सर्वोच्च न्यायालय के कार्य और शक्तियां

यह न्यायालय Indian Customer न्याय-व्यवस्था की शिरोमणि है। यह भारत का सबसे उचा न्यायालय है तथा इसके निर्णय अन्तिम होते हैं। इसे प्रारंभिक तथा अपीलीय दोनों प्रकार के क्षेत्राधिकार प्राप्त थे, लेकिन यह भारत का अन्तिम न्यायालय नहीं था। इसके निर्णयों के विरुद्व अपीलें इंग्लैंड की प्रिवी कौंसिल (Privy Council of England) के पास की जा सकती थीं।

सर्वोच्च न्यायालय की Creation

Indian Customer संविधान की धारा 124 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है। (“There shall be a Supreme Court of India.”) सर्वोच्च न्यायालय में प्रारंभ में Single मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीश होते थे। 1957 में संसद में Single कानून पास हुआ, जिसके According मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर बाकी न्यायाधीशों की संख्या 7 से 10 कर दी गई। सन् 1960 में संसद ने अन्य न्यायाधीशों की संख्या 10 से बढ़ाकर 13 कर दी। परन्तु दिसम्बर, 1977 में संसद ने Single कानून पास Reseller, जिसके According सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई। अप्रैल, 1986 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 17 से 25 कर दी गई। अत: आजकल सर्वोच्च न्यायालय में Single मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश हैं।


काम की अधिकता होने पर राष्ट्रपति तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) की भी Appointment कर सकता है। तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) को भी यही वेतन तथा भत्ते मिलते हैं। Need पड़ने पर किसी सेवा-निवृत्त (Retired) न्यायाधीश को काम करने के लिए भी कहा जा सकता है।

न्यायाधीशों की Appointment

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की Appointment राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परन्तु ऐसा करते समय राष्ट्रपति केवल स्वेच्छा से काम नहीं लेता। मुख्य न्यायाधीशों की Appointment के समय राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह लेना आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की Appointment के समय मुख्य न्यायाधीश की सलाह लेनी आवश्यक होती है। तदर्थ न्यायाधीशों (Adhoc Judges) की Appointment मुख्य न्यायाधीश की सलाह से की जाती है।

न्यायाधीशों की Appointment निष्पक्षता के आधार पर की जाती है। निष्पक्षता बनी रहे, उसके लिए न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची (Seniority List) बनी हुई है, ताकि जब कभी मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हो तो जो भी वरिष्ठ न्यायाधीश हो, उसकी Appointment की जा सके। परन्तु 15 अप्रैल, 1973 को जब मुख्य न्यायाधीश सीकरी रिटायर हुए तो वरिष्ठता के सिद्वान्त का उल्लंघन हुआ और न्यायाधीश ए. एन. राय को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त Reseller गया। इसके विरोध में न्यायाधीश शीलट (Shelet), हेगडे तथा ग्रोवर ने त्याग पत्र दे दिया। एम. एच. बेग के रिटायर होने पर 22 पफरवरी, 1978 को वरिष्ठ न्यायाधीश वाई. वी. चन्द्रचूड़ (Y.V. Chandrachud) को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त Reseller गया। इस प्रका पुन: न्यायपालिका की स्वतंत्रता की स्थापना की गई।

28 जनवरी, 1980 को कानून आयोग (Law Commission) की 80वीं रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की गई थी। इस रिपोर्ट में कानून आयोग ने यह सिफारिश की थी कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के लिए वरिष्ठता के सिद्वान्त (Principal of Seniority) को कठोरता के साथ लागू Reseller जाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायाधीशों की योग्यताएँ

संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ निश्चित की गई हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में कम-से-कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो। अथवा
  3. वह किसी उच्च न्यायालय में कम-से-कम 10 वर्षों तक एडवोकेट रह चुका हो। अथवा
  4. वह राष्ट्रपति की दृष्टि में कोई प्रसिद्व विधिवेत्ता (Distinguished Jurist) हो।

न्यायाधीशों की अवधि

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकते हैं। 65 वर्ष की आयु के बाद उन्हें पद से अवकाश दिया जाता है। संसद न्यायाधीशों की अवकाश प्राप्ति की आयु बढ़ा भी सकती है। रिटायर होने के बाद उन्हें पेन्शन (Pension) दी जाती है। इससे First भी वह स्वयं त्याग-पत्र दे सकते हैं। राष्ट्रपति उन्हें अपनी स्वेच्छा से नहीं हटा सकता।

न्यायाधीशों को हटाया जाना

अयोग्यता और दुराचार (“Incapacity or Proved Misbehaviour”) के आधार उन्हें पदच्युत Reseller जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जज को तभी हटाया जा सकता है जब संसद Single प्रस्ताव को दोनों सदनों द्वारा समस्त संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पास कर, उसी अधिवेशन में उस न्यायाधीश पर सिद्व दुराचार अथवा असमर्थता का आरोप लगाकर राष्ट्रपति के पास भेजे और राष्ट्रपति उस प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर कर दे। अनुच्छेद 124 (4)º 1 न्यायाधीशों को हटाने का इतना कठिन तरीका इसलिए अपनाया गया है ताकि न्यायाधीश निष्पक्षता से और निडर होकर कार्य कर सके।

वेतन तथा भत्ते

मुख्य न्यायाधीश का वेतन Single लाख रुपये मासिक है और अन्य न्यायाधीशों को वेतन अस्सी हजार रुपये मासिक है। इसके अतिरिक्त हर Single न्यायाधीश को रहने के लिये बिना किराए की सरकारी कोठी दी जाती है और यात्रा भत्ता भी दिया जाता है, जबकि उसको किसी सरकारी कार्य के लिए यात्रा करनी हो। न्यायाधीशों के वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि में से दिए जाते है, जिनको संसद मत लिए बिना पास कर देती है। केवल वित्तीय संकट की घोषणा करने से राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि जजों के वेतन को कम कर सके। मार्च, 1976 में संसद ने Single कानून पास Reseller था, जिसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेन्शन में बढ़ोत्तरी की गई।

सेवानिवृत्त होने पर वकालत प्रतिबन्ध

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवा-निवृत्त होने के बाद किसी न्यायालय में वकालत करने की मनाही की गई है। इसका Means यह नहीं है कि सरकार उनको कोई विशेष कार्य भी नहीं सौंप सकती। उनको किसी आयोग (Commission) का सदस्य या अध्यक्ष नियुक्त Reseller जा सकता है। अप्रैल, 1977 में जनता सरकार ने आपातकाल की ज्यादतियों तथा अत्याचारों की जाँच करने के लिए भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. सी. शाह (J. C. Shah) को नियुक्त Reseller था। इसके अलावा न्यायाधीशों को सरकार अन्य पदों पर नियुक्त Reseller गया था तथा श्री एम. सी. छागला को अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त Reseller गया था।

पृथक स्थापना व्यवस्था

संविधान की धारा 146 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की अलग व्यवस्था है। उसके अधिकारियों व कर्मचारियों की Appointment, उनके सेवा व्यवस्था से संबधित नियम तथा शर्ते सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश निश्चित करता है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय के प्रKingीय खर्च देश की संचित निधि से खर्च किए जाते हैं। इस कारण से सर्वोच्च न्यायालय संसद अथवा किसी अन्य संस्था के नियंत्रण से मुक्त है और इसकी स्वतंत्रता Windows Hosting है।

पद की शपथ

प्रत्येक वह व्यक्ति, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा अन्य न्यायाधीशों के पद पर नियुक्त Reseller जाता है, अपना पद ग्रहण करने के समय राष्ट्रपति या उसके द्वारा किसी अन्य अधिकारी के सामने Single शपथ लेता है, जो इस प्रकार है –

(नाम)-जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (अथवा न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति श्रद्वा और निष्ठा रखूँगा तथा हर प्रकार से और श्रद्वापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्त्तव्यों को भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाये रखूँगा।

सर्वोच्च न्यायालय का स्थान

सर्वोच्च न्यायालय का कार्य-स्थान नई दिल्ली में है। वहाँ इसका तराजू शक्ल का बना हुआ सुन्दर भवन है, परन्तु मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की अनुमति से इसकी बैठवेंफ अन्य स्थान पर भी कर सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

किसी विषय से संबंधित राष्ट्रपति को कानूनी परामर्श देने के लिए 5 न्यायाधीशों का बैंच (मुकदमे की सुनवाई करने वाला न्यायालय) होना अनिवार्य है। शेष मुकदमों में अपील सुनने के लिए वर्तमान नियमों के According कम-से-कम तीन न्यायधीशों का होना आवश्यक है। All मुकदमों का निर्णय मुकदमा सुनने वाले न्यायाधीशों के बहुमत से Reseller जाता है। जो न्यायाधीश बहुमत के निर्णय से Agree नहीं होते, वे अपनी अAgreeि तथा उसके कारण निर्णय के साथ लिखवा सकते हैं।

न्यायाधीशों की स्वतंत्राएँ

न्यायाधीशों की स्वतंत्रता को Windows Hosting रखने के लिए न्यायाधीशों के All न्याय संबंधी कार्यों तथा निर्णयों की आलोचना से मुक्त रखा गया है। संसद भी किसी न्यायाधीश के आचरण पर वाद-विवाद नहीं कर सकती। वह केवल तभी हो सकता है जब संसद किसी न्यायधीश को हटाने के प्रस्ताव पर वाद-विवाद कर रही हो।

ऐसा इसलिए Reseller गया है ताकि न्यायाधीश बिना किसी भय के अपना कर्त्तव्य निभा सवेंफ। न्यायालय के मान तथा सरकार को बनाए रखने के लिए तथा इसको आलोचना से मुक्त रखने के लिए, न्यायालय को किसी भी व्यक्ति के विरुद्व न्यायालय के अपमान की प्रक्रिया द्वारा उचित कार्यवाही करने का अधिकार (Proceeding of Contempt of Court) है।

सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार And शक्तियाँ

सर्वोच्च न्यायालय भारत का सबसे उचा और अन्तिम न्यायालय है। इसका क्षेत्राधिकार व शक्तियाँ बड़ी व्यापक हैं तथा संसार के किसी भी सर्वोच्च न्यायालय से कम नहीं। भारत के भूतपूर्व अटार्नी जनरल श्री एम.सी. सीतलवाड (M.C.Setalvad) के According भारत में सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से भी अधिक हैं।

प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

इस अधिकार क्षेत्र में वे मुकदमे आते हैं जो किसी और न्यायालय में पेश नहीं किए जा सकते तथा जिनकी सुनवाई पहली बार ही सर्वोच्च न्यायालय में होती हो। इस अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित मुकदमे आते हैं-

  1. ऐसे झगड़े जिनमें Single ओर भारत सरकार तथा दूसरी ओर Single या Single से अधिक राज्य सरकारें हों।
  2. ऐसे झगड़े जिनमें Single ओर भारत सरकार और Single या Single से अधिक राज्य तथा दूसरी ओर Single या Single से अधिक राज्य हों।
  3. ऐसे झगड़े जो दो या दो से अधिक राज्यों के बीच हों।

प्रारंभिक क्षेत्राधिकार पर पाबन्दियाँ

  1. सर्वोच्च न्यायलय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार वहीं मुकदमे आते हैं, जिनका संबंध कानूनी प्रश्न या तथ्य से हो, राजनैतिक प्रश्न या तथ्य से नहीं।
  2. Second प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में ऐसे मुकदमे नहीं आते जिनका संबंध किसी ऐसी सन्धि, करारे, समझौते, सनद या अन्य लिखित पत्र से हो, जो संविधान लागू होने से First या बाद में लागू किए गए हों तथा जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया हो, जैसे-देशी रियासतों के Kingों के साथ गए किए समझौते और सन्धियाँ।
  3. Third संसद कानून बनाकर अन्तर्राज्यीय नदियों (Inter-State Rivers) के पानी के प्रयोग के बारे में उत्पन्न होने वाले झगड़ों के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रख सकती है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार

सर्वोच्च न्यायालय के इस क्षेत्राधिकार में ऐसे मुकदमें आते हैं, जिनका आरंभ निचले न्यायालयों में होता है, परन्तु उनके निर्णय के विरूद्व अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के इन क्षेत्राधिकारों को श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

  1. संवैधानिक–संविधान की धारा 132 के अंर्तगत यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मुकदमे में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न उलझा हुआ है, तो उस मुकदमे में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्व सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय स्वयं भी ऐसी अपील करने की विशेष आज्ञा दे सकता है यदि वह संतुष्ट हो कि मुकदमा इस प्रकार का है (अनुच्छेद 136) और राज्य का उच्च न्यायालय ऐसा प्रमाण-पत्र देने से इन्कार कर दे। इसके परिणामस्वReseller सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक तथा अन्तिम व्याख्यकर्ता बन जाता है।
  2. दीवानी (Civil)–मूल संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय में किसी उच्च न्यायालय के केवल ऐसे निर्णय के विरुद्व अपील की जा सकती थी जिसमें झगड़े की राशि कम-से-कम 20 हजार रुपया या इस मूल्य की या इससे अधिक मूल्य की सम्पत्ति हो। परंतु संविधान के 30 वें संशोधन द्वारा धनराशि की इस सीमा को हटा दिया गया है और यह निश्चित Reseller गया है कि उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे All दीवानी मुकदमों की अपील की जा सकेगी जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रमाणित कर दिया जाये कि इस विवाद में कानून की व्याख्या से संबंधित कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न निहित है।
  3. फौजदारी (Criminal)–फौजदारी मुकदमों में उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्व निम्न विषयों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती हैं: (a) यदि उच्च न्यायालय में अपील प्रस्तुत होने पर किसी व्यक्ति की रिहाई के पैफसले को बदल दे और उसे मृत्युदण्ड दे दिया गया हो। (अथवा) (b) यदि किसी मुकदमे को उच्च न्यायालय ने अपने पास ले लिया हो और उसने उसमें किसी अपराधी को मृत्यु-दण्ड दे दिया हो। (c) अगर उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि विवाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार के योग्य है, तब भी अपील की जा सकती है।

संविधान की धारा 136 के अंर्तगत सैनिक न्यायालय को छोड़कर किसी भी उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्व अपील की विशेष स्वीकृति देने पर सर्वोच्च न्यायालय पर कोई संवैधानिक प्रतिबन्ध नहीं है और यह बात स्वयं सर्वोच्च न्यायालय पर निर्भर है।

परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार

संविधान की धारा 143 के According उच्चतम न्यायालय को परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। राष्ट्रपति किसी भी संवैधानिक या कानूनी प्रश्न पर उच्चतम न्यायलय की सलाह ले सकता है। संविधान की व्याख्या, देशी रियासतों के साथ सन्धियों की व्याख्या आदि विषयों में भी राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से उसके विचार पूछ सकता है। राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अन्य सरकार अंग, व्यक्ति तथा न्यायालय भी उस परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अन्य सरकारी अंग, व्यक्ति तथा न्यायालय भी उस परामर्श पर चलने और उसके According अपने निर्णय देने के लिए बाध्य नहीं है। अमेरिका में उच्चतम न्यायालय को परामर्श देने का ऐसा कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। Indian Customer उच्चतम न्यायालय के इस अधिकार की कई लेखकों द्वारा कड़ी आलोचना की गई है। आलोचकों का कहना है कि इससे बड़ी विचित्र समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं और उच्चतम न्यायालय के परामर्श संबंधी क्षेत्राध्कार से लाभ की आशा ही की है।

राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय से कई बार सलाह माँगी है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी राय दी है। जैसे-राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने 1974 में गुजरात विधानसभा भंग होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय से सलाह माँगी थी कि अगस्त, 1974 में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में गुजरात की क्या स्थिति होगी? सर्वोच्च न्यायलय ने 5 जून, 1974 को अपनी सलाह में कहा कि धारा 62 के अन्तर्गत राष्ट्रपति का चुनाव First वाले राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति से First होना अनिवार्य है, चाहे उस समय किसी भी प्रान्त की विधानसभा भंग ही क्यों न हो।

मौलिक अधिकारों का संरक्षक

संविधान में नागरिकों को कई प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय इन मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। मौलिक अधिकारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है। यदि किसी व्यक्ति या संस्था के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो वह व्यक्ति या संस्था अपने मौलिक अधिकारों को मनवाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय से अपील कर सकते है। सर्वोच्च न्यायलय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रकार से प्रतिलेख (Write of Habeas Corpus), परमादेश (Write of Mandamus), प्रतिषेध (Write of Prohibition), अिध्कार पृच्छा (Write of Quo-Warranto) और उत्प्रेषण (Write of Certiorari) के प्रतिलेख शामिल हैं। मौलिक अधिकारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय भारत के All न्यायालयों पर लागू होते हैं। 1967 में गोलकनाथ मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संसद को संविधान में दिए गए नागरिकों के मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है, परन्तु बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 24वें, 25वें और 29वें संशोधनों के विरुद्व की नई रिट याचिकाओं (Writ Petitions) के संबंध में 24 अप्रैल, 1973 को यह ऐतिहासिक निर्णय दिया कि संसद संविधान के मूल ढाँचे के अंर्तगत मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार रखती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय ने गोलकनाथ के निर्णय को उल्ट दिया है। 42 वाँ संशोधन 1976 इस बात की व्यवस्था करता है कि संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्ति पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है तथा अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत किए गए किसी भी संवैधानिक संशोधन को किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।

संविधान की व्याख्या करने का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की अन्तिम व्याख्या करने की शक्ति प्राप्त है। संविधान की धारा 141 के According फ्सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित Reseller गया कानून भारत के क्षेत्र में स्थित All न्यायालयों को बाध्य होगा। भारत में संघात्मक शासन प्रणाली स्थापित की गई है। केन्द्र और राज्यों में संवैधानिक आधार पर शक्तियों का बँटवारा Reseller गया है। ऐसी शासन व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों में तथा राज्यों में आपस में कई विवाद उठ खड़े होने स्वाभाविक है। सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे विवादों को हल करने के लिए संविधान की व्याख्या करनी पड़ती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गइ संविधान की व्याख्या सर्वोत्तम और अन्तिम मानी जाती है तथा All पक्षों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय स्वीकार करने पड़ते हैं।

मुकदमों को स्थानान्तरित करने की शक्ति

1976 के 42वें संशोधन के द्वारा संविधान में Single नयी धारा 139। जोड़ दी गई हैं। इसके अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र न्याय दिलवाने के लक्ष्य से किसी भी मुकदमे को Single उच्च न्यायालय से Second उच्च न्यायालय में भेज सकता है। इसके अलावा महा-न्यायवादी (Advocate General) को यह अधिकार दिया गया है कि अगर किसी उच्च न्यायालय में कोई मामला सार्वजनिक हित से सम्बिन्ध्त है तथा उसमें कोई महत्त्वपूर्ण कानूनी मुकदमा निहित है तो वह सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करके उस मामले को उच्च न्यायालय से मँगवा कर सर्वोच्च न्यायालय में निपटा सकता है।

राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव के संबंधित झगड़े

संविधान में 39वें संशोधन के पास होने से First राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों का निर्णय करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास था और उसका निर्णय अन्तिम होता था। सन् 1975 में इस संशोधन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से यह अधिकार छीन लिया गया और यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवादों का निपटारा करने के लिए संसद कानून द्वारा किसी संस्था अथवा सत्ता की स्थापना करेगी। परन्तु अब 44वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति अथवा उप-राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित All सन्देहों और विवादों की जाँच सर्वोच्च न्यायालय करेगा, तथा सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अन्तिम माना जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालयों की कार्यवाही तथा कार्यविधि को नियमित करने के लिए नियमों का निर्माण करने की शक्ति

सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की धारा 145 के अन्तर्गत न्यायालय की कार्यवाही तथा कार्यविधि को नियमित करने के लिए समय-समय पर नियमों को बनाने की शक्ति दी गई है। संविधान के 42वें संशोधन के अन्तर्गत Single नई उपधारा शामिल की गई है। इस नई उपधारा के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय को धारा 131। तथा 139। के अन्तर्गत की जाने वाली कार्यवाहियों को नियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी गई है।

अपने निर्णय के पुनर्निरीक्षण का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने के लिए उन्हें बदलने का अधिकार है। उदाहरणस्वReseller, ‘सज्जनकुमार बनाम राजस्थान राज्य’ नामक मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। सन् 1967 में गोलकनाथ के मुकदमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों के संशोधन नहीं कर सकती। 1973 में केशवानंद भारती के मुकदमें में निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है।

अभिलेख न्यायालय

भारत के सर्वोच्च न्यायालय को Single अभिलेख न्यायालय में माना जाता है। इसकी All कार्यवाहियाँ And निर्णय प्रमाण के Reseller में प्रकाशित किए जाते हैं तथा देश के समस्त न्यायालयों के लिए यह निर्णय न्यायिक दृष्टान्त (Judicial Precedents) के Reseller में स्वीकार किए जाते हैं। Indian Customer सर्वोच्च न्यायालय किसी को भी न्यायालय का अपमान (Contempt of Court) करने के दोष में सजा दे सकता है।

विविध कार्य

सर्वोच्च न्यायालय को अन्य कार्य करने की भी शक्ति प्राप्त है-

  1. सर्वोच्च न्यायालय को अपने पदाधिकारियों की Appointmentयाँ करने का अधिकार प्राप्त है। ये Appointmentयाँ वह स्वयं और संघीय लोक सेवा अयोग के परामर्श पर करता है।
  2. सर्वोच्च न्यायालय देश के अन्य न्यायालयों पर शासन करता है। उसे यह देखना होता है कि प्रत्येक न्यायालय में न्याय ठीक प्रकार से हो रहा है या नहीं।
  3. संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा सभापति को हटाने का अधिकार तो राष्ट्रपति के पास है, लेकिन राष्ट्रपति ऐसा तब ही कर सकेगा जब सर्वोच्च न्यायालय उसकी जाँच-पड़ताल करके उसको अपराधी घोषित कर दे।

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का विस्तार

संविधान की धारा 138 तथा 139 के According संसद को कानून पास करके निम्नलिखित विषयों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में विस्तार करने का अधिकार है- (a) उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्व फौजदारी मुकदमों से संबंधित अपीलीय क्षेत्राधिकार। (b) संघीय सूची में दिया गया कोई भी विषय। (c) कोई भी ऐसा मामला जो केन्द्रीय सरकार और किसी राज्य सरकार ने समझौते द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का दिया हो। (d) सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा दिए गए क्षेत्राधिकार का ठीक प्रकार से प्रयोग करने के लिए कोई आवश्यक शक्ति, तथा (e) मौलिक अधिकारों को लागू करने के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य के लिए निर्देश तथा लेख (Writs) जारी करना। सर्वोच्च न्यायालय के विस्तृत क्षेत्राधिकार के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह Single बहुत शक्तिशाली तथा प्रभावशाली न्यायालय है।

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