व्यक्तित्व का Means, प्रकार And सिद्धान्त

मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यक्तित्व की विभिन्न परिभाषाएं दी गई है। परिभाषाओं के क्रम में सबसे पुरानी परिभाषा व्यक्तित्व Word की उत्पत्ति से सम्बिन्ध् ात संप्रत्यय पर आधारित है। व्यक्तित्व का अंग्रजी अनुवाद ‘Personality’ है जो लैटिन Word 

से बना है तथा जिसका Means मुखौटा होता है, जिसे नाटक करते समय कलाकारों द्वारा पहना जाता था। इस शाब्दिक Means को ध्यान में रखते हुए व्यक्तित्व को बारही वेशभूषा और और दिखावे के आधार पर परिभाषित Reseller गया है। इसे मनोवैज्ञानिकों द्वारा अवैज्ञानिक घोषित Reseller गया और तदन्तर अनेक परिभाषाएँ दी गई है। परन्तु ऑलपोर्ट द्वारा दी गई परिभाषा को सर्वाधिक मान्यता प्रात्त है।

ऑलपोर्ट (1937) के According, “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोशारीरिक तन्त्रो का गतिशील या गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन को निर्धारित करते है।” ऑलपोर्ट की इस परिभाषा मे व्यक्तित्व के भीतरी गुणों तथा बाहरी गुणो को यानी व्यवहार को सम्मिलित Reseller गया है। परन्तु ऑलपोर्ट ने भीतरी गुणों पर अधिक बल दिया है। व्यक्तित्व को निम्नलिखित Reseller में विश्लेषित Reseller जा सकता है – 

Meansात् यह कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व में भिन्न-भिन्न शीलगुणों का Single ऐसा गत्यात्मक संगठन होता है जिसके कारण व्यक्ति का व्यवहार तथा विचार किसी भी वातावरण में अपने ढंग का Meansात् अपूर्व होता है।

व्यक्तित्व के उपागम

व्यक्तित्व के स्वReseller की व्याख्या करने के लिए विभिन्न तरह के उपागमों के अन्तर्गत विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन Reseller गया है, जिनमें प्रमुख निम्नवत् है –

(1) प्रकार उपागम –

प्रकार सिद्धान्त व्यक्तित्व का सबसे पुराना सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के According व्यक्ति को विभिन्न प्रकारों में बांटा जाता है और उसके आधार पर उसके शीलगुणों का वर्णन Reseller जाता है।
मार्गन, किंग, विस्ज तथा स्कोपलर के According व्यक्तित्व के प्रकार से तात्पर्य, “व्यक्तियों के Single ऐसे वर्ग से होता है जिनके गुण Single-Second से मिलते जुलते है। जैसे-अन्तर्मुखी Single प्रकार है और जिन व्यक्तियों को इसमें रखा जाता है उनमें कुछ सामान्य गुण जैसे-संकोचशीलता, सामाजिक कार्यो में अरूचि, लोगो से कम मिलना-जुलना पाया जाता है।”

शारीरिक गुणों के आधार पर –

  1. हिप्पोक्रेटस ने शरीर द्रवों के आधार पर – व्यक्तित्व के चार प्रकार बताएं है। इनके According शरीर में चार मुख्य द्रव पाये जाते है – पीला पित्त, काला पित्त, रक्त तथा कफ या श्लेष्मा। प्रत्येक व्यक्ति मे इन चारों द्रवो में से कोई Single द्रव अधिक प्रधान होता है और व्यक्ति का स्वभाव या चिन्तप्रकृति इसी की प्रधानता से निर्धारित होता है।
  2. क्रेश्मर का वर्गीकरण – क्रेश्मर Single मनोवैज्ञानिक थे जिन्होने व्यक्तित्व के चार प्रकार बताए जोकि निम्नवत् है –
    1. स्थूलकाय प्रकार – ऐसे व्यक्ति का कद छोटा होता है तथा शरीर भारी And गोलाकार होता है, गर्दन छोटी और मोटी होती है। इनका स्वभाव सामाजिक और खुशमिजाज होता है। 
    2. कृशकाय प्रकार – इस तरह के व्यक्ति का कद लम्बा होता है परन्तु वे दुबले पतले शरीर के होते है। ऐसे व्यक्तियों के शरीर की माँसपेशियाँ विकसित नही होती है। स्वभाव चिड़चिड़ा होता है तथा सामाजिक उत्तरदायित्व से दूर रहने की प्रवृति अधिक होती है
    3. पुष्टकाय प्रकार – ऐसे व्यक्ति की माँसपेिशयाँ काफी विकसित And गठी होती है। शारीरिक कद न तो अधिक लम्बा होता है न अधिक मोटा। शरीर सुडौल और सन्तुलित होता है। इनके स्वभाव में न अधिक चंचलता होती है और न अक्तिाक मन्दन इन्हें काफी सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। 
    4. विशालकाय प्रकार – इसमें उपरोक्त तीनों प्रकार के गुण मिले – जुले Reseller में पाये जाते है।
  3. शेल्डन का वर्गीकरण – शेल्डन ने 1990 में शारीरिक गठन के आधार पर सिद्धान्त दिया, जिसे सोर्मेटोटाइप सिद्धान्त कहा गया। शेल्डन ने व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताये है-
    1. एण्डोमार्फी – इस प्रकार के व्यक्ति मोटे And नाटे दिखता है। इस तहर के शारीरिक गठन वाले व्यक्ति आरामपसंद, खुशमिजाज, सामाजिक तथा खाने – पीने की चीजों में अधिक अभिरूचि दिखाने वोले होते है। 
    2. मेसोमार्फी – ऐसे लोगों की हडिड्याँ व माँसपेिशयॉ काफी विकसित होती है। तथा शारीरिक गठन काफी सुडौल होता है। 
    3. Single्टोमार्फी – ऐसे व्यक्तियों का कद लम्बा तथा दुबले पतले होते है। माँसपेशियाँ अविकसित तथा शारीरिक गठन इकहरा होता है। इन्हें अकेले रहना और लोगों से कम मिलना जुलना पसन्द है।

मनोवैज्ञानिक गुणो के आधार पर-

युंग (1923) ने व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये-

  1. बर्हिमुखी – इस तरह के व्यक्ति की अभिरूचि विशेषकर समाज के कार्यो की ओर होती है। वह अन्य लोगों से मिलना जुलना पसन्द करता है तथा प्राय: खुशमिजाज होता है। 
  2. अन्तर्मुखी – ऐसे व्यक्ति में बहिमुर्खी के विपरीत गुण पाये जाते है। इस तरह के व्यक्ति बहुत लोगों से मिलना जुलना पसंद नही करते है और उनकी दोस्ती कुछ ही लोगों तक सीमित होती है। इसमें आत्मकेन्द्रिता का गुण अधिक पाया जाता है। 

आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के According अधिकतर मनुष्यों मे दोनों श्रेणियों के गुण पाये जाते हैं Meansात Single परिस्थिति में वे बहिर्मुखी व्यवहार करते है और अन्य में अन्तर्मुखी। ऐसे व्यक्तियों को उभयमुखी कहा जाता है।

(2) शीलगुण उपागम –

शीलगुण सिद्धान्त के According व्यक्ति की संCreation भिन्न – भिन्न प्रकार के शीलगुण से ठीक वैसी बनी होती है जैसे Single मकान की संCreation छोटी – छोटी ईंट से बनी होती है। शीलगुण का समान्य Means होता है व्यक्ति के व्यवहारों का वर्णन। जैसे- सतर्क, सक्रिय और मंदित आदि। शीलगुण सिद्धान्त के According व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न शीलगुणों द्वारा नियन्त्रित होता है जो प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद रहते है। शीलगुण सिद्धान्त में निम्नलिखित मनोवैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है-

(1) आलपोर्ट का योगदान – 

ऑलपोर्ट का नाम शीलगुण सिद्धान्त के साथ मुख्य Reseller से Added है। यही कारण है कि ऑलपोर्ट द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के सिद्धान्त को ‘ऑलपोर्ट का शीलगुण सिद्धान्त’ कहा जाता है। इन्होने शीलगुणों को दो भागो में बाँटा है –

  1. सामान्य शीलगुण – सामान्य शीलगुण से तात्पर्य वैसै शीलगुणों से होता है जो किसी समाज संस्कृति के अधिकतर लोगों में पाया जाता है। 
  2. व्यक्तिगत शीलगुण – यह अधिक descriptionात्मक होता है तथा इससे संभ्रान्ति भी कम होता है। ऑलपोर्ट के According व्यक्तिगत प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है-
    1. कार्डिनल प्रवृत्ति – इस तरह की व्यक्तिगत प्रवृत्ति व्यक्तित्व का इतना प्रमुख And प्रबल गुण होता है कि उसे छिपाया नहीं जा सकता है और व्यक्ति के प्रत्येक व्यवहार की व्याख्या इस तरह से कार्डिनल प्रवृत्ति के Reseller में आसानी से की जा सकती है।
    2. केन्द्रीय प्रवृत्ति- यह All व्यक्तियो में पायी जाती है। पत््रयेक व्यक्ति में 5 से 10 ऐसी प्रवृत्तियां होती हैं जिसके भीतर उसका व्यक्तित्व अधिक सक्रिय रहता है। इन गुणों को केन्द्रीय प्रवृत्ति कहते हैं जैसे सामाजिकता, आत्मविश्वास आदि।
    3. गौण प्रवृत्ति – गौण प्रवृत्ति वैसे गुणों को कहते है जो व्यक्तित्व के लिए कम महत्वपूर्ण, कम संगत, कम Meansपूर्ण तथा कम स्पष्ट होते है। जैसे – खाने की आदत, केश शैली आदि। Single व्यक्ति के लिए कोई प्रवृत्ति केन्द्रीय प्रवृत्ति हो सकती है वहीं Second के लिए गौण प्रवृत्ति हो सकती है।

(2) कैटल का योगदान – 

शीलगुण सिद्धान्त में ऑलपोर्ट के बाद कैटल का नाम महत्वपूर्ण माना गया है। कैटल ने प्रमुख शीलगुणों की शुरूआत ऑलपोर्ट द्वारा बतलाये गए 18,000 शीलगुणों में से 4,500 शीलगुणों को चुनकार Reseller। बाद में, इनमें से समानार्थ Wordों को Single साथ मिलाकर इसकी संख्या उन्होने 200 कर दी और फिर बाद में विशेष सांख्यिकीय विधि यानी कारक विश्लेषण के सहारे अन्तर सहसंबंध द्वारा उसकी संख्या 35 कर दी कैटल ने शीलगुणो को दो भागों में विभाजित Reseller है।

  1. सतही शीलगुण – इस तरह का शीलगुण व्यक्तित्व के ऊपरी सतह या परिधि पर होता है यानी इस तरह के शीलगुण ऐसे होते है जो व्यक्ति के दिन – प्रतिदिन की अन्त: क्रिया में आसानी से अभिव्यक्त हो जाते है।
  2. स्रोत या मूल शीलगुण – कैटल के According मलू शीलगुण व्यक्तित्व की अधिक महत्पूर्ण संCreation है तथा इसकी संख्या सतही शीलगुण की अपेक्षा कम होती है। मूल शीलगुण सतही शीलगुण के समान, व्यक्ति के दिन प्रतिदिन की अन्त: क्रिया में स्पष्ट Reseller से व्यक्त नही हो पाते है।

मनोश्लेषिक सिद्धान्त –

सिगमण्ड फ्रायड (1856 – 1939) ने करीब – करीब 40 साल के अपने नैदानिक अनुभवों के बाद व्यक्तित्व के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller है, उसे व्यक्तित्व का मनोवैश्लेषिक सिद्धान्त कहा जाता है। मनोवैश्लेषिक सिद्धान्त Human प्रकृति या स्वभाव के बारे में कुछ मूल पूर्वकल्पनाओं पर आधारित है। इनमे से निम्नांकित प्रमुख है-

  1. Human व्यवहार वाह्यय कारकों द्वारा निर्धारित होता है तथा ऐसे व्यवहार अविवेकपूर्ण, अपरिवर्तनशील, समस्थितिक है।
  2. Human प्रकृति पूर्णता, शरीरगठनी तथा अप्रलक्षता जैसी पूर्व कल्पनाओं से हल्के – फुल्के ढंग से प्रभावित होती है।
  3. Human प्रकृति आत्मनिष्ठ की पूर्वकल्पना से बहुत कम प्रभावित होती है। इन पूर्व कल्पनाओं पर आधारित मनोवैश्लेषिक सिद्धान्त की व्याख्या निम्नलिखित तीन मुख्य भागों मे बॉट कर की जाती है-
    • व्यक्तित्व की संCreation
    • व्यक्तित्व की गतिकी
    • व्यक्तित्व की विकास
  1. व्यक्तित्व की संCreation – फ्रायड ने व्यक्तित्व की संCreation का वणर्न करने के लिए निम्नलिखित दो मॉडल का निर्माण Reseller है -(i) आकारात्मक मॉडल (ii) गत्यात्यक मॉडल या संCreationत्मक मॉडल
    1. आकारत्मक मॉडल- मन का आकारात्मक मॉडल से तात्पर्य वैसे पहलू से होता है जहाँ संघर्षमय परिस्थिति की गत्यात्मकता उत्पन्न होती है। मन का यह पहलू सचमुच में व्यक्तित्व के गत्यात्मक शक्तियों के बीच होने वाले संघर्षो का Single कार्यस्थल होता है। फ्रायड ने इसे तीन स्तरों में बॉटा है- चेतन, अर्द्धचेतन तथा अचेतन।
      1. चतेन – चेतन से तात्पर्य मन के वैसे भाग से होता है जिसमे वे All अनूभूतियाँ And सेवेदनाएँ होती है जिनका संबंध वर्तमान से होता है। 
      2. अर्द्धचेतन – इसमें वैसी इच्छाएँ, विचार, भाव आदि होते है जो हमारे वर्तमान चेतन या अनुभव में नही होते है परन्तु प्रयास करने पर वे हमारे चेतन मन में आ जाते है।
      3. अचेतन – हमारे कछु अनुंभव इस प्रकार के होते है जो न तो हमारी चेतन मे होते हैं और न ही अर्द्धचेतन में । ऐसे अनुभव अचेतन में होते है। फ्रायड के According पर अचेतन अनुभूतियों And विचारों का प्रभाव हमारे व्यवहार पर चेतन And अर्द्धचेतन की अनुभूतियों And विचारों से अधिक होता है।
    2. गत्यात्मक या संCreationत्मक मॉडल- फ्रायड के According मन के गत्यात्मक मॉडल से तात्पर्य उन साधनों से होता है जिनके द्वारा मूल प्रवृत्तियों से उत्पन्न मानसिक संघर्षो का समाधान होता है। ऐसे साधन या प्रतिनिधि तीन है -उपाहं (id), अहं (ego), तथा पराहं (Super ego),
      1. उपाह  (id) – यह व्यक्तित्व का जैिवक तत्व है जिनमें उन प्रवृत्तियों की भमार होती है जो जन्मजात होती है तथा जो असंगठित, कामुक, आक्रमकतापूर्ण तथा नियम आदि को मानने वाली नही होती है। उपाहं की प्रवृत्तियाँ “आनन्द सिद्धान्त” द्वारा निर्धारित होती है।
      2. अहं – मन के गत्यात्मक पहलू का दूसरा पम्रुख भाग अहं है। अहं मन का वह हिस्सा है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है।
      3. पराहं – पराहं को अहं से ऊँचा भी कहा गया है। जैसे -जैसे बच्चा बडा़ होते जाता है वह अपना तादात्म्य माता – पिता के साथ स्थापित करते जाता है। जिसके परिणामस्वाReseller वह यह सीख लेता है कि क्या अनुचित है तथा क्या उचित है। इस तरह के सीखने से पराहं के विकास की शुरूआत होती है।
  2. व्यक्तित्व की गतिकी –फ्रायड के According Human जीव Single जटिल तन्त्र है जिसमें शारीरिक ऊर्जा तथा मानसिक उर्जा दोनों ही होते है। फ्रायड के According इन दोनों तरह की ऊर्जाओं का स्पर्श बिन्दु उपाहं होता है। फ्रायड व्यक्तित्व की गत्यात्मक पहलुओं जैसे – मूलप्रवृत्तियों, चिन्ता तथा मनोCreationओं का वर्णन होता है।
    1. मलू प्रवृत्ति – मलू प्रवृत्ति का तात्पर्य वैसे शारीरिक उत्तेजनाओं से होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति के All तरह के व्यवहार निर्धारित किये जाते है। फ्रायड ने मूल प्रवृत्तियों को मूल्त: दो भागो में बाँटा – (i) जीवन मूल प्रवृत्ति – (ii) मृत्यु मूल प्रवृत्ति अपने विशेष अहमियत के कारण फ्रायड ने जीवन मूल प्रवृत्ति से मौन मूलप्रवृत्ति को अलग करके वर्णन Reseller है। मौन मूल प्रवृत्ति के ऊर्जा बल को लिबिडो कहा गया है जिसकी अभिव्यक्ति सिर्फ लैगिक क्रियाओं के Reseller में होती है।
    2. चिन्ता – चिन्ता Single ऐसी भावात्मक And द:ुखद अवस्था होती है जो अहं को आलम्बित खतरे से सतर्क करता है ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके। फ्रायड ने चिन्ता के तीन प्रकार बतलायें है।
    3. अहं रक्षात्मक प्रक्रम – अहं रक्षात्मक प्रक्रम के विचार का प्रतिपादन सिगमण्ड फ्रायड ने Reseller परन्तु इसकी सूची उनकी पुत्री अन्ना फ्रायड तथा अन्य नव फ्रायडियन मनोवैज्ञानिकों ने तैयार की यह प्रक्रम अहं को चिन्ताओं से बचा पाता है। रक्षात्मक प्रक्रमों का प्रयोग All व्यक्ति करते है परन्तु इसका प्रयोग अक्तिाक करने पर व्यक्ति के व्यवहार में बाहयता And स्नायुविकृति का गुण विकसित होता है।
  3. व्यक्तित्व का विकास – फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास की व्याख्या दो दृष्टिकोण से Reseller है। पहला दृष्टिकोण इस बात पर बल डालता है कि वयस्क व्यक्तित्व बाल्यवस्था के भिन्न-भिन्न तरह की अनुभूतियों द्वारा नियंत्रित होती है तथा Second दृष्टिकोण के According जन्म के समय लैंगिग ऊर्जा बच्चों में मौजूद होती है जो विभिन्न मनोलैगिंग अवस्थाओं से होकर विकसित होती है। फ्रायड के इस Second दृष्टिकोण को मनोलैंगिक विकास का सिद्धान्त कहा जाता है। फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोलैंगिक विकास के सिद्धान्त की पाँच अवस्थाएँ क्रम में निम्नांकित है –
    1. मुखावस्था
    2. गुदावस्था
    3. लिंग प्रधानावस्था
    4. अव्यक्तावस्था
    5. जननेन्द्रियावस्था

कार्ल रोजर्स- व्यक्तित्व का सांवृत्तिक सिद्धान्त

कार्ल रोजर्स का सिद्धान्त घटना विज्ञान या सांवृत्तिकशास्त्र के नियमों पर आधारित है। सांवृत्तिकशास्त्र वह शास्त्र होता है जिसमें व्यक्ति की अनुभूतियों, भावों And मनोवृत्तियों तथा उनके अपने बारे में या आत्मन् के बारे में तथा दूसरों के बारे में व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन विशेष Reseller से Reseller जाता है। रोजर्स के सिद्धान्त को Humanतावादी आन्दोलन के अन्तर्गत Single पूर्णत: सांवृत्तिक सिद्धान्त माना गया है। रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त को आत्म सिद्धान्त या व्यक्ति केन्द्रित सिद्धान्त भी कहलाता है। रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त को निम्नांकित भागों में बांटा जा सकता है-

  1. व्यक्तित्व के स्थायी पहलू
  2. व्यक्तित्व की गतिकी
  3. व्यक्तित्व का विकास

(1) व्यक्तित्व के स्थायी पहलू- 

रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त उनके द्वारा प्रतिपादित क्लायंट केन्द्रित मनोचिकित्सा से प्राप्त अनुभूतियों पर आधारित है। उनके सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति में होने वाले परिवर्तनों And वर्धनों का अध् ययन करना है। इन्होंने व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर बल डाला है- प्राणी And आत्मन

  1. प्राणी – रोजर्स के According पा्रणी Single ऐसा दैिहक जीव है जो शारीरिक And मनोवैज्ञानिक दोनों ही तरह से कार्य करता है। प्राणी All तरह की अनुभूतियों का केन्द्र होता है। इन अनुभूतियों में अपने दैहिक गतिविधियों से संबंक्तिात अनुभूतियां तथा साथ ही साथ बाºय वातावरण की घटनाओं के प्रत्यक्षण की अनुभूतियां दोनों ही सम्मिलित होती है। All तरह की चेतन और अचेतन अनुभूतियों के योग से जिस क्षेत्र का निर्माण होता है, उसे प्रासंगिक क्षेत्र कहते हैं।
  2. आत्मन – रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त का यह सबसे महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। धीरे-धीरे अनुभव के आधार पर प्रासंगिक क्षेत्र का Single भाग अधिक विशिष्ट हो जाता है और इसे ही रोजर्स ने आत्मन कहा है। आत्मन व्यक्तित्व की अलग विमा नही होता है बल्कि आत्मन का Means ही सम्पूर्ण प्राणी से होता है।

(2) व्यक्तित्व की गतिकी- 

रोजर्स ने अपने व्यक्तित्व गतिकी की व्याख्या करने के लिए Single महत्वपूर्ण अभिप्रेरक का वर्णन Reseller है जिसे उन्होंने वस्तुवादी प्रवृत्ति (actualizing tendency) कहा है। रोजर्स के According वस्तुवादी प्रवृत्ति से तात्पर्य प्राणी में All तरह की क्षमताओं को विकसित करने की जन्मजात प्रवृत्ति से होता है जो व्यक्ति को अपने आत्मन को उन्नत बनाने तथा प्रोत्साहन देने का काम करता है।

(3) व्यक्तित्व का विकास- 

रोजर्स ने फ्रायड And एरिक्सन की भाँति व्यक्तित्व का कोर्इ अवस्था सिद्धान्त प्रतिपादित नही Reseller है। उन्होंने व्यक्तित्व के विकास में आत्मन तथा व्यक्तित्व की अनुभूतियों में संगतता को महत्वपूर्ण बताया है। जब इन दोनों में Meansात व्यक्ति की अनुभूतियों तथा उनके आत्म संप्रव्यय के बीच अन्तर हो जाता है तो इससे व्यक्ति में चिन्ता उत्पन्न होती है। असंगता के अन्तर से उत्पन्न इस चिन्ता की रोकथाम के लिए व्यक्ति कुछ बचाव प्रक्रियाएं प्रारम्भ कर देता है। इसे प्रतिरक्षा की संज्ञा दी गयी है।

एब्राहम मैसलो: व्यक्तित्व का Humanतावादी सिद्धान्त –

एब्राहम मैसलो Humanतावादी मनोविज्ञान के आध्यात्मिक जनक माने गए है। मैसलो ने अपने व्यक्तित्व सिद्धान्त में प्राणी के अनूठापन का उसके मूल्यों के महत्व पर तथा व्यक्तिगत वर्धन तथा आत्म निर्देश की क्षमता पर सर्वाधिक बल डाला है। इस बल के कारण ही उनका मानना है कि सम्पूर्ण प्राणी का विकास उसके भीतर से संगठित ढंग से होता है। इन आन्तरिक कारकों की तुलना में बाºय कारकों जैसे गत अनुभूतियों का महत्व नगण्य होता है।

व्यक्तित्व And अभिप्रेरण का पदानुक्रमिक मॉडल- 

मैसलो के व्यक्तित्व सिद्धान्त का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसका अभिप्रेरण सिद्धान्त है। इनका विश्वास था कि अधिकांश Human व्यवहार की व्याख्या कोर्इ न कोर्इ व्यक्तिगत लक्ष्म पर पहुंचने की प्रवृत्ति से निर्देशित होता है। मैसलों का मत था कि Human अभिप्रेरक जन्मजात होते है और उन्हें प्राथमिकता या शक्ति के आरोही पदानुक्रम में सुव्यवस्थित Reseller जा सकता है। ऐसे अभिप्रेरकों को प्राथमिकता या शक्ति के आरोही क्रम में इस प्रकार बतलाया गया है-

व्यक्तित्व And अभिप्रेरण का पदानुक्रमिक मॉडल-

इनमें से First दो Needओं Meansात शारीरिक या दैहिक Need तथा Safty की Need को निचले स्तर की Need तथा अन्तिम तीनNeedओं Meansात संबंद्धता And स्नेह की Need, सम्मान की Need तथा आत्म सिद्धि की Need को उच्च स्तरीय Need कहा है। इस पदानुक्रम मॉडल में जो Need जितनी ही नीचे है, उसकी प्राथमिकता या शक्ति उतनी ही अधिक मानी गयी है।

व्यक्तित्व आंकलन

व्यक्तित्व आंकलन की प्रमुख तीन प्रविधियां होती है-

  1. व्यक्तिगत प्रविधि      
  2. वस्तुनिष्ठ प्रविधि      
  3. प्रक्षेपण प्रविधि 

(1) व्यक्तिगत प्रविधि –

जब मूल्यांकनकर्ता की व्यक्तिगत विशेषताएं मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं तो वे व्यक्तिगत विधि कहलाती है। इसके अन्तर्गत प्रमुखत: साक्षात्कार विधि, जीवन History विधि आत्मकथा, व प्रश्नावली विधि आती है। साक्षात्कार विधि- साक्षात्कार विधि की सहायता से शोधकर्ता पय्रोज्य के स्वयं के अनुभवों के बारे में अच्छी सूझ उत्पन्न कर सकता है और इस प्रकार व्यक्ति के उन सार्थक पक्षों के बारे में जान सकता है जिनके बारे में अन्य किसी संगठित व पूर्व निर्धारित परीक्षण द्वारा नही जाना जा सकता है।

जीवन History विधि- इस विधि में बालकों की समस्याओं का अध्ययन करने के लिये Single केश description या History तैयार Reseller जाता है। बालक द्वारा पिछले कर्इ वर्षो में की गयी अन्त: क्रियाओं का Single विशेष रिकार्ड तैयार Reseller जाता है। इन अन्त:क्रियाओं का विश्लेषण करके बालक के बारे में समस्त जानकारी प्राप्त की जाती है। इसमें बालक के बारे में समस्त सूचनायें संकलित की जाती है।

(2) वस्तुनिष्ठ प्रविधि-

इसमें मूल्यांकनर्ता की व्यक्तिगत विशेषताएं मूल्यांकन की प्रक्रिया को प्रभावित नही करती है। इसके अन्तर्गत आने वाली प्रमुख विधियाँ- निरीक्षण विक्रिा, समाजमिति, व्यक्तित्व प्रश्नावली मापनियाँ, कोटिक्रम मापनी, आदि आते हैं।

व्यक्तित्व प्रश्नावली – कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यक्तित्व को मापने हेतु प्रमापीकृत प्रश्नावलियों का निर्माण Reseller गया है जिनकी सहायता से लोगों के शीलगुणों के बारे में जाना जा सकता है। उदाहरार्थ- 16 व्यक्तित्व गुण (16 PF) – यह प्रमुख मनोवैज्ञानिक कैटल द्वारा निर्मित है। इसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति के 16 शीलगुणों के बारे में बताया जा सकता है। इसका भारत में अनुकरण एस0डी0 श्रीवास्तव ने Reseller है जिसमें 187 कथन है। प्रत्येक कथन के समक्ष तीन विकल्प हमेशा, कभी-कभी व कभी नही है। इनमें से प्रत्येक कथन के लिए व्यक्ति को Single विकल्प चुनना होता है। इसके पश्चात स्टेन्सिल कुंजी की सहायता से व्यक्ति द्वारा चयनित उत्तरों को अंक प्रदान किए जाते हं। All प्रतिक्रियाओं के लिए दिए गये अंकों को जोड़कर प्राप्तांक निकाला जाता है और इस प्रप्तांक के आधार पर स्टेन स्कोर ज्ञात Reseller जाता है। इस स्टेन स्कोर के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का description प्रस्तुत Reseller जाता है।

समाजमिति- इस विधि द्वारा पत््र यके व्यक्ति के आपसी स्वीकार व तिरस्कार की बारम्बारता द्वारा सामूहिक संCreation का अध्ययन Reseller जाता है। यह Single समूह के व्यक्तियों में आपसी सम्बन्धों का अध्ययन करती है। यह समूह में व्यक्ति की स्थिति व उसके स्तर को बताती है। इसके माध्यम से Single बड़े समूह में व्याप्त छोटे-छोटे समूहों की भी जानकारी मिलती है। इसके माध्यम से निम्न बातों को जाना जा सकता है।मुख्यत: लिखित बातों की जानकारी दो तरह से प्राप्त की जा सकती है-

  1. सोशियोंमीट्रिक मेट्रिशस
  2. सोशियोंग्राम

A

     

C ↔ B 

                     ↖ 

              ↑         D

  E

(3) प्रक्षेपण प्रविधि –

यह प्रक्षेपण के प्रत्यय पर आधारित है। फ्रायड के According प्रक्षेपण Single ऐसी अचेतन प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने अपूर्ण विचारों, मनोवश्त्तियों, इच्छाओं, संवेगों तथा भावनाओं को Second व्यक्तियों या वस्तुओं पर आरोपित करता है। इसके अन्तर्गत आने वाले प्रमुख परीक्षण इस प्रकार है-

  1. रोर्शाक इंक ब्लाट परीक्षण
  2. थीमेटिक अपरशैप्सन परीक्षण
  3. वाक्यपूर्ति परीक्षण
  4. रोजनबिग पिक्चर फ्रस्टेशन परीक्षण
  5. ड्रा ए मैन परीक्षण

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *