सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण, महत्व And प्रभाव
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण
- साइमन कमीशन के बहिष्कार आन्दोलन के दौरान जनता के उत्साह को देखकर यह लगने लगा अब Single आन्दोलन आवश्यक है।
- सरकार ने मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अस्वीकार कर दी थी इससे असंतोष व्याप्त था।
- चौरी-चौरा कांड (1922) को SingleाSingle रोकने से निराशा फैली थी, उस निराशा को दूर करने भी यह आन्दोलन आवश्यक प्रतीत हो रहा था।
- 1929 की आर्थिक मंदी भी Single कारण थी।
- क्रांतिकारी आन्दोलन को देखते हुए गांधीजी को डर था कि कहीं समस्त देश हिंसक आन्दोलन की ओर न बढ़ जाए, अत: उन्होंने नागरिक अवज्ञा आन्दोलन चलाना आवश्यक समझा।
- देश में साम्प्रदायिकता की आग भी फैल रही थी इसे रोकने भी आन्दोलन आवश्यक था।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की पृष्ठभूमि
दिसम्बर, 1928 र्इ. में कलकत्ता में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ । उसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया तथा सरकार को यह अल्टीमेटम दिया गया कि 31 दिसम्बर तक नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार नहीं Reseller गया तो अहिंSeven्मक असहयोग आन्दोलन चलाया जाएगा ।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन
नेहरू रिपोर्ट में औपनिवेशिक स्वराज्य के लक्ष्य का History Reseller गया था, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इस मांग पर कोर्इ ध्यान नहीं दिया । परिणामस्वReseller 1929 र्इ. में लाहौर में रावी नदी के तट पर कांग्रेस का ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ ।
लाहौर अधिवेशन के महत्वपूर्ण निर्णय
- कांग्रेस विधान में पहली बार ‘स्वराज्य’ Word का Meansपूर्णता Reseller गया ।
- नेहरू रिपोर्ट में described All योजनाओं को समाप्त कर दिया गया ।
- All कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता अपनी सम्पूर्ण शक्ति भारत की पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करने की दिशा में लगाये ।
- All कांग्रेसी अथवा स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले लोग भविष्य में होने वाले चुनावों मे प्रत्यक्ष या परोक्ष Reseller से भाग नहीं लेंगे तथा वर्तमान में जो कौंसिलों के सदस्य हैं वे अपनी सदस्यता से त्याग-पत्र दे देंगे ।
- महासमिति को यह अधिकार दिया गया कि ब्रिटिश सरकार से यथासम्भव स्वेच्छापूर्वक किसी भी प्रकार का सहयागे न करे और Need पड़ने पर ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘चकबन्दी’ कार्यक्रम आरम्भ करें ।
- 26 जनवरी को प्रतिवर्ष स्वाधीनता दिवस मनाया जाय ।
- पूर्ण स्वराज्य की स्थापना हेतु ब्रिटिश सरकार से कोर्इ समझौता न Reseller जाय । लाहौर अधिवेशन के इन निर्णयों से 26 जनवरी को भारत के कोने-कोने में स्वाधीनता दिवस मनाया गया ।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
30 जनवरी, 1930 र्इ. को गाँधीजी ने अपने पत्र ‘यंग इण्डिया’ में वायसराय के सम्मुख ग्यारह माँगे रखीं और शासन को चेतावनी दी, कि यदि वह माँगें नहीं मानता है तो उसे Single सस्क्त आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए ।
1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का माँग पत्र (गाँधीजी की ग्यारह मांगे)-
- सम्पूर्ण मद्य-निषेध ।
- विनिमय की दर घटाकर Single शिलिंग चार पेन्स रख दी जाय ।
- जमीन का लगान आधा कर दिया जाये और उस पर कौंसिल का नियंत्रण रहे ।
- नमक कर को समाप्त कर दिया जाय ।
- सेना के खर्च में कम-से-कम पचास प्रतिशत की कमी हो ।
- बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों का वेतन आधार कर दिया जाय ।
- विदेशी कपड़ों के आयात पर निषेद कर दिया जाय ।
- Indian Customer समुद्र तट केवल Indian Customer जहाजों के लिए Windows Hosting रहे ।
- All राजनीतिक बन्दी छोड़ दिये जायें, All राजनीतिक मामले उठा लिये जायें और निर्वासित Indian Customerों को देश में वापस आने दिया जाय ।
- गुप्तचर पुलिस को उठा लिया जाय या उस पर जनता का नियन्त्रण रहे ।
- आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने के परवाने दिये जायें ।
सरकार ने इस मांगों पर कोर्इ ध्यान नहीं दिया । 14, 15 तथा 16 फरवरी को कांगे्रस की कार्यकारिणी समिति की बैठक साबरमती में हुर्इ । इस बैठक में कार्यकारिणी समिति ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करने के संबंध में Single प्रस्ताव पास Reseller । इस आन्दोलन के स्वReseller निर्धारण, संचालन And नेतृत्व आदि का कार्य गाँधीजी को सौंपा गया ।
2. आन्दोलन प्रारभ्भ होना-
12 मार्च, 1930 र्इ. को प्रात: 6 बजकर 30 मिनट में गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ने के उद्देश्य से अपने चुने हुए 79 साथियों को लेकर गुजरात के समुद्र तट पर स्थित दाण्डी नामक गांव को प्रस्थान Reseller और 6 अप्रैल को उन्होंने दाण्डी समुद्र तट पर स्वयं नमक कानून का उललंघर कर सत्याग्रह का श्रीगणेश Reseller । दाण्डी यात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए नेताजी सुभाषचन्द्र बोसेस ने इसकी तुलना ‘नेपोलियन के पेरिस मार्च’ औरैर ‘मुुसोलिनी के रोम मार्च से की है । गाँधीजी के इस कार्य से देशभर में अपूर्व उत्साह आरै जोश की लहर फैल गर्इ । स्थान-स्थान पर नमक बनाकर ब्रिटिश कानून की धज्जियाँ उड़ार्इ गयीं । मध्य पद्रेश में ‘जंगल कानून’ और कलकत्ता में ‘सेडीशन कानून’ का उल्लंघन Reseller गया । सर्वत्र हड़तालों और प्रदर्शनों की धूम मच गर्इ । जगह-जगह सार्वजनिक सभाएं हुर्इ । कलकत्ता, मद्रास, पटना, करांची, दिल्ली, नागपुर और पेशावर आदि स्थानों में प्रदर्शनों और हड़तालों का अत्यधिक जोर था । सैकड़ों सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियां छोड़ दीं, अनेक विधायकों ने कौंसिलों से त्याग पत्र दे दिये । महिलाओं ने शराब और अफीम की दुकानों पर धरने दिये तथा उनके गुण्डों की मार सही । विदेशी कपड़ों की होली जलार्इ गर्इ । नवयुवकों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाया । कहीं-कहीं किसानों ने लगान देना बंद कर दिया । बम्बर्इ में अंग्रेज व्यापारियों की मिलें बंद हो गर्इ । गांधीजी के आव्हान पर लोगों ने जाति-भेद व छुआछूत को समाज से समाप्त कर देने का बीड़ा उठाया । समस्त सरकारी कार्य ठप्प हो गये । जून, 1930 र्इ. तक सारा देश विद्रोह के पथ पर चलता हुआ दिखार्इ दे रहा था । मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने इस आन्दोलन में पूर्ण तटस्थता की नीति का पालन Reseller, परन्तु सीमा प्रान्त में राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में ‘खुुदार्इ खिदमतगार’ ने आरै ‘जमीयत उल-उलेमेमेमाए हिन्द’ के हजारों अनुयायियों ने इस आन्दोलन में भाग लिया ।
3. सरकार का दमन-चक्र-
सरकार ने देशव्यापी आन्दाले न के दमन के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी । कांग्रेस गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दी गर्इ । आन्दोलन आरम्भ भी नहीं होने पाया था कि उससे First ही हजारों स्वयसंसेवक किसी नकिसी बहाने जेलों में डाल दिये गये । सुुभाषचन्द्र बोसेस को Single वर्ष के लिए कारागार में भेज दिया गया । गांधीजी की दाण्डी यात्रा के बाद तो सरकार ने आन्दोलन को निर्ममतापूर्वक कुचलना शुरू Reseller । पुलस ने लाठी-गोली चलाना अपना दैनिक कार्य बना लिया । कलकत्ता और पेशावर आदि स्थानों में स्वयंसेवकों की टोली पर गोलियों और बमों की वर्षा की गर्इ, परनतु जनता के उत्साह के कारण आन्दोलन थमने का नाम ही नहीं लेता था । 5 मर्इ को सरकार ने गांधीजी, सरदार बल्लभ भार्इ पटेल, जवाहरलाल नेहरू, डॉं. राजेन्द्र प्रसाद आदि नेताओं सहित हजारों लोगों को बन्दी बना लिया । 1931 र्इ. के प्रारंभ में लगभग 90,000 व्यक्ति जेलों में बंद थे ओर सरकार ने 67 समाचार-पत्रों का प्रकाशन बन्द कर दिया । महिलाओं के साथ भी इसी प्रकार की कठोरता का बर्ताव Reseller गया । बोरदस में पुलिस ने 21 जनवरी, 1931 र्इ. को औरतों को गिराकर अपने बूटों से उनके सीने कुचलकर आखिरी नरक के दर्शन कराये । करबन्दी आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने सम्पत्ति को बलात् ग्रहण और कुर्क Reseller, जिससे कर्इ गांव बिलकुल उजड़ गये ।
4. गांधी-इरविन समझौता-
जब सरकार सख्ती से आन्दोलन का दमन नहीं कर पायी तो उसने समझौते के लिए हाथ बढ़ाया । तेज बहादुर सप्रू और डॉं. जयकर आदि ने समझौते का प्रयत्न Reseller । अत: जनवरी, 1931 र्इ. में गांधीजी और कुछ मान्य नेताओं को कारावास से मुक्त कर दिया गया । इसी वर्ष 5 मार्च का े ‘गाध्ंधी-इरविन समझौतैता’ हअु ा जिसके अन्तर्गत आन्दोलन समाप्त कर दिया गया । इन समझौतों में कुछ शर्ते थीं, जिनके According सरकार ने यह स्वीकार Reseller, कि वह All अध्यादेशों व मुकदमों को वापस ले लेगी तथा अहिंSeven्मक आन्दोलन करने वाली All कैदियों को रिहा कर देगी । समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों को बिना कर दिये नमक बनाने की अनुमति दी गयी ।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रमों में विनय के साथ गलत कानूनों की अवज्ञा करना था। नमक कानून से Indian Customer असंतुष्ट थे अत: प्रत्येक ग्राम में नमक कानून तोड़कर नमक बनाया गया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल जाना छोड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी त्याग दी। शराब, अफीम And विदेशी कपड़ों की दुकानों में स्त्रियों ने धरना दिया। जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलार्इ गर्इ। जनता ने All प्रकार के गलत करों को न देने का फैसला Reseller।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति
यह First ऐसा आन्दोलन था जिसमें First बार महिलाओं ने भारी संख्या में सशक्त भागीदारी अंकित की। शराब की दुकानों पर धरना दिया। दिल्ली में ही धरना देने के कारण 1600 स्त्रियों को कैद Reseller गया। भारत में जगह-जगह नमक कानून तोड़ा गया And विदेशी कपड़ों की होली जलार्इ गर्इ। खान अब्दुल गफ्फार खां ‘सीमान्त गांधी’ के नेतृत्व में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त में ‘खुदार्इ खिदमतगार’ नामक संगठन की स्थापना की गर्इ। यह संगठन ‘लाल कुर्ती’ के नाम से प्रख्यात हुआ। नागालैण्ड की 13 वष्र्ाीय रानी गोडिनल्यू ने विद्रोह का झण्डा उठाया। उसे 1932 में आजीवन कारावास की सजा दी गर्इ। इस प्रकार समस्त भारत में आन्दोलन का तीव्रता के साथ प्रसार हुआ। लगभग 90,000 से अधिक सत्याग्रही And प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार हुए।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव
तीव्र And देशव्यापी आन्दोलन ने Single ओर समस्त भारत में राष्ट्रीय चेतना And उत्साह का संचार Reseller तो दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार चिन्तातुर हुर्इ। वायसराय लार्ड इरविन And ब्रिट्रिश सरकार ने समस्या के समाधान हेतु विभिन्न राजनीतिक दलों से वार्ता हेतु गोलमेज सम्मेलन बुलाने का फैसला Reseller।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अत्यन्त व्यापक व दूरगामी प्रभाव हुए जो हैं-
- इस आंदोलन में पहली बार बड़ी संख्या में Indian Customerों ने भाग लिया, जिसमें मजदूर व किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक थे ।
- इस आंदोलन में करबन्दी को प्रोत्साहन दिये जाने के फलस्वReseller किसानों में भी राजनीतिक चेतना And अधिकारों की मांग के लिए संघर्ष करने की क्षमता का विकास हुआ ।
- इस आंदोलन के फलस्वReseller जनता में निर्भयता, स्वावलंबन और बलिदान के गुण उत्पन्न हो गये जो स्वतंत्रता की नींव हैं ।
- जनता ने अब समझ लिया कि युगों से देश के दु:खों के निवारण के लिए दूसरों का मुख ताकना Single भ्रम था, अब अंग्रेजों के वायदों और सद्भावना में Indian Customer जनता का विश्वास नहीं रहा। अब जनता के सारे वर्ग स्वतंत्रता चाहने लगे थे ।
- इस आंदोलन में कांग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया । कांग्रेस के पास भविष्य के लिये आर्थिक, सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह Indian Customer जनता में व्याप्त रोष का पूर्णतया उपयोग न सकी ।