मार्क्सवाद क्या है ?
मार्क्स की Creationएं –
मार्क्स की Creationओ में से कुछ प्रमुख Creationएं है – फिलासफी आफ पावर्टी द कम्युिDestroy मेनीफेस्टो क्रिटीव आफ पोलटी इकानामी दास केपीटल आदि।
मार्क्सवाद का Means –
मार्क्सवाद क्रांतिकारी समाजवाद का ही Single Reseller है। यह आर्थिक और सामाजिक समानता में विश्वास रखता है अत: मार्क्सवाद All व्यक्तियो की समानता का दर्शन है। मार्क्सवाद की उत्पत्ति खुली प्रतियोगिता स्वतंत्र व्यापार आरै पूंजीवाद के विरोध के कारण हुइर्। मार्क्सवाद पूंजीवाद व्यवस्था को आमलू Reseller से परिवर्तित करने और सर्वहारा वर्ग की समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करने के लिये हिंSeven्मक क्रांति को Single अनिवार्यता बातलाता है इस क्रांति के पश्चात ही आदर्श व्यवस्था की स्थापना होगी वह वर्गविहीन संघर्ष विहीन और शोषण विहीन राज्य की होगी।
मार्क्सवाद की विशेषताएं –
- मार्क्सवाद पूंजीवाद के विरूद्ध Single प्रतिक्रिया है।
- मार्क्सवाद पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिये हिंSeven्मक साधनो का प्रयागे करता है।
- मार्क्सवाद प्रजातांत्रीय संस्था को पूंजीपतियो की संस्था मानते है जो उनके हित के लिये और श्रमिको के शोषण के लिए बनार्इ गयी है।
- मार्क्सवाद धर्म विरोधी भी है तथा धर्म को Human जाति के लिये अफीम कहा है। जिसके नशे में लागे उंघते रहते हे।
- मार्क्सवाद अन्तरार्ष्टी्रय साम्यवाद मे विश्वास करते हे।
- समाज या राज्य में शाषको और शोषितों में पूंजीपतियों और श्रमिकोद्ध में वर्ग संघर्ष अनिवार्य है।
- मार्क्सवाद अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत द्वारा पूंजीवाद के जन्म को स्पष्ट करता हे।
मार्क्सवाद के प्रमुख सिद्धांत
1. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स के विचारो का मूल आधार है मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक प्रणाली को हीगल से ग्रहण Reseller है मार्क्स के द्वन्द्ववाद को समझने के लिए हीगल के विचारो को जानना आवश्यक है।हीगल के विचारो में सम्पूर्ण संसार गतिशील है और इसमें निरंतर परिवतर्न होता रहता हे। हीगल के विचारो में History घटनाओ का क्रम मात्र नही है बल्कि विकास की तीन अवस्थाआे का विवेचन Reseller है – 1. वाद 2 प्रतिवाद 3 संवाद। हीगल की मान्यता कि कोर्इ भी विचार अपनी मूल अवस्था में वाद होता है। कुछ समय बीतने पर उस विचार का विरोध उत्पन्न होता है इस संघर्ष के परिणमस्वReseller मौलिक विचार वाद परिवर्तित होकर प्रतिवाद का विराधेा होने से Single नये विचार की उत्पत्ति होती है जो सवाद कह लाती है।
हीगल का कहना है कि द्वन्द्व के माध्यम से संवाद आगे चलकर वाद का Reseller ले लेता है जिनका पनु : प्रतिवाद होता है आरै द्वन्द्व के बाद संवाद का Reseller धारण करता है। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है अन्त मे सत्य की प्राप्ति होती है।
मार्क्स ने हीगल के द्वन्द्ववाद को स्वीकार Reseller किन्तु हीगल के विचारो को उसने अस्वीकार Reseller। जहां हीगल संसार को नियामक तथा विश्व आत्माा मानता है। वहां माक्सर् भौतिक तत्व को स्वीकार करता हे। मार्क्स का मानना है कि द्वन्द्ववाद का आधार विश्व आत्मा न होकर पदार्थ ही है। यह भौतिक पदार्थ ही संसार का आधार है पदार्थ विकासमान है और उसकी गति निरंतर विकास की ओर है विकास द्वन्द्वात्मक रीति से होता है। वाद प्रतिवाद और संवाद के आधार पर ही विकास गतिमान रहता है मार्क्स के विचारो मे पूंजीवाद वाद है जहां दो वर्ग पूंजीपतियों व श्रमिक है Single धनवान और दूसरा निर्धन है इन दोनो के हितो मे विरोध है। इन विरोधी वर्गो मे संघर्ष होना आवश्यक है इस संघर्ष में श्रमिको की विजय होगी और सर्वहारा वर्ग Meansात श्रमिक वर्ग का अधिनायक वाद स्थापित होगा यह प्रतिवाद की अवस्था है। इन दोनो अवस्थाओ मे से Single तीसरी व नर्इ स्थिति उत्पन्न होगी जो साम्यवादी समाज की है। इस स्थिति मे न वर्ग रहेंगे न वर्ग संघर्ष होगा और न राज्य आवश्यक्तानुसार समाज से प्राप्त करेगा। यह तीसरी स्थिति संवाद की स्थिति होगी।
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की आलोचना –
- मार्क्स द्वारा प्रतिपादित दर्शन का आधार द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है किन्तु इसने इतने महत्वपूर्ण सिद्धांत का कहीं भी विस्तृत Reseller से वर्णन नही Reseller।
- मार्क्स ने हीगल के आध्यात्मवाद के स्थान पर भौतिकवाद का समर्थन Reseller है।
- मार्क्स का मानना है कि समाज की प्रगति के लिए संघर्ष व क्रांति का होना अनिवार्य है। किन्तु यह सत्य है कि शांतिकाल में ही समाज की प्रगति तीव्र गति से होती है।
2. History की आर्थिक भौतिकवादी व्याख्या –
मार्क्स की विचारधारा में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की भांति History की आर्थिक व्याख्या का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है। मार्क्स के विचार में History की All घटनाएं आर्थिक अवस्था में होने वाले परिवर्तनो का परिणाम मात्र है। मार्क्स का मत है कि प्रत्येक देश मे और प्रत्येक काल मे All राजनीतिक सामाजिक संस्थाएं कला रीति रिवाज तथा समस्त जीवन भौतिक अवस्थाओ व आर्थिक तत्वो से प्रभावित होती है। मार्क्स अपनी आर्थिक व्याख्या के आधार पर Humanीय History की छ: अवस्थाएं बतलायी है जो है।
History की आर्थिक व्याख्या की आलोचना –
1. आर्थिक तत्वों पर अत्यधिक और अनावश्यक बल – आलोचको के According मार्क्सवाद ने समाज के राजनीतिक सामाजिक और वैधानिक ढांचे में आर्थिक तत्वों को Need से अधिक महत्व दिया है तथा मार्क्स का यह दृष्टिकोण भी त्रुटिपूर्ण है कि All Humanीय कार्यो का आधार यही आर्थिक तत्व है सामाजिक अवस्था And समस्त Humanीय क्रियायें केवल आर्थिक तत्व पर ही आधारित नहीं होती है आर्थिक तत्व के अतिरिक्त अन्य तत्वों के द्वारा भी कार्य Reseller जाता है इन Second तत्वो में सामाजिक वातावरण Humanीय विचारो और भौगोलिक तत्वों को लिया जा सकता है।
3. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
मार्क्स का अन्य सिद्धांत वर्ग संघर्ष का सिद्धांत है माक्सर् ने कहा है अब तक के समस्त समाजो का History वर्ग संघर्ष का History रहा है। कुलीन और साधारण व्यक्ति सरदार और सवे क संघपति आरै श्रमिक निरंतर Single Second के विरोध में खडे रहे है। उनमें आबाध गति से संघर्ष जारी है। मार्क्स इससे निष्कर्ष निकाला है कि आधुनिक काल में पूंजीवाद के विरूध्द श्रमिक संगठित होकर पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त कर देंगे तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही स्थापित हो जायेगी।
वर्ग संघर्ष के सिद्धांत की आलोचना –
- कार्ल मार्क्स का दृष्टिकोण गलत कि सामाजिक जीवन का आधार संघर्ष है वास्तव में सामाजिक जीवन का आधार सहयोग है।
- मार्क्स ने घोषणा की है कि छोटे छोटे पूंजीपति समाप्त हो जायेंगे किन्तु ऐसा नही हुआ ये पूंजीपति विकसित हुए।
- मार्क्स ने समाज में केवल दो वर्गो की बात कही है। जबकि आधुनिक युग में दो वर्गो की बात कही है। जबकि आधुनिक युग में दो वर्गो के बीच में Single महत्वपूर्ण तथा विशाल मध्यम वर्ग विद्यमान है।
4. अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत –
अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत की आलोचना –
5. सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद –
- मार्क्स के According पूंजीवादी समाज में अल्पसंख्यक पूंजीपति वर्ग बहुसख्ं यक श्रमिको पर शासन करता है जबकि श्रमिको की तानाशाही में बहुसंख्यक श्रमिक वर्ग अल्पसंख्यक पूंजीपतियो पर शासन करेगा। इस प्रकार यह पुंजीवादी शासन की तुलना में अधिक लोकतान्त्रिक होगा।
- श्रमिकों के अधिनायकवादी शासन में निजी समपत्ति का उन्मूलन Reseller जायेगा और उत्पादन आरै वितरण के साधनो पर राज्य का Singleाधिकार हो जायेगा।
- श्रमिकों की तानाशाही में पूंजीपति वर्ग को बलपूर्वक दबा दिया जायेगा जिससे भविष्य में वह पुन: सिर न उठा सके। पूंजीवाद में विश्वास रखने वालो का अनत कर दिया जायेगा।
- श्रमिको की तानाशाही की स्थिति में राज्य Single संक्रमणकालीन व्यवस्था है। संक्रमणकाल में राज्य तो रहेगा किन्तु जब पूंजीपति वर्ग को समलू Reseller से Destroy कर दिया जायेगा Meansात वर्गीय व्यवस्था समाप्त कर दी जाएगी तो राज्य स्वयंमेव समाप्त हो जायेगा।
एंजिल्स के Wordो में ‘‘जब श्रमिक वर्ग राज्य की सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त कर लेता है तो वह वर्ग के All मतभेदो व विरोधो को समाप्त कर देता है और परिणामस्वReseller राज्य के Reseller में समाप्त हो जाता है।’’
6. वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज –
वर्गविहीन व राज्यविहीन समाज की आलोचना –
मार्क्सवाद की आलोचना या विपक्ष में तर्क
- मार्क्सवाद का उददेश्य अस्पष्ट – मार्क्सवाद की आलोचना का आधार उसके उददेश्य की अस्पष्टता है। मार्क्सवाद Single ऐसे समाज की कल्पना करता है जो वर्ग विहीन और राज्य विहीन हो इसका व्यावहारिक हल मार्क्सवाद मे आस्था रखने वाले देशो के पास भी नही है। आज भी चीन में श्रमिक वर्ग की तानाशाही विद्यमान है किन्तु वहां अन्य वगर् भी है।
- हिंसा द्वारा सामाजिक परिवर्तन- मार्क्सवादीयों का दृष्टिकोण है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए हिंसा आवश्यक है कितुं हिसां की किसी भी स्थिति में सवर्मान्य And वाछंनीय नही हो सकती।
- मजदूरो की तानाशाही खतरनाक- विश्व में विद्यमान तानाशाही Kingो के समान श्रमिको की तानाशाही भी शासन का विकृत Reseller है।
- लोकतंत्र विरोधी धारणा- यद्यपि मार्क्सवाद समाजवादी लोकतंत्र के प्रति आस्था व्यक्त करते हे। किन्तु वास्तव में यह तानाशाही व्यवस्था का ही दूसरा Reseller है। इस व्यवस्था में कोई दसूरा राजनीतिक दल नही होता।
- अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत त्रुटिपूर्ण- मार्क्स ने अपने अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत में केवल श्रम को ही वस्तु के मूल्य निर्धारण का आधार माना है जो स्वयं मे त्रुटिपूर्ण है। मूल्य निर्धारण के लिये मांग पूतिर् समय स्थान आदि ऐसे कारण है जो वस्तु के मूल्य निर्धारण को प्रभावित करते है।
मार्क्सवाद की उपर्युक्त आलोचना के निष्कर्ष स्वReseller-
मार्क्सवाद का महत्व या प्रभाव या पक्ष में तर्क
- वैज्ञानिक दर्शन- माक्सर्वाद को वैज्ञानिक समाजवाद भी कहा जाता है माक्सर् के पूर्ण समाजवादी सिद्धांतो मे वैज्ञानिक आधार देने का कभी भी प्रयास नही Reseller। इस कार्य को प्रारंभ करने का श्रेय मार्क्स को जाता है।
- सैध्दांतिकता की अपेक्षा व्यावहारिकता पर बल – मार्क्सवाद की लोकप्रियता का प्रमुख कारण उसका व्यावहारिक होना है। इसकी अनेक मान्यताओ को रूस और चीन में प्रयोग में लाया गया जिनमें पूर्ण सफलता भी मिली।
- श्रमिक वर्ग की स्थिति को सबलता प्रदान करना –मार्क्सवाद की सबसे बडी देन है तो वह श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना और Singleता को जन्म देना है। उनकी स्थिति में सुधार करना है। मार्क्स ने नारा दिया ‘‘विश्व के मज़दूर Single हो जाओ तुम्हारे पास खोने के लिये केवल जंजीरे है और विजय प्राप्त करने के लिये समस्त विश्व पड़ा हे। ‘‘ मार्क्स के इन नारो ने श्रमिक वर्ग में चेतना उत्पन्न करने में अद्वितीय सफलता प्राप्त की।
- पूंजीवादी व्यवस्था के दोषो पर प्रकाश डालना – मार्क्सवाद के According समाज में सदा शोषक शोषित के बीच संघर्ष चलते रहता है। शोषक या पूंजीवादी वर्ग सदा अपने लाभ कमाने की चिन्ता में रहता है। इसके लिये वह श्रमिको तथा उपभोक्ताओ का तरह तरह से शोषण करता रहता है। परिणाम स्वReseller पूंजीपति और अधिक पूंजीपति हो जाते है और गरीब और अधिक गरीब। समाज में भूखमरी और बेकारी बढती है। तो दसू री ओर पूंजीपतियों व्यवस्था के इन दोषो को दूर किये बिना आदर्श समाज की स्थापना नही की जा सकती।
संक्षेप में मार्क्सवादी विचारधारा ने दलित आरै उपेिक्षत Humanता पक्ष लेकर अपने को Single अत्यधिक लाके पिय्र और आकर्षक Reseller में प्रस्तुत Reseller है और विश्व राजनीति में अपने को Single प्रबल चुनौती के Reseller में खडा कर दिया हैं।
मार्क्सवाद व समाजवाद की तुलना
- मार्क्सवाद Single विशिष्ट सिद्धांत है। जिसे मात्र साम्यवादी देश ही अपना सकता है। जबकि समाजवाद Single प्रजातांत्रिक और व्यापक सिद्धांत है जिसे कोर्इ भी देश अपना सकता है।
- मार्क्सवाद का अन्तिम चरण राज्य विहीन समाज की स्थापना है जबकि समाजवाद राज्य को आवश्यक मानता है।
- मार्क्सवाद सामाजिक And आर्थिक समानता को विशेष महत्व देता है। जबकि समाजवाद स्वतत्रं ता आरै समानता का पक्षधर है।
- समस्त मार्क्सवाद समाजवादी होते है जबकि समस्त समाजवादी मार्क्सवादी नही हाते े।
- मार्क्सवाद अन्तरार्ष्टी्रय विचारधारा हे। समाजवादी योजनाएं राष्ट्रीय होती हे।
- मार्क्सवाद में वेतन Needनुकलु है जबकि समाजवाद में योग्यता अनुकूल हे।
- मार्क्सवादी धर्मविरोधी है वह धर्म को प्रगतिशील विचारों के मार्ग में बाधक बतलाता है। परंतु धर्म के सम्बन्ध में समाजवादियो का दृष्टिकोण तटस्थता का है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि मार्क्सवाद और समाजवाद में बहुत अंतर है। मार्क्सवाद और समाजवाद Single ही व्यवस्था के दो प्रकार नही वरन विचार और जीवन के दो मूलत: भिन्न मार्ग है।