सामान्यीकृत चिंता विकार का Means, लक्षण, कारण And उपचार
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रोनाल्ड जे कोमर ने अपनी पुस्तक ‘फण्डामेंटल्स ऑफ एबनॉरमल साइकोलॉजी’ में सामान्यीकृत चिंता विकृति को Single स्थायी And सतत Reseller से जीवन की बहुत सी घटनाओं And गतिविधियों के प्रति होने वाली अत्यधिक चिंता प्रतिक्रिया के Reseller में परिभाषित Reseller है – उनके According सामान्यीकृत चिंता विकृतिSingle ऐसी चिंता विकृति है जिसे कि बहुत सी घटनाओं And गतिविधियों के बारे में होने वाली स्थायी And अत्यधिक दुश्चिंता And चिंता के Reseller में देखा जाता है।’
Single अन्य मनोवैज्ञानिक डेविसन And उनके सहयोगी नील के According – ‘सामान्यीकृत चिंता विकृति तीव्र, अनियंत्रणीय, अकेंद्रित, स्थायी और सतत चिंता के Reseller में चित्रित Reseller जाता है जो कि डिस्ट्रेसिंग And अनोत्पादिक होती है And जिसमें पेशीय तनाव, चिड़चिड़ापन और विचलन के दैहिक लक्षण समाहित होते हैं। मनोवैज्ञानिक कार्सन, बुचर And मिनेका अपनी पुस्तक ‘एबनॉरमल साइकोलॉजी’ में फोबिया को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि- ‘वस्तुओं And घटनाओं के प्रति तीव्र अविवेकपूर्ण भय ही फोबिया है।’ आइये अब सामान्यीकृति चिंता विकृति को उसके नैदानिक description द्वारा भली प्रकार समझने की कोशिश करते हैं।
हम आपसे कुछ प्रश्न पूछता हैं।
- क्या आपके घर-परिवार में कोर्इ चिंतातुर व्यक्ति है?
- क्या आपके परिवार में कोर्इ परफेक्शनिष्ट Meansात कोर्इ ऐसा व्यक्ति है?जिसे किसी कार्य को त्रुटिरहित सम्पूर्णता के स्तर तक पूर्ण करने से पूर्व चैन न मिलता हो And सामान्य तौर पर उसे यह त्रुटिरहित पूर्णता प्राय: प्राप्त ही न होती हो।
उपरोक्त प्रश्नों का जवाब आप स्वयं भी हो सकते हैं क्योंकि शायद ही कोर्इ ऐसा व्यक्ति इस दुनिया में होगा जिसे कभी चिंता ने न सताया हो अथवा चिंता न सताती हो। हम All भली भॉंति जानते हैं कि किसी कार्य विशेष के निष्पादन को लेकर चिंता करना लाभदायक होता है। यह चिंता हमें उसे कार्य को बेहतर तरीके से, दोष रहित Reseller में निष्पादित करने हेतु योजना बनाने या योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित And प्रोत्साहित करती है तथा इससे हमें सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए छुट्टियॉं बिताने के लिए पिकनिक पर जाने से पूर्व आप घर की प्रत्येक जिम्मेदारी को भली भॉंति निपटाने के लिए सजग रहते हैं And घर को ताला लगाने पर उसे दो दो बार जॉंचते हैं कि ताला ठीक से लगा है कि नहीं, पड़ोसियों को बार बार फोन करते हैं कि घर पर सब ठीक है अथवा नहीं?। परन्तु जरा अपनी उस दशा के बारे में सोचिए कि जिसमें आप स्वयं से जुड़ी हर छोटी बड़ी घटना अथवा गतिविधि के बारे में अत्यधिक चिंता करने लगें, तब क्या होगा?। और उस स्थिति को क्या कहेंगे जब कि इस प्रकार की चिंता से कोर्इ सृजनात्मक लाभ भी न होता हो। आप अपने आने वाली समस्या या परिस्थिति में क्या करेंगे कैसे निपटेंगे इस बारे में खूब चिंता करते हों परन्तु फिर भी उससे संबंधित कोर्इ भी सही निर्णय लेने में सदैव अनिश्चय की स्थिति में रहते हों। और हद तो तब हो जाती है जब आप इस चिंता को रोक पाने में तब भी असफल रहते हैं जबकि आप जान रहे होते हैं कि चिंता करने से आप का कोर्इ भला नहीं हो रहा है और इससे आप के आस पास And साथ रहने वाले All व्यक्ति भी परेशान And आश्चर्यचकित हो रहे हैं। पाठकों इन्हीं लक्षणों And विशेषताओं से युक्त मनोरोग ही सामान्यीकृत चिंता विकृति के Reseller में पहचाना जाता है।
डी.एस.एम.-4टी.आर में सामान्यीकृत चिंता विकृति को इस प्रकार परिभाषित Reseller गया है – ‘घटनाओं And गतिविधियों जैसे कि कार्य अथवा स्कूल में निष्पादन के बारे में कम से कम छ: महीने तक होने वाली अत्यधिक दुश्चिंता And आशंका’ ही सामान्यीकृति चिंता कहलाती है। उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से सामान्यीकृत चिंता विकृति से संबंधित कर्इ महत्वपूर्ण बिन्दु स्पष्ट होते हैं –
- सामान्यीकृत चिंता विकृति चिंता विकृति का Single प्रकार है।
- सामान्यीकृत चिंता विकृति में तीव्र चिंता And आशंका सतत् व्याप्त रहती है।
- सामान्यीकृत चिंता जीवन में सामान्य तौर पर घटने वाली घटनाओं And रोजमर्रा के कार्यों And गतिविधियों से संबंधित होती है।
- सामान्यीकृत चिंता विकृति में व्यक्ति में भविष्य के प्रति नकारात्मक दृष्टि उत्पन्न हो जाती है And व्यक्ति स्वयं रोजमर्रा के कार्यों को ठीक प्रकार से नहीं कर पायेगा इसकी अत्यधिक चिंतातुर आशंका मन में घर कर जाती है।
सारReseller में जीवन की कोर्इ भी साधारण, असाधारण घटना, किसी भी गतिविधि चाहे वह ऑफिस के कार्यों को निपटाने से संबंधित हो अथवा स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय की पढ़ार्इ के कार्यों को करने से संबंधित हो या फिर मित्रों, परिवारजनों के संबंधों को निभाने की कुशलता से जुड़ी हो को नहीं निष्पादित कर पाने की आशंका तथा स्वयं को न नियंत्रित कर पाने And सम्भाल पाने का अतार्किक डर ही सामान्यीकृत चिंता विकृति है।
सामान्यीकृत चिंता विकृति के लक्षण
अमेरिकन साइकियेट्रिक एसोशियेसन (American psychiatric association) ने सामान्यीकृत चिंता विकृति के लक्षणों को बिन्दुवार स्पष्ट Reseller है।
- इसमें व्यक्ति सतत् प्रवाही चिंता (free floating anxiety) से ग्रस्त रहता है।
- जीवन की दैनिक घटनाओं And रोजमर्रा के कार्यों के ठीक से न कर पाने की आशंका सतत बनी रहती है।
- व्यक्ति को यह लगता है कि उसका स्वयं पर से आत्मनियंत्रण खो रहा है।
- व्यक्ति में सतत प्रवाही चिंता तीन महीने से ज्यादा समय तक बनी रहती है।
- व्यक्ति को बेचैनी की समस्या लगातार बनी रहती है तथा साथ ही मॉंसपेशीय तनाव भी बना रहता है।
- व्यक्ति के व्यवहार में भी बार बार बदलाव आता रहता है।
- व्यक्ति में डिस्ट्रेस And बिक्षुब्धता सार्थक मात्रा में बढ़ जाती है।
सामान्यीकृत चिंता विकृति के लक्षणों को डायग्नोस्टिक एण्ड स्टेटिस्टिकल मैनुअल -4 टेक्स्ट रिवीजन के अध्ययन से भली भॉंति समझा जा सकता है। आइये सामान्यीकृत चिंता विकृति के नैदानिक कसौटी को उसके मौलिक स्वReseller में समझें।
1. सामान्यीकृत चिंता विकृति –
- कार्य अथवा स्कूल निष्पादन जैसे गतिविधियों या घटनाओं के प्रति कम से कम छ महीने से ज्यादा दिनों तक होने वाली अपरिमित चिंता और संबंधित समस्याओं के बारे में सोचनीय आशंका
- व्यक्ति चिंता को नियत्रित करना कठिन पाता है।
- चिंता अथवा सोचनीय आशंका कम से कम निम्नांकित छ: लक्षणों में से किन्ही तीन से संबंधित हों जिनमें से कम से कम कुछ लक्षण छ: महीने से ज्यादा दिनों तक रहे हों (नोट – बच्चों के लिए केवल Single लक्षण का होना ही पर्याप्त है)।
- बेचैनी अथवा भावनाओं का उफान पर होना
- शीघ्र थक जाना (Being easily fatigued)
- Singleाग्रचित्त होने में कठिनार्इ अथवा मन में शून्यता होना (Difficulty concentrating or mind going blank)
- चिड़चिड़ापन(Irritability)
- मांसपेशीय तनाव (Muscle tension)
- विक्षुब्ध निद्रा, निद्रा न आना या निद्रा बरकरार न रहना, निद्रा में बेचैनी, असंतोषजनक निद्रा (Sleep disturbance (difficulty falling or staying asleep or restless, unsatisfying sleep)
- Single्सिस फस्र्ट डिस्आर्डर के दायरे तक ही चिंता And सोचनीय आशंका सीमित नहीं रहे Meansात् चिंता And आशंका पैनिक डिस्आर्डर, सामाजिक दुभ्र्ाीति, मनोग्रस्तता बाध्यता, विलगाव चिंता विकृति, एनोरेक्सिया नर्वोसा या हाइपोकोन्ड्रियासिस की वजह से नहीं हो तथा न ही पोस्ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिस्आर्डर का हिस्सा हो।
- सामाजिक, व्यावसायिक और कार्य के Second महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस चिंता And सोचनीय आशंका And दैहिक लक्षणों ने नैदानिक Reseller से सार्थक दुश्चिंता And विघटन उत्पन्न Reseller हो।
- यह विक्षुब्धता किसी द्रव्य के प्रत्यक्ष फिजियोलॉजिकल प्रभाव की वजह से न हो उदाहरण के लिए किसी अन्य बीमारी में उपयोग होने वाली दवा के सेवन से अथवा औषध व्यसन अथवा सामान्य रूग्णता (जैसे कि हाइपरथाइरोडिज्म) की वजह से न हो, And मात्र मनोदशा विकृति, साइकोटिक विकृति अथवा साइकोटिक विकृति या फिर पर्वेसिव डेवलपमेंटल डिस्आर्डर के दौरान न हो। उपयुक्त नैदानिक कसौटी के प्रकाश में यह स्पष्ट हो गया है कि सामान्यीकृति चिंता विकृति से जो व्यक्ति पीड़ित होता है उसे सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त घोषित करने हेतु न्यूनतम् जरूरी लक्षण क्या होने चाहिए And कितने समय तक रहे होने चाहिए। आइये अब सामान्यीकृति चिंता विकृति के संबंध में अपनी जानकारी की परीक्षा करें।
सामान्यीकृत चिंता विकृति के कारण
सामान्यीकृत चिंता विकृति पश्चिमी देशों के लोगों में सर्वाधिक पायी जाती है। मनोवैज्ञानिक केसलर And उनके सहयोगियों द्वारा 2010 And 2005 में किये गये सर्वेक्षणों, रिटर, ब्लैकमोर And हीम्बर्ग द्वारा 2010 में किये गये सर्वेक्षण के मुताबिक किसी भी साल अमेरिका की कुल जनसंख्या के 4 प्रतिषत व्यक्तियों में इस विकृति के लक्षण पाये जाते हैं And इसी दर से यह विकृति कनाडा, ब्रिटेन And अन्य पश्चिमी देशों में भी पायी जाती है। कुलमिलाकर सम्पूर्ण जनसंख्या के 6 प्रतिषत व्यक्तियों को उनके जीवन काल में सामान्यीकृत चिंता विकृति से जूझना पड़ता है जो कि Single चिंतनीय मुद्दा है। वैसे तो यह विकृति किसी भी उम्र में हो सकती है परन्तु बाल्यावस्था And किषोरावस्था में इसकी शुरूआत सर्वाधिक पायी गयी है। पुरूषों के मुकाबले यह विकृति महिलाओं में दो गुना पायी जाती है। इस दौड़ में महिलाओं ने पुरूषों को काफी पीछे छोड़ दिया है। मनोवैज्ञानिक वैंग And उनके सहयोगियों द्वारा 2011 में किये गये अध्ययन And के द्वारा किये गये Single सर्वे के According इस विकृति से पीड़ित लोगों की संख्या का Single चौथार्इ भाग वर्तमान में चिकित्सकीय प्रक्रिया में “ाामिल हैं Meansात इतने लोग अपना उपचार करवा रहे हैंं।
अब प्रश्न उठता है कि इस सामान्यीकृत चिंता विकृति के विकसित होने के पीछे कौन से कारण अथवा कारक जिम्मेदार हैं। वैसे तो कारण And कारक कर्इ हो सकते हैं परन्तु जो प्रमुख हैं And जिन की आपको जानकारी होनी चाहिए वे पॉंच महत्वपूर्ण कारक हैं। – 1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Sociocultural factor) – 2. मनोगत्यात्मक कारक (Psychodyamic factor) – 3. Humanतावादी कारक (Humanistic factor )- 4. संज्ञानात्मक कारक (Cognitive factor) – 5. जैविक कारक (Biological factor) – 6. व्यवहारात्मक कारक (Behavioural factor)
1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक –
समाज-सांस्कृतिक सिद्धान्त निर्माताओं के According सामान्यीकृत चिंता विकृति से सबसे ज्यादा उन लोगों मे विकसित होती है जो कि ऐसी सामाजिक दशाओं से गुजर रहे हों जो कि उनके लिए वाकर्इ खतरनाक हों। जैकब, प्रिंस And गोल्डबर्ग (2010) And स्टीन और विलियम (2010) ने अपने शोध में पाया है कि वे लोग जो समाज में काफी गंभीर दशाओं में जीवन यापन कर रहें हों And जिन्हें अपने अस्तित्व के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता हों उन लोगों में इस विकृति से संबंधित प्रधान लक्षणों जैसे कि तनाव का सामान्य अहसास, चिंता, थकान, And विक्षुब्ध निद्रा का विकसित होना स्वाभाविक And सामान्य बात है।उदाहरण के लिए मनोवैज्ञानिक बॉम And उनके सहयोगियों (2004) द्वारा Single दुर्घटनाग्रस्त न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के नजदीक निवास करने वाली दो से तीन वर्ष के बच्चों की माताओं And सामान्य जगह पर निवास करने वाली ऐसी ही माताओं में मनोरोगों के स्तर के अध्ययन में पॉवर प्लांट के नजदीक रहने वाली माताओं में चिंता And मनोदशा विकृति की मात्रा सामान्य जगह पर निवास करने वाली महिलाओं की अपेक्षा 5 गुना अधिक पायी गयी जो कि दुर्घटना के Single वर्ष उपरान्त कम होने के बाद भी सामान्य की अपेक्षा कर्इ गुना ज्यादा बनी रही।
सोषियो कल्चरल थ्योरिस्ट के According सामान्यीकृत चिंता विकृति की दर आर्थिक दृष्टि से विपन्न लोगों में ज्यादा पायी जाती है। क्योंकि गरीबी स्वयं में ही Single अभिषाप है And यह गरीब लोगों को ऐसे क्षेत्रों में निवास करने के लिए मजबूर कर देती है जहॉं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव हो अथवा स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त न हों, इसके अलावा इन इलाकों में षिक्षा की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध न होने के कारण आपराधिक घटनाओं की दर भी बढ़ी चढ़ी रहती है, तथा रोजगार के अवसर भी न्यून होते हैं, इन परिस्थितियों के कारण इस प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में वास करने वाले लोगों में सदैव ही अपने स्वास्थ्य And जान-माल की चिंता बनी रहती है जो कि कालान्तर में चिंता And मनोदशा विकृति का Reseller ग्रहण कर लेती है। जैकब And उनके सहयोगी (2010) तथा स्टीन और विलियम (2010) ने अपने अध्ययनों में सामान्यीकृत चिंता विकृति की दर ऐसे वातावरण में रहने वाले लोगों में सामान्य की अपेक्षा काफी उच्च पायी है। केसलर And उनके सहयोगियों (2010) ने तो इसे दो गुना बताया है। सोषियो कल्चरल थ्योरिस्ट के According न केवल गरीबी बल्कि जाति के आधार पर भी सामान्यीकृत चिंता विकृति की दर में सार्थक अन्तर पाया गया है। वे लोग जो रंग में “वेत हैं उनमें काले लोगों की अपेक्षा सामान्यीकृत चिंता विकृति दो गुना कम पायी गयी है।
यद्यपि यह सत्य है कि तमाम सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों पर किये गये अध्ययन यह दर्शाते हैं कि इन कारकों का सार्थक असर सामान्यीकृत चिंता विकृति के विकसित होने की दर पर पड़ता है, किन्तु फिर भी दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता है कि केवल यही कारण इस चिंता विकृति की उत्पत्ति And विकास के लिए सम्पूर्ण Reseller से जिम्मेदार हैं। क्योंकि इन्हीं सामाजिक-सांस्कृतिक दशाओं में जीवनयापन करने वाले ही बहुत से गरीब पिछडे़ And अशिक्षित लोगों में इस विकृति के लक्षण विकसित होते हुए नहीं पाये गये हैं। जो इस ओर इशारा करते हैं कि शोध द्वारा उपलब्ध जानकारी अभी पर्याप्त नहीं है And सच्चार्इ का प्रकटीकरण जरूरी है। इसे और स्पष्ट करने के लिए हम अन्य विचारधाराओं का सहारा भी ले सकते हैं इनका वर्णन आगे की पंक्तियों में Reseller जा रहा है।
2. मनोगत्यात्मक कारक –
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड (1933, 1917) के According अपने शारीरिक And मानसिक विकास के दौर में All बच्चे कभी न कभी चिंता के अनुभव से गुजरते हैं And इससे निपटने के लिए वे इगो डिफेंस मेकेनिज्म का प्रयोग भी करते हैं। जब बच्चों के माता-पिता अथवा बड़ों के द्वारा किन्हीं उपायों से इन बच्चों के इड की वजह से उत्पन्न इच्छाओं And आवेगों को नियंत्रित कर उन्हें स्वाभाविक Reseller से अभिव्यक्त करने से रोका जाता है तो उनमें तंत्रिका-तापी चिंता उत्पन्न (न्यूरोटिक एन्जाइटी) हो जाती है। जब यही बच्चे वास्तविक खतरे का अनुभव करते हैं तक उन्हें वास्तविक चिंता (रियल एन्जाइटी) का अनुभव होता है। And इन्हीं बच्चों को नैतिक चिंता (मोरल एन्जाइटी) का अनुभव तब होता है जब उन्हें उनके इड के द्वारा उत्पन्न इच्छाओं And आवेगों की अभिव्यक्ति के लिए दण्डित Reseller जाता है।
मनोगत्यात्मक कारण आधारित व्याख्या : जब बाल्यावस्था ंिचंता हल हुए बिना ही रह जाती है।
फ्रायड के According जब Single बालक न्यूरोटिक अथवा नैतिक चिंता की सामान्य से अधिक मात्रा से ग्रसित होता है तब उसे सामान्यीकृत चिंता होने की सारी परिस्थितियॉं विनिर्मित हो जाती हैं। विकास की शुरूआती अवस्थाओं के अनुभव बाालक में अप्रासंगिक Reseller से उच्च चिंता उत्पन्न कर सकते हैं। उदारहरण के लिए जब Single बालक को शैशवावस्था में भूख लगने पर दूध के लिए मचलने And हर बार रोने पर दण्ड स्वReseller नितंबों पर आघात Reseller जाता है तो ऐसा बालक दो वर्ष की विकाSeven्मक अवस्था में दण्ड मिलने पर अपनी पैंट गीली कर देता है तथा घुटने पर चलने की अवस्था में अपने जननांगों को प्रदर्षित करता है। इसके परिणामस्वReseller अन्तत: बालक इस निष्कर्ष पर पहुॅंच सकता है कि उसके इड की इच्छायें And आवेग काफी हानिकारक हैं और उसकी वजह से उसमें इन इच्छाओं अथवा आवेगों के उत्पन्न होने पर अकुलाहक चिंता उत्पन्न होने की प्रवृत्ति जन्म ले सकती है।
विपरीत नजरिये से यदि देखें तो ऐसे बच्चे का इगो Safty प्रक्रम (र्इगो डिफेंस मेकेनिज्म) इतना कमजोर होता है कि वह सामान्य चिंता का भी सक्षमता के साथ सामना नहीं कर पाता है। फ्रायड के According वे बच्चे जिन्हें कि उनके माता पिता के द्वारा अत्यधिक Safty प्रदान की जाती है। जिनकी छोटी से छोटी And बड़ी से बड़ी कइिनाइयों को माता-पिता स्वयं हल करते हैं And उनका बचाव करते हैं, विपरीत परिस्थितिओं का सामना करने का अवसर ही नहीं मिल पाता जिसके फलस्वReseller उनमें Single मजबूत And प्रभावी Safty प्रक्रम विकसित ही नहीं हो पाता है। जब वयस्क जीवन में उन्हें कठिन परिस्थितियों से उनका सामना होता है तब वे उससे निपट ही नहीं पाते हैं, उनका र्इगो Safty प्रक्रम काफी कमजोर होता है And वे अपनी चिंता को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं।
हालांकि प्राय: मनोगत्यात्मक थ्योरिस्ट सामान्यीकृत चिंता की व्याख्या करने के फ्रायड के कुछ विशिष्ट तरीकों से अAgreeि जताते हैं परन्तु उनमें से बहुत से इस बात से भी काफी Agree हैं कि इस विकृति के चिन्हों को बच्चों And उनके माता-पिता के बीच प्रारंभिक संबधों में पनपी असहजता में ढूॅंढ़ा जा सकता है (षार्फ, 2012)। इन मनोगत्यात्मक व्याख्याओं को अनुसंधानकर्ताओं ने बहुत से तरीकों से जॉंचने परखने का प्रयास Reseller है। ऐसे ही Single प्रयास में अनुसंधानकर्ताओं ने यह परिकल्पना कि सामान्यीकृत चिंता विकृति के रोगी चिंता से बचने के लिए Safty प्रक्रम अपनाते हैं, कि जॉंच की। इसके तहत उन्होंने First से ही इस रोग से ग्रसित व्यक्तियों से योजना के तहत उन घटनाओं पर बात करने के लिए कहा जिनसे उनमें First काफी व्याकुलतादायक चिंता उत्पन्न हो जाती थी। परिणाम में ज्यादातर रोगियों द्वारा उन घटनाओं को भूल जाने की बात, तुरंत की गयी बात को भी भूल जाने की बात अनुक्रिया के Reseller में कही गयी। इसके अलावा कुछ रोगीे तो बातचीत की दिशा को ही बदल दिया। फ्रायड के According पीड़ादायक घटनाओं को भूल जाना चिंता दूर करने हेतु प्रयुक्त Reseller गया Single Safty प्रक्रम होता है जिसे दमन (रिप्रेशन) कहा जाता है। कुछ रोगी तो इस Safty प्रक्रम को इस सीमा तक अपनाते हैं कि वे नकारात्मक संवेगों के अनुभव को ही सिरे से नकार देते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें तो जीवन में इस प्रकार का अनुभव कभी हुआ ही नहीं ।
Second तरह के प्रयासों में अनुसंधानकर्तो ने ऐसे बच्चों पर अपना ध्यान केंद्रित Reseller है जिन्हें उनके इड की इच्छाओं And आवेगों की अभिव्यक्ति की वजह से बचपन में अतिरंजित दण्ड दिया गया। बुष, मिलॉर्ड And शियर (2010) के According ऐसे बच्चों जीवन की अन्य अवस्थाओं में व्याकुलतापरक चिंता की काफी मात्रा से ग्रस्त रहते हैं। इसके अलावा मेनफ्रेडी And उनके सहयोगियों (2011) अपने शोध से यह प्रमाणित Reseller है कि जिन बच्चों को बचपन में उनके माता-पिता द्वारा काफी Windows Hosting जीवन जीने की सुविधा मिलती है उनमें आगे चलकर सामान्यीकृत चिंता विकसित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
यह सत्य है कि उपरोक्त वर्णन में जिन अध्ययनों की Discussion की गयी है वे सामान्यीकृत चिंता विकृति में मनोगत्यात्मक कारकों की वकालत करने में सफल रहे हैं परन्तु बहुत से ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने इन अध्ययनों की प्रामाणिकता पर कुछ अनुत्तरित प्रश्नों And संभावनाओं के माध्यम से सवाल उठाये हैं। उनके According चिंता उत्पन्न करने वाली घटनाओं के संदर्भ में चिकित्सा की शुरूआत में ही चिकित्सक द्वारा सीधे सवाल पूछे जाने पर भूल जाने अथवा बातचीत की दिशा मोड़ने की रोगी द्वारा की गयी प्रतिक्रिया स्वाभाविक भी हो सकती है, क्योंकि इस बात की पूरी संभावना हो सकती है कि वे जानबूझकर जीवन की नकारात्मक घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय जीवन के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाह रहे हों। अथवा चिकित्सक में उनका विश्वास उत्पन्न होने से पूर्व इस पर बात शुरू करना उन्हें व्याकुल करता हो। आइये अब इस चिंता विकृति के विकसित होने के कारण को Humanतावादी नजरियें से समझने का प्रयास करते हैं।
3. Humanतावादी कारक –
Humanतावादी सिद्धान्तनिर्माताओं का सर्वाधिक जोर सदैव स्वाभाविकता And सहज प्रवृत्ति पर रहा है। उन्होंने सदैव परिस्थितियों And दैहिक दशाओं में Humanीय इच्छाशक्ति, अनुभव करने की शक्ति And आत्मशक्ति में सदैव Humanीय इच्छाशक्ति उसके चेतन अनुभवों एंव आत्मशक्ति को ही महत्व दिया है। उनके According प्रत्येक व्यक्ति में स्वयं को जानने अपनी संभावनाओं को तलाशने And उनका विकास करने की संवारने की स्वाभाविक मूलवृत्ति होती है। जब तक व्यक्ति अपनी इस स्वभाव पर नैसर्गिक And र्इमानदार दृष्टि रखता है तथा वातावरण And परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता है तब तक उसका स्वस्थ मानसिक विकास होता रहता है। जब व्यक्ति स्वयं को स्वीकारने की मूलवृत्ति के बजाय सामाजिक वातवरण And परिस्थितियों के कारण सत्य को नकारने लगता है तथा अपने सहज ंिचंतन, भाव And व्यवहार पर ध्यान नहीं देता है, तो इससे उसमें कालान्तर में कुंठा का भाव जन्म लेता है जो उसमें चिंता को बढ़ावा देता है And जब व्यक्ति को उसकी संभावना का And उनकी वास्तविकता का ज्ञान नहीं हो पाता है तथा सहज प्रवृत्ति की विपरीत दिशा में चल पड़ता है तो उसमें सामान्यीकृत चिंता विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है And वह उससे ग्रस्त हो जाता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स ने बच्चों में इस चिंता विकृति के विकसित होने को कारणों को Humanतावादी नजरिये से काफी उत्तम ढंग से स्पष्ट Reseller है। उनके According वे बालक जिन्हें बचपन में बड़ों के द्वारा सहज Reseller से विकसित होने हेतु शर्तरहित सकारात्मक सम्मान (अनकंडीशनल पॉजिटिव रिगार्ड) नहीं प्राप्त होता है वे आगे चलकर स्वयं के क्रूर आलोचक हो जाते हैं उनमें अपने फैसलों की उपयुक्तता पर भरोसा नहीं होता है। तथा वे अपने मूल्यॉंकन काफी कठोर मानकों पर करते हैं। अपने इन मानकों And मानदण्डों पर खरा उतरने के लिए वे अपने सहज स्वभाव का तिरस्कार करते हैं अपने सत्य विचारों And भावनाओं पर ध्यान नहीं देते ये उन्हें अपने लक्ष्यों को हासिल करने में बाधा प्रतीत होते हैं। अपनी सहज प्रवृत्ति का इस सीमा तक तिरस्कार करते रहने से उनमें तीव्र चिंता उत्पन्न होती रहती है जो कि आगे चलकर दीर्घ And स्थायी चिंता में बदल जाती है And सामान्यीकृत चिंता का स्वReseller ग्रहण कर लेती है। आइये अब सामान्यीकृत चिंता के संज्ञानात्मक कारकों के बारे में जानें।
4. संज्ञानात्मक कारक –
सामान्यीकृत चिंता विकृति की कारणात्मक व्याख्या संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकों के द्वारा संज्ञान में होने वाली संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के आधार पर की गयी है। संज्ञानात्मक प्रक्रियाओ में व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त चिंतन प्रक्रिया, समस्या-समाधान प्रक्रिया, उसका प्रत्यक्षण, अवधान, स्मृति आदि आते हैं। इन मानसिक प्रक्रियाओं का प्रयोग जब व्यक्ति अपअनुकूलित तरीके से करता है या Second Wordों में उसमें अपअनुकूलित स्वभाव विकसित हो जाता है तब उसके मनोरोगी होने की संभावना बढ़ जाती है। संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकों के According सामान्यीकृत चिंता विकृति के विकसित होने के पीछे व्यक्ति का नकारात्मक चिंतन, विकृत विश्वास, धारणायें And मान्यतायें होती हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एलबर्ट एलिस (2011) के According बहुत से व्यक्ति अपने जीवन में अतार्किक And अविवेकपूर्ण धारणाओं द्वारा निर्देशित होते हैं जो कि उन्हें जीवन की घटनाओं And सामान्य परिस्थितियों में भी अनुपयुक्त ढंग से व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैंं। एलिस ने इन्हे मूल अविवेकपूर्ण धारणायें (बेसिक इर्रेशनल बिलीफ) कहकर सम्बोधित Reseller है। And वह दावा करते हैं कि सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त लोगों में निम्नांकित प्रकार की दृढ़ And अविवेकपूर्ण धारणायें होती हैं ।
Single मनुष्य के लिए अत्यंत जरूरी है कि उसके समुदाय के प्रत्येक महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा उसे स्नेह, अपनापन And अनुमोदन प्राप्त हो। जब कोर्इ जैसा चाहता, व पसन्द करता है, वैसा उस तरीके से नहीं होता है तो यह स्थिति बहुत दुखदायक And दुर्घटनास्वReseller है। यदि किसी को स्वयं को मूल्यवान समझना है तो उसे पूर्ण Reseller से योग्य, उपयुक्त And All क्षेत्रों उपलब्धि हासिल करने वाला होना चाहिए। एलिस कहते हैं कि वे व्यक्ति जिनकी धारणाये And मान्यतायें उपरोक्त प्रकार की होती हैं उनका सामना किसी तनावपूर्ण परिस्थिति से होता है तो वे उसे परिस्थिति के प्रति नकारात्मक अनुक्रिया ही देते हैं Second Wordों में उनकी इसी प्रकार की धारणाओं की वजह से वे ऐसी परिस्थितियॉं जो कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिणाम लाती हैं जैसे कि नर्इ नौकरी लगना, जीवन साथी से पहली भेंट, कोर्इ परीक्षा आदि से सामना होने पर काफी तनाव में आ जाते हैं And सामान्य लोगों के समान इनका सामना करने के बावजूद पूर्ण Reseller से त्रुटिरहित कार्य निष्पादन करने की स्वयं से अतिरंजित अपेक्षा की वजह से चिंताग्रस्त हो जाते हैं। उनका प्रत्यक्षण भी नकारात्मक हो जाता है And वह इन घटनाओं को इतने खतरनाक नजरिये से देखते हैं कि इनके प्रति असहज प्रतिक्रिया देते हैं And भय भी महसूस करने लगते हैं। इन्हीं धारणाओं, विश्वासों And मान्यताओं से चिपके रहने के कारण यही चिंता लम्बे समय तक बनी रहने पर सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त हो जाते हैं And उन्हें इसके उपचार के लिए मनोचिकित्सक का सहारा लेना पड़ता है।
प्रख्यात संज्ञानात्मक सिद्धान्तवादी मनोवैज्ञानिक एरोन बेक कहते हैं कि सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त व्यक्ति अपने मन में ऐसी मूक धारणायें रखते हैं जो कि इंगित करती हैं कि वे भयानक खतरे में हैं। उदाहरण के लिSingle्लार्क And बेक (2012) कुछ धारणाओं को सामने रखते हैं जैसे – ‘Single परिस्थिति अथवा Single व्यक्ति तब तक अWindows Hosting है जब तक कि वह Windows Hosting साबित न हो जाये (A situation or a person is unsafe until proven to be safe)।’ या – ‘सर्वाधिक बुरा क्या हो सकता है इसकी कल्पना कर लेना हमेशा ही सबसे अच्छा है (It is always best to assume the worst)।’फेरारी And उनके सहयोगियों (2011) के According एलिस And बेक दोनों के ही प्रस्तावों के समय से ही अन्य मनोवैज्ञानिक And शोधाथ्र्ाी अपने अध्ययनों के आधार पर यह कहते रहे हैं कि सामान्यीकृत चिंता विकृति के रोगी भी विशेष Reseller से खतरे के सबंध में कुसमायोजी या अपअनुकूलित धारणाओं को अपने मन में धारण कर के रखते हैं। एलिस And बेक की व्याख्याओं केा आधार मानने के उपरान्त से ही सामान्यीकृत चिंता विकृति के विकास के कारकों की व्याख्या नये तरीके से की जाने लगी है आइये उन नये नजरिये के बारे में जानें।
सामान्यीकृत चिंता विकृति की नवीन संज्ञानात्मक व्याख्यायें- एलिस And बेक के विवेचनों के आधार पर कर्इ सामान्यीकृत चिंता विकृति की कर्इ नवीन व्याख्यायें हाल ही के वर्षों में नये तरीकों से की गयी है। इन नये तरीकों में तीन तरीके सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं- 1. मेटाकॉग्निटिव थ्योरी (Metacognitive theory), 2. अनिश्चितता सिद्धान्त की असहनशीलता (The intolerance of uncertainty theory) 3. परिहार सिद्धान्त (Avoidance theory)। इनका विस्तृत वर्णन निम्नांकित है –
मेटाकॉग्निटिव थ्योरी (Metacognitive theory)-एड्रियन वेल्स (2011) के द्वारा विकसित की गयी इस थ्योरी के According सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त लोग अपरोक्ष अथवा अव्यक्त Reseller में चिंता के संदर्भ में अपनी सकारात्मक And नकारात्मक विचार रखते हैं। सकारात्मक दृष्टि से वे इस विचार में विश्वास करते हैं कि जीवन में आने वाली चुनौतियों को सावधानी पूर्वक बेहतर मूल्यॉंकन में चिंता करना Single बेहतर तरीका है। And इस विचार पर विश्वास कर वे सतत् Reseller से चिंता ही करते रहते हैं। वहीं दूसरी ओर वे चिंता के संबंध में नकारात्मक विचारों को भी अपनी धारणाओं का हिस्सा बनाकर रखते हैं और चिंता के प्रति उनका यही नकारात्मक नजरिया मानसिक विकृति के विकास के द्वार खोल देता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा समाज ही उन्हें यह सिखाता है कि चिंता करना Single बुरी आदत है And यह हमारे मानसिक And शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। फलत: बार बार चिंता करने पर व्यक्ति अपनी चिंता करने की आदत के नकारात्मक परिणामों के प्रति अपने चिंतन में अतिसंवेदनशील हो जाता है And वह बहुत चिंता कर रहा है इस बात की भी वह चिंता करने लगता है, और उसे यह अपने नियंत्रण से बाहर प्रतीत होती है। इसका परिणाम उस व्यक्ति के जीवन में सामान्यीकृत चिंता विकृति के Reseller में सामने आता है।
सामान्यीकृत चिंता विकृति की इस व्याख्या को वेल्स (2011) And फेरारी (2010) द्वारा किये गये अध्ययनों के परिणामों से सकारात्मक बल And समर्थन मिलता है। अनिश्चितता सिद्धान्त की असहनशीलता (The intolerance of uncertainty theory)-सामान्यीकृत चिंता विकृति की Single अन्य नवीन प्रकार की व्याख्या जिसे कि अनिश्चितता सिद्धान्त की असहनशीलता के Reseller में समझाया गया है के According कुछ व्यक्तियों में सहनशीलता की इतनी कमी होती है कि वे इस जानकारी को कि उनके साथ भी जीवन में नकारात्मक घटनायें घट सकती हैं, यह जानते हुए कि ऐसा होने की संभावना काफी कम अथवा न के बराबर है इसको सहन नहीं कर पाते हैं।चॅूंकि जीवन में कौन सी घटना कब घटेगी यह पूर्णतया निश्चित नहीं होता है And घटनायें अनिश्चित तरीके से घटती हैं अतएव इन अनिश्चित घटनाओं के जितने भी उदाहरण ऐसे व्यक्तियों को मिलते जाते हैं वे उन्हें और भी चिंतिंत कर देते हैं और वे इस बात की चिंता करने लगते हैं कि आने वाली घटना निश्चित ही उनके लिए परेशानी का सबब बन जायेगी। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फिषर And वेल्स (2011) तथा डग्ज And उनके सहयोगियों (2010) के According सहनशीलता की ऐसी कमी And सतत् चिंता ऐसे व्यक्तियों को वो All जरूरी चीजें मुह्या कराती हैं जिससे सामान्यीकृत चिंता विकृति विकसित हो सके। कल्पना कीजिए कि आपने पहली बार नौकरी पाने के लिए आवेदन Reseller है And साक्षात्कार हो जाने के उपरान्त साक्षात्मकारकर्ताओं द्वारा कुछ दिनों के उपरान्त परिणाम बताने के लिए कहा है। ऐसे में परिणाम क्या होगा? यह सोच सोच कर आप परेशान अवश्य होंगे। यदि आप नकारात्मक घटनाओं के प्रति अतिसंवेदनशील हैं And इसकी अनिश्चितता से परेशान रहते हैं तो चिंता की यह परिस्थिति आप के लिए असहनीय हो जायेगी। यही स्थिति सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त व्यक्ति की भी होती है।
परिहार सिद्धान्त (Avoidance theory)- अंत में सामान्यीकृत चिंता विकृति की Single अन्य नये तरह की व्याख्या परिहार सिद्धान्त के द्वारा भी की जाती है। इस व्याख्या का श्रेय शोधाथ्र्ाी थॉमस बोरकोवेक को जाता है उनके According इस विकृति से ग्रस्त व्यक्ति के शरीर का उत्तेजन स्तर जिसे कि अंग्रेजी में एराउजल कहा जाता है सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं ज्यादा होता है। इस प्रकार के व्यक्तियों की हृदय गति, श्वसन दर, नाड़ी गति आदि तीव्र होती हैं। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों में अपने इस उत्तेजना स्तर को चिंता के द्वारा कम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। मनोवैज्ञानिक न्यूमेन And उनके सहयोगियों (2011) ने इस प्रवृत्ति के पीछे छिपे कारणों का विश्लेषण Reseller है उनके According बढ़े हुए शारीरिक उत्तेजन के कारण व्यक्ति में बेचैनी And तनाव बढ़ जाता है जिससे बचने के लिए ऐसे व्यक्ति ज्यों ही चिंता करना प्रारंभ करता है उसका ध्यान शरीर से हट जाता है And चिंता के संज्ञानात्मक पहलू की ओर केंद्रित हो जाता है। परिणाम स्वReseller तात्कालिक Reseller से यह चिंता उसकी शारीरिक उत्तेजना को शांत करने में सफल हो जाती है परन्तु दीर्घावधि में ऐसा करने की आदत अपअनुकूलित होने के कारण व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। फलत: व्यक्ति सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त हो जाता है।
5. जैविक कारक –
जैविक मनोवैज्ञानिकों का विश्वास है कि सामान्यीकृत चिंता विकृति जैविक कारकों की वजह से होती है। बरसों से मनोवैज्ञानिक इसका अध्ययन परिवारों के बीच रक्त संबंधों के शोध के माध्यम से करते रहे हैं। इस के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक किसी को सामान्यीकृत चिंता विकृति हो जाने पर उसके परिवार अथवा रिश्तेदारों में किसे या कितने और व्यक्तियों को यह चिंता विकृति है अथवा हुर्इ थी इसका पता लगा कर यह जानने की कोशिश करते हैं कि कहीं यह आनुवांशिक तो नहीं है। क्योंकि यदि इस विकृति का कारण जैविक आनुवांशिकता है तो रक्त संबंधों में आने वाले अन्य व्यक्तियों में इसके पाये जाने की संभावना अथवा भविष्य में होने की संभावना स्वाभाविक Reseller से बढ़ जायेगी। And इस प्रकार जैविक संबंधियों में इस विकृति के पनपने की संभावना दर भी समान होगी। स्कीनले And उनके सहयोगियों (2011) ने अपने अनुसंधानों द्वारा यह प्रमाणित भी Reseller है कि जैविक संबंधियों में सामान्य लोगों की अपेक्षा इस विकृति के पनपने की दर कहीं ज्यादा होती है। इस विकृति से ग्रस्त 15 प्रतिशत रक्त संबंधियों में अथवा जैविक संबंधियों में यह विकृति पायी जाती है जो अन्यों में पाये जाने वाली विकृति से काफी ज्यादा है। यह जैविक निकटता जितनी ही अधिक होती है विकृति के पनपने की संभावना भी उतनी ही अधिक होती है।
हाल ही के वर्षों में मार्टिन And नेमरॉफ (2010) जैसे जैवशास्त्रियों ने सामान्यीकृत चिंता विकृति के जैविक कारकों से Addedव के संदर्भ में खोजें की हैं And प्रमाण जुटाये हैं। इस प्रकार की First खोज सन् 1950 में हुर्इ थी, जिसमें शोधार्थियों ने बेन्जोडाइएजेपीन (Benzodiazepines) नामक औषध को चिंता को कम करने में सक्षम पाया था। बेन्ज्ाोडाइएजेपीन स्वयं में औषधियों का Single परिवार है जिसमें एल्प्राजोलम (alprazolam), लोराजेपाम (lorazepam), And डाइजेपॉम (diazepam) जिसे क्रमश: अन्य नामों जैनैक्स (xanax), एटीवाम (ativam) And वैलियम (valium) कहा जाता है सम्मिलित होती हैं। हालॉंकि शुरूआत में शोधाथ्र्ाी यह जानने में असफल रहे कि बेन्जोडाइएजेपीन किस प्रकार चिंता स्तर में कमी लाती है। परन्तु बाद में उन्नत रेडियोSingle्टिव तकनीकी के विकास से इस बात का पता चला कि ब्रेन में कुछ ऐसे स्थान हैं जो कि बेन्जोडाइएजेपीन द्वारा प्रभावित होते हैं। स्पष्ट Reseller में बे्रन में कुछ ऐसे न्यूरोन होते हैं जिनमें कि बेन्जोडाइएजेपीन के रिसेप्टर पाये जाते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने आखिरकार कुछ ऐसे न्यूरोट्रांस्मीटर का पता लगा लिया जिन्हें कि बेन्जोडाइएजेपीन रिसेप्टर के द्वारा रिसीव Reseller जाता है। इस प्रकार के न्यूरोट्रांस्मीटरों में गाबा (GABA)- गामा अम्यूनोब्यूटॉयरिक एसिड(Gama aminobutyric acid) नामक न्यूरोट्रांस्मीटर मुख्य है। अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक इस गामा अम्यूनोब्यूटॉयरिक एसिड की मात्रा में कमी अथवा बढ़ोत्तरी की दशा में चिंता की अनुक्रिया प्रभावित होती है। Second “ाब्दों में जब इस न्यूरोट्रांस्मीटर को रिसीव करने वाले बेन्जोडाइएजेपीन रिसेप्टर की मात्रा में कमी हो जाती है या इनकी इस न्यूरोट्रांस्मीटर को रिसीव करने की क्षमता में कमी हो जाती है तो चिंता अनुक्रिया के फीडबैक सिस्टम पर इसका सार्थक प्रभाव पड़ने लगता है। परिणामस्वReseller व्यक्ति इसके परिणाम बहुत बार सामान्यीकृत चिंता विकृति के Reseller में सामने आते हैंं। हाल ही में हुये अन्य शोध यह दर्शाते हैं कि सामान्यीकृत चिंता विकृति की यह न्यूरोट्रांस्मीटर आधारित व्याख्या इतनी सरल भी नहीं है यह अत्यंत ही जटिल है क्योंकि कुछ अध्ययनों में चिंता की अनुक्रियाओं में मस्तिष्क के न्यूरोसर्किट में सम्मिलित मस्तिष्क के अन्य हिस्सों की भागीदारी होने के भी प्रमाण प्राप्त हुये हैं इन हिस्सों में प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, एन्टीरियर सिंगुलेट, And एमाइग्डेला प्रमुख हैं। स्कीनले And उनके सहयोगियों (2011) द्वारा किये गये हाल ही के अध्ययन यह दर्शाते हैं कि मस्तिष्क के इन हिस्सों से Added बे्रन सर्किट सामान्यीकृत चिंता विकृति के मरीजों में अनुपयुक्त तरीके से अनुक्रिया करता है जो कि यह प्रमाणित करता है कि इनका भी इस विकृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है।
6. व्यवहारात्मक कारक-
व्यवहारात्मक मनोवैज्ञानिकों के According सामान्यीकृत चिंता विकृति फोबिया नामक चिंता विकृति के समान ही सीखी गयी विकृति होती है। इस विकृति के सीखने या पनपने के पीछे क्लासिकी अनुबंधन (क्लासिकल कन्डीशनिंग) का सिद्धान्त कार्य करता है इसके According व्यक्ति व्यक्ति चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति के प्रति जो अनुक्रिया स्वाभाविक Reseller से करता है उसे ही सामान्य उद्दीपक के प्रति भी एसोसियेसन के सिद्वान्त के आधार पर करना सीख जाता है। हालांकि ऐसा First बार में ही नहीं हो जाता है बल्कि बार बाद चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति की उत्पत्ति के समय में ही सामान्य उद्दीपक की उपस्थिति होने पर व्यक्ति उस Second उद्दीपक को भी चिंता से ही Added हुआ समझता है तथा उसके प्रति भी चिंता की अनुक्रिया करना सीख लेता है।
क्लासिकी अनुबंधन के अलावा मॉडलिंग भी इस चिंता विकृति के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है जब चिंता के स्वभाव वाला व्यक्ति चिंता से ग्रस्त अन्य व्यक्तियों को सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त देखता है तब उसे इस बात का प्रमाण मिल जाता है कि यह समस्या केवल उसे ही नहीं है बल्कि अन्य लोगों को भी है And वे भी उससे निपट नहीं पा रहे हैं फलत: उस व्यक्ति में भी स्वयं अपनी चिंता से पीछा नहीं छुड़ा पाने की मनोदशा विकसित हो जाती है और उसकी सामान्यीकृत चिंता विकृति और भी गंभीर हो जाती है। इसके अलावा उद्दीपक सामान्यीकरण (stimulus generalization) की प्रक्रिया सामान्यीकृत चिंता विकृति की उत्पत्ति में And विकास में अन्य सिद्धान्तों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उद्दीपक सामान्यीकरण से तात्पर्य उद्दीपक से मिलते जुलते अन्य उद्ीपकों के प्रति भी समान अनुक्रिया करने से होता है। Meansात् यदि व्यक्ति चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों से मिलती जुलती अन्य परिस्थितियों के प्रति भी जो कि चिंता उत्पन्न करने की दृष्टि से उतनी गंभीर परिस्थितियॉं वास्तव में नहीं होती हैं, चिंता की अतिरंजित प्रतिक्रिया बार बार करता है तो यह उद्दीपक सामान्यीकरण का उत्तम उदाहरण होगा। व्यवहारवादियो के According इसी सिद्धान्त के तहत लोगों में सामान्यीकृत चिंता विकृति का विकास होता है।
सामान्यीकृत चिंता विकृति का उपचार
उपरोक्त पंक्तियों में आपने अभी तक सामान्यीकृत चिंता विकृति के कारणों के संबंध में ज्ञान प्राप्त Reseller है अपनी समझ को बढ़ाया है। आइये अब इस बिन्दु के अंतर्गत सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार की कतिपय प्रविधियों के बारे में ज्ञान प्राप्त करें। मनोगत्यात्मक प्रविधियॉं (psychodyanamic techniques)-सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार में मनोगत्यात्मक चिकित्सकों द्वारा प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड द्वारा प्रतिपादित फ्री-एसोशियेसन, इन्टरप्रिटेशन ऑफ ट्रांसफेरेन्स, रेजिस्टेंस And स्वप्न विश्लेषण तकनीक का सर्वाधिक उपयोग Reseller है। फ्री-एसोसियेशन तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति की चिंता से जुड़ें पहलुओं के संबंध में रोगी की समझ को बढ़ाने के लिए उदासीन उद्दीपकों के माध्यम से चिंता के कारणों का पता लगाया जाता है तथा कारण पता लगने पर उन्हें रोगीे को समझाया जाता है। फ्रायड का विश्वास था कि सामान्यीकृत चिंता विकृति जैसी चिंता विकृति न्यूरोटिक चिंता का Single प्रकार है And यह इड के आवेगों पर र्इगो के नियंत्रण के कम होने से पनपती है। जब व्यक्ति को यह समझा दिया जाता है कि उसकी चिंता किन कारणों से उत्पन्न हुर्इ है और वह किस प्रकार अपने र्इगो की शक्ति को बढ़ा सकता है तब उसकी चिंता कम होने लगती है। फ्री- एसोसियेशन के समान ही ट्रांस्फेरेशन का अध्ययन, रेजिस्टेंस का विश्लेषण And स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा भी रोगी की विकृति के संदर्भ में अन्तदृष्टि को खोलने का कार्य Reseller जाता है। अन्तर्दृष्टि के विकास से व्यक्ति खुद-ब-खुद ही विकृति के रहस्यों को समझ जाता है फलत उसकी चिंता में कमी आती है।
Humanतावादी एप्रोच आधारित उपचार (humanistic approach based treatment)-Humanतावादी विचारधारा पर आधारित प्रविधियों में प्रसिद्व Humanतावादी मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स के द्वारा प्रतिपादित कलायंट केंद्रित चिकित्सा प्रविधि (client centered therapy) सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रविधि है। हालांकि यह प्रविधि व्यवहारात्मक प्रविधियों की तुलना में बेहतर साबित नहीं होती है परन्तु फिर भी यह चिंता को कम करने में कुछ हद तक सफल अवश्य हुर्इ है। इस प्रविधि के अन्तर्गत Humanतावादी चिकित्सक रोगी को बिना शर्त सकारात्मक सम्मान (अन्कंडीशलन पॉजिटिव रिगार्ड) देने के सिद्धान्त के तहत व्यक्ति को Single ऐसा स्वीकारात्मक And आरामदायक वातावरण उपलब्ध कराते हैं जिसमें व्यक्ति स्वयं को शांत And रिलैक्स करने में सहज ही सक्षम हो पाता है And इस शान्ति And रिलेक्सेशन में उसे अपनी चिंता के कारणों को बेहतर ढंग से समझने And समाधान ढॅूंढ़ने का समुचित अवसर मिलता है जिससे उसकी चिंता काफी हद तक कम हो पाती है। मनोचिकित्सकों के According यह चिकित्सा विधि चिंता को कुछ हद तक कम करने में अवश्य सफल रहती है परन्तु इसका प्रभाव प्लेसिबो प्रविधि के समान ही रहता है तथा तात्कालिक ही रहता है Meansात कुछ समय उपरान्त व्यक्ति पुन: चिंता की समस्या से ग्रस्त हो जाता है।
संज्ञानात्मक चिकित्सा (cognitive therapy)- संज्ञानात्मक चिकित्सा सामान्यीकृत चिंता विकृतियों का उपचार रोगी के विचारों, विश्वासों, धारणाओं And मान्यताओं में परिवर्तन लाने के माध्यम से करती है। इसके अन्तर्र्गत प्रसिद्ध संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक एरोन बेक And एल्बर्ट एलिस द्वारा प्रतिपादित चिकित्सा विधियों का उपयोग Reseller जाता है। मनोवैज्ञानिक एरोन बेक ने बेक-संज्ञानात्मक चिकित्सा प्रविधि का प्रतिपादन Reseller है यह चिकित्सा विधि रोगी के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से प्रतिस्थापित कर रोगी की सामान्यीकृत चिंता का निवारण करती है। यह चिकित्सा प्रविधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि व्यक्ति को चिंता विकृति होने के लिए उसके नकारात्मक विचार जिम्मेदार होते हैं जिनकी उत्पत्ति के पीछे रोगी के पास कोर्इ वाजिब तर्क नहीं होता है इनका स्वReseller भी ऑटोमेटिक होता है Meansात ये रोगी के नियंत्रण में नहीं होते हैं And सतत् Reseller से उसके चिंतन का हिस्सा बने रहते हैं। बेक संज्ञानात्मक चिकित्सा के द्वारा इन्हे सकारात्मक विचारों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। जिससे व्यक्ति की चिंता काफी हद तक नियंत्रण में आ जाती है।
एलिस द्वारा प्रतिपादित रेशनल इमोटिव थेरेपी (Rational emotive therapy) का उपयोग भी इस विकृति के उपचार हेतु Reseller जाता है। यह चिकित्सा विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि यदि रोगी के चिंता के संबंध में विकृत धारणाओं And मान्यताओं को उपयुक्त तर्क के माध्यम से चुनौति दी जाये तो उसकी चिंता के संबंध में समझ बढ़ती है And चिंता का सामान्यीकरण करने की प्रवृत्ति घटती है।
जैविक उपचार प्रविधियॉं (Biological treatment methods)- जैविक उपचार विधियों में एन्टी एन्जाइटी औषधियॉें को सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार में सर्वाधिक सफल पाया गया है। हैडली And उनके सहयोगियों (2012) द्वारा किये गये अध्ययन के According इस विकृति के उपचार हेतु बेन्जोजाइएजेपीन का प्रयोग काफी कारगर पाया गया है इसके प्रयोग से चिंता को प्रभावित करने वाले Single प्रमुख न्यूरोट्रांस्मीटर गामा अम्यूनोब्यूटॉयरिक एसिड के प्रकार्यों पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है फलत: सामान्यीकृत चिंता विकृति को कम करने में यह सकारात्मक Reseller से सार्थक भूमिका निभाता है। बाल्डविन And उनके सहयोगियों (2011) तथा कोमर And उनके सहयोगियों (2011) के According हाल के दिनों में एन्टीएन्जाइटी औषधियों के अलावा एन्टीसाइकोटिक औषधियॉं भी समान Reseller से सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार में सफल पायी गयी हैं।
इन औषधियों के प्रयोग के अलावा रिलेक्सेषन प्रषिक्षण And बायोफीडबैक प्रशिक्षण जैसी प्रविधियों को भी जैविक उपचार अथवा मेडिकल उपचार की श्रेणी में रखा जाता है जिसके अन्तर्गत सामान्यीकृत चिंता विकृति से ग्रस्त व्यक्ति को चिंता होने पर कैसे रिलेक्स होने का प्रषिक्षण दिया जाता है तथा बायोफीडबैक प्रषिक्षण के माध्यम से अपने अनैच्छिक अनुक्रियाओं जैसे कि पल्स रेट, हृदय गति And श्वसन दर आदि पर आत्मशक्ति के माध्यम से नियंत्रण करना सिखलाया जाता है।
व्यवहारात्मक चिकित्सा (Behavioural treatment)- व्यवहार चिकित्सा प्रविधियों में उन All चिकित्सा प्रविधियों का प्रयोग सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार हेतु Reseller जाता है जिन्हें कि फोबिया के इलाज हेतु उपयोग में लाया जाता है। जैसे कि असंवेदीकरण (डीसेन्सीटाइजेशन), फ्लडिंग, मॉडलिंग आदि। असंवेदीकरण प्रविधि में चिंता उत्पन्न करने वाले All उद्दीपक परिस्थितियों के प्रति व्यक्ति को असंवेदित होना सिखलाया जाता है इसके लिए उसे रिलेक्सेशन प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सामान्य तौर पर इसके अन्तर्गत चिंता को दूर करने के लिए क्रमबद्ध असंवेदीकरण प्रविधि का उपयोग Reseller जाता है। इसके अलावा कुछ विशेष परिस्थितियों में फ्लडिंग तकनीक का भी इस्तेमाल Reseller जाता है इसके अन्तर्गत व्यक्ति को तब तक चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में रखा जाता है जब तक कि उसकी चिंता में कमी न आ जाये। चूॅंकि इस प्रविधि में चिंता की बाढ़ सी आ जाती है अतएव इसे फ्लडिंग नाम से जाना जाता है। स्पष्ट है कि सामान्यीकृत चिंता विकृति के उपचार की बहुत सी प्रविधियॉं प्रचलित हैं परन्तु मनोवैज्ञानिकों के According अभी भी इस विकृति का पूर्णResellerेण निराकरण कर देने में समर्थ विधि को खोजा जाना अभी बाकी है।