जन्म पूर्व शारीरिक विकास
1. डिम्बावस्था –
डिम्बावस्था या गर्भास्थिति, शुक्राणु And डिम्ब के संयोग के समय से लेकर दो सप्ताह तक मानी जाती है। इस अवस्था में कोषों का विभाजन होता है। जाइगोट या सिंचित डिम्ब में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने लगते है। कोषों के भीतर खोखलापन विकसित होने लगता है। संसेचित डिम्ब, डिम्बवाहिनी नलिका द्वारा गर्भाशय में आ जाता है, गर्भाशय में पहुँचने पर इसका आकार हुक के समान हो जाता है। गर्भाशय में कुछ दिनों पश्चात यह इसको सतह का आधार लेकर चिपक जाता है यहाँ पर गर्भ अपना पोषण माता से प्राप्त करने लगता है। कभी-कभी डिम्ब डिम्बवाहिनी नलिका से ही चिपक कर वश्द्धि करने लगता है, ऐसे गर्भ को नलिका गर्भ कहते है। इस प्रक्रिया को आरोपण कहते है। आरोपण हो जाने के पश्चात संयुक्त कोष Single परजीवी हो जाता है। तथा जन्म पूर्व का काल वह इसी अवस्था में व्यतीत करता है। डिम्बावस्था तीन कारणों से महत्पूर्ण हो-First, निसेचित अण्ड गर्भाशय में आरोपित होने से पूर्व निष्क्रिय हो सकता है। द्वितीय, आरोपण गलत स्थान पर हो सकता है, तथा तश्तीय, आरोपण होना सम्भव नही हो सकता है।
2. पिण्डावस्था अथवा भ्रुणीय अवस्था –
जन्म पूर्व विकास का द्वितीय काल पिण्डावस्था अथवा पिण्ड काल कहलाता है। यह अवस्था निषेचन के Third सप्ताह से शुरू होकर आठवे सप्ताह तक चलती है। लगभग छह: सप्ताह तक चलने वाली पिण्डावस्था परिवर्तन की अवस्था है, जिसमें कोषों का समूह Single लधु Human के Reseller में विकसित हो जाता है। शरीर की लगभग समस्त मुख्य विशेषताए, वाहय तथा आन्तरिक, इस लधु अवधि में स्पष्ट हो जाती है। इस काल में विकास मष्तक- अधोमुखी दिशा मे होता है Meansात First मष्तक क्षेत्र का विकास होता है तथा फिर धड़ क्षेत्र का विकास होता है और अन्त में पैर क्षेत्र का विकास होता है। कुपोषण, संवेगात्मक सदमों, अत्याधिक शारीरिक गतिशीलता, ग्रान्थियों के कार्यो में व्यवधान अथवा अन्य किसी कारण से भ्रूण गर्भाशय की दीवार से विलग हो सकता है। जिसके परिणाम स्वReseller स्वत: गर्भपात हो जाता हैं।
3. भ्रूणावस्था –
यह समय गर्भ तिथि के Second मास से लेकर बालक के जन्म तक Meansात दसवे चन्द्रमास अथवा नवे कैलेण्डर मास तक रहता है। Third मास में 3.5 इन्च लम्बा And 3/4 औस भार का गर्भ होता है। दो मास बाद इसकी लम्बाई 10 इंच And भार 9 से 10 औंस हो जाता है। आठवें महीने में इसकी लम्बाई 10 इंच व भार 4 से 5 पौण्ड तथा जन्म के समय तक गर्भाशय भू्रण की लम्बाई 20 इंच And भार 7 से 7.5 पौण्ड हो जाता है।
भ्रूणावस्था के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों की लम्बाई में अनुपात
शरीर के अंग | 8 सप्ताह का भ्रूण | 20 सप्ताह का भ्रूण | 40 सप्ताह का भ्रूण |
सिर | 45% | 35% | 35% |
धड़ | 35% | 40% | 40% |
पैर | 20% | 25% | 25% |
भ्रूणावस्था चार दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- गर्भाधान के उपरान्त पाँच माह तक गर्भपात की सम्भावना बनी रहती है।
- माता के गर्भ में बालक को मिल रहे वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकती है।
- अपरिपक्व प्रसव हो सकता है।
- प्रसव की सरलता अथवा जटिलता सदैव ही जन्म पूर्व परिस्थितियों से प्रभावित होती है।