हड़प्पा सभ्यता का महत्व और पतन
हजार वर्ष पुरातन कर दिया ।
हडपा सभ्यता की देन-
जिस सभ्यता का हड़प्पा में विकास हुआ उसके अश परवर्ती भारत में राजनीतिक व सामाजिक बदलाव और नर्इ जातियों के भारत में आगमन के बावजूद पाये जाते है । हड़प्पा सभ्यता मे पुरातत्व संबंधी खोजो से प्राप्त अवशेष तत्कालीन मिश्र व मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के प्राप्त अवशेषों की तुलना में कही कम है । हड़प्पा के लोगों के धार्मिक विश्वास के बारें में हमको सिक्कों से जानकारी मिलती है । जिसका विकास में बड़ा योगदान रहा है । मातृदेवी की अनेक Resellerो में पूजा, शिव या लिंग की पूजा तथा पीपल आदि अनेक वृक्षों की पूजा भारतवासियों को सिन्धु सभ्यता के लोगों की देन है । खुदार्इ से ताबीज प्राप्त हुर्इ है इनसे प्रतीत होता है कि लोगो का विश्वास टोटके आदि में था । खुदार्इ से अनगिनत ऐसे गाड़ी वाले खिलौनो के नमूने मिले है जिनमें पहिये है, और जिन्हे पशु जोते हुये है । आज बीसवीं सदी में सारे भारत में प्रचलित दो पहियों की गाड़ी का यह आदि Reseller है ।
हड़प्पा वासियों के घरो के बीच में आंगन, में कुंआ तथा Single तरफ रसोर्इ घर व दूसरी तरफ स्नानागार होते थे । यह पद्धति आज भी अनेक Indian Customer घरो में पार्इ जाती है । नगरों का याजे नाबद्ध विकास तथा निमार्ण् ा Reseller जाता था । नगरों मे सड़कों की व्यवस्था उत्तम थी । जल निकासी And स्वच्छता का विशेष ध्यान दिया जाता था । मकान पक्की र्इटो के बने हुये थे । इस सभ्यता ने प्राचीन Indian Customerों को ग्रामीण जीवन से हटकर शहरी होने का गौरव प्रदान Reseller ।
वजन मापने के लिये उपयोग में आने वाले बहुत से प्रस्तर के नमूने प्राप्त हुये है इनसे पता चलता है कि जुलार्इ में 16 माउस के गुणज का उपयोग होता था । भारत में यह परम्परा बहुत समय तक चली । कुछ ही वर्ष पूर्व तक 16 आने से Single Resellerया बनता था। खेती करना भी सिन्धु घाटी के लोगो ने ही प्रारम्भ Reseller। गेहूं, जौ, कपास आदि की खेती सिन्धु घाटी में ही प्रारम्भ हुर्इ जो धीरे-धीरे अन्य देशों के अन्य भागों में फैल गयी । सिन्धु सभ्यता के लोगों को लिपि का ज्ञान था । विद्वानों की मान्यता है कि ब्राम्ही लिपि का उद्गम सिन्धु सभ्यता से हुर्इ है । मूर्तिकला, चित्रकला, आभूषण और श्रृंगार आदि भी सिन्धु सभ्यता की देन है ।
धार्मिक जीवन-
सिन्धु घाटी के स्थलो की खुदार्इ में जो वस्तुयें मिली है उनसे सिन्धुवासियों के धर्म के सम्बन्ध में निश्चय पूर्वक कुछ कहना कठिन है । सिन्धु सभ्यता के निवासियों का कोर्इ ऐसा भवन नहीं मिला है जिसे मन्दिर या देवस्थान कहा जा सके । सिन्धु सभ्यता के निवासियों का धार्मिक होने का प्रमाण पात्र, मुद्राओं, मूर्तियों तथा भांडो से प्राप्त होता है।
- मातृदेवी की उपासना:- सिन्धु घाटी के निवासी मातृदेवी की उपासना करते थे और सम्भवत: बलि भी दी जाती थी । सिन्धु सभ्यता की खुदार्इ से अनेक मूर्तियां प्राप्त हुर्इ है । नरबलि का भी रिवाज था ।
- शिवपूजा लिंग पूजा:- सिन्धु निवासी शिव की लिंग और मूतिर् दोनो Reseller में पूजा करते थे ।
- प्राकृतिक Reseller में वृृक्ष की पूजा:- सिन्धु निवासी वृक्ष की दो Resellerों में पूजा करते थे Single वृक्ष के Reseller में और दूसरी देवता के Reseller में पूजते थे । पीपल के वृक्ष को अत्यन्त पवित्र मानते थे।
- कूबड़ वाले बैल And पशु पूजा:- सिन्धु निवासी कबूड वाले बैल एव अन्य पशुओं की पूजा करते थे ।
- मृृतक संस्कार:- सिन्धु घाटी के निवासी अपने शवों का विर्सजन तीन प्रकार से करते थे ।
- शवों को जमीन में दफनाते थे ।
- खुले स्थान पर छोड देते थे और जब जानवर इन्हे खा लेते थे तब हड्डी को जमीन में दफना देते थे । अन्तिम संस्कार जलाकर भी Reseller जाता था ।
राजनैतिक जीवन-
लिखित प्रमाण के अभाव में सिन्धु काल की सभ्यता राजनीतिक स्थिति का निर्धारण उत्खनन से प्राप्त विविध स्त्रोतो से ही पता चला है । पिगट महोदय ने लिखा है कि, सिन्धु सभ्यता का प्रशासन हड़प्पा व मोहन जोदड़ो, दो राजधानियों के द्वारा होता था । योजनाबद्ध निर्माण कार्य को देखते हुये अनुमान Reseller जाता है कि नगरों में नगर पालिका जैसी कोर्इ संस्था अवश्य रही होगी । खुदार्इ से अस्त्र शस्त्र और हथियार नहीं मिले है, जिससे विदित होता है कि राजनीतिक कटुता विद्रोह या Fight की सम्भावना इस समय कम रही होगी और अन्य विकास की ओर अधिक ध्यान दिया जाता रहा होगा । हड़प्पा संस्कृति के निवासी व्यापारी थे और व्यापार की दशा उन्नत थी, यही वजह थी कि वे साम्राज्य विस्तार की ओर अधिक ध्यान नहीं दे सके ।
सिन्धु सभ्यता का विनाश-
इस बात के ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है कि सिन्धु घाटी का वैभवशाली सभ्यता का विनाश कैसे हुआ ? खुदार्इ के दौरान मिले तथ्यों से ही विद्वानों ने इसके विनाश के कुछ कारण अनुमानों के आधार पर निकाले है –
- बाह्यआक्रमण:- कुछ विद्वानों का विचार है कि किसी बाहरी आक्रमणकारी बर्बर जाति द्वारा सिन्धु घाटी के शान्तिपिय्र लोगो को Fight में पराजय दी गयी और भयंकर नरसंहार द्वारा Destroy कर दिया गया । मोहनजोदड़ो की खुदार्इ में प्राप्त बहुसंख्या में Human अस्थिपंजर इस कारण की ओर इंगित करते है । कुछ लोगों का विचार है कि आर्यो द्वारा सिन्धु सभ्यता को Destroy Reseller गया ।
- प्राकृतिक प्रकोप से:- कुछ विद्वानों का विचार है कि भयंकर वर्षा, महामारी अथवा लम्बे समय तक जल का अभाव या अकाल अथवा भूकम्प ने इस सभ्यता को Destroy कर दिया ।
- भौगोलिक परिवर्तन से:- कुछ विद्वानों का मत है कि सिन्धु नदी के अचानक मार्ग बदलने, भारी बाढ़ अथवा क्षेत्र की जलवायु में आये अचानक परिवर्तन से सिन्धु सभ्यता का समूल विनाश हो गया । खुदार्इ के दौरान मिली रेत की मोटी पर्त से ऐसे अनुमान निकाले गये है ।