सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा, परिभाषा And विशेषताएं
सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा, परिभाषा And विशेषताएं
अनुक्रम
सामाजिक स्तरीकरण Single सार्वभौमिक प्रघटना है। कोई भी Human समाज इससे वंचित नहीं है, यद्यपि स्तरीकरण विभिन्न Resellerों और अंशों में पाया जाता है। किसी भी समाज में, व्यक्ति, पद और समूह विशिष्ट मानकों और कसौटियों के आधार पर विभेदीकृत किये जाते हैं। वे मानक और कसौटियां, जिनके आधार पर लोग विभेदीकृत किये जाते हैं, Single समयावधि में उभर कर आती हैं। Single समाज की प्रकृति, उसकी संस्कृति, Meansव्यवस्था, और राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर स्तरीकरण सरल या कम विस्तृत या जटिल और अधिक विस्तृत होता है। किसी भी समाज में स्तरीकरण में विचारणीय बिन्दु Single व्यक्ति विशेष, या उसके परिवार या समुदाय की विभिन्न अनुपातों में उपलब्धियां हो सकती हैं। अत: Single व्यक्ति, Single परिवार, और Single समूह या तीनों विभिन्न सन्दर्भो और परिस्थितियों में या Single-Second के संग, Single समाज में श्रेणीकरण की इकाइयां हो सकती हैं।
सामाजिक स्तरीकरण का संCreationत्मक-प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण
मेलविन एम. ट्यूमिन ने शक्ति, सम्पत्ति, सामाजिक मूल्यांकन, और मानसिक संतोष (लाभ) की असमानता के आधार पर किसी सामाजिक समूह या समाज को पदों के सोपान में व्यवस्था को सामाजिक स्तरीकरण का नाम दिया है। किसी भी समाज में प्राय: शक्ति, सम्पत्ति (वर्ग) और सामाजिक मूल्यांकन (प्रस्थिति और प्रतिष्ठा), पद/स्थान अत्यिमाक आधार माने जाते हैं। मेक्स वेबर के According ‘वर्ग, प्रस्थिति और पार्टी, Meansात् आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक, समाज की तीन महत्वपूर्ण व्यवस्थायें/Creationयें हैं, जिनके द्वारा पद-स्थानों, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का वितरण Reseller जाता है। इसी प्रकार, टालकट पार्सन्स का भी सामाजिक स्तरीकरण से अभिप्राय: उन व्यक्तियों के विभेदी श्रेणीकरण से है, जिनसे Single सामाजिक व्यवस्था निर्मित होती है। उन व्यक्तियों को, सामाजिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण सन्दर्भो में, Single-Second से श्रेष्ठ और कमजोर समझा जाता है। पार्सन्स ने सतर्कता से ‘स्तरीकरण’ और ‘विभेदीकरण’ में अन्तर Reseller है, क्योंकि कसौटियां भी ‘सामाजिक’ और ‘गैर-सामाजिक’, क्रमश: विभाजित की गई हैं। Single सामाजिक व्यवस्था में इकाइयों के विभेदीय मूल्यांकन का आधार सामाजिक कसौटियां हैं। ये कसौटियां हैंμ नातेदारी, व्यक्ति विशेष की विशेषतायें, उपलिब्मायां, व्यवस्था, सत्ता, शक्ति आदि। गैर-सामाजिक कसौटियां मात्र विभेदीकरण का आधार हैं। आयु और यौन ( लिंग) ऐसे आधार हैं। इस प्रकार, पार्सन्स के According, स्तरीकरण इकाइयों के Reseller में व्यक्तियों (Human) के मानकीय रुझान (प्रवृत्ति) का मुख्य पहलू है।
पार्सन्स की तरह, कारे सालासतोगा ने विभेदीकरण,और स्तरीकरण,में अन्तर नहीं Reseller है। सामाजिक अन्तरक्रिया की प्रक्रिया द्वारा, व्यक्तियों, सामाजिक पदों या समूहों के बीच जो भी अन्तर उभरते हैं, उनको सालासतोगा ने सामाजिक स्तरीकरण, के बजाय सामाजिक विभेदीकरण, का नाम दिया है। वास्तव में, यह दृष्टिकोण ट्यूमिन और पार्सन्स द्वारा दी गई परिभाषाओं से बहुत भिन्न नहीं है। सालासतोगा की तरह, ट्यूमिन का भी मत है कि स्तरीकरण सामाजिक अन्तरक्रिया की प्रक्रिया से भी उभरता है। फिर भी, सालासतोगा स्तरीकरण की परिभाषित करने में अधिक नपे-तुले व स्पष्ट हैं। सालासतोगा के According, विभेदीकरण के चार प्रमुख प्रकार हैं (1) प्रकार्यात्मक विभेदीकरण या श्रम विभाजन, (2) श्रेणी विभेदीकरण, (3) प्रथा विभेदीकरण, और (4) प्रतियोगीय विभेदीकरण। सालासतोगा के According, श्रेणी विभेदीकरण का अभिप्राय स्तरीकरण-विभेदीकृत प्रस्थिति, या स्तरीकृत समूह, संगठन, या समाज से है। श्रेणी विभेदीकरण All Human समाजों और बहुत से पशु समाजों में विद्यमान है। सालासतोगा ने श्रेणी विभेदीकरण और सोपान में विभेद नहीं Reseller है। उनके According, सोपान Single स्थिर प्रघटना है, और विशेष सुविधाओं के बंटवारे के लिये वितरण व्यवस्था का कार्य करता है। इस प्रकार सोपान द्वारा, सोपान और असमान वितरण अधिक दृढ़ होता है और इससे असमानता का चक्र जटिल बनता है। समाज के सुसंचालन के लिये प्रकार्यात्मक विभेदीकरण या श्रम का विभाजन Single वांछनीय Need है। Single Human समाज की मूलभूत Needओं की पूर्ति के लिये प्रकार्यात्मक विभाजन के साथ गैर-विरोधात्मक श्रेणियों की Creation की जा सकती है। प्रथा विभेदीकरण का अभिप्राय उन नियमों से है, जिनके द्वारा विभेदीय उचित व्यवहार स्थापित Reseller जा सकता है। प्रतियोगीय विभेदीकरण का प्रयोजन सामान्य या Single विशेष सन्दर्भ में समाज के सदस्यों के Reseller में व्यक्तियों की सफलता और असफलता से है। इस प्रकार, श्रेणी विभेदीकरण ही, व्यक्तियों, सामाजिक पदों/स्थानों, समूहों और यहां तक कि समाजों पर लागू होता है और इसीलिये यह सर्वव्याप्त है। पार्सन्स की तरह सालासतोगा भी स्तरीकरण की जैविकीय और समाजशास्त्रीय व्याख्याओं का History करते हैं। जैविकीय व्याख्याओं में समय और स्थान और स्तरीकरण में भिन्नता जैसे कारकों को नकारा जाता है। समाजशास्त्रीय व्याख्या में व्यक्तियों और समूहों के बीच में सहयोग और द्वंद दोनों पर बल दिया जाता है।
पी.ए. सोरोकिन ने स्तरीकरण की Single विस्तृत परिभाषा दी है। सोरोकिन के According सामाजिक स्तरीकरण का तात्पर्य Single निश्चित जनसंख्या के विभेदीकरण से है, जिसमें सोपानीयता से वर्ग, Single-Second के साथ व्यवस्थित किये गये हैं। उच्च व निम्न स्तरों के अस्तित्व से यह प्रकट होता है। इस प्रकार, स्तरीकरण का आशय Single विशिष्ट समाज के सदस्यों के बीच अधिकारों और विशेष-सुविधाओं, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों, सामाजिक मूल्यों और निजी-विचारों, सामाजिक शक्ति और प्रभावों के असमान वितरण से है। सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न और अनेक स्पष्ट स्वReseller हैं। उदाहरण के लिये आर्थिक Reseller से स्तरीकृत, राजनीतिक दृष्टि से स्तरीकृत, और व्यवसाय के आधार पर स्तरीकृत स्वReseller प्रमुख हैं। ये All Single-Second से अन्तर्सबंधित हैं।
उपरोक्त described सामाजिक स्तरीकरण के अवधारणाकरण, आधुनिक उदार पश्चिमी दुनिया में व्याप्त प्रस्थिति विभेदों पर लागू होते हैं, जो पूंजीवाद द्वारा वशीभूत हैं। वास्तविकता तो यह है कि गैर-पश्चिमी दुनिया उसी तरह की औद्योगिक और पूंजीवादी शक्ति नहीं है। हमारी मान्यता है कि श्रम विभाजन या Single जैसी क्रियाओं की Need या प्रकार्यता की SingleResellerता सब Human समाजों में सही नहीं हो सकती। इसलिये, उपरोक्त उपगम के अन्तर्गत, स्तरीकरण की मान्य सर्वव्यापकता और प्रकार्यता के विषय में Single आलोचनात्मक दृष्टिकोण की Need है। पर औद्योगिक (आदिम) समाजों में सामाजिक स्तरीकरण के विश्लेषण के बारे में एम.जी. स्मिथ का कहना है कि स्तरीकरण कभी भी विभिन्न पद-स्थानों के मात्र अस्तित्व या उन पर स्थापित होने पर नहीं पाया जाता है, बल्कि स्तरीकरण उन सिद्धान्तों में पाया जाता है जिनके द्वारा पहुंच और अवसरों का वितरण नियंत्रित होता है।, स्मिथ के According, औद्योगिक समाजों में आयु पुज और यौन (लिंगभेद), सामानों तक पहुंच व अवसरों के लिये प्रमुख निर्धारक हैं। आयु और यौन भेद मात्र जैविकीय कसौटियां नहीं हैं। पर-औद्योगिक समाजों में, आयु और यौन सामाजिक और सांस्कृतिक प्रघटनायें हैं। पार्सन्स और सालासतोगा ने इनको मात्र जैविकीय या गैर-सामाजिक कसौटियां करार दिया है। जैविकीय आधार पर राजनीतिक शक्ति को वैधता दी जा सकती है, क्योंकि बुजुर्गो को युवा लोगों और महिला सदस्यों को नजरअंदाज करके अपने समुदायों में नेतृत्व प्रदान करने आ अवसर प्राप्त होता है। विश्लेषणिक और साकार संCreationओं या सदस्य इकाइयों और सामाजिक प्रक्रिया के सामान्यकृत पहलुओं की तरह, स्मिथ ने स्तरीकरण की विश्लेषणिक अवधारणाओं का History Reseller है। विश्लेषणात्मक दृष्टि से, टयूमिन और पार्सन्स जैसे प्रकार्यवादियों ने स्तरीकरण को All सामाजिक व्यवस्थाओं की Single निराकार Need माना है। साकारिक दृष्टि से, स्तरीकरण विशिष्ट समाजों से Added हुआ है। इस प्रकार स्मिथ के According स्तरीकरण प्रक्रिया और प्रस्थितियों की स्थिति दोनों है। भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रवृत्तियों की व्याख्या में योगेन्द्र सिंह ने स्तरीकरण को सिद्धांत, संCreation और प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्य में समझा है। सिंह का यह भी मत है कि प्रक्रिया अन्य दो बिन्दुओं, Meansात, सिद्धान्त और संCreation से अधिक आधारभूत है। स्मिथ के According प्रस्थितियों की अवस्था सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम व अवस्था दोनों हैं।
स्मिथ द्वारा की गई व्याख्या बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके मत में Single समाज में संस्थाकरण और समूहों/इकाइयों के बीच सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। Second Wordों में, क्रमश: आकस्मिकता और झगड़ा Single श्रेणीकरण व्यवस्था के आधार कतई नहीं बन सकते। इसलिये, संCreationत्मक सिद्धांतों द्वारा Single सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था की प्रकृति व कार्यविधि निर्धारित होती है। वर्तमान लाभ के वितरण (वितरण की प्रक्रियायें) संCreationत्मक सिद्धान्तों द्वारा नियंत्रित की जाती है। संCreation की अवधारणा द्वारा इन सिद्धान्तों (वितरणों) और उनके समायोगों की पहचान सुलभ होती है। संCreationत्मक परिवर्तन का अभिप्राय संCreationत्मक इकाइयों, Meansात् प्रस्थितियों में परिवर्तनों या आंशिक बदलावों से है। इस प्रकार, स्तरीकरण का अभिप्राय मात्र श्रेणीकृत सोपान से नहीं है, बल्कि, विभिन्न प्रस्थिति परतों में समानResellerी गुणवना से भी है, लेकिन समResellerता ‘स्थिर’ व्यवस्थाओं और जाति व्यवस्थाओं में नहीं पाई जा सकती। असमानता और स्तरीकरण Single सीमा तक Single-Second से भिन्न हैं। स्तरीकरण सामान्यतया मानकीय-रचित सिद्धान्तों और मूल्यों पर आधारित है, जबकि असमानता की उत्पनि वंशावलियों और आयु-फंजों जैसी पूर्व-निर्धारित स्थिर व्यवस्थाओं में दिखाई देती है। सामाजिक गैर-बराबरी के पेतों को आधार मान कर, स्तरीकरण और असमानता में भेद Reseller जा सकता है, या Second Wordों में, आधुनिक औद्योगिक समाजों और पर-औद्योगिक समाजों में अन्तर कर सकते हैं।
सामाजिक स्तरीकरण का मार्क्सवादी दृष्टिकोण
सामाजिक स्तरीकरण के विषय में शास्त्रीय मार्क्सवादी दृष्टिकोण, उपरोक्त described संCreationत्मक-प्रकार्यात्मक अवधारणाकरण की तुलना में, विश्लेषणात्मक दृष्टि से बिल्कुल भिन्न है। यह कहना सही नहीं होगा कि कार्ल मार्क्स ने प्रौद्योगिकी या आर्थिक निर्धारण के Single साधारण सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller था। मार्क्स ने समाज के बारे में Single वृहद् संCreationत्मक व्याख्या की उद्घोषणा की थी, जिसमें वर्ग वर्ग-संघर्ष और परिवर्तन की अवधारणायें प्रमुख थीं। अपने शास्त्रीय ग्रंथ केपिटल में मार्क्स ने लिखा हैμमात्र श्रमशक्ति के स्वामी, पूंजी के मालिक, और भूस्वामी, जिनकी आय के सामान, क्रमश:, वेतन, लाभ और लगान हैं, Second Wordों में, वेतनभोगी-श्रमिक, पूंजीपति और भूस्वामी उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति पर आधारित आधुनिक समाज के तीन दीर्घ वर्ग हैं।, मार्क्स यह भी कहते हैं कि सर्वत्र मध्यम और बीच के प्रस्थिति स्तरों को अलग रखने की रेखायें भी समाप्त हो जाती हैं। पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के विकास में यह प्रवृत्ति अधिक बढ़ जाती है। इसमें श्रम वेतन श्रम में और उत्पादन के सामान पूंजी में Resellerान्तरित हो जाते हैं। विरासत सम्पत्ति भी पूंजीवादी उत्पादन पद्धति में परिवर्तित हो जाती है। मार्क्स ने दो प्रश्न प्रस्तावित किये हैं
- वर्ग में क्या पाया जाता है?
- केसे तीन दीर्घ सामाजिक वर्ग श्रमिक, पूंजीपति और भूस्वामी बनते हैं?
यद्यपि, मार्क्स ने सामाजिक स्तरीकरण की Single स्पष्ट अवधारणा प्रस्तुत नहीं की है, फिर भी उसने वर्ग और वर्ग संघर्ष के बारे में आनुभविक सन्दर्भो पर बल दिया है। मार्क्स के According, History के प्रत्येक युग में Single प्रमुख उत्पादन विधि रही है और उसके आधार पर वर्ग संCreation बनी है, जिसमें King वर्ग और शोषित वर्ग, Meansात् समाज के दो प्रस्थिति स्तर देखे जा सकते हैं। इन वर्गो के बीच संघर्ष द्वारा मनुष्यों और समूहों के बीच सामाजिक संबंमा निर्धारित होते हैं। उत्पादन के सामानों पर नियंत्रण द्वारा यह और अधिक निर्धारित होता है और इससे लोगों के सम्पूर्ण नैतिक और बौण्कि जीवन का भी निर्धारण होता है। कानून और सरकार, कला और साहित्य, विज्ञान और दर्शन ये सब कुल मिलाकर प्रत्यक्ष Reseller में, King वर्ग के हितों की संतुष्टि करते हैं।
मार्क्सवादी उपागम के आधार पर हम कह सकते हैं कि स्तरीकरण का निर्धारण उत्पादन के सम्बन्धों की व्यवस्था से होता है, और ‘प्रस्थिति’ का निर्धारण इस व्यवस्था में उत्पादन के सामानों के स्वामित्व और अस्वामित्व के सन्दर्भ में व्यक्ति के स्थान (पद) द्वारा होता है। मार्क्सवादी सिद्धान्त में, हमें ‘वर्ग’ और ‘प्रस्थिति’ के बीच या वर्ग सोपान और सामाजिक स्तरीकरण में स्पष्ट अन्तर नहीं दिखाई देता है। मार्क्स ने यह स्पष्ट Reseller है कि उत्पादन ‘सामाजिक व्यक्तियों’ द्वारा Reseller जाता है, और इसको Single विशेष ‘सामाजिक संदर्भ’ में समझने की Need है। सामाजिक स्तरीकरण के सन्दर्भ में, मार्क्सवादी विचार में ‘प्रभुत्व’ और ‘अधीनता’ या ‘प्रभावकारी श्रेष्ठता-निम्नता सम्बन्ध’ पर बल दिया गया है। इस तरह दो वर्ग पूंजीपति और सर्वहारा पाये जाते हैं।
इस प्रकार मार्क्स के According Single सामाजिक वर्ग व्यक्तियों का कोई भी संकलन है, जो उत्पादन की व्यवस्था में समान कार्य करता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, स्वतंत्र मनुष्य और दास, संरक्षक और साधारण व्यक्ति, मालिक और नौकर संघ-मालिक और आम आदमी, या संक्षेप में, शोषक और शोषित द्वारा सामाजिक वर्गो की संCreation होती है। मार्क्स के मतानुसार वर्ग Single सामाजिक वास्तविकता, Single विद्यमान तथ्य है। Single वर्ग अपने अस्तित्व, स्थिति और उद्धेश्यों के बारे में विकसित चेतना रखने वाला Single वास्तविक समूह है। मार्क्स के लिये वर्ग Single दर्पण है, जिससे Single विशिष्ट समाज में संबंधों की सम्पूर्णता को देखा जा सकता है।
सामाजिक स्तरीकरण का मेक्स वेबर का दृष्टिकोण
सामाजिक स्तरीकरण के बारे में मेक्स वेबर का गहन और तर्कसंगत दृष्टिकोण वर्ग और स्तरीकरण पर मार्क्सवादी अवधारणा की Single आलोचनात्मक टिप्पणी के Reseller में समझा जा सकता है। वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त की विशिष्टता ‘शक्ति’ है। वेबर ने समाज की तीन ‘व्यवस्थाओं’, Meansात्, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं में, Single स्पष्ट रेखा अंकित की है। वेबर के According, Single समुदाय में ‘वर्ग’, ‘प्रस्थिति समूह’, और ‘पार्टियां’ (शक्ति समूह), शक्ति-वितरण की प्रघटनायें हैं। इस विभेद के आधार पर वेबर का सिद्धान्त बहुआयामी कहा जाता है। इसके विपरीत मार्क्स द्वारा प्रतिपािकृत सिद्धांत Singleल-आयामी हैं। वर्ग के सन्दर्भ में, वेबर के According, निम्न तीन बिन्दु महत्वपूर्ण हैं (अ) बहुत से लोगों के लिये उनके जीवन के अवसरों का Single विशेष कारक (तत्व) समान होता है। (ब) यह तत्व वस्तुओं के संग्रह और आय के अवसरों के Reseller में पूर्णत: आर्थिक हितों के सन्दर्भ में देखा जाता है। (स) इसके अतिरिक्त, यह तत्व वस्तु/पदार्थ की अवस्थाओं या श्रम बाजारों के अन्तर्गत पाया जाता है। इन तीन बिन्दुओं को Single साथ रखने पर ‘वर्ग स्थिति’ इंगित होती है। वर्ग स्थिति का निर्धारण ‘बाजार स्थिति से होता है। ‘वर्ग’ Word का अभिप्राय लोगों के किसी भी ऐसे समूह से है जो Single जैसी वर्ग स्थिति में पाया जाता हैं इसलिये, ‘सम्पत्ति’ और ‘सम्पत्ति का अभाव’ सब वर्ग परिस्थितियों की आधारभूत रेणियां हैं। बाजार-स्थिति में प्रतियोगिता के कारण कुछ खिलाड़ी (कर्ता) बाहर हो जाते हैं, और कुछ को संरक्षण प्राप्त होता है। इस प्रकार अंत में वर्ग-स्थिति बाजार-स्थिति बन जाती है। बाजार में अवसर की प्रकृति ही निर्णयकारी क्षण होती है।
Single समाज में सामाजिक सम्मान का जिस प्रकार से वितरण होता है, उसके द्वारा ‘सामाजिक संगठन’ (व्यवस्था) को परिभाषित Reseller जाता है। सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था दोनों राजनीतिक व्यवस्था (संगठन) से जुड़ी हुई हैं। परन्तु, दोनों Single समान नहीं हैं। बहुत हद तक सामाजिक व्यवस्था का निर्धारण आर्थिक व्यवस्था द्वारा होता है और फिर इस पर सामाजिक व्यवस्था की प्रतिक्रिया होती है। यहां पर हमें वेबर की वर्ग की व्याख्या में मार्क्सवादी विचार का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग दिखाई देता है। एच.एच. गर्थ और सी. डब्ल्यू. मिल्स के According वेबर के कार्य का Single भाग मार्क्स के आर्थिक भौतिकवाद को राजनीतिक और सैनिक भौतिकवाद द्वारा ‘घुमा-िपुरा कर’ प्रस्तुत करने का प्रयास कहा जा सकता है, लेकिन वेबर ने यह स्पष्ट कहा है कि ‘प्रस्थिति समूह’ और ‘वर्ग’ Single-Second से अलग हैं। प्रस्थिति समूह केवल बाजार सिद्धान्त से कार्य नहीं करते हैं। वर्गो के विपरीत, प्राय: प्रस्थिति समूह समुदाय होते हैं और सामान्यतया उनका स्वReseller अनिश्चित होता है। ‘वर्ग-स्थिति’ की तरह ही ‘प्रस्थिति-स्थिति’ पाई जाती है, और इसमें सम्मान का सामाजिक मापन होता है, जो अधिकतर लोगों को मान्य होता है। यह तथ्य वर्ग-स्थिति से बंधा हुआ हो सकता है, और इसके विपरीत वर्ग-स्थिति, प्रस्थिति-स्थिति से बंधी हुई पाई जा सकती है, लेकिन प्रस्थिति-सम्मान अनिवार्यत: वर्ग-स्थिति से Added हुआ नहीं हो सकता। प्राय: यह केवल सम्पत्ति के भावों के स्पष्ट विरोध में पाया जाता है। सम्पत्तिवान और सम्पत्तिविहीन दोनों लोग Single ही प्रस्थिति समूह में पाये जा सकते हैं, लेकिन मार्क्सवादी पैराडाइम में पूंजीपति और सर्वहारा के बीच इस प्रकार की समानता की सोच संभव नहीं है। पूंजीपति और सर्वहारा दो विपरीत दिशाओं में हैं, क्योंकि वे वर्ग पर आधारित दुश्मन हैं, और उनकी प्रस्थितियां भी उत्पादन व्यवस्था में उनके विरोधी स्थानों के कारण भिन्न होती हैं।
प्रस्थिति सम्मान के सन्दर्भ में, वेबर ने ‘प्रस्थिति स्तरीकरण की गारन्टीज’ का उपयोग Reseller है, और यह Single विशिष्ट जीवन-शैली द्वारा प्रदर्शित की जाती है। यहां अत्यधिक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि सामाजिक मेल-मिलाप पर बंमान रहते हैं और यह आर्थिक प्रस्थिति के अधीन नहीं है। ‘प्रस्थिति चक्र’ विवाहों द्वारा स्पष्ट दिखाई देता है। प्रस्थिति समूहों को गलियों, पड़ोसों, समूहों, मंदिरों, विशेष स्थानों आदि पर Singleत्रित होते हुए देख सकते हैं। ‘सजातीय अलगाव’ और ‘जाति’, प्रस्थिति चक्रों के उनम उदाहरण हैं। प्रस्थिति स्तरीकरण की व्यवस्था को स्थिरता कानून द्वारा मान्य सामाजिक व्यवस्था और परम्पराओं व संस्कारों दोनों से प्राप्त होती है। प्रस्थिति समूहों से जीवन के ‘शैलीकरण’ की उत्पनि होती है। वस्तुओं का उपभोग और ‘जीवन शैलियां’ प्रस्थिति समूहों के स्तरीकरण के सूचक हैं।
वेबर के सामाजिक स्तरीकरण की सोच में अतिमहत्वपूर्ण तत्व ‘शक्ति’ हैं वेबर के According, शक्ति Single व्यक्ति या बहुत से व्यक्तियों के द्वारा, अन्य लोगों के विरोध के बावजूद भी, जो उस क्रिया में भागीदारी करते हैं, Single सामूहिक कार्य में अपनी इच्छा को पूरा करने का अवसर है।, शक्ति आर्थिक या सामाजिक तौर पर निर्धारित हो सकती है। परनतु शक्ति अपने-आप में आर्थिक और सामाजिक आधार पर निर्धारित शक्ति से भिन्न है। इसके विपरीत, आर्थिक शक्ति अन्य आधारों पर विद्यमान शक्ति का परिणाम हो सकती है। Single व्यक्ति अपने आपको आर्थिक Reseller से शक्तिशाली बनाने के लिये ही दौड़भाग नहीं करता। शक्ति (आर्थिक शक्ति सहित) केवल शक्ति पाने के लिये महत्वपूर्ण मानी जा सकती हैं अनेक बार शक्ति प्राप्त करने की इच्छा ‘सामाजिक सम्मान’ द्वारा भी निर्धारित होती है, लेकिन केवल आर्थिक शक्ति या रुपये की नग्न शक्ति, किसी भी तरह सामाजिक सम्मान का आधार नहीं मानी जा सकती है। शक्ति को भी सामाजिक सम्मान का Only आधार नहीं मान सकते। प्रेरित/प्रदन सामाजिक सम्मान या प्रतिष्ठा भी राजनीतिक या आर्थिक शकित का आधार हो सकते हैं। शक्ति और सम्मान दोनों विधि व्यवस्था से आश्वस्त किये जा सकते हैं, परन्तु प्राय: यह उनका प्राथमिक पेत नहीं है। विधि व्यवस्था Single अतिरिक्त पेत है, और इसलिये इसके द्वारा शक्ति और सम्मान हमेशा प्राप्त नहीं किये जा सकते।
वेबर ने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘क्लास, स्टेटस, पार्टी’ में कहा है कि पार्टियां (राजनीतिक दल) शक्ति के मकान में रहती हैं। पार्टियों का कार्य ‘सामाजिक शक्ति’ की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहता है, Meansात् शक्ति सार्वजनिक कार्य को, बिना उसकी विषयसूची जाने, प्रभावित करती है। शक्ति किसी भी संगठन या Single विशेष सन्दर्भ में विद्यमान रहती है, जहां पर कार्यकर्ताओं व भागीदारों में अन्तक्रिया पाई जाती है। पार्टियां हमेशा समाज में ढलती हैं, Single उद्धेश्य को लेकर बढ़ती हैं, चाहे वह निजी कारण से ही हो। ‘वर्ग स्थिति’ और ‘प्रस्थिति स्थिति’, ‘पार्टियों का निर्धारण कर सकती है, लेकिन पार्टियां न तो ‘वर्ग’ ही हो सकती हैं, और न ही ‘प्रस्थिति समूह’। वे आंशिक Reseller में ‘वर्ग’ हैं और आंशिक Reseller में ‘प्रस्थिति पार्टियां’ हैं और कभी-कभी वे दोनों ही नहीं हैं। पार्टियां समुदाय में प्रभुत्व की संCreation को दिखाती हैं। शक्ति प्राप्ति के सामान, नग्न हिंसा से लेकर मान प्रलोभन द्वारा, मतों के लिये प्रचार, सामाजिक प्रभाव, जोशीले भाषण, सुझाव, भपे झूठ आदि हो सकते हैं।
आलोचनात्मक टिप्पणी
सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं के विवेचन के बाद उन पर अलोचनात्मक टिप्पणी भी आवश्यक है। परन्तु सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त पर लिखे गये अमयाय में अधिक विस्तार से विश्लेषण Reseller जायेगा। डेरेनडार्फ के According सामाजिक स्तरीकरण सामाजिक व्यवहार के नियंत्रण के सकारात्मक और नकारात्मक नियमनों का Single तात्कालिक परिणाम है। नियमन हमेशा ‘वितरणीय प्रस्थिति की श्रेणी व्यवस्था’ उत्पन्न करते हैं। सब Human समाजों की विशिष्ट विशेषताओं में, जो उनके लिये आवश्यक है, उनमें स्तरीकरण पाया जाता हैं Single समाज में Single सत्ता संCreation होती, और उसके द्वारा मानकों और नियमनों को स्थापित रखा जाता हैं समाज में ‘संस्थाकृत शक्ति’ होती है। इस प्रकार स्तरीकरण की उत्पनि मानक, नियमन और शक्ति की निकटता से जुड़ी हुई तिकड़ी से होती है। सत्ता के सम्बन्ध सदैव आधिपत्यता और अधीनस्थता के सम्बन्ध होते हैं।
स्तरीकरण के बारे में पार्सन्स, मार्क्स और वेबर की अवधारणाओं की आलोचनात्मक टिप्पणी के Reseller में, स्तरीकरण के बारे में डेरेनडार्क के विचार बहुत ज्ञानक्रर्माक और तार्किक दृष्टि से गहन है। डेरेनडार्क के According, फ्वर्ग का Single सिद्धान्त जो उत्पादन के सामानों के आधार पर समाज का विभाजन स्वामियों और गैर-स्वामियों में करता है, ऐसे समाज में जैसे ही वैध स्वामियों और गैर-स्वामियों में करता है, ऐसे समाज में जैसे ही वैध स्वामित्व और वास्तविक नियंत्रण में अन्तर Reseller जाता है तो वर्ग के उस सिद्धान्त का विश्लेषणात्मक महत्व समाप्त हो जाता है।, डेरेनडार्क का मत है कि समाजों में सत्ता के स्थानों (पदों) के विभेदीय वितरण और उनकी संस्थात्मक व्यवस्थाओं द्वारा सामाजिक वर्ग और उनके संघर्ष उत्पन्न होते हैं। इसलिये, उत्पादन के सामानों पर नियंत्रण, सत्ता का विशिष्ट उदाहरण है। वर्ग सामाजिक संCreation का तत्व है, जिसका निर्धारण सत्ता और उसके वितरण द्वारा होता है। इस प्रकार, वर्ग सामाजिक संघर्ष समूह है, जो कि अनिवार्यत: किसी संयोजित संगठन में सत्ता की कार्यवाही या गैर-कार्यवाही द्वारा निर्धारित होते हैं।
स्तानिसला ओस्सोवस्की की वर्ग की अवधारणा में सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा की Single आलोचनात्मक टिप्पणी दिखाई देती है। ओस्सोवसकी के According सामाजिक संCreation में वर्ग अत्यंत व्यापक समूहों के Reseller में गठित है। वर्ग विभाजन का सम्बन्ध सामाजिक प्रस्थिति से है, जो विशेषाधिकारों और भेदभावों की व्यवस्था से Added हुआ है और जिसका निर्धारण जैविकीय कसौटियों से नहीं होता है। Single सामाजिक वर्ग में व्यक्तियों की सदस्यता सापेक्षिक दृष्टि से स्थायी रहती है। ओस्सोवस्की ने जो सुझाया है, वह मार्क्स और वेबर के विचारों से बहुत भिन्न है। ओस्सोवस्की का अभिमत ट्यूमिन और पार्सन्स के दृष्टिकोणों के अधिक निकट है। सामाजिक संCreation को समझने के लिये, ओस्सोवस्की ने ‘श्रेणी’ की योजना का सुझाव दिया है। श्रेणी वैयक्तिक तौर पर अनुमानित और वस्तुपरकता से मापे हुए पद (स्थान) दोनों को इंगित करती है। ओस्सोवस्की ने श्रेणी को सरल और सम्मिश्रित भागों में विभाजित Reseller है। आय, मान और सम्पत्ति जैसी वस्तुनिष्ठ कसौटियों पर श्रेणी आधारित है। ये वर्ग विभाजन के आधार हैं, और श्रेणी सम्मिश्रित तब बनती है, जब दो या दो से अधिक बेमेल कसौटियां शामिल होती हैं।
स्तरीकरण की परम्परागत अवधारणा की Single अन्य आलोचनात्मक टिप्पणी भी उस मत में है, जिसके According वर्गो को वैयक्तिक कसौटियां और स्तरणों को वस्तुनिष्ठ इकाइयां माना जाता है। Single सामाजिक वर्ग Single समूह है, क्योंकि वर्ग श्रेणी (स्थान) व हितों और Single समान दृष्टिकोण के द्वारा समूह वर्ग के बारे में सोचता है। रिचार्ड सेन्टर्स के According, ‘वर्ग’ Single ‘वैयक्तिक तत्व’ है, और ‘स्तरण’ व्यवसाय, आय, शक्ति, जीवन स्तर, शिक्षा, कार्य बुद्धि आदि वस्तुनिष्ठ आयामों से निर्धारित होता है। वर्ग की प्रकृति वैयक्तिक है, क्योंकि वह वर्ग चेतना (Meansात् समूह की सदस्यता की भावना) पर निर्भर है। Single व्यक्ति का वर्ग उसकी आत्मा का हिस्सा है। वर्ग के बारे में ऐसा दृष्टिकोण बिल्कुल अटपटा लगता है, फिर भी इसके द्वारा वर्ग और स्तरीकरण की मनोवैज्ञानिक व्याख्या का बोध होता है।
सामाजिक स्तरीकरण के विषय में डाहरेडोर्क के मत से मेल रखता हुआ अभिमत जरहार्ड लेन्सकी ने प्रस्तुत Reseller है। ट्यूमिन और पार्सन्स के दृष्टिकोणों के विपरीत, लेन्सकी ने सामाजिक स्तरीकरण के परिणामों के बजाय इसके कारणों पर बल दिया है। लेन्सकी का मयान प्रतिष्ठा के बजाय शक्ति और विशेषाधिकार पर है। Human समाजों में सामाजिक स्तरीकरण और विपरित प्रक्रिया में अन्तर नहीं है, दोनों Single समान हैं। स्तरीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जो मूल्य (पदार्थ, वस्तुयें और सामान) कम उपलब्ध हैं, उनका वितरण Single प्रमुख प्रघटना के Reseller में Reseller जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण पर उपलब्ध पर साहित्य पर Single नजर डालने से स्पष्ट होता है कि Human समाज में तीव्र परिवर्तन के कारण ‘प्रक्रिया’ का तत्व बहुत प्रबल हो गया है। ‘पूंजीपतिकरण’, ‘निजीकरण’, ‘असर्वहाराकरण’, ‘प्रस्थिति बेमेल’, ‘प्रस्थिति पारदश्र्ाीकरण’, ‘वर्गविहीनता’, ‘समतावाद’, ‘अस्तरीकरण’, ‘पपाुन:स्तरीकरण’, ‘भूमण्डलीकरण’ आदि धारणाओं से स्तरीकरण के अवधारणाकरण में और अधिक सामग्री Singleत्रित हुई है, लेकिन इससे सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित करने का कार्य बहुत कठिन और जटिल भी हुआ है।
‘सामाजिक गतिशीलता’ की अवधारणा पर मंथन करने से पूर्व, सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा पर Discussion को समेटते हुए, हम पपाुन: History करना चाहेंगे कि स्तरीकरण के दो स्वReseller हैं (i) श्रेणीकृत पैमाना या गैर-बराबरी और (ii) विभेदीय सामाजिक स्थापना। दीपांकर गुप्ता के According First को सोपान कहा जा सकता है और Second में क्षितिजीय विभेद या अन्तर देखे जा सकते हैं। शक्ति, प्रस्थिति और प्रभाव के सोपान हो सकते हैं। जैविकीय या भाषायी अन्तर प्राय: गैरμसोपानीय होते हैं, जबकि आय, मान, शक्ति आदि पर आधारित विभेद श्रेणीकृत होते हैं, और निश्चय ही वे सोपानीय भी होते हैं। चूंकि, सोपान और विभेद (अन्तर) Single-Second से जुड़े हुए हैं, इसलिये सामाजिक व्यवस्था और गतिशीलता निरन्तर Single ही वास्तविकता के भाग हैं, Meansात् Single समाज में सामाजिक सम्बन्धों के व्यवस्थापन के भाग हैं। सामाजिक स्तरीकरण की कोई भी व्यवस्था पूर्णत: स्थिर, जड़ व बन्द नहीं हैं और न ही कोई व्यवस्था पूर्णत: गतिमान, परिवर्तनकारी और खुली है। देखने की बात यह है कि Single व्यवस्था कि सीमा/अंश तक बन्द या खुली है।
सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा And विशेषताएं
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मनुष्यों और समूहों को प्रस्थिति के पदानुक्रम में न्यूनािमाक स्थायी Reseller से श्रेणीबण् Reseller जाता है, स्तरीकरण कहलाती है। रेमण्ड मुरे (Raymond W. Murray) के According, सामाजिक स्तरीकरण समाज का ‘उच्च’ और ‘निम्न’ सामाजिक इकाइयों में सामान्तर विभाजन है। प्रत्येक समाज पृथक समूहों में विभक्त है। प्राचीनतम समाजों में भी किसी न किसी प्रकार का सामाजिक स्तरीकरण था। जैसा कि सोरोकिन (Sorokin) ने कहा है अस्तरीकृत समाज जिसके सदस्यों में वास्तविक समानता हो, केवन Single कल्पना है, जो Human-History में कभी साकार नहीं हुई। कोई भी समाज अस्तरीकृत नहीं है। स्तरीकरण में समाज के सदस्यों में असमान अधिकारों And विशेषाधिकारों का वितरण निहित है। गिसबर्ट (Gisbert) के According, फ्सामाजिक स्तरीकरण का आशय समाज का विभिन्न ऐसी स्थायी श्रेणियों और समूहों में विभाजन है, जो उच्चता और अधीनता के सम्बन्धों से परस्पर-सम्बद्ध होते हैं। टालकाट पारसन्स के Wordों में, साामाजिक स्तरीकरण से अभिप्राय किसी सामाजिक अवस्था में व्यक्तियों का ऊचे और नीचे के पदानुक्रम में विभाजन है। जान एफ. क्यूबर And विलियम एफ. केन्फल (John F. Cuber and Willian F. Kenkel) ने इसे विभेदक विशेषाधिकार की अधिरोपित श्रेणियों का प्रतिमान कहा है। ये विशेषाधिकार किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की बजाय प्रस्थिति का निर्धारण करते हैं, जिसके परिणामस्वReseller उच्च या निम्न, श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ व्यक्तियों की स्थिति होती है। कुर्ट बी. मेयर (Curt B. Mayer) के According, सामाजिक स्तरीकरण विभेदीकरण की Single विधि है, जिसमें सामाजिक पदों का वंशानुक्रम निहित होता है,जिसमें इन पदों के स्वामी को Single-Second के संदर्भ में महत्वपूर्ण सामाजिक बातों में श्रेष्ठ, समान या निम्न समझा जाता है। लुंडबर्ग (Lundberg) ने लिखा है, स्तरीकृत समाज वह है, जिसमें असमानता होती है तथा ऐसे विभेद होते हैं, जो उनके द्वारा निम्न और उच्च आंके जाते हैं।
सामाजिक स्तरीकरण विभेदीकरण की Single विधि है, जिसमें सामाजिक पदों का वंशानुक्रम निहित होता है,जिसमें इन पदों के स्वामी को Single-Second के संदर्भ में महत्वपूर्ण सामाजिक बातों में श्रेष्ठ, समान या निम्न समझा जाता है।
प्रस्थिति की असमानता – सामाजिक स्तरीकरण की विशेषता
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि प्रस्थिति की असमानता अथवा पद का विभेदीकरण, सामाजिक स्तरीकरण की प्रमुख विशेषता है। यहां सामाजिक स्तरीकरण होगा, वहां सामाजिक असमानता होगी। यद्यपि Human ने सदैव ऐसे संसार का स्वप्न देखा है जिसमें प्रस्थिति का भेदभाव न हो और All व्यक्ति समान हों। फिर भी, यह कटु सत्य है कि समाज विभिन्न पदों को विभिन्न अधिकार And सुविधाएं प्रदान करता है। कुछ व्यक्तियों और समूहों को उनके द्वारा भोगे जाने वाली सुविधाओं और विशेषाधिकारों के आधार पर दूसरों की अपेक्षा उच्च माना जाता है। उदाहरण के लिए भारत में डाक्टरों या इंजीनियरों को अमयापकों की अपेक्ष उच्च माना जाता है। श्रेणी के Reseller में पूर्वोक्त का उच्च सामाजिक मान है। विभिन्न पदों से संलग्न मान या प्रतिष्ठा सामाजिक व्यवस्था का Single भाग बन जाती है और यही स्तरीकरण हैं
हां, यह स्मरण रखना चाहिए कि विभिन्न पदों से संलग्न मान या मर्यादा का प्रकार अथवा इसकी मात्रा All समाजों में समान नहीं होते। और भी, विभिन्न पदों से विभिन्न मानों को संलग्न करने का आधार भी तर्कसंगत होना आवश्यक नहीं। मान के विभेदों के अनेक कारण हो सकते हैं इनमें से कुछ पूर्णतया अंधविश्वासी, अतार्किक तथा विस्मृत And पुरातन मत में छिपे हुए कारण हो सकते हैं। संभव है कि किसी पद को धार्मिक आस्था के कारण कल्पित देवी आदेश द्वारा उच्च मान प्रदान Reseller गया हो।
स्तरीकरण से अंत:क्रिया सीमित हो जाती है, जिसके फलस्वReseller विभिन्न श्रेणियों के बीच अंत:क्रिया की अपेक्षा किसी विशेष श्रेणी के मनुष्यों के बीच अंत:क्रिया अधिक हो जाती है। किसी विशिष्ट स्तरीकरण प्रणाली में, कुछ प्रकार की अंत:क्रिया अन्य की अपेक्षा अधिक प्रतिबिन्मात हो सकती है। जीवन-साथी के चपापाुनाव में, व्यवसाय के चपापाुनाव में, मित्रों को बनाने में स्वचालित टैंफिक के प्रवाह की अपेक्षा अधिक प्रतिबन्मा हो सकते हैं। मोटर-चालन निर्धारित नियमों के According न कि अपनी अथवा Second चालकों की सामाजिक प्रस्थिति के According आगे-पीछे गुजर जाने का रास्ता देता या लेता है।
स्तरीकरण का आरम्भ केसे हुआ?
गम्प लोविज (Gumplowicz), ओपेनहीमर (Oppenheimer) तथा अन्य समाजशास्त्रियों का विचार है कि सामाजिक स्तरीकीण का प्रारम्भ Single समूह द्वारा Second की विजय में ढूंढा जा सकता है। विजयी समूह प्राचीन काल में विजित श्रेणी पर प्रभुत्व स्थापित कर स्वयं को उच्च श्रेणी का समझता था, जिससे विजित श्रेणी निम्न बन गई। सीसल नार्थ (Cesil North) भी Single समूह की Second समूह पर विजय को विशेषाधिकार की उत्पनि का कारण मानता है। उसने तो यहां तक कहा है कि फ्जब तक जीवन का शांतिपूर्ण क्रम चलता रहा तब तक कोई तीव्र और स्थायी श्रेणी-विभाजन प्रकट नहीं हुआ। परन्तु सोरोकिन (Sorokin) इस विचार से Agree नहीं हैं। उनके According, संघर्ष स्तरीकरण को सुग बनाने वाला तो हो सकता है, परन्तु उसे आरम्भ करने वाला नहीं। स्तरीकरण All समाजों, शांतिपूर्ण And Fightप्रिय, में पाया जाता है। उसने स्तरीकरण का कारण वंशानुगत Humanीय विभेदों And पर्यावरण-सम्बन्धी दशाओं के अन्तरों को माना है।
स्पेंगलर (Spengler) के According, स्तरीकरण का आधार अभाव है। अब समाज में प्रकार्यो And शक्तियों के संदर्भ में विभिन्न पदों में विभेद Reseller जाता है And इन पदों को विशेष अधिकार And विशेषाधिकार प्रदान किये जाते हैं तो अभाव उत्पन्न होता है। इस आधार पर कुछेक पद अधिक वांछनीय बन जाते हैं क्योंकि इन पदों पर विशेष लाभ प्राप्त हैं। अतएव, दुर्लभ विशेषाधिकारों And शक्तियों के आबंटन से स्तरीकरण का जन्म होता है।
नि:संदेह प्रस्थिति के अंदर All समाजों में पाए जाते हैं। डेविस (Davis) ने स्तरीकरण की प्रकार्यात्मक Need पर बल दिया है। उसके According, समाज में ऐसे पुरस्कार होने चाहिए, जिनका प्रयोग वह प्रलोभनों के Reseller में कर सके तथा ऐसी विधि होनी चाहिए, जिनसे इनका वितरण पद के According भिन्न-भिन्न Reseller में हो सके। सामाजिक पदों के According पुरस्कारों का वितरण सामाजिक स्तरीकरण को जन्म देता है। ये पुरस्कार आर्थिक प्रलोभनों, सौंदर्यात्मक प्रलोभनों And प्रतीकात्मक के Reseller में हो सकते हैं। प्रतीकात्मक प्रलोभन ऐसे प्रलोभन हैं, जो व्यक्ति के मान And अहं की वृद्धि करते हैं। पुरस्कारों का वितरण सामाजिक असमानता को जन्म देता है। डेविस के According, सामाजिक असमानता, अचेतन Reseller से अपनाई हुई ऐसी विधि है, जिसके द्वारा विभिन्न समाज यह विश्वास दिलाते हैं कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों पर चेतन Reseller से सर्वाधिक योग्य व्यक्तियों को रखा गया है। अतएव प्रत्येक समाज में आवश्यक Reseller से संस्थागत असमानता अथवा सामाजिक स्तरीकरण रहना चाहिए।
परन्तु अन्य समाजशास्त्री स्तरीकरण की प्रकार्यात्मक व्याख्या को स्वीकार नहीं करते। उनके According, स्तरीकरण व्यवस्था इसलिये उपस्थित है क्योंकि सर्वोच्च स्तर पर वासी समाज के व्यक्ति इस व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं। स्तरीकरण को समझने की कुंजी प्रकार्यात्मक Need नहीं है अपितु सत्ता है। मुखिया, King, कुलीन अथवा उच्च वर्ग All का अपने पद को Windows Hosting बनाये रखने, And Second व्यक्तियों को अपने समू से बाहर रखने में समान हित है ताकि सत्ता सम्बन्धों को नियंत्रित करने में उनका आधिपत्य बना रहे। अतएव, प्रकार्यात्मक Need दिखाई देने वाला तत्व वास्तव में अभिजन नियंत्रण का तत्व है।
सामाजिक स्तरीकरण समाज में वर्ग-विभाजन का Reseller धारण करता है। History के दौर में विभिन्न समयों पर विभिन्न सामाजिक वर्ग वर्तमान रहे हैं। इस प्रकार, दास And स्वामी, सामन्त And क्ृषक, पूंजीपति And श्रमिक प्रमुख वर्ग हुये हैं। भारत में वर्ग ने जाति का Reseller धारण Reseller है।
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