भाषा और लिपि का संबंध

भाषा और लिपि का संबंध

By Bandey

अनुक्रम



लिपि का सामान्य Means होता है ‘लिखावट’। किन्तु लिखावट या लेखन को वैज्ञानिक विश्लेषण में ‘लिपि’ की संज्ञा नहीं दी जा सकती। अपने भावों, विचारों या कि अभिव्यक्ति की विभिन्न दशाओं को मिट्टी, पत्थर, छाल और कागज आदि पर जब किसी विशेष चिन्ह द्वारा अंकित करते हैं तो वह पद्धति वैज्ञानिक ध्रातल पर लिपि कहलाती है। लिपि का जब वैज्ञानिक परीक्षण Reseller जाने लगता है जब वह प्रकरण ‘लिपिविज्ञान’ का विषय बन जाता है। यह तो सच है कि भाषा के विकसित हो जाने के बाद लिपि का जन्म हुआ। यह भी सब है कि जिस तरह अपनी Need की पूर्ति के लिए मनुष्य ने भाषा को जन्म दिया उसी तरह अपनी भाषा को Windows Hosting तथा स्थायित्व प्रदान करने के लिए मनुष्य ने ही लिपि का भी सृजन Reseller। लिपि को मनुष्य का Single महत्त्वपूर्ण आविष्कार मानना चाहिए। लिपि के ही कारण मनुष्य जाति ने सदियों की भाषिक विरासत को जीवित रखा है। Humanीय-संस्कृति के संवर्द्धन में लिपि ने उपयोगी सहयोग Reseller है। कहा जा सकता है कि जिस तरह व्यक्त ध्वनियाँ भाषा कहलाती हैं उसी तरह प्रतीकों, चिन्हों और चित्रों आदि क्षरा अंकित किये गये विचार लिपि की संज्ञा प्राप्त करते हैं। परिभाषा के स्तर पर लिपि के लिए किसी Wordावली की Creation की जाय तो कह सकते हैं कि लिपि लेखन-कला का वह स्वReseller है जिसके द्वारा भाषा को स्थायित्व प्रदान Reseller जाता है।

लिपि का उद्भव और विकास

लिपि का उद्भव

लिपि के उद्भव को लेकर दो तरह के मत मिलते हैं। Single तरह के मत में यह प्रचलित है कि लिपि का उद्भव भाषा से पूर्व हुआ। Second तरह के मत में यह प्रचलित है कि लिपि का जन्म भाषा के बाद हुआ। First तरह के विचारकों के अभितम में भाषा के प्रयोग से पूर्व मनुष्य ने भाषा के अभाव में अपने विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के लिए काथ, पैर पटकना शुरू Reseller, दाँतों को किटकिटाया, होठों को फड़काया और आँखों को तरेरा। मनुष्य की भाषिक अभिव्यक्ति के आदि Reseller में इन क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को लिपि का बीजभाव मानना चाहिए। इस तरह आरम्भ में भावों की अभिव्यक्ति के लिए लिपि Single माध्यम के Reseller में प्रकट हुई। धीरे-धीरे विकसित होकर लिपि ने भाषा से सम्बन्ध बना लिया। Second तरह के विचारकों के मत में लिपि का उद्भव भाषा के पश्चात हुआ। जबकि यह निश्चित हो चुका है कि मनुष्य के उद्भव के साथ-साथ भाषा ने भी उत्पत्ति प्राप्त की और भाषा को ही अक्षुण्ण रखने के लिए मनुष्य द्वारा लिपि की Creation की गयी, तब इस बात में तनिक भी सन्देक नहीं रहा जाता कि लिपि का उद्भव भाषा के बाद हुआ है। प्रमाण के तौर पर अब भी देखा जा सकता है कि संसार के अनेक मनुष्य भाषा-ज्ञान तो रखते हैं किन्तु लिपि-ज्ञान (अक्षर-ज्ञान) नहीं रखते। वैसे भी ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देशा जाय तो विदित हो जायेगा कि लिपि का History लगभग Seven हजार वर्षों से अधिक पुराना नहीं है जबकि भाषा का History उतना ही फराना ठहरता है जितना कि मनुष्य का History। अत: लिपिविदों और भाषावेत्ताओं के इस मत से Agree हुआ जा सकता है कि लिपि भाषा की अनुगामी है, भाषा लिपि की अनुवर्ती नहीं है। लिपित भाषा को अभिव्यक्ति प्रदान करती है जबकि भाषा लिपि को आकृति देती है। भाषा को वर्तमान बनाना लिपि का काम है जबकि लिपि को History बनाना भाषा का काम है।


लिपि का विकास

ध्वनियों द्वारा भावाभिव्यक्ति के माध्यम-Reseller में भाषा का उद्भव हुआ तथा चित्रों अथवा प्रतीकों द्वारा भाषिक प्रकटीकरण के माध्यम-Reseller में लिपियों का सृजन हुआ। भाषाविद् मानते भी हैं कि भाषा के स्थिरीकरण के बाद ही लिपि की उत्पत्ति हुई है।

पुरानी विचारधारा के लोगों का कहना है कि लिपि को ईश्वर अथवा किसी देवता ने गढ़ा है। भावनात्मक स्तर पर बात तो ठीक है कि ईश्वर ही सब कुछ रचता है किन्तु ईश्वर या विधता ने बैठकर लिपियों को वर्तमान Reseller में निर्मित Reseller है-ऐसी बात नहीं है। स्वानुभवों की अभिव्यक्ति-हेतु मनुष्यों ने तरह-तरह के ध्वनि-प्रतीकों के निर्माण किए और वे ही शनै: शनै: विकसित And परिष्कृत होते गये हैं।

लिपि के सम्बन्ध में जो भी प्राचीनतम अवशेष मिले हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि 4000 ई. पू. तक लेखन-कला की किसी भी व्यवस्थित प्रणाली का कोई चिन्ह उपलब्ध नहीं है। हाँ प्राचीनतम अव्यवस्थित प्रयास 10000 ई. पू. के मध्य तक लगभग 6000 वर्षों में लिपि का धीरे-धीरे विकास होता रहा। लिपि की इस विकाSeven्मक श्रृखला में प्रमुखत: निम्नांकित लिपियाँ उपलब्ध होती है-

  1. चित्रलिपि
  2. प्रतीकलिपि
  3. सूत्रलिपि
  4. विचार या संकेतलिपि
  5. ध्वनिलिपि

1. चित्रलिपि: चित्रलिपि लेखन-कला के History की पहली सीढ़ी है। इस काल के Humanों ने कंदराओं की दीवालों या प्रस्तर-खण्डों पर Human-शरीर, वनस्पति And ज्यामितीय शक्ल के अन्यान्य चित्र बनाये जो लिपि-संकेत के Reseller में जाने गये। विवाहोत्सवों आदि पर बनाये जाने वाले भित्ति-चित्र आदि इसके अवशेष हैं। इसके फराने चित्र दक्षिणी र्कान्स, स्पेन, यूनान, इटली, पुर्तगाल, साइबेरिया, मिस्र, चीन आदि विभिन्न देशों में भोजपत्र, चट्टान काष्टपट्टिका, हाथीदाँत्, सींग हड्डी वृक्षों की छाल तथा पशु-चर्म आदि पर खुदे उपलब्ध हुए है।

विवाहोत्सव रक्षाबंधन जैसे अवसरों पर ग्रामीण इलाकों में हल्दी आदि का वितरण प्रतीक लिपि का ही अवशेष है।

2. प्रतीक लिपि: विकसित होकर चित्रलिपि ने प्रतीक Reseller धारण कर लिया। कह सकते हैं कि Single प्रकार से उसका Reseller घिस गया। अंकित प्रतीक स्मृति-चिÉ होते थे। इनसे लिपि के उद्देश्यों की पूर्ति होती थी। कदाचित् रक्षा-बन्धन, विवाहोत्सवों पर ग्रामीण इलाकों में हल्दी-वितरण आदि प्रतीकलिपि के ही अवशेष हैं।

3. सूत्र लिपि: इस लिपि का History अतिप्राचीन है। सूत्रलिपि की परम्परा अद्यावधि चली आ रही है। आदिम समाज ने अपनी विकास-यात्रा में प्रमुख सन्दर्भ के स्मरण-हेतु Single सरल पथ निर्मित Reseller था और वही सूत्रलिपि का History बना। रस्सियाँ में गाँठे बनाकर, उन गांठों का रंग-बिरंग संकेत प्रदान कर, गांठो को छोटा-बड़ा बनाकर आरम्भिक प्रयास Reseller गया। पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ इस परम्पर का स्वस्थ प्रमाा है। मात्र 14 सूत्रों (अइउण् )लृक्, एओघ् आदिद्ध पर समस्त ‘अष्टाध्यायी’ का विशाल व्याकरणिक ढान्चा खड़ा Reseller गया है। इस पद्धति पर छनदशास्त्रीय और गणितीय सूत्रों के निर्माण भी लखित किये जा सकते हैं।

4. विचार या संकेत लिपि: आगे चलकर चित्र, प्रतीक And सूत्रलिपियाँ विचार या संकेत लिपि में परिणत हो गई। इसमें आकृति मौन हो गई और संकेत प्रधन हो गया। उदाहरण के तौर पर चलते हुए दो आदमियों का कोई चित्र न बनाकर दो समानान्तर रेखाओं (=) से उसका बोध Reseller गया। इसी प्रकार गणित में प्रयुक्त होने वाले चिन्ह, जैसे- (+), )ण (-), गुणा (×), भाग (÷), प्रतिशत (») आदि विचार अथवा संकेत लिपि के ही अवशेष हैं।

5. ध्वनि लिपि: लिपि के History में ध्वन्यात्मक लिपि ही आज भाषा की प्रतिReseller है और लेखन की इस प्रणाली में भाषिक तत्व ध्वनि-विशेष का प्रतिनिधित्व करता है। ध्वनि-लिपि के दो भेद हैं- (क) अक्षरात्मक (Syllabic) (ख) वर्णात्मक (Alphabetic) ‘अक्षरात्मक लिपि’ में चिन्ह किसी अक्षर को व्यक्त करता है, वर्ण को नहीं। नागरी लिपि अक्षरात्मक है। उदाहरणार्थ-इसके ‘क’ चिन्ह और ‘अ’ दो वर्ण मिले है। इसी तरह अरबी, फारसी, बंगला, उड़िया, गुजराती आदि लिपियाँ अक्षरात्मक हैं।

‘वर्णात्मक लिपि’ में चिन्ह पूरे किसी वर्ण का बोध कराता है न कि किसी आधे अक्षर का। रोमन लिपि वर्णात्मक है। इसमें ‘K’ से ‘क’ ‘B’ से ‘ब’ तथा ‘P’ से ‘प’ वर्ण का बोध स्पष्ट हो जाता है।

भाषा और लिपि का सम्बन्ध

भावों की अभिव्यक्ति के सार्थक ध्वनि-समूह को भाषा की संज्ञा दी जाती है। भाषा लिपि का पर्याय नहीं है। भाषा को अंकित करने की व्यवस्थित विधि लिपि है। Second Wordों में भावां की अभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त चिन्ह ही लिपि हैं यद्यपि भाषा के अस्तित्व के लिए लिपि का होना आवश्यक नहीं है तथापि भाषा के अस्तित्व को स्थिरता प्रदान करने के लिए लिपि की Need पड़ती है। जहाँ तक भावों की अभिव्यक्ति का प्रश्न है, वह लिपि के बिना भी संभव है।

भाषा के विकास के बाद ही लिपि की उत्पत्ति हुई। मनुष्य ने अपने विचारों को Windows Hosting रखने के लिए लिपि का निर्माण Reseller। मनुष्य उत्पत्ति के साथ भाषा की उत्पत्ति की बात मानी जा सकती है, किंतु अलग-अलग लिपियों का विकास भिन्न-भिन्न समय में हुआ। जहाँ सांस्कृतिक परिवर्तनों ने व्यापक Reseller से भाषा के विकास को प्रभावित Reseller, वहाँ लिपि का विकास किसी विशेष भाषा के माध्यम से हुआ।

भाषा और लिपि में भिन्नता होती है। भाषा ध्वनियों की व्यवस्था है, किंतु लिपि वर्णों का संयोजन है। लिपि किसी विशेष भाषा से बँधी हुई नहीं होती। भिन्न-भिन्न भाषाओं को विशेष लिपि में लिखा जा सकता है,किंतु किसी लिपि में All ध्वनि-प्रतीकों के उपलब्ध न होने के कारण उनको लिपिबद्ध नहीं Reseller जा सकता। लिपि को सार्वभौमिक Reseller प्रदान करने हेतु विदेशी भाषाओं के स्वरों (ध्वनियों) के According उसमें पिरवर्द्धन करना आवश्यक होता है। इस प्रकार लिपि भाषा की अनुगामिनी है।

भाषा लिपि की तुलना में अधिक प्रवाहमान, स्वच्छंद, परिवर्तनशील And गतिशील होती हैं साथ ही लिपि पर तुलनात्मक दृष्टि से परंपरा का अधिक प्रभाव बना रहता है। भाषा के स्वReseller में निरंतर परिवर्तन होता रहता है, किंतु किसी भी लिपि में Singleदम बड़ा परिवर्तन करना व्यावहारिक Reseller से असंभव होता है, क्योंकि विशिष्ट लिपि में विशाल साहित्य मुद्रित होता है, जिसमें अपार धनराशि And समय लगा होता हैं अत: नई लिपि का आविष्कार व्यक्ति भले ही है अनुसंधान की दृष्टि से कर ले किंतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित किसी लिपि को समाप्त कर नई लिपि को प्रचलित करना नहीं हो पाता है। राष्ट्रीय लिपि संपर्क लिपि के Reseller में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उसमें सामान्य परिवर्तन-परिवर्द्धन ही संभव होता हैं विश्व की कोई भी लिपि पूर्णतया विकसित नहीं कही जा सकती, उसमें राष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर संशोधान किए जा सकते हैं। उललेखनीय है कि केन्द्रीय हिंदी निदेशालय ने विशेषज्ञों के विचार-विमर्श के बाद देवनागरी में अन्य भाषाओं की ध्वनियों के सूचक प्रतीक विकसित किए, किंतु मुद्रणालयों में विशेष टाइप ढलवाने के उपरान्त ही उन विशेष चिन्हों का प्रयोग संभव हो सकेगा।

भाषा ध्वनियों की व्यवस्था है और लिपि वर्णों का संयोजन। लिपि का महत्त्व नगण्य नहीं है। लिपि की सहायता से भाषा युग-युगों तक स्थायित्व प्राप्त करती है और साहित्य की परंपराओं की रक्षा करती हुई उसके विकास में सहायक होती है। इस प्रकार यह किसी देश की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखती है। वस्तुत: लिपि भाषा को संरक्षण And गतिशीलता प्रदान करती है। भाषा को सीखने में लिपि का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। विभिन्न भाषाओं को विशेष लिपि में अंकित कर लेने से सामान्य व्यक्ति के लिए कई भाषाएँ सीखना सरल हो जाता है।

लिपि भाषा का शरीर है। लिपि Single अमूर्त्त भाव है जो प्रत्यक्ष अनुीाव से परे है। लिपि भाषा के साथ Single निश्चित संबंध है और वह है भाषा में ध्वनि की पर्याप्तता, जिस पर अभिव्यक्ति की सफलता निर्भर होती है। दूसरी ओर अर्ाि भाषा की आत्मा है जो भाषा को मनस् तत्व से जोड़ता है। भाषा के अंग हैं- Word, Means, भाव, अनुभूति और संवदेना। Means अमूर्त्त And गुणात्मक होता है जिसको जानने पर ज्ञान का सार प्राप्त Reseller जा सकता है। वस्तुत: Means-ग्राहकता पाठक का लक्ष्य होना चाहिए। भाषा-विशेष से पूर्वाग्रह का संबंध लिपि के साथ जोड़ना राष्ट्रीय हित में नहीं हैं देवनागरी लिपि में लिखा हुआ साहित्य केवल हिंदी और रोमन लिपि में लिखा हुआ विभिन्न भाषाओं का साहित्य केवल अंग्रेजी ही नहीं है।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *