सांख्य दर्शन का परिचय And योग
सांख्य दर्शन परिचय-
सॉख्य दर्शन के प्रणेता कपिल है यहॉ पर सांख्य Word अथवा ज्ञान के Means में लिया गया है सांख्य दर्शन में प्रकृति पुरूष सृष्टि क्रम बन्धनों व मोक्ष कार्य कारण सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन Reseller गया है इसका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है।
1. प्रकृति-
साख्य दर्शन में प्रकृति को त्रिगुण को इन तीन गुणों को सम्मिलित Reseller से त्रिगुण की संज्ञा दी गयी सांख्य दर्शन में इन तीन गुणो कों सूक्ष्म तथा अतेन्द्रिय माना गया सत्व गुणो का कार्य सुख रजोगुण का कार्य लोभ बताया गया सत्व गुण स्वच्छता And ज्ञान का प्रतीक है यह गुण उध्र्वगमन करने वाला है। इसकी प्रबलता से पुरूष में सरलता प्रीति,श्रदा,सन्तोश And विवेक के सुखद भावो की उत्पत्ति होती है।
रजोगुण दुख अथवा अशान्ति का प्रतीक है इसकी प्रबलता से पुरूष में मान,मद,द्वेश,तथा क्रोध भाव उत्पन्न होते है।
तमोगुण दुख And अशान्ति का प्रतीक है यह गुण अधोगमन करने वाला है तथा इसकी प्रबलता से मॅुह की उत्पत्ति होती है इस मोह से पुरूष में निद्वा तन्द्वा प्रसाद,आलस्य,मुर्छा,अकर्मण्यता Meansवा उदासीनता के भाव उत्पन्न होते है सॉख्य दर्शन के According ये तीन गुण Single Second के विरोधी है सत्व गुण स्वच्छता And ज्ञान का प्रतीक है तो वही तमो गुण अज्ञानता And अंधकार का प्रतीक है रजो गुण दुख का प्रतीक है तो सत्व गुण सुख का प्रतीक है परन्तु आपस मे विरोधी होने के उपरान्त भी ये तीनों गुण प्रकृति में Single साथ पाये जाते है साख्य दर्शन में इसके लिए तेल बत्ती व दीपक तीनो विभिन्न तत्व होने के उपरान्त भी Single साथ मिलकर प्रकाश उत्पन्न करते है ठीक उसी प्रकार ये तीन गुण आपस मे मिलकर प्रकृति मे बने रहते है
2. पुरूष –
सॉख्य दर्शन प्रकृति और पुरूष की स्वतन्त्र सत्ता पर प्रकाश डालता है प्रकृति जड And पुरूष चेतन है । यह प्रकृति सम्र्पूण जगत को उत्पन्न करने वाली है पुरूष चेतन्य है परम तत्व आत्मा तत्व है यह पुरूष समस्त ज्ञान एव अनुभव को प्राप्त करता है प्रकृति And प्राकृतिक पदार्थ जड होने के कारण स्वयं अपना उपभोग नही कर सकते इनका उपभोग करने वाला यह पुरूष प्रकृति के पदार्थ इस पुरूष में सुख दुख की उत्पत्ति करते है जब इस पुरूष को ये पदार्थ प्राप्त होते है तब यह सुख का अनुभव करता है परन्तु जब ये पदार्थ दूर होते है तब यह पुरूष दुख की अनुभूति करता है। साख्य दर्शन उन आध्यात्मिक स्वभाव के ज्ञानी पुरूषों पर भी प्रकाश डालता है जो सदैव इन दुखों से परे रहकर मोक्ष की इच्छा करते है
3. सृष्टि क्रम –
साख्य दर्शन में सृष्टि क्रम पर प्रकाश डाला गया है तथा प्रकृति से सवFirst महतत्व अथवा बुद्वि की उत्पत्ति,तत्पष्चात अहंकार की उत्पत्ति And Seven्विक,राजनैतिक And तामसिक अहंकार के Reseller में अहंकारो के तीन भेद करते हुए Seven्विक अहंकार से मन की उत्पत्ति के क्रम को समझाया गया। इसी से ही ज्ञानेन्द्रियों And कर्मेन्द्रियो की उत्पत्ति को तथा अहंकार के तामसिक भाग से पचंतन्मात्राओं And पचं महाभूतो की उत्पत्ति को समझाया गया है । इस प्रकार 24 तत्वों के साथ 25 वे तत्व के Reseller में पुरूष तत्व को समझाया गया है। सांख्य दर्शन में described सृष्टि क्रम को इस प्रकार Historyित Reseller जा सकता है
प्रकृत़ि+पुरूष
↓
महत या बुद्वि
↓
अहंकार
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(Seven्विक) (राजसिक)
(तामसिक)
– 5 ज्ञानेन्द्रिय -5 महाभूत
– 5 कमेन्द्रिय -5 तन्मात्रा
– 1 मन
4. बंधन And मोक्ष-
साख्य दर्शन के According अज्ञानता के कारण पुरूष बंधन में बध जाता है जबकि यह पुरूष ज्ञान के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करता हे बंधक में बधा हुआ पुरूष आध्यात्मिक,आधिभौतिक And आधिदैविक दुखों से ग्रस्त्र रहता है में और मेरे भाव से युक्त होकर पुरूष इस बंधक में फस जाता है परन्तु जब पुरूष का विवेक ज्ञान जाग्रत होता है ज्ञानResellerी प्रकाश जब उसका अज्ञानताResellerी अन्धकार समाप्त हो जाता है। इस अवस्था वह विशुद्व चैतन्य (परमात्मा)का स्वReseller ग्रहण करने लगता है इसे ही मुक्ति And कैवल्य की संज्ञा दी गयी है
सांख्य दर्शन में योग का स्वReseller-
जिज्ञासु पाठको योग का Means परमतत्व (परमात्मा )को प्राप्त करना है इसलिए दर्शनो में भिन्न-भिन्न मार्गो का History Reseller गया है सांख्य दर्शन में पुरूष का उद्देश्य इसी परमतत्व को प्राप्त करना कहा गया है तथा परमात्मा प्राप्ति की अवस्था को मोक्ष,मुक्ति,And कैवल्य की संज्ञा दी गयी है जिस प्रकार योग दर्शन में पंचक्लेशो का वर्णन Reseller गया है तथा अविद्या,अस्मिता,राग,द्वेश व अभिनिवेष नामक इन पॉच क्लेशों को मुक्ति के मार्ग में बाधक माना गया है ठीक उसी प्रकार अज्ञानता को सांख्य दर्शन में मुक्ति में बाधक माना गया तथा इसके विपरित ज्ञान को सॉख्य दर्शन में मुक्ति का साधन माना गया अज्ञानता के कारण मनुष्यइस प्रकृति के साथ इस प्रकार जुड जाता है कि वह स्वयं में And प्रकृति में भेद ना कर पाना ही इसके बंधन का कारण है सांख्य दर्शन का मत है कि यद्यापि पुरूष नित्य मुक्त है Meansात स्वतन्त्र है।परन्तु वह अज्ञानता के कारण स्वयं को अचेतन प्रकृति ये युक्त समझने लगता है इस कारण वह दु:खी होता है तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याओं से घिरता है बन्धनों से युक्त होता है किन्तु आगे चलकर जब यह पुरूष ज्ञान प्राप्त करता हो तब वह अपने स्वReseller को पहचानने में सक्षम होता है और अनेक स्वReseller प्रकृति के स्वReseller भिन्न जानने में समर्थ होता है। तभी वह इस बंधन से मुक्त होता है यह में नही हू
Meansात में अचेतन विषय नही हू में जड नही हू,मे अन्त: करण नही हू यह मेरा नही है मै अहंकार से रहित हू मैं अहकार भी नही हॅू जब साधक साधना के माध्यम से इक ज्ञान की प्राप्ति करता है तब से उसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्थ होता है तथा इसी के माध्यम सक वह कैवल्य की प्राप्ति करता है।
सांख्य दर्शन में ज्ञान के माध्यम से पुरूष का अपने स्वReseller को जानकर प्रकृति से पृथक हो जाना है कैवल्य कहा गया है जिसे महर्र्षि पतंजलि योग दर्शन में described करते है।