महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय And विचार
महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय And विचार
अनुक्रम –
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे या पूना शहर में हुआ था । वैसे उनकी जन्म तिथि के बारे में स्पष्ट And निर्विवाद जानकारी उपलब्ध नहीं है । फुले के पिता Sevenारा से 25 किलोमीटर दूर कटगन गांव के निवासी थे । उनके परिवार का कुल नाम ‘गौरेह’ था । वे माली जाति से थें । ऐसा बताया जाता है कि उनके परदादा वहाँ पर ‘चौगुला’ के Reseller में कार्य करते थें । ‘चौगुला’ लोगों का मुख्य कार्य अधिकारियों की सेवा करना, सरकारी कागजात इधर-उधर पहुंचाना और लगान वसूली के समय सहायता करना आदि था ।
उनके पास थोड़ी सी जमीन थी जिस पर काश्तकारी करके वे अपना गुजारा करते थें । गाँव के किसी ब्राह्मण के साथ Single दिन उनका झगड़ा हो गया जिस कारण ब्राह्मणों से तंग आकर वे गांव छोड़कर चले गाँव गए। इसके बाद वे पूना जिले के पुरंदर तालुका के Single गाँव खानवाडी में अपने परिवार के साथ रहने लगें । यहाँ उनका Single पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम शेतिबा रखा गया । शेतिबा का बचपन गांव में बीता लेकिन बड़े होने पर वे पूना में रहने लगें शेतिबा के तीन लड़के हुए: राणोजी, कृष्ण व गोविंद ।
इन तीनों भाईयों ने अब फूल-माली का व्यवसाय चुना। इस क्षेत्र में उन्होंने इतना नाम कमाया कि उनकी ख्याति पेशवा दरबार तक पहुंच गयी। अब वे पेशवा परिवार के लिए फूलों के गलीचे, गुलदस्ते तथा अन्य श्रंगार की वस्तु बनाने लगें पेशवा ने प्रसन्न होकर उन्हें 35 Singleड़ जमीन इनाम में दे दी । तब से वे ‘फुले’ उपनाम से ही पहचाने जाने लगें ।
जोति के पिता का नाम गोविन्दराव फुले थे। उनकी पूना में फूलों की दुकान थी । उनका विवाह चिमनाबाई नामक महिला से हुआ जो जगादे पाटिल की लड़की थी । चिमनाबाई के दो पुत्र पैदा हुए । बड़े का नाम Kingराम व छोटे पुत्र का नाम जोतिराव रखा गया था । जब जोती Single वर्ष के हुए, तभी उनकी माता का देहान्त हो गया था । उनके पिता ने दूसरा विवाह नहीं Reseller, बल्कि अपने महात्मा ज्योतिबा फुलेनवजात शिशु के पालन-पोषण हेतु Single आया की व्यवस्था कर दी की ।
महात्मा ज्योतिबा फुले की शिक्षा
जब जोति पाँच वर्ष के हुए तब पिता ने उनको स्कूल में दाखिल कराने के बारे में सोचा । यद्यपि उस समय गोविन्दराव के समुदाय के लोग प्राय: शिक्षा ग्रहण नहीं करते थें । दरअसल उस समय महाराष्ट्र में लगभग All ब्रह्माणेतर जातियों के व्यक्तियों के लिए शिक्षा के दरवाजे बन्द थें । हालांकि अंग्रेजों का राज कायम होने के बाद शिक्षा के दरवाजे वैधानिक Reseller से सबके लिए खुल गए थे ।
काफी सोचने के बाद गोविन्दराव ने जोतिराव को 7 वर्ष की आयु में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु Single मराठी स्कूल में दाखिल करवाया गया । उस काल में पुस्तकों की बाईण्डिग और स्याही को कुछ लोग ‘प्रदूषणकारी’ मानते थें तथा विशेषकर अंग्रेजी पढ़ना कट्टर रूढ़िवादियों की दृष्टि में ‘अशुद्धि’ फैलाने के समान था । इन सब बातों से बढ़कर उन दिनों निम्न जातिय लोगों के लिए शिक्षा ग्रहण करना ‘धर्म-विरुद्ध कार्य’ समझा जाता था । ऐसे अन्धकारपूर्ण युग में गोविन्दराव फुले ने अपने पुत्र जोतिराव को शिक्षा दिलाने का जो साहस दिखाया, वह वास्तव में Single हिम्मत का काम था।
जोति ने जल्दी ही प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी कर ली। उन दिनों पूना में कट्टरपंथी हिन्दू विशेषकर चितपावन ब्राह्मण निम्न जातियों के विद्यार्थियों के स्कूलों में जाने की बढ़ रही प्रवृत्ति से नाराज थें । यहीं हालत बम्बई प्रेसीडेंसी के अन्य नगरों की भी थी। बंबई के Single ऐसे ही कट्टरपंथी हिंदू नेता हाकजी दादाजी प्रभु के इशारे पर ‘बंबई एजुकेशन कमेटी’ द्वारा संचालित विद्यालयों में पढ़ रहे ऐसे All छात्रों के नाम काट दिए गए । ऐसे में बढ़ते सामाजिक दबाव के कारण गोविन्दराव ने भी अपने पुत्र को आगे पढ़ाने की बजाए स्कूल से ही हटा लिया ।
जोति अब पढ़ाई छोड़कर अपने खेती-बाड़ी के पुश्तैनी काम में लग गए । उन्होंने बड़ी लगन और उत्साह से अपने पिता का फूल उत्पादन का कार्य सीख लिया । इसी दौरान 13 वर्ष की आयु में उनकी शादी 8 वर्ष की Single कन्या सावित्रीबाई से हुई । सावित्रीबाई पूना के पास ही Single गांव खण्डोजी के नेवासे पाटिल की पुत्री थी ।
वस्तुत: प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद जोतिराव के मन में और अधिक पढ़ने की रूचि उत्पन्न हो गई थी। वे फुर्सत अथवा रात के समय अक्सर बड़े ही चाव से यूं ही किताबें पढ़ते रहते थें । उन्हें ऐसे ही पढ़ते देखकर गोविन्दराव के दो प्रबुद्ध पड़ोसी बहुत प्रभावित हुए ।
महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार
स्कॉटिश मिशन स्कूल में उनका पहली बार Humanाधिकारों के विचार से परिचय हुआ । इन्हीं दिनों उन्होंने शिवाजी और जॉर्ज वाशिंगटन की जीवनीयां पढ़ी । इन पुस्तकों ने उनके भीतर देशभक्ति और स्वतन्त्रता की भावनाएं पैदा की । 1847 ई. में उन्होंने अंग्रेजी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली । शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त वे पुन: अपना पुश्तैनी कार्य Meansात् बागवानी करने लगें । उस समय तक आजादी के लिए अमेरिकावासियों के संघर्ष से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने समता और स्वतन्त्रता के Humanीय मूल्यों के बारे में गहराई से सोचना शुरू कर दिया था । वस्तुत: जोतीराव घिसे पिटे रास्ते के अनुगामी नहीं थे, बल्कि स्वयं रास्ता बनाने वाले व्यक्ति थे । उनके दिमाग में Human कल्याण व Human सेवा के विचार उमड़ रहे थे ।
उनके जीवन में तभी Single घटना घटी जिसने उनके जीवन को Single नया मोड़ दिया और जिसके कारण वे आगे चलकर महान क्रान्तिकारी समाज सुधारक बने । सन् 1848 में वे अपने Single घनिष्ठ ब्राह्मण मित्र सदाशिव गोविंद के विवाह में सम्मिलित हुए जिसका उन्हें निमन्त्रण मिला था । जोतिराव अपने मित्र की बारात के साथ-साथ चल रहे थे कि तभी कुछ कट्टरपंथी ब्राह्मणों ने उन्हें पहचान लिया। वे उन पर अत्यधिक क्रोधित होकर बोले कि “हे शूद्र, हमारी बारात में चलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई है?” अचानक यह फटकार सुनकर वे स्तब्ध रह गये । तुरन्त बारात छोड़कर घर आ गए और घटना की जानकारी अपने पिता को दी। पिता ने समझाया कि “हम लोग ब्राह्मणों की बराबरी नहीं कर सकते । वर्ण-धर्म के According यही विधान है ।”
उस रात सो नहीं सकें और सारी रात मंथन करते रहें उनको अपने पिता की वह चेतावनी याद थी कि यदि पेशवाओं के युग में उसने ऐसा कर दिया होता तो उसे ‘विद्रोही’ घोषित करके दण्ड दिया जाता । उन्होंने ऐसा महसूस Reseller कि शूद्र के जीवन का Means गरिमा और सम्मान को खो देना है । यह घटना उस समय के हिन्दू समाज में निम्नजातियों की दशा को दर्शाती है । परन्तु फुले यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थें कि निम्न जातियों को ब्राह्मणों के बराबर जीवन जीने का अधिकार नहीं हैं। उनके विद्रोही मानस ने प्रश्न Reseller कि “जब ब्राह्मण और हम शूद्र Single ही धर्म को मानते हैं तो हम ब्राह्मणों से तुच्छ कैसे हुए? अन्तत: वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जातिभेद की जड़ वर्ण व्यवस्था है ।
लेकिन इस व्यवस्था के पीछे ब्राह्मण धर्म And ब्राह्मणवादी विचारधारा विद्यमान हैं जिसने शूद्रों And गैर-ब्राह्मणों को जाति Resellerी दासता की जंजीरों में जकड़ दिया है। इस निष्कर्ष पर पहुँचते ही फुले के मन में Single नई चेतना उत्पन्न हुई। उन्होंने संकल्प लिया कि अब से अनुचित ब्राह्मणवादी समाज-व्यवस्था को समाप्त कर समता, स्वतन्त्रता, भाईचारे और न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना उनके जीवन का उद्देश्य होगा ।
वस्तुत: महात्मा ज्योतिबा फुले के ऐसे विचारों के प्रेरणा स्त्रोत पाश्चात्य जगत के महान दार्शनिक मार्टिन लूथर, थॉमस पेन और जॉर्ज वाशिंगटन जैसे लोग थें जिनका वे अब तक अध्ययन कर चुके थें । मार्टिन लूथर ने यूरोप में ‘माफीनामें’ बेचने वालों और पोपशाही के खिलाफ आवाज बुलंद की थी उनके धर्म-सुधार आन्दोलन ने लोगों को आध्यात्मिक मामलों में विचार-स्वतन्त्रता दिलाई । उन्हीं के अनुReseller जोतिराव ने भी ईश्वर तथा Human के बीच में आने वाले पंडितों के क्रिया-कलापों का पर्दाफाश कर लोगों को उनके सम्पूर्ण Humanाधिकार दिलवाने के लिए संघर्ष Reseller ।
फुले के विचारात्मक गठन में महान् अमेरीकी राजनीतिक चिन्तन थॉमस पेन के साहित्य And उनके विचारों का भी बहुत बड़ा योगदान था । उनकी पुस्तक ‘राइट्स ऑफ मैन’ पाश्चात्य जगत की Single चर्चित Creation थी जिसमें described दार्शनिक विचारों ने अमेरिकी राज्य क्रान्ति के आधार स्तम्भ खड़े किये । इसी कारण इस पुस्तक को “गरीबों की बाईबल” कहा जाता है। इस पुस्तक में अमेरिकी लोगों का ध्यान नीग्रो लोगों की गुलामी की ओर भी आकर्षित Reseller गया था । पेन ने मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों की पुर्नस्थापना की बात कही थी । उनके दृष्टिकोण ने जोतिराव फुले को अत्याधिक प्रभावित Reseller । उनका भी मानना था कि प्रकृति ने सबको समान दर्जा प्रदान Reseller है । ऊँच-नीच, असमानता व भेदभाव मनुष्यकृत है जो भारत के सन्दर्भ में वर्ण-व्यवस्था और जाति प्रथा की देन है ।
पेन के अलावा महात्मा ज्योतिबा फुले पर अमेरिका के First राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का भी काफी प्रभाव था । अमेरिकी क्रान्ति (1776) विश्व History की असाधारण घटना थी इसके बाद अमेरिका में अनुवांशिक राजशाही का खात्मा, सामंती-कुलीन तंत्र का अंत, लिखित संविधान सत्ता विभाजन आदि ऐसी चीजें लागू हुई थी जिनसे फुले के विचारों को Single नई रोशनी प्राप्त हुई ।
फ्रांस की राज्यक्रान्ति (1789) का भी फुले के चिंतन पर गहन प्रभाव पड़ा । फुले ने इस क्रान्ति से समता, स्वतन्त्रता, बन्धुता और Humanीय अधिकारों सम्बन्धी विचार ग्रहण किए । फ्रांस का उच्च वर्ग, जिसमें पादरी व सामन्ती वर्ग के लोग थे, आम जनता का शोषण करता था । महात्मा ज्योतिबा फुले ने भारत के परिपे्रक्ष्य में देखा कि यहाँ पर ब्राह्मणों ने सर्वोच्च पुरोहित वर्ग का Reseller धारण कर लिया है जो शूद्रों, अतिशूद्रों व महिलाओं का मनचाहा दमन तथा शोषण कर रहे हैं । ऐसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध सांस्कृतिक क्रान्ति Reseller जाना आवश्यक है । भारत के प्राचीन बौद्ध धर्म And उसके दर्शन का भी फुले के सामाजिक दृष्टिकोण पर बहुत प्रभाव था।
महात्मा बुद्ध के जिन सिद्धान्तों ने फुले पर प्रभाव डाला, उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है उनका ‘बुद्धिवाद’ । उन्होंने अपने उपदेशों में कहा कि किसी बात को इसलिए मत स्वीकार करो कि वह वेदों में कही गई है अथवा उसे कहने वाला हमारा गुरु है बल्कि जब स्वयं अनुभव करो कि वह वास्तव में सच्ची है तब ही उसे स्वीकार करो। फुले ने भी बुद्ध की तरह विचारों की स्वतन्त्रता व तार्किक सोच को बहुत महत्त्व दिया । इसी कारण उन्होंने वेदों की प्रमाणिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा Reseller । फुले को शीघ्र ही इस बात का अहसास हो गया कि All तरह के परिवर्तनों की जड़ और स्वतंत्रता की भावना का उद्गम स्थल शिक्षा होती है । लेकिन Indian Customer जनमानस में शिक्षा का घोर अभाव है। अज्ञान के कारण ही शूद्रों-अतिशूद्रों का पतन हुआ है । इसलिए उनमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना सबसे जरूरी है ।
ब्राह्मण, पुरोहित तथा अन्य उच्च जातियाँ सदियों से शिक्षा पर Singleाधिकार जमाएँ बैठी हैं जिसके कारण शूद्रों, अतिशूद्रों And महिलाओं को अज्ञानता के अंधकार में रहने को विवश होना पड़ा है । लेकिन अब अंग्रेजों के राज के अन्तर्गत शिक्षा के द्वार सबके लिए खुल गए हैं अत: महिलाओं और शूद्रों-अतिशूद्रों में शिक्षा के प्रति अनुराग पैदा होना चाहिए । ऐसे में फुले ने यह निश्चय Reseller कि वे पूना में निम्नजातिय बालिकाओं के लिए Single पाठशाला स्थापित करेंगे ।
जिन दिनों जोतिराव के मन में बालिका विद्यालय खोलने का विचार उमड़ रहा था, उन्हीं दिनों उनके मित्र सदाशिवराव गोविंदे उन्हें अहमदाबाद स्थित Single ईसाई मिशनरी शिक्षा केन्द्र में ले गये। वहाँ उसने श्रीमती फॅरार का मिशन स्कूल देखा । श्रीमती फॅरार ने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत में महिलाओं की शिक्षा को नकारा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को चाहिए कि वह First अपनी पत्नी को शिक्षित करे। इस बात का जोतिराव पर बहुत प्रभाव पड़ा । जब वे पूना लौटै तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को लिखने-पढ़ने की प्रेरणा दी । शीघ्र ही वे शिक्षित हो गर्इं । अब फुले दम्पत्ति ने अगस्त 1848 में पूना के बुधवार पेठ नामक मुहल्ले में लड़कियों के लिए देश की First पाठशाला की स्थापना की ।
महिलाओं को शिक्षा देने के कार्य को उन दिनों ‘अनुचित’ And ‘धर्म-विरुद्ध’ माना जाता था । फलत: रूढ़ीवादियों ने उनके इस कार्य का भारी विरोध Reseller । दबाव के आगे झुकते हुए उनके पिता ने उनसे पाठशाला को बन्द करने को कहा । परन्तु फुले अपने निश्चय पर दृढ़ रहें। अन्तत: पिता ने बेटे और पुत्र-वधू को अपने घर से चले जाने के लिए कह दिया । घर से निकाले जाने के बाद फुले-दम्पति पूना के गंजपेठ में आकर रहने लगें ।116 यहाँ आने के बाद उन्होंने पूना और उसके आसपास के स्थानों पर कई अन्य स्कूलों की स्थापना की जिनमें से कुछ ‘अछूत’ बच्चे के लिए भी खोले गए थें । सन् 1855 ई। में फुले ने पूना में ही Single रात्रि-पाठशाला भी खोली । इस पाठशाला में दिनभर काम करने वाले मजदूर, किसान और गृहणियाँ पढ़ने के लिए आती थीं । यह भारत की पहली रात्रि-पाठशाला थीं ।
1864 में फुले ने पूना मे अपने ही घर में गर्भपात के खिलाफ Single केन्द्र ‘बालहत्या प्रतिबंध गृह’ की स्थापना की जहाँ गर्भवती विधवाएं अपने बच्चों को पैदा कर सकती थी। यहाँ उनके बच्चों की देखभाल भी की जाती थी। यह भी देश में अपनी तरह का पहला केन्द्र था । यह केन्द्र विशेषकर ब्राह्मण समुदाय में पथभ्रष्ट कर दी गई विधवाओं को गर्भपात बदनामी And आत्महत्या से बचाने का पुण्यकारी कार्य कर रहा था । काशीबाई नाम की Single ब्राह्मण महिला ने इसी केन्द्र में Single बच्चे को जन्म दिया था जिसका नाम यशवंत रखा गया । जोतिराव और सावित्रीबाई ने उसे पुत्र के Reseller में गोद ले लिया क्योंकि उनकी स्वयं की कोई संतान नहीं थी । अपनी वसियत में इसी दत्तक पुत्र के नाम उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति कर दी थी ।
महात्मा ज्योतिबा फुले मन में अस्पृश्यों के लिए विशेष प्रेम था । उनके घर में Single कुआं व पानी का Single बड़ा हौज था जिसे उन्होंने सन् 1868 में अस्पृश्य लोगों के लिए खोल दिया । यहाँ तक कि उन्होंने अछूतों के साथ भोजन करना भी प्रारम्भ कर दिया था ।
1848 में जब उन्होंने पूना में कन्या पाठशाला शुरू की, तब उनके दिमाग में Single बात साफ थी कि First हमें उस अविद्या से लड़ना है जो सारे अनर्थ की जड़ है। इसके साथ ही उस ब्राह्मणवादी व्यवस्था से बौद्धिक Reseller से लड़ना है जो अज्ञान का घना कोहरा बना रही है । फलत: महाराष्ट्र के आम लोगों में अपने विचारों का प्रसार करने के लिए फुले ने मराठी भाषा में लिखना शुरू कर दिया । उन्होंने ने मराठी में Single काव्य-संग्रह ‘ब्राह्मणांचे कसाब’ (ब्राह्मणों की चालाकी) की Creation की । इसमें पुरोहितों द्वारा धर्म और देवताओं के नाम पर अनपढ़-अशिक्षित लोगों को भ्रमित किए जाने के विषय में लिखा गया है ।
ज्योतिबा ने लिखा कि किस तरह अपनी मासूमियत और अज्ञानता के कारण शूद्र किसान स्त्री-पुरुष ब्राह्मण-पुरोहितों द्वारा सैंकड़ों धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर शोषण का शिकार बनाए जा रहे हैं । उन्होंने Single अन्य वीर रस से ओत-प्रोत काव्य Creation ‘शिवाजी का पंवाडा’ लिखी । यह पुस्तक 1869 में प्रकाशित हुई । इसके अन्दर ‘शूद्र King’ छत्रपति शिवाजी के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन Reseller गया था ।
1872 में उन्होंने ‘गुलामगिरी’ नामक अपनी अति प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। Indian Customer समाज में व्याप्त ‘जातिगत गुलामी’ के बारे में लिखी गई यह Single अत्यन्त विचारोत्तेजक पुस्तक थी । अमेरिका में अब्राहम लिंकन ने सन् 1863 में दासता का अंत Reseller था । फुले ने उनसे प्रेरित होकर यह ‘गुलामागिरी’ लिखी और इसे अमेरिका के लोगों को समर्पित Reseller । इस पुस्तक में उन्होंने ब्राह्मणवादी धर्म And व्यवस्था के अन्तर्गत शूद्रों, अछूतों And स्त्रियों पर लादी गई गुलामी का History Reseller है । वे शूद्रों-अतिशूद्रों को ‘भारत के मूल निवासी’ मानते थें जिनको ‘ईरान से आए आर्यों’ (वर्तमान ब्राह्मणों) ने गुलाम बना लिया था ।
यद्यपि उन्होंने जाति भेद के नस्लीय सिद्धान्त, जिसे तत्कालीन साम्राज्यवादी-उपयोगितावादी विद्वानों ने आगे बढ़ाया था, को अपनाया था, किंतु जाति भेद संबंधी उनका समाजशास्त्रीय विमर्श काफी गहन, मौलिक And क्रान्तिकारी था। उनका चिन्तन व लेखन-कार्य निरन्तर जारी रहा । यहाँ तक कि Single बार पैरालाइज होने के कारण यद्यपि उनका दांया हाथ प्रभावित हुआ, परन्तु उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा ।
Single अन्य प्रसिद्ध Creation ‘सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक’ को उन्होंने अपने बांए हाथ से लिखा था । इस पुस्तक में वे ‘सार्वभौमिक सत्य पर आधारित धर्म’ के नियमों को परिभाषित करते हैं जिनमें उनका सर्वाधिक जोर स्त्री-पुरुष के समान ‘Human अधिकारों’ पर रहा ।”
अपने ‘सत्यधर्म’ के विचार पर आधारित ‘धर्मFight’ को आगे बढ़ाने तथा महाराष्ट्र में ब्राह्मणवादी दासता से शूद्रों, अतिशूद्रों तथा ब्राह्मणेत्तर ‘बहुजन समाज’ को मुक्ति करने के लिए फुले ने 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की । इस संस्था का लक्ष्य Single ‘सच्चे धर्म’ की खोज-शोध करना था और इसे समाज में स्थापित करना था । इसका मुख्य उद्देश्य था कि All समूहों के लोगों को उनके समान Human अधिकारों की जानकारी प्रदान की जाए और उन्हें ब्राह्मणवादी धर्म ग्रन्थों And व्यवस्था द्वारा थोपी गई गुलामी से मुक्त कराया जाए ।
ब्रह्म समाज, आर्य समाज तथा प्रार्थना समाज से भी अधिक क्रान्तिकारी दृष्टिकोण रखने वाले सत्यशोधक समाज ने भारत में वास्तविक समाज सुधार लाने हेतु ब्राह्मणवादी विचारधारा And संस्कृति के पूर्णत: परित्याग And Humanतावाद की विचारधारा को अपनाने का आह्वान Reseller । यह संस्था All स्त्री-पुरुषों को समान मानते हुए उनको बराबर ‘Human अधिकार’ दिलाने पर जोर देती थी । इस संस्था ने महाराष्ट्र में धर्म-सुधार And समाज-सुधार की दिशा में पहल की । लोग अब उनको सम्मान से ‘महात्मा’ व ‘ज्योतिबा’ जैसे नामों से पुकारने लगे थें ।
फुले स्वयं किसान के पुत्र थें । इसलिए वे किसानों को समस्या से भलीभांति अवगत थें । उन्होंने 1883 ईñ में किसानों की समस्याओं पर ‘किसान का कोड़ा’ नामक Single पुस्तक लिखी । इसमें उन्होंने अशिक्षित, असंगठित, गरीब, धर्मभीरू तथा कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की दुर्दशा के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन Reseller । किसानों की सामाजिक-आर्थिक दशा का मार्मिक चित्रण करने के साथ-साथ उन्होंने इसमें कृषक-उत्थान हेतु बहुमूल्य सुझाव भी दिए थें । ‘अछूतों की कैफियत’ नामक अपनी Single अन्य Creation में फुले ने अस्पृश्य लोगों की दुर्दशा का चित्रण Reseller और बताया कि कैसे संयोगवश “महारानी विक्टोरिया से मिलने का मौका मिलने पर” अस्पृश्य समुदाय के लोग उन्हें अपनी पीड़ा और वेदना का बयान करेंगें ।
उन्होंने 1885 में ‘सतसार’ नाम की पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ Reseller । इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर अपने विचार प्रकट किए । परन्तु ‘सतसार’ के 1885 में केवल दो अंक ही छपे और इसके बाद इसका प्रकाशन बन्द करना पड़ा । पहला अंक जून में तथा दूसरा अंक अक्तूबर में प्रकाशित हुआ था । ये अंक भारत की स्त्रियों की स्थिति के विषय पर केन्द्रित थें। इनमें उन्होंने उस समय की परम विदूषी And समाज-सुधारक पंडिता रमाबाई द्वारा ईसाई धर्म ग्रहण करने का History Reseller था । तत्बाद उन्होंने ‘दीनबन्धु’ नामक Single अन्य पत्रिका के प्रकाशन में अपने साथियों को सहयोग दिया जिसका प्रकाशन बाद तक होता रहा ।
1876 से 1882 तक ज्योतिबा पूना नगरपालिका के सदस्य रहे। इस काल में उन्होंने महसूस Reseller कि उच्च वर्गीय अधिकारी गरीबों-अछूतों की बस्तियों में पानी पहुँचाने तथा सड़क बनाने पर ध्यान नहीं देते हैं । उन्होंने इन बस्तियों में पानी व सड़कों की व्यवस्था कराई । साथ ही उन्होंने निम्न वर्गों में से कर्मचारियों की Appointment करने पर जोर दिया तथा अपने कार्यकाल में गरीब लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य कराये ।
महात्मा ज्योतिबा फुले Single ऐसे सुधारक व विचारक थे जिनका अवलोकन चहुँमुखी था। उनका ध्यान बम्बई के मिल मजदूरों की ओर भी गया क्योंकि प्राय: वे बम्बई जाते रहते थे । अत: वहाँ के मजदूरों और उनकी समस्याओं से वे भली-भांति आवगत थे । फुले ने उनकी समस्याओं को समझा और उनका समाधान करने की ठानी। इस कार्य में उनका साथ दिया नारायणराव मेधाजी ने जो ‘दीन-बंधु’ पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभालते थे । उन्होंने अपनी पत्रिका ‘दीनबंधु’ में प्रकाशित Reseller कि मजदूरों को Single दिन में 14-14 घण्टे काम करना पड़ता है, वह भी बन्द कमरों में, Safty के अभाव व कम वेतन में । थोड़े समय के अवकाश पर ही उन्हें चार आने जुर्माना देना पड़ता है । फुले तथा नारायण राव ने मिल मजदूरों की समस्याओं के लिए अनेक सभाएं की ओर मिल मजदूरों को संगठित Reseller।
इस प्रकार 1880 में बम्बई में मिल मजदूरों के First संगठन का निर्माण हो सका ।
यह Historyनीय है कि ज्योतिबा फुले अंग्रेजी शासन की गलत नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध भी आवाज उठाते थें । उन दिनों पूना में अंग्रेजी शासन ने शराब दुकानों में वृद्धि करने का निश्चय Reseller और सन् 1880 तक कई नई दुकानें खोल दी गई। ऐसे में फुले ने सरकार की इस नीति का विरोध Reseller । उन्होंने नगरपालिका की मैनेजिंग कमेटी के चैयरमैन मिस्टर प्लंकेट को 18 जुलाई 1880 को Single पत्र लिखा जिसमें उन्होंने पूना नगर में तेजी से खुल रही शराब की दुकानों से होने वाले नुकसान से अवगत कराते हुए बताया कि किस प्रकार नगर वासियों के स्वास्थ्य तथा नैतिक आचरण पर उसका कुप्रभाव पड़ रहा है । इस समाचार ने शहर में खलबली मचा दी । ‘ज्ञान प्रकाश’ नामक पत्र ने टिप्पणी की कि “फुले ने जिस विषय पर आवाज उठाई है, वह बड़े महत्त्व का है । नगरपालिका को इस पर ध्यान देना चाहिए ।” फलत: मैनेजिंग कमेटी ने फुले के सुझाव पर ध्यान दिया और भविष्य में शराब के ठेकों में कमी करने का अश्वासन Reseller ।
फुले ने अंग्रेजी सरकार द्वारा ब्राह्मणों को दिये जाने वाले ‘दक्षिणा फण्ड’ पर रोक लगाने की बात उठाई । दरअसल शिवाजी के शासनकाल के समक्ष से ही ब्राह्मणों को मराठा राज्य की तरफ से दक्षिणा देने की परिपाटी चली आ रही थी । दक्षिणा में अनाज और सिक्के ब्राह्मणों को उनकी योग्यता के According दिये जाते थे । परन्तु पेशेवा बाजीराव-II के 46 काल में इस परिपाटी का पतन हुआ। इस काल में दस लाख रुपये की दक्षिणा का वितरण साठ हजार ब्राह्मणों को होने लगा । 1849 में First लोकहितवादी गोपाल गणेश देशमुख ने इस गलत परिपाटी और अवांछित भुगतान के विरुद्ध आवाज उठाई थी । वे चाहते थे कि ‘दक्षिणा फण्ड’ में से तीन हजार रुपये मराठी लेखकों को अच्छे मराठी लेखन के लिए पारितोषिक के Reseller में दिये जाऐं ।
इसके लिए ब्रिटिश सरकार को प्रस्तुत करने हेतु Single याचिका तैयार की गई । इसे बम्बई के गवर्नर को भी भेजा गया । कट्टरपंथी ब्राह्मणों ने इसकी जानकारी मिलने पर याचिका पेश करने वाले लोगों को डराया-धमकाया । ऐसे में देशमुख ने ज्योतिबा फुले से सहयोग माँगा । वे इसके लिए तैयार हो गए और उन्होंने 200 महार और माँग लोगों को Singleत्र कर लिया ।
उन्होंने घोषणा कर दी कि यह याचिका हमारे संगठन द्वारा तैयार की गई है तथा मराठी के मौलिक ग्रन्थों या निबन्धों पर पारितोषिक देने की माँग हमारी है । फुले के इस हस्तक्षेप के कारण सरकार को मराठी भाषा में साहित्य लेखन पर पारितोषिक के Reseller में ‘दक्षिणा फण्ड’ से राशि व्यय करने पर Agreeि देनी पड़ी। ज्योतिबा फुले महाराष्ट्र के First सुधारक थें जो अपने जीवनपर्यन्त दबे-कुचले लोगों का जीवन सुधारने तथा उन्हें सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन जीने की परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए संघर्ष करते रहें । उनके सम्मान में उनके अनुयायियों ने 11 मई 1888 को Single सम्मेलन माँडवी के कोलीवाड़ा सभागार में आयोजित Reseller ।
इस सम्मेलन में बड़ौदा के 47 महाराज सयाजीराव गायकवाड़ को आमंत्रित Reseller गया था, परन्तु वे किसी कारणवश उपस्थित न हो सकें । परन्तु उन्होंने दामोदर सावलाराम पाण्डे के जरिए भेजे अपने सन्देश में कहा कि ज्योतिबा को ‘भारत के बुकर टी. वाशिंगटन’ की उपाधि प्रदान की जाए । तमाम नेताओं के द्वारा भी फुले के सम्मान में ऐसी बातें कहीं गई जिनमें उन्होंने उनके द्वारा जीवन भर दबे-कुचले लोगों की निस्वार्थ सेवा करने के कार्य की मुक्त कंठ से सराहना की । यहाँ पर नेताओं And उपस्थित जनसमुदाय ने उनको Single स्वर में ‘महात्मा’ घोषित Reseller ।
फुले की मृत्यु
जुलाई 1888 में पूना में भयंकर गर्मी का मौसम था । इसके चलते ज्योतिबा के शरीर के दाहिने हिस्से में अचानक पक्षाघात हो गया । उनके Single मित्र चिकित्सक ने उनका इलाज Reseller । फुले तत्काल उपचार मिलने पर ठीक तो हो गए, लेकिन बहुत कमजोर हो गए थें । फलत: Single वर्ष व चार महीनों बाद 28 नवम्बर 1890 को उनका देहावसान हो गया । उसी दिन सत्यशोधक समाज की परंपराओं के अनुReseller बगैर किसी कर्मकाण्ड के दत्तक पुत्र यशवंत द्वारा उनका अंतिम संस्कार Reseller गया ।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि महात्मा ज्योतिबा फुले ग्रामीणों कुनबी-किसानों, खेतिहर मजदूरों, शूद्रों-अतिशूद्रों And नारी जाति समेत सम्पूर्ण ‘बहुजन समाज’ के मसीहा And सुधारक थें । नारी समस्या, अतिशूद्रों की समस्या, ब्राह्मण विधवाओं विधवाओं की समस्या, सतीप्रथा, देवदासी प्रथा, किसानों, मिल मजदूरों, कृषि-श्रमिकों आदि की समस्या – All के समाधान के लिए फुले ने अपना जीवन अर्पण Reseller ।
संदर्भ –
- यु. बी. शाह, सामाजिक क्रान्ति के जनक – महात्मा ज्योतिबा फुले, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1998, पृ. 71.
- कन्हैयालाल चंचरीक, पूर्व उद्धृत, पृ. 114.
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