सामाजिक अनुसंधान के प्रकार
इस प्रकार के शोध के लिये अनुसंधानकर्त्ता को निम्न चरणों को अपनाना आवश्यक होता है:-
- साहित्य का सर्वेक्षण
- अनुभव सर्वेक्षण
- सूचनादाताओं का चयन
- उपर्युक्त प्रश्न पूछना
अन्वेषणात्मक अनुसंधान का महत्व
- अनुसंधान समस्या के महत्व पर प्रकाश डालना तथा सम्बन्धित विषय पर अनुसंधानकर्ताओं के ध्यान को आकर्षित करना
- पूर्व निर्धारित परिकल्पनाओं का तात्कालिक दषाओं में परीक्षण करना
- विभिन्न अनुसंधान पद्धतियों की उपयुक्तता की सम्भावना को स्पष्ट करना
- किसी विषय समस्या के व्यापक और गहन अध्ययन के लिए Single व्यवहारिक आधारषिला तैयार करना
वर्णनात्मक अनुसंधान
वर्णनात्मक अनुसंधान का उददेश्य किसी अध्ययन विषयक के बारे में यर्थात तथा तथ्य Singleत्रित करके उन्हें Single description के Reseller में प्रस्तुत करना हेाता है। सामाजिक जीवन के अध्ययन से सम्बन्धित अनेक विषय इस तरह के होते है जिनका अतीत में कोर्इ गहन अध्ययन प्राप्त नहीं होता ऐसी दशा में यह आवश्यक होता है कि अध्ययन से सम्बन्धित समूह समूदाय अथवा विषय के बारे में अधिक से अधिक सूचनायें Singleत्रिक करके उन्हें जनसामान्य के समक्ष्य प्रस्तुत की जाये ऐसे अध्ययनों के लिए जो अनुसंधान Reseller जाता है। उसे वर्णनात्मक अनुसंधान कहते है। इस प्रकार के अनुसंधान में किसी पूर्व निर्धारित सामाजिक घटना, सामाजिक परिस्थिति अथवा सामाजिक संCreation का विस्तृत description देना होता है। अनुसंधान हेतु चयनित सामाजिक घटना या सामाजिक समस्या के विभिé पक्षों से सम्बन्धित तथ्यों को Singleत्रित करके उनका तार्किक विश्लेषण Reseller जाता है, And निष्कर्ष निकाले जाते हैं। तथ्यों को Singleत्रित करने के लिये, प्रश्नावली, साक्षात्कार अथवा अवलोकन आदि किसी भी प्रविधि का प्रयोग Reseller जा सकता है। ऐसे अनुसंधान को स्पष्ट करने के लिये जन गणना उपक्रम का उदाहरण लिया जा सकता। जन गणना में भारत के विभिé प्रान्तों में भिé-भिé विशेषताओं से युक्त समूहों का संख्यात्मक तथा, आंषिक तौर पर, गुणात्मक description दिया जाता है।
वर्णनात्मक अनुसंधान के चरण
- अध्ययन विषय का चुनाव
- अनुसंधान के उददेश्यों का निर्धारण
- तथ्य संकलन की प्रविधियों का निर्धारण
- निदर्षन का चुनाव
- तथ्यों का संकलन
- तथ्यों का विश्लेषण
- प्रतिवेदन को प्रस्तुत करना
परीक्षणात्मक अनुसंधान
समाजषास्त्रीय अनुसंधान की वैज्ञानिकता के विरूद्ध यह आरोप लगाया जाता है कि इसमें प्रयोगी करण का अभाव होने का कारण इसे वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है। जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञानों में अध्ययन विषय को नियन्त्रित करके घटनाओं का अध्ययन Reseller जाता है, उसी प्रकार नियन्त्रित परिस्थितियों में सामाजिक घटनाओं का निरीक्षण And परीक्षण परीक्षणात्मक अनुसंधान कहलाता है।
इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा यह जानने का प्रयास Reseller जाता है कि किसी नवीन परिस्थिति अथवा परिवर्तन का समाज के विभिé समूहों, संस्थाओं अथवा संCreationओं पर क्या And कितना प्रभाव पड़ा है। इसके लिये सामाजिक समस्या या घटना के उत्तरदायी कुछ चरों (Attributes) को नियन्त्रित करके, शेष चरों के प्रभाव को नवीन परिस्थितियों में देखा जाता है, और कार्य कारण सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।
परीक्षणात्मक अनुसंधान के निम्न तीन प्रकार हैं:- (i) बाद परीक्षण (ii) पूर्व बाद परीक्षण (iii) कार्यान्तर परीक्षण
(i) बाद परीक्षण
पश्चात परीक्षण वह प्रविधि है जिसके अन्र्तगत First स्तर पर लगभग समान विशेषता वाले दो समूहो का चयन कर लिया जाता है। जिनमें से Single समूह को नियन्त्रित समूह (controlled group) कहा जाता हैय क्योंकि उसमें कोर्इ परिवर्तन नहीं लाया जाता है। दूसरा समूह परीक्षणात्मक समूह (experimental group) होता हैय इसमें चर के प्रभाव में परिवर्तन करने का प्रयास Reseller जाता है। कुछ समय बाद दोनों समूहों का अध्ययन Reseller जाता है। यदि परीक्षणात्मक समूह में नियन्त्रित समूह की तुलना में अधिक परिवर्तन आता है, तो इसका Means यह माना जाता है कि इस परिवर्तन का कारण वह चर है जिसे परिक्षणात्मक समूह में लागू Reseller गया था। उदाहरणस्वReseller, दो समान समूहों या गॉंवों को लिया गया-जो कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें से Single समूह, में जिसे परीक्षणात्मक समूह माना गया है, कुपोषण के विरुद्ध प्रचार-प्रसार Reseller जाता है And जागरूकता पैदा की जाती है। Single निश्चित अवधि के बाद परीक्षणात्मक समूह की तुलना नियन्त्रित समूह से की जाती है जिसे ज्यों का त्यों रहने दिया गया। यदि परीक्षणात्मक समूह में कुपोषण को लेकर नियन्त्रित समूह की तुलना में काफी अन्तर पाया जाता है तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रचार-प्रसार And जागरूकता से कुपोषण को कम Reseller जा सकता है।
(ii) पूर्व बाद परीक्षण
इस विधि के अन्र्तगत अध्ययन के लिए केवल Single ही समूह का चयन Reseller जाता है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इसी अन्तर को परीक्षण अथवा उपचार का परिणाम मान लिया जाता है।
(iii) कार्यान्तर तथ्य परीक्षण
यह वह विधि है जिसमें हम विभिन्न आधारों पर प्राचीन अभिलेखों के विभिन्न पक्षों की तुलना करके Single उपयोगी निष्कर्ष पर पहुँच सकते है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इस विधि का प्रयोग भूतकाल में घटी अथवा ऐतिहासिक घटना का अध्ययन करने के लिये Reseller जाता है। भूतकाल में घटी हुर्इ घटना को दुबारा दोहराया नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में उत्तरदायी कारणों को जानने के लिये इस विधि का प्रयोग Reseller जाता है। इस विधि द्वारा अध्ययन हेतु दो ऐसे समूहों को चुना जाता है जिनमें से Single समूह ऐसा है जिसमें कोर्इ ऐतिहासिक घटना घटित हो चुकी है। And दूसरा ऐसा समूह ऐसा है जिसमें वैसी कोर्इ घटना घटित नहीं हुर्इ है।
विशुद्ध अनुसंधान
समाजिक अनुसंधान का उददेश्य जब किसी समस्या का समाधान ढूढ़ना नहीं होता है। बल्कि सामाजिक घटनाओं के बीच पाये जाने वाले कार्य कारण के सम्बन्धों समझकर विषय से सम्बन्धित वर्तमान ज्ञान में वृद्धि करना होता है तब इसे हम विशुद्ध अनुसंधान कहते है। विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान का कार्य, नवीन ज्ञान की प्राप्ति कर, ज्ञान के भण्डार में वृद्धि करना है। साथ ही, पूर्व के अनुसंधानों से प्राप्त ज्ञान, पूर्व में बनाये गये सिद्धान्तों And नियमों को परिवर्तित परिस्थितियों में पुन:परीक्षण करके परिमार्जन, परिष्करण And परिवर्द्धन करना है। इस प्रकार विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्यों को निम्नाकिंत Reseller से व्यक्त Reseller जा सकता है।
विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्य
↓
↓ |
↓ |
↓ |
↓ |
↓ |
नवीन ज्ञान की ज्ञान की प्राप्ति | नवीन अवधारणाों का प्रति-पादन | उपलब्ध अनुसंधान विधियों का जॉंच | कार्यकारण पूर्व का सम्बन्ध बताना | पुन: परीक्षण |
संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान विज्ञान की प्रगति And विकास में अत्यन्त उपयोगी है।
व्यावहारिक अनुसंधान
Single अनुसंधान कर्ता जब स्वीकृत सिद्धान्तों के आधार पर किसी समस्या का इस दृष्टिकोण से अध्ययन करता है कि वह Single व्यवहारिक समाधान खो सके ऐसे अनुसंधान को हम व्यवहारिक अनुसंधान कहते है। विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है, वरन् सामाजिक जीवन के विभिé पक्षों जैसे जनसंख्या, धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक And धार्मिक समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करना And इनके कार्य-कारण सम्बन्धों की तर्कसंगत व्याख्या करना भी है। अत:, व्यावहारिक अनुसंधान का सम्बन्ध हमारे व्यावहारिक जीवन से है। इस संदर्भ में श्रीमती यंग ने लिखा है, “ज्ञान की खोज का Single निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक Needओं व कल्याण से होता है। वैज्ञानिकों की यह मान्यता है कि समस्त ज्ञान सारभूत Reseller से इस Means में उपयोगी है कि वह सिद्धान्तों के निर्माण में या Single कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है। सिद्धान्त तथा व्यवहार आगे चलकर प्राय: Single Second से मिल जाते हैं।”
क्रियात्मक शोध
क्रियात्मक अनुसंधान के सम्बन्ध में गुड एव हाट ने लिखा है- “क्रियात्मक अनुसंधान उस योजनाबद्ध कार्यक्रम का भाग है जिसका लक्ष्य विद्यमान अवस्थाओं को परिवर्तित करना होता है, चाहे वे गन्दी बस्ती की अवस्थायें हो या प्रजातीय तनाव पूर्वाग्रह व पक्षपात हो या किसी संगठन की प्रभावशीलता हो।” स्पष्ट है कि क्रियात्मक अनुसंधान से प्राप्त जानकारियों And निष्कर्षों का उपयोग मौजूदा स्थितियों में परिवर्तन लाने वाली किसी भावी योजना में Reseller जाता है। वास्तव में, व्यावहारिक अनुसंधान व क्रियात्मक अनुसंधान कुछ Meansों में Single-Second से समानता रखते हैंय क्योंकि दोनों में ही सामाजिक घटनाओं अथवा समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद ऐसे निष्कर्ष प्रस्तुत किये जाते हैं जो व्यावहारिक And क्रियात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। उदाहरणस्वReseller, देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार लाने के लिये 1964 में डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में कोठारी आयोग की Appointment की गर्इ थी। उन्होंने देश की शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित ठोस प्रमाणों And तथ्यों को Singleत्रित कर आवश्यक सुधार And परिवर्तन लाने के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत किये। आयोग ने शिक्षा से जुड़े देश-विदेश के All वर्गों के व्यक्तियों से लिखित And मौखिक विचारों And सुझावों, माँगों को अध्ययन में शामिल Resellerय साथ ही मौजूदा शिक्षा प्रणाली में उपस्थित दशाओं का विश्लेषण कर, भावी शिक्षा प्रणाली की संCreation तथा क्रियान्वियन हेतु व्यावहारिक सुझाव भी प्रस्तुत किये। उन सुझावों में से कर्इ सुझाव भावी योजनाओं में सम्मिलित भी किये गये। तात्पर्य यह है, इस आयोग की रिपोर्ट भी क्रियान्वयन शोध का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
मूल्यांकनात्मक अनुसंधान
आज All देश नियोजित परिवर्तन की दिशा में विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दे रहे हैं। लाखों, करोड़ों Resellerये, अनेक विकास कार्यक्रमों, जैसे स्वास्थ्य सुधार, गरीबी उन्मूलन, आवास-विकास सम्बन्धी योजनाओं, परिवार नियोजन, मद्य निषेध, रोजगार योजनाओं And समन्वित ग्रामीण विकास आदि पर व्यय किये जा रहे हैं। तथापि, इन कार्यक्रमों And योजनाओं का लाभ वास्तव में लोगों को मिल भी रहा है या नहीं, यह जानना ही मूल्यांकनात्मक अनुसंधान का उद्देश्य है। मूल्यांकनात्मक अनुसंधान द्वारा इन कार्यक्रमों के लक्ष्यों And उपलब्धियों का मूल्यांकन Reseller जाता है कि लक्ष्य And उपलब्धियों में कितना अन्तर रहाय और अन्तर के कारण क्या रहे। जिससे कि भविष्य में बनाये जाने वाले कार्यक्रमों और योजनाओं में इस अन्तर को कम Reseller जा सकेय Meansात् योजनाओं को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। अनेक सरकारी, अर्द्ध-सरकारी And गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समय-समय पर ऐसे मूल्यांकन करवाये जाते है कि उनके द्वारा चलाये गये कार्यक्रमों की सफलता कितनी रही? असफलता के कारण क्या रहे आदि। उदाहरणस्वReseller, सामुदायिक विकास कार्यक्रम के मूल्यांकन के लिये भारत सरकार ने ‘कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन’ की स्थापना की है।
(i) गणनात्मक अनुसंधान (Quantitative Research)
समाजिक जीवन में बहुत सी घटनाएँ और तथ्य इस तरह के होते है जिनका प्रत्यक्ष Reseller सं अवलोकन करके उनकी गणना की जा सकती है। शाब्दिक Reseller से Quantity अथवा परिमाण का Means है मात्रा इस प्रकार के अनुसंधान में गणनात्मक मापन And सांख्यकीय विश्लेषण को अपनाया जाता है। तथ्यों के विश्लेषण में विभिé प्रकार की सांख्यकीय विधियों का प्रयोग Reseller जाता है जिससे अध्ययन में परिदर्शिता की मात्रा बढ़ जाती है। उदाहरणस्वReseller, Sixth वेतन आयोग के लागू हो जाने से विभिé वर्गों के वेतन में बढ़ोतरी का प्रतिशत क्या रहा? इस प्रकार के अनुसंधान में निर्दशन And अनुसंधान प्रCreation पर विशेष बल दिया जाता है।
(ii) गुणात्मक अनुसंधान (Qualitative Research)
सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए अनेक ऐसी पद्धतियों का भी उपयोग Reseller जाता है जो गुणात्मक विशेषताओं जैसे लोगों की मनोवृत्तियों तथा Human व्यवहारों पर विभिन्न संस्थाओं और विश्वासों के प्रभाव को स्पष्ट कर सकें। जब अनुसंधान का उद्देश्य व्यक्तियों के गुणों का विश्लेषण करना हो, तो गुणात्मक अनुसंधान को अपनाया जाता है।
(iii) तुलनात्मक अनुसंधान (Comprative Research)
इस प्रकार के अनुसंधान में विभिन्न इकाइयों And समूहों के बीच पायी जाने वाली समानताओं And विभिéताओं का अध्ययन Reseller जाता है। Indian Customer समाज And जापानी समाज का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की ग्रामीण महिलाओं तथा इंग्लैण्ड अथवा अमरीका की ग्रामीण महिलाओं की तुलना Reseller जाना। अथवा, विभिé महानगरों में महिला अपराधियों का तुलनात्मक अध्ययन, आदि।