सृजनात्मकता का Means, परिभाषा, विशेषताएं, तत्व And सिद्धांत

सृजनात्मकता का सामान्य Means है सृजन अथवा Creation करने की योग्यता। मनोविज्ञान में सृजनात्मकता से तात्पर्य मनुष्य के उस गुण, योग्यता अथवा शक्ति से होता है जिसके द्वारा वह कुछ नया सृजन करता है। जेम्स ड्रेवर के According-’’सृजनात्मकता नवीन Creation अथवा उत्पादन में अनिवार्य Reseller से पाई जाती है।’’ क्रो व क्रो के According-’’सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।’’

कोल And ब्रूस के According-’’सृजनात्मकता Single मौलिक उत्पाद के Reseller में Human मन की ग्रहण करने, अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता And क्रिया है।’’ ई0 पी0 टॉरेन्स (1965) के According-’’सृजनषील चिन्तन अन्तरालों, त्रुटियों, अप्राप्त तथा अलभ्य तत्वों को समझने, उनके सम्बन्ध में परिकल्पनाएं बनाने और अनुमान लगाने, परिकल्पनाओं का परीक्षण करने, परिणामों को अन्य तक पहुचानें तथा परिकल्पनाओं का पुनर्परीक्षण करके सुधार करने की प्रक्रिया है।’’

उपर्युक्त परिभाशाओं से स्पश्ट होता है कि-

  1. सृजनात्मकता नवीन Creation करना है।
  2. सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को प्रदर्षित करना है।
  3. सृजनात्मकता किसी समस्या के समाधान हेतु परिकल्पनाओं का निर्माण And पुनर्परीक्षण करके सुधार करने की योग्यता है।
  4. सृजनात्मकता Human की स्वतंत्र अभिव्यक्ति में विद्यमान रहती है।

सृजनात्मकता की प्रकृति And विशेषताएं

  1. सृजनात्मकता सार्वभौमिक होती है। प्रत्येक व्यक्ति में सृजनात्मकता का गुण कुछ न कुछ अवश्य विद्यमान रहता है।
  2. सृजनात्मकता का गुण ईश्वर द्वारा प्रदत्त होता है परन्तु शिक्षा And उचित वातावरण के द्वारा सृजनात्मक योग्यता का विकास Reseller जा सकता है।
  3. सृजनात्मकता Single बाध्य प्रक्रिया नहीं है, इसमें व्यक्ति को इच्छित कार्य प्रणाली को चुनने की पूर्ण Reseller से स्वतंत्रता होती है।
  4. सृजनात्मकता अभिव्यक्ति का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है।

सृजनात्मकता की प्रक्रिया

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में कुछ विशिष्ट सोपान होते हैं। इन सापानों का वर्णन मन द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘इन्ट्रोडक्षन टू साइकोलॉजी’ में विस्तार पूर्वक described है। सृजनात्मकता की प्रक्रिया के सोपान निम्न हैं- 1-तैयारी, 2-इनक्यूबेषन, 3-प्रेरणा, 4-पुनरावृत्ति

लेख सारिणी

तैयारी

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में तैयारी First सोपान होता है जिसमें समस्या पर गंभीरता के साथ कार्य Reseller जाता है। First समस्या का विष्लेशण Reseller जाता है और उसके समाधान के लिए Single Resellerरेखा का निर्माण Reseller जाता है। आवष्यक तथ्यो तथा सामग्री को Singleत्रित कर, उनका विष्लेशण Reseller जाता है। यदि प्रदत्त सामग्री सहायक सिद्ध नहीं हो पाती है तो किसी अन्य विधि को अपना कर प्रदत्त सामग्री Singleत्रित की जा सकती है।

इनक्यूबेषन

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में इनक्यूबेषन द्वितीय सोपान होता है जिसमें वाहृय क्रिया बन्द हो जाती है। इस अवस्था में व्यक्ति विश्राम कर सकता है। इस प्रकार सृजनात्मकता की प्रक्रिया में आने वाली बाधाएं शान्त हो जाती हैं And जिससे व्यक्ति का अचेतन मन समस्या समाधान की ओर कार्य करने लगता है और इसी अवस्था में समस्या के समाधान के लिए दिषा प्राप्त हो जाती है।

प्रेरणा

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में प्रेरणा तृतीय सोपान होता है जिसमें व्यक्ति सहज बोध या इल्यूमिनेषन की ओर बढ़ता है। इस अवस्था में व्यक्ति समस्या के समाधान का अनुभव करता है। व्यक्ति को अंतदृश्टि द्वारा समाधान की झलक दिखाई दे जाती है। कभी-कभी व्यक्ति स्वप्न में भी समस्या के समाधान का रास्ता खोज लेता है।

पुनरावृत्ति

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में पुनरावृत्ति चतुर्थ सोपान होता है इसे जाँच-पड़ताल भी कहते हैं जिसमें व्यक्ति सहज बोध या इल्यूमिनेषन से प्राप्त समाधान की जाँच-पड़ताल की जाती है। इस सोपान यह देखन का प्रयास Reseller जाता है कि व्यक्ति की अंतदृश्टि द्वारा प्राप्त समाधान ठीक है या नहीं। यदि समाधान ठीक नहीं होते हैं तो समस्या के समाधान के लिए नये प्रयास किये जाते हैं। इस प्रकार परीक्षण के परिणामों की दृष्टि में पुनरावृत्ति की जाती है।

सृजनात्मकता के तत्व

सृजनात्मकता के निम्न तत्व होते हैं- 1-धाराप्रवाहिता 2-लचीलापन 3-मौलिकता 4-विस्तारण

धाराप्रवाहिता

धाराप्रवाहिता से तात्पर्य अनेक तरह के विचारो की खुली अभिव्यक्ति से है। जा े व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारो की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण Reseller से प्रकट करता है वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। धाराप्रवाहिता का सम्बन्ध Word, साहचर्य स्थापित करने तथा Wordों कीे अभिव्यक्ति करने से सम्बन्धित होता है।

लचीलापन

लचीलापन से तात्पर्य समस्या के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों को अपनाये जाने से है। जो व्यक्ति किसी भी समस्या के समाधान हेतु अनेक नये-नये रास्ते अपनाता है वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। लचीलेपन से यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति समस्या को कितने तरीकों से समाधान कर सकता है।

मौलिकता

मौलिकता से तात्पर्य समस्या के समाधान के लिए व्यक्ति द्वारा दी गई अनुक्रियाओं के अनोखेपन से है। जो व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारों की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण Reseller स े नये ढंग से करता है उसमें मौलिकता का गुण अधिक होता है। वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। जब व्यक्ति समस्या के समाधान के Reseller में Single बिल्कुल ही नई अनुक्रिया करता है तो ऐसा माना जाता है कि उसमें मौलिकता का गुण विद्यमान है।

विस्तारण

विचारो को बढ़ा-चढा़ कर विस्तार करने की क्षमता को विस्तारण कहा जाता है। जो व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारो की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण Reseller से बढ़ा-चढ़ाकर And विस्तार के साथ प्रकट करता है उसमें विस्तारण का गुण अधिक होता है। वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। इसमें व्यक्ति बड़े विचारों को Single साथ संगठित कर उसका Meansपूर्ण ढंग से विस्तार करता है तथा पुन: नये विचारों को जन्म देता है।

सृजनात्मकता के सिद्धांत

सृजनात्मकता को समझने के लिए मनोवैज्ञानिको ने कई सिद्धान्तो को प्रतिपादित किये जो निम्न हैं-

वंषानुक्रम का सिद्धांत

इस सिद्धान्त के According सृजनात्मकता का गुण व्यक्ति में जन्मजात होता है, यह शक्ति व्यक्ति को अपने माता-पिता के द्वारा प्राप्त होती है। इस सिद्धान्त के मानने वालों का मत है कि वंषानुक्रम के कारण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में सृजनात्मक शक्ति अलग-अलग प्रकार की और अलग-अलग होती है।

पर्यावरणीय सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक एराटी ने Reseller है। इस सिद्धान्त के According सृजनात्मकता केवल जन्मजात नहीं होती बल्कि इसे अनुकूल पर्यावरण द्वारा मनुष्य में अन्य गुणों की तरह विकसित Reseller जा सकता है। इस सिद्धान्त के अन्य गुणों की तरह विकसित Reseller जा सकता है। इस सिद्धान्त के मानने वालो का स्पष्टीकरण है कि खुले, स्वतंत्र और अनुकूल पर्यावरण में भिन्न-भिन्न विचार अभिव्यक्त होते हैं और भिन्न-भिन्न क्रियाएं सम्पादित होती हैं जो नवसृजन को जन्म देती हैं। इसके विपरीत बन्द समाज में इस शक्ति का विकास नहीं होता।

सृजनात्मकता स्तर का सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक टेलर ने Reseller है। उन्होने सृजनात्मकता की व्याख्या 5 उत्तरोत्तर के Reseller में की है। उनके According कोई व्यक्ति उस मात्रा में ही सृजनषील होता है जिस स्तर तक उसमें पहंचने की क्षमता होती है। ये 5 स्तर निम्न हैं-

  • क-अभिव्यक्ति की सृजनात्मकता यह वह स्तर है जिस पर कोई व्यक्ति अपने विचार अबाध गति से प्रकट करता है इन विचारों का सम्बन्ध मौलिकता से हो, यह आवश्यक नहीं होता । टेलर के According यह सबसे नीचे स्तर की सृजनषीलता होती है।
  • ख-उत्पादन सृजनात्मकता इस स्तर पर व्यक्ति कोई नयी वस्तु को उत्पादित करता है। यह उत्पादन किसी भी Reseller में हो सकता है। यह Second स्तर की सृजनषीलता होती है।
  • ग-नव परिवर्तित सृजनात्मकता इस स्तर व्यक्ति किसी विचार या अनुभव के आधार पर नये Reseller को प्रदर्षित करता है।
  • घ-खोजपूर्ण सृजनात्मकता इस स्तर व्यक्ति किसी अमूर्त चिन्तन के आधार पर किसी नये सिद्धान्त को प्रकट करता है।
  • ड़-उच्चतम स्तर की सृजनात्मकता इस स्तर पर पहुंचने वाले व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में उच्चतम स्तर की सृजनात्मकता को प्रकट करता है।

अर्धगोलाकार सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक क्लार्क और किटनों ने Reseller है। इस सिद्धान्त के According सृजनषीलता मनुश्य के मस्तिश्क के दाहिने अर्द्धगोले से प्रस्फुटित होती है And तर्क शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क के बाएँ अर्द्धगोले से प्रस्फुटित होती है । इस सिद्धान्त के According सृजनात्मक कार्य व्यक्ति के मस्तिश्क के दोनों ओर के अर्द्धगोलो के बीच अन्त:क्रिया के फलस्वReseller होते हैं।

मनोविष्लेषणात्मक सिद्धांत

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक फ्रॉयड ने Reseller है। इस सिद्धान्त के According सृजनषीलता मनुश्य के अचेतन मन में संि चत अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति के कारण आती है। अतृप्त इच्छाओ को शोधन करने से वे सृजनात्मक कार्य की ओर अग्रसर होते है।

सृजनात्मक व्यक्ति की विशेषताएं

  1. सृजनात्मक व्यक्ति की स्मरण शक्ति अत्यन्त तीव्र होती है।
  2. सृजनात्मक व्यक्ति विचारों And अपने द्वारा किये गये कार्यों में मौलिकता को प्रदर्शित करते है।
  3. सृजनात्मक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की तरह जीवन न जी कर, Single नये ढंग से जीवन को जीने की कोषिष करते हैं।
  4. सृजनात्मक व्यक्ति की प्रवृत्ति अधिक जिज्ञासापूर्ण होती है।
  5. सृजनात्मक व्यक्ति का समायोजन अच्छा होता है।
  6. सृजनात्मक व्यक्ति में ध्यान And Singleाग्रता गुण अधिक विद्यमान रहता है।
  7. सृजनात्मक व्यक्ति प्राय: आषावान And दूर की सोच रखने वाले होते हैं।
  8. सृजनात्मक व्यक्ति किसी भी निर्णय को लेने में संकोच नहीं करते And आत्मविश्वास के साथ निश्कर्श पर पहुंच जाते हैं।
  9. सृजनात्मक व्यक्ति में विचार अभिव्यक्ति का गुण अत्यधिक विद्यमान रहता है।
  10. सृजनात्मक व्यक्ति का व्यवहार अत्यधिक लचीला होता है। परिस्थितियों के According जल्दी ही परिवर्तित हो जाता है।
  11. सृजनात्मक व्यक्ति में कल्पनाषक्ति तीव्र होती है।
  12. सृजनात्मक व्यक्ति में किसी भी विशय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति And उस अभिव्यक्ति पर विस्तारण का गुण अधिक होता है।
  13. सृजनात्मक व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान नये तरीके से करना चाहता है।
  14. सृजनात्मक व्यक्ति अपने व्यवहार And सृजनात्मक उत्पादन में आनन्द And हर्श का अनुभव करता है।
  15. सृजनात्मक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व के प्रति अधिक सतर्क रहते हैं।

सृजनात्मकता को विकसित करने के उपाय

  1. व्यक्ति को उत्तर देने की स्वतंत्रता दी जाये।
  2. व्यक्ति में मौलिकता And लचीलेपन के गुणों को विकसित करने का प्रयास Reseller जाये।
  3. व्यक्ति को स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए अवसर प्रदान किये जाये।
  4. व्यक्ति के डर And झिझक को दूर करने का प्रयास Reseller जाये।
  5. व्यक्ति को उचित वातावरण दिया जाये।
  6. व्यक्ति में अच्छी आदतों का विकास Reseller जाये।
  7. व्यक्ति के लिए सृजनात्मकता को विकसित करने वाले उपकरणों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  8. व्यक्ति मे सृजनात्मकता को विकसित करने के लिए विशेष प्रकार की तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए। जैसे:- मस्तिश्क विप्लव, किसी वस्तु के असाधारण प्रयोग, षिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग, खेल विधि आदि।
  9. व्यक्ति के लिए सृजनात्मकता को विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम में सृजनात्मक विशय वस्तुओं का समावेश Reseller जाना चाहिए।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *