मौलिक अधिकार के प्रकार And विशेषताएं
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
- शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
- सांस्कृतिक And शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
समानता का अधिकार
Indian Customer समाज के व्याप्त असमानताओं And विषमताओं को दूर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समानता के अधिकार का History Reseller गया है।
- विधि के समक्ष समानता – अनुच्छेद 14 के According ‘‘भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से वंचित नहीं Reseller जावेगा। आशय कानून की दृष्टि से सब नागरिक समान है।
- सामाजिक समानता – अनुच्छेद 15 के According राज्य किसी नगरिक के विरूध धर्म वंश जाति लिंग जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में पक्षपात नहीं Reseller जावेगा।
- अवसर की समानता – अनुच्छेद 16 की व्यवस्था के According राज्य की नौकरियों के लिए All को समान अवसर प्राप्त होंगे।
- अस्पृश्यता का अंत – अनुच्छेद 17 के According अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है। किसी भी दृष्टि में अस्पृश्यता का आचरण करना कानून दृष्टि में अपराध And दण्डनीय होगा।
- उपाधियों का अंत – अनुच्छेद 18 के According ‘‘सेना अथवा शिक्षा संबंधी उपाधियों के अलावा राज्य अन्य कोर्इ उपाधियाँ प्रदान नहीं कर सकता।
समानता के अधिकार के अपवाद
- सामाजिक समानता में सबको समान मानते हुए भी राज्य स्त्रियों तथा बच्चों को विशेष सुविधाएं प्रदान कर सकता है और इसी प्रकार राज्य सामाजिक तथा शिक्षा की दृष्टि से पिछडे़ वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष नियम बना सकता है।
- सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों And जनजातियों के लिए कुछ स्थान Windows Hosting कर दिये गये हैं तथा राज्य द्वारा जन्म-स्थान And निवास-स्थान तथा आयु संबंधी योग्यता का निर्धारण Reseller जा सकता है।
- संविधान में उपाधियों की व्यवस्था न होते हुए भी देश में सन् 1950 से भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म श्री आदि उपधियां भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं। सन् 1977 में जनता पार्टी के सत्तारूढ़ होने पर इन उपाधियों का अंत कर दिया गया है और साथ ही उपाधि प्राप्त व्यक्तियों द्वारा उपाधियों का प्रयोग को प्रतिबन्धित भी कर दिया गया था, परंतु 24 जनवरी 1980 से इंद्रिरा काँग्रेस द्वारा भारत रत्न तथा अन्य उपाधियों And अलंकरणों को पुन: प्रारंभ कर दिया गया था।
स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता Single सच्चे लोकतत्र की आधारभूत स्तंभ होती है। संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक इन अधिकारों का History है।
- विचार And अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – अनुच्छेद 19 के According भारत के प्रत्येक नागरिक को भाषण लेखन And अन्य प्रकार से अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है।
- शांतिपूर्व And नि:शस्त्र सभा करने की स्वतंत्रता – अनुच्छेद 19 के According प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा या सम्मेलन आयोजित करने का अधिकार है।
- समुदाय और संघ बनाने की स्वतंत्रता – Indian Customer संविधान द्वारा नागरिकों को समुदाय और संघ बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। द भ्रमण की स्वतंत्रता – प्रत्येक Indian Customer को को संपूर्ण भारत में बिना किसी रोकटोक के भ्रमण करने तथा निवास की स्वतंत्रता है।
- अपराध के दोष सिद्ध के विषय में संरक्षण की स्वतंत्रता- संविधान के अनुच्छेद 20 According कोर्इ भी व्यक्ति अपराध के लिए तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि वह किसी ऐसे कानून का उल्लंधन न करे जो अपराध के समय लागू था और वह उससे अधिक दण्ड का पात्र न होगा।
- जीवन और शरीर रक्षण की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छेद 21 के According किसी व्यक्ति को अपने प्राण या शारीरिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी से वंचित नहीं Reseller जा सकता।
- बंदीकरण से संरक्षण की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छेद 22 के द्वारा बंदी बनाये जाने वाले व्यक्ति को कुछ संवैधानिक अधिकार प्रदान किये गये है।
स्वतंत्रता के अधिकार के अपवाद
- स्वतंत्रता का अधिकार असीमित नहीं है। राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित की दृष्टि से संसद कोर्इ भी नियम बनाकर स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित कर सकती है।
- सिक्खों को उनके धर्म के अनुसर कटार धारण करने सभा या सम्मेलन आयोजित करने का अधिकार दिया गया है।
- कोर्इ भी नागरिक ऐसे समुदाय या संघ का संगठन नहीं कर सकता, जिसका उद्देश्य राज्य के कार्य में बाधा उत्पन्न करना हो
- अनुच्छेद 22 के द्वारा प्रदान किये गये अधिकार शत्रु-देश के निवासियों पर लागू नहीं होते।
शोषण के विरूद्ध अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के According कोर्इ व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकेगा। इस संबंध में निम्न व्यवस्थाएं की गयी है-
- मनुष्यों का क्रय-विक्रय निषेध – संविधान के अनुच्छेद 32 (1) के According मनुष्यों, स्त्रियों और बच्चों के क्रय-विक्रय को घोर अपराध और दण्डनीय माना गया है।
- बेगार का निषेध – संविधान के अनुच्छेद 24 के According, 14 वर्ष से कम आयु वाले बालकों को कारखानों अथवा खानों में कठोर श्रम के कार्यों के लिए नौकरी में नहीं रखा जा सकेगा।
- शोषण के विरूद्ध अधिकार का अपवाद – इस अधिकार की व्यवस्था में सार्वजनिक उद्देश्य से अनिवार्य श्रम की कोर्इ योजना लागू करने का राज्य को अधिकार है। वस्तुत: शोषण के विरूद्ध अधिकार का उद्देश्य Single वास्तविक सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि किसी धर्म में आस्था रखने या न रखने के बारे में राज्य कोर्इ हस्ताक्षेप नहीं करेगा। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक भारत के All नागरिकों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता की व्यवस्था की गयी है। इस अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित स्वतंत्रताएं प्रदान की गयी हैं-
- धार्मिक आचरण And प्रचार की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छेद 25 के Accordingप्रत्येक व्यक्ति को अपने अत:करण की मान्यता के According किसी भी धमर् को अबाध Reseller में मानने, उपासना करने आरै उसका प्रचार करने की पूर्ण स्वतंतत्रता है
- धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छदे 26 के द्वारा All धमोर्ं के अनुयायियों को धार्मिक और दानदात्री संस्थाओं की स्थापना औ उनके संचालन धार्मिक मामलों का प्रबंध, धार्मिक संस्थाओं द्वारा चल And अचल संपत्ति अर्जित करने राज्य के कानूनों के According प्रबंध करने की स्वतंत्रता प्रदान की गर्इ है।
- धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छदे 26 के द्वारा All धमोर्ं के अनुयायियों को धामिर्क और दानदात्री सस्ं थाओं की स्थापना और उनके संचालन, धार्मिक मामलों का प्रबंध, धार्मिक संस्थाओं द्वारा चल And अचल संपत्ति अर्जित करके राज्य के कानूनों के According प्रबध करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है।
- व्यक्तिगत शिक्षण-संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता – संविधान के अनुच्छेद 28 की व्यवस्था के According किसी राजकीय (राज्य निधि से पूर्णत: पोषित) शिक्षण संस्था में किसी धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
- धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अपवाद – धार्मिक कट्टरता And धार्मिक उन्माद को रोकने के लिये राष्ट्रीय Singleता के उद्देश्य से सार्वजनिक हित में सरकार द्वारा इस अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 के द्वारा नागरिकों को संस्कृति And शिक्षा संबंधी दो अधिकार दिये गये है।
- अल्पसंख्याकों के हितों का संरक्षण – अनुच्छेद 29 के According अल्पसंख्याकों को अपनी भाषा लिपि या संस्कृति को Windows Hosting रखने का पूर्ण अधिकार है।
- अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना And प्रशासन का अधिकार – अनुच्छेद 30 के According धर्म या भाषा पर आधारित All अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि के According शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार है। यह अधिकार अल्पसंख्याकों को उनकी संस्कृति तथा भाष के संरक्षण हेतु राज्य से मिल रहे सहयोग को सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
Indian Customer संविधान में संवैधानिक उपचारों का प्रावधान इंग्लैंड की कानूनी व्यवस्था का अनुकरण है। इंग्लैण्ड में यह कॉमन लॉ की अभिव्यक्ति है। इंग्लैण्ड में संविधान उपचार की रीट इस कारण जारी की जाती थी कि सामान्य विधिक उपचारों उपयप्ति हैं। आगे चलकर ये रीट उच्च न्यायालय प्रदान करने लगा, क्योंकि उसके माध्यम से ही सम्राट न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करता था।
Indian Customer संविधान ने नागरिकों को केवल मौलिक अधिकार ही प्रदान नहीं किये हैं, वरन् उनके संरक्षण की भी पूर्ण व्यवस्था की गयी है। अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय की शरण ले सकता है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार के महत्व के विषय में डॉभीमराव अम्बेडकर ने कहा था; ‘‘यदि मुझसे कोर्इ यह पूछे कि संविधान का वह कौन-सा अनुच्छेद है, जिसके बिना संविधान शून्यप्राय हो जायेगा तो मैं अनुच्छेद 32 की ओर संकेत करूंगा। यह अनुच्छेद तो संविधान की हृदय और आत्मा है।’’ यह अनुच्छेद उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों को नागरिकों के मूल अधिकारों का सजग प्रहरी बना देता है।
न्यायालयों द्वारा इन अधिकारों की रक्षा के लिए पांच उपचार प्रयोग किये जा सकते हैं-
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख – व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु यह लेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। लैटिन भाषा के हैबियस कार्पस का Means है- ‘सशरीर उपस्थिति’। इस लेख के द्वारा न्यायालय बन्दी बनाये गये व्यक्ति की प्रार्थना पर अपने समक्ष उपस्थिति करने तथा उसे बन्दी बनाने का कारण बताये जाने का आदेश दे सकता है। यदि न्यायालय के विचार में संबंधित व्यक्ति को बन्दी बनाये जाने के पर्याप्त कारण नहीं है या उसे कानून के विरूद्ध बन्दी बनाया गया है तो न्यायालय उस व्यक्ति को तुरंत रिहा (मुक्त) करने का आदेश दे सकता। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए यह लेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
मौलिक अधिकार की विशेषताएं
1. राष्ट्रीय आंदोलन के भावना के अनुकुल –
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के समय Indian Customer नेताओं ने अंग्रेजों के समझ बार-बार अपने अधिकारों की मांग रखी थी स्वतंत्रता के बाद सौभाग्यवश Indian Customer संविधान सभा के लिये राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बहुमत में निर्वाचित हुए थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के समय की अपनी पुरानी मांग को Indian Customer संविधान में सर्वोपरी प्राथमिकता देते हुए मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की।
2. सर्वाधिक विस्तृत And व्यापक अधिकार –
Indian Customer संविधान के तृतीय भाग में अनुच्छेद 12 से 30 और 32 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन है। जो अन्य देशों के संविधानों में किये गये वर्णन की तुलना में सर्वाधिक है।
3. व्यावहारिकता पर आधारित –
Indian Customer संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के सिद्धांत न होकर व्यावहारिक और वास्तविकता पर आधारित है। किसी भेदभाव के बिना समानता के आधार पर All नागरिकों के लिए इनकी व्यवस्था की गयी है। साथ ही अल्पसंख्याकों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों And पिछड़ा वगोर्ं की उन्नति And विकास के लिए विशेष व्यवस्था भी की गयी है।
4. अधिकारों के दो Reseller –
मौलिक अधिकारों के सकारात्मक And नकारात्मक दो Reseller है। सकारात्मक स्वReseller में व्यक्ति को विशिष्ठ अधिकार प्राप्त होते हैं। स्वतंत्रता धर्म शिक्षा और संस्कृति आदि से संबंधित अधिकारों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। इस प्रकार सकारात्मक अधिकार सीमित And मर्यदित है। नकारात्मक स्वReseller में वे अधिकार आते हैं जो निसेधाज्ञाओं के Reseller में है और राज्य की शक्तियों को सीमित And मर्यदित करते हैं। इस प्रकार नकारात्मक अधिकार असीमित है।
5. मौलिक अधिकार असीमित नहीं –
Indian Customer संविधान द्वारा नागरिकों को दिये गये मौलिक अधिकार असीमित नहीं है। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सामाजिक हित में सीमित करने की व्यवस्था की गयी। लोक कल्याण, प्रशासनिक कुशलता और राष्ट्रीय Safty के लिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध भी लगाये जा सकते है। संसद ने सन् 1979 में 44 वें संविधान द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार को लेकर केवल Single कानूनी अधिकर बना दिया है।
6. सरकार की निरंकुशतापर अंकुश –
मौलिक अधिकार प्रत्येक Indian Customer नागरिक की स्वतंत्रता के द्योतक और उसकी Indian Customer नागरिकता के परिचायक हैं। संविधान द्वारा इनके उपयोग का पूर्ण आश्वासन दिया गया है। अत: किसी भी स्तर की भारत सरकार मनमानी करते हुए उन पर अनुचित Reseller से प्रतिबंध नहीं लगा सरकार, जिला-परिषद्, नगर निगम या ग्राम पंचायतें आदि समस्त निकाय मौलिक अधिकारों का उल्लंधन नहीं कर सकतीं।
7. राज्य के सामान्य कानूनों से ऊपर –
मौलिक अधिकार को देश के सर्वोच्च कानून Meansात् संविधान में स्थान दिया गया है और साधारणतया संविधान संशोधन प्रक्रिया के अतिरिक्त इनमें और किसी प्रकार से परिवर्तन नहीं Reseller जा सकता। इस प्रकार मौलिक अधिकार संसद और राज्य-विधानमण्डलों द्वारा बनाये गये कानूनों से ऊपर है। संघीय सरकार या राज्य-सरकार इनका हनन नहीं कर सकती। ‘गोपालन बनाम मद्रास राज्य’ विवाद में न्यायाधीश श्री पातंजलि शास्त्री ने कहा था – ‘‘मौलिक अधिकारों की सर्वश्रेष्ठ विशेषता यह है कि वे राज्य द्वारा पारित कानूनों से ऊपर हैं।’’
8. न्यायालय द्वारा संरक्षण –
मौलिक अधिकार पूर्णतया वैधानिक अधिकार हैं। संविधान की व्यवस्था के According मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए Indian Customer न्यायपालिका को अधिकृत Reseller गया है। संविधान के अनुच्छेद 32 के According, भारत का प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालयों या सार्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है। मौलिक अधिकारों को अनुचित Reseller में प्रतिबंधित करने वाले कानूनों को न्यायपालिका द्वारा अवैध घोषित कर दिया जाता है। चूंकि Indian Customer न्यायपालिका, कार्यापालिका और व्यवस्थापिका के नियंत्रण से मुक्त है, इसलिए मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए वह संविधान द्वारा दिये गये संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अतंर्गत आवश्यक निर्देश भी निर्गत कर सकती है।
9. Indian Customer नागरिकों तथा विदेशियों में अंतर –
Indian Customer नागरिकों तथा भारत में निवास करने वाले विदेशी नागरिकों के लिए संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकारों में अंतर है। मौलिक अधिकारों में कुछ अधिकार ऐसे हैं, जो Indian Customerों के साथ-साथ विदेशियों को भी प्राप्त हैं, जैसे- जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, परन्तु शेष अधिकार केवल Indian Customer नागरिकों के लिए ही Windows Hosting हैं। इस प्रकार Indian Customer नागरिका ें को प्राप्त समस्त मौलिक अधिकारों का उपभोग विदेशी नागरिक नहीं कर सकते।