदूतों का स्वागत करता है। All वूफटनीतिक गतिविधियाँ उसके नाम पर होती हैं। भारत सरकार के द्वारा बहुपक्षीय और द्विपक्षीय All सन्धियाँ और समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं। नए देशों से वूफटनीतिक सम्बन्ध राष्ट्रपति के नाम पर ही स्थापित किए जाते हैं।
सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च सेनापति के Reseller में कार्य
अनुच्छेद 53 में दर्ज है कि राष्ट्रपति देश की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर है। वह Safty सेनाओं से सम्बन्धित All उच्च-स्तरीय Appointmentयाँ और पदोन्नतियाँ करता है परन्तु वह इन All शक्तियों का प्रयोग कानून और संविधान के According करता है। वह शान्ति और युद्व के दौरान वीरता और शानदार सेवा के लिए All सैनिक सम्मान और उपाधियाँ प्रदान करता है।
केन्द्रशासित क्षेत्रों और अनुसूचित तथा कबीली क्षेत्रों के प्रशासन से सम्बन्धित शक्तियाँ
संघीय क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति के अधीन होता है। अनुच्छेद 243 राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह केन्द्र शासित क्षेत्रों का प्रशासन राज्यपालों या मुख्य कमिश्नरों या अपने द्वारा मनोनीत किसी अन्य सत्ताधारी के द्वारा चलाए। वह किसी संघीय क्षेत्र का प्रबंध चलाने के लिए पड़ोसी राज्य के राज्यपाल को भी कह सकता है। ऐसा राज्यपाल सदैव ही राष्ट्रपति के निर्देशों के According कार्य करता है। राष्ट्रपति के पास यह भी अधिकार है कि वह अनुसूचित कबीली क्षेत्रों का प्रशासन चलाए। वह राज्यों के बीच झगड़ों के निपटारे के लिए पूर्ण Reseller से जांच करने पर परामर्श देने के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकता है। राष्ट्रपति अंडमान और निकोबार टापुओं के संघीय क्षेत्रों के शान्ति, उन्नति और उनके अच्छे प्रशासन के लिए नियम बना सकता है।
राष्ट्रपति और कानून-निर्माण
संविधान के According संघ की कानूनी शक्तियों संसद के पास हैं और राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य नहीं होता। परन्तु संविधान के अनुच्छेद 79 में दर्ज है कि फ्संघ की संसद राष्ट्रपति और दोनों सदनों पर आधारित होगी। इसका Means है कि राष्ट्रपति संसद का सदस्य बने बिना ही संसद का Single अटूट भाग होता है और उसके पास विशाल वैधानिक शक्तियाँ होती हैं। राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के बिना संसद के द्वारा पास Reseller गया कोई भी बिल कानून नहीं बन सकता। राष्ट्रपति के पास वैधानिक शक्तियाँ हैं-
- राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह संसद या इसके किसी Single सदन का अधिवेशन बुला सकता है और संसद के अधिवेशन को लम्बे समय के लिए उठा सकता है परन्तु संसद के किसी भी अधिवेशनों के बीच 6 महीने से अधिक का अन्तर नहीं हो सकता।
- राष्ट्रपति 5 वर्षों का कार्यकाल पूर्ण होने से First लोकसभा भंग कर सकता है।
- यदि किसी बिल/मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों के बीच बिल या विषय पर मतभेद पैदा हो जाए तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का साझा अधिवेशन बुला सकता है।
- राष्ट्रपति किसी भी समय संसद के किसी या दोनों सदनों को सम्बोधन कर सकता है।
- राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव के बाद संसद के First अधिवेशन के अवसर पर संसद के दोनों सदनों को सम्बोधित करता है और प्रत्येक वर्ष संसद के First अधिवेशन को अपने भाषण से आरंभ करता है। वह प्रत्येक वर्ष First दिन नए अधिवेशन को सम्बोधित करता है और उनका भाषण सरकार की नीतियों का ब्यौरा होता है। यह भाषण प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के द्वारा तैयार Reseller गया होता है।
- यदि राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि एंग्लो-इंडियन समुदाय को सदन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो वह इस समुदाय के दो सदस्य लोकसभा में मनोनीत कर सकता है।
- राष्ट्रपति कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र से सम्बन्धित 12 व्यक्तियों को राज्यसभा में मनोनीत कर सकता है।
- राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह संसद के किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है। यह संदेश: (1) सदन में Discussion अधीन किसी बिल या (2) अन्य कोई विषय जिस पर सदन का विचार-विमर्श आवश्यक हो, से सम्बन्धित हो सकता है। राष्ट्रपति के द्वारा भेजे ऐसे संदेश पर सम्बन्धित सदन के लिए विचार करना आवश्यक होता है।
- धन बिल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर ही लोकसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
- किसी राज्य के पुनर्गठन या सीमाओं या नामों के परिवर्तन से सम्बन्धित बिल केवल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से ही संसद में पेश किए जा सकते हैं।
- राष्ट्रपति राज्य के उन All ऐसे बिलों की स्वीकृति या स्वीकृतियाँ देता है, जिनको राज्यपाल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखता है।
- संसद के द्वारा पास Reseller कोई भी बिल राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के बाद ही कानून बनता है। राष्ट्रपति ऐसे किसी बिल पर अपनी Agreeि रोक सकता है। मंत्रिमंडल राष्ट्रपति की स्वीकृति लेने या राष्ट्रपति के संदेश से बिल संसद को वापस भेज देता है (अनुच्छेद 111)। 1988 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इंडियन पोस्टल ऐक्ट (संशोधन) बिल को इसके विवादग्रस्त तथ्यों के कारण रोक लिया था। सरकार ने अनुच्छेद 111 के अधीन कार्यवाही पर बल नहीं दिया था। इसमें मालूम होता है कि यद्यपि राष्ट्रपति सदैव ही संसद के द्वारा पास किए बिल के सम्बन्ध में मंत्रिमंडल के परामर्श को मानता है परन्तु All मामलों में उनसे Agree होना आवश्यक नहीं होता। राष्ट्रपति किसी भी साधारण बिल हो पुन: विचार-विमर्श के लिए संसद को वापस भेज सकता है परन्तु यदि संसद उस बिल को पुन: पारित कर देती है तो राष्ट्रपति उसको दूसरी बार रोक नहीं सकता। उसको ऐसे बिल पर हस्ताक्षर करने ही होते हैं।
- असाधारण स्थिति में जैसे प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की सरकार, जिसने 1997-1998 का बजट पेश Reseller था और केन्द्रीय संसद के द्वारा यह बजट पास करने से First ही यह सरकार गिर गई थी, तो राष्ट्रपति ने लोकसभा के स्पीकर पी.ए. संगमा और अन्य दलों के नेताओं से विचार-विमर्श के बाद ऐसा वातावरण तैयार Reseller, जिससे बजट पेश करने के बाद परन्तु बजट पास करने से First बी.जे.पी. की सरकार गिर पड़ी थी और राष्ट्रपति ने संसद को निर्देश दिया था कि बजट को शीघ्र पास Reseller जाए और ससंद के द्वारा बजट होने के बाद ही राष्ट्रपति ने 25 अप्रैल, 1999 को संसद Meansात् लोकसभा को भंग Reseller था।
- संसद के दो अधिवेशनों के अन्तराल के दौरान राष्ट्रपति अध्यादेश ;आर्डीनैंसद्ध जारी कर सकता है, जिसकी शक्ति और प्रभाव संसद के द्वारा पास किए कानून जैसा होता है। राष्ट्रपति के द्वारा ऐसा अध्यादेश मंत्रिमंडल के परामर्श पर जब संसद का अधिवेशन न चल रहा हो तुरंत वैधानिक Need पूर्ण करने के लिए जारी Reseller जाता है। ऐसा प्रत्येक अध्यादेश संसद के नए अधिवेशन से संसद के दोनों सदनों के सामने रखना पड़ता है। संसद के अधिवेशन के 6 सप्ताह बीतने और या इससे First यदि दोनों सदनों की स्वीकृति किसी अध्यादेश को नहीं मिलती तो वह समाप्त हो जाता है। क्योंकि संसद के दो अधिवेशनों में अधिक-से-अधिक 6 महीने का अन्तराल हो सकता है इसके लिए राष्ट्रपति के द्वारा जारी अध्यादेश 6 महीने जमा 6 सप्ताह Meansात् साढ़े Seven महीने लागू रह सकता है।। राष्ट्रपति अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है। राष्ट्रपति के द्वारा इन All शक्तियों का प्रयोग सदैव प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श के According Reseller जाता है।
राष्ट्रपति की ऐच्छिक शक्तियाँ
- जब लोकसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिलता, कोई गठबंधन या अन्य कोई बहुमत प्राप्त गठबंधन भी न हो या न बन सके या बहुमत के समर्थन वाला कोई भी उम्मीदवार न हो जिसको प्रधानमंत्री नियुक्त Reseller जा सकता हो, तो राष्ट्रपति अपनी इच्छा के According कार्यवाही कर सकता है और प्रधानमंत्री की Appointment के लिए लोकसभा में अकेली सबसे अधिक सीटों वाली पार्टी के नेता को सरकार-निर्माण का निमंत्रण दे सकता है। जून, 1991 में राष्ट्रपति ने कांग्रेस संसदीय पार्टी के द्वारा निर्वाचित नेता श्री पी.वीनरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री मनोनीत Reseller था। उस समय जून, 1991 के आम चुनावों में कांग्रेस 225 सीटें जीत कर Single बड़े दल के Reseller में सामने आई थी। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति ने श्री नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री नियुक्त कर उन्हें अपना लोकसभा में बहुमत सिद्व करने का आदेश दिया। मार्च, 1998 में भी राष्ट्रपति ने लोकसभा में सबसे बड़े गठबंधन के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को नियुक्त Reseller और उसको लोकसभा में अपना बहुमत सिद्व करने के लिए कहा। इसी प्रकार जब 14 अप्रैल, 1999 को ए.आई. ए.डी.एम.के. (AIADMK) ने भाजपा गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया तो राष्ट्रपति जी ने प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहा। जब 17 अप्रैल, 1999 को यह सरकार विश्वास मत प्राप्त करने में असफल रही तो राष्ट्रपति जी ने Single नई सरकार बनाए जाने के प्रयास Reseller परन्तु जब यह असफल हो गई तो राष्ट्रपति ने 12वीं लोकसभा भंग कर दी और भाजपा गठबंधन सरकार को अन्तरिम सरकार के Reseller में बने रहने का आदेश दिया। इस प्रकार जब लोकसभा में किसी दल को बहुमत न मिले तो राष्ट्रपति सरकार बनाने के सम्बन्ध में अपने विवेक से कार्य ले सकता है। Indian Customer राजनीतिक प्रणाली में त्रिशंकु लोक सभाओं (Hung Parliaments) के युग के आरंभ ने सरकार बनाने की प्रक्रिया में राष्ट्रपति की शक्ति और भूमिका में वृद्वि की है।
- दूसरा क्षेत्र वह है जब राष्ट्रपति लोकसभा भंग करने के लिए कुछ परिस्थितियों में अपनी इच्छा के According कार्य कर सकता है (अनुच्छेद 85)। साधारण समय में जब बहुमत के समर्थन वाला प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का परामर्श देता है तो राष्ट्रपति के पास अन्य कोई मार्ग नहीं होता। परन्तु जब विशेष स्थिति के (जैसे नवम्बर, 1990 में वी.पी. सिंह का मामला) समय में जब प्रधानमंत्री को बहुमत नहीं मिला होता तो यह राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह ऐसे प्रधानमंत्री का परामर्श स्वीकार अथवा रद्द करे। इस मामले में राष्ट्रपति आर. वैंकटरमन ने अपनी इच्छानुसार कार्यवाही की और जनता दल (एस) के नेता श्री चन्द्र शेखर को प्रधनमंत्री के Reseller में नियुक्त Reseller था क्योंकि कांग्रेस के द्वारा बाहर रह कर चन्द्र शेखर सरकार का समर्थन करने का निर्णय Reseller गया था। जब पफरवरी 1991 में श्री चन्द्र शेखर ने राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश की तो राष्ट्रपति ने सबसे बड़े समूह कांग्रेस के नेता को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर नई सरकार बनाए जाने की संभावनाओं की जाँच करने का निर्णय लिया परन्तु नेता श्री राजीव गांधी के द्वारा सरकार बनाने से इंकार किए जाने के कारण राष्ट्रपति लोकसभा भंग करने के लिए विवश हो गए और उन्होंने श्री चन्द्र शेखर को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के Reseller में कार्य करते रहने के लिए कहा और नए चुनाव करवाने का आदेश दिया। मई-जून, 1991 में 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए। ऐसी ही स्थिति नवम्बर, 1997 में उस समय पैदा हो गई जब प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने त्याग-पत्र दे दिया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी गई और 12वीं लोकसभा चुने जाने का आदेश दिया। इस प्रकार पिफर अप्रैल, 1999 में राष्ट्रपति ने 12वीं लोकसभा भंग करने का निर्णय लिया, चाहे बीजे. पी. गठबंधन यह चाहता था कि उसको दुबारा Single नई सरकार बनाने का अवसर मिले, फरवरी 2004 में राष्ट्रपति ने एन.डी.ए. सरकार में प्रधानमंत्री वाजपेयी के परामर्श According 13वीं लोकसभा कार्यकाल पूर्ण होने से लगभग 1 वर्ष First ही भंग कर दी। इस प्रकार लोकसभा को भंग करने के निर्णय के सम्बन्ध में राष्ट्रपति अपनी इच्छा के According कार्य ले सकता है, परन्तु केवल उस स्थिति में जबकि सरकार को लोकसभा में बहुमत प्राप्त न हो।
इन दो अपवादों के अतिरिक्त राष्ट्रपति अपनी All शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श के According ही करता है।
राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ
राष्ट्रपति के पास कुछ वित्तीय शक्तियाँ भी हैं-
- कोई भी धन बिल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति बिना संसद में पेश Reseller जा सकता।
- प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरंभ में राष्ट्रपति द्वारा संसद के सामने वार्षिक वित्तीय लेखा (बजट) रखा जाता है जिसमें आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए केन्द्र सरकार की आय और खर्च के अनुमानों का description होता है।
- राष्ट्रपति द्वारा आकस्मिक व्ययों की निधि (Contingency Fund of India) पर नियंत्रण रखा जाता है। राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वह आकस्मिक व्ययों को पूर्ण करने के लिए इस पंफड में से खर्च करने की आज्ञा दे।
- समय-समय पर राष्ट्रपति वित्त आयोग नियुक्त करता है, जो केन्द्र और राज्यों के बीच राजस्व/आय के बंटवारे के बारे सिपफारिशें करता है।
राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ
राज्य के मुखिया के Reseller में राष्ट्रपति निम्नलिखित मामलों में माफी दे सकता है, दण्ड मापफ कर सकता है या बदल सकता है या घटा सकता है या सामान्य माफी दे सकता है-
- वह अपराधी जिनको मृत्यु दण्ड दिया गया हो।
- संघीय और साझी सूची के अधीन बनाए गए कानूनों के विरुद्व किए अपराधों के सम्बन्ध में, और
- सैनिक न्यायालय के द्वारा दिए गए दण्ड के All मामले।
दया की All अपीलों से निपटते समय राष्ट्रपति स्वेच्छा से कार्य कर सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति किसी भी कानूनी मामले या सार्वजनिक महत्व के किसी बिल के सम्बन्ध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है। सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए परामर्श देने के लिए पाबंद होता है (अनुच्छेद 43)। परन्तु राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए परामर्श को स्वीकार करने के लिए पाबंद नहीं होता।
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ
संविधान के 18वें भाग में संकटकालीन व्यवस्थाएँ हैं और यह राष्ट्रपति को विशेष संकटकाल स्थिति से निपटने की शक्तियाँ देती हैं। इन्हें राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ कहा जाता है। तीन प्रकार के संकटकाल की स्थितियाँ सूचीबद्व की गई हैं-(i) अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रीय संकटकाल Meansात् युद्व या बाहरी आक्रमण या देश में आंतरिक सशस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न संकटकाल (ii) अनुच्छेद 356 के अधीन किसी राज्य या कुछ राज्यों में संवैधानिक संकटकाल Meansात् राज्य में संवैधानिक मशीनरी पेफल हो जाने के कारण पैदा हुए संकटकाल की स्थिति और (iii) अनुच्छेद 360 के अधीन वित्तीय संकटकाल Meansात् देश के वित्तीय संकट के Reseller में पैदा हुए संकटकाल की स्थिति।
इन तीन प्रकार के संकटकालों में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह संकटकाल की स्थिति की घोषणा करे और संकटकाल की स्थिति से निपटने के लिए उचित कदम उठाए। उदाहरणस्वReseller यदि अनुच्छेद 352 के अधीन संकटकाल स्थिति की घोषणा की जाती है तो संविधान की संघीय व्यवस्थाएँ स्थगित हो जाती हैं, केन्द्र सरकार अपनी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग से किसी भी राज्य सरकार को कोई भी निर्देश दे सकती है। केन्द्र सरकार को यह अधिकार मिल जाता है कि वह राज्य-सूची वाले विषयों के सम्बन्ध में कानून बनाए और केन्द्र और राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्धों को संशोधित Reseller जा सकता है। जब किसी राज्य में अनुच्छेद 356 के अधीन संकटकाल की स्थिति की घोषणा की जाती है तो सम्बन्धित राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन आ जाता है। राज्य का राज्यपाल वास्तविक कार्यपालिका बन जाता है और राज्य मंत्रिमंडल/सरकार भंग हो जाती है। राज्यपाल राष्ट्रपति की ओर से राज्य का प्रशासन चलाता है और केन्द्र सरकार के All दिशा-निर्देश लागू करता है। अनुच्छेद 360 के अधीन वित्तीय संकटकाल की स्थिति के मामले में राष्ट्रपति देश की वित्तीय स्थिरता के लिए राज्यों को कोई भी निर्देश दे सकता है। वह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों सहित सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कटौती करने का आदेश दे सकता है। वह आदेश कर सकता है कि राज्य विधानपालिकाओं के द्वारा पास करने के बाद All वित्तीय बिल उसकी स्वीकृति के लिए आरक्षित रखे जाएँ।
संवैधानिक Reseller में तीन प्रकार के संकटकालों से निपटने के लिए राष्ट्रपति के पास व्यापक शक्तियाँ हैं, परन्तु ऐसी शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए अनेकों संवैधानिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। राष्ट्रपति संकटकालीन शक्तियों का प्रयोग भी प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के परामर्श से ही करता है। इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति के पास कार्यपालिका, वैधानिक, वित्तीय, न्यायिक और संकटकालीन शक्तियाँ हैं।