उपनिषदों की संख्या और उनके नाम
उपनिषदों की संख्या और उनके नाम
उपनिषदों की बड़ी महिमा है, ज्ञान की चरम सीमा ही उपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध हुई है। वैदिक वाड़्मय का शीर्ष स्थान उपनिषद् है- इस कथन मात्र से ही उपनिषदों की लोकोत्तर महत्ता स्पष्ट हो जाती है। प्राचीनकाल में औपनिषद ज्ञान का बड़ा महत्त्व था। ऊँचे से ऊँचे अधिकारी ही इस विद्या में पारत होते थे। वैदिक काल से ही उपनिषदों के स्वाध्याय की परम्परा प्रचलित हुई है। अत: कुछ उपनिषद् तो वेद के ही अंश विशेष हैं। कुछ ब्राह्मण भाग और आरण्यकों के अन्तर्गत हैं, कुछ इनकी अपेक्षा अर्वाचीन होने पर भी आज से बहुत प्राचीन काल के हैं तथा कुछ उपनिषद् ग्रन्थ ऐसे भी हैं, जिन पर विशेष देश, काल, परिस्थिति तथा मत का प्रभाव पड़ा जान पड़ता है। उपनिषद् ग्रन्थ प्राचीन या अर्वाचीन All ज्ञान प्रधान हैं। सबका आविर्भाव किसी-न-किसी गूढ़ तत्त्व या रहस्य का प्रकाशन करने के लिए ही हुआ है। मुक्तिकोपनिषद् में उपनिषदों की संख्या Single सौ आठ उपनिषदों के नाम आते हैं। वे All मुम्बई से मूल गुटका के Reseller में प्रकाशित है। किन्तु महत्त्वपूर्ण उपनिषद् ग्यारह है जिन पर शराचार्य के भाष्य उपलब्ध हैं, ये हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर।
उपनिषदों की संख्या
ईशावास्योपनिषद्
ईशावास्योपनिषद् का सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद से है। यद्यपि इसमें केवल 18 मन्त्र है, तथापि इसमें उपनिषदों के All विषयों का समावेश संक्षेप में है। इसमें ईश्वर को सर्वव्यापक मानते हुए अत्यन्त सुन्तुष्टि का आश्रय ग्रहण करते हुए जीवनयापन करने का उपदेश दिया गया है।
केनोपनिषद्
केनोपनिषद् सामवेद की जैमिनीय-शाखा के ब्राह्मण-ग्रन्थ का नवम् अध्याय है। इसमें अत्यन्त सबल भाषा में कहा गया है कि परमतत्त्व All इन्द्रियों का इन्द्रिय है तथा इन्द्रियों की पहुंच के बाहर है। परमतत्त्व समस्त देवताओं का देवता है And समस्त उपास्यों का उपास्य है। परमतत्त्व का ज्ञाता All पापों से मुक्त हो जाता है परिणामत: शाश्वत अमरपद का अधिकारी हो जाता है।
कठोपनिषद्
यह कृष्णयजुर्वेदीय उपनिषद् है। इसका सम्बन्ध कृष्णयजुर्वेद की कठ शाखा से है। इसमें दो अध्याय है। प्रत्येक अध्याय तीन-तीन बल्लियों में बँटा है। इस उपनिषद् में प्रसिद्ध ‘यम-नचिकेता’ आख्यान के माध्यम से जीवन, जगत् और परमतत्त्व का सरल, हृदयग्राही And हितसाधक उपदेश Human मात्र के कल्याणार्थ प्रस्तुत Reseller गया है।
प्रश्नोपनिषद्
अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा के साथ सम्बन्धित यह उपनिषद् विषय-प्रतिपादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण उपनिषद् गद्यमय है, कहीं-कहीं पद्य भी प्राप्त होते हैं। इसमें पिप्पलाद ऋषि ने भरद्वाज के पुत्र सुवेश्म, शिवि के पुत्र सत्यवान, कोशलदेशीय आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव, कात्यायन And कबन्धी इन जिज्ञासु ऋषियों के छ: प्रश्नों का विचारपूर्ण उत्तर प्रस्तुत Reseller है।
मुण्डकोपनिषद्
यह उपनिषद् अथर्ववेद की शौनक शाखा के अन्तर्गत आती है। सम्पूर्ण उपनिषद् तीन मुण्डकों में विभक्त है तथा प्रत्येक मुण्डक दो-दो अध्यायों में विभक्त है। इस उपनिषद् में सृष्टि की उत्पत्ति तथा ब्रह्मतत्त्व का विवेचन Reseller गया है।
माण्डूक्योपनिषद्
अथर्ववेदीय अत्यन्त स्वल्पकाय कुल बारह खण्डों या वाक्यों में विभक्त माण्डूक्योपनिषद् ऊँकार की अत्यन्त मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। इसी सन्दर्भ में चतुष्पाद आत्मा का सूक्ष्म विवेचन भी प्राप्त होता है। आचार्य गौडपाद ने इसी पर ‘माण्डूक्यकारिका’ नामक ग्रन्थ लिखा है।
तैत्तिरीयोपनिषद्
कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीय-संहिता के ब्राह्मण ग्रन्थ को तैत्तिरीय ब्राह्मण कहते है। इस ब्राह्मण का अन्तिम भाग तैत्तिरीय आरण्यक कहलाता है। इसके Seven से नौ प्रपाठको को तैत्तिरीय-उपनिषद् कहते है। उपर्युक्त तीन प्रपाठकों को क्रमश: शिक्षावल्ली, ब्रह्मानन्द वल्ली तथा भृगुवल्ली कहा गया है। जिनमें क्रमश: शिक्षा का माहात्म्य, ब्रह्मतत्त्वनिरुपण तथा वरुण द्वारा अपने पुत्र को दिया गया उपदेश संकलित है।
ऐतरेयोपनिषद्
अत्यन्त लघुकाय ऐतरेयोपनिषद् का सम्बन्ध ऋग्वेद से है। ऐतरेय ब्राह्मण के द्वितीय आरण्यक के चतुर्थ से षष्ठ अध्यायों को ऐतरेयोपनिषद् कहा गया है। इसमें तीन अध्याय है जिनमें क्रमश: सृष्टि, जीवात्मा तथा ब्रह्मतत्त्व का निरुपण है। इस उपनिषद् की Creation का मूलाधार ऋग्वेदीय पुरुषसूक्त है। इसमें विश्व को आत्मा से उद्भूत बतलाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् – सामवेदीय छान्दोग्योपनिषद् प्राचीनता, गम्भीरता तथा ब्रह्मज्ञान- प्रतिपादन की दृष्टि से उपनिषदों में नितान्त प्रौढ़, प्रामाणिक तथा प्रमेय बहुल हैं। इसमें कुल 8 अध्याय या प्रपाठक है।
बृहदारण्यकोपनिषद्
शुक्ल यजुर्वेदीय शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम छ: अध्याय ही बृहदारण्यकोपनिषद् है। यह पर्याप्त विशालकाय होने से अन्वर्थनामा भी है। यह तीन भागों में विभक्त है प्रत्येक भाग दो-दो अध्यायों में बँटा हुआ है। First भाग ‘मधु-काण्ड’ द्वितीय भाग ‘याज्ञवल्क्य-काण्ड’ तथा तृतीय भाग ‘खिल-काण्ड’ है जो परिशिष्ट मात्र माना जाता है। इस उपनिषद् में प्राण को आत्मा का प्रतीक माना गया है। आत्मा तथा ब्रह्म से विश्व की उत्पत्ति तथा आत्मा की प्रकृति का निरुपण है।
श्वेताश्वतरोपनिषद्
कृष्ण यजुर्वेदीय श्वेताश्वतरोपनिषद् में विश्व को ब्रह्मकृत तथा माया का प्रतिReseller माना गया है। इसमें यत्र-तत्र योग के सिद्धान्तों का सम्यक्Resellerेण प्रतिपादन प्राप्त होता हैं। इसकी Creation कठोपनिषद् के बाद की है। इसके अतिरिक्त उपनिषद् संग्रह में 188 उपनिषदों का समावेश है, जिन्हें दो भागों में रखा गया है। First खण्ड में ईश आदि 120 उपनिषद् हैं जिनका मुख्य विषय ब्रह्म विद्या है। इस भाग में वे All उपनिषद् सम्मिलित हैं जिन पर शराचार्य ने भाष्य लिखा है। द्वितीय भाग में योग आदि 68 उपनिषद् है। जिनका पाँच खण्डों में विभाजन हुआ है- 1- योग, 2-वेदान्त, 3-वैष्णव, 4- शैव, 5-शाक्त। ये All उपनिषद् दर्शनशास्त्र के स्रोत माने जाते है। इसके अतिरिक्त मुम्बई से मुद्रित ‘उपनिषद्-वाक्य-महाकोष’ में 223 उपनिषदों की नामावली दी गयी है। इनमें दो उपनिषद् 1-उपनिषद् स्तुति तथा 2-देव्युपनिषद् ये दोनों अभी तक उपलब्ध न हो सके हैं। शेष 221 उपनिषदों के वाक्यांश इस महाकोष में संकलित है। इनमें भी माण्डुक्यकारिका के चार प्रकरण चार जगह गिने गये हैं, इन सबकी Single संख्या मानें तो 218 ही संख्या होती है। कई उपनिषद् Single ही नाम से दो-तीन जगह आये है, पर वे स्वतंत्र ग्रन्थ है। इस प्रकार सब पर दृष्टिपात करने पर यह निश्चित होता है कि उपनिषदों की संख्या अब तक लगभग 220 उपनिषद् प्रकाश में आ चुके है। जिनकी नामावली अकारादि क्रम से है-
- अक्षमालोपनिषद्
- अक्षि-उपनिषद्
- अथर्वशिखोपनिषद्
- अथर्वशिर उपनिषद्
- अद्वयतारकोपनिषद्
- अद्वैतोपनिषद्
- अद्वैतभावनोपनिषद्
- अध्यात्मोपनिषद्
- अनुभवसारोपनिषद्
- अन्नपूर्णोपनिषद्
- अमनस्कोपनिषद्
- अमृतनादोपनिषद्
- अमृतबिन्दूपनिषद्(ब्रह्मबिन्दूपनिषद्)
- अरूणोपनिषद्
- अल्लोपनिषद्
- अवधूतोपनिषद् (वाक्यात्मक And पद्यात्मक)
- अवधूतोपनिषद् (पद्यात्मक)
- अव्यक्तोपनिषद्
- आचमनोपनिषद्
- आत्मपूजोपनिषद्
- आत्मप्रबोधोपनिषद् (आत्मबोधोपनिषद्)
- आत्मोपनिषद् (वाक्यात्मक)
- आत्मोपनिषद् (पद्यात्मक)
- आथर्वणद्वितीयोपनिषद् (वाक्यात्मक And मन्त्रात्मक
- आयुर्वेदोपनिषद
- आरूणिकोपनिषद्(आरूणेय्युपनिषद्)
- आर्षेयोपनिषद्
- आश्रमोपनिषद्
- Historyोपनिषद् (वाक्यात्मक And पद्यात्मक)
- ईशावास्योपनिषद् उपनिषत्स्तुति (शिवरहस्यान्तर्गत-अनुपलब्ध)
- ऊध्र्वपुण्ड्रोपनिषद् (वाक्यात्मक And पद्यात्मक)
- Singleाक्षरोपनिषद्
- ऐतरेयोपनिषद् (अध्यायात्मक)
- ऐतरेयोपनिषद् (खण्डात्मक)
- ऐतरेयोपनिषद् (अध्यायात्मक)
- कठरूद्रोपनिषद् (कण्ठोपनिषद्)
- कठोपनिषद्
- कठश्रुत्युपनिषद्
- कलिसंतरणोपनिषद् (हरिनामोपनिषद्)
- कात्यायनोपनिषद्
- कामराजकीलितोद्धारोपनिषद्
- कालाग्निरूद्रोपनिषद्
- कालिकोपनिषद्
- कालीमेधादीक्षितोपनिषद्
- कुण्डिकोपनिषद्
- कृष्णोपनिषद्
- केनोपनिषद्
- कैवल्योपनिषद्
- कौलोपनिषद्
- कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद्
- क्षुरिकोपनिषद्
- गणपत्यथर्वशीर्षोंपनिषद्
- गणेशपूर्वतापिन्युपनिषद् (वरदपूर्वतापिन्युपनिषद्)
- गणेशोत्तरतापिन्युपनिषद् (वरदोत्तरतापिन्युपनिषद्)
- गर्भोपनिषद्
- गान्धर्वोपनिषद्
- गायत्र्युपनिषद्गा
- यत्रीरहस्योपनिषद्गा
- रूडोपनिषद् (वाक्यात्मक And मन्त्रात्मक)
- गुह्यकाल्युपनिषद्
- गुह्यषोढान्यासोपनिषद्
- गोपालपूर्वतापिन्युपनिषद्
- गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद्
- गोपीचन्दनोपनिषद्
- चतुर्वेदोपनिषद्
- चाक्षुषोपनिषद् (चक्षुResellerनिषद् चक्षुरोगोपनिषद् नेत्रोपनिषद्)
- चित्त्युपनिषद्
- छागलेयोपनिषद्
- छान्दोग्योपनिषद्
- जाबालदर्शनोपनिषद्
- जावालोपनिषद्
- जाबाल्युपनिषद्
- तारसारोपनिषद्
- तारोपनिषद्
- तुरीयातीतोपनिषद् (तीतावधूतो0)
- तुरीयोपनिषद्
- तुलस्युपनिषद्
- तेजोबिन्दूपनिषद्
- तैत्तिरीयोपनिषद्
- त्रिपाद्विभूतिमहानारायणोपनिषद्
- त्रिंपुरातापिन्युपनिषद्
- त्रिपुरोपनिषद्
- त्रिपुरामहोपनिषद्
- त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्
- त्रिसुपर्णोपनिषद्
- दक्षिणामूत्र्युपनिषद्
- दत्तात्रेयोपनिषद्
- दत्तोपनिषद्
- दुर्वासोपनिषद्
- (1) देव्युपनिषद् (पद्यात्मक And मंत्रात्मक) (2) देव्युपनिषद् (शिवरहस्यान्तर्गत -अनुपलब्ध)
- द्वयोपनिषद्
- ध्यानबिन्दूपनिषद्
- नादबिन्दूपनिषद्
- नारदपरिव्राजकोपनिषद्
- नारदोपनिषद्
- नारायणपूर्वतापिन्युपनिषद्
- नारायणोत्तरतापिन्युपनिषद्
- नारायणोपनिषद् (नारायणाथर्वशीर्ष)
- निरालम्बोपनिषद्
- निरूक्तोपनिषद्
- निर्वाणोपनिषद्
- नीलरूद्रोपनिषद्
- नृहिंसपूर्वतापिन्युपनिषद्
- नृसिंहषट्चक्रोपनिषद्
- नृसिंहोत्तरतापिन्युपनिषद्
- पंचब्रह्मणोपनिषद्
- परब्रह्मोपनिषद्
- परमहंसपरिब्राजकोपनिषद्
- परमहंसोपनिषद्
- पारमात्मिकोपनिषद्
- पारायणोपनिषद्
- पाशुपतब्रह्मोपनिषद्
- पिण्डोपनिषद्
- पीताम्बरोपनिषद्
- पुरूषसूक्तोपनिषद्
- पैलोपनिषद्
- प्रणवोपनिषद् (पद्यात्मक)
- प्रणवोपनिषद् (वाक्यात्मक)
- प्रश्नोपनिषद्
- प्राणाग्निहोत्रोपनिषद्
- बटुकोपनिषद् (वटुकोपनिषद्)
- वह्वृचोपनिषद्
- वाष्कलमन्त्रोपनिषद्
- विल्वोपनिषद् (पद्यात्मक)
- विल्वोपनिषद् (वाक्यात्मक)
- बृहज्जाबालोपनिषद्
- बृहदारण्यकोपनिषद्
- ब्रह्मविद्योपनिषद्
- ब्रह्मोपनिषद्
- भगवद्गीतोपनिषद्
- भवसंतरणोपनिषद्
- भस्मजाबालोपनिषद्
- भावनोपनिषद् (कापिलोपनिषद्)
- भिक्षुकोपनिषद्
- मठाम्नायोपनिषद्
- मण्डलब्राह्मणोपनिषद्
- मन्त्रिकोपनिषद् (चूलिकोपनिषद्)
- मल्लायुपनिषद्
- महानारायणोपनिषद् (बृहन्नारायणोपनिषद्, उत्तरनारायणोपनिषद्)
- महावाक्योपनिषद्
- महोपनिषद्
- माण्डूक्योपनिषद्
- माण्डूक्योपनिषत्कारिका क- आगम ख- अलातशान्ति ग- वैतथ्य घ- अद्वैत
- मुक्तिकोपनिषद्
- मुण्डकोपनिषद्
- मुद्गलोपनिषद्
- मृत्युलाूलोपनिषद्
- मैत्रायण्युपनिषद्
- मैत्रेय्युपनिषद्
- यज्ञोपवीतोपनिषद्
- याज्ञवल्क्योपनिषद्
- योगकुण्डल्योपनिषद्
- योगचूडामण्युपनिषद्
- 1- योगतत्त्वोपनिषद्
- 2- योगतत्त्वोपनिषद्
- योगराजोपनिषद
- योगशिखोपनिषद्
- योगोपनिषद्
- राजश्यामलारहस्योपनिषद्
- राधिकोपनिषद् (वाक्यात्मक)
- राधोपनिषद् (प्रपाठात्मक)
- रामपूर्वतापिन्युपनिषद्
- रामरहस्योपनिषद्
- रामोत्तरतापिन्युपनिषद्
- रूद्रहृदयोपनिषद्
- रूद्राक्षजाबालोपनिषद्
- रूद्रोपनिषद्
- लक्ष्म्युपनिषद्
- लाड़्गूलोपनिषद्
- लिड़्गोपनिषद्
- वज्रपजरोपनिषद्
- वज्रसूचिकोपनिषद्
- वनदुर्गोपनिषद्
- वराहोपनिषद्
- वासुदेवोपनिषद्
- विश्रामोपनिषद्
- विष्णुहृदयोपनिषद्
- शरभोपनिषद्
- शाट्यायनीयोपनिषद्
- शाण्डिल्योपनिषद्
- शारीरकोपनिषद्
- 1- शिवसल्पोपनिषद्
- 2- शिवसल्पोपनिषद्
- शिवोपनिषद्
- शुकरहस्योपनिषद्
- शौनकोपनिषद्
- श्यामोपनिषद
- श्रीकृष्णपुरूषोत्तमसिद्धान्तोपनिषद्
- श्रीचक्रोपनिषद्
- श्रीविद्यातारकोपनिषद्
- श्रीसूक्तम्
- श्वेताश्वतरोपनिषद्
- “ाोढ़ोपनिषद्
- सर्षणोपनिषद्
- सदानन्दोपनिषद्
- संध्योपनिषद्
- संन्यासोपनिषद् (अध्यायात्मक)
- संन्यासोपनिषद् (वाक्यात्मक)
- सरस्वतीरहस्योपनिषद्
- सर्वसारोपनिषद् (सर्वोप0)
- स ह वै उपनिषद्
- संहितोपनिषद्
- सामरहस्योपनिषद्
- सावित्र्युपनिषद्
- सिद्धान्तविट्ठलोपनिषद्
- सिद्धान्तशिखोपनिषद्सि
- द्धान्तसारोपनिषद्
- सीतोपनिषद्
- सुदर्शनोपनिषद्
- सुबालोपनिषद्
- सुमुख्युपनिषद्
- Ultra siteतापिन्युपनिषद्
- Ultra siteोपनिषद्
- सौभाग्यलक्ष्म्युपनिषद्
- स्कन्दोपनिषद्
- स्वसंवेद्योपनिषद्
- हयग्रीवोपनिषद्हं
- सषोढोपनिषद्
- हंसोपनिषद्
- हेरम्बोपनिषद्