बौद्ध दर्शन का Means, चार आर्य सत्य And सम्प्रदाय
बौद्ध दर्शन का Means, चार आर्य सत्य And सम्प्रदाय
अनुक्रम
बौद्ध-धर्म के प्रवर्त्तक भगवान् बुद्ध थे । इनका जन्म वैशाली पूर्णिमा की 563 ई0 पू-नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु नामक नगर (लुम्बिनी बाग) में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोदन था तथा माता का नाम माया देवी था। इनके पिता शुद्धोदन शाक्यवंशी क्षत्रियों के King थे। उनका राज्य-क्षेत्र नेपाल का दक्षिण भाग था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु नामक नगर में थी। जन्म के समय इनका नाम जिसकी राजधानी कपिलवस्तु नामक नगर में थी । जन्म के समय इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया तथा बाद में इनका परिवारिक नाम गौतम पड़ा। जन्म के Single सप्ताह बाद इनकी माता माया देवी का देहान्त हो गया। तत्बाद इनकी सौतेली माँ महाप्रजापति ने इनका पालन-पोषण Reseller । अपने जीवन की सोलह वर्ष की अवस्था तक इन्होंने राजकीय क्षत्रियोचित शिक्षा ग्रहण की। सोलहवें वर्ष में शस्त्र और शास्त्र में निपुणता की परीक्षा देकर यशोधरा नामक पत्नी का स्वयंवर में वरण Reseller । तीन वर्षों तक राजपाट के विपुल वैभव का आन्नद लेते रहे तथा ‘राहुल’ नामक पुत्र रत्न को प्राप्त Reseller। जन्म से ही गौतम बड़े शान्त प्रकृति के थे तथा इनकी प्रवृत्ति सन्यासमूलक थी। इनकी रूचि योग में थी, अत: राजकीय भोग इन्हें रोग के समान प्रतीत होता था। इनके पिता ने सुख की सारी सामग्री इनके लिए इकट्ठी की। शीत, ताप तथा वर्षाकाल के लिए अलग-अलग महल बनवाये, परन्तु कुमार सदा इनसे उदासीन रहे ।
Single दिन स्वर्ण सुसज्जित रथ पर मनबहलाव के लिए इन्हें नगर में घुमाया गया। अचानक इनकी दृष्टि Single वृद्ध, Single रोगी तथा Single शव पर पड़ी । इन तीनों Resellerों में कुमार ने संसार का नग्न Reseller देखा। फलत: जरा-मरण और ब्याधि के निदान के लिए इन्होंने संसार छोड़ दिया, महाभिनिश्क्रमण Reseller । बहुत दिनों तक अलार कलाम, उद्दक आदि गुरुओं के पास भटकते रहे, छ: वर्षों तक उरुवेला पर्वत पर योग सीखते रहे, परन्तु कहीं शान्ति न मिली, जन्म और मरण के रहस्य का पता न चल सका। अन्त में कृतसकल्प हो बोधिवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये। बारह वर्षों तक ध्यान में लीन होने पर इनके नेत्र खुले, बोधि प्राप्त हुआ, तत्बाद गौतम बुद्ध हो गये। बुद्धत्व प्राप्ति के SingleाSingle इनके मुखरविन्द से उपदेशामृत की धारा फूटी- ‘बिना विराम के अनेक जन्मों तक संसार में दौड़ता रहा, इस कायाResellerी कोठरी के बनाने वाले को खोजते हुए पुन:-पुन: दु:खद संसार में जन्मग्रहण करता रहा। हे गृहकारक ! अब तुझे पहचान लिया, पुन: तू घर नहीं बना सकेगा। तेरी All कड़ियाँ भग्न हो गयी। गृह का शिखर निर्बल हो गया। संस्कार रहित चित्त से तृष्णा का क्षय हो गया।’ यह घटना वैशाली पूर्णिमा के दिन हुई Meansात् इसी दिन बुद्ध को बोधि मिली। उस समय भगवान बुद्ध की अवस्था लगभग चालीस वर्ष की थी ।
बोधि-प्राप्त होने के डेढ़ महीने बाद भगवान् बुद्ध बोधि-वृक्ष (बोधगया) का त्याग कर काशी-बनारस की ओर चल पड़े। ऋषिपत्तन-सारनाथ में पांच भिक्षुकों (पंचवग्गीय भिक्खु) को First उपदेश दिया जो ‘धर्म-चक्र प्रवर्त्तनसूत्र‘ (धम्मचक्कपवत्तनसुत्त) के नाम से विश्वविख्यात है। उन पांच भिक्षुओं को ‘बहुजनहिताय बहुजनसुखाय’ उपदेशामृत का प्रचार करने के लिए अन्य स्थानों में भेजा। इस प्रकार भगवान बुद्ध की शिष्य मंडली बढ़ने लगी, सघ बने बड़े-बड़े बिहारों का निर्माण हुआ। भगवान् बुद्ध की वाणी मीठी थी, भाषा सरल थी, उपदेश सीधे थे, भाव में कोई दुराव न था। अत: लोग मुग्ध हो इनके उपदेशामृत का पान करते थे। सारे भारत में थोड़े ही दिनों में ‘बुद्ध’ शरणं गच्छामि, संघ शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि का नारा गूंजने लगा । ऊँच नीच All व्यक्तियों ने बुद्ध की शरीण ली, All वर्ग के व्यक्तियों ने संघ में शरण ली तथा स्त्री-पुरुष आदि All लोगों ने भेद-भाव रहित हो धर्म की शरण ली। भगवान् बुद्ध का अनवरत धर्म प्रचार-प्रसार चालीस वर्षों तक चलता रहा। अन्त में कुशीनगर में (कसया में) पावापुरी नामक स्थान में भागवान् का परिनिर्वाण (शरीर त्याग) वैशाखी पूर्णिमा को ही 80 वर्ष की अवस्था में ई0 पू0 843 में हुआ । अनन्त विश्राम करते हुए भगवान् बुद्ध का अन्तिम उपदेश है – भिक्षुाअें ! मैं तुम्हें कहता हुँ, All संस्कार नाशवान् हैं, प्रमादरहित अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा करो। यथा-
‘‘हन्त दानि भिक्खवे आमन्तयामि या वय धम्भा संखारा अप्पमादेन सम्पादेथ।’’
बुद्ध देव के उपदेश : ‘‘चार आर्य सत्य’’
भगवान बुद्ध के उपदेशों का सारांश उनके चार आर्य-सत्यों में निहित है। ये चार आर्य-सत्य ही तथागत-धर्म तथा दर्शन के मूलाधार हैं । बोधि प्रप्त होने के बाद बुद्ध ने First हन्हीं चार आर्यसत्यों को उपदेश सारनाथ में दिया था। अत: ये चारों आर्यसत्य First धम्मचक्क पवत्तन सुत्त (सारनाथ में First उपदेश) में पाये जाते हैं। First उपदेश में केवल इन आर्य-सत्यों का दिग्दर्शन कराया गया है। इन आर्य-सत्यों की विस्तृत व्याख्या ‘महावग्ग’ में की गयी है। ‘महावग्ग’ में इन आर्य-सत्यों को ही बौद्धदर्शन की आधार शिला बतलायी गयी हैं। तात्पर्य यह है कि धर्म और दर्शन दोनों के आधार आर्य-सत्य ही हैं। इन आर्य-सत्यों, का महत्व बतालाते हुए भगवान् ‘महापरिनिर्वाण सुत्त’ में कहते हैं : भिक्षुाओं, इन चार आर्य-सत्यों को भली भांति न जानने के कारण ही मेरा ओर तुम्हारा संसार में जन्म-मरण और दौड़ता दीर्घकाल से जारी रहा । इस आवागमन के चक्र में हम All दु:ख भोगते रहे। विभिन्न योनियों में भटकते रहे । अब इनका ज्ञान हो गया। दु:ख का समूल विनाश हो गया, अब आवागमन नहीं होना है।
चार आर्यसत्य हैं- (क) दुख, (ख) दु:ख-समुदाय, (ग) दु:ख-निरोध (निर्वाण), और (घ) दु:ख निरोध-मार्ग Meansात् निर्वाण-मार्ग। सरल Wordों में हम कह सकते हैं : सांसारिक जीवन दु:खों से परिपूर्ण है, दु:खों का कारण है, दु:खों से परिपूर्ण है, दु:खों का कारण है, दु:खों का अन्त है और दु:ख अन्त का उपाय है ।
बौद्ध दर्शन के सम्प्रदाय
बौद्ध धर्म का प्रारम्भिक स्वReseller व्यवहारिक है। तत्व सम्बन्धी विवेचना या तत्व मीमांस सम्बन्धी विचारों का महात्मा बुद्ध के उपदेश में कोई स्थान नहीं । बौद्ध-धर्म में तत्व मीमांसा सम्बन्धी प्रश्नों की अव्याकृत कहा गया है। भगवान् बुद्ध के According अव्याकृत प्रश्न निम्न हैं – संसार शाश्वत है या अशाश्वत, संसार शान्त है या अनन्त, आत्मा और शरीर में भेद है या अभेद, मृत्यु के बाद तथागत का स्तित्व रहता है या नहीं इत्यादि । इन प्रश्नों को भगवान बुद्ध ने निरर्थक समझा; क्योंकि इन प्रश्नों का दु:ख तथा दु:ख निरोध से कोई सम्बन्ध नहीं, ये प्रश्न सम्बोधि के लिए उपयुक्त नहीं । तथागत ने अव्याकृत को Single अत्यन्त व्यावहारिक दृष्टान्त से स्पष्ट Reseller है- किसी आदमी को अत्यन्त विषाक्त तीर लगा हो तो उसे शीघ्र तीर निकालने वाले वैद्य के पास ले जाने की Need है, न कि यह प्रश्न करना की तीर मारने वाला व्यक्ति क्षत्रिय था या ब्राह्मण या शूद्र, अथवा तीर मारने वाले का नाम गोत्र क्या, अथवा तीर मारने वाला लम्बा या नाटा था इत्यादि ? ये All प्रश्न निरर्थक हैं, अव्याकृत हैं। केवल चार आर्य-सत्य ही सार्थक हैं, व्याकृत हैं, क्योंकि येनिर्वेद, विराम, निरोध, उपशम, सम्बोधि और निर्वाण के लिए है। अत: बौद्ध-धर्म का प्रारम्भिक स्वReseller अत्यन्त व्यावहारिक है।
तथागत के महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध-धर्म में तो तत्व-सम्बन्धी ऊहापोह प्रारम्भ हुआ और धीरे-धीरे दार्शनिक विवादों को जन्म होने लगा। फलत: बौद्ध-धर्म अनेक सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। मुख्य Reseller से बौद्ध-दर्शन के चार सम्प्रदाय माने गये हैं –
- वैभाषिक – ब्राह्मार्थ प्रत्यक्षवाद
- सौत्रान्त्रिक – ब्राह्मार्थानुमेयवाद
- योगाचार – विज्ञानवाद
- माध्यमिक – शून्यवाद
इन चारों में ब्राह्मप्रत्यक्षवाद और ब्राह्मानुमेयवाद हीनयान के अन्तर्गत है तथा विज्ञानवाद और शून्यवाद महायान के अन्तर्गत है।