मंत्री-परिषद का गठन, कार्यकाल, शक्तियाँ और कार्य
मंत्री-परिषद का गठन, कार्यकाल, शक्तियाँ और कार्य
अनुक्रम
संविधान के अनुच्छेद 74(9) में मंत्री-परिषद की व्यवस्था है। 44वें संविधान संशोधन के बाद इस अनुच्छेद का स्वReseller इस प्रकार है- राष्ट्रपति को अपने कार्यों का संपादन करने में सहायता और मंत्रणा देने के लिए Single मंत्री-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति अपने कार्यों के निर्वहन में उसकी मंत्रणा के According चलेंगे। राष्ट्रपति मंत्री-परिषद है उसकी मंत्रणा के पुनर्विचार की माँग कर सकते हैं। ऐसे पुनर्विचार के बाद भी मंत्रणा राष्ट्रपति को भेजी जाती है। उसे वह उसी के According स्वीकार करेंगे। संविधान के अनुच्छेद 75 में संघीय मंत्री-परिषद के संगठन से संबंधित 6 मौलिक नियम निर्धारित किए हैं।
- प्रधानमंत्री की Appointment राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी और शेष मंत्रियों की Appointment प्रधानमंत्री के परामर्श पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी।
- राष्ट्रपति की इच्छा तक ही मंत्री अपने पद पर रहेंंगे।
- मंत्री-परिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक Reseller से उत्तरदायी होगी।
- किसी मन्त्री के अपने पद ग्रहण करने से First राष्ट्रपति उससे तृतीय अनुसूची में इसके लिए दिए हुए प्रपत्रों के According पद की तथा गोपनीयता की शपथ कराएगा।
- अगर ऐसा मंत्री जो अपनी Appointment के समय संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं होता और 6 महीने के अन्दर-अन्दर संसद के किसी भी सदन की सदस्यता प्राप्त नहीं कर सकता तो 6 महीने समाप्त होने पर वह मंत्री नहीं रह सकेगा।
- मंत्रियों के वेतन तथा भत्ते ऐसे होंगे जैसे समय-समय पर संसद विधि द्वारा निर्धारित करे तथा जब तक संसद इस प्रकार निर्धारित न करे तब तक ऐसे होंगे जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं।
उक्त अनुच्छेदों को हमें संविधान के अन्य उपबंधों, सांविधानिक अभिसमयों और उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के प्रकाश में लेना चाहिए।
- अनुच्छेद 75 (1) के According प्रधानमंत्री की Appointment यद्यपि राष्ट्रपति करता है किन्तु इस मामले में वह कदाचित ही अपने स्व-विवेक का प्रयोग कर सकता है। प्रधानमंत्री की Appointment में मनमानी नहीं की जा सकती क्योंकि राष्ट्रपति को ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुनना है जो लोक सभा के बहुमत दल का नेता हो। अनुच्छेद 75(3) के According मंत्री-परिषद लोक सभा के प्रति सामूहिक Reseller से उत्तरदायी है। इसका Means भी यही है कि कोई ऐसा ही व्यक्ति प्रधानमंत्री नियुक्त Reseller जाना चाहिए जिसे लोक सभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त हो।
- राज्य सभा के सदस्य को भी प्रधानमंत्री नियुक्त Reseller जा सकता है, बशर्ते कि उसे लोक सभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त हो और वह बहुमत उसे अपना नेता चुने।
- साधारण परिस्थितियों में तो राष्ट्रपति के लिए प्राय: यह सन्देह करने की गुंजाइश नहीं होती कि किस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त Reseller जाए। लेकिन विशेष परिस्थितियों में ऐसे अवसर उपस्थित हो सकते हैं जब राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की Appointment में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने की स्वतंत्रता मिल जाए। यदि लोक सभा में किसी को भी बहुमत प्राप्त न हो तो राष्ट्रपति किसी भी दल के नेता को मंत्री-परिषद बनाने के लिए आमन्त्रित कर सकता है, बशर्ते कि उसे यह संतोष हो कि वह व्यक्ति मंत्री-परिषद का निर्माण कर सकेगा। पर ऐसी परिस्थिति में भी राष्ट्रपति निर्माण कर सकेगा। पर ऐसी परिस्थिति में भी राष्ट्रपति को स्व-विवेक के प्रयोग का अवसर संभवत: कम ही प्राप्त होगा क्योंकि प्राय: कर्इ दल मिलकर अपना नेता First ही चुन लेते हैं और इस तरह से लोक सभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त हो जाता है। राष्ट्रपति को स्व-विवेक के प्रयोग का दूसरा अवसर तब मिलता है, जब बहुमत का उपभोक्ता प्रधानमंत्री स्वयं त्याग-पत्र न देख पाता। इस स्थिति में राष्ट्रपति किसी प्रभावशाली व्यक्ति को मंत्रि-परिषद् निर्माण के लिए आमन्त्रित कर सकता है।
- मंत्रि-परिषद् के अन्य सदस्य प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। प्रधनमंत्री की इच्छा के विरूद्व राष्ट्रपति किसी मंत्रि को पदच्युत नहीं कर सकता।
- मंत्री संसद के सदस्य होते हैं और लोक सभा के प्रति सामूहिक Reseller से उत्तरदायी होते हैं। इसका स्वाभाविक निष्कर्ष यह है कि मन्त्रिगण जो कुछ भी राष्ट्रपति के नाम में करते हैं, उसके लिए वे संसद के सामने उत्तरदायी होते हैं। वे अपने किसी अवैध तथा असंवैधानिक कार्य के लिए राष्ट्रपति के आदेश की आड़ नहीं ले सकते।
मंत्री-परिषद आकार और Creation
इस के आकार और Creation से संबंधित कोई औपचारिक नियम नहीं हैं। इस में किस को इससे लेना है यह प्रधानमंत्री पर निर्भर होता है। सामान्य Reseller में इस में 50 से 80 मंत्री होते हैं। उनको निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जाता है। अब यह Single कानून है कि मंत्रि-परिषद् में लोक सभा की सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक मंत्रि नियुक्त नहीं किए जा सकते।
केबिनेट मंत्री
इनकी संख्या 15 से 20 के बीच होती है। इनके समूह को केबिनेट कहा जाता है जो मंत्रि-परिषद् की नीति-निर्माण और निर्णय-निर्माण करने वाला Single शक्तिशाली भाग होता है। उसमें सत्ताधारी दल। दलों के प्रमुख नेता होते हैं, वे प्रधानमंत्री के नजदीकी होते हैं। इनके पास महत्त्वपूर्ण विभाग होते हैं।
राज्य मंत्री
वह दूसरी श्रेणी के मंत्री होते हैं जो केबिनेट के सदस्य नहीं होते। Single राज्यमंत्री या तो किसी छोटे विभाग का स्वतंत्र Reseller में चार्ज संभालता है या उसको Single केबिनेट मंत्री से जोड़ दिया जाता है। गृह विभाग, विदेशी मामले, रक्षा हित, कृषि, Human संसाधन जैसे विभागों में 2 या 3 राज्य मंत्री होते हैं जबकि हवाई यात्रा, सूचना और प्रसारण, श्रम, रेलवे, लोक कल्याण, जमीनी यातायात और कपड़ा जैसे विभागों के मुखिया राज्य मंत्री होते हैं। ऐसे मंत्री केवल उस समय ही केबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं जब उनको इससे संबंधित प्रधानमंत्री के द्वारा विशेष Reseller में केबिनेट की किसी बैठक में भाग लेने का निमन्त्रण दिया जाता है।
उप-मंत्री
वे सहायक मन्त्री होते हैं जिनको केबिनेट मन्त्रियों या राज्य मन्त्रियों से जोड़ा जाता है। कोई भी उप-मंत्री किसी भी विभाग का स्वतंत्र Reseller में चार्ज नहीं संभालता। उसका कार्य उस मन्त्री की सहायता करना होता है जिसके अधीन वह कार्य करता है। उसको मुख्य Reseller में अपने विभाग से संबंधित प्रश्नों के संसद में दिए जाने वाले उत्तर तैयार करने और संसद में में सरकारी बिल पास करवाने की प्रक्रिया में सहायता करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है।
संसदीय सचिव
ये न तो मंत्री होते हैं और न ही उनकी कोर्इ प्रशासनिक कार्य सौंपा जाता है। उनका Single मात्र कार्य मन्त्रियों की संसद में सहायता करना होता है। उनका कोर्इ वेतन नहीं होता। संसदीय सचिव का पद Single ऐसा पद है जो भविष्य के मन्त्रियों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रयोग Reseller जाता है।
उप-प्रधानमंत्री का पद
इन 4 श्रेणियों के अतिरिक्त Indian Customer केबिनेट प्रणाली में 1950 से लेकर अब तक कर्इ बार उप-प्रधानमंत्री का पद विद्यमान रहा है। आरंभ में सरदार बल्लभ भार्इ पटेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू की मंत्रि-परिषद् में मोरार जी देसार्इ को उप-प्रधानमंत्री बनाया था। पिफर 1969 में उनके त्याग-पत्र के बाद यह पद रिक्त रहा। 1977 में श्री मोरार जी देसार्इ के मंत्री-मंडल में दो उप-प्रधानमंत्री थे : चौधरी चरण ¯सह और बाबू जगजीवन राम। इसके बाद न ही चरण ¯सह की मंत्री-परिषद जो केवल 6 महीने सत्ता में रही और न ही श्रीमती इन्दिरा गांधी की मंत्रि-परिषद् (1980-84) में उप प्रधानमंत्री का रहा। प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी (नवम्बर 1984 से नवम्बर 1989) ने भी उप-प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं Reseller था। परन्तु प्रधानमंत्री वी.पी. सह 1989-90) और प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर समय श्री देवी लाल उप-प्रधानमंत्री रहे।
संविधान के According उप-प्रधानमंत्री के पद की व्यवस्था नहीं की गर्इ है। इसमें केवल इतना ही कहा गया है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में Single मंत्रि-परिषद् होगी… और यह अपनी इच्छा पर निर्भर होता है या दल राजनीति का दबाव होता है कि मंत्रि-परिषद् में उपप्रधानमंत्री का पद स्थापित Reseller जाये या नहीं।
मंत्री-परिषद का कार्यकाल
संविधान के According मन्त्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पदों पर रहेंगे, परन्तु यह उपबन्ध औपचारिक है। वास्तविकता यह है कि मंत्रि-परिषद् का कार्यकाल उस समय तक जारी रहेगा जब तक कि उसे लोक सभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त है। लोक सभा भंग हो जाने पर तथा नयी लोक सभा बनने पर नये मंत्रिमण्डल का निर्माण होता है।
मंत्री-परिषद और मंत्री-मंडल में अन्तर
संविधान के अनुच्छेद 74 में केवल मंत्रि-परिषद् की व्यवस्था है और केबिनेट का कोर्इ वर्णन नहीं है। केबिनेट Single अतिरिक्त संवैधानिक संस्था है। यह मंत्री-परिषद का Single भाग है जिसमें 15 से 20 तक उच्च स्तर के मंत्री ही शामिल होते हैं। इन मंत्रियों तक उच्च स्तर के मंत्री ही शामिल होते हैं। इन मंत्रियों को केबिनेट मंत्री कहा जाता है। तथा ये मिलकर साझे Reseller में नीति-निर्माण का कार्य प्रधानमंत्री के नेतृत्व में करते हैं। केबिनेट के द्वारा लिए गये निर्णयों को सदैव ही मंत्री-परिषद के निर्णयों के नाम से पुकारा जाता है और All मंत्रियों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे उन निर्णयों का समर्थन करें। प्रत्येक अAgreeि रखने वाले मंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ता है जैसा कि अगस्त 1991 में श्री राममूर्ति ने Reseller था। मंत्री-परिषद वास्तव में Indian Customer राजनीतिक प्रणाली में शक्ति का वास्तविक केन्द्र होती है। मंत्री-परिषद और मंत्री-मंडल में अन्तर है-
- केबिनेट मंत्री-परिषद का भाग है। मंत्री-परिषद Single बड़ी संस्था है जबकि केबिनेट छोटी, परन्तु यह मंत्री-परिषद का सबसे महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली भाग होती है।
- All मंत्री मिलकर मंत्री-परिषद बनाते हैं, जबकि केबिनेट में 15 से 20 तक उच्च स्तर के महत्त्वपूर्ण मंत्री होते हैं जिनको केबिनेट मंत्री का स्तर मिला होता है।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता के अधीन केबिनेट की बैठकों, जो निरन्तर (कम-से-कम सप्ताह में Single बार) होती है, में केवल केबिनेट मंत्री केबिनेट मंत्री ही भाग लेते हैं। Second मंत्री केबिनेट की बैठक में तभी भाग लेते हैं जब प्रधानमंत्री के द्वारा विशेष Reseller में उनको ऐसा करने के लिए कहा जाए। पूर्ण मंत्री-परिषद की बैठक बहुत ही कम होती है।
- नीति-निर्माण करना केबिनेट का कार्य होता है, मंत्रि-परिषद् का नहीं।
- अनुच्छेद 74 के According संविधान में मंत्री-परिषद की व्यवस्था है केबिनेट की नहीं। केबिनेट का संगठन और कार्य करने ढंग संसदीय प्रणाली की परम्पराओं पर निर्भर रहता है। तकनीकी Reseller में केबिनेट Single अतिरिक्त सम्वैधानिक संस्था है, लेकिन Indian Customer राजनीतिक प्रणाली की Single सबसे अधिक शक्तिशाली संस्था है।
मंत्रि-मण्डल के शक्तियाँ और कार्य
नीति निर्धारण का कार्य
केबिनेट अथवा मंत्रिमण्डल का सबसे Historyनीय कार्य शासन की आन्तरिक तथा विदेश नीति का निर्माण करना है। संसदीय पद्वति के According, केबिनेट को अपनी नीतियों का संसद द्वारा अनुमोदन कराना पड़ता है। संसद यदि केबिनेट की नीतियों को अस्वीकार कर दे तो मंत्रि-मण्डल को त्यागपत्र देना होता है। केबिनेट का लोक सभा का विश्वास प्राप्त होने का यही अभिप्राय है।
कार्यपालिक सम्बन्धी कार्य
यद्यपि संविधान के द्वारा कार्यपालिक शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित की गयी है, परन्तु व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रि-मण्डल द्वारा ही Reseller जाता है। मंत्रि-मण्डल ही इन कार्यों के लिए सामूहिक Reseller से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रत्येक मंत्री भी किसी Single अथवा Single से अधिक विभागों का अध्यक्ष होता है।
कानून-निर्माण सम्बन्धी कार्य
संसद में महत्त्वपूर्ण विधेयक मंत्रियों द्वारा ही पेश किए जाते हैं। इन विधेयकों को औपचारिक वाद-विवाद के बाद प्राय: स्वीकार कर लिया जाता है। प्रदत्त व्यवस्था (Delegated Legistation) के द्वारा भी मंत्रि-मण्डल विधि-निर्माण में संसद का नेतृत्व करता है। संसद को तो इतना समय नहीं मिल पाता कि वह प्रत्येक कानून पर विस्तारपूर्वक विचार करे। अत: संसद द्वारा पारित कानून को मंत्रि-परिषद् ही व्यावहारिक Reseller देती है।
वित्तीय कार्य
राष्ट्र की आख्रथक नीति का निर्धारण भी मन्त्रि-मण्डल ही करता है। वित्तमंत्री प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरम्भ में उस वर्ष के अनुमानित आय-व्यय का description (बजट) संसद के समक्ष पेश करता है। बजट को पास कराने का उत्तरदायित्त्व मंत्रि-मण्डल के उफपर ही है। यदि संसद बजट को अस्वीकार कर देती है तो मंत्रि-मण्डल को त्यागपत्र देना पड़ता है। परन्तु व्यवहार में बजट को संसद द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। अन्य वित्त विधेयक भी लोक सभा में मंत्रियों द्वारा ही रखे जाते हैं।
विविध कार्य
मंत्रि-मण्डल के कुछ अन्य कार्य इस प्रकार हैं-
- महत्त्वपूर्ण पदों पर Appointmentयों करना, जैसे-राज्यों के राज्यपाल, सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, एटॉर्नी जनरल, सेनापति आदि। यद्यपि संविधान द्वारा इन Appointmentयों का अधिकार राष्ट्रपति को है, परन्तु व्यवहार में ये Appointmentयाँ मन्त्रि-मण्डल द्वारा ही होती हैं। मन्त्रि-मण्डल द्वारा इन पदों पर जिन व्यक्तियों की सिफारिश की जाती है, राष्ट्रपति उन्हें स्वीकार कर लेता है तथा इस आशय की घोषणा कर देता है।
- अपराधियों को क्षमा प्रदान करना।
- विभिन्न सेवाओं के लिए उच्च पदक देना।
- संविधान में संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव रखना और उन्हें स्वीकृति देना।
- युद्व और शान्ति की घोषणा।
- राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग। टास्क मंत्रि-मण्डल की शक्तियों का History कीजिए।
मंत्री-परिषद की असीमित शक्तियाँ
Indian Customer राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत संघीय अथवा केन्द्रीय परिषद् सरकार का सर्वाधिक शक्तिशाली अंग है। संविधान के अन्तर्गत यद्यपि सैद्वांतिक तौर पर संसद का मंत्रि-परिषद् पर नियंत्रण रहता है, परन्तु व्यवहार में संसद मंत्री-परिषद के इशारों पर ही कार्यकरती है। लोक सभा में बहुमत के बल पर मंत्री-परिषद अपने All निर्णयों पर संसद की मुहर लगवा लेती है। इसलिए विद्वानों ने कहा है कि संसद की सर्वोच्चता का सिद्वान्त केवल दिखावा है तथा इसकी आड़ में मंत्रि-मण्डल की तानाशाही स्थापित हो गयी है। मंत्री-परिषद के तानाशाही के पीछे लोक सभा में सत्तारुढ़ दल को प्रबल बहुमत होना है। मंत्री-परिषद की इस तानाशाही को केवल जागरुक जनमत ही रोक सकता है। कोर्इ भी मंत्री-परिषद यह नहीं चाहेगा कि देश का जनमत उसके विरुद्व हो तथा आगामी चुनावों में उसे पराजय का सामना करना पड़े। हाल ही में न्यायपालिका ने भी मंत्री-परिषद की तानाशाही पर अंकुश के Reseller में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है।