सम्प्रदाय का Means –
सम्प्रदाय का Means
सम्प्रदाय का अंग्रेजी भाषा में पर्यायवाची Word ‘Religion’ होता है। कार्ल मार्क्स ने कहा है कि “Religion is the opium of the people” यानी धर्म या सम्प्रदाय जनता की अफीम है। कोई भी वस्तु अपने आप में बुरी नहीं होती है। बल्कि उसका उपयोग करने वालों पर यह निर्भर करता है।
सम्प्रदाय का Means
सम्प्रदाय Word का कोशगत Means है- “ परम्परा से चला आया हुआ ज्ञान, मत सिद्धान्त, गुरु परम्परा से मिलने वाला उपदेष, मंत्र, किसी धर्म के अन्तर्गत कोई विशिष्ट मत या सिद्धान्त। उक्त प्रकार के मत व सिद्धान्त को मानने वालों का वर्ग या समूह यथा शैव, वैष्णव आदि किसी विचार, विषय या सिद्धांत के सम्बन्ध में Single ही तरह के विचार या मत रखने वाले लोगों का वर्ग। किसी मत के अनुयायियों की मंडली, फिरका, मार्ग, पंथ, परिपाटी, रीति, चाल को सम्प्रदाय कहते हैं। Meansात उक्त उद्धरण के According सम्प्रदाय गुरु परम्परागत अथवा आचार्य परम्परागत संघटित संस्था है।
सम्प्रदाय का स्वReseller
धर्म और सम्प्रदाय को अलग करके देखना या समझना मुश्किल है। धर्म और सम्प्रदाय Single Second से जुड़े हुए हैं। धर्म के प्रति Indian Customer दृष्टिकोण बहुत व्यापक मानी जाती है। समस्त Earth पर धर्म Single ही माना जाता है। लेकिन सम्प्रदाय अनेक माने जाते हैं। धर्म समस्त भूतल पर व्याप्त है। अत: धर्म की कोई सीमा नहीं हैं। सम्प्रदाय अपने-अपने देश काल की सीमाओं में निबद्ध होते हैं। धर्म शाश्वत है। लेकिन सम्प्रदाय समय के According संस्थापित होते हैं। सम्प्रदाय किसी महापुरुष के द्वारा संस्थापित होता है। इनमें देष काल के According परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन के कारण Single सम्प्रदाय में अनेक शाखाओं का प्रार्दुभाव होता है। उनमें वाद-विवाद भी जन्म लेने लगता है। इसका कारण यह है कि पवित्र या विशुद्ध ‘सम्प्रदाय’ Word कालांतर में चलकर मनुष्य के प्रदूषित भावनाओं का शिकार हो जाता है।
सम्प्रदाय Word अपने आप में भले ही पवित्र हो, लेकिन उसको स्थापित करने वाला तो पवित्र होना चाहिए। क्योंकि सम्प्रदाय तो किसी महापुरुष के द्वारा ही स्थापित Reseller जाता है। वे भी अपने अपने देश-काल परिस्थितियों के According प्रस्थापित Reseller जाता है। खास कर हमारा भारत देश आदि से ही यानी जब से सभ्यता का विकास शुरू हुआ तब से, जाति, वर्ण, वर्ग, प्रधान देश है। इनमें से कुछ वर्ण, वर्ग, जाति वालों को तो इस तरह के सम्प्रदाय की स्थापना करने का अधिकार ही नहीं था। कुछ वर्णों से तो महापुरुषों का जन्म ही नहीं हो सकता था। महापुरूषों का जन्म तो कुछ ही जातियों में या वर्णों में होता था। जाहिर सी बात है कि Single खास जाति या वर्ण के महापुरुष Single सम्प्रदाय की प्रस्थापना करेगा तो, वह केवल उनके खास जाति या वर्ण के हित के लिए ही, विधि-विधान बनाएंगे। और कहा जायेगा कि ये जो विधि-विधान हैं, सब के हित के लिए हैं जबकि वे कुछ ही लोगों के हित के लिए बनाये गये हैं। इसलिए सम्प्रदाय Word अपने आप में कितना पवित्र, विशुद्ध रहने पर भी बेकाम है। सम्प्रदाय Word सार्थक तभी होगा जबकि उस की स्थापना करने वाला पवित्र होगा।
आज कोई भी सम्प्रदाय हो, उस के प्रवर्तक अपने फायदे के लिए उसका उपयोग करने लगे हैं। इस उपयोग के पीछे उनका निजी स्वार्थ छुपा हुआ है। आखिर ये स्वार्थ क्या हो सकता है ? इस स्वार्थ का कारण यह है कि ‘हमारा भला हो’, हमारे लोगों को नौकरी मिले, हमारे लोग सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हों, हमारी वर्ण पवित्र हो, हमारी जाति ही सबसे ज्यादा योग्य हो। हमारा सम्प्रदाय ही All सम्प्रदायों से श्रेष्ठ हो। ये उक्त भावनाएँ उनके स्वार्थ में छिपा है।
इस लिए जब जब उनको खतरा लगता है तब तब अपने हाथों से बनाया हुआ सम्प्रदाय को गलत उपयोग करते हैं। Meansात Single सम्प्रदाय के अनुयायी, अन्य सम्प्रदाय And अनुयायियों के प्रति घृणा, द्वोष, नफरत आदि भावनाएँ प्रकट करते हैं। अन्य सम्प्रदायों की गलत व्याख्या करते हैं। नीचा दिखाते हैं। तब दोनों पक्ष के लोग उग्र Reseller धारण कर लेते हैं। साम्प्रदायिक बन जाते हैं। Single सम्प्रदाय के साम्प्रदायिक और Second सम्प्रदाय के साम्प्रदायिक, Single Second पर प्रत्यक्ष Reseller से हमला करते हैं। तब साम्प्रदायिकता उत्पन्न होती है।