प्रत्यक्षवाद का Means

प्रत्यक्षवाद का Means सामाजिक घटनाओं का प्रत्यक्ष Reseller से निरीक्षण करके
किसी निष्कर्ष तक पहुँचना है। प्राकृतिक विज्ञानों का विकास तेजी से इसी कारण हुआ
कि इनके द्वारा विभिन्न पदार्थों का अध्ययन कल्पना के आधार पर न करके निरीक्षण,
परीक्षण के आधार पर Reseller जाता है। वैज्ञानिक इस आधार पर कार्य करते है कि All
पदार्थ की प्रकृति तथा उससे सम्बन्धित व्यवहार कुछ अपरिवर्तनशील नियमों पर
आधारित होते हैं। सामाजिक घटनाओं को संचालित करने वाले नियमों को धार्मिक तथा
तात्विक आधार पर नहीं समझा जा सकता। प्रत्यक्षवाद के माध्यम से ही सामाजिक
घटनाओं का अध्ययन हम वैज्ञानिक विधि द्वारा कर सकते हैं। इसके द्वारा घटनाओं का
अवलोकन, परीक्षण और वर्गीकरण करके विभिन्न घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों और
उन्हें नियमित करने वाली पद्धतियों को समझा जा सकता है। रेमण्ड एरों (Raymond
Aron, 1966) ने माना है कि ‘‘प्रत्यक्षवाद का सम्बन्ध घटनाओं के अवलोकन, उनके
विश्लेषण तथा उन घटनाओं के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों को नियमित करने वाले
नियमों की खोज करने से है।’’ इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि सामाजिक घटनाओं
को निरीक्षण, परीक्षण तथा विश्लेषण के आधार पर समझना ही प्रत्यक्षवाद है।

प्रत्यक्षवाद की आधारभूत मान्यताएं

प्रत्यक्षवाद के Means से आपको स्पष्ट होता है कि कौंत प्रत्यक्षवाद को अध्ययन
की Single विशिष्ट पद्धति के Reseller में विकसित करना चाहते थे जिसका मूल उद्देश्य
सामाजिक घटनाओं के अध्ययन को अधिक आनुभाविक तथा यर्थाथ बनाना है।
प्रत्यक्षवाद को समझने हेतु आपको इसकी मूल मान्यताओं को जानना जरूरी है जो है:

  1. जिस प्रकार प्राकृतिक घटनाएं निश्चित नियमों पर आधारित होती हैं, उसी
    प्रकार सामाजिक घटनाएं भी व्यवस्थित नियमों के द्वारा संचालित होती हैं।
  2. अवलोकन, विश्लेषण, वर्गीकरण तथा परीक्षण के द्वारा संकलित सामाजिक
    तथ्यों के माध्यम से यर्थाथ व वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
  3. प्रत्यक्षवाद कोई अवधारणा या सिद्धान्त नहीं है अपितु यह अध्ययन की Single
    विशिष्ट तथा वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें तार्किकता को महत्वपूर्ण माना जाता
    है।
  4. इसमें सम्पूर्ण Human समाज का भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास करते हुए
    सामाजिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ना है।

कौंत का यह मानना था कि जिस प्रकार प्राकृतिक घटनायें आकस्मिक ढंग से
नहीं होती हैं अपितु निश्चित नियमों तथा क्रमबद्धता पर आधारित होती हैं, उसी तरह से
सामाजिक घटनाएं भी कुछ निश्चित तार्किकता तथा नियमों से घटित होती हैं।
प्राकृतिक विज्ञान में घटनाओं के घटित होने के नियमों को अवलोकन, परीक्षण तथा
वर्गीकरण के आधार पर प्राप्त Reseller जाता है। उनका विश्वास था कि सामाजिक
घटनाओं को संचालित करने वाले नियमों को प्रत्यक्षवाद की पद्धति के माध्यम से प्राप्त
Reseller जा सकता है।

कौंत के According प्रत्यक्षवाद किसी अनुमानिक तथ्यों पर आधारित न होकर Single
ऐसे यथार्थ तथा वास्तविक ज्ञान से सम्बन्धित है जिसे अवलोकन, वर्गीकरण तथा
परीक्षण के द्वारा प्राप्त Reseller जाता है। इसीलिये इसके द्वारा प्राप्त अध्ययन तथा निष्कर्ष
अत्यधिक विश्वसनीय तथा अनुभाविक होते हैं। प्रत्यक्षवाद में प्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार
पर अपनी स्थापनाओं अथवा उपकल्पनाओं को सिद्ध Reseller जाता है। कौंत का मानना
था कि वैज्ञानिक पद्धति सार्वभौमिक है। All विषयों के लिए वैज्ञानिक पद्धति Single ही
होती है। प्रत्यक्षवादी पद्धति में तुलना को कौंत ने बहुत महत्वपूर्ण माना है।
उनका मानना था कि Human चिंतन की धर्मशास्त्रीय अवस्था में सामाजिक
घटनाओं का विश्लेषण धर्म तथा अन्धविश्वास पर आधारित होता था, जबकि
सकारात्मक अवस्था में इन घटनाओं के विश्लेषण में अवलोकन, परीक्षण तथा तार्किकता
को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

कौंत का विश्वास था कि प्रत्यक्षवाद कोई सामाजिक सिद्धान्त नहीं है बल्कि यह
सामाजिक घटनाओं के विश्लेषण की Single वैज्ञानिक पद्धति है। यह वह पद्धति है जिसमें
सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के लिए उनका निष्पक्ष अवलोकन Reseller जाता
है, उसके उपरान्त अवलोकन किये गये तथ्यों का परीक्षण करके सामान्य घटनाओं का
वर्गीकरण इस प्रकार Reseller जाता है जिससे विभिन्न समानताओं तथा विविधता का
विश्लेषण करके सामान्य नियमों को समझा जा सके।

कौंत की मान्यता है कि सामाजिक घटनाओं के सह-सम्बन्धों को समझने में
तर्क Single महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। उन्होंने प्रत्यक्षवाद में बौद्धिक क्रियाओं को अधिक
महत्व देते हुए Human मस्तिष्क की तार्किकता की विस्तृत विवेचना की। प्रत्यक्षवादी स्तर
पर Human की बौद्धिक क्षमता इतनी विकसित हो जायेगी कि वह सामाजिक घटनाओं के
कारण और परिणाम को समझने के लिए अनुमानों के स्थान पर तर्कपूर्ण विचारों का
महत्व देने लगेगा।

कौंत प्रत्यक्षवाद के आधार पर समाज का पुर्ननिर्माण अथवा पुनर्गठन करना
चाहता था। उनका मानना था कि विज्ञान की खोजों के आधार पर Single नये समाज का
निर्माण हो सकता है। प्रत्यक्षवाद को सामाजिक पुर्ननिर्माण का Single प्रभावशाली साधन
बनाने के लिए कौंत ने Single प्रत्यक्षवादी समाज के विकास पर भी बल दिया, जिसमें
अSafty को अव्यक्तिवादता की जगह सद्भावना और परोपकार का अधिक महत्व हो।
उन्होंने ऐसे समाज को ‘परार्थवादी समाज’ (दूसरों के हित के लिए जीवन व्यतीत करने
वाले लोगों के समाज) का नाम दिया।

अगस्त कौंत ने प्रत्यक्षवाद के आधार पर समाज का आधारभूत परिवर्तन नहीं
करना था। उनका मानना था कि नवीन प्रौद्योगिकी, उद्योग और व्यापार आगे थमने
वाला नहीं है, इसी कारण इन्हें Humanीय, नैतिक And धर्मसंगत बनाने की जरूरत है।
कौन्त धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे। वह सामाजिक जीवन में नैतिकता को ही धर्म के
लिए आवश्यक मानते थे। प्रत्यक्षवाद के द्वारा समाज में धर्म को वह वैज्ञानिक धर्म
बनाना चाहते थे।

बोटोमोर (1978) के According अगस्त कौंत संरक्षणवादी थे। उनके संरक्षणवादी
विचारों के कारण प्रारम्भिक समाजशास्त्र को संरक्षणवादी कहा गया। वैज्ञानिक आधार
पर विश्लेषण द्वारा समाज का पुर्ननिर्माण करने की Resellerरेखा तैयार करके उन्होंने Single
काल्पनिक समाज की परियोजना बनायी। पारसन्स (1949) ने कौन्त के विचारों की
आलोचना करते हुए कहा कि उनके विचारों की वर्तमान में कोई प्रासंगिकता नहीं रह
गयी है। कोजर (1977) ने भी कहा है कि Single तरफ कौंत का ऐतिहासिक विश्लेषण
सामान्य तौर पर उचित है लेकिन दूसरी तरफ उनके द्वारा प्रत्यक्षवादी समाज की
धारणा ठोस व्याख्या से ज्यादा पूँजीवादी समाज की कमियों को काल्पनिक आधार पर
दूर करने की योजना है। कौंत के विचार प्रबोधनकाल से प्रभावित थे और इसी काल में
ये विचार उत्पन्न हुये थे। समकालीन समाजशास्त्री इन विचारों से Agree नहीं हैं।
परन्तु उनका समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग आज भी समाजशास्त्रीय
विश्लेषण में विद्यमान हैं (टिमाशेफ, 1967)।

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