अपराध क्या है, इसके कारण और प्रकार
अपराध, ‘CRIME’ का हिन्दी पर्याय है। क्राइम Single फ्रेंच Word है जिसे जुर्म, कसूर, पाप और गुनाह आदि के पर्यायवाची के Reseller में इस्तेमाल Reseller जाता है। वास्तव में ‘CRIME’ Word लैटिन भाषा के Word ‘CRIMEN’ से उत्पन्न हुआ है जिसका शाब्दिक Means होता है विलगाव अथवा अलगाव। इस प्रकार अपराध Single ऐसी घटना है जिसके करने से अपराधी, समाज से विलग हो जाता है Meansात् उसके मन में समाज के प्रति अलगाव पैदा हो जाता है।
अपराध की परिभाषा
विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों ने अपराध Word को अपने-अपने तरीके से परिभाषित Reseller है। अपराध को परिभाषित करते हुए आसबर्न कहते हैं कि ‘‘अपराध वह कृत्य या अपकृत्य है जो समाज के समुदाय के हित के विरुद्ध है और जो विधि द्वारा निषिद्ध है, जिसको करने पर सरकार को दंड देने का भी अधिकार होता है।’’ मोरर के मुताबिक ‘‘अपराध किसी भी कानून का उल्लंघन करने की प्रक्रिया है।’’ जान गिलिन के मुताबिक ‘‘अपराध वे कार्य हैं जो समाज के लिए वास्तव में अहितकर बताए गए हैं या जो उन व्यक्तियों के समुदाय द्वारा जिसको अपने विश्वास को कार्यान्वित करने की शक्ति है, समाज के लिए अहितकर बताए गए हैं और जिसको उन्होंने दंड द्वारा रोक दिया है।’’
सदरलैंड के मुताबिक ‘‘अपराधी आचरण वह आचरण है, जिससे अपराधी कानून भंग होता है।’’ जान एस. मैवेफन्जी कहते हैं कि ‘‘अपराध, समाज के विरुद्ध, उन समस्त असंतोषों को प्रकट करता है जिन्हें राष्ट्रीय कानून द्वारा स्वीकार Reseller गया है तथा जिनका कर्ता दंड का भागी है।’’ अपराध को परिभाषित करते हुए टेफ्रट कहते हैं कि ‘‘अपराध वे कार्य हैं जिनको करना कानून द्वारा रोका गया है और जो विधि द्वारा दंडनीय माने गए हैं।’’ हत्सबरी के मुताबिक ‘‘अपराध Single ऐसा कार्य या दोष है जो जनता के विरुद्ध असंतोष है और जो कार्य के कर्ता या दोषी को दंड का भागी बनाता है।’’ लैंडिस And लैंडिस कहते हैं कि ‘‘अपराध वह कार्य है जिसे राज्य ने सामूहिक कल्याण के लिए हानिप्रद घोषित Reseller है और जिसके लिए दंड देने के लिए राज्य शक्ति रखता है।’
स्वप्निल भारत’ के कार्यकारी निदेशक डा. निशांत सिंह के मुताबिक ‘‘नैतिकता और समाज के विरुद्ध Reseller गया ऐसा प्रत्येक कार्य जिससे कि आधारभूत सामाजिक सिद्धांतों को ठेस पहुंचती हो, अपराध की श्रेणी में आता है और जरूरी नहीं कि ऐसा प्रत्येक आपराधिक कुकृत्य किसी राष्ट्र विशेष द्वारा कानूनन प्रतिबंधित Reseller ही गया हो।’’
अपराध को परिभाषित करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने कुछ अवधारणाओं का प्रयोग Reseller है। प्रेत संबंधी अवधारणा के मुताबिक कोई व्यक्ति भूत-प्रेत का साया होने के कारण अपराध करता है। अपराध की विधिशास्त्रीय अवधारणा के मुताबिक कोई सार्वजनिक कानून जो किसी व्यवहार के करने पर प्रतिबंध लगाता है या ऐसा करने की अवज्ञा देता है, उसके उल्लंघनस्वReseller Reseller गया व्यवहार अपराध है। इस अवधारणा के आधार पर अपराध को परिभाषित करते हुए हेकरवाल कहते हैं कि ‘‘अपराध, कानून का उल्लंघन है।’’ इसी के आधार पर टैपन कहते हैं कि ‘‘अपराध कानून संहिता के उल्लंघन में Single जान-बूझकर Reseller गया व्यवहार है, जो बिना किसी आरक्षण के Reseller गया तथा राज्य द्वारा दंडनीय है।’’ इस प्रकार अपराध की विधिशास्त्रीय अवधारणा कहती है कि अपराध कानून द्वारा प्रतिबंधित होता है। अपराध की समाजशास्त्रीय अवधारणा के आधार पर भी विभिन्न विद्वानों ने अपराध Word को परिभाषित Reseller है। ये All विद्वान मानते हैं कि अपराध Single ऐसा कार्य है जिससे समाज को क्षति पहुंचती है और जो सामाजिक आदर्शों के विरुद्ध होता है। इस आधार पर इलियट और मेरिल कहते हैं कि ‘‘जब किसी व्यक्ति का आचरण असामाजिक ठहराया जाता है तो उसका आचरण उस मान्य आचरण से, जो उस समूह के द्वारा उस स्थिति में निश्चित होता है, भिन्न होता है।’’ इसी प्रकार प्रो. रेकलेस कहते हैं कि ‘‘समाज के बनाए और माने हुए रास्ते को तोड़ने का नाम अपराध है। अपराध, समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से उन कृत्यों का नाम है जो सामाजिक रूढ़ियों And प्रथाओं को तोड़ते हैं लेकिन इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि आधुनिक युग की कानून की किताबों में इसका जिक्र हो ही।’’
अपराध की मनोवैज्ञानिक अवधारणा भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसमें वृत्ति तथा अपराधी-व्यवहार के विश्लेषण पर विशेष बल दिया गया है। अपराध का संबंध Human-व्यवहार से है। इस अवधारणा के मुताबिक किसी व्यक्ति को अपराधी बनाने में सबसे ज्यादा दोषी है उसका सामाजिक परिवेश। स्थितिजन्य अपराध व्यक्ति जानबूझ कर नहीं करता है अपितु ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जिनमें अपराध हो जाते हैं। प्रसिद्ध न्यायशास्त्री हॉल ने कभी कहा था कि किसी भी कृत्य को अपराध घोषित करने से पूर्व उस कृत्य विशेष को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर जांच-परख लेना चाहिए :
- समाज के हित के लिए कृत्य विशेष के कुल परिणाम हानिकारक हों Meansात् उस कृत्य से अंतत: समाज के हितों को नुकसान पहुंचता हो।
- कृत्य संवैधानिक Reseller से निषिद्ध हो Meansात् असंवैधानिक हो।
- कृत्य हानिकारक परिणाम वाला हो तथा सज्ञान हो।
- दंड क्रिया के लिए दंड देने की वैधानिक व्यवस्था हो।
- अपराध उद्देश्यात्मक कृत्य में हानि पहुंचाने के संकलित प्रयोजनापूर्ण हो।
‘अपराध’ Word को परिभाषित करते हुए टैपन कहते हैं कि ‘‘अपराध, आपराधिक विधि का सोद्देश्य कृत्य है जो बिना किसी औचित्य And बचाव के Reseller जाता है और जिसको करने पर व्यक्ति को राज्य द्वारा दंडित Reseller जा सकता है।’’ टैपन द्वारा अपराध की दी गई उपरोक्त परिभाषा, विधिक दृष्टिकोण को व्यापक तथा विस्तृत स्वReseller प्रदान करती है। टैपन की उपरोक्त परिभाषा में जिन तत्त्वों के आधार पर किसी कृत्य को अपराध माना गया है, वे हैं :
- किसी भी कार्य को अपराध घोषित करने के लिए जरूरी है कि वह कृत्य कानून के खिलाफ Reseller गया हो।
- किसी आपराधिक कानून का उल्लंघन करने पर ही कोई कृत्य अपराध कहलाता है।
- वैधानिक औचित्य के अंतर्गत Reseller गया कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
- बिना किसी उद्देश्य के Reseller गया कार्य, अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
- बिना क्षमता के Reseller गया कार्य भी अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
- All हानिकारक कृत्य अपराध नहीं होते हैं वरन् केवल वे ही हानिकारक कृत्य अपराध कहलाते हैं जो विधि द्वारा निषिद्ध हैं और कानून द्वारा हानिकारक घोषित किए गए हैं।
- जिस कृत्य को करने पर विधि-विधान में दंड का प्रावधान Reseller गया होता है, वही कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है, चाहे दंड देने का उद्देश्य प्रतिशोधात्मक, निरोधात्मक, प्रतीकात्मक, क्षतिपूत्र्यात्मक या सुधारात्मक कुछ भी रहा हो।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि केवल वही कार्य अपराध की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं जिनको करना राज्य या सरकार द्वारा मना Reseller गया हो या सरकार द्वारा प्रतिबंधित हो। इसके अलावा अन्य कार्य, चाहे वे सामाजिक व नैतिक Reseller से अहितकर ही क्यों न हों, अपराध नहीं माने जाते हैं। अपराध की परिभाषा समय-समय पर बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, बहुविवाह प्राचीनकाल में वैध था और Single सर्वमान्य प्रथा के Reseller में था लेकिन आज यह कानूनन अवैध है। जिस प्रकार अपराध की परिभाषा समय के साथ बदलती रहती है, ठीक उसी प्रकार भौगोलिक क्षेत्र के अनुReseller भी अपराध की परिभाषा बदलती रहती है। कई ऐसे कृत्य हैं जिन्हें Single राष्ट्र का कानून तो अवैध मानता है लेकिन Second देश का कानून उस कृत्य को मान्यता देता है। इस संदर्भ में हम वेश्यावृत्ति और शराब पीने को उदाहरण के Reseller में प्रस्तुत कर सकते हैं। हमारे देश में वेश्यावृत्ति Single कानूनन जुर्म है जबकि मलेशिया जैसे अनेक देशों में इसे कानूनी मान्यता प्राप्त है और इसे Single उद्योग का दर्जा दिया गया है। इसी प्रकार भारत में शराब पीना गलत नहीं है लेकिन अनेक अरब देशों में इसे Single अपराध की संज्ञा दी गई है। अपराध का Single दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि न्यायालय, मनोवैज्ञानिक, अभियोजन अधिकारी, पुलिस आदि All अपराधों को रोकने में जुटे हैं लेकिन अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है।
यदि कोई व्यक्ति मात्र कर्तव्यों या अधिकारों का उल्लंघन करता है तो उसे अपराधी नहीं माना जा सकता क्योंकि जीवन में ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जो कर्तव्य की सीमा में तो आती हैं लेकिन जिनका उल्लंघन करना अपराध नहीं माना जाता।
इसी प्रकार अपराध और नीयत में भी गहरा संबंध है। यदि किसी व्यक्ति से कोई गलत काम हो जाए लेकिन उसकी नीयत बुरी नहीं थी तो उसे अपराधी नहीं माना जा सकता। अक्सर डाक्टर, रोगी को दवा देता है ताकि वह ठीक हो जाए लेकिन दवा की प्रतिक्रिया से रोगी की मौत भी हो सकती है। क्या ऐसे में डाक्टर को हत्यारा कहा जा सकता है? डाक्टर को अपराधी (हत्यारा) नहीं माना जा सकता क्योंकि उसकी नीयत खराब नहीं थी। यही कारण है कि किसी कृत्य को अपराध घोषित करने से पूर्व कर्ता की नीयत भी देखी जाती है। नीयत का अपराध में कितना महत्त्व होता है यह इसी से समझा जा सकता है कि प्राचीन Indian Customer संस्कृति में ‘दुर्भावना’ और ‘बुरी नीयत’ को भी दंडनीय माना गया था।
हम जानते हैं कि वह कृत्य अपराध कहलाता है जिसे उस देश के कानून ने प्रतिबंधित कर रखा है। इसी प्रकार अपराधी वह है जो अपराध करता है। जिस प्रकार अपराध कई प्रकार के होते हैं, ठीक उसी प्रकार अपराधियों के भी कई वर्ग निर्धारित किए गए हैं। सवाल है कि अपराध और अपराधियों के कौन-कौन से वर्ग हैं और इन्हें किस आधार पर वर्गीकृत Reseller जाता है? अपराधशास्त्रियों और न्यायालयिक विज्ञानियों के मुताबिक प्रत्येक अपराधी Single वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है Meansात् वह अपने आप में Single ‘टाइप’ होता है। इस आधार पर विद्वानों ने अपराधियों के कई वर्गीकरण प्रस्तुत किए हैं।
अपराधी के प्रकार
महान अपराधशास्त्री लोम्ब्रासो के मुताबिक कुल 4 प्रकार के अपराधी पाए जाते हैं। उनके According जन्मजात अपराधियों का ही Single प्रकार के अपस्मारी अपराधी होते हैं। जन्मजात और अपस्मारी अपराधियों के मस्तिष्क में जन्म से ही Single विशेष प्रकार का दोष होता है जिसके चलते वे अनुकूल परिस्थितियां पैदा होने पर आसानी से अपराध की ओर उन्मुख हो जाते हैं। लोम्ब्रासो ने अपराधियों को 4 वर्गों में विभाजित Reseller था :
- जन्मजात अपराधी (बोर्न क्रिमिनल)
- अपस्मारी अपराधी (एपिलेप्टिक क्रिमिनल)
- आकस्मिक अपराधी (आक्केजनल क्रिमिनल)
- काम अपराधी (क्रिमिनल बाई पैशन)
उपरोक्त वर्गीकरण के विपरीत गैरोपफैलो का मानना है कि अपराधियों के वर्गीकरण में Humanीय पक्ष का भी ध्यान रखना चाहिए और अपराधियों के मनोवैज्ञानिक पक्ष की अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए। गैरोफैलो ने अपराधियों के 4 वर्ग बताए थे विचित्र अपराधी, विचित्र हत्यारे, बेईमान अपराधी और लंपट अपराधी। हेंज ने अपने वर्गीकरण में 4 प्रकार के अपराधी बताए थे :
- First दोषी अपराधी
- आकस्मिक अपराधी
- अभ्यस्त अपराधी
- पेशागत अपराधी
कुछ विद्वानों ने अपराधियों को उनके आर्थिक स्तर के आधार पर विभाजित Reseller है। सदरलैंड ने केवल दो ही प्रकार के अपराधी बताए हैं निम्नवर्गीय अपराधी और उच्चवर्गीय अपराधी। सदरलैंड ने उच्चवर्गीय अपराधियों को सफेदपोश अपराधी भी कहा था। सदरलैंड के मुताबिक निम्नवर्गीय अपराधी वे होते हैं जिनका सामाजिक व आर्थिक स्तर बेहद निम्न स्तर का होता है जबकि उच्चवर्गीय अपराधी वे होते हैं जिनका सामाजिक-आर्थिक स्तर बेहद उच्च प्रकार का होता है। चूंकि सफेदपोश अपराधियों की आपराधिक गतिविधियां समाज से छिपी रहती हैं इसलिए उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता है। बोन्जर ने अपराधियों का वर्गीकरण, अपराधियों के उद्देश्यों के आधार पर Reseller है। इसी आधार पर बोन्जर ने 5 प्रकार के अपराध बताए हैं :
- सामाजिक अपराध
- राजनैतिक अपराध
- आर्थिक अपराध
- काम संबंधी अपराध
- मिश्रित अपराध
उपरोक्त Discussion के आधार पर हम कह सकते हैं कि विभिन्न विद्वानों ने अपराधियों के भिन्न-भिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत किए हैं लेकिन कोई भी वर्गीकरण न तो पूरी तरह से सही है और न ही सर्वमान्य। मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण के आधार पर अपराधियों को 3 भागों में विभाजित Reseller है आत्मसम्मोही अपराधी, मनस्ताप वाले अपराधी और बहिर्मुखी अपराधी।
(1) आत्मसम्मोही अपराधी: इन्हें नारसिस्टक टाइप भी कहा जाता है। इस वर्ग के अपराधी स्वभाव से शांतिप्रिय और स्वाथ्र्ाी किस्म के होते हैं। आत्मसम्मोही अपराधी, अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए समाज को नुकसान पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते और अपराध कर बैठते हैं। ऐसे अपराधी परवाह नहीं करते हैं कि उनके कृत्य से समाज, परिजनों या मित्रों को कितना नुकसान हो सकता है। नारसिस्टक टाइप के अपराधियों की Single प्रमुख विशेषता यह होती है कि ये प्रत्येक अपराध काफी सोच-समझकर पूरे शातिराना तरीके से करते हैं न कि क्षणिक आवेश में।
आत्मसम्मोही अपराधी, अपराधविज्ञानियों के लिए सदैव से शोध का विषय रहे हैं। इस प्रकार के अपराधियों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इस तरह के अपराधियों की कामवृत्ति का किसी न किसी Reseller में दमन हुआ रहता है Meansात् ऐसे व्यक्तियों की कामवासना अतृप्त होती है। इस प्रकार के अधिकतर अपराधी सेक्स को लेकर किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन इतना निश्चित है कि इस प्रकार के अपराधियों की कामशक्ति का Ðास हुआ रहता है Meansात् वे शारीरिक Reseller से निर्बल होते हैं, अशक्त होते हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के नोएडा का निठारी कांड काफी सुर्खियों में रहा था। इसका Single अभियुक्त सुरेन्द्र कोली तथाकथित Reseller से अबोध बच्चों को पकड़कर उनके साथ सेक्स करने की कोशिश करता था लेकिन अपनी नपुंसकता के चलते जब वह अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाता था तो वह खीझ में बच्चों की हत्या कर देता था। सुरेन्द्र कोली बेहद शातिराना तरीके से बच्चों के अंगों को काटकर फेंक देता था। सुरेन्द्र कोली आत्मसम्मोही वर्ग के अपराधियों का ही प्रतिनिधित्व करता है।
(2) मनस्तापवाले अपराधी: इन्हें ‘न्यूरोटिक टाइप’ भी कहा जाता है। ये ऐसे अपराधी होते हैं जो क्षणभर के लिए आए आवेग के कारण अपराध कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्ति अपराध करने से First न तो सोचते-विचारते हैं और न ही तर्क-वितर्क करते हैं। स्पष्ट है कि ये क्रोध आदि की गर्मी में अपराध कर बैठते हैं न कि ठंडे दिमाग से। ऐसे अपराधी अधिकतर बहुव्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। बलात्कार और हत्या के अधिकतर अपराध इसी प्रकार के अपराधियों द्वारा किए जाते हैं।
(3) बहिर्मुखी अपराधी: ऐसे अपराधियों को ‘Single्ट्रोवर्ट टाइप’ के अपराधी भी कहा जाता है। इस प्रकार के अपराधी अधिकतर गिरोह या गैंग बनाकर सामूहिक Reseller से अपराध करते हैं। Single विशेष बात यह कि इस प्रकार के अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों का उद्देश्य अपने मित्र, सगे-संबंधियों को लाभ पहुंचाना होता है न कि स्वयं को लाभ पहुंचाना।
आमतौर पर उपरोक्त तीन प्रकार के अपराधी ही समाज में पाए जाते हैं। वैसे कुछ विद्वानों ने अपराधियों की आयु के आधार पर भी अपराधियों का वर्गीकरण Reseller है। इस आधार पर दो प्रकार के अपराधी होते हैं बाल और प्रौढ़ अपराधी। बचपन या किशोरावस्था में जो व्यक्ति अपराध करते हैं उन्हें बाल अपराधी (जुवेनाइल क्रिमिनल) कहा जाता है। लगभग All देशों में बाल अपराधियों के निर्धारण के लिए 16 वर्ष तक की आयु निर्धारित की गई है। सामान्यत: माना जाता है कि बाल अपराधियों द्वारा छोटे-मोटे प्रकार के अपराधों को ही अंजाम दिया जाता है लेकिन आजकल देखा गया है कि कई जघन्य प्रकार के अपराध भी बाल-अपराधियों द्वारा किए जाने लगे हैं। लूटमार, राहजनी और चोरी के अलावा बाल अपराधी आजकल विभिन्न प्रकार के यौन अपराध भी करने लगे हैं। महिलाओं से छेड़खानी, बलात्कार और बलात्कार के प्रयास जैसे अपराधों में भी बच्चे संलग्न रहने लगे हैं।
समाजविज्ञानी चिंतित हैं कि क्यों बच्चे अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल इसका Single प्रमुख कारण आधुनिक दिखावे वाली जीवन-शैली और भोग-विलास की प्रवृत्ति भी है। बच्चों तथा किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराध आज Single गंभीर सामाजिक समस्या का Reseller लेते जा रहे हैं। इस प्रकार के अपराधों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसके मूल में परिवार संबंधी समस्याएं ही होती हैं। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण बच्चे अपराध की दुनिया में प्रवेश करते हैं :
- माता-पिता का बच्चों के प्रति असंतुलित व्यवहार
- माता-पिता द्वारा लगातार आपस में लड़ना
- परिवार की आर्थिक दरिद्रता
- परिवार की नैतिक क्षीणता
- परिवार के किसी अपराधी का अनुकरण
- अभिभावक द्वारा दिए गए अनुचित निर्देश
- विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग, दुर्बलता या दोष।
अब बात प्रौढ़ अपराधियों की। 16 वर्ष से उपर के All अपराधी, प्रौढ़ अपराधी कहलाते हैं। प्रौढ़ अपराधियों के साथ न्यायालय अपेक्षाकृत अधिक सख्ती बरतता है चाहे उसका अपराध किसी बालक द्वारा किए गए अपराध से कम संगीन ही क्यों न हो। प्रौढ़ अपराधियों द्वारा लगभग All प्रकार के अपराधों को अंजाम दिया जाता है।
अपराध का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
इस सिद्धांत के समर्थक मानते हैं कि वास्तव में अपराध का मूल कारण मानसिक दुर्बलता तथा मानसिक हीनता ही है। सन् 1905 में विने ने Single विने-साइमन पैमाना बनाया जिससे व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का स्तर तथा मानसिक हीनता को मापा जा सकता है। इसके बाद 1919 में गोड्डा ने व्यक्ति के मंदबुद्धि व्यवहार को आपराधिकता से जोड़ने का प्रयत्न Reseller।
मनोविकार विश्लेषण पर आधारित सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन व्हीले तथा कानर ने Reseller। इन दोनों विद्वानों ने अपराध के कारणों को शारीरिक व मानसिक लक्षणों के स्थान पर संवेगात्मक व्याकुलता और व्यक्तित्व संघर्ष में खोजने का प्रयत्न Reseller था। इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए हीतों ने कहा कि निराशा तथा अवसाद, व्यक्ति को अपराध की ओर खींच ले जाते हैं। इस सिद्धांत के अधिकतर समर्थकों का मानना है कि व्यक्ति विभिन्न प्रकार के मनोविकारों के कारण ही अपराध करने को प्रेरित होता है और व्यक्ति के मनोविकारों का विश्लेषण करके उसकी आपराधिकता के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है।
अपराध का नियंत्रण सिद्धांत
सन् 1970 में इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले हेश ने अपराध के नियंत्रण का Single सिद्धांत दिया जो आपराधिक व्यवहार सीखने की स्वीकारात्मक तथा निषेधात्मक प्रवृत्तियों के आधार पर बनाया गया था। हेश ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में ही व्यक्ति विधि के अनुReseller कार्य करता है, आचरण करता है। इसी प्रकार व्यक्ति आपराधिक कुकृत्य भी तभी करता है जब उसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। इस सिद्धांत के According व्यक्ति का आपराधिक व्यवहार, क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया मात्र है और कुछ भी नहीं तथा व्यक्ति वही कार्य शीघ्र सीखता है, शीघ्र करता है, जिसके एवज में उसे कुछ लाभ मिलने की आशा हो। इसलिए अपराध पर तभी नियंत्रण पाया जा सकता है जब व्यक्ति को लगे कि अपराध करने पर उसे नुकसान होगा, दंड मिलेगा।
बहुकारवादी सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रणेताओं में मुख्य Reseller से हीले, सिरिलबर्ट और अबराहन्सन का नाम लिया जा सकता है। इस सिद्धांत के According कई उपादानों के संयुक्त प्रभाव के कारण ही किसी व्यक्ति में आपराधिक प्रवृत्ति पैदा होती है। इन कारणों को बहुत अधिक स्पष्ट Reseller से परिभाषित नहीं Reseller जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अपराध की घटनाएं, विभिन्न विशिष्ट परिस्थितियों के संयोग के परिणामस्वReseller होती हैं। विलियम हीले के According यदि कोई बालक कोई अपराध करता है तो उसके पीछे कोई Single-दो कारण ही नहीं होते हैं अपितु यह क्रिया कई कारकों की वजह से होती है। इसी प्रकार सिरिलबर्ट का भी मानना है कि किन्हीं दो-तीन कारकों के आधार पर ही किसी अपराध की व्याख्या नहीं की जा सकती क्योंकि कोई भी अपराध वास्तव में कई विभिन्न कारणों के संयोग से ही घटित होता है। इस सिद्धांत का समर्थन करते हुए बिल एलियर का कहना है कि किसी Single ही कारण से व्यक्ति में आपराधिक प्रवृत्ति का उदय नहीं हो सकता।
अपराध का संघर्षता का सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले प्रमुख अपराधशास्त्री क्वैली ने अपराध की परिभाषा, परिभाषा निर्णय तथा परिभाषा क्रियान्वयनहीन सैद्धांतिक परिकल्पनाएं प्रस्तुत कीं जिनके According अपराधी व्यक्ति, समाज की राजनैतिक व आर्थिक परिस्थितियों के उत्पाद होते हैं और उन्हीं के अधीन रहते हैं। इस प्रकार देखा जाए तो अपराध का संघर्षता का यह सिद्धांत, कार्ल माक्र्स की विचारधारा के ही कुछ अधिक करीब है। लेकिन इस सिद्धांत की सबसे बड़ी कमी यह है कि वस्तुत: सामाजिक मान्यताएं, राजनैतिक मान्यताओं की पर्यायवाची नहीं होती हैं।
मानदंड धारणा सिद्धांत
इस सिद्धांत को प्रस्तुत करने वाले रेकलेस (1962) के मुताबिक अपराध नियंत्रण के दो मानदंड होते हैं बाह्य और आंतरिक मानदंड। सामाजिक-न्यायिक तंत्र को तो बाह्य मानदंड कहा जाता है जबकि समूह के मानदंड आंतरिक मानदंडों की श्रेणी में आते हैं। रेकलेस के According जो व्यक्ति बाह्य And आंतरिक मानदंड नियंत्रकों को धारण करने की शक्ति रखते हैं, मनोवृत्ति रखते हैं, उनमें आपराधिक प्रवृत्ति उत्पन्न होने की आशंका कम होती है जबकि जो व्यक्ति इस धारणा के अयोग्य होते हैं या कमजोर होते हैं उनमें आपराधिक प्रवृत्ति पैदा होने की आशंका काफी प्रबल होती है।
आरोपण सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रणेता फ्रेंक (1938) को माना जाता है तथा इस सिद्धांत में समाज के सदस्यों की प्रतिक्रिया के आधार पर अपराध को संभालने का विचार दिया गया था। बाद में इसी सिद्धांत को एडविन लेमट (1959) ने विकसित Reseller, जिनके According औपचारिक अथवा आपराधिकता, सामाजिक प्रतिक्रिया द्वारा परिभाषित की जाती है और इस आपराधिकता का स्वभाव और दर, अपराधी की भूमिका के साथ सामाजिक प्रतिक्रिया द्वारा ही स्वReseller ग्रहण करते हैं।
अपराध के विभिन्न सिद्धांतों में हम पढ़ चुके हैं कि अपराध का सबसे बड़ा कारण, व्यक्ति की मानसिक तथा बौद्धिक दुर्बलता ही होता है। इस संदर्भ में गॉडर्ड ने ठीक ही कहा है कि ‘‘अपराध का सबसे बड़ा अकेला कारण सिर्फ और सिर्फ बौद्धिक दुर्बलता ही है।’’ इसी क्रम में इटली के चिकित्सक लौमब्रोसो ने अपराधियों की शारीरिक संCreation का अध्ययन Reseller और बताया कि आपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति का सिर नीचा होता है और ललाट अपेक्षाकृत कुछ पीछे की ओर होता है। इसी प्रकार ऐसे व्यक्तियों का जबड़ा कुछ भारी और बाहर को निकला होता है। बाद में 1913 में चाल्र्स बोरिंग ने लौमब्रोसो की उपरोक्त धारणा को सिरे से नकारते हुए बताया कि अपराधी और निरपराधी व्यक्ति को उनकी शारीरिक संCreation के आधार पर नहीं पहचाना जा सकता। कुछ भी हो, इतना तो निश्चित है कि व्यक्ति की आपराधिक प्रवृत्ति के पीछे उसकी मनोवृत्ति और मानसिक स्थिति का भी महत्त्वपूर्ण हाथ होता है।
शिकागो के विद्वान हीले ने अपने Single अध्ययन में पाया कि लगभग 28 प्रतिशत अपराधी निरे मूर्ख होते हैं। इसी प्रकार कैलीफोर्निया के समाजशास्त्री विलियम ने बाल-अपराधियों के बीच Single सर्वेक्षण Reseller और पाया कि 32 प्रतिशत से भी अधिक बाल-अपराधी मंद बुद्धि वाले थे। इसके बाद कई मनोवैज्ञानिकों ने इसी प्रकार के अध्ययन किए और पाया कि मंद बुद्धि तथा मानसिक कमजोरी, आपराधिकता का Single प्रमुख कारण तो है लेकिन साथ ही कुछ कुशाग्र बुद्धि वाले व्यक्ति भी अपराधी होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि जालसाजी, तस्करी और धोखाधड़ी जैसे अपराध अधिकतर तीव्र बुद्धि वाले अपराधी ही करते हैं। कुछ अत्यधिक तीक्ष्ण बुद्धि वाले अपराधियों का अध्ययन करने पर पाया गया कि ऐसे व्यक्ति का रुझान, किशोरावस्था से ही अपराध की ओर था और जब उन्हें अपराध के लिए अवसर व उपयुक्त परिस्थितियां मिलीं तो उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग, आपराधिक कुकृत्यों को करने में Reseller। जब व्यक्ति अपनी आंतरिक इच्छाओं को दबा लेता है तो उपर से भले ही यह लगता है कि उसने अपनी इच्छाओं को दबा लिया है लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। वस्तुत: दमित इच्छाएं, मन-मस्तिष्क के किसी कोने में जाकर सुप्तावस्था में बैठ जाती हैं। जब कभी व्यक्ति को आपराधिक माहौल मिलता है अथवा दमित इच्छाएं को फलने-फूलने का अवसर मिलता है तो व्यक्ति आपराधिक कुकृत्य करने लगता है, अपनी इच्छाएं पूरी करने लगता है। उदाहरणस्वReseller, हम देखते हैं कि किसी कामुक व्यक्ति की काम से संबंधित इच्छाएं दबाने पर भी Destroy नहीं होती हैं। यदि व्यक्ति की काम-इच्छाओं को दमित Reseller जाता है, दबाया जाता है तो वे विकृत स्वReseller में अपना सिर उठाने लगती हैं परिणामस्वReseller व्यक्ति छेड़खानी, यौन-उत्पीड़न जैसे कुकृत्य करने लगता है। बलात्कार करने वाला व्यक्ति पीड़िता को दु:ख पहुंचाकर खुद सुख का अनुभव करता है Meansात् उसकी मानसिकता विकृत हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि कई बार व्यक्ति, अपने मानसिक दोषों के चलते भी अपराध करने लगता है। यदि व्यक्ति में बौद्धिकता की कमी होगी तो वह अपराध की ओर अधिक तेजी से और अधिक सरलता से मुड़ जाता है।
मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षणों में पाया गया है कि मानसिक Reseller से दुर्बल व्यक्ति और दुर्बल इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति, आसानी से किसी के भी कहने में आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को यदि अपराध करने के लिए प्रेरित Reseller जाए तो वह आसानी से आपराधिक निर्देशों को मान लेता है। मानसिक दुर्बलता के कारण व्यक्ति यह निर्णय नहीं कर पाता कि जिस कार्य को उसे करने के लिए प्रेरित Reseller जा रहा है वह सही है या गलत। कुछ व्यक्तियों में किसी Single वृत्ति या मानसिक इच्छा का अत्यधिक विकास हो जाता है जिस कारण वह Single विशेष प्रकार के अपराध ही करने लगता है। किसी Second व्यक्ति की देखादेखी भी कुछ व्यक्तियों में आपराधिक प्रवृत्ति पनप जाती है। इस प्रकार अनुकरण के कारण भी कुछ लोग अपराध की ओर उन्मुख हो जाते हैं। जब कोई व्यक्ति गैर-कानूनी धंधे करके ऐशोआराम से रहता है तो उसके आसपास के लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं। इस प्रकार अनुकरण भी आपराधिक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनोवैज्ञानिक कारणों से भी व्यक्ति अपराध करने लगता है। मनोवैज्ञानिकों ने अपराध के निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक आधारों की पहचान की है :
- मानसिक दोष
- मानसिक दुर्बलता
- पैतृक विशेषताएं
- दमित इच्छा
- अनुकरण
- प्रवृत्तिशीलता
- पारिवारिक कारण
- निर्धनता
- भौतिकतावादी संस्कृति
- आधुनिकता
विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों को भी अपराध का Single प्रमुख कारण माना जाता है। मनोविज्ञान में कई ऐसे रोगों की पहचान की गई है जिनका रोगी, अपराध करने को अधिक उन्मुख होता है। आज के भौतिक और आधुनिक जीवन में व्यक्ति की इच्छाएं असीमित हो गई हैं, वह रातोंरात अमीर बनकर सारे ऐशोआराम पा लेना चाहता है, सारी सुख-सुविधाएं जुटा लेना चाहता है। ऐसे भौतिकतावादी इच्छाओं के कारण व्यक्ति तनाव का शिकार होकर कई ऐसे मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है जिनके कारण वह अपराध करने लगता है। चूंकि निम्नवर्गीय लोगों के जीवन में जटिलताएं अधिक होती हैं, उन्हें अधिक संघर्ष करने पड़ते हैं और उनके पास चिकित्सा की सुविधाएं भी कम होती हैं इसलिए उनमें मानसिक रोग अधिक पाए जाते हैं। इसके विपरीत उच्चवर्गीय व्यक्तियों का जीवन अपेक्षाकृत सरल होता है और उनके पास सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध होती हैं इसलिए उन्हें मानसिक रोगों का शिकार कम ही होना पड़ता है। यही कारण है कि अधिकतर अपराधी निम्नवर्ग से संबंधित होते हैं। वैसे आजकल इस तथ्य में काफी विचलन देखने को मिल रहे हैं। महानगरों में उच्चवर्ग के धनाढ्य युवक-युवतियां भी अब गंभीर किस्म के अपराध करने लगे हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि अधिकतर अपराधियों का व्यक्तित्व, असामान्य तथा कुछ विकृत होता है। All आदतन अपराधियों में किसी-न-किसी प्रकार का कोई मानसिक विकार अवश्य पाया जाता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि अपराधियों में स्वच्छंदता, विद्रोह, ध्वंSeven्मक प्रवृत्ति और उत्पात मचाने की प्रवृत्ति, अपेक्षाकृत अधिक होती है। कहा जाता है कि अपराधी अपेक्षाकृत जल्दी ही आवेश में आ जाते हैं और बात-बात पर वे उत्तेजित भी हो जाते हैं। मानसिक रोग या मनोविकार जन्मजात भी हो सकते हैं और जन्म के बाद भी कभी पैदा हो सकते हैं। इस संदर्भ में चोरी की प्रवृत्ति को उदाहरणस्वReseller लिया जा सकता है। कुछ व्यक्तियों में बचपन से ही चोरी की प्रवृत्ति होती है और वे बिना कुछ किए ही कोई वस्तु पा लेना चाहते हैं Meansात् वस्तु को चुरा लेना चाहते हैं। यह मानसिक प्रवृत्ति ही उन्हें चोरी के लिए प्रेरित करती है। Single दिलचस्प शोध-निष्कर्ष के मुताबिक यदि जुड़वां बच्चों में से कोई भी आपराधिक प्रवृत्ति का होता है तो निश्चित Reseller से दूसरा बच्चा भी आपराधिक प्रवृत्ति का ही होगा। विभिन्न मानसिक रोग : वैज्ञानिकों के According मानसिक रोग दो प्रकार के होते हैं मानसिक दौर्बल्य और मनोविक्षेप। मानसिक दौर्बल्य कुल छह प्रकार के माने जाते हैं स्नायु रोग, औत्सुक्य विकलता (ऐंनजाईटी), भीति (फोबिया), कल्पनागृह (ओबसेशन), अनियंत्रित अभ्यास (कम्पल्शन) और हिस्टीरिया। ठीक इसी प्रकार मनोविक्षेप के भी तीन प्रकार बताए गए हैं स्थिर भ्रम रोग, असामयिक मनोहाò और उत्साह विषादमय उन्माद (मैनिकडिप्रेसिव साइकोसिस)।
क्रोध और प्रतिशोध व्यक्ति की मानसिक अवस्थाएं हैं और उन्हीं के वशीभूत व्यक्ति कभी-कभी गंभीर अपराध कर बैठता है। शरीर-क्रिया विज्ञान के According जब व्यक्ति की कोई इच्छा पूरी नहीं हो पाती है या वह अपना मनचाहा कार्य नहीं कर पाता है तो डक्टलैस ग्लैंड नामक ग्रंथि से Single हार्मोन का òावण होता है जिस कारण व्यक्ति के रक्त में शर्करा (शुगर) की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त-संचार तीव्र होने लगता है। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति स्वयं को अत्यधिक शक्तिशाली और सामथ्र्यवान समझने लगता है। क्षणिक शक्ति के अहसास से इस समय व्यक्ति का अपने उ+पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है और उसे पता नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। इस मानसिक स्थिति को क्रोध कहते हैं और क्रोधावस्था में व्यक्ति, आपराधिक कुकृत्य कर बैठता है। क्रोधावस्था की कुल 4 अवस्थाएं होती हैं आवेश, झुंझलाहट, रूदन और शांत्यातिरेक। आवेश, क्रोध की अत्याधिक खतरनाक स्थिति होती है। आवेश में व्यक्ति का अपने उ+पर से नियंत्रण बिल्कुल समाप्त हो जाता है और इस अवस्था में वह हत्या जैसा जघन्य अपराध भी कर बैठता है। जब व्यक्ति अपने क्रोध, अपने दुख को प्रकट नहीं कर पाता है तो वह झुंझला उठता है। झुंझलावस्था की इस अवस्था में व्यक्ति अपने बाल नोचने लगता है, बुदबुदाने लगता है और आसपास की वस्तुओं को इधर-उधर फेंकने लगता है। क्रोधावस्था की इस अवस्था की विशिष्टता यह है कि इसमें व्यक्ति, Second को कोई गंभीर क्षति नहीं पहुंचा पाता है और अंदर ही अंदर घुटकर रह जाता है। अत्याधिक क्रोध के बावजूद जब व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता है, असहाय हो जाता है तो वह रोने लगता है। इसी से मिलती-जुलती क्रोधावस्था, शांत्यातिरेक कहलाती है जिसमें व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता है और सारा क्रोध अपने सीने में ही दबा लेता है। कहा जाता है कि महात्मा गांधी, शांत्यातिरेक के अभ्यास के कारण ही अपने को क्रोधित होने से बचा लेते थे। यदि गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है कि क्रोध की केवल Single अवस्था ही ऐसी है जिसमें व्यक्ति अपराध करता है और वह अवस्था है आवेश की अवस्था। बाकी की तीन क्रोधावस्थाओं में व्यक्ति समाज के लिए खतरनाक नहीं होता है अपितु अपना ही नुकसान कर बैठता है।
प्रतिशोध नामक मानसिक अवस्था भी कई व्यक्तियों में पाई जाती है। वस्तुत: क्रोध के कारण ही व्यक्ति प्रतिशोध लेने को आतुर हो जाता है। क्रोध और प्रतिशोध में मुख्य अंतर यही है कि क्रोध तो Single अस्थायी अवस्था है, क्षणिक आवेश की अवस्था है जबकि प्रतिशोध Single स्थायी अवस्था है। वास्तव में प्रतिशोध Single स्थायी मनोविकार है, Single स्थायी मनोरोग है। प्रतिशोध में व्यक्ति अंदर ही अंदर तब तक आवेशित रहता है जब तक कि वह अपना प्रतिशोध पूरा नहीं कर लेता। प्रतिशोध की Single विशिष्टता यह भी है कि प्रतिशोध प्रवृत्ति वाले लोग अपने आवेश को प्रकट नहीं करते हैं और समय आने पर प्रतिशोध ले लेते हैं पूरे ठंडे दिमाग से। वस्तुत: प्रतिशोध दो प्रकार के होते हैं आवेग-प्रधान और ईर्ष्या-प्रधान। आवेग-प्रधान प्रतिशोध में व्यक्ति Second को शारीरिक हानि पहुंचाकर अपने को शांत करना चाहता है जबकि ईर्ष्या-प्रधान प्रतिशोध में व्यक्ति षड्यंत्र रचकर Second पक्ष को नीचा दिखाना चाहता है, उसकी बेइज्जती करना चाहता है।