कला का Means And परिभाषा

कला Word का Means व्यापक And क्षेत्र विस्तृत है। आजकल कला आंग्ल
भाषा के ‘आर्ट’ Word का बोधक है। ‘इंसाइक्लोपीडिया ऑफ आर्ट्स’ के
According-इसके अंतर्गत मनुष्य के समस्त कार्य, शिल्प, उद्योग, गृह निर्माण,
चिकित्सा, शासन, विधान धर्म और शिक्षा आ जाते हैं। अंग्रेजी में कला Word का
प्रयोग 13वीं शती से होने लगा था जिसका शुद्ध Means कौशल मात्र था, 15वीं शती
में कला का प्रयोग यहाँ काव्य, संगीत, चित्र वास्तु आदि ललित कलाओं के लिए
भी होने लगा। प्राचीन Indian Customer वाड़्मय में कला का वह Means नहीं है जो
आजकल Reseller जाता है।

कला Word वस्तुत: संस्कृत भाषा का Word है। विद्वानों ने इसकी व्युत्पत्ति
कई प्रकार से की है। कुछ लोग ‘‘कला Word का Means सुंदर, कोमल, मधुर व सुख
देने वाला मानकर कला को उसके साथ सम्बद्ध करना चाहते हैं, तो कुछ इसे
‘कड़’ धातु Meansात् मदमस्त करना प्रसन्न करना से जोड़ने के पक्ष में हैं। इसी
प्रकार कुछ लोग इसे ‘कं’ Meansात् आनंद देने वाला स्वीकार करते हैं।
‘‘कं लाति ददातीति इति कला’’ Meansात् कला आनंद प्रदायी है।

कला की परिभाषा

शुक्राचार्य के ‘नीतिसार’ नामक ग्रंथ के Fourth अध्याय के Third प्रकरण में
मिलता है। कला का लक्षण बतलाते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिसको Single मूक
(गूंगा) व्यक्ति भी, जो वर्णोच्चारण भी नहीं कर सकता, कर सके, वह ‘कला’ है-
‘‘शक्तो मूकोSपि यत् कर्तु कलासंज्ञ तु तत् स्मृतम।’’भृर्तहरि के According ‘कला वही है जो हमें परमब्रह्म में लीन करती है।’
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के According कला आत्मा का ईश्वरीय संगीत है। महाकवि
माघ के According जो प्रत्येक पल नवीनता And सौंदर्य को जागृत करे वही कला
है-
‘‘क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव Resellerं रमणीयताया।’’
उत्तररामचरित में महाकवि भवभूति ने कहा है कि ‘‘कल्पना की
अभिव्यक्ति ही कला है।’’

आनंद कुमार स्वामी ने छोटे-छोटे वाक्यों में कला की परिभाषा दी है।
कला प्रत्येक वस्तु के अंदर निहित है। कलाकार उस चीज के द्वारा कला का
प्रदर्शन करता है। कला में Humanीय सत्य निहित है और कला स्वयं Humanीय लक्षण
है। क्रिश्चियन दृष्टि में कला को किसी नतीजे अथवा ध्येय पर पहुँचने का साधन
मानते हैं Meansात् ईश्वर के समीप पहुँचने का मार्ग इसाइयों के नजदीक कला है।
हिन्दू लोग भी कलाकृति (मूर्ति और चित्र) को ईश्वर तक पहुँचने का साधन
समझते हैं।

कला की परिभाषा गुरूदेव अन्यत्र भी दे चुके हैं: ‘‘कला सौंदर्यमय प्रदर्शन
है। कला आनंद, प्रसन्नता और सुख का स्त्रोत है। कला के द्वारा मनुष्य के भाव
साकार (मूर्तिमान) बन जाते हैं। कला व्यक्तिगत दृष्टि से कलाकार की परम देन
है। कला किसी भी जाति की, किसी खास समय की देन है।’’
रवीन्द्र नाथ टैगोर के Wordों में ‘‘जो सत् है जो सुंदर है, वही कला
है।’’

महात्मा गांधी कहते हैं कि-’’Single अनुभूति को Second तक पहुँचाना ही
कला है।’’ महान् कलाविद् वासुदेवशरण अग्रवाल के Wordों में कला भावों का
Earth पर अवतार है। वाचस्पति गैरोला के According ‘‘अभिव्यक्ति की कुशल
शक्ति की कला है।’’ वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं। ‘‘Single ही अनुभूति
को Second तक पहुँचा देना ही कला है।’’

वस्तुत: कला की सही परिभाषा कभी नहीं हो सकती। Human के साथ कला
जुड़ी हुई है। Human का ज्ञान हमेशा परिवर्तित होता रहता है। इसलिए कला की
पूर्ण विशुद्ध व्याख्या असंभव सी ही है। फिर भी अपनी-अपनी क्षमता के According
हम अपने समय के अनुReseller कला का स्वReseller समझने की कोशिश करते रहते हैं।
हर्बट रीड ने कला को इस प्रकार प्रमाणित Reseller है-’’
विश्व में कोई वस्तु शाश्वत नहीं है परन्तु कला अमर रहेगी। जब तक
संसार में मनुष्य का अस्तित्व है कला का भी अस्तित्व रहेगा। महान चित्रकार
पाब्लो पिकासो ने कला के संबंध में उक्त विचार प्रकट करते हुए लिखा है,
कला ही जीवन है। कला के माध्यम से मनुष्य की आत्मा अपने आपको अभिव्यक्त
करती है। कला साक्षात् मनुष्य है-उसकी आत्मा है।

माध्वी पारेख के Wordों में-’’कला आंतरिक ऊर्जा है। ईमानदारी से देखें
तो कला पूर्णत: निजी और अंतरमन की अभिव्यक्ति होती है।’’

अर्पणा कौर के According-’’जीवन-अनुभव And जीवन-दर्शन का निचोड़
कला है।’’ उसमें Single कला है। Single दर्शन है। सबसे बड़ी बात है कि उसमें रहस्य
है। रहस्य के तत्व हैं। कला में थोड़ा बोलना है तो थोड़ा चुप भी रहना है। यानी
Single स्पेस भी चाहिए। इसके साथ-साथ रंगों का ड्रामा है। हैरान कर देने वाली
तासीर है। रंग-संयोजन And आकृति-संयोजन भी हैरान करने वाली होनी चाहिए।
अंतत: अंतर्मन के अनुभवों And भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम कला है। फ्रेड गेटिन्गस ने कला को जादू कहा है उनके According कलाकार का
ब्रश Single जादू की छड़ी की तरह है। Single समीक्षक द्वारा यह पूछे जाने पर कि
कला क्या है देगा ने जबाव दिया ” Well I have spent my life trying to
find out and if I had found out I would have done something about it
long ago.”

जॉन सलोन के According-“Art is the result of a creative impulse
derived out of a consciousness of life.”
कला के संदर्भ में असित कुमार हल्दार अपने विचार प्रकट करते हैं और
कहते हैं कि-“What I mean by art is some creation of man which
appeals to his emotions and his intellect by means of his secess.”
वास्तव में कला विश्लेषण की वस्तु नहीं है, आनन्दानुभव करने की है।
मधुरस की तरह वह व्याख्या द्वारा समझाई नहीं जा सकती, चखकर ही
रसास्वादन Reseller जा सकता है। बुद्धि से समझने की नहीं, हृदय से आनंद लेने
की वस्तु है। अतएव कला को उसकी SingleResellerता की समग्रता में देखना या
समझना ही मुख्य बात है। मसलन Single पेड़ की बात लीजिए। जड़, शाखा, पत्ते
ऐसे अनेक उसके अंग हैं। असंख्य जड़ों की जीभ से वह मिट्टी के अंदर से
प्राण-शक्ति खींचकर जीवित रहता है। पेड़ का यह भी Single Reseller है। किन्तु पेड़ न
तो अपने अंग-अंग में है न केवल जीवन-धारण की उस शक्ति में। अपने अंग
और प्राणशक्ति, इन सबकी संपूर्णता में जिस Single अखण्ड Reseller का प्रकाश है
वास्तव में वही पेड़ है, उसमें वस्तु, शक्ति और Reseller की सत्ता ऐसी Singleाकार है कि
अलग-अलग उसका विवेचन संभव होने पर भी उस Reseller में उसका वह सच्चा
परिचय नहीं हो सकता। विवेचन और व्याख्या में वही अंतर है जो ज्ञान और बोध
का हो सकता है, विवेचन ज्ञान का और परिचय बोध का दान है। कला को भी
हम सिद्धांतों, तर्कों और नियमों के घेरे में रखकर नहीं जान सकते, उसकी पहचान
तो उसी के आनंद में डूब जाने पर हो सकती है। रवीन्द्र की Single कविता का
आशय यहाँ लिख दें-कवि बंद कमरे में सौंदर्यशास्त्र के गुरू ग्रंथों के अध्ययन में
तल्लीन है। उसकी गुत्थियाँ Single पर Single उलझन पैदा करती जाती हैं और जिस
सौंदर्य की खोज में वह स्वाध्याय तपस्या चल रही है, वह सौंदर्य और भी अस्पष्ट
होता जाता है कि कवि सहसा खिड़की खोलकर उसके सामने खड़ा हो जाता है।
पूर्णिमा की रात। चांदनी लावा की तरह फूट रही है, लगता है, Earth की सारी
श्यामलिमा गलित रजत के अनंत पारावार में तिर उठी है और कवि को लगता है,
मैं भी क्या पागल था, ग्रंथों के ढेर में से सौंदर्य का दाना बीनने चला था। अरे,
वह तो यह रहा, यहाँ।

फलस्वReseller कला की पहचान तो उसके आनंद में रम जाने में, उन कृतियों
के मर्म में तल्लीन हो जाने से ही हो सकती है।

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